Samay Time 2-3-25
जिसप्रकार से किसी ट्रेन की समयसारिणी देखकर ही महीनों पहले पता लगाया जा सकता है कि किस ट्रेन को किस दिन कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचना है| इसीप्रकार से गणितविज्ञान के द्वारा भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों की भी समयसारिणी को खोजकर उसके आधार पर ये पता लगाया जा सकता है कि इनमें से कौन घटना कब घटित होने वाली है| जिसप्रकार से समयसारिणी देख लेने के बाद ट्रेनों को प्रत्यक्ष देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है | ट्रेन आने जाने के विषय में सही सही पूर्वानुमान पता लग जाता है|
परोक्षविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो समयजनित प्रत्येक प्राकृतिक घटना समय के गर्भ में पड़े पड़े अपने घटित होने के समय की प्रतीक्षा कर रही होती है | जिस प्रकार की घटना के घटित होने का जब समय आता है तब वो अपने समय पर घटित होती चली जाती है| भूकंप आँधी तूफान वर्षा बादल चक्रवात बज्रपात तथा महामारी जैसी घटनाएँ भी अपने अपने निर्धारित समय पर ही घटित होती हैं | समय के संचार को न समझने के कारण ये अचानक घटित होती सी प्रतीत होती हैं |किस घटना के घटित होने के लिए निर्द्धारित समय कौन सा है | इसका पूर्वानुमान लगाया जाना गणितीयप्रक्रिया से ही संभव है |गणित का विस्तार असीम है|इसलिए ब्रह्मांड और उसके स्वभाव को समझने के लिए गणित ही सर्वश्रेष्ठ माध्यम है |
'कालज्ञान ग्रहाधीनं' अर्थात अच्छे बुरे समय का ज्ञान ग्रहों के आधीन है ! समय कब कैसा चल रहा है | इसे ग्रहों के आधार पर समझा जा सकता है| ग्रहों को गणित के आधार पर समझा जाता है| इसी गणितीयप्रक्रिया के द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | इससे प्रमाणित होता है कि नवग्रहों के संचार का पूर्वानुमान गणित के द्वारा लगाया जा सकता है | आज के सैकड़ों वर्ष बाद भविष्य में कौन ग्रह कहाँ कब पहुँचेगा | इसका पूर्वानुमान ग्रहगणित के द्वारा लगाया सकता है|
समयविज्ञान !
प्रयत्न और समय दोनों के संयोग से ही सफलता मिलती है|किसी कार्य में सफलता मिलने का समय पता न हो तो कई कई बार प्रयत्न करके समय का परीक्षण करते रहना होता है| जब समय अच्छा आता है तब सफलता मिल जाती है |
वैज्ञानिकों के द्वारा कुछ अनुसंधान बड़े विश्वास पूर्वक प्रारंभ किए जाते हैं | उनमें बहुत संसाधन लगते हैं | बहुत धन लगता है |अत्यंत परिश्रम पूर्वक कार्य करने के बाद भी प्रयत्न असफल होते देखे जाते हैं | कई बार असफल होने के बाद एक बार सफलता मिलती है | इसका मतलब यह ही नहीं है कि जो प्रयत्न असफल हुए उनके करने में कोई कमी रह गई थी प्रत्युत इसका कारण यह भी हो सकता है कि उस समय उस कार्य के सफल होने का समय ही न आया हो ,जब सफल होने का समय आया तब सफलता मिली |
कुछ लोग सफल होने के लिए बहुत परिश्रम करते हैं ,फिर भी सफल नहीं हो पाते हैं | उन्हें सफलता मिलनी है या नहीं | इसका निर्णय उस व्यक्ति के अपने अच्छे या बुरे समय एवं उस कार्य के होने या न होने के समय के अनुसार ही होता है |
चिकित्सक चिकित्सा करते हैं किंतु किसी को स्वस्थ करने की जिम्मेदारी नहीं लेते हैं|उन्हें ये पता होता है कि रोगी का स्वस्थ होना या न होना रोगी के अपने समय के अनुसार ही निश्चित होता है| ऐसे ही किसी रोगी के आपरेशन से पहले उसके परिजनों से लिखवा लिया जाता है| इसका मतलब ये नहीं है कि अयोग्य चिकित्सक ऑपरेशन करेंगे या उन्हें रोगी के स्वस्थ होने में संशय है | वस्तुतः उन्हें ये विश्वास होता है कि इस आपरेशन का परिणाम क्या होगा | ये उस रोगी के समय के आधार पर निश्चित होगा | समय संचार को समझे बिना उस परिमाण का पता लगा पाना संभव नहीं है |
किसी चिकित्सालय में बहुत सारे एक जैसे रोगियों की चिकित्सा की जाती है| उस चिकित्सा का परिणाम चिकित्सा के अनुसार न मिलकर उन रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार मिलता है| इसी लिए कुछ रोगी स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ रहते हैं कुछ की मृत्यु हो जाती है|जिस रोगी का जब जैसा समय होता है चिकित्सा का उस पर वैसा प्रभाव पड़ता है |
किसी प्राकृतिकआपदा से बहुत सारे लोग एक जैसे प्रभावित होते हैं,किंतु उनमें से कुछ लोगों को खरोंच भी नहीं लगती कुछ लोग घायल होते हैं जबकि कुछ लोगों की मृत्यु हो जाती है | उस प्राकृतिकआपदा से एक जैसा प्रभावित होने पर भी परिणाम अलग अलग दिखाई पड़ने का कारण उन सबका अपना अपना समय होता है |
चिकित्सालयों का निर्माण तो रोगियों को स्वस्थ करने के लिए होता है,उसमें शवगृहों का निर्माण किए जाने का कारण समय का ही भय है | प्रयत्न तो रोगियों को स्वस्थ करने के लिए किए जाएँगे किंतु यदि परिणाम प्रयत्नों के अनुरूप न मिलकर रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार मिलते हैं | जिन लोगों का समय ही मृत्यु का चल रहा होता है | उन पर चिकित्सा का प्रभाव पड़ेगा ही उनका जीवन पूरा होगा ही| किसका समय कैसा चल रहा है इसकी जानकारी न होने के कारण चिकित्सालयों में शवगृहों का निर्माण किया जाता है |
कोरोना जैसी महामारी के आने पर संक्रमित केवल वही लोग होते हैं जिनका अपना समय खराब चल रहा होता है !अन्यथा बाक़ी लोग उन्हीं परिस्थितियों में रहते हुए उन्हीं संक्रमितों के साथ उठते बैठते खाते पीते सोते जागते भी संक्रमित नहीं होते हैं |
शिक्षा के क्षेत्र में भी समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है| बहुत परिश्रम करने के बाद भी बहुत विद्यार्थी सफल नहीं हो पाते हैं| शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही सफल होने के लिए बहुत परिश्रम करते हैं किंतु इसके बाद भी अनेकों विद्यार्थियों को असफल होते देखा जाता है | उसका कारण उनमें से जिस विद्यार्थी का जैसा समय चल रहा होता है | वैसा उन्हें परिणाम मिलता है |
कुछ लड़के लड़कियाँ एक दूसरे के जिन गुणों बात व्यवहार सुंदरता आदि से प्रभावित होकर एक दूसरे से प्रेम करते हैं फिर विवाह भी कर लेते हैं | कुछ समय साथ रहने के बाद उनकी एक दूसरे से अरुचि होने लगती है | वे धीरे धीरे एक दूसरे से घृणा करने लगते हैं फिर विवाह विच्छेद हो जाता है | कुछ लोग तो एक दूसरे के शत्रु तक बन जाते हैं |इसमें विशेष बिचार करने योग्य बात यह है कि एक दूसरे की जिन अच्छाइयों से प्रभावित होकर वे दोनों एक दूसरे से प्रभावित हुए थे | वे सारी अच्छाइयाँ उन दोनों में उस समय भी वैसी ही विद्यमान थीं जब उन दोनों एक दूसरे से घृणाकरते हुए विवाह विच्छेद किया था | इसलिए उनके एक दूसरे से मिलने और बिछुड़ने का कारण उन दोनों के गुण दुर्गुण न होकर प्रत्युत उन दोनों का अपना अपना समय ही है | जब तक समय एक दूसरे के अनुकूल चलता रहा तब तक वे एक दूसरे से जुड़े रहे और जैसे ही समय बदलकर एक दूसरे के प्रतिकूल चलने लगा वैसे ही वे दोनों एक दूसरे से अलग हो जाते हैं |
कुल मिलाकर कर किसी कार्य का बनना बिगड़ना प्रयत्न और समय के आधार पर निश्चित होता है | जिस प्रकार से कुछ घास फूस के बीज मार्च अप्रैल के महीने में खेतों में झड़ जाते हैं | खेतों में पड़े पड़े अपने अंकुरित होने की प्रतीक्षा किया करते हैं | बरसात में भीगने पर भी वे अंकुरित नहीं होते हैं | अक्टूबर नवंबर में उनके अंकुरित होने का समय होता है | उस समय के आने पर अपने आप ही अंकुरित होने लगते हैं | ऐसे ही आम के बृक्ष में कितना भी खाद पानी लगातार देते रहा जाए लेकिन उनमें बौर बसंत का समय आने पर ही लगता है | ऐसे ही परिश्रम कितना भी क्यों न कर लिया जाए किंतु सफलता समय आने पर ही मिलती है |इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को समय की समझ होनी ही चाहिए,अन्यथा बार बार निरर्थक प्रयत्न करते रहना पड़ता है |
समय को समझना ही है सबसे बड़ा विज्ञान |
कोरोनामहामारी आने के कुछ वर्ष पहले से विभिन्नप्रकार की प्राकृतिकआपदाओं एवं मनुष्यकृत हिंसक घटनाओं कुछ देशों के आपसी युद्धों आंदोलनों मार्ग दुर्घटनाओं आतंकीघटनाओं से बड़ी संख्या में लोग मृत्यु को प्राप्त होते देखे जा रहे थे |इनमें बहुत लोगों की मृत्यु होते देखी जा रही थी | उन मौतों के लिए उन उन युद्धों या दुर्घटनाओं को जिम्मेदार मान लिया जाता रहा है | मौतों का क्रम बढ़ते बढ़ते बहुत अधिक बढ़ गया | इसके बाद धीरे धीरे मौतों की संख्या घटने लगी | धीरे धीरे विराम लगता जा रहा था |
इन मौतों में एक विशेष देखी गई कि जब तक प्राकृतिकआपदाओं ,मनुष्यकृत हिंसक घटनाओं, कुछ देशों के आपसी युद्धों, आतंरिक हिंसक आंदोलनों, मार्ग दुर्घटनाओं, आतंकीघटनाओं में लोगों की मृत्यु होती रही,महारोग ( महामारी ) फैलने पर लोगों की मृत्यु होने लगी तब तक लोगों की मृत्यु होने के लिए उन उन घटनाओं को जिम्मेदार मान लिया जाता रहा है | इसके बाद एक समय ऐसा भी आया जब लोग बिना रोगी हुए बिना किसी दुर्घटना से पीड़ित हुए ही उठते बैठते हँसते खेलते सोते जागते नाचते गाते अभिनय करते मृत्यु को प्राप्त होते देखे जा रहे थे | छोटे छोटे बच्चे बूढ़े जवान आदि बिना किसी कारण के मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे |
समय की समझ के अभाव में इसी समय इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौतें होने के वास्तविक कारण को खोजा नहीं जा सका | मौतों के साथ घटनाओं को चिपकाया जाता रहा |लोग जबतक संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त होते रहे तब तक तो उन्हें महामारी से होने वाली मौतें माना जाता रहा किंतु जब बिना किसी दुर्घटना या रोग के भी जब लोगों की मौतें होती जा रही थीं तब ये भ्रम भी टूट गया कि मौतों का कारण महामारी ही है |
समय की समझ का अभाव है या जलवायु परिवर्तन !
समय के संचार एवं उसके प्रभाव को समझे बिना या सम्मिलित किए बिना प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जो अनुसंधान किए जाते हैं | उनके परिणाम न तो विश्वसनीय होते हैं और न ही उनसे उस लक्ष्य की पूर्ति होती है,जिसके लिए वे अनुसंधान किए जाते हैं | ऐसे अनुसंधान बिना किसी निष्कर्ष पर पहुँचे ही रोक दिए जाते हैं | जो उन घटनाओं के विषय में होने वाली निरर्थक चर्चा के काम आते हैं |
भूकंपों के विषय में किए जाने वाले अनुसंधानों से यदि ये पता लगा भी लिया जाए कि किस भूकंप का केंद्र कहाँ था कितनी गहराई पर था कितनी तीव्रता थी | भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप आया था या भूमिगत ऊर्जा बाहर निकलने के दबाव से भूकंप आया था | ऐसे काल्पनिक किस्से कहानियों को जान लेने से भूकंप संबंधी आपदा से होने वाली जनधन हानि को कैसे कम किया जा सकेगा | भूकंप संबंधी अनुसंधानों को करने का लक्ष्य तो उससे होने वाली जनधन हानि को रोकना या कम करना ही है |
कुल मिलाकर समयबिहीन अनुसंधानों के नाम पर होता बहुत कुछ है लेकिन उनसे होता कुछ नहीं है |ऐसे अनुसंधानों से न तो उन घटनाओं के विषय में कुछ पता लग पाता है और न ही उन घटनाओं के विषय में लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान ही सही निकल पाते हैं | ये भी पता लगाना संभव नहीं हो पाता है कि उन संकटों से निपटने के लिए क्या उपाय किए जाएँ या जो उपाय किए जा रहे हैं वे क्या सही दिशा में हो रहे हैं या नहीं | ये भी पता नहीं लग पाता है | ऐसे मनगढंत काल्पनिक कारणों के आधार पर बोला तो बहुत कुछ जा सकता है किंतु उसे तर्कसंगत ढंग से स्थापित नहीं किया जा सकता है | ऐसे अनुसंधानों से समाज की मदद कैसे की जा सकती है |
कुल मिलाकर सदियों से अनुसंधान होते आ रहे हैं | ऐसे अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि खर्च होती है ,किंतु अनुसंधानों के आधार पर अभी तक घटनाओं को समझना ही संभव नहीं हो पा रहा है |
उपग्रहों रडारों से आकाश में बादल उड़ते दिखाई पड़े तो अंदाजा लगा लिया जाता है कि कहीं वर्षा हो सकती है | वे जितनी गति से जिस ओर जाते दिखे उसी आधार पर कल्पना कर ली गई कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं | उसी हिसाब से वर्षा होने के विषय में अंदाजा लगा लिया जाता है कि अमुक देश प्रदेश में वर्षा हो सकती है | ऐसे ही उपग्रहों रडारों से आकाश में आँधी तूफ़ान दिखाई पड़े तो उनकी गति और दिशा के अनुसार ये अंदाजा लगाया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं |
महामारी में भी ऐसे ही जुगाड़ों से काम चलाया जा रहा है |अचानक बड़ी संख्या में लोग रोगी होने लगे और औषधियों से लाभ न मिल पा रहा हो तो महामारी मान ली जाती है |अधिक लोग संक्रमित होने लगे तो महामारी का वेग अधिक मान लिया जाता है और कम लोग संक्रमित हुए तो महामारी का वेग कम मान लिया जाता है| संक्रमितों की संख्या समाप्त होने लगी तो महामारी समाप्त मान ली जाती है | जो सामने घटित होता दिखाई पड़ा यदि उसे ही मानना है तो अनुसंधानों की आवश्यकता ही क्या बचती है |
ऐसे जुगाड़ों को विज्ञान नहीं कहा जा सकता है | ये विज्ञान तो तब होते जब उपग्रहों रडारों से देखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती |केवल अनुसंधानों के आधार पर ही महीनों वर्षों पहले यह पूर्वानुमान लगा लिया जाता कि अमुक वर्ष के अमुक महीने के अमुक दिनों में वर्षा या आँधी तूफान जैसी घटना घटित हो सकती है या महामारी आ सकती है | सूर्यचंद्र ग्रहणों के विषय में ऐसे ही तो सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है तो ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में यह क्यों नहीं किया जा सकता है |
कुछ प्राकृतिक घटनाओं को देखकर ही यदि कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं को समझा जाना है तो अनुसंधानों की आवश्यकता ही क्या है | जो घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए किए जाते हैं |
समय और घटनाओं के संबंध
समय की समझ न होने से घटनाओं के वास्तविक कारणों को समझना संभव नहीं हो पा रहा है| इसलिए काम बिगड़ने या असफल होने के लिए या संबंध बिच्छेद होने के लिए कुछ ऐसे कारणों की कल्पनाएँ कर ली जाती हैं | जिनका उन घटनाओं से कोई संबंध ही नहीं होता है | इसीलिए ऐसे गलत कारणों को सच मानकर इनके आधार पर जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं | वे गलत निकल जाते हैं| इनके गलत होने के लिए वे आधार विहीन कल्पित कारण जिम्मेदार होते हैं |मौसम संबंधी अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकले तो उनके लिए जलवायु परिवर्तन एवं महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकले तो महामारी के स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता है |ऐसी बातों के समर्थन में न कोई तर्क होते हैं न कोई प्रमाण न विज्ञान और न ही अनुसंधान | इनके विषय में कोई परीक्षण भी नहीं होते हैं | अनुसंधानों के नाम पर ऐसे ही कुछ अन्य घटनाओं के विषय में भी भ्रमात्मक कारणों को स्थापित किया जाता है |
जिस प्रकार से कमल के खिलने और सूर्योदय होने का समय एक ही होता है |दोनों घटनाएँ प्राकृतिक रूप से अपने अपने समय पर घटित हो रही होती हैं | समय की समझ न होने के कारण इन दोनों घटनाओं को एक दूसरे के साथ जोड़ दिया जाता है| कहा जाता है सूर्योदय होने पर कमल खिलता है |
विशेष बात ये है कि सूर्योदय होने का कारण कमल का खिलना है या कमल खिलने का कारण सूर्योदय होना है | सूर्योदय होने और कमल के खिलने का आपस में कोई संबंध है भी या नहीं | दोनों घटनाओं के एक समय पर घटित होने के कारण एक दूसरे से संबंध जोड़कर देखा जाता है |
ऐसे ही कहा जाता है कि समुद्र में उठने वाली लहरों का संबंध चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण शक्ति से है। ऐसा पूर्णिमा और अमावस्या से अगली रात को होता है। इन समयों में पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य की एक रेखा में होने से पृथ्वी और चंद्रमा की गुरूत्वाकर्षण शक्ति मिलकर समुद्र की लहरों पर प्रभाव डालकर उन्हें उपर उठाती हैं।
विशेष बात ये है कि ये घटना पूर्णिमा और अमावस्या रूपी समय पर घटित होती है| इसलिए ऐसी घटना के घटित होने का कारण समय ही हो सकता है|इसके लिए यदि चंद्रमा के आकर्षण को कारण माना जाए तो ये तर्कसंगत इसलिए नहीं लगता है , क्योंकि कई बार पूर्णिमा और अमावस्या जैसी तिथियों में भी वर्षा होते देखी जाती है | इन तिथियों में चंद्रमा यदि यदि समुद्र के जल को आकर्षित कर सकता है तो कई बार इन्हीं तिथियों में बादलों से झरने वाली छोटी छोटी बूँदों को चंद्रमा अपनी ओर आकर्षित क्यों नहीं कर सकता है |
समय की समझ के अभाव में ऐसी बहुत सारी घटनाएँ एक दूसरे से जोड़कर देखी जाने लगी हैं | यदि ये कहा जाने लगे कि कमलों के खिलने पर सूर्य उगता है तो इसे किस आधार पर गलत मान लिया जाएगा |
इसीसमय अचानक तेजी से लोग रोगी होने लगे |ऐसा होने का कारण कुछ लोगों ने महामारी को माना तो कुछ दूसरे वर्ग ने लोगों के रोगी होने का कारण प्रतिरोधक क्षमता की कमी को माना | इससे शंका हुई कि लोगों के रोगी होने का कारण महामारी का वेग था या लोगों में प्रतिरोधक क्षमता की कमी | समय की समझ के अभाव में ये पता ही नहीं लगाया जा सका कि ये महामारी है या प्रतिरोधक क्षमता की कमी |
जिसप्रकार से कोई तबला बादक गीत की लय के अनुसार भिन्न भिन्न प्रकार से अलग अलग स्थानों पर अलग अलग प्रकार से थापें मारता है | कहीं अँगुली कहीं अँगूठा तो कहीं हथेली से कहीं तेज कहीं धीमी थाप मारता है | इसमें एक रूपता न होती है और न ही हो सकती है |इसलिए तबले पर अगली थाप कहाँ कैसे लगेगी! इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए गीत और उसकी लय समझनी होगी जिसके साथ तबला बजाया जा रहा होता है |
इसलिए इतने बार तबले पर अँगुली अँगूठा या हथेली तेज या धीमे मारी जा चुकी है | इसका मतलब इसका यही क्रम होता होगा | आगे भी ऐसा ही होता रहेगा| ऐसी निराधार कल्पना करके उसी के आधार पर कुछ भविष्यवाणियाँ कर दी जाएँ कि तबलावादक अगली बार कहाँ कैसी थाप मारेगा तो ये भविष्यवाणियाँ सही नहीं निकलेंगी|ऐसी भविष्यवाणियाँ यदि गलत निकल जाएँ तो ये गलती आधार विहीन काल्पनिक भविष्यवाणी करने वाले की है न कि तबलावादन का जलवायुपरिवर्तन है |
जिस प्रकार से गीत की लय को समझे बिना केवल तबलावादक के द्वारा तबले पर मारी जा रही थापों के आधार पर तबलावादक अगली बार कहाँ कैसी थाप मारेगा |इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है | उसी प्रकार से प्रकृति का भी अपना एक संगीत है |इसमें समय का संचार ही गीत है| विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ ही थापें हैं| जिसप्रकार से तबले की थापें समझने के लिए गीत के लय उतार चढ़ाव आदि को समझना आवश्यक है | उसी प्रकार से भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों आदि को समझने एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए समय के संचार को समझना आवश्यक है | जिस प्रकार से तबले की थापों को समझने के लिए संगीतज्ञ होना आवश्यक है | उसीप्रकार से प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए समय वैज्ञानिक होना आवश्यक है | जिस प्रकार से तबले पर पड़ रही थापों को देखकर उनके आधार पर इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता कि अगली थाप कहाँ कैसी पड़ेगी | इसीप्रकार से केवल प्राकृतिक घटनाओं को देखकर उन्हीं के आधार पर कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | महामारी संक्रमितों को देखकर उनके आधार पर महामारी के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सकता है |
जिसप्रकार से तबले पर पड़ रही थापों को देखकर ये नहीं कहा जा सकता कि इसके बाद वाली थापें भी इसी प्रकार की इन्हीं स्थानों पर लगेंगी|ऐसे ही प्राकृतिक घटनाओं के विषय में ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता है कि ये घटनाएँ अभी जैसी घटित हो रही हैं | वैसी ही आगे भी घटित होती रहेंगी | इसके आधार पर कोई भविष्यवाणी कर दी जाए | यदि वो सच न निकले तो इसके लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार मान लिया जाए | ये ठीक नहीं है |
समय और प्रकृति
समय हमेशा बदलता रहता है |समय के साथ साथ संपूर्ण ब्रह्मांड में बदलाव होते रहते हैं | समय के अनुसार प्रकृति और जीवन में बदलाव होते हैं |समय बदलने के साथ प्रकृति भी बदलते दिखाई पड़ती है|
समय जब जैसा बदलता है | उस समय प्रकृति भी उसीप्रकार का स्वरूप धारण करने लगती है| शिशिर का अर्थ होता है ठंडा और ऋतु का अर्थ होता है समय !शिशिरऋतु का अर्थ होता है ठंडासमय | शिशिरऋतु में सूर्य की किरणें मंद पड़ने लगती हैं| तापमान काफी गिर जाता है|कोहरा पाला आदि आकाश को ढक लेते हैं|लोग सर्दी से काँपने लगते हैं |इस प्रकार से शिशिरऋतु के नाम के अनुसार ही संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण बनता चला जाता है | प्रकृति भी समय के अनुरूप व्यवहार करने लगती है |इससे यह प्रमाणित होता है कि प्रकृति में हो रहे सभी बदलावों (घटनाओं) का कारण समयका प्रभाव ही है |
ग्रीष्म शब्द का अर्थ होता है उष्ण (गरम) ऋतु का अर्थ है समय ! ग्रीष्मऋतु का अर्थ होता है उष्ण अर्थात गरम समय ! ग्रीष्मऋतु के प्रभाव से तापमान काफी बढ़ जाता है |हवाएँ भी गरम चलने लगती हैं| ग्रीष्मऋतु में हवाओं के गरम होने से उनकी गति बढ़ जाती है |इसीलिए आँधी तूफ़ान आने की घटनाएँ अधिक घटित होने लग जाती हैं | नदियों तालाबों आदि का पानी सूख जाता है | गरमऋतु के प्रभाव से संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण होने से ये विश्वास होता है कि समय के अनुरूप प्रकृति भी अपना स्वरूप बदलने लगती है |
ऐसे ही वर्षाऋतु का अर्थ है बारिश का समय ! इसीलिए वर्षाऋतु के प्रभाव से आकाश में बादलों का आना जाना प्रारंभ हो जाता है| बादलों की काली काली घटाएँ घिरने लग जाती हैं| बादल बरसने लगते हैं | उससे नदियाँ तालाब आदि भर जाते हैं | बाढ़ आने लगती है |तापमान कम होने लगता है| वर्षाऋतु में तरह तरह के रोग पैदा होने लगते हैं | ऐसा प्राकृतिक वातावरण तब बना जब प्रकृति पर वर्षाऋतु के समय का प्रभाव पड़ा तो संपूर्ण प्रकृति उसी प्रकार का स्वरूप धारण करती चली गई |
इसप्रकार से समय के प्रभाव से प्रकृति में परिवर्तन होते हैं ये प्रमाणित हो जाता है | इसलिए प्रकृति में घटित होने वाली उन सभी घटनाओं के लिए समय को जिम्मेदार माना जाना चाहिए | जिनके घटित होने में मनुष्यकृत प्रयत्न सम्मिलित न हों |
जिसप्रकार की घटनाएँ जब घटित होती दिखाई दें तब उस प्रकार का समय चल रहा होगा ऐसा विश्वास किया जाना चाहिए | कब किस प्रकार का समय चल रहा है | यह पता लगाने के लिए दो ही मार्ग हैं या तो गणितविज्ञान के द्वारा अच्छे बुरे समय की पहचान की जाए या फिर अच्छी बुरी प्राकृतिक घटनाओं को देखकर अच्छे बुरे समय की पहचान की जाए | इसमें गणितविज्ञान के द्वारा समय संबंधी जो जानकारी मिलती है | उसके आधार पर अच्छे बुरे समय के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | अच्छे बुरे समय के विषय में पूर्वानुमान लगते ही समय के प्रभाव से घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के विषय में भी सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाना संभव हो पाएगा |
वात पित्त और कफ के असंतुलित होते ही प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित होने लगती हैं यदि यह असंतुलन शरीर में बन जाए तो शरीर रोगी होने लगते हैं | वर्षाऋतु ही वात है ,ग्रीष्मऋतु ही पित्त है और शिशिरऋतु ही कफ है |ये ऋतुएँ समय स्वरूपा हैं | समय को समझने के लिए गणित ही सर्वोत्तम विकल्प है |गणित के द्वारा ही भविष्य के अच्छे बुरे समय के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए | उसी के अनुसार प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
जिसप्रकार से ऋतुओं के आने जाने का समय निश्चित है| अमावस्या पूर्णिमा का समय निश्चित है|सूर्यादि ग्रहों के उदय और अस्त होने का समय निश्चित है| प्राकृतिक घटनाएँ अपनी अपनी ऋतुओं में घटित होती हैं उनका भी अपना अपना समय निश्चित है|इसीप्रकार से भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों आदि के भी आने जाने का समय भी निश्चित होता है|जिस घटना के घटित होने का जब समय आता है तब वो घटना घटित हो जाती है |अंतर इतना है कि ऋतुओं तथा अमावस्या पूर्णिमा आदि तिथियों एवं ग्रहों के उदय अस्त होने के समय को गणितविज्ञान के द्वारा अनुसंधानपूर्वक खोज लिया गया है | इसलिए इनके विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में भी सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों आदि से संबंधित समय की पहचान आदिकाल में ही कर ली गई थी |उस युग में ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा भी लिए जाते थे | वर्तमान समय में ऐसी घटनाओं के विषय में समय आधारित अनुसंधानों की परंपरा ही विलुप्त होती जा रही है | इसी कारण प्रकृति एवं जीवन से संबंधित घटनाएँ अचानक घटित होते दिखाई दे रही हैं |आवश्यकता ऐसी घटनाओं के घटित होने के निश्चित समय को खोजे जाने की है न कि इनके घटित होने के लिए किसी जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराने की है |
प्रकृति पर समय के प्रभाव की पहिचान !
कोरोनामहामारी के समय भी ऐसा ही होते देखा गया था | कोरोनामहामारी से संक्रमितों की संख्या कभी बहुत अधिक बढ़ जाती थी और कभी बहुत कम हो जाती थी | ऐसा लगता था कि कोरोना अब समाप्त हो गया | कुछ महीनों बाद संक्रमितों की संख्या फिर बढ़ने लग जाती थी | ऐसे ही कुछ दिनों में संक्रमण का बहुत अधिक बढ़ जाना और कुछ दिनों में बहुत कम होने लगते देखा जाता था |अचानक बढ़ने घटने या महामारी के समाप्त होने का क्या कारण है |
महामारीसंक्रमण बढ़ने के लिए कोविड नियमों के न पालन को जिम्मेदार ठहराया जाता था,किंतु कोविड नियमों का पालन तो महामारी आने के पहले भी नहीं किया जाता था | ऐसा भी नहीं है कि कोविड नियमों का पालन करने ही महामारी को समाप्त किया जा सका हो | उसके बाद कोविड नियमों का पालन लगातार किया जा रहा हो |इसलिए महामारी जनित संक्रमण उसके बाद न बढ़ पा रहा हो |
ऐसे ही हेमंत और शिशिरऋतु में कुछ क्षेत्रों में वायु प्रदूषण कुछ दिन अधिक बढ़ता है | इसके बाद कुछ दिन तक सामान्य रहता है | कुछ दिन फिर काफी अधिक बढ़ जाता है | उसके बाद फिर सामान्य हो जाता है | इसके बार बार घटने बढ़ने का कारण क्या हो सकता है |
चीन या ईरान जैसे जिन देशों में दिवाली नहीं मनाई जाती है| उन देशों में भी उन्हीं दिनों में वायुप्रदूषण बढ़ता है | दिवाली के कुछ दिन होते हैं | वह वर्ष में एक बार आती है | पराली कुछ समय जलाई जाती है | वायुप्रदूषण तो उसके बाद भी बढ़ता है| जिससमय ऐसी घटनाएँ नहीं घटित होती हैं | इसलिए वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण यदि दिवाली या पराली होती तो उसके बाद वायु प्रदूषण नहीं बढ़ना चाहिए,किंतु उसके बाद भी बढ़ता है | बढ़ता तो अन्य ऋतुओं में भी है |उद्योग ,वाहन और निर्माण कार्य तो बारहों महीने चलते हैं |वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण यदि ये होते तो हर ऋतु में एक जैसा बढ़ा रहना चाहिए था | ईंटभट्ठे वर्षाऋतु को छोड़कर आठ महीने चलते हैं | वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण यदि उन्हें माना जाए तो सर्दी और गर्मी के पूरे समय में एक जैसा वायुप्रदूषण बढ़ा रहना चाहिए | वायु प्रदूषण के कुछ दिनों में अधिक बढ़ने और कुछ दिनों में सामान्य रहने का कारण क्या है | कुछ दिनों में वायुप्रदूषण बहुत अधिक बढ़ा रहता है | कुछ दिन सामान्य रहता है | उसके बाद फिर बढ़ जाता है |सर्दी के अतिरिक्त कुछ अन्य ऋतुओं में भी इन्हीं कुछ दिनों में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है | वो सर्दी की ऋतु के जितना भले न बढ़ता हो लेकिन उन कुछ दिनों में भी बढ़ तो अवश्य जाता है |विशेष बात यह है कि उन कुछ दिनों में बढ़ता है तो सभी जगह बढ़ता है |
शिशिर ग्रीष्म एवं वर्षा आदि ऋतुएँ सर्दी गर्मी एवं वर्षा होने के लिए जानी जाती है| इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि शिशिर आदि ऋतुओं में उनका प्रभाव एक जैसा नहीं दिखाई पड़ता है |ऋतुओं के प्रभाव का समय और स्तर घटता बढ़ता रहता है |
ऋतुओं के शुरू और समाप्त होने का समय निश्चित है | इसलिए ऋतुओं का प्रभाव भी ऋतुओं के के साथ ही शुरू और समाप्त हो जाना चाहिए,किंतु ऐसा कभी कभी ही होता है | कभी कभी ऋतुओं का समय शुरू होने के पहले से ही ऋतुओं के समाप्त होने के बाद तक ऋतु प्रभाव चलते देखा जाता है | ऐसे ही कई बार ऋतुएँ शुरू होने के काफी बाद में ऋतुप्रभाव प्रारंभ होता है और ऋतुओं के समाप्त होने से पहले ही ऋतु प्रभाव समाप्त हो जाता है | इस प्रकार से अपनी अपनी ऋतुओं में भी कभी कभी निर्धारित समय से कम या अधिक समय तक सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का प्रभाव रहते देखा जाता है |
कई बार ऋतुओं के लिए निर्धारित समय में ही ऋतुओं का प्रभाव काफी अधिक बढ़ या घट जाता है | कभी सर्दी बहुत अधिक पड़ती है तो कभी बहुत कम पड़ती है |ऐसे ही गर्मी वर्षा आदि का भी प्रभाव काफी अधिक बढ़ते या घटते देखा जाता है |
कई बार ऋतुओं का प्रभाव कुछ दिन बहुत अधिक बढ़ जाता है फिर सामान्य हो जाता है| उसके बाद कुछ दिनों के लिए ऋतुप्रभाव फिर बहुत अधिक बढ़ जाता है |उसके बाद फिर कम हो जाता है |एक एक ऋतु में ऐसा कई कई बार होते देखा जाता है | शिशिर (सर्दी) ऋतु में सर्दी कुछ दिन बहुत अधिक बढ़ती है | कुछ दिन सामान्य होती है | कुछ दिन फिर बढ़ जाती है | कुछ दिन फिर सामान्य रहती है | ऐसे ही ग्रीष्मऋतु में गर्मी के प्रभाव में उतार चढ़ाव होते देखा जाता है |वर्षा ऋतु में वर्षा भी किसी दिन बहुत अधिक होती है | किसी दिन बिल्कुल नहीं होती | किसी दिन सामान्य होती है और किसी दिन फिर बहुत अधिक होती है |
इसमें विशेष बात ये है कि ऋतुओं में ऋतु कम प्रभाव हो ये तो ठीक है |कुछ दिन बहुत अधिक ऋतुप्रभाव रहने एवं कुछ दिन सामान्य रहने तथा फिर कुछ दिन बहुत अधिक रहने का कारण क्या हो सकता है |
विशेष बात ये है कि जिस प्रकार से वर्ष के कुछ महीनों में सर्दी अधिक होने का कारण शिशिर ऋतु अर्थात समय है | उसी प्रकार से शिशिर ऋतु में कुछ दिन सर्दी बहुत अधिक बढ़ने का कारण भी समय ही है | ऐसे ही सर्दी बढ़ाने वाला यह समय ग्रीष्म(गर्मी)की ऋतु में भी आता है | उस दिन या तो वर्षा हो जाती है या कुछ अन्य कारणों से या बिना किसी कारण केवल समय के प्रभाव से इन दिनों में अन्य दिनों की अपेक्षा तापमान कम हो जाता है |
ऐसा ही वर्ष के कुछ महीनों में गर्मी अधिक होने का कारण ग्रीष्म(गर्मी)ऋतु अर्थात समय का प्रभाव है |ग्रीष्म(गर्मी)ऋतु के कुछ दिनों में गर्मी विशेष अधिक बढ़ जाने का कारण भी समय का ही प्रभाव है| यही कुछ दिन जब सर्दी की ऋतु में आते हैं | सर्दी के भी उन दिनों में तापमान अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ बढ़ा रहता है |
ऐसे ही वर्षा के कुछ महीनों में वर्षा अधिक होती है | इसका कारण वर्षाऋतु अर्थात समय है | वर्षा ऋतु के महीनों में ही कुछ दिनों में वर्षा बहुत अधिक होती है | यही कुछ दिन जब दूसरी ऋतुओं में आते हैं उनमें भी कुछ वर्षा होते देखी जाती है |
कुछ दिनों में सर्दी के अधिक बढ़ने का कारण क्या हो सकता है | सर्दी अधिक बढ़ने का महीनों और दिनों से क्या संबंध है |उन महीनों और दिनों में ऐसा विशेष क्या होता है | महीनों के लिए तो सूर्य के परिभ्रमण को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है किंतु सर्दी की ऋतु के कुछ दिनों में सर्दी अधिक होने फिर कम हो जाने और फिर अधिक हो जाने का कारण क्या है |उन कुछ दिनों में जब सर्दी अधिक बढ़ती है | ऐसी स्थिति में सर्दी बढ़ने का उन कुछ दिनों से क्या संबंध है |
कुछ दिनों में ऐसी घटनाएँ बहुत अधिक घटित होती हैं,फिर कुछ दिन तक सामान्य रहती हैं | उसके बाद कुछ दिनों तक फिर बहुत अधिक तापमान बढ़ जाता है |
कोरोना महामारी एक बार आई उसी समय जितना बढ़ना होता बढ़ जाती फिर शांत हो जाती तो समाप्त हो जाती !किंतु महामारी संबंधी लहरों के आने और जाने का कारण क्या रहा होगा | एक बार महामारी बहुत अधिक बढ़ गई फिर घटी कैसे और यदि घट ही गई तो दुबारा बढ़ने का कारण क्या रहा होगा | इस घटना की पुनरावृत्ति बार बार होती रही !कुछ महीने शांत रहने के बाद फिर कुछ दिनों के लिए कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण क्या रहा होगा |इसके बाद कोरोना महामारी के समाप्त होने का क्या कारण रहा होगा |
कई बार ग्रीष्मऋतु के अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं के भी कुछ दिनों में आँधी तूफ़ान आते हैं | ऐसे ही ग्रीष्मऋतु के अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं में भी उन ऋतुओं के अपने स्वभाव की अपेक्षा तापमान बढ़ जाता है|
इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि वर्षाऋतु का समय आने पर भी कुछ दिनों में वर्षा अधिक होती है | इसके अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं का समय आने पर भी कुछ दिनों में वर्षा होती है | अंतर इतना होता है कि वर्षा ऋतु में अन्य ऋतुओं की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है |
इसीप्रकार से कोरोना जैसी महामारियों के विषय में कहा जाता है कि ऐसी महामारियाँ लगभग एक सौ वर्ष के अंतराल में एक बार आती हैं | ऐसी घटना पिछले कुछ सदियों से घटित हो रही है | सौ वर्ष के निश्चित अंतराल में ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या है |
ऋतुध्वंस का ही मतलब है जलवायुपरिवर्तन !
जल और वायु भी तो पंचतत्वों में ही सम्मिलित हैं| परिवर्तन होगा तो पाँचोंतत्वों में एक साथ होगा !किसी एक तत्व में परिवर्तन शुरू होते ही दूसरे तत्व भी उससे प्रभावित होने लगते हैं|किसी गाड़ी के चार पहियों में से कोई एक पहिया भी यदि खाँचे में चला जाए तो शेष तीनों पहियों की भी गति बाधित हो जाती है |ऐसी स्थिति में यह कैसे संभव है कि जलवायु परिवर्तन हो किंतु बाक़ी तीन तत्वों में कोई परिवर्तन ही न हो | तापमान बढ़ने के बाद सर्दी को कम करना नहीं पड़ता है अपितु सर्दी स्वतः कम हो जाती है|
हमारे कहने का अभिप्राय जलवायुपरिवर्तन का मतलब केवल जल और वायु तत्व में ही परिवर्तन न होकर प्रत्युत पाँचों तत्वों में होने वाला परिवर्तन है | अचानक तापमान बढ़ने लगे या सर्दी अधिक बढ़ने लगे, बार बार तूफ़ान आने लगें ! हिंसक महामारी आ जाए !लीक से हटकर घटित होने वाली ऐसी सभी घटनाओं के घटित होने के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार माना जाता है ,किंतु ऐसा कैसे हो सकता है | तापमान बढ़ने का कारण जल और वायु में होने वाले परिवर्तन न होकर प्रत्युत अग्नि तत्व में होने वाला परिवर्तन है | भूकंप जैसी घटनाएँ पृथ्वी अग्नि एवं वायुतत्व के संयोग से घटित होती हैं |तूफ़ान जैसी घटनाएँ अग्नि एवं वायु के संयोग से घटित होती हैं | इसलिए सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के लिए केवल जलवायुपरिवर्तन को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है |
चिकित्साशास्त्र में भी प्रकृति एवं जीवन को प्रभावित करने वाले जिन वातपित्तकफ के असंतुलन चर्चा की जाती है वह भी जलवायुपरिवर्तन ही तो है | उसमें अग्नि तत्व को भी सम्मिलित किया गया है जिसके बिना केवल जलवायुपरिवर्तन प्रकृति एवं जीवन को प्रभावित करने में सक्षम नहीं है |वातपित्तकफ के असंतुलन से संपूर्ण प्रकृति एवं जीवन पर बिपरीत प्रभाव पड़ता है | त्रितत्वों के वैषम्य से संपूर्ण प्रकृति प्रभावित होती है | खाने पीने की चीजें प्रभावित होती हैं |उन्हें खाने पीने से स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है |ऐसी हवा में साँस लेने से रोग पैदा होते हैं |
वर्षा आदि होने न होने तथा कम या अधिक होने का कारण केवल जलवायुपरिवर्तन ही नहीं अपितु पंचतत्वों का वैषम्य होता है |ऐसी बिषमता का कारण समय में होने वाले परिवर्तन होते हैं | समय के संचार में होने वाले परिवर्तनों को समझे बिना पंचतत्वों के वैषम्य को समझना या इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना कठिन होता है |इसके बिना भूकंप आँधी तूफ़ान आदि किसी भी प्राकृतिक घटना को समझना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है |
विभिन्न प्राकृतिकघटनाओं के लिए केवल जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा देने मात्र से अनुसंधानों का उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता है |लक्ष्य तो प्राकृतिक आपदाओं के कारणों एवं उनके समाधानों को खोजना होता है | ऐसी घटनाएँ यदि जलवायुपरिवर्तन के कारण घटित होती हैं,तो जलवायुपरिवर्तन होने का कारण खोजना होगा | उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाना होता है |तभी ऐसे अनुसंधानों से लक्ष्य साधन हो सकता है |
पंचतत्वों के संतुलन से ही जीवधारियों के रहने लायक वातावरण का निर्माण हो पाता है | समस्त जीवधारियों को इसीप्रकार के वातावरण में रहने की आदत सी पड़ी हुई है | इस वातावरण में जितना परिवर्तन होता है उतना ही जीवन के लिए असहनीय होता जाता है| जिसे सहने का जीवन को अभ्यास ही नहीं है |इसीलिए रोग महारोग आदि पैदा होने लगते हैं | ऐसे समय मनुष्यों से लेकर पशु पक्षियों समेत समस्त जीवधारियों में बेचैनी घबड़ाहट आदि बढ़ने लगती है |
ऐसी बेचैनी घबड़ाहट आदि बढ़ने के लिए वो अपने खान पान रहन सहन आहार बिहार आदि को जिम्मेदार मान लेते हैं| कुछ लोग अपने सुख साधनों का सहारा लेकर मन की ऐसी बेचैनी घटाने का प्रयत्न करते हैं |कुछ लोग इसके लिए मनोरंजक साधनों का सहारा लेते हैं | इसीलिए हास्यकविसम्मेलनों ने कोरोना महामारी आने से पहले काफी जोर पकड़ा था | ऐसी बातों से मनुष्यों का ध्यान दूसरी ओर भटक जाता है !जिससे उन्हें प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव नहीं हो पाता है | इसी बेचैनी को न सह पाने के कारण अपराध उन्माद हिंसात्मकप्रवृत्ति आंदोलन भावना आदि दिनों दिन बढ़ते जा रहे होते हैं |
इसलिए जलवायु परिवर्तन का मतलब केवल उतना ही नहीं होता है,प्रत्युत जलवायु परिवर्तन का मतलब प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के पैदा होने का पूर्व संकेत होता है |
समय के अनुसार चलती हैं हवाएँ और बनता है वातावरण !
इसके अतिरिक्त प्राकृतिक वातावरण से दूर महानगरों के वातानुकूलित भवनों में बैठकर ऐसे प्राकृतिक विषयों पर कोई अनुसंधान किया जाना कैसे संभव है | किसी नदी तालाब आदि में उतरे बिना जैसे तैरना नहीं सीखा जा सकता है ,वैसे ही प्रकृति के बीच रहकर प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव किए बिना भूकंप आँधी तूफानों वर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं को समझना एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना असंभव है |
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इसे आधुनिक विज्ञान के पहले लगाना होगा
जलवायु परिवर्तन और उसका समाधान !
वर्तमान समय में जितनी भी बड़ी घटनाएँ अचानक घटित होती हैं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाता है | कई बार किसी घटना के विषय में लगाया हुआ पूर्वानुमान गलत निकल जाता है | ऐसा होने का कारण पूर्वानुमान लगाने वाले विज्ञान एवं अनुसंधानों की कमजोरी है,जबकि इसका कारण जलवायु परिवर्तन को बता दिया जाता है |जलवायु परिवर्तन के कारण यदि पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सकते हैं या लगाए हुए पूर्वानुमान गलत निकल सकते हैं तो तब तक ऐसे प्रयास ही क्यों करने जब तक इसके लिए विज्ञान एवं जिम्मेदार अनुसंधानों की व्यवस्था नहीं हो जाती है | प्राकृतिक विषयों पूर्वानुमान लगाने के लिए विश्वसनीय वैज्ञानिक विकल्प खोजे जाने की आवश्यकता है |
किसी मनोरोगी को चिकित्सक ने नींद की यदि एक गोली खाने की सलाह दी है किंतु रोगी यदि छै गोलियाँ खा लेता है तो उसके दुष्प्रभाव भी होंने लगते हैं |जिनका समाधान चिकित्सकों को तुरंत खोजना पड़ता है | केवल यह कह देने मात्र से बात नहीं बन जाती है कि उसने नींद की छै गोलियाँ खा ली थीं इसलिए नींद आ रही है |
विशेष बात यह भी है कि यदि ऋतुप्रभाव में इतना बड़ा बदलाव हो ही रहा है कि जलवायुपरिवर्तन जैसी घटना घटित होते देखी जा रही है तो केवल यह कह देना ही पर्याप्त नहीं है कि जलवायुपरिवर्तन हो रहा है | पहले की अपेक्षा तापमान यदि अचानक बढ़ने या घटने लगे तो ऐसा होने का कारण भले जलवायुपरिवर्तन ही क्यों न हो किंतु इसके कुछ परिणाम भी तो होंगे जिनका अध्ययन किया जाना आवश्यक है |जलवायुपरिवर्तन क्यों हो रहा है | इसके दुष्प्रभाव क्या होंगे !प्राकृतिक घटनाओं एवं मनुष्यों के स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा | इसपर भी अनुसंधान होना चाहिए | जिससे यह पता लगाया जा सके कि महामारी जैसी घटनाओं के पैदा होने का कारण कहीं जलवायुपरिवर्तन का होना ही तो नहीं है | इसके भविष्य में पड़ने वाले अच्छे बुरे प्रभावों का भी सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना पड़ेगा |
कई बार सुनने को मिलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद सूखा पड़ेगा, आँधी तूफ़ान भूकंप महामारी आदि घटनाएँ बार बार घटित होंगी |तापमान बढ़ जाएगा ,ग्लेशियर पिघल जाएँगे तो ऐसी भविष्य संबंधी बातें तब विश्वास करने योग्य होंगी जब पूर्वानुमान विज्ञान के द्वारा मानसून आने जाने की सही तारीखों का पता लगाया जाना संभव होगा | मौसमसंबंधी दीर्घावधि मध्यावधि पूर्वानुमान पता लगाए जा सकेंगे |
जिस अनुसंधान प्रक्रिया के द्वारा विगत बीस वर्षों में किसी बड़ी प्राकृतिक घटना या महामारी का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | उस प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा यह कैसे कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद कैसा कैसा प्राकृतिक वातावरण बनेगा |
प्रकृति में यदि इतने बड़े बड़े बदलाव होंगे तो उस परिस्थिति में मनुष्यादि समस्त प्राणियों का जीवन कितना सुरक्षित होगा | उस प्रकार का वातावरण क्या जीवों के सहने लायक होगा | उस प्रकार के दुष्प्रभाव क्या सौ दो सौ वर्ष बाद एक साथ ही दिखाई देंगे या धीरे धीरे क्रमशः होते देखे जाएँगे |
उसप्रकार का डरावना वातावरण बनने के दुष्प्रभाव क्या मनुष्य जीवन पर भी पडेंगे | उससे रोग महारोग जैसी घटनाएँ भी क्या घटित होंगी | उनसे सुरक्षा के लिए अभी से क्या सतर्कता बरती जानी चाहिए | यह भी पता लगाया जाना चाहिए |
कुल मिलाकर हमें यदि जलवायु परिवर्तन होने की जानकारी अभी से पता लग गई है ,जिसके परिणाम स्वरूप भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पता लगा ही लिया गया है तो उससे बचाव के लिए भी अभी से आवश्यक प्रयत्न शुरू कर दिए जाने चाहिए तभी इस जानकारी का सदुपयोग हो पाएगा |
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