Samay Time 2-3-25

 

दो शब्द     
    
      समय दो प्रकार का होता है|एक प्राकृतिक समय और दूसरा व्यक्तिगत समय ! प्राकृतिक समय  सृष्टि के आरंभकाल से प्रारंभ होता है और सृष्टि पर्यंत रहता है,जबकि व्यक्तिगत समय सबका अपना अपना होता है | ये प्रत्येक व्यक्ति के जन्मसमय  से प्रारंभ होता है और मृत्यु पर्यंत रहता है |जिसप्रकार से सूर्य के अस्त होने का समय सूर्य के उदय होने के समय के आधार पर ही निश्चित हो जाता है | ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु का समय उसके जन्म के समय के आधार पर ही निश्चित हो जाता है | प्रत्येक संबंध के टूटने का समय उसके जुड़ने के समय के अनुसार ही निश्चित होता है | प्रत्येक रोग के समाप्त होने का समय उसके शुरू होने के समय के आधार पर ही निश्चित होता है | प्रत्येक पद प्रतिष्ठा छूटने का समय उसके मिलने के समय के अनुशार ही निश्चित होता है | प्राचीनकाल से  चले आ रहे मुहूर्त विज्ञान अर्थात शुभ समय को देखने का अभिप्राय यही था कि जिस कार्य को शुभ समय में  सुख शांति पूर्वक शुरू किया जाएगा |उसकी समाप्ति भी सुख शांति प्रदान करने वाली ही होगी | 
     कुल मिलाकर समय बहुत शक्तिशाली है |संपूर्ण संसार में हो रहे छोटे बड़े सभी परिवर्तनों का कारण समय ही है | समय जब जैसा बदलता है तब तैसे प्राकृतिक परिवर्तन होते हैं | संसार में अच्छी बुरी जितनी भी घटनाएँ घटित होती हैं |उनका कारण अच्छा बुरा समय ही है | समय जब अच्छा चल रहा होता है, तब अच्छी अच्छी घटनाएँ घटित हो रही होती हैं | समय बुरा होता है तब बुरी घटनाएँ घटित होने लगती हैं |
    समय में होने वाले परिवर्तन भी दो प्रकार के होते हैं | एक निश्चित और दूसरा अनिश्चित होता है | बसंत ग्रीष्म वर्षा आदि ऋतुओं के रूप में एवं सूर्योदय सूर्यास्त आदि  रूप में  होने वाले बदलाव निश्चित परिवर्तन की श्रेणी में आते हैं |ये हमेंशा ही घटित होते हैं | भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात माहामारी आदि घटनाएँ अनिश्चित परिवर्तन हैं|ये कभी घटित होती हैं, तो कभी नहीं भी होती हैं | 
   इसीप्रकार से जीवन में जन्म मृत्यु जैसी घटनाएँ हों या बचपन जवानी बुढ़ापा आदि अवस्थाएँ ये जीवन में निश्चित परिवर्तन होते हैं | रोग चोट चभेट सुख  दुःख हानि लाभ आदि अनिश्चित परिवर्तन हैं जो किसी जीवन में होते हैं किसी में नहीं भी होते हैं | 
      प्रकृति और जीवन में जो निश्चित परिवर्तन होते हैं उन्हें तो स्वीकार करना ही पड़ता है किंतु अनिश्चित परिवर्तनों में भी जो कुछ सुख शांति प्रदान करने वाली घटनाएँ हैं, वे तो ठीक हैं किंतु जो दुःख रोग आदि घटनाएँ  हैं उनसे प्रकृति एवं जीवन को सुरक्षित कैसे बचाया जाए | ऐसी घटनाओं से बचाव के लिए जो सुरक्षा संबंधी तैयारियाँ करनी होती हैं उनके लिए समय चाहिए | इसलिए समय संबंधी अनुसंधानों के द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान  लगा लेना चाहिए | उन्ही के आधार पर ऐसी घटनाओं से बचाव के लिए सुरक्षा के प्रबंध किए जाने चाहिए |  
                                                                        भूमिका 

     समय हवा की तरह होता है|जिस प्रकार से हवा दिखाई नहीं पड़ती है | उसीप्रकार से समय भी दिखाई नहीं पड़ता है |हवा किस दिशा की ओर कितनी गति से चल रही है|यह पता लगाने के लिए उसमें उड़ रहे धूल तिनकों आदि को देखकर उनके विषय में अनुमान लगना पड़ता है |ऐसे ही समय अच्छा या बुरा चल रहा है यह पता लगाने के लिए उस समय घटित हो रही अच्छी बुरी घटनाओं के आधार पर अच्छे बुरे समय के का अनुमान लगाना पड़ता है | 
     जिसप्रकार से हवाएँ स्वयं में न ठंडी होती हैं और न ही गर्म | जब जैसा तापमान रहता है | तब तैसी हवाएँ चलती हैं | शिशिरऋतु  में सर्दी होने के कारण हवाएँ ठंडी चलती हैं और ग्रीष्मऋतु में  गर्मी होने के कारण हवाएँ गरम चलने लगती हैं |
    इसीप्रकार से समय स्वयं में अच्छा या बुरा नहीं होता है| मनुष्यों में जब अच्छे आचरण अपनाने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगती है,तब समय का प्रभाव अच्छा पड़ता है | उससे प्रकृति और जीवन में अच्छी घटनाएँ घटित होने लगती हैं | बुरे आचरण अपनाने वाले लोगों की संख्या जब अधिक बढ़ जाती है तब समय का बुरा प्रभाव पड़ने लगता है | जिससे अप्रिय घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | 
     प्रकृति की तरह ही जीवन में भी किसी मनुष्य का अपना व्यक्तिगत समय जब अच्छा चल रहा होता है|जब अच्छे आचार बिचार व्यवहार आदि का पालन करता है और उसी मनुष्य का जब  बुरा समय चलने  लगता है तब वह अपने आचार बिचार ब्यवहार आदि को विकृत कर लेता है|अच्छे समय के प्रभाव से मनुष्य की कामनाएँ तो पूर्ण होती ही हैं| इसके साथ ही साथ अनेकों प्रकार के संकटों से उसकी रक्षा होते देखी जाती है,जबकि बुरे समय के प्रभाव से  न तो इच्छाओं की पूर्ति होती है और न ही सुख शांति सफलता आदि की प्राप्ति होती है | 
      जिस प्रकार से हवा में उड़ते हुए तिनकों धूल आदि को देखकर हवा के चलने एवं तेज या धीमी गति का अनुभव किया जाता है| उसीप्रकार से संसार में घटित हो रही अच्छी बुरी घटनाओं को देखकर समयसाधक लोग समय के बीतने के विषय में अनुभव  किया करते हैं | 
     जिसप्रकार से हवाओं का वेग अधिक होने के कारण  जब कुछ ऐसी बड़ी चीजें उड़ने लगें जैसा हमेंशा न देखा जाता रहा है तो उसे देखकर इस बात का अनुभव हो जाता है कि आँधी तूफ़ान जैसी कुछ बड़ी घटनाएँ घटित हो सकती हैं| इसीप्रकार से जीवन में जब  कभी कुछ ऐसी अप्रिय घटनाएँ निरंतर घटित होते दिखाई देने लगें ,जैसा हमेंशा न दिखाई पड़ता रहा हो तो जीवन में कुछ बड़ी उथल पुथल होने जा रही है | ऐसी कल्पना करनी चाहिए | कुल मिलाकर समय के प्रभाव से घटनाएँ  घटित होती हैं |
      वैवाहिक जीवन के लिए पत्नी  और पति अच्छे हों उसके साथ साथ उनका समय भी अच्छा हो तभी उनका सुख एक दूसरे को मिल पाता है | पत्नी  पति अच्छे हों लेकिन उनका समय अच्छा न चल रहा हो तो उनका सुख एक दूसरे को नहीं मिल पाता है |आपसी विवाद ,बीमारियाँ या कुछ और ऐसी समस्याएँ लगी रहती हैं | जिससे उनका सुख एक दूसरे को मिलने में बाधा बनी रहती है |  
     कई बार किसी गरीब की गरीबत दूर करने के लिए कुछ लोग समर्पित भावना से मदद करते हैं,किंतु उन का अपना समय अच्छा न होने के कारण वे उस मदद को पाकर भी उससे लाभ नहीं उठा पाते हैं |जिस प्रकार के कार्यों से उनकी उन्नति हो सकती है |बुरे समय के प्रभाव से उस प्रकार के कार्य करने में उनकी रुचि ही नहीं होती है |  यही कारण है कि कुछ देशों की सरकारें गरीबी हटाओं का नारा दशकों से देती चली आ रही हैं | इसके लिए वे प्रयत्न भी करती हैं | गरीब लोग भी गरीबी से मुक्ति पाना चाहते हैं, किंतु समय का सहयोग न मिलने से ऐसे प्रयास सफल नहीं होते हैं | 
    कुछ साधन संपन्न माता पिता अपनी संतानों  का बड़ी बड़ी शिक्षण संस्थाओं में भारी भरकम धनराशि देकर पढ़ाते हैं | महँगी महँगी कोचिंग करवाते हैं किंतु समय का साथ न मिलने के कारण विद्यार्थी सफल नहीं होते हैं | कई बार उनका समय इतना अधिक प्रतिकूल होता है कि उन्हें जीवन जीना कठिन हो रहा होता है | ऐसे समय उन्हें मानसिक सहयोग की आवश्यकता होती है | ऐसे समय शिक्षा के लिए उन पर दिया जा रहा दबाव कई बार उनके जीवन के लिए घातक हो जाता है | 

     विनम्र निवेदन !
    प्राकृतिक आपदाएँ तथा महामारियाँ बड़े वेग से अचानक घटित होती हैं| इसलिए ऐसी घटनाओं में सबसे अधिक जनधन की हानि होती है |ऐसी घटनाओं को रोका तो नहीं जा सकता है किंतु इनसे समाज को सुरक्षित बचाने के लिए प्रयत्न अवश्य किए जा सकते हैं | विशेष बात ये है कि ऐसी घटनाओं से तुरंत की तैयारियों के बलपर समाज को सुरक्षित बचाया जाना संभव नहीं होता है | महामारी अचानक आती है | उससे तेजी से लोग संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं |ऐसी स्थिति में कौन सा उपाय करके लोगों को संक्रमित होने या मृत्यु से बचाया जा सकता है | 
   ऐसे ही भूकंप आदि घटनाएँ अचानक घटित होती हैं | उस समय जो भवन गिरते हैं उनमें बहुत लोग दब  कर घायल हो जाते हैं | कुछ लोग मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं |भूकंप विज्ञान के नाम पर ऐसा क्या खोजा जा सका है जिसकी मदद से भूकंप से लोगों की सुरक्षा की जा सकती है | 
    ऐसी घटनाओं से समाज को सुरक्षित बचाया जाना तभी संभव है ,जब बचाव के लिए प्रभावी तैयारियाँ  पहले से करके रखी जाएँ | ऐसा करने के लिए इन घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान पहले से पता होने आवश्यक हैं  कि  ऐसी घटनाएँ कब घटित होने वाली हैं | इसके लिए किसी ऐसे विज्ञान एवं  वैज्ञानिक प्रक्रिया की आवश्यकता है | जिसके द्वारा भविष्य में झाँकना संभव हो | मेरी जानकारी के अनुसार ज्योतिष के अतिरिक्त ऐसा कोई दूसरा विज्ञान नहीं है | जिसके द्वारा भविष्य के विषय में कोई पूर्वानुमान लगाया जा सकता हो | 
      विश्व के अनेकों देशों में मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए सरकारों ने अलग से मंत्रालय बनाए हुए हैं, किंतु  केवल मंत्रालय बना लेने क्या लाभ हुआ | जब दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान ही  नहीं है | विज्ञान के बिना ऐसे अनुसंधान कैसे किए जा सकते हैं और पूर्वानुमान कैसे लगाए जा सकते हैं | पूर्वानुमान लगाने के लिए यदि कोई विज्ञान होता तो कोरोना महामारी के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाया जा सका होता|कोरोना महामारी की जितनी भी लहरें आईं उनके विषय में पूर्वानुमान तो बार बार लगाए जाते रहे किंतु सही नहीं निकलते रहे| ऐसे ही मौसमसंबंधी घटनाओं में से उपग्रहों रडारों से जो घटनाएँ दिखाई पड़ जाती हैं | उनकी गति और  दिशा के अनुसार ऐसी घटनाओं के विषय में जो अंदाजा लगाया जाता है | वो तभी तक सही निकलने की संभावना रहती है ,जब तक हवाओं की दिशा और गति एक जैसी  बनी रहती है| हवा के बदलते  ही अंदाजे गलत निकल जाते हैं | हवाओं का रुख एक जैसा कभी रहता नहीं है |वो सदैव बदलता   रहता है | इसीलिए पूर्वानुमानों का सही निकलना संभव नहीं हो पाता है | ऐसा सभी देशों  होगा किंतु भारत में ऐसी घटनाएँ अक्सर घटित होती हैं जिनके विषय में या तो पूर्वानुमान लगाना संभव  नहीं हो पाता है या फिर लगाए हुए  पूर्वानुमान सही  नहीं निकल पाते हैं |   
   16 जून 2013 को उत्तराखंड में बादल फटने से आई विनाशकारी बाढ़ ने कई शहरों और गाँवों को तबाह कर दिया था | इस बाढ़ में हज़ारों की संख्या में लोग बह गए |पशु बह गए,गाँव बह गए | इतनी बड़ी घटना घटित होने जा रही है | एक दिन पहले तक इसके विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था | 
    22 अप्रैल 2015 को नेपाल और भारत में भीषण हिंसक तूफ़ान आया था ! इसमें सैकड़ों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए थे | ऐसे ही नेपाल में 25  अप्रैल 2015 को भीषण भूकंप घटित हुआ था | उसमें भी हजारों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए थे | निकट भविष्य में इतनी बड़ी हिंसक घटनाएँ घटित होने वाली हैं | इसके विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | 
      14 अक्टूबर 2014 को हुदहुद चक्रवात के कारण ,28 जून 2015 को वाराणसी में भारी बारिश के कारण तथा 16 जुलाई 2015 को भी वाराणसी में भीषण बर्षात के कारण प्रधानमंत्री जी की सभाएँ टालनी पड़ीं |ऐसी घटनाओं के   विषय  में कोई  पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था |  
     2 मई 2018 की रात्रि को उत्तर प्रदेश बिहार आदि में भीषण तूफ़ान आया | जिसमें सैकड़ों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए | इतनी बड़ी हिंसक घटना आज की रात्रि में  घटित  होने वाली है | इसके   विषय  में कोई  पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | 
    ऐसी अनेकों प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती रहती हैं | उनमें जनधन हानि भी होती है | उनके विषय में या तो पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सका होता है या फिर जो लगाया जाता है वो गलत निकल जाता है | उसके गलत निकलने का कारण पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी विज्ञान का न होना होता है किंतु  पूर्वानुमान गलत निकलने या पूर्वानुमान न लगा पाने के  लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता है | 
     कोरोना महामारी को ही लें तो भारत में 2019 की दीपावली बड़ी धूम धाम से मनाई गई थी | किसी को इस बात की आशंका ही नहीं थी कि अगले कुछ महीनों में इतनी बड़ी महामारी से हाहाकार मच जाएगा |उससे इतनी अधिक  संख्या में लोग संक्रमित हो जाएँगे या इतने लोग मृत्यु को प्राप्त जाएँगे | पूर्वानुमानविज्ञान के अभाव में इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया  जा सका था | 
     महामारीविशेषज्ञों ने महामारी की लहरों के विषय में बार बार पूर्वानुमान लगाए जाते रहे | ये गलत तो विज्ञान के अभाव में निकलते रहे किंतु इसके लिए महामारी के स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता रहा है | 
    कुल मिलाकर भविष्य में कब किसप्रकार की कितनी भयंकर घटना से पीड़ित होना पड़ सकता है| इसे पता लगाने के लिए अभी तक विश्व के पास कोई वैज्ञानिक विकल्प नहीं है | 
     विज्ञान के द्वारा मनुष्य जीवन की कठिनाइयों को कम करके सुख सुविधा संपन्न बनाने के लिए इतने सारे अनुसंधान किए गए हैं,किंतु  प्राकृतिक आपदाओं एवं  महामारियों से मनुष्य जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए ऐसा क्या किया जा सका है | जिससे महामारी पीड़ितों को कुछ तो मदद पहुँचाई जा सकी हो | यदि जीवन ही नहीं रहेगा  तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा | जो इतने उन्नत विज्ञान के द्वारा  मनुष्यों के लिए खोजी गई हैं | 
    इसीलिए हमारे अनुसंधानों का पहला उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं  महामारियों तथा सभीप्रकार के संकटों से से मनुष्य जीवन को सुरक्षित बचाना है| वैदिकविज्ञान के आधार पर मैं पिछले 35 वर्षों से जो अनुसंधान करता आ रहा हूँ | उससे प्राप्त अनुभवों के आधार पर मेरा विश्वास है कि अनुसंधान पूर्वक प्रकृति के स्वभाव को समझा जा सकता है तथा मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |

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                                                      समय का प्रभाव और घटनाएँ 
      
      कुछ लोग अपनी शिक्षा के लिए या तरक्की के लिए या कोई पद प्रतिष्ठा पाने के लिए प्रयत्न करते करते जब थक जाते हैं और सफल नहीं होते हैं,तब वो कहते सुने जाते हैं कि समय ने साथ नहीं दिया या समय ही साथ नहीं दे रहा है | किसी रोगी की चिकित्सा या ऑपरेशन आदि करने के बाद भी जब सफलता नहीं मिलती है और रोगी की मृत्यु हो जाती है,तब चिकित्सक यही कहते सुने जाते हैं कि समय  ने साथ नहीं दिया|कभी कभी जब प्राकृतिक आपदाएँ बार  घटित हो होती हैं तो लोग यही कहते सुने जाते हैं कि बहुत बुरा समय चल रहा है|कई बार पति पत्नी दोनों स्वस्थ होते हैं फिर भी संतान नहीं हो रही होती है | सभी प्रयत्न निष्फल हो रहे होते हैं ,तब  यही कहा जाता है कि संतान होने लायक अभी समय नहीं आया है |
    कई बार कुछ लड़के लड़कियाँ एक दूसरे के जिन गुणों योग्यता पद -प्रतिष्ठा सौंदर्य आदि अच्छाइयाँ देखकर उनसे प्रभावित  होते  हैं,एक दूसरे से जुड़ते हैं ,कई बार विवाह कर लेते हैं | कुछ वर्षों तक साथ रहते हैं | इसके बाद वे एक दूसरे की जिन अच्छाइयों के कारण  एक दूसरे से जुड़े थे | उन अच्छाइयों के रहते  हुए भी एक दूसरे से अरुचि करने लगते हैं और तलाक ले लेते हैं | इसका कारण उन दोनों का अपना अपना समय ही होता है | जब तक मिलने का समय रहता है तब तक एक दूसरे से मिलकर चलते हैं और जब अलग होने का समय आता है तब एक दूसरे से अलग हो जाते हैं |  
                                                 समय की शक्ति और विज्ञान
     हवा जिस दिशा की ओर चल रही हो हवा में उड़ने वाली किसी हल्की वस्तु को उसी दिशा की ओर फेंका जाए तो वो अधिक दूर जाकर गिरती है |उसी प्रकार से जब जैसा समय चल रहा हो उस समय उसीप्रकार का काम किया जाए तो उस कार्य में आशा से अधिक सफलता मिलती है | 
      कुलमिलाकर समय ही सबकुछ है | प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली अधिकाँश घटनाओं के घटित होने का कारण समय है | जिसप्रकार से हवा का प्रवाह जिस दिशा की ओर होता है | किसी उड़ने वाली वस्तु को यदि उसी दिशा में फेंका जाए तो वो वह अनुमान  से अधिक दूर तक जाकर  गिरेगी | यदि हवा के बिपरीत दिशा में फेंका जाए तो पास में ही गिर जाएगी| उस उड़नशील वस्तु को यदि हवा की बिपरीत दिशा में फेंका जाए और हवा का वेग अधिक हो तो फेंकी गई वस्तु फेंकने से बिपरीत दिशा में ही उड़ जाएगी |  
   ऐसे ही समय के स्वभाव से बिपरीत प्रकृति का कोई कार्य किया जाए तो उसके सफल होने की संभावना बहुत कम होती है | जिसप्रकार से उड़ने वाली वस्तु को यदि हवा की बिपरीत दिशा में फ़ेंक दिया जाए और  हवा का वेग यदि बहुत अधिक हुआ तो वह फेंकी हुई वस्तु उस दिशा की ओर न जाकर उससे बिपरीत दिशा में चली जाती है | जिधर की ओर हवा चल रही होती है |  
     इसीप्रकार से मनुष्यों के द्वारा किए हुए कार्य भी यदि अच्छे  समय में प्रारंभ किए जाते हैं, तो जितनी आशा से किए जाते हैं उससे अधिक सफलता मिलती है !यदि समय मध्यम हुआ तो कुछ कम सफलता मिलती है, और यदि समय बहुत अधिक बिपरीत हुआ तो अपने प्रयासों से सफलता तो मिलती ही नहीं है ,तथा कई बार तो आशा के बिपरीत परिणाम आते देखे जाते हैं | इसलिए  किसी कार्य को करने के लिए प्रयत्न अच्छे हों और समय भी अच्छा हो तभी सफलता मिलती है |
      ऐसी स्थिति में ही किसी  रोगी को दी गई अच्छी से अच्छी औषधियों के भी दुष्प्रभाव होते देखे जाते हैं | रोगियों को स्वस्थ करने के लिए किए गए ऑपरेशन के बिपरीत परिणाम होते देखे जाते हैं | इसका कारण दवा तो अच्छी है किंतु समय अच्छा नहीं रहा | इसलिए औषधि अच्छी और समय भी अच्छा हो तभी रोगी स्वस्थ होता है |किसी के स्वस्थ होने में समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है|सुदूर जंगलों में रहने वाले पशु पक्षी मनुष्य आदि आपस में लड़भिड़कर या कोई चोट चभेट लगने से कई बार घायल हो जाते हैं या किसी गंभीर रोग से पीड़ित हो जाते हैं |चिकित्सा  का लाभ न मिलने पर भी केवल समय के सहयोग से ही उन्हें स्वस्थ होते देखा जाता है | दूसरी ओर  महानगरों में रहने वाले अत्यंत साधन संपन्न लोगों के शरीरों में ऐसी ही स्वास्थ्यसंबंधी समस्याएँ पैदा होने पर वे अत्यंत उन्नत चिकित्सालयों में  रहकर उच्च कोटि की चिकित्सा को लाभ ले रहे होते हैं | इसके बाद भी जिन लोगों का समय बिपरीत होता है | उन पर चिकित्सा का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है|  जिससे वे स्वस्थ नहीं हो पाते हैं | 
     कोरोना महामारी के समय  बहुत जगह सामूहिक रूप से बहुत लोग एक साथ रहते सोते जागते खाते पीते थे|उनमें से कुछ लोग महामारी से संक्रमित हो जाते थे| उन संक्रमितों के साथ रहने सोने  जागने खाने  पीने वाले बहुत लोग इसलिए स्वस्थ बने रहे क्योंकि उनका समय अच्छा चल रहा होगा | कोरोना काल में  दिल्ली मुंबई सूरत से बड़ी संख्या में श्रमिकों का पलायन हुआ | उनके द्वारा कोविड  नियमों का पालन बिल्कुल नहीं किया जा सका | जहाँ जिसने जिसप्रकार के हाथों से जो कुछ दिया वही उन्होंने खा लिया ! उनके विषय में बार बार कहा जाता रहा कि ये लोग जहाँ जाएँगे वहाँ बहुत लोगों को संक्रमित करेंगे | लेकिन ऐसा कुछ तो नहीं हुआ | 
    ऐसे ही कोरोना काल में बिहार बंगाल जैसे प्रदेशों में बड़ी बड़ी चुनावी रैलियाँ  होती रहीं |  जिनमें भारी भीड़ें उमड़ती रहीं | उनके विषय में भी ऐसा ही अनुमान लगाया जाता रहा कि इन प्रदेशों में बहुत बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होंगे किंतु ऐसा कुछ होते देखा नहीं गया| कोरोना काल में ही दिल्ली में बड़ी संख्या में किसान आंदोलन पर बैठे रहे| जिसके विषय में अनुमान लगाए गए उनमें बड़ी संख्या में लोग सम्मिलित हुए जिनके द्वारा किसी भी रूप में कोविड  नियमों का पालन नहीं किया जाता रहा | उसके बिषय में कहा जाता था कि बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होंगे ,किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ|ऐसे ही हरिद्वार में कुंभ मेले में उमड़ी भीड़ देखकर कहा गया कि बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होंगे किंतु  ऐसा कुछ नहीं हुआ |
    कुछसाधन संपन्न लोग कोरोना काल प्रारंभ होते ही संपूर्ण रूप से कोविड नियमों का पालन करने लगे थे | ऐसे एकांतव्रती लोग बिना किसी के संपर्क में आए हुए भी संक्रमित होते देखे जाते  रहे थे |
      ऐसे ही वायप्रदूषण बढ़ने के विषय में कहा गया कि वायु प्रदूषण बढ़ने से कोरोनाजनित  संक्रमण  बढ़ेगा ,किंतु भारत में सबसे भयंकर दूसरी लहर जब आई थी|उस समय वातावरण पूरी तरह संक्रमण मुक्त था| इसीलिए अमृतशर और बिहार  से  हिमालय दिखाई पड़ने लगा था| इसके बाद भी कोरोना संक्रमण दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था | ऐसे ही सन 2020 के अक्टूबर नवंबर महीनों में  जब वायुप्रदूषण  बहुत अधिक बढ़ा हुआ था तब कोरोना संक्रमण दिनोंदिन समाप्त होता जा रहा था | 
    इसीप्रकार से कहा गया कि  तापमान कम होने से कोरोना संक्रमण बढ़ेगा और तापमान अधिक होने से संक्रमण कम होगा किंतु ऐसा नहीं हुआ | कम तापमान के समय (सर्दी ) में केवल तीसरी लहर ही आई थी, बाक़ी तीनों लहरें तब आईं जब तापमान बढ़ा हुआ था |    
     ऐसे ही उपायों के नाम पर पहले कहा गया कि प्लाज्मा थैरेपी से संक्रमितों को स्वस्थ करने में मदद मिलेगी |इसके बाद संक्रमितों पर प्रयोग करके देखा गया कि प्लाज्मा थैरेपी से रोगियों में तेजी से सुधार हुआ है कुछ समय बाद में प्लाज्मा थैरेपी को चिकित्सा प्रक्रिया से अलग कर दिया गया | 
    ऐसे ही पहले कहा गया कि रेमडीसीवीर इंजेक्शन से संक्रमितों को स्वस्थ करने में मदद मिलती है |बड़ी संख्या में लोग ऐसे इंजेक्शन पाने के लिए प्रयत्न करने लगे | कुछ समय बाद रेमडीसीवीर इंजेक्शन के उस प्रकार के प्रभाव से किनारा  कर लिया गया | 
समय और गणितविज्ञान !
    समय का संचार तीन प्रकार का होता है |एक तो समय के अनुसार प्रकृति में कुछ निश्चित बदलाव होते हैं| दूसरा समय के अनुसार जीवन में कुछ निश्चित बदलाव होते हैं |तीसरा समय संचार के अनुसार प्रकृति और जीवन दोनों में बदलाव होते हैं |   
    प्रकृति में बरष ऋतुएँ महीना दिन रात प्रातः सायं आदि हैं| सृष्टि में ऐसा सबकुछ तो हमेंशा से होते आया है और हमेंशा ही होता रहेगा |  प्रकृति में सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ  आती जाती हैं |ऋतुओं के अनुसार ही संपूर्ण प्रकृति में ऐसे परिवर्तन होते रहते हैं |जो हमेंशा से होते देखे जाते रहे हैं | सर्दी में सर्दी का आना कोहरा पाला आदि आदि पढ़ना तापमान कम  हो जाना आदि इसी के अनुसार बृक्षों बनस्पतियों अनाज के पौधों शाक सब्जियों आदि में बदलाव होते रहते हैं |ऐसा सभी ऋतुओं में होता है | ऋतुओं के अनुसार प्राकृतिक वातावरण में बदलाव होते हैं| ऋतुओं के प्रभाव से बृक्षों बनस्पतियों अनाज के पौधों शाक सब्जियों आदि में भी ऋतुओं के अनुसार बदलाव होते देखे जाते हैं | 
    इसीप्रकार से जीवन में बचपन जवानी बुढ़ापा  जन्म मृत्यु आदि घटनाएँ प्रत्येक जीवन में समय के साथ साथ घटित होती ही हैं | 
    विशेष बात ये है कि प्रकृति और जीवन में अचानक कोई घटना नहीं घटित होती है| सभी प्राकृतिक घटनाएँ पूर्व निर्धारित होती हैं,किंतु कुछ प्राकृतिक घटनाएँ ऐसी भी होती हैं | उनका समय बर्षों ऋतुओं महीनों दिनों आदि की तरह निश्चित नहीं होता है कि इतने इतने समय के अंतराल में इस प्रकार की घटनाएँ हमेंशा घटित होंगी ही |इसीलिए सूर्यचंद्र ग्रहण भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान च्रक्रवात बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाएँ अलग अलग समय पर अलग अलग स्थानों पर अलग अलग आकार प्रकार की घटित होती हैं| ऐसी घटनाओं के घटित होने का समय  भी निश्चित होता है |ये घटनाएँ अपने अपने निश्चित समय पर घटित होते देखी जाती हैं| किस वर्ष के किस महीने के किस दिन कौन सी घटना घटित होनी है | ये अनुसंधान पूर्वक खोजना होता है |
    ऋतुओं के आते ही ऋतुप्रभाव दिखाई पड़ने लग जाता है|शिशिर ऋतु आते ही तापमान काफी गिर जाता है आकाश में कोहरा पाला छा जाता है | बसंतऋतु आने पर बृक्षों में पतझड़ होकर नई नई कोपलें निकलने लगती हैं| ग्रीष्मऋतु में तापमान बढ़ जाता है|नदियों तालाबों का पानी सूखने लग जाता है| उस प्रकार की गरम हवाएँ चलने लगती हैं |आकाश धूल धूसरित हो जाता है | वर्षा ऋतु आते ही उसी आकाश में बादल छा जाते हैं | चारों ओर काली काली घटाएँ घिर आती हैं | वर्षा होने लगती है | बाढ़ जैसे दृश्य दिखाई पड़ते हैं | 
    इसमें विशेष बात यह है कि शिशिर ऋतु आने पर जिस आकाश में कोहरा पाला छा जाता है|तापमान कम हो जाता है |ग्रीष्मऋतु आने पर तापमान बढ़ जाता है और आकाश धूल धूसरित हो जाता है |वर्षा ऋतु  आने पर उसी आकाश में बादल छा जाते हैं |धरती और आकाश हमेंशा एक जैसे रहते हैं फिर भी आकाश या प्राकृतिक वातावरण  में होने वाले ऐसे बदलावों  का कारण समय नहीं तो दूसरा और क्या हो सकता है अर्थात समय ही है |  
    कुलमिलाकर प्राकृतिक वातावरण समय के प्रभाव से प्रभावित होता है|समय एक जैसा कभी नहीं रहता है | उसमें हमेंशा अच्छे या बुरे बदलाव होते रहते हैं | समय में अच्छे बदलाव होते हैं तो प्रकृति और जीवन में अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं और यदि बुरे बदलाव होते हैं तो प्रकृति और जीवन में बुरी घटनाऍं घटित होने लगती हैं |प्रकृति में किस वर्ष के किस महीने के किन दिनों में किस प्रकार की घटना घटित होने की संभावना है|इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए पहले उस समय  का पूर्वानुमान लगाना होगा कि उस कालखंड में समय कैसा चल रहा होगा उसी के अनुसार घटनाएँ घटित होंगी | 
     समय कैसा चल रहा होगा |यह समझने के लिए भारत के प्राचीन गणितविज्ञान को समझना होगा | जिसके आधार पर सूर्य चंद्रग्रहणों के विषय में सही पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं |उसी गणित के आधार पर भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान च्रक्रवात बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं |
    जिस समय नीचे पृथ्वी में कोई हलचल नहीं होती, ऊपर आकाश भी बिल्कुल शांत होता है |उसी शांत वातावरण में अचानक भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान च्रक्रवात बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाएँ किसकी प्रेरणा से घटित होने लग जाती हैं | इतनी बड़ी बड़ी घटनाओं के घटित होने के लिए समय के अतिरिक्त इतनी भयंकर ऊर्जा और कहाँ से मिल सकती है !अर्थात समय ही सबसे अधिक शक्तिशाली है |समय सबकुछ बना बिगाड़ सकने में सक्षम है | इतने विशाल सूर्य चंद्र और पृथ्वी के पिंडों को एक सीध में खीच कर खड़ा करने वाला समय है|समय के आधार पर ही यह समझा जाता है कि कौन ग्रह कब कहाँ पहुँचेगा |
  कुलमिलाकर समय के संचार को समझने में एक मात्र गणित विज्ञान ही सक्षम है |सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले सही पूर्वानुमान लगाकर  गणितवैज्ञानिकों ने तो अपनी पूर्वानुमान लगाने की क्षमता को प्रमाणित करके यह सिद्ध कर दिया है कि गणित विज्ञान के द्वारा भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान च्रक्रवात बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा सकते हैं | किसी दूसरी विधा के वैज्ञानिकों के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अभीतक  ऐसा करने का साहस नहीं जुटाया जा सका है | इसलिए प्राकृतिक वातावरण को समझने के लिए गणित के अतिरिक्त कोई दूसरा ऐसा विज्ञान नहीं है |जिससे संबंधित वैज्ञानिकों के द्वारा प्रकृति को समझने की क्षमता को प्रमाण पूर्वक प्रस्तुत किया जा सका हो | 
                           
प्रकृति और जीवन पर  समय का प्रभाव !

     किसी गतिशील बिंदु के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल को ही समय  कहा जाता है। समय स्वाभाविक रूप से बदलता  रहता है| समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो परिवर्तन समय का स्वभाव है| समय के परिवर्तन का प्रभाव संपूर्ण ब्रह्मांड पर पड़ता है | समय ही सभी परिवर्तनों को करने वाली परिवर्तक ऊर्जा है| प्रकृति से लेकर जीवन तक जितनी भी घटनाएँ घटित होती हैं | उनका कारण समय संबंधी परिवर्तन ही हैं |समय जब जैसा बदलता है तब तैसी घटनाएँ घटित होती हैं |  समय हमेंशा बदलते रहता है |सृष्टि के कण कण में प्रतिपल परिवर्तन होते रहते हैं तथा प्रकृति से लेकर जीवन तक में घटनाएँ हमेंशा घटित होती रहती हैं |  
    जिसप्रकार से हवा उड़ती है इसलिए प्रत्येक उड़नशील वस्तु हवा के साथ उड़ती है| ऐसे ही नदी बहती है | इसलिए नदी में  तैरने वाली प्रत्येक वस्तु जलधारा के साथ बहती रहती है| इसी प्रकार से समय बदलता है| इसलिए संपूर्ण ब्रह्मांड तथा प्रकृति और जीवन से संबंधित प्रत्येक व्यक्ति वस्तु स्थान परिस्थिति घटना आदि समय के अनुसार बदलती देखी जाती है | 
     जिस प्रकार से नदी की धारा का प्रवाह कैसा है | नदी की धारा में बहते तिनकों पत्तों आदि को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है | ऐसे हवा में वेग  कितना है वो किस दिशा की ओर जा रही है | हवा में उड़ते तिनके धूल आदि देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है |ऐसे ही समय कैसा चल रहा है| यह उस समय घटित हो रही घटनाओं को  देखकर पता किया जा सकता है | किसी व्यक्ति का समय  कैसा चल रहा है | ये  उसके जीवन में  घटित  हो रही घटनाओं को देखकर पता किया जा सकता है |  
      जिसप्रकार से  हवा के साथ उड़ती कोई उड़नशील वस्तु कब किस दिशा में किस स्थान पर पहुँचेगी ! इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए उस वस्तु की जगह हवा की गति एवं दिशा के अनुसार अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना होगा | जिस  ओर जब हवा पहुँचेगी तभी वहाँ वह वस्तु पहुँचेगी | ऐसे ही नदी में तैर रही वस्तु कब कहाँ पहुँचेगी|यह देखने के लिए उस वस्तु को नहीं प्रत्युत नदी की धारा के बहाव की गति आदि  देखनी पड़ेगी, क्योंकि नदी का जल जब जहाँ पहुँचेगा वो वस्तु भी तभी वहाँ पहुँच पाएगी | 
      नदी की धारा की तरह ही समय की धारा होती है | जो हमेंशा बहती एवं बदलती रहती है | समय के परिवर्तन का प्रभाव सभी पर पड़ता है | इसलिए व्यक्ति वस्तु स्थान परिस्थिति आदि के स्वभाव एवं समय के अनुसार सभी में बदलाव होते देखे जाते हैं |जब जिस घटना आदि के विषय में पूर्वानुमान लगाना हो तब उसके स्वभाव एवं उस समय के स्वभाव के अनुसार उस घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 
     कुल मिलाकर परिवर्तनशील समय दिखाई भले न पड़ता हो किंतु प्रकृति और जीवन में होने वाले सभी परिवर्तनों एवं घटनाओं के घटित होने का कारण समय ही होता है| इसलिए उन परिवर्तनों एवं घटनाओं को  देखकर चल रहे  समय के  विषय में अनुमान लगाया जा सकता है |ऐसे ही संपूर्ण ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु में हो रहे बदलाव देखकर समय के बीतने का अनुमान लगता है | ऐसे परिवर्तन न हों तो समय बीत रहा है | ये पता ही नहीं लग पाएगा |
   जिस प्रकार से नदी में तैर रही प्रत्येक वस्तु एक जैसी गति में बहती है |इसी प्रकार से संपूर्ण ब्रह्मांड में समय के प्रभाव से बहुत सारी घटनाएँ एक समूह के साथ घटित होती हैं | उनमें कुछ आगे कुछ पीछे घटित हो रही होती हैं |
     जिस प्रकार से किसी नदी के किनारे आग जल रही हो अचानक नदी का पानी बढ़ कर उस जलती हुई आग को बहा ले जाए तो उसमें कुछ  राख होगी, कुछ कोयला होगा, कुछ आधी जली लकड़ियाँ  होगी ,कुछ बिना जला ईंधन होगा| आग जलाने  के लिए माचिस होगी, कुछ आग जलाने के लिए मिट्टी का तेल आदि हो सकता है | ये सभी चीजें एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग प्रकार की होते हुए भी उस एक घटना से संबंधित हैं | यदि पता करना हो कि ये पानी बहकर कहाँ पहुँचा होगा तो इनमें से कोई एक चीज भी कहीं बहती दिखाई पड़ जाए तो उसी के आधार पर ये पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि बाक़ी चीजें भी इसी के आगे पीछे आती होंगी | 
    इसी प्रकार से प्राकृतिक घटनाओं का भी समूह होता है| उस एक समूह में अलग अलग प्रकार की कई घटनाएँ  होती हैं |उनमें से एक भी घटना कहीं घटित होते यदि दिखाई दे तो ये अनुमान लगा लिया जाता है कि उस समूह की बाक़ी घटनाएँ भी इसी के आगे पीछे घटित होंगी | इसप्रकार से लक्षणों के आधार पर सभी घटनाओं के घटित होने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 
    इसी प्रकार से प्रत्येक घटना के घटित होने का समय निर्धारित होता है | जब जिस घटना के घटित होने का समय आ जाता है तब वो घटना घटित  हो जाती है |समय में जब  जिस प्रकार के बदलाव होते हैं उस समय प्रकृति और जीवन में  उस प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगती हैं| 
    विशेष बात ये है कि जिस प्रकार से नदियों में बहने वाली जलधारा की गति कहीं तेज कहीं धीमी होती है | वही जलधारा  नदियों के कुंडों में घूमते हुए जलती है| नदी की धारा में बह रही प्रत्येक वस्तु को भी जलधारा के अनुसार ही बहना पड़ता है | ऐसे ही हवा में उड़ने वाली प्रत्येक वस्तु को हवा के अनुसार ही धीरे तेज या धूमते हुए उड़ना पड़ता है | 
    कुलमिलाकर इस विराट ब्रह्मांड में सबकुछ समय के आधीन होकर समय की धारा में बहता जा रहा है | संसार की प्रत्येक वस्तु को समय के अनुसार ही परिवर्तित होना पड़ता है| जन्म मृत्यु रोग महारोग सुख दुख हानि लाभ संयोग वियोग आदि समय के साथ होते रहने वाले परिवर्तन ही तो हैं|समय के अनुसार प्रकृति और जीवन में बदलाव होते रहते हैं| समय जब जैसा चल रहा होता है तब तैसी घटनाएँ घटित होते देखी जा रही  होती हैं| भूकंप आँधी तूफान वर्षा बादल बाढ़ चक्रवात बज्रपात तथा महामारी जैसी घटनाएँ भी समय के प्रभाव से ही घटित होती हैं |
     कभी कभी महामारी जैसी घटनाओं के घटित होने के प्राकृतिक संकेत मिलने लगते हैं | ऐसे समय मनुष्यों को अपने अपने जीवन में घटित  हो रही घटनाओं का अनुभव करने अपने अपने समय का पता करना चाहिए |जिसके जीवन में बुरे समय का प्रवाह चल रहा हो |  उसे महामारी से संक्रमित होने की संभावना अधिक होती है |  ऐसा ही अन्य प्राकृतिक आपदाओं  के समय पता किया जाना चाहिए कि किसका समय कैसा चल रहा है | बुरे समय से पीड़ित व्यक्ति को ऐसे समय में अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है |
        समय के कारण होते हैं परिवर्तन 

     इतने विराट ब्रह्मांड में इतने बड़े स्तर पर परिवर्तन करने वाली इतनी शक्तिशाली परिवर्तक ऊर्जा कहाँ से आती है|जिसके प्रभाव से सूर्य चंद्र ग्रहण हों या भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ महामारी जैसी घटनाओं का घटित होना संभव हो पाता है | ऐसी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार कारण क्या हो सकता है |ऐसी बड़ी घटनाओं के घटित होने में जिस ऊर्जा का उपयोग होता है | वो कहाँ से आती है |ये खोज लिया जाए तो ऐसी घटनाओं को समझना एवं इनके विषय में अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाना संभव हो पाएगा |  
     संसार में प्रत्येक कविता,कार्य,परिस्थिति,घटना,भाव,संबंध ,सुख, दुःख ,लाभ ,हानि,जन्म,मृत्यु आदि जितनी भी घटनाएँ हैं ये दो बार घटित होती हैं|एक बार समय के गर्भ में जन्म लेती हैं और वही घटनाएँ दूसरी बार स्थूल स्वरूप में लेती हैं|समय दिखाई नहीं पड़ता है|इसलिए ऐसी घटनाएँ जबतक समय के गर्भ में रहती हैं तब तक केवल दिव्यदृष्टि से ही दिखाई पड़ती हैं | ऐसी घटनाएँ प्रत्यक्ष प्रकट होने पर सभी को दिखाई पड़ती हैं | भविष्य में घटित होने वाली घटनाएँ दिव्यदृष्टि से देखी जा सकती हैं| ज्योतिषीयगणितीय दृष्टि के द्वारा उनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है| कुछ दूसरी घटनाओं,लक्षणों या शकुनों अपशकुनों के आधार पर ऐसी घटनाओं के विषय में अंदाजा लगाया जा सकता है| दिव्यदृष्टि भगवान् के पास या फिर योगियों तपस्वियों साधू संतों आदि के पास होती है तथा लक्षणों या शकुनों अपशकुनों को अनुभवों से पहचाना जाता है |
      दिव्यदृष्टि और प्रत्यक्षदृष्टि का अंतर महाभारत में उस समय दिखाई पड़ा था जब अर्जुन भीष्मपितामह गुरुद्रोणाचार्य आदि से युद्ध करने को तैयार नहीं थे | श्रीकृष्ण उन्हें बार बार युद्ध  के लिए प्रेरित कर रहे थे | श्रीकृष्ण जी ने दिव्यदृष्टि से देख लिया था कि भीष्मपितामह गुरुद्रोणाचार्य आदि की आयु समाप्त हो चुकी है | अब उन लोगों की मृत्यु का समय आ जाने के कारण उनकी मृत्यु तो होनी ही है |मृत्यु के समय अर्जुन यदि उनसे युद्ध कर रहे होंगे तो इतने बड़े बड़े वीरों  को पराजित कर देने का यश अर्जुन को मिल जाएगा | इसीलिए श्रीकृष्ण जी अर्जुन को  युद्ध के लिए बार बार प्रेरित कर रहे थे |इसे अर्जुन नहीं देख पा रहे थे इसलिए वे नहीं मान रहे थे | वस्तुतःसमय के गर्भ में उन लोगों की मृत्यु के लिए निर्धारित समय समीप आ चुका था | 
       कुलमिलाकर समय के गर्भ में तो उन लोगों की मृत्यु हो चुकी थी किंतु प्रत्यक्ष रूप से होनी बाक़ी थी | ऐसे ही प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली प्रत्येक घटना दो बार घटित होती है | एक बार समय के गर्भ में तो दूसरी बार प्रत्यक्ष रूप से घटित होते दिखाई देती है |प्रत्येक कविता , कार्य , परिस्थिति ,घटना ,भाव , संबंध आदि एक बार समय की सृष्टि में जन्म ले चुके होते हैं | इन्हें साकार रूप से जन्म लेना होता है |
    ऐसी घटनाओं को समय के गर्भ में रहते हुए जो कोई खोज लेता है वही उसका अनुसंधानकर्ता मान लिया जाता है |  समय के गर्भ में निर्मित हो चुकी किसी कविता को खोज लेने वाले को कवि कहते हैं | कवि कविता को बनाता नहीं प्रत्युत खोजता है |ऐसे ही  वैज्ञानिक लोग बड़ी बड़ी खोजें किया करते हैं | खोजा हमेंशा उसे जाता है जिसका निर्माण हो चुका हो|
    ऐसे ही भूकंप आँधी तूफान वर्षा बादल चक्रवात बज्रपात तथा महामारी जैसी घटनाओं का जन्म भी समय के गर्भ में बहुत पहले ही हो चुका होता है | समय दिखाई नहीं पड़ता है | इसलिए वे घटनाएँ भीनहीं  दिखाई पड़ती हैं | इसीलिए उन्हें ज्योतिषीय गणित के द्वारा खोजना या उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना पड़ता है |  
     प्राकृतिक आपदाएँ महामारियाँ आदि अचानक घटित होने लगती हैं तब दिखाई पड़ती हैं|इससे जनधन का बहुत नुक्सान हो जाता है|ये नुक्सान न हो इससे बचाव कैसे हो | यही अनुसंधानों का उद्देश्य है |समय के गर्भ में जो कविता या कार्य एक बार संपन्न हो चुके हैं | अनुसंधानपूर्वक उन्हें ही खोजा या सफलता पूर्वक संपन्न किया जा सकता है |
    संपूर्ण ब्रह्मांड में कब क्या घटित होना है|यह सबकुछ पहले से निश्चित होता है | इसे समय संबंधी अनुसंधान प्रक्रिया से खोजा जा सकता है | प्रकृति और जीवन में जब जो घटित होना है वो भी समय संबंधी अनुसंधानों से ही खोजा जा सकता है| इनमें से जब जिस घटना के प्रसव होने अर्थात घटित होने का समय जब आएगा तब वो घटना घटित हो जाएगी |
     कुल मिलाकर ब्रह्मांड रचयिता ईश्वर ने  इससंसार को एक प्रकार का छुपंछुपाई का खेल बना दिया है| इसमें सबकुछ बनाकर छिपा दिया गया है |मनुष्यों को उसे खोजने का काम सौंपा गया है |जिसे जो चाहिए वो खोज ले |ऐसी घटनाओं का निर्माण चूँकि समय के गर्भ में हुआ होता है | इसलिए प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटना को समय के आधार पर ही अनुसंधान पूर्वक समझा जा सकता है और समय के आधार पर ही उनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
                                                                              
                                           समयगणित और घटनाएँ !

       जिसप्रकार से किसी ट्रेन की समयसारिणी देखकर ही महीनों पहले पता लगाया जा सकता है कि किस ट्रेन को किस दिन कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचना है| इसीप्रकार से गणितविज्ञान के द्वारा भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों की भी समयसारिणी को खोजकर उसके आधार पर ये पता लगाया जा सकता है कि इनमें से कौन घटना कब घटित होने वाली है| जिसप्रकार से समयसारिणी देख लेने के बाद ट्रेनों को प्रत्यक्ष देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है | ट्रेन आने जाने के विषय में सही सही पूर्वानुमान पता लग जाता है|   

      परोक्षविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो समयजनित प्रत्येक प्राकृतिक घटना समय के गर्भ में पड़े पड़े अपने घटित होने के समय की प्रतीक्षा कर रही होती है | जिस प्रकार की घटना के घटित होने का जब समय आता है तब वो अपने समय पर घटित होती चली जाती है| भूकंप आँधी तूफान वर्षा बादल चक्रवात बज्रपात तथा महामारी जैसी घटनाएँ भी अपने अपने निर्धारित समय पर ही घटित होती हैं | समय के संचार को न समझने के कारण ये अचानक घटित होती सी प्रतीत होती हैं |किस घटना के घटित होने के लिए निर्द्धारित समय कौन सा है | इसका पूर्वानुमान लगाया जाना गणितीयप्रक्रिया से ही संभव है |गणित का विस्तार असीम है|इसलिए ब्रह्मांड और उसके स्वभाव को समझने के लिए गणित ही सर्वश्रेष्ठ माध्यम है | 

     कुलमिलाकर इस विराट ब्रह्मांड की भाषा गणित ही है| प्रकृति  और जीवन को इसी भाषा से समझा जा सकता है| इसी भाषा में ब्रह्मांड की संरचना की पटकथा (स्क्रिप्ट) आदिकाल में ही लिखी जा चुकी है |सूर्य चंद्र आदि ग्रहों एवं  अश्वनी आदि नक्षत्रों को कब कहाँ पहुँचना है |ग्रहों की गति इनके उदय अस्त होने का निश्चित समय तथा ऋतुओं के आने और जाने का समय गणित के द्वारा ही सैकड़ों वर्ष पहले पता लगा लिया करते रहे हैं| ऐसे ही सूर्य चंद्र ग्रहणों में से किस ग्रहण को कब कितने समय पर कितने समय के लिए पड़ना है | ये सब कुछ इसी गणित के द्वारा ही सैकड़ों वर्ष पहले पता लगा लिया जाता है |   

     'कालज्ञान ग्रहाधीनं' अर्थात अच्छे बुरे समय का ज्ञान ग्रहों के आधीन है ! समय कब कैसा चल रहा है | इसे ग्रहों के आधार पर समझा जा सकता है| ग्रहों को गणित के आधार पर समझा जाता है| इसी  गणितीयप्रक्रिया के द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | इससे प्रमाणित होता है कि नवग्रहों के संचार का पूर्वानुमान गणित के द्वारा लगाया जा सकता है | आज के सैकड़ों वर्ष बाद भविष्य में कौन ग्रह कहाँ कब पहुँचेगा | इसका पूर्वानुमान ग्रहगणित  के द्वारा  लगाया सकता है|   

   ग्रहों और  ग्रहणों की तरह ही सभी प्रकार की समयजनित भूकंप आँधी तूफान वर्षा बादल चक्रवात बज्रपात तथा महामारी जैसी घटनाएँ भी उसी भाषा में उसी समय लिखी जा चुकी हैं | उन्हें गणित विज्ञान के आधार पर खोजे जाने की आवश्यकता है |प्राचीन काल में ऐसा ही होता रहा है | गणितवेत्ता लोग गणित के द्वारा समय में होने वाले बदलावों एवं समयजनित प्राकृतिक घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाने का प्रयत्न करने के लिए निरंतर अनुसंधान किया करते हैं |भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों आदि की समयसारिणी को गणित भाषा में ही लिखा गया है | उस समयसारिणी को खोजे जाने की आवश्यकता है | 
      इसी गणित  के द्वारा ही प्राकृतिकघटनाओं  के स्वभाव को समझा जा सकता है| भविष्य में घटित होने वाली प्रकृति एवं जीवन संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है| गणित से वर्षा बाढ़ आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात महामारी आदि घटनाओं के  विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं |  भूकंप कब कब आ सकते हैं | वर्षा किस वर्ष कैसी हो सकती है ! आँधी तूफ़ान किन किन दिनों में आ सकते हैं | चक्रवात बनने की संभावना कब है !बज्रपात कब हो सकता है | महामारी किस वर्ष के किस महीने में प्रारंभ हो सकती है | महामारी प्राकृतिक है या मनुष्यकृत इसका पता भी उसी गणितविज्ञान के द्वारा लगाया जा सकता है | 
    ऐसे ही जीवन से संबंधित बहुत सारी घटनाओं के घटित होने का निश्चित समय खोजने के लिए भी गणितीय प्रक्रिया के आधार पर अनुसंधान किए  जा सकते हैं |मनुष्य जीवन में कब किस प्रकार की घटनाएँ घटित होने  संभावना है| इसका पूर्वानुमान इसी ग्रहगणित  के द्वारा दशकों पहले लगाया जा सकता  है | महामारी जैसी घटनाओं से निपटने में भी इस प्रक्रिया से बहुत मदद मिल सकती है |
      जिससमय प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारी  के घटित होने की संभावना हो, उसीसमय जिन जिन लोगों का अपना समय भी बुरा चल रहा होता है| उस आपदा या महामारी में ऐसे  लोगों के पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है | जिनका अपना समय अच्छा चल रहा होता है |वे प्राकृतिक आपदाओं के समय भी सुरक्षित बच निकलते हैं | महामारी के समय संक्रमितों के बीच रहकर भी बहुत लोगों को संक्रमित नहीं होते देखा गया है | इसीलिए कि उनका समय अच्छा रहा होगा | 
    आयुर्वेद के ग्रंथों में रोगी परीक्षा की लाक्षणिक एवं गणितीय विधि बताई गई है कि कौन रोगी कितना साध्य या कितना असाध्य है| महामारी का पूर्वानुमान लगाने की गणितीय विधि भी उन्हीं आयुर्वेद के चरकादि ग्रंथों में बताई गई है| इसकेलिए चिकित्सावैज्ञानिकों और  गणितवैज्ञानिकों के संयुक्त अनुसंधानों को किए जाने की आवश्यकता है |      
        प्राचीनकाल  में चिकित्सा वैज्ञानिक गणित विज्ञान के भी विद्वान हुआ करते थे | इसलिए गणित विज्ञान के द्वारा रोगों महारोगों के विषय में पूर्वानुमान लगाकर पहले से ही रोकथाम करने के उद्देश्य से चिकित्सा प्रारंभ कर दिया करते थे |इसलिए रोग बढ़ने नहीं पाते थे |  
       इसीलिए समयजनित प्राकृतिक घटनाओं की गणितीय समय सारिणी खोज लेने के बाद उनके विषय में सही पूर्वानुमान पता लग जाता है|उन्हें देखने के लिए उपग्रहों रडारों से देखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है | प्राचीन युग में उपग्रहों रडारों की सुविधा नहीं थी| सुपर कंप्यूटर नहीं थे | उस युग में भी ऐसी घटनाओं के  विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिए जाते थे |ऐसा किया जाना गणितीयप्रक्रिया से ही संभव था |
      कुलमिलाकर प्राकृतिकघटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रत्यक्ष एवं परोक्ष अर्थात गणितीय दोनों ही विधाओं के आधार पर पूर्वानुमान लगाना आवश्यक है | गणित के द्वारा सही पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं| उस गणितीयप्रक्रिया में कोई गलती न रह गई हो| जिससे लगाए गए पूर्वानुमान गलत न निकल जाएँ| इसके लिए उस मुख्यघटना के घटित होने से पहले प्राकृतिक वातावरण में घटित हो रही घटनाओं या उस समय के प्राकृतिक लक्षणों का अध्ययन करना आवश्यक होता है |इनके साथ गणितीय पूर्वानुमानों का मिलान करके उन पूर्वानुमानों को मजबूत बना लेना चाहिए ,ताकि उनकी सूक्ष्म सच्चाई का पता लगाया जा सके |
       
 प्राकृतिक वातावरण और विज्ञान 
     वर्तमान समय में विज्ञान  अत्यंत उन्नत है | उपग्रहों रडारों की तकनीक विकसित कर ली गई है |जिसके द्वारा आँधी तूफानों  बादलों आदि को बहुत दूर से देखकर यह पता लगा लिया जाता है कि ये कितनी गति से किस दिशा की ओर जा रहे हैं | इससे कुछ तत्कालीन घटनाओं को एक स्थान पर घटित होते देखकर उनकी गति और दिशा के अनुसार उनके दूसरे स्थान पर पहुँचने के विषय में अंदाजा लगाया जा सकता है ,कि ये इतने घंटों या दिनों में इस दिशा में इतनी दूर तक जाकर अमुक देश प्रदेश आदि में पहुँच  सकते हैं | 
    इस प्रक्रिया में ऐसा विज्ञान कहाँ है |जिसके द्वारा भविष्य में झाँका जा सकता हो |भविष्य को  देखने समझने की सामर्थ्य प्राप्त किए बिना भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है |
     दूसरी बात इसके आधार पर अल्प अवधि की घटनाओं के विषय में अंदाजा लगाया जा सकता है किंतु इसके आधार पर मध्यावधि या दीर्घावधि घटनाओं को समझना या उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है  |
    विशेष बात ये है कि आँधी तूफान हों या वर्षा बादल आदि इनके कहीं जाने आने का साधन जो हवाएँ होती हैं | वे इतनी स्वतंत्र होती हैं कि उनकी गति कभी भी धीमी या तेज हो जाती है | ऐसी हवाएँ कभी भी किसी दूसरी तीसरी दिशा को भी मुड़ सकती हैं |ऐसी स्थिति में पहले लगाए हुए अंदाजे (पूर्वानुमान) गलत हो सकते हैं |
    वस्तुतः उपग्रहों रडारों से आँधी तूफानों  वर्षा बादलों आदि की केवल वर्तमान अवस्था को ही देखा जा सकता है | इसके बाद उनमें किस किस प्रकार के परिवर्तन होंगे | इसका अंदाजा उपग्रहों रडारों को देखकर नहीं लगाया जा सकता है ,जबकि पूर्वानुमान लगाने के लिए इसकी आवश्यकता होती है |
   महामारी हो या प्राकृतिक आपदाएँ इनके विषय में सही पूर्वानुमान लगाए बिना इनसे मनुष्यों की सुरक्षा नहीं की जा सकती है |अचानक भूकंप आ जाए तो भूकंप आते ही घर गिरने तथा लोग मरने लगेंगे | 
      इसीप्रकार से महामारी इतनी तेजी से आकर बहुत सारे लोगों को अचानक संक्रमित कर देती है|जिससे बहुत लोग मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं | 
      ऐसी स्थिति में भूकंपों ,महामारियों या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के अचानक आ जाने के कारण उनसे मनुष्यों की सुरक्षा कैसे की जा सकती है |उनका वेग इतना अधिक होता है कि जो होना होता है वो तुरंत हो जाता है | वैसे तो ऐसी हिंसक घटनाओं से बचाव के लिए उपाय नहीं होते हैं और जो उपाय होते भी हैं वे इतने कम समय में नहीं किए जा सकते हैं | 
     ऐसी हिंसक घटनाओं से मनुष्यों का बचाव किया जाना तभी संभव है जब उनके विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाया जा सके |इसके लिए कोई ऐसा विज्ञान होना चाहिए | जिसके द्वारा भविष्य में झाँकना संभव हो सके | भविष्य को समझे बिना किसी घटना के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है|
    उपग्रहों रडारों से बादल या तूफ़ान कुछ पहले से देख लिए जाते हैं | उनकी गति और दिशा के अनुसार उनके दूसरे स्थान पर  पहुँचने के  विषय में अंदाजा लगा लेने से कभी कभी कुछ बचाव हो जाता है | यद्यपि यह केवल एक जुगाड़ है विज्ञान नहीं है | ऐसे जुगाड़ों से लगाए गए अंदाजे तभी तक सही निकल सकते हैं, जब तक हवा की दिशा और गति न  बदले,किंतु वो तो कभी भी बदल सकती है और लगाया हुआ अंदाजा गलत निकल जाता है |
   कुल मिलाकर मौसमसंबंधी घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान नहीं है|इसलिए मौसम संबंधी घटनाओं को समझना या इनके विषय में पूर्वानुमान लगाना विज्ञान के बिना संभव ही नहीं है| विज्ञान के अभाव में मौसमसंबंधी अनेकों घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान नहीं लगाए जा पाते हैं|जो अंदाजे लगाए भी जाते हैं |उनमें से बहुत सारे गलत निकल जाते हैं|पूर्वानुमान न लगा पाने या पूर्वानुमान गलत निकल जाने का कारण ऐसे भविष्यविज्ञान का न होना है | ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान न लगा पाने या पूर्वानुमानों के गलत निकल जाने में जलवायुपरिवर्तन कारण नहीं है | विज्ञान के अभाव एवं अनुसंधानों की कमजोरी के कारण ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं |
    वैज्ञानिकों का एक वर्ग महामारी पैदा होने के लिए या महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने के लिए मौसम संबंधी घटनाओं को जिम्मेदार बताता रहा है | ऐसी स्थिति में जब मौसमसंबंधी घटनाओं को ही समझने एवं इनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए ही कोई विज्ञान नहीं है ,तो मौसम के प्रभाव से महामारी के पैदा होने तथा महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाया जा सकता है | इसके बाद भी वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने के विषय में बार बार अंदाजे(पूर्वानुमान ) लगाए जाते रहे जो गलत निकलते रहे | इसके लिए महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को कारण बताया जाता रहा | 
     इसमें विशेष बात ये है कि जब विज्ञान के अभाव में महामारी के स्वरूप का ही पता नहीं लगाया जा सका तो महामारी के स्वरूप परिवर्तन होने की बात को समझा जाना कैसे संभव था | महामारी का स्वरूप जब  पता ही नहीं चला तो महामारी के स्वरूप परिवर्तन के विषय में कैसे पता लगाया गया होगा |  
    मौसमसंबंधी  पूर्वानुमान लगाने के लिए अनेकों देशों ने मंत्रालय बना रखे हैं | उनके  संचालन पर भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती  है किंतु भविष्य में झाँकने के लिए जब तक कोई विज्ञान नहीं है तब तक किसी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाना कैसे संभव हो सकता है | इसलिए यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि मौसमविज्ञान में ऐसा विज्ञान कहाँ है |जिसके द्वारा मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाए जा सकते हों |
  _______दूसरा ________________    
 
 

                                                                  समयविज्ञान !

   संसार की सभी अच्छी बुरी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण समय है| प्राकृतिक घटनाओं को समझना  है | उनके वेग को समझना है या उनके अच्छे बुरे प्रभाव को समझना है अथवा उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना है तो समयशक्ति ,समयसंचार एवं समय की प्रवृत्ति को अनुसंधानपूर्वक आगे से आगे पता करके रखना होगा | इस पर निरंतर दृष्टि इसलिए बनाए रखनी होगी, क्योंकि समय संचार में न जाने कब किस प्रकार के परिवर्तन होने लगें |अच्छे बुरे समय के प्रभाव से उसप्रकार की घटनाएँ घटित होने लगें | 
     कुलमिलाकर समयसंचार को समझे बिना न तो किसी घटना को सही सही समझा जा सकता है और न ही उसके विषय में सही पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं |इसलिए समय की समझ प्रत्येक व्यक्ति को होनी चाहिए| जितने भी प्रकार के विज्ञान या सफलताएँ हैं| वे सभी समय के ही आधीन हैं | 
     कई बार कुछ लोग किसी कार्य को करने में सफल हो जाते हैं या किसी दूसरे को उस प्रकार के कार्य करके सफल होते देख लेते हैं|समय की समझ न होने के कारण ऐसे लोगों को भ्रम होने लगता है कि उनके तथा उस व्यक्ति के सफल होने का कारण परिश्रम प्रयत्न एवं कार्य करने की प्रक्रिया ही है| ये दूसरों को भी सफल होने के लिए ऐसा करने का उपदेश देने लगते हैं |उन्होंने ऐसा किया इसलिए उन्हें सफलता मिली है, तुम भी ऐसा करोगे तो तुम्हें भी सफलता मिलेगी | ऐसे मोटिवेशनल स्पीकरों को अपने भाषणों में यह कहते सुना जाता है कि लक्ष्य कितना भी बड़ा हो ,तुम उसे पाने का प्रयत्न करो तो तुम्हें  सफल होने से कोई शक्ति रोक नहीं सकती है | 
    ऐसे भाषण सुन कर लोगों ने बड़े बड़े लक्ष्य बना डाले और अपनी शक्ति के अनुसार लक्ष्य पाने के लिए प्राण प्रण से लगकर प्रयत्न करने लगे | उनके पास जितना जो कुछ था सबकुछ उस लक्ष्य के लिए न्योछावर कर दिया |उसके बाद सफल तो कुछ लोग ही हुए किंतु बाक़ी लोग सफल भी नहीं हुए और उनके पास कुछ बचा भी नहीं | उनमें से कुछ लोग तनावग्रस्त होकर अस्वस्थ हो गए | कुछ लोग उन्माद के शिकार हुए | कुछ लोग अपराध की ओर अग्रसर हो गए | कुछ लोगों ने कुछ बड़े परिवारों की अत्यंत सुंदरी कन्याओं से विवाह करने का लक्ष्य चुना था | उसमें असफल होने के बाद कुछ उसके और कुछ अपने प्राणों पर खेल जाते हैं | 
     कुल मिलाकर किसी के सफल होने का कारण केवल उसके परिश्रम प्रयत्न एवं उसके कार्य करने की प्रक्रिया को ही मानना उचित नहीं है | उस व्यक्ति के अपने समय की एवं उस प्रकार के कार्य के होने के समय  की भी बहुत बड़ी भूमिका होती है |इसलिए समय की उपेक्षा करके किसी भी कार्य या अनुसंधान को पूरा नहीं किया जा सकता है | 
                                                                 कर्तव्य और  समय 
   
    गीता में  लिखा है कि 'कर्मण्येवाधिकारस्ते' अर्थात  केवल कर्म पर है !'माफलेषुकदाचन'  अर्थात कर्म के फल पर तुम्हारा नहीं है | इस पर प्रश्न उठता है कि फल पर अधिकार क्यों नहीं है | विशेष बात ये कि हमारे कर्म पर  हमारा ही अधिकार नहीं है तो उस पर किसका अधिकार है | 
     वस्तुतः जिन कार्यों या लक्ष्यों को हम अपना समझते हैं | वो हमारे अपने नहीं  होते हैं ,प्रत्युत समय की प्रेरणा से ही हमें उसप्रकार के लक्ष्य बनाने पड़ते हैं |कई बार हम कुछ बहुत बड़े लक्ष्य बनाना शुरू कर देते हैं |उसे पूरा करने में प्राण प्रण से लग जाते हैं |उस संपूर्ण कार्य को करने का लक्ष्य बनाने में उतना कार्य तो आसानी से हो जाएगा उस कार्य को करने में जितनी हमारी भूमिका समय के द्वारा निर्धारित है | 
   प्राकृतिक समय सारिणी में हो सकता है उस कार्य का विस्तार बहुत अधिक रखा गया हो | उस विस्तार को समझने की हमारी सामर्थ्य ही न हो| समय के द्वारा उसी कार्य के छोटे से अंश को करने की हमें भी भूमिका सौंपी गई हो |उसमें हम केवल अपनी भूमिका का ही निर्वाह ही सफलता पूर्वक कर सकते हैं |उसके अतिरिक्त उस कार्य को पूरा करने के लिए हमने जो हठ ठानी हुई होती है | उसके लिए  हमें बहुत संघर्ष करना होता है | धन और संसाधन बहुत लगाने होते हैं | इसके बाद भी समय के द्वारा उस कार्य को पूर्ण करने की जिम्मेदारी किसी दूसरे को सौंपी गई होती है | इसलिए हमारे द्वारा वह कार्य पूर्ण नहीं होगा |अंततः हमें निराश होना पड़ेगा | इसलिए हमें कार्य के परिणाम से न जुड़कर केवल अपने कर्तव्य का ही पालन करना चाहिए | 
    लंबी दूरी की ट्रेनों को गंतव्य तक ले जाने के लिए रेलवे के द्वारा निर्धारित दूरी या स्टेशन पर पहुँचने के बाद चालक बदल दिया जाता है | वहाँ से दूसरा चालक उस ट्रेन को आगे लेकर जाता है | निर्धारित दूरी तय करने के बाद वह भी बाद जाता है | ऐसा कई बार करना पड़ता है |उसके बाद ट्रेन गंतव्य तक पहुँच पाती है | ट्रेन को गंतव्य तक पहुँचाने का लक्ष्य रेलवे का होता है  चालकों का नहीं | चालकों को तो केवल अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपनी भूमिका अदा करनी होती है | 
   इसी प्रकार से कुछ कार्य ऐसे होते हैं | जिन्हें पूरा करने में अनेकों लोगों की भूमिका निर्धारित की गई होती है | कुछ कार्यों में तो कई कई पीढ़ियों का योगदान लग जाता है |ऐसे  कार्यों में प्रत्येक व्यक्ति को केवल अपने कर्तव्य का पालन करते जाना चाहिए | उस कार्य को पूर्ण करने का लक्ष्य लेकर अपने जीवन को संकट में नहीं डालना चाहिए, क्योंकि उस कार्य को पूरा करने की भूमिका समय के द्वारा यदि उन्हें नहीं सौंपी गई है तो वे उसे पूर्ण कैसे कर लेंगे | किस व्यक्ति को कौन सा कार्य करना है ये प्राकृतिक रूप से निश्चित होता है |  किस कार्य को कितने लोगों के साथ मिलकर पूरा करना है | यह भी निश्चित होता है | इसे बिचारे बिना किसी भी कार्य को करने के लिए प्रयत्न तो किए जा सकते हैं किंतु परिणाम समय के अनुसार ही प्राप्त होते हैं |
     जिसप्रकार से  कौन ट्रेन किस स्टेशन पर किस समय पहुँचेगी | इसके लिए समय निर्धारित होता है | यदि वह ट्रेन उसी समय पहुँचती है तब तो उसे आने के लिए लाइन खाली मिलती है|उससे पहले पहुँच जाए तो उस को उससमय लाइन खाली नहीं मिलती है | इसलिए उसे स्टेशन के बाहर खड़े होकर अपने समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है |
    इसीप्रकार से किसी कार्य के होने का जब समय आता है | उस कार्य को उसी समय किया जाए तभी सफलता मिल पाती है | प्रत्येक कार्य के प्रारंभ होने का समय होता है|उस समय पर वह कार्य करना शुरू कर दिया जाए तो उसे करने में सफलता मिल जाती है | यदि समय से पहले ही प्रयत्न करना शुरू कर दिया जाए कार्य तो तब भी निर्धारित समय पर ही होगा,किंतु पहले से किए जा रहे प्रयत्नों में जो अतिरिक्त परिश्रम धन संसाधन आदि लग रहे होते हैं| वे निरर्थक चले जाते हैं | निर्धारित समय पर कार्य प्रारंभ करके उन्हें बचाया जा सकता था | 
     किस कार्य के होने का निर्धारित समय कौन है|यह पता लगाने के लिए रेलवे समय सारिणी की तरह ही प्राकृतिक समयसारिणी भी होती है | जिसमें  प्रत्येक कार्य के निर्धारित समय का संकेत दिया होता है | जिस प्रकार से रेलवे समय सारिणी प्रत्येक देश की अपनी अपनी भाषा में लिखी होती है | उस भाषा को जानने वाले लोग उसे पढ़कर समझ जाते हैं कि किस ट्रेन को किस स्टेशन पर किस समय पर आना या जाना है| 
    इसीप्रकार से प्रकृति की भाषा गणित है|प्राकृतिक घटना या मनुष्य जीवन में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं को गणित के द्वारा ही समझा जाना संभव है |विज्ञान की प्रत्येक विधा गणित के बिना संपूर्ण नहीं हो  सकती है |जिस प्रकार से रेलवे समय सारिणी खोजनी पड़ती है | उसीप्रकार से प्राकृतिक समयसारिणी भी अनुसंधान पूर्वक खोजी जा सकती है |  
   जिसप्रकार से गणित के द्वारा आज के सैकड़ों वर्ष बाद घटित होने वाली खगोलीय घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | उसीप्रकार से गणित के आधार पर सैकड़ों वर्ष पूर्व भूगोलीय घटनाओं के विषय में भी बहुत पहले ही पूर्वानुमान लगाया जा  सकता है | 
      जिसगणित के द्वारा सुदूर आकाश में घटित होने वाली सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं के विषय में या अन्य ग्रहों के संचार के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है|उसी गणित के द्वारा भूकंप आँधी तूफ़ान ,चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ जैसी घटनाओं के विषय में अनुसंधान पूर्वक बहुत पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | उसी गणित के आधार पर गणितज्ञों के द्वारा किसी महामारी के आने के विषय में  भी सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जाना  संभव है | 
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प्रयत्न और समय दोनों के संयोग से ही सफलता मिलती है|किसी कार्य में सफलता  मिलने का समय पता न हो तो कई कई बार प्रयत्न करके समय का परीक्षण करते रहना होता है| जब समय अच्छा आता है तब सफलता मिल जाती है |

     वैज्ञानिकों के द्वारा कुछ अनुसंधान बड़े विश्वास पूर्वक प्रारंभ किए जाते हैं | उनमें बहुत संसाधन लगते हैं | बहुत धन लगता है |अत्यंत परिश्रम पूर्वक कार्य करने के बाद भी प्रयत्न असफल होते देखे जाते हैं | कई बार असफल होने के बाद एक बार सफलता मिलती है | इसका मतलब यह  ही नहीं है कि जो प्रयत्न असफल हुए उनके  करने में कोई कमी रह गई थी प्रत्युत इसका कारण यह भी हो सकता है कि उस समय उस कार्य के सफल होने का समय ही न आया हो ,जब सफल होने का समय आया तब सफलता मिली | 

   कुछ लोग सफल होने के लिए बहुत परिश्रम करते हैं ,फिर भी सफल नहीं हो पाते हैं | उन्हें सफलता मिलनी है या नहीं | इसका निर्णय उस व्यक्ति के अपने अच्छे या बुरे समय एवं उस कार्य के होने या न होने के समय के अनुसार ही होता है |  

     चिकित्सक चिकित्सा करते हैं किंतु किसी को स्वस्थ करने की जिम्मेदारी नहीं लेते हैं|उन्हें ये पता होता है कि रोगी का स्वस्थ होना या न होना रोगी के अपने समय के अनुसार ही निश्चित होता है| ऐसे ही किसी रोगी के आपरेशन से पहले उसके परिजनों से लिखवा लिया जाता है| इसका मतलब ये नहीं है कि अयोग्य चिकित्सक ऑपरेशन करेंगे या उन्हें रोगी के स्वस्थ होने में संशय है | वस्तुतः उन्हें ये विश्वास होता है कि इस आपरेशन का परिणाम क्या होगा | ये उस रोगी के समय के आधार पर निश्चित होगा | समय संचार को समझे बिना उस परिमाण का पता लगा पाना संभव नहीं है |  

    किसी चिकित्सालय में बहुत सारे एक जैसे रोगियों की चिकित्सा की जाती है| उस चिकित्सा का परिणाम चिकित्सा के अनुसार न मिलकर उन रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार मिलता है| इसी लिए कुछ रोगी स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ रहते हैं कुछ की मृत्यु हो जाती है|जिस रोगी का जब जैसा समय होता है चिकित्सा का उस पर वैसा प्रभाव पड़ता है |  

     किसी प्राकृतिकआपदा से बहुत सारे लोग एक जैसे प्रभावित होते हैं,किंतु उनमें से कुछ लोगों को खरोंच भी नहीं लगती कुछ लोग घायल होते हैं जबकि कुछ लोगों की मृत्यु हो जाती है | उस प्राकृतिकआपदा से एक जैसा प्रभावित होने पर भी परिणाम अलग अलग दिखाई पड़ने का कारण उन सबका अपना अपना समय होता है | 

    चिकित्सालयों का निर्माण तो रोगियों को स्वस्थ करने के लिए होता है,उसमें शवगृहों का निर्माण किए जाने का कारण समय का ही भय है | प्रयत्न तो रोगियों को स्वस्थ करने के लिए किए जाएँगे किंतु यदि परिणाम प्रयत्नों के अनुरूप न मिलकर रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार मिलते हैं | जिन लोगों का समय ही मृत्यु का चल रहा होता है | उन पर चिकित्सा का प्रभाव पड़ेगा ही उनका जीवन पूरा होगा ही| किसका समय कैसा चल रहा है इसकी जानकारी न होने के कारण चिकित्सालयों में  शवगृहों का निर्माण किया जाता है | 

    कोरोना जैसी महामारी के आने पर संक्रमित केवल वही लोग होते हैं जिनका अपना समय खराब चल रहा होता है !अन्यथा बाक़ी लोग उन्हीं परिस्थितियों में रहते हुए उन्हीं संक्रमितों के साथ उठते बैठते खाते पीते सोते जागते भी संक्रमित नहीं होते हैं |  

    शिक्षा के क्षेत्र में भी समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है| बहुत परिश्रम करने के बाद भी बहुत विद्यार्थी सफल नहीं हो पाते हैं| शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही सफल होने के लिए बहुत परिश्रम करते हैं किंतु इसके बाद भी अनेकों विद्यार्थियों को असफल होते देखा जाता है | उसका कारण उनमें से जिस विद्यार्थी का जैसा समय चल रहा होता है |  वैसा उन्हें परिणाम मिलता है | 

    कुछ लड़के लड़कियाँ एक दूसरे के जिन गुणों बात व्यवहार सुंदरता आदि से प्रभावित होकर एक दूसरे से प्रेम करते हैं फिर विवाह भी कर लेते हैं | कुछ समय साथ रहने के बाद उनकी एक दूसरे से अरुचि होने लगती है | वे धीरे धीरे एक दूसरे से घृणा करने लगते हैं फिर विवाह विच्छेद हो जाता है | कुछ लोग तो एक दूसरे के शत्रु तक बन जाते हैं |इसमें विशेष बिचार करने योग्य बात यह है कि एक दूसरे की जिन अच्छाइयों से प्रभावित होकर वे दोनों एक दूसरे से प्रभावित हुए थे | वे सारी अच्छाइयाँ उन दोनों में उस समय भी वैसी ही विद्यमान थीं जब उन दोनों एक दूसरे से घृणाकरते हुए विवाह विच्छेद  किया था | इसलिए उनके एक दूसरे से मिलने और बिछुड़ने का कारण उन दोनों के गुण दुर्गुण न होकर प्रत्युत उन दोनों का अपना अपना समय ही है | जब तक समय एक दूसरे के अनुकूल चलता रहा तब तक वे एक दूसरे से जुड़े रहे और जैसे ही समय बदलकर एक दूसरे के प्रतिकूल चलने लगा वैसे ही वे दोनों एक दूसरे से अलग हो जाते हैं | 

     कुल मिलाकर कर किसी कार्य का बनना बिगड़ना प्रयत्न और समय के आधार पर निश्चित होता है | जिस प्रकार से कुछ घास फूस के बीज मार्च अप्रैल के महीने में खेतों में झड़ जाते हैं | खेतों में पड़े पड़े अपने अंकुरित होने की प्रतीक्षा किया करते हैं | बरसात में भीगने पर भी वे अंकुरित नहीं होते हैं | अक्टूबर नवंबर में उनके अंकुरित होने का समय होता है | उस समय के आने पर अपने आप ही अंकुरित होने लगते हैं | ऐसे ही आम के बृक्ष में कितना भी खाद पानी लगातार देते रहा जाए लेकिन उनमें बौर बसंत का समय आने पर ही लगता  है | ऐसे ही परिश्रम कितना भी क्यों न कर लिया जाए किंतु सफलता समय आने पर ही मिलती है |इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को समय की समझ होनी ही चाहिए,अन्यथा बार बार निरर्थक प्रयत्न करते रहना पड़ता है | 

                                     समय को समझना ही है सबसे बड़ा विज्ञान | 

   कोरोनामहामारी आने के कुछ वर्ष पहले से विभिन्नप्रकार की प्राकृतिकआपदाओं एवं मनुष्यकृत हिंसक घटनाओं कुछ देशों के आपसी युद्धों आंदोलनों मार्ग दुर्घटनाओं आतंकीघटनाओं से बड़ी संख्या में लोग मृत्यु को प्राप्त होते देखे जा रहे थे |इनमें बहुत लोगों की मृत्यु होते देखी जा रही थी | उन मौतों के लिए उन उन युद्धों या दुर्घटनाओं को जिम्मेदार मान लिया जाता रहा है | मौतों का क्रम बढ़ते बढ़ते बहुत अधिक बढ़ गया | इसके बाद धीरे धीरे मौतों की संख्या घटने लगी | धीरे धीरे विराम लगता जा रहा था | 

    इन मौतों में एक विशेष देखी गई कि जब तक प्राकृतिकआपदाओं ,मनुष्यकृत हिंसक घटनाओं, कुछ देशों के आपसी युद्धों, आतंरिक हिंसक आंदोलनों, मार्ग दुर्घटनाओं, आतंकीघटनाओं में लोगों की मृत्यु होती रही,महारोग ( महामारी ) फैलने पर  लोगों की मृत्यु होने लगी तब तक लोगों की मृत्यु होने के लिए उन उन घटनाओं को जिम्मेदार मान लिया जाता रहा है | इसके बाद एक समय ऐसा भी आया जब लोग बिना रोगी हुए बिना किसी दुर्घटना से पीड़ित हुए ही उठते बैठते हँसते खेलते सोते जागते नाचते गाते अभिनय करते मृत्यु को प्राप्त होते देखे जा रहे थे | छोटे छोटे बच्चे बूढ़े जवान आदि बिना किसी कारण के मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे | 

     समय की समझ के अभाव में इसी समय इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौतें होने के वास्तविक कारण को खोजा नहीं जा सका | मौतों के साथ घटनाओं  को चिपकाया जाता रहा |लोग  जबतक संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त होते रहे तब तक तो उन्हें महामारी से होने वाली मौतें माना जाता रहा किंतु जब बिना किसी दुर्घटना या रोग के भी जब लोगों की मौतें होती जा रही थीं तब ये भ्रम भी टूट गया कि मौतों का कारण महामारी ही है |

                                              समय  की समझ का अभाव है या जलवायु परिवर्तन !

        समय के संचार एवं उसके प्रभाव को समझे बिना या सम्मिलित किए बिना प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जो अनुसंधान किए जाते हैं | उनके परिणाम न तो विश्वसनीय होते हैं और न ही उनसे उस लक्ष्य की पूर्ति होती है,जिसके लिए वे अनुसंधान किए जाते हैं | ऐसे अनुसंधान बिना किसी निष्कर्ष पर पहुँचे ही रोक दिए जाते हैं | जो उन घटनाओं के विषय में होने वाली निरर्थक चर्चा के काम आते हैं |

     भूकंपों के विषय में किए जाने वाले अनुसंधानों से यदि ये पता लगा भी लिया जाए कि किस  भूकंप का केंद्र कहाँ था कितनी गहराई पर था कितनी तीव्रता थी | भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप आया था या भूमिगत ऊर्जा बाहर निकलने के दबाव से भूकंप आया था | ऐसे काल्पनिक किस्से कहानियों को जान लेने से भूकंप संबंधी आपदा से होने वाली जनधन हानि को कैसे कम किया जा सकेगा | भूकंप संबंधी अनुसंधानों को करने का लक्ष्य तो उससे होने वाली जनधन हानि को रोकना या कम करना ही है | 

     कुल मिलाकर समयबिहीन अनुसंधानों के नाम पर होता बहुत कुछ है लेकिन उनसे होता कुछ नहीं है |ऐसे अनुसंधानों  से न तो उन घटनाओं के विषय में कुछ पता लग पाता है और न ही उन घटनाओं के विषय में लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान ही सही निकल पाते हैं | ये भी पता लगाना संभव नहीं हो पाता है कि उन संकटों से निपटने के लिए क्या उपाय किए जाएँ या जो उपाय किए जा रहे हैं वे क्या सही दिशा में हो रहे हैं या नहीं | ये भी पता नहीं लग पाता है | ऐसे मनगढंत काल्पनिक कारणों के आधार पर बोला तो बहुत कुछ जा सकता है किंतु उसे तर्कसंगत  ढंग से स्थापित नहीं किया जा सकता है | ऐसे अनुसंधानों से  समाज की मदद कैसे की जा सकती है | 

   कुल मिलाकर सदियों से अनुसंधान होते आ रहे हैं | ऐसे अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि खर्च होती है ,किंतु अनुसंधानों के आधार पर अभी तक घटनाओं को समझना ही संभव नहीं हो पा रहा है | 

     उपग्रहों रडारों से आकाश में बादल उड़ते दिखाई पड़े तो अंदाजा लगा लिया जाता है कि कहीं वर्षा हो सकती है | वे जितनी गति से जिस ओर जाते दिखे उसी आधार पर कल्पना कर ली गई कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं | उसी हिसाब से वर्षा होने के विषय में अंदाजा लगा लिया जाता है कि अमुक देश प्रदेश में वर्षा हो सकती है | ऐसे ही उपग्रहों रडारों से आकाश में आँधी तूफ़ान दिखाई पड़े तो उनकी गति और दिशा के अनुसार ये अंदाजा लगाया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं |

       महामारी में भी ऐसे ही जुगाड़ों से काम चलाया जा रहा है |अचानक बड़ी संख्या में लोग रोगी होने लगे और औषधियों से लाभ न मिल पा रहा हो तो महामारी मान ली जाती है |अधिक लोग संक्रमित होने लगे तो महामारी का वेग अधिक मान लिया जाता है और कम लोग संक्रमित हुए तो महामारी का वेग कम मान लिया जाता है| संक्रमितों की संख्या समाप्त होने लगी तो महामारी समाप्त मान ली जाती है | जो सामने घटित होता दिखाई पड़ा यदि उसे ही मानना है तो अनुसंधानों की आवश्यकता ही क्या बचती है |

     ऐसे जुगाड़ों को विज्ञान नहीं कहा जा सकता है | ये विज्ञान तो तब होते जब उपग्रहों रडारों से देखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती |केवल अनुसंधानों के आधार पर ही महीनों वर्षों पहले यह पूर्वानुमान लगा लिया जाता कि अमुक वर्ष के अमुक महीने के अमुक दिनों में वर्षा या आँधी तूफान जैसी घटना घटित हो सकती है या महामारी आ सकती है | सूर्यचंद्र ग्रहणों के विषय में ऐसे ही तो सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है तो ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में यह क्यों नहीं किया जा सकता है | 

     कुछ प्राकृतिक घटनाओं को देखकर  ही यदि कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं को समझा जाना है तो अनुसंधानों की आवश्यकता ही क्या है | जो घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए किए जाते हैं |

                                                     समय और घटनाओं के संबंध    

     समय की समझ न होने से घटनाओं के वास्तविक कारणों को समझना संभव नहीं हो पा रहा है| इसलिए काम बिगड़ने या असफल होने के लिए या संबंध बिच्छेद होने के लिए कुछ ऐसे कारणों की कल्पनाएँ कर ली जाती हैं | जिनका उन घटनाओं से कोई संबंध ही नहीं होता है | इसीलिए ऐसे गलत कारणों को सच मानकर इनके आधार पर जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं | वे गलत निकल जाते हैं| इनके गलत होने के लिए वे आधार विहीन कल्पित कारण जिम्मेदार होते हैं |मौसम संबंधी अनुमान पूर्वानुमान आदि  गलत निकले तो उनके लिए जलवायु परिवर्तन  एवं महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि  गलत निकले तो महामारी के  स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता है |ऐसी बातों के समर्थन में न कोई तर्क होते हैं न कोई प्रमाण न विज्ञान  और न ही अनुसंधान | इनके विषय में कोई परीक्षण भी नहीं होते हैं | अनुसंधानों के नाम पर ऐसे ही कुछ अन्य घटनाओं के विषय में भी भ्रमात्मक कारणों को स्थापित किया जाता है |  

     जिस प्रकार से कमल के खिलने और सूर्योदय होने का समय एक ही होता है |दोनों घटनाएँ प्राकृतिक रूप से अपने अपने समय पर घटित हो रही होती हैं | समय की समझ न होने के कारण इन दोनों घटनाओं को एक दूसरे के साथ जोड़ दिया जाता है| कहा जाता है सूर्योदय होने पर कमल खिलता है |

     विशेष बात ये है कि सूर्योदय होने का कारण कमल का खिलना  है या कमल खिलने का कारण सूर्योदय होना है | सूर्योदय होने और कमल के खिलने का आपस में कोई संबंध है भी या नहीं | दोनों घटनाओं के एक समय पर घटित होने के कारण  एक दूसरे से संबंध जोड़कर देखा जाता है |

      ऐसे ही कहा जाता है कि समुद्र में उठने वाली लहरों का संबंध चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण शक्ति से है। ऐसा पूर्णिमा और अमावस्या से अगली रात को होता है। इन समयों में पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य की एक रेखा में होने से  पृथ्वी और चंद्रमा की गुरूत्वाकर्षण शक्ति मिलकर समुद्र की लहरों पर प्रभाव डालकर उन्हें  उपर उठाती हैं।

      विशेष बात ये है कि ये घटना पूर्णिमा और अमावस्या  रूपी समय पर घटित होती है| इसलिए ऐसी घटना के घटित होने का कारण समय ही हो सकता है|इसके लिए यदि चंद्रमा के आकर्षण को कारण माना जाए तो ये तर्कसंगत इसलिए नहीं लगता है , क्योंकि कई बार पूर्णिमा  और अमावस्या जैसी तिथियों में भी वर्षा होते देखी जाती है | इन तिथियों में चंद्रमा यदि यदि समुद्र के जल को आकर्षित कर सकता है तो कई बार इन्हीं तिथियों में बादलों से झरने वाली छोटी छोटी बूँदों को चंद्रमा अपनी ओर आकर्षित क्यों नहीं कर सकता है | 

    समय की समझ के अभाव में ऐसी बहुत सारी घटनाएँ एक दूसरे से जोड़कर देखी जाने लगी हैं | यदि ये कहा जाने लगे कि कमलों के खिलने पर सूर्य उगता है तो इसे किस आधार पर गलत मान लिया जाएगा | 

     इसीसमय अचानक तेजी से लोग रोगी होने लगे |ऐसा होने का कारण कुछ लोगों ने महामारी को माना तो कुछ दूसरे वर्ग ने लोगों के रोगी होने का कारण प्रतिरोधक क्षमता की कमी को माना | इससे शंका हुई कि लोगों के रोगी होने का कारण महामारी का वेग था या लोगों में प्रतिरोधक क्षमता की कमी | समय की समझ के अभाव में ये पता ही नहीं लगाया जा सका कि ये महामारी है या प्रतिरोधक क्षमता की कमी | 

                                          प्रकृति के संगीत को समझने की आवश्यकता !

   जिसप्रकार से कोई तबला बादक गीत की लय के अनुसार भिन्न भिन्न प्रकार से अलग अलग स्थानों पर अलग अलग प्रकार से थापें मारता है | कहीं अँगुली कहीं अँगूठा तो कहीं हथेली से कहीं तेज कहीं धीमी थाप मारता है | इसमें एक रूपता न होती है और न ही हो सकती है |इसलिए तबले पर अगली थाप कहाँ कैसे लगेगी! इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए  गीत और उसकी लय समझनी होगी जिसके साथ तबला बजाया जा रहा होता है |  

     इसलिए इतने बार तबले पर अँगुली अँगूठा या हथेली तेज या धीमे मारी जा चुकी है | इसका मतलब इसका यही क्रम होता होगा | आगे भी ऐसा ही होता रहेगा| ऐसी निराधार कल्पना करके उसी के आधार पर  कुछ भविष्यवाणियाँ  कर दी जाएँ कि तबलावादक अगली बार कहाँ कैसी थाप मारेगा तो ये भविष्यवाणियाँ सही नहीं निकलेंगी|ऐसी भविष्यवाणियाँ यदि गलत निकल जाएँ तो ये गलती आधार विहीन काल्पनिक भविष्यवाणी करने वाले की है न कि तबलावादन का जलवायुपरिवर्तन  है |     

     जिस प्रकार से  गीत की लय को समझे बिना केवल तबलावादक  के द्वारा तबले पर मारी जा रही थापों  के आधार पर  तबलावादक अगली बार कहाँ कैसी थाप मारेगा |इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है | उसी प्रकार से प्रकृति का भी अपना एक संगीत है |इसमें समय का संचार ही गीत है| विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ ही थापें हैं| जिसप्रकार से तबले की थापें समझने के लिए गीत के लय उतार चढ़ाव आदि को समझना आवश्यक है | उसी प्रकार से भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों आदि को समझने एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए समय के संचार को समझना आवश्यक है | जिस प्रकार से तबले की थापों को समझने के लिए संगीतज्ञ होना आवश्यक है | उसीप्रकार से प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए समय वैज्ञानिक होना आवश्यक है | जिस प्रकार से तबले पर पड़ रही थापों को देखकर उनके आधार पर इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता कि अगली थाप कहाँ कैसी पड़ेगी | इसीप्रकार से केवल प्राकृतिक घटनाओं को देखकर उन्हीं के आधार पर कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | महामारी संक्रमितों को देखकर उनके आधार पर महामारी के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सकता है | 

   जिसप्रकार से तबले पर पड़ रही थापों को देखकर ये नहीं कहा जा सकता कि इसके बाद वाली थापें भी इसी प्रकार की इन्हीं स्थानों पर लगेंगी|ऐसे ही प्राकृतिक  घटनाओं के विषय में ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता है कि ये घटनाएँ अभी जैसी घटित हो रही हैं | वैसी ही आगे भी घटित होती रहेंगी | इसके आधार पर कोई भविष्यवाणी कर दी जाए | यदि वो सच न निकले तो इसके लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार मान लिया जाए | ये ठीक नहीं है | 

                                                       समय और प्रकृति 

   समय हमेशा बदलता रहता है |समय के साथ साथ संपूर्ण ब्रह्मांड में बदलाव होते रहते हैं | समय के अनुसार प्रकृति और जीवन में बदलाव होते हैं |समय बदलने के साथ प्रकृति भी बदलते दिखाई पड़ती है|

     समय जब जैसा बदलता है | उस समय प्रकृति भी उसीप्रकार का स्वरूप धारण करने लगती है| शिशिर का अर्थ होता है ठंडा और ऋतु का अर्थ होता है समय !शिशिरऋतु का अर्थ होता है ठंडासमय | शिशिरऋतु में सूर्य की किरणें मंद पड़ने लगती हैं| तापमान काफी गिर जाता है|कोहरा पाला आदि आकाश को ढक लेते हैं|लोग सर्दी से काँपने लगते हैं |इस प्रकार से शिशिरऋतु के नाम के अनुसार ही संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण बनता चला जाता है |  प्रकृति भी समय के अनुरूप व्यवहार करने लगती है |इससे यह  प्रमाणित होता है कि प्रकृति में हो रहे सभी बदलावों (घटनाओं) का कारण समयका प्रभाव ही है |

     ग्रीष्म शब्द का अर्थ होता है उष्ण (गरम) ऋतु का अर्थ है समय ! ग्रीष्मऋतु का अर्थ होता है उष्ण अर्थात गरम समय ! ग्रीष्मऋतु के प्रभाव से तापमान काफी बढ़ जाता है |हवाएँ भी गरम चलने लगती हैं| ग्रीष्मऋतु में हवाओं के गरम होने से उनकी गति बढ़ जाती है |इसीलिए  आँधी तूफ़ान आने की घटनाएँ अधिक घटित होने लग जाती हैं | नदियों तालाबों आदि का पानी सूख जाता है | गरमऋतु के प्रभाव से संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण होने से ये विश्वास होता है कि समय के अनुरूप प्रकृति भी अपना स्वरूप बदलने लगती है | 

    ऐसे ही वर्षाऋतु का अर्थ है बारिश का समय ! इसीलिए वर्षाऋतु के प्रभाव से आकाश में  बादलों का आना जाना प्रारंभ हो जाता है| बादलों की काली काली घटाएँ घिरने लग जाती हैं| बादल बरसने लगते हैं | उससे नदियाँ तालाब आदि भर जाते हैं | बाढ़ आने लगती है |तापमान कम होने लगता है| वर्षाऋतु में तरह तरह के रोग पैदा होने लगते हैं | ऐसा प्राकृतिक वातावरण तब बना जब प्रकृति पर वर्षाऋतु  के समय का प्रभाव पड़ा तो संपूर्ण प्रकृति उसी प्रकार का स्वरूप धारण करती चली गई | 

      इसप्रकार से समय के प्रभाव से प्रकृति में परिवर्तन होते हैं ये प्रमाणित हो जाता है | इसलिए प्रकृति में घटित होने वाली उन सभी घटनाओं के लिए समय को जिम्मेदार माना जाना चाहिए | जिनके घटित होने में मनुष्यकृत प्रयत्न सम्मिलित न हों | 

     जिसप्रकार की घटनाएँ जब घटित होती दिखाई दें तब उस प्रकार का समय चल रहा होगा ऐसा विश्वास किया जाना चाहिए | कब किस प्रकार का समय चल रहा है |  यह पता लगाने के लिए दो ही मार्ग हैं या तो गणितविज्ञान के द्वारा अच्छे  बुरे समय की पहचान की जाए या फिर अच्छी बुरी प्राकृतिक घटनाओं को देखकर अच्छे बुरे समय की पहचान की जाए | इसमें गणितविज्ञान के द्वारा समय संबंधी जो  जानकारी मिलती है | उसके आधार पर अच्छे बुरे समय के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता  है | अच्छे बुरे समय के विषय में पूर्वानुमान लगते ही समय के प्रभाव से घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के विषय में भी सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान  लगाना संभव हो पाएगा | 

    वात पित्त और कफ के असंतुलित होते ही प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित होने लगती हैं यदि यह असंतुलन शरीर में बन जाए तो शरीर रोगी होने लगते हैं | वर्षाऋतु ही वात है ,ग्रीष्मऋतु  ही पित्त है और शिशिरऋतु  ही कफ है |ये ऋतुएँ  समय स्वरूपा हैं | समय को समझने के लिए गणित ही सर्वोत्तम विकल्प है |गणित के द्वारा ही भविष्य के अच्छे बुरे समय के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए | उसी के अनुसार प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |  

     जिसप्रकार से ऋतुओं के आने जाने का समय निश्चित है| अमावस्या पूर्णिमा का समय  निश्चित है|सूर्यादि ग्रहों के उदय और अस्त होने का समय निश्चित है| प्राकृतिक घटनाएँ अपनी अपनी ऋतुओं में घटित होती हैं उनका भी अपना अपना समय निश्चित है|इसीप्रकार से भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों आदि के भी आने जाने का समय  भी निश्चित होता है|जिस घटना के घटित होने का जब समय आता है तब वो घटना घटित हो जाती है |अंतर इतना है कि ऋतुओं तथा अमावस्या पूर्णिमा आदि तिथियों एवं ग्रहों के उदय अस्त होने के समय को गणितविज्ञान के द्वारा अनुसंधानपूर्वक खोज लिया गया है | इसलिए इनके विषय में आगे  से आगे  पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |सूर्य चंद्र ग्रहणों  के  विषय में भी सैकड़ों  वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | 

   भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों आदि से संबंधित समय की पहचान आदिकाल में ही कर ली गई थी |उस युग में ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा भी लिए जाते थे | वर्तमान समय में ऐसी घटनाओं के विषय में समय आधारित अनुसंधानों की परंपरा ही विलुप्त होती जा रही है | इसी कारण प्रकृति एवं जीवन से संबंधित घटनाएँ अचानक घटित होते दिखाई दे रही हैं |आवश्यकता ऐसी घटनाओं के घटित होने के निश्चित समय को खोजे जाने की है न कि इनके घटित होने के लिए किसी जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराने की है | 

                                         प्रकृति पर समय के प्रभाव की पहिचान !       

      कोरोनामहामारी के समय भी ऐसा ही होते देखा गया था | कोरोनामहामारी से संक्रमितों की संख्या कभी बहुत अधिक बढ़ जाती थी और कभी बहुत कम हो जाती थी | ऐसा लगता था कि कोरोना अब समाप्त हो गया | कुछ महीनों बाद संक्रमितों की संख्या फिर बढ़ने लग जाती थी | ऐसे ही कुछ दिनों में संक्रमण का बहुत अधिक बढ़ जाना और कुछ दिनों में बहुत कम होने लगते देखा जाता था |अचानक बढ़ने घटने या महामारी के समाप्त होने का क्या कारण है |

    महामारीसंक्रमण बढ़ने के लिए कोविड  नियमों के न पालन को जिम्मेदार ठहराया जाता था,किंतु कोविड  नियमों का पालन तो महामारी आने के पहले भी नहीं किया जाता था | ऐसा भी नहीं है कि कोविड नियमों का पालन करने ही महामारी को समाप्त किया जा सका हो | उसके बाद कोविड नियमों का पालन लगातार किया जा रहा हो |इसलिए महामारी जनित संक्रमण उसके बाद न बढ़ पा रहा हो |  

   ऐसे ही हेमंत और शिशिरऋतु में कुछ क्षेत्रों में वायु प्रदूषण कुछ दिन अधिक बढ़ता है | इसके बाद कुछ दिन तक सामान्य रहता है | कुछ दिन फिर काफी अधिक बढ़ जाता है | उसके बाद  फिर सामान्य हो जाता है | इसके बार बार घटने बढ़ने का कारण क्या हो सकता है | 

     चीन या ईरान जैसे जिन देशों में दिवाली नहीं मनाई जाती है| उन देशों में भी उन्हीं दिनों में वायुप्रदूषण बढ़ता है | दिवाली के कुछ दिन होते हैं | वह वर्ष में एक बार आती है | पराली कुछ समय जलाई जाती है | वायुप्रदूषण तो उसके बाद भी बढ़ता है| जिससमय ऐसी घटनाएँ नहीं घटित होती हैं | इसलिए वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण यदि दिवाली या पराली होती तो उसके बाद वायु प्रदूषण नहीं बढ़ना चाहिए,किंतु उसके बाद भी बढ़ता है | बढ़ता तो अन्य ऋतुओं में भी है |उद्योग ,वाहन और निर्माण कार्य तो बारहों महीने चलते हैं |वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण यदि ये होते तो हर ऋतु में एक जैसा बढ़ा रहना चाहिए था | ईंटभट्ठे वर्षाऋतु को छोड़कर आठ महीने चलते हैं | वायु प्रदूषण  बढ़ने का कारण यदि उन्हें माना जाए तो सर्दी और गर्मी के पूरे समय में एक जैसा वायुप्रदूषण बढ़ा रहना चाहिए | वायु प्रदूषण के कुछ दिनों में अधिक बढ़ने और कुछ दिनों में सामान्य रहने का कारण क्या है |  कुछ दिनों में वायुप्रदूषण बहुत अधिक बढ़ा रहता है | कुछ दिन सामान्य रहता है | उसके बाद फिर बढ़ जाता है |सर्दी के अतिरिक्त कुछ अन्य ऋतुओं में भी इन्हीं कुछ दिनों में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है | वो सर्दी की ऋतु के जितना भले न बढ़ता हो लेकिन उन कुछ दिनों में भी बढ़ तो अवश्य जाता है |विशेष बात यह है कि उन कुछ दिनों में बढ़ता है  तो  सभी जगह बढ़ता है | 

   शिशिर ग्रीष्म एवं वर्षा आदि ऋतुएँ सर्दी गर्मी एवं वर्षा होने के लिए जानी जाती है| इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि शिशिर आदि ऋतुओं में उनका प्रभाव एक जैसा नहीं दिखाई पड़ता है |ऋतुओं के प्रभाव का समय और स्तर घटता बढ़ता रहता है | 

    ऋतुओं के शुरू और समाप्त होने का समय निश्चित है | इसलिए ऋतुओं का प्रभाव भी ऋतुओं के के साथ ही शुरू और समाप्त हो जाना चाहिए,किंतु ऐसा कभी कभी ही होता है | कभी कभी ऋतुओं  का समय शुरू होने के पहले से ही ऋतुओं के समाप्त होने के बाद तक ऋतु प्रभाव चलते देखा जाता है | ऐसे ही कई बार ऋतुएँ शुरू होने के काफी बाद में ऋतुप्रभाव प्रारंभ होता है और ऋतुओं के समाप्त होने से पहले ही ऋतु  प्रभाव समाप्त हो जाता है | इस प्रकार से अपनी अपनी ऋतुओं में भी कभी कभी निर्धारित समय से कम या अधिक समय तक सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का प्रभाव रहते देखा जाता है |

     कई बार ऋतुओं के लिए निर्धारित समय में ही ऋतुओं का प्रभाव काफी अधिक बढ़  या घट जाता है | कभी सर्दी बहुत अधिक पड़ती है तो कभी बहुत कम पड़ती है |ऐसे ही गर्मी  वर्षा  आदि का भी प्रभाव काफी अधिक बढ़ते या घटते देखा जाता है | 

    कई बार ऋतुओं का प्रभाव कुछ दिन बहुत अधिक बढ़ जाता है फिर सामान्य हो जाता है| उसके बाद कुछ दिनों के लिए ऋतुप्रभाव फिर बहुत अधिक बढ़ जाता है |उसके बाद फिर कम हो जाता है |एक एक ऋतु  में ऐसा कई कई बार होते देखा जाता है |  शिशिर (सर्दी) ऋतु में सर्दी कुछ दिन बहुत अधिक बढ़ती है | कुछ दिन सामान्य होती है | कुछ दिन फिर बढ़ जाती है | कुछ दिन फिर सामान्य रहती है | ऐसे ही ग्रीष्मऋतु में गर्मी के प्रभाव में उतार चढ़ाव होते देखा जाता है |वर्षा ऋतु में वर्षा भी किसी दिन बहुत अधिक होती है | किसी दिन बिल्कुल नहीं होती | किसी दिन सामान्य होती है और किसी दिन फिर बहुत अधिक होती है | 

         इसमें विशेष बात ये है कि ऋतुओं में ऋतु कम प्रभाव हो ये तो ठीक है |कुछ दिन बहुत अधिक ऋतुप्रभाव रहने एवं कुछ दिन सामान्य रहने तथा फिर कुछ दिन बहुत अधिक रहने का कारण क्या हो सकता है |  

     विशेष बात ये है कि जिस प्रकार से वर्ष के कुछ महीनों में सर्दी अधिक होने का कारण शिशिर ऋतु अर्थात समय है | उसी प्रकार से शिशिर ऋतु में कुछ दिन सर्दी बहुत अधिक बढ़ने का कारण भी समय ही है | ऐसे ही सर्दी बढ़ाने वाला यह समय ग्रीष्म(गर्मी)की  ऋतु में भी आता है | उस दिन या  तो वर्षा हो जाती है या कुछ अन्य कारणों से या बिना किसी कारण केवल समय के प्रभाव से इन दिनों में अन्य दिनों की अपेक्षा तापमान कम हो जाता है | 

    ऐसा ही वर्ष के कुछ महीनों में गर्मी अधिक होने का कारण ग्रीष्म(गर्मी)ऋतु अर्थात समय का प्रभाव है |ग्रीष्म(गर्मी)ऋतु के कुछ दिनों में गर्मी विशेष अधिक बढ़ जाने का कारण भी समय का ही प्रभाव है| यही कुछ दिन जब सर्दी की ऋतु में आते हैं | सर्दी के भी उन दिनों में तापमान अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ बढ़ा रहता है | 

     ऐसे ही वर्षा के कुछ महीनों में वर्षा अधिक होती है | इसका कारण वर्षाऋतु  अर्थात समय है | वर्षा ऋतु के महीनों में ही कुछ दिनों में वर्षा  बहुत अधिक होती है | यही कुछ दिन जब दूसरी ऋतुओं में आते हैं उनमें भी कुछ वर्षा होते देखी जाती है | 

     कुछ दिनों में सर्दी के अधिक बढ़ने का कारण क्या हो सकता है | सर्दी अधिक बढ़ने का महीनों और दिनों से क्या संबंध है |उन महीनों और दिनों में ऐसा विशेष क्या होता है | महीनों के लिए तो सूर्य के परिभ्रमण को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है किंतु सर्दी की ऋतु के कुछ दिनों में सर्दी अधिक होने फिर कम हो जाने और फिर अधिक हो जाने का कारण क्या है |उन कुछ दिनों में जब सर्दी अधिक बढ़ती है | ऐसी स्थिति में सर्दी बढ़ने का उन कुछ दिनों से क्या संबंध है |  

   कुछ दिनों में ऐसी घटनाएँ बहुत अधिक घटित होती हैं,फिर कुछ दिन तक सामान्य रहती हैं | उसके बाद कुछ दिनों तक फिर बहुत अधिक तापमान बढ़ जाता है |

     कोरोना महामारी एक बार आई उसी समय जितना बढ़ना होता बढ़ जाती फिर शांत हो जाती तो समाप्त हो जाती !किंतु महामारी संबंधी लहरों के आने और जाने का कारण क्या रहा होगा | एक बार महामारी बहुत अधिक बढ़ गई फिर घटी कैसे और यदि घट ही गई तो दुबारा बढ़ने का कारण क्या रहा होगा | इस घटना की पुनरावृत्ति बार बार होती रही !कुछ महीने शांत रहने के बाद फिर कुछ दिनों के लिए कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण क्या रहा होगा |इसके बाद कोरोना महामारी के समाप्त होने का क्या कारण रहा होगा | 

     कुछ निश्चित दिनों में वर्षा बाढ़ के अधिक दृश्य देखे जाते हैं | ऐसी वर्षा सर्दी गर्मी एवं वायु प्रदूषण बढ़ने जैसी प्राकृतिक घटनाएँ एक साथ अनेकों देशों में घटित होते देखी जाती हैं | 

   कई बार ग्रीष्मऋतु के अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं के भी कुछ दिनों में आँधी तूफ़ान आते हैं | ऐसे ही ग्रीष्मऋतु के अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं में भी उन ऋतुओं के अपने स्वभाव की अपेक्षा तापमान बढ़ जाता है|

     इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि वर्षाऋतु का समय आने पर भी कुछ दिनों में वर्षा अधिक होती है | इसके अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं का समय आने पर भी कुछ दिनों में वर्षा होती है | अंतर इतना होता है कि वर्षा ऋतु में अन्य ऋतुओं  की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है |

    इसीप्रकार से कोरोना जैसी महामारियों के विषय में कहा जाता है कि ऐसी महामारियाँ लगभग एक सौ वर्ष के अंतराल में एक बार आती हैं | ऐसी घटना पिछले कुछ सदियों से घटित हो रही है | सौ वर्ष के निश्चित अंतराल में ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या है | 

    विशेष बात यह है कि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने में अंतराल चाहें वर्षों का हो या महीनों का या दिनों का किंतु एक निश्चित अंतराल में ऐसी घटनाओं के घटित होने से ऐसा तो लगता है कि इन घटनाओं के घटित होने का कारण समय ही है | 

                                                                     ऋतुध्वंस का ही मतलब है  जलवायुपरिवर्तन !

      जल और वायु भी तो पंचतत्वों में ही सम्मिलित हैं| परिवर्तन होगा तो पाँचोंतत्वों में एक साथ होगा !किसी एक तत्व में परिवर्तन शुरू होते ही दूसरे तत्व भी उससे प्रभावित होने लगते हैं|किसी गाड़ी के चार पहियों में से कोई एक पहिया भी यदि खाँचे में चला जाए तो शेष तीनों पहियों की भी गति बाधित हो जाती है |ऐसी स्थिति में यह कैसे संभव है कि जलवायु परिवर्तन हो किंतु बाक़ी तीन तत्वों में कोई परिवर्तन ही न हो |  तापमान बढ़ने के बाद सर्दी को कम करना नहीं पड़ता है अपितु सर्दी स्वतः कम हो जाती है|

      हमारे कहने का अभिप्राय जलवायुपरिवर्तन का मतलब केवल जल और वायु तत्व में ही परिवर्तन न होकर प्रत्युत पाँचों तत्वों में होने वाला परिवर्तन है | अचानक तापमान बढ़ने लगे या सर्दी अधिक बढ़ने लगे, बार बार  तूफ़ान आने लगें ! हिंसक महामारी आ जाए !लीक से हटकर घटित होने वाली  ऐसी सभी घटनाओं के घटित होने के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार माना जाता है ,किंतु ऐसा कैसे हो सकता है | तापमान बढ़ने का कारण जल और वायु में होने वाले परिवर्तन न होकर प्रत्युत अग्नि तत्व में होने वाला परिवर्तन है | भूकंप जैसी घटनाएँ पृथ्वी अग्नि एवं वायुतत्व  के संयोग से  घटित होती हैं |तूफ़ान जैसी घटनाएँ अग्नि एवं वायु के संयोग से घटित होती हैं | इसलिए सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के लिए केवल जलवायुपरिवर्तन को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया  जा सकता है |  

    चिकित्साशास्त्र में भी प्रकृति एवं जीवन को प्रभावित करने वाले जिन वातपित्तकफ के असंतुलन चर्चा की जाती है वह भी जलवायुपरिवर्तन ही तो है | उसमें अग्नि तत्व को भी सम्मिलित किया गया है जिसके बिना  केवल जलवायुपरिवर्तन प्रकृति एवं जीवन को प्रभावित करने में सक्षम नहीं है |वातपित्तकफ के असंतुलन से संपूर्ण प्रकृति एवं जीवन पर बिपरीत प्रभाव पड़ता है | त्रितत्वों के वैषम्य से संपूर्ण प्रकृति प्रभावित होती है | खाने पीने की चीजें प्रभावित होती हैं |उन्हें खाने पीने से स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है |ऐसी हवा में साँस लेने से  रोग पैदा होते हैं 

   वर्षा आदि होने न होने तथा कम या अधिक होने का कारण केवल जलवायुपरिवर्तन ही नहीं अपितु पंचतत्वों का वैषम्य होता है |ऐसी बिषमता का कारण समय में होने वाले परिवर्तन होते हैं | समय के संचार में होने वाले परिवर्तनों को  समझे बिना पंचतत्वों के वैषम्य को समझना या इनके विषय में अनुमान  पूर्वानुमान आदि लगाना कठिन होता है |इसके बिना भूकंप आँधी तूफ़ान आदि किसी भी प्राकृतिक घटना को समझना केवल  कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है | 

    विभिन्न प्राकृतिकघटनाओं के लिए केवल जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा देने मात्र से अनुसंधानों का उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता है |लक्ष्य तो प्राकृतिक आपदाओं के कारणों एवं उनके समाधानों को खोजना होता है | ऐसी घटनाएँ यदि जलवायुपरिवर्तन के कारण घटित होती हैं,तो जलवायुपरिवर्तन होने का कारण खोजना होगा | उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाना होता है |तभी ऐसे अनुसंधानों से लक्ष्य साधन हो सकता है | 

      पंचतत्वों के संतुलन से ही जीवधारियों के रहने लायक वातावरण का निर्माण हो पाता है | समस्त जीवधारियों को इसीप्रकार के वातावरण में रहने की आदत सी पड़ी हुई है | इस वातावरण  में जितना परिवर्तन होता है उतना ही जीवन के लिए असहनीय होता जाता है|  जिसे  सहने का जीवन को अभ्यास ही नहीं है |इसीलिए रोग महारोग  आदि पैदा होने लगते हैं | ऐसे समय मनुष्यों से लेकर पशु पक्षियों समेत समस्त जीवधारियों में बेचैनी  घबड़ाहट आदि बढ़ने लगती है |

      ऐसी  बेचैनी  घबड़ाहट आदि बढ़ने  के लिए वो अपने खान पान रहन सहन आहार बिहार आदि को जिम्मेदार मान लेते हैं| कुछ लोग अपने सुख साधनों का सहारा लेकर मन की ऐसी बेचैनी घटाने का प्रयत्न करते हैं |कुछ लोग इसके लिए मनोरंजक साधनों का सहारा लेते हैं | इसीलिए हास्यकविसम्मेलनों ने कोरोना महामारी आने से पहले काफी जोर पकड़ा था | ऐसी बातों से मनुष्यों का ध्यान दूसरी ओर भटक जाता है !जिससे उन्हें प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव नहीं हो पाता है | इसी बेचैनी को न सह पाने के कारण अपराध उन्माद हिंसात्मकप्रवृत्ति आंदोलन भावना आदि दिनों दिन बढ़ते जा रहे होते हैं |

     इसलिए जलवायु परिवर्तन का मतलब केवल उतना ही नहीं होता है,प्रत्युत जलवायु परिवर्तन  का मतलब प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के पैदा होने का पूर्व संकेत होता है |

                                     समय के अनुसार चलती हैं हवाएँ और बनता है वातावरण !   

      प्राचीन काल में मनुष्यों  ने वर्षों ऋतुओं महीनों पक्षों दिनों के रूप में समय की कल्पना की होगी । ऐसे ही  सूर्य की विभिन्न अवस्थाओं के आधार पर प्रात: दोपहर संध्या एवं रात्रि की कल्पना की गई है। वस्तुतः ये समय का स्थूल और प्रत्यक्ष स्वरूप है | इसलिए ऋतुओं तथा प्रात: दोपहर संध्या  रात्रि आदि शुरू और समाप्त होते प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है |ऐसे ही समय का परोक्ष स्वरूप भी होता है | जिसे प्रत्यक्ष नेत्रों से देखा जाना संभव नहीं होता है ,फिर भी वो प्रकृति और जीवन दोनों को ही प्रभावित करता है | 
     जिसप्रकार से तूफ़ान आने पर हवाएँ अत्यंत तेज चलने के कारण अपने साथ बड़े बड़े पेड़ छप्पर आदि उड़ाकर ले जा रही होती हैं|बड़े बड़े घर गिराती  जा रही होती हैं | हर कोई कह रहा होता है कि तूफ़ान बहुत तेज है | इतनी तेज चलने वाली शक्तिशाली हवाएँ भी प्रत्यक्ष रूप से किसी को दिखाई नहीं पड़ती हैं|इसलिए उन  हवाओं के साथ उड़ रहे धूल तिनके पत्ते वस्त्र आदि वस्तुओं को देखकर ही हवाओं के तेज चलने का अनुमान लगाना पड़ता है |इन उड़ने वाली वस्तुओं  का हवाओं से केवल इतना ही संबंध होता है कि उन्हें हवाओं के द्वारा उड़ाया जा रहा होता है |इसमें विशेष बात यह भी है कि हवाएँ अपनी धुन में उड़ती जा रही होती हैं उड़ने वाली चीजें उनके साथ उड़ती जा रही होती हैं |
     इसीप्रकार से शक्तिशाली समय प्रत्यक्षरूप से दिखाई भले न पड़ता हो किंतु उस समय के साथ जो घटनाएँ घटित हो रही होती हैं |उन्हें देखकर अच्छे बुरे समय की पहचान कर ली जाती है|यदि अच्छी अच्छी घटनाएँ घटित हो रही होती हैं तो अच्छा समय चल रहा होता है और यदि  मनुष्यों को पीड़ित करने वाली बुरी घटनाएँ या प्राकृतिक आपदाएँ घटित हो रही होती हैं | वह बुरे समय का प्रवाह होता है| इस प्रकार से अच्छे बुरे  समय के अनुसार घटित होने वाली घटनाओं को देखकर अच्छे या बुरे समय की पहचान कर ली जाती है| बुरे समय में भूकंप आँधी तूफानों बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी घटनाओं के घटित होने की कल्पना कर ली जाती है| समय के अनुसार ही ऐसी घटनाओं के घटित होने के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | 
     कुल मिलाकर प्राकृतिक वातावरण जब बिगड़ने लगता है तो उसका प्रभाव समस्त पेड़ों पौधों बनस्पतियों तथा किसानों के द्वारा की जाने वाली फसलों में कुछ छोटे छोटे ऐसे बदलाव होने लगते हैं |जिन्हें वही लोग पहचान पाते हैं जो उसी वातावरण में रहकर इसका निरंतर अनुभव किया करते हैं |  
     ऐसे प्राकृतिक परिवर्तनों का प्रभाव मनुष्य समेत समस्त जीवों के स्वास्थ्य और स्वभाव पर पड़ता है |जिससे सभी जीव जंतुओं के शरीरों में स्वास्थ्य संबंधी बिकार पैदा होने लगते हैं और मानसिक बेचैनी बढ़ने लगती है| 
    बुरे समय के प्रभाव से लोगों के स्वास्थ्य बिगड़ते हैं| उनके मन परेशान होते हैं | इसके लिए मनुष्य अपने अनियमित आहार बिहार सोने जागने आदि को जिम्मेदार मान लेते  हैं|ऐसे समय उन्हें जो मानसिक बेचैनी होती है |इसके लिए वे अपनी उन परिस्थितियों को जिम्मेदार  मान लेते हैं| जो प्रायः प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में स्वस्थ अस्वस्थ लाभ हानि एवं लोगों के अच्छे बुरे व्यवहार के कारण प्रतिदिन घटित होती रहती हैं |
    मनुष्य चिकित्सा आदि का लाभ लेकर अपनी सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान निकाल लिया करते हैं| मानसिक बेचैनी शांत करने के लिए मनोरंजनात्मक साधन अपना लेते हैं| कहीं भ्रमण पर निकल जाते हैं| अपने सुख देने वाले स्वजनों के साथ समय बिता लिया करते हैं | इन सबसे उन्हें प्राकृतिक परिवर्तनों का अधिक अनुभव नहीं हो पाता  है |
    समयपरिवर्तन संबंधी बदलाव प्राकृतिक वातावरण में सबसे पहले उभरते हैं|इनका अनुभव करने के लिए प्राकृतिक जीवन जीना आवश्यक होता है |प्राचीनकाल में ऋषियों मुनियों महात्माओं को बनों में रहकर तपस्या करते देखा जाता था | राजा लोग ऋषियों मुनियों महात्माओं का बहुत सम्मान किया करते थे |उनके दर्शन करने बनों में स्थित आश्रमों में आया करते थे |ऋषियों मुनियों के पहुँचने पर उनका बहुत स्वागत किया करते थे |
     इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि ऋषियों मुनियों में बहुत लोग गृहस्थ होते थे | उन्हें सुख सुविधापूर्ण जीवन जीने की आवश्यकता भी होती थी | उनके पत्नी बच्चों की भी वही आवश्यकताएँ होती थीं |जो आम गृहस्थ की होती हैं | वे चाहते तो राजालोग उन्हें राजधानियों में आवास देने में समर्थ भी थे | राजाओं ने न तो उनसे कभी राजधानियों में रहने के लिए कहा और न ही ऋषियों मुनियों ने राजधानियों में रहने की इच्छा जताई | तपस्या तो वे महानगरों में रहकर भी कर सकते थे किंतु समाजहित के उद्देश्य से प्राकृतिक वातावरण को समझने के लिए पत्नी बच्चों  के साथ जंगलों में कठिन जीवन जीते रहे | अच्छे बुरे समय के शुरुआती सूक्ष्मपरिवर्तनों का अनुभव प्राकृतिक जीवन जीकर ही किए जा सकते हैं |उन्हीं के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं महामारियों के आने से पहले उनके विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिए जाते थे |  
    प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव प्राकृतिक जीवन जीने वाले बनबासियों किसानों पशुचारकों तथा जीव जंतुओं को अधिक होता है | इसलिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से पहले ऐसे लोगों एवं जीवजंतुओं को ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वाभाष हो जाया करता है | भूकंपों महामारियों आदि के आने से पहले प्राकृतिक जीवन जीने वाले बनबासियों तथा जीव जंतुओं के स्वभाव व्यवहार आदि में कुछ अलग प्रकार के परिवर्तन होते देखे जाते हैं | 
     जंगलों गाँवों खेतों आदि में रहकर प्राकृतिक वातावरण का अनुभव करने वाले लोग तथा पशु पक्षी आदि प्राणी ऐसे परिवर्तनों का अनुभव आगे से आगे कर लिया करते हैं |प्राकृतिक वातावरण में रहकर तपस्या करने वाले ज्ञान विज्ञान से संपन्न ऋषि मुनि आदि प्रत्येक प्राकृतिक घटना को घटित होते देखते  हैं |ऐसे  प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव हमेंशा किया करते हैं |जिसके आधार पर उनके द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि सही निकला करते हैं | प्राकृतिक वातावरण में रहने  वाले पशु पक्षी आदि भी ऐसी घटनाओं का अनुमान आगे से आगे लगा लिया करते हैं |जिसके संकेत उनके स्वभाव व्यवहार आदि से मिला करते हैं | इन्हें समझकर ही महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 

   इसके अतिरिक्त प्राकृतिक वातावरण से दूर महानगरों के वातानुकूलित भवनों में बैठकर ऐसे प्राकृतिक विषयों पर कोई अनुसंधान किया जाना कैसे संभव है | किसी नदी तालाब आदि में उतरे बिना जैसे तैरना नहीं सीखा जा सकता है ,वैसे ही प्रकृति के बीच रहकर प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव किए बिना भूकंप आँधी तूफानों वर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं को समझना एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना असंभव है |  

                      

                                                


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इसे आधुनिक विज्ञान के पहले लगाना होगा 

जलवायु परिवर्तन और उसका समाधान !

        वर्तमान समय में जितनी भी बड़ी घटनाएँ अचानक घटित होती हैं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाता है | कई बार किसी घटना के विषय में लगाया हुआ पूर्वानुमान  गलत निकल जाता है | ऐसा होने का कारण पूर्वानुमान लगाने वाले विज्ञान एवं अनुसंधानों की कमजोरी है,जबकि इसका कारण  जलवायु परिवर्तन को बता दिया जाता है |जलवायु परिवर्तन  के कारण यदि पूर्वानुमान  नहीं लगाए जा सकते हैं या लगाए हुए पूर्वानुमान  गलत निकल सकते हैं तो तब तक ऐसे प्रयास ही क्यों करने जब तक इसके लिए विज्ञान एवं जिम्मेदार अनुसंधानों की व्यवस्था नहीं हो जाती है | प्राकृतिक विषयों पूर्वानुमान लगाने के लिए विश्वसनीय वैज्ञानिक विकल्प खोजे जाने की आवश्यकता है | 

    किसी मनोरोगी को चिकित्सक ने नींद की यदि एक गोली खाने की सलाह दी है किंतु रोगी यदि छै गोलियाँ खा लेता है तो उसके दुष्प्रभाव  भी होंने लगते हैं |जिनका समाधान चिकित्सकों  को तुरंत खोजना पड़ता है | केवल यह कह देने मात्र  से बात नहीं बन जाती है कि उसने नींद की छै गोलियाँ खा ली थीं इसलिए नींद आ रही है | 

      विशेष बात यह भी है कि यदि ऋतुप्रभाव में इतना बड़ा बदलाव हो ही रहा है कि  जलवायुपरिवर्तन जैसी घटना घटित होते देखी जा रही है तो केवल यह कह देना ही पर्याप्त नहीं है कि जलवायुपरिवर्तन  हो रहा है | पहले की अपेक्षा तापमान यदि अचानक बढ़ने या घटने लगे तो ऐसा होने का कारण भले  जलवायुपरिवर्तन  ही क्यों न हो किंतु इसके कुछ परिणाम भी तो होंगे जिनका अध्ययन किया जाना आवश्यक है |जलवायुपरिवर्तन  क्यों हो रहा है | इसके दुष्प्रभाव क्या होंगे !प्राकृतिक घटनाओं एवं मनुष्यों के स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा | इसपर भी अनुसंधान होना चाहिए | जिससे यह पता लगाया जा सके कि महामारी जैसी घटनाओं के पैदा होने का कारण कहीं जलवायुपरिवर्तन  का होना ही तो नहीं है | इसके भविष्य में पड़ने वाले अच्छे बुरे प्रभावों का भी सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना पड़ेगा |

       कई बार सुनने को मिलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद सूखा पड़ेगा, आँधी तूफ़ान भूकंप महामारी आदि घटनाएँ बार बार घटित होंगी |तापमान बढ़ जाएगा ,ग्लेशियर पिघल जाएँगे  तो ऐसी भविष्य संबंधी बातें तब विश्वास करने योग्य होंगी जब पूर्वानुमान विज्ञान के द्वारा मानसून आने जाने की सही तारीखों का पता लगाया जाना संभव होगा |  मौसमसंबंधी दीर्घावधि मध्यावधि  पूर्वानुमान पता लगाए जा  सकेंगे |

      जिस अनुसंधान प्रक्रिया के द्वारा विगत बीस वर्षों में किसी बड़ी प्राकृतिक घटना या महामारी का पूर्वानुमान  नहीं लगाया जा सका है | उस प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा  यह कैसे कहा  जा सकता है कि  जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद कैसा कैसा प्राकृतिक वातावरण बनेगा | 

     प्रकृति में यदि इतने बड़े बड़े बदलाव होंगे तो उस परिस्थिति में मनुष्यादि समस्त प्राणियों का जीवन कितना सुरक्षित होगा | उस प्रकार का वातावरण क्या जीवों के सहने लायक होगा | उस प्रकार के दुष्प्रभाव क्या सौ दो सौ वर्ष बाद एक साथ ही दिखाई देंगे या धीरे धीरे क्रमशः होते देखे  जाएँगे |

   उसप्रकार का डरावना वातावरण बनने के दुष्प्रभाव क्या मनुष्य जीवन पर भी पडेंगे | उससे रोग महारोग जैसी घटनाएँ भी क्या घटित होंगी | उनसे सुरक्षा के लिए अभी से क्या सतर्कता बरती जानी चाहिए | यह भी पता लगाया जाना चाहिए |

  कुल मिलाकर हमें यदि जलवायु परिवर्तन होने की जानकारी अभी से पता लग गई है  ,जिसके परिणाम स्वरूप भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पता लगा ही लिया गया है तो उससे बचाव के लिए भी अभी से आवश्यक प्रयत्न शुरू कर दिए जाने चाहिए तभी इस जानकारी का सदुपयोग हो पाएगा |



                                        

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13-7-24

mahamari