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'मूर्ति','मस्जिद' और 'काबा'

               खुदा की मूर्ति नहीं तो मस्जिद की जिद क्यों ?     'मूर्ति','मस्जिद' और 'काबा' ये तीनों प्रत्यक्ष दिखाई देने वाली वस्तुएँ हैं यदि खुदा निराकार है तो इनकी आवश्यकता ही क्या है खुदा तो प्रत्येक स्थान पर है उसकी इबादत करने के लिए यदि खुदा की मूर्ति की जरूरत नहीं है तो खुदा की मस्जिद में जाकर नमाज करने एवं खुदा के घर काबा की ओर मुख करके नमाज करने की जरूरत ही क्या है |खुदा सभी जगह है तब तो कहीं भी और किसी ओर भी मुख करके नमाज की जा सकती है |खुदा सभी जगह है ऐसा मानकर यदि ट्रेनों प्लेनों पार्कों रोडों मैदानों आदि किसी भी जगह पर की गई नमाज खुदा को स्वीकार हो सकती है तो मस्जिद की आवश्यकता ही क्या है ?  "बंदे मातरम्" कहने में आपत्ति क्यों ?       नमाज करते समय जिस जमीन पर सिर झुकाया जा रहा होता है वह जमीन खुदा नहीं होती !जिन दीवारों की ओर मुख करके सिर झुकाया जा रहा होता है वे दीवारें खुदा नहीं होतीं, जिस 'काबा' की ओर मुख करके सिर झुकाया जा रहा होता है वो 'काबा' खुदा नहीं है | नमाज करते वक्त जिस जगह सिर  झुकाया जा रहा ह

आश्चर्य

                                         महामारी के बढ़ने के तीन प्रमुख कारण !     यदि सर्दी(शिशिर),गरमी(ग्रीष्म) एवं वर्षा आदि ऋतुएँ अपने अपने समय से आती और जाती रहें एवं संतुलित मात्रा में अपनाअपना प्रभाव छोड़ती रहें तो रोगों और महारोगों के पैदा होने की संभावना बहुत कम या न के बराबर होती है | इनका प्रभाव असंतुलित होते ही रोगों महारोगों(महामारियों) आदि के पैदा होने की संभावनाएँ बनने लगती हैं | इसकी वास्तविकता ठीक ठीक समझे बिना रोगों महारोगों(महामारियों) आदि के पैदा होने या संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाया जा सकता है |      सर्दी(शिशिर),गरमी(ग्रीष्म) एवं वर्षा आदि ऋतुएँ अपने अपने समय से आगे पीछे आती हैं इनका प्रभाव उचित मात्रा से बहुत कम या बहुत अधिक देखा जाता है | ऐसे असंतुलन संपूर्ण वायुमंडल में व्याप्त होता है उसी में सभी सॉंस लेते हैं |ऐसे असंतुलित वायुमंडल का दुष्प्रभाव संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण से लेकर मनुष्य समेत समस्त जीवों पर पड़ता देखा जाता है | इससे संपूर्ण वृक्षों बनस्पतियों शाक सब्जियों आदि समस्त खाद्य पदार्थों के