यदि सर्दी(शिशिर),गरमी(ग्रीष्म) एवं वर्षा आदि ऋतुएँ अपने अपने समय से आती
और जाती रहें एवं संतुलित मात्रा में अपनाअपना प्रभाव छोड़ती रहें तो
रोगों और महारोगों के पैदा होने की संभावना बहुत कम या न के बराबर होती है |
इनका प्रभाव असंतुलित होते ही रोगों महारोगों(महामारियों) आदि के पैदा
होने की संभावनाएँ बनने लगती हैं | इसकी वास्तविकता ठीक ठीक समझे बिना
रोगों महारोगों(महामारियों) आदि के पैदा होने या संक्रमितों की संख्या बढ़ने
घटने के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाया जा सकता है |
सर्दी(शिशिर),गरमी(ग्रीष्म) एवं वर्षा आदि ऋतुएँ अपने अपने समय से आगे
पीछे आती हैं इनका प्रभाव उचित मात्रा से बहुत कम या बहुत अधिक देखा जाता
है | ऐसे असंतुलन संपूर्ण वायुमंडल में व्याप्त होता है उसी में सभी सॉंस
लेते हैं |ऐसे असंतुलित वायुमंडल का दुष्प्रभाव संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण
से लेकर मनुष्य समेत समस्त जीवों पर पड़ता देखा जाता है | इससे संपूर्ण
वृक्षों बनस्पतियों शाक सब्जियों आदि समस्त खाद्य पदार्थों के स्वाभाविक
गुणों में अस्वाभाविक बदलाव होने लगते हैं | ऐसे परिवर्तनों का प्रभाव
शरीरों पर पड़ने से जहाँ एक ओर शरीर रोगी होने लगते हैं वहीं दूसरी ओर यही दुष्प्रभाव संपूर्ण
वृक्षों बनस्पतियों शाक सब्जियों एवं समस्त खाद्य पदार्थों पर भी पड़ता है |
जिन जड़ीबूटियों पदार्थों आदि से औषधियों का निर्माण होता है उन पर भी ऐसा ही दुष्प्रभाव पड़ता
है | इससे उनके स्वाभाविक गुणों में विकार आते हैं इनमें वे गुण उस प्रकार
के नहीं रह जाते हैं जिनके लिए वे हमेंशा से जाने जाते रहे हैं अपितु
उनके स्वाभाविक गुण असंतुलित होते देखे जाते हैं |
प्रकृति में इस प्रकार के अस्वाभाविक बदलावों से शरीरों की प्रतिरोधक क्षमता का तेजी से क्षय होने लगता है | इससे शरीर विभन्न प्रकार के रोगों से रोगी होने लगते हैं |
ऐसे
रोगों महारोगों से बचाव करने वाली या मुक्ति दिलाने वाली जो औषधियाँ या
औषधीय द्रव्य होते हैं यह प्रभाव उसी अनुपात में उन पर भी पड़ता है इसलिए
उनके भी स्वाभाविक गुणों में विकार आने लग जाते हैं | इसी कारण वे औषधियाँ एवं औषधीय द्रव्य उन रोगों महारोगों में प्रभाव कारी नहीं रह जाते हैं |
तीसरी बात प्रकृति के ऐसे विपरीत बदलाव का प्रभाव समस्त खाने पीने की
वस्तुओं पर पड़ता है जिस वायु में साँस ली जा रही होती है उस वायु पर भी
पड़ता ही है |इसलिए जो जो कुछ खाया पिया जा रहा होता है और जिस वायु में
साँस ली जा रही होती है वे सभी घटक विकारित होने के कारण शरीरों का
साथ उस प्रकार से न देकर अपितु रोगों को जन्म देने एवं बढ़ने में सहायक होने
लग जाते हैं |
रोगों
महारोगों (महामारियों )के पैदा होने का वास्तविक कारण यही प्राकृतिक
असंतुलन होता है जो शरीरों को रोगी करता है औषधियों के प्रभाव को कमजोर
करता है एवं खाने पीने की वस्तुओं को रोगकारक बनाता है | वायु को अहितकर
बनाता है |इससे मनुष्य रोगी होते हैं बचाव एवं स्वास्थ्य लाभ के लिए औषधियाँ निष्प्रभावी होती हैं | चिकित्सा के अभाव में रोग बढ़ते चले जाते हैं |
ऐसी महामारियों से बचाव के लिए इस प्रकार के ऋतुजनित प्राकृतिक असंतुलन
का अनुसंधान पूर्वक कारण खोजा जाना चाहिए उनके विषय में सटीक अनुमान
पूर्वानुमान आदि लगाया जाना चाहिए | प्रकृति एवं जीवन पर पड़ने वाले उसके
दुष्प्रभाव के स्तर का अनुसंधान पूर्वक पता लगाया जाना चाहिए | इसके
प्रभाव से होने वाले संभावित रोगों के विषय में खोज होनी चाहिए उसी के
आधार पर ऐसे रोगों से बचाव के उपाय औषधियाँ आदि खोजी जानी चाहिए |
सभी प्रकार से महामारी की भयावह परिस्थिति पैदा करने वाले ऐसे प्राकृतिक
असंतुलन को जलवायुपरिवर्तन मान कर ऐसे अनुसंधानों में ताला लगा देना ठीक
नहीं है | अक्सर ऐसा ही होते देखा जाता है कि ऐसे ऋतुविकारों को जलवायु
परिवर्तन मानकर उसके सौ दो सौ वर्ष बाद होने वाले काल्पनिक दुष्प्रभावों
को बताया जाने लगता है | यह ऋतु विकार जनित घटना महामारी जैसी इतनी बड़ी
समस्या को जन्म देने जा रही है इस पर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा होता है जबकि
महामारियों के वास्तविक अध्ययन अनुसंधान के लिए ऐसे प्राकृतिक असंतुलन के
विषय में गंभीरता पूर्वक अध्ययन अनुसंधान आदि किया जाना चाहिए| उससे
घटनाओं के विषय में जितना सही एवं अनुमान पूर्वानुमान आदि ऋतु विकारों
के विषय में लगाया जा सकेगा उतना ही महामारियों को समझना संभव होगा | इसके
बिना किसी अन्य प्रक्रिया से महामारियों को समझना संभव ही नहीं है |
महामारी के आगे बेबश सिद्ध हुई स्वास्थ्य सुरक्षा प्रणाली
कोरोना महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को बिल्कुल बेदम कर दिया
है|लोग भयभीत और असुरक्षित हैं, ये राष्ट्र की सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण और
गंभीर मामला है, क्योंकि महामारी के घातक हमले अब भी जारी हैं | भारत के
पाकिस्तान के साथ तीन बड़े युद्ध हुए और चीन के साथ एक. पिछले दो दशकों में
भारत पर कई घातक चरमपंथी हमले हुए जिनमें सैकड़ों देशवासियों की जानें गई
|अब तक हुए छोटे-बड़े सभी युद्धों और चरमपंथी हमलों को मिलाकर भी इतने लोग
नहीं मरे या अर्थव्यवस्था को इतनी क्षति नहीं पहुँची जितनी इस कोरोना
महामारी से हुई है | ये गंभीर बात है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी
महामारी के किसी भी पक्ष को अभी तक न ठीक ठीक समझा जा सका है और न ही इसके
विषय में कोई विश्वसनीय अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाए जा सके हैं | वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाए
भी गए वे गलत निकलते चले गए | सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि ऐसा
स्वास्थ्य सुरक्षा प्रबंधन किस काम का जो महामारी जैसे कठिन काल में जनता
के किसी काम न आ सका हो !इस समय जनता को ऐसे स्वास्थ्य सहायक प्रबंधनों की
सबसे अधिक आवश्यकता थी | जनता के धन से हमेंशा चलाए जाते रहने वाले
अनुसंधानों के द्वारा महामारी काल में प्राणों से खेल रही जनता को आखिर
क्या मदद पहुँचाई जा सकी |
जिस समय शत्रु किसी देश पर
हमला कर दे उस समय तैयारियों के अभाव में ऐसी असफलताओं की कीमत सैनिकों को जान देकर चुकानी पड़ती
है |
कोरोना महामारी से चल रहे भीषण संग्राम के समय तैयारियों के अभाव में कई
स्वास्थ्य सैनिकों के बहुमूल्य जीवन खोने पड़े हैं | मेरी जानकारी के अनुशार
उन चिकित्सा विशेषज्ञों के पास महामारी से अपनी सुरक्षा के कोई सुनिश्चित साधन नहीं थे इसके बाद भी वे प्राण प्रण से मानवता की सेवा में लगे रहे | बहुत स्वास्थ्यसैनिकों के के साथ ऐसी दुर्भाग्य
पूर्ण घटनाएँ घटित हुई हैं जनता में बहुतों ने अपनों को खोया है | बहुत घर
बर्बाद हुए हैं बहुत बच्चे अनाथ हुए हैं | माहामारी कालग्रास में समाए वे
सभी नागरिक इस समाज के विभिन्न रूपों में सहयोगी रहे हैं उनके जाने से जो
रिक्तता हुई है उसकी भरपाई संभव नहीं है |
इसलिए भारीमन से ही सही आत्ममंथन
पूर्वक आज अपनी कमजोरियाँ दूर करने का समय आ गया है ये अनुसंधान जनता की
जिन कठिनाइयों को कम करने याजो सुख सुविधाएँ प्रदान करने के लिए किए जाते
रहे हैं महामारी के कठिन काल में उनकी उपयोगिता कुछ तो सिद्ध होनी ही चाहिए
थी | ऐसे अनुसंधानों में उसी जनता का धन लगता है इसलिए उस जनता के प्रति
कुछ जवाबदेही अनुसंधानों की भी होनी ही चाहिए |वैज्ञानिक अनुसंधान जिस समस्या के समाधान के लिए या जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए किए करवाए जाते हैं उसमें सफल होने पर ही उनकी सार्थकता सिद्ध होती है |
मेरी जानकारी के अनुसार महामारी समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं के विषय में
अनुसंधान तो निरंतर चला ही करते हैं इसलिए बात वो उतनी महत्वपूर्ण नहीं है
,आवश्यक यह है कि महामारी से जूझते समाज को उन अनुसंधानों से ऐसा क्या मिला जो यदि इस प्रकार वैज्ञानिक अनुसंधान न किए जा रहे होते तो संभव न था | जो
अनुसंधान मानव जीवन की कठिनाइयाँ कम करने एवं जीवन को आसान बनाने के लिए
किए जाते हैं उन अनुसंधानों से क्या लाभ यदि वे आवश्यकता पड़ने पर किसी काम
न आवें |
विज्ञान के क्षेत्र में सभी अनुसंधानों की प्रारंभिक प्रक्रिया में कई बार असफलता मिलते देखी जाती है और यह स्वाभाविक भी है किंतु ये असफलताएँ उस अनुसंधान प्रक्रिया के प्रारंभिक समय तक ही सीमित रहनी चाहिए | ऐसी असफलताएँ निरंतर मिलना ठीक नहीं हैं और यदि बार बार ऐसा ही हो तो ऐसी असफलताओं
को निरर्थक ढोया जाना ठीक नहीं है उनके विकल्प की खोज का समय आ गया है | ऐसा मानते हुए उस प्रकार की संभावनाओं की खोज प्रारंभ कर दी जानी चाहिए |
महामारी के विषय में अभी तक किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों के योगदान को यदि जनता की दृष्टि से देखा जाए तो एक मात्र वैक्सीन को ही ऐसी अनुद्घाटित वैज्ञानिक उपलब्धि माना जा सकता है जिसके परिणाम के विषय में विशेषज्ञों के अलावा किसी और को कुछ पता नहीं है |आश्वासन बहुत कुछ दिए जा रहे हैं उनसे अलग देखा यह जा रहा है कि वैक्सीन की
दो दो तीन तीन डोज लेने वाले लोग भी लोग संक्रमित होते देखे जा रहे हैं और
वैक्सीन नहीं लेने वाले तो संक्रमित हो ही रहे हैं |
प्रकृति एवं जीवन से जुड़ी घटनाओं के कारणों की खोज आवश्यक है !
प्रकृति एवं जीवन में परिस्थितियाँ हमेंशा बदलती रहती हैं| इसीलिए कुछ
महीनों तक सर्दी कुछ महीने तक गरमी और कुछ महीने वर्षात होती है |सर्दी गरमी
जैसी परस्पर विरोधी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या है ?ये घटनाएँ अकारण तो नहीं घटित होने लगती हैं अपितु इनके घटित
होने का भी कोई न कोई कारण अवश्य होता है| इसप्रकार के सभी प्राकृतिक परिवर्तन मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं |
इसीप्रकार से दिन और रात जैसी
परस्पर विरोधी घटनाओं के घटित होने का भी कोई न कोई कारण होता होगा | इनका भी मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता होगा| ऐसे कारणों को पहचानने वाले लोग आगे से आगे ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान
लगा लिया करते हैं कि कितने महीनों या घंटों के बाद किस प्रकार की
प्राकृतिक परिस्थितियाँ बनते दिखाई दे सकती हैं | उसका स्वास्थ्य पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है |
इस प्रकार से सर्दी गरमी वर्षा आदि ऋतुएँ तथा दिन रात एवं प्रातः सायं आदि घटनाएँ निश्चित हैं और इनका समय भी निश्चित है कि कब किस प्रकार की घटनाएँ घटित होंगी |
मौसम संबंधी घटनाएँ जो कभी घटित होती हैं कभी नहीं भी घटित होती हैं इनका समय भी हमेंशा एक जैसा नहीं रहता है |
इन दोनों प्रकार की घटनाओं का प्रभाव प्राकृतिक वातावरण पर पड़ता है उससे मानव स्वास्थ्य प्रभावित होता है ?इसलिए ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण खोजा जाना आवश्यक है |
इसी प्रकार से सभी दिन एक जैसे नहीं होते किसी किसी दिन आँधी तूफ़ान आ रहा
होता है तो किसी दिन पूरे आकाश में बादल छाए होते हैं गरज के साथ पानी बरस
रहा होता है| किसी किसी दिन आकाश बिल्कुल साफ होता है| इन तीनों परस्पर
विरोधी घटनाओं के घटित होने का आधारभूत वास्तविक कारण क्या है ?उस कारण को
अच्छी प्रकार से जान समझकर ही उसी के आधार पर ऐसी घटनाओं के घटित होने के
रहस्य को समझा जा सकता है तथा इस विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधान किए जा सकते हैं |
इसी प्रकार से महामारियाँ हमेंशा तो रहती नहीं हैं| लंबे अंतराल के बाद
कुछ वर्षों के लिए आती हैं तथा उसके बाद फिर समाप्त हो जाती हैं उसके बाद
दशकों तक नहीं
आती हैं| ऐसे ही डेंगू जैसे रोग कुछ महीनों में होते
देखे जाते हैं उसके बाद फिर कई महीनों तक नहीं होते हैं| इन वर्षों या
महीनों में कुछ न कुछ तो ऐसा अलग से अवश्य होता होगा जिसके कारण ऐसे रोग
महारोग आदि जन्म लिया करते हैं |इनसे संबंधित अनुसंधानों के लिए इनके घटित होने का कारण खोजा जाना आवश्यक है |
इसी प्रकार से उन महीनों वर्षों के अतिरिक्त बाक़ी वर्षों महीनों आदि में कुछ न कुछ तो ऐसा होता रहा होगा जिससे उन महीनों वर्षों आदि में ऐसे रोगों महारोगों को स्वतः शांत होते देखा जाता है |वस्तुतः ऐसे रोग किसी
न किसी समयावधि से जुड़े होने के कारण वो समय बीतने के साथ साथ स्वतः
समाप्त होते जाते हैं | महामारी संबंधी अध्ययनों के लिए उन परिवर्तनों के
कारण खोजा जाना आवश्यक है |
ऐसी परिस्थिति में महामारियाँ जब प्रारंभ होती हैं और जब समाप्त होती
हैं या डेंगू जैसे रोग जब प्रारंभ होते हैं और जब समाप्त होते हैं | इन दोनों प्रकार की परस्पर विरोधी परिस्थितियों के पैदा होने का कारण खोजा
जाना चाहिए |जिन
महीनों वर्षों आदि में रोग महारोग आदि प्रारंभ होते हैं और जिनमें समाप्त
होते हैं उस प्रकार की परस्पर विरोधी घटनाओं के घटित होने में ऐसे क्या
परिवर्तन होते हैं जिनके कारण ऐसी परस्पर विरोधी परिस्थितियाँ पैदा होते
देखी जाती हैं कि एक समय रोग पैदा हो रहे होते हैं और दूसरे समय वही रोग
समाप्त हो रहे होते हैं | रोग पैदा होने का कोई कारण नहीं दिखता है और न ही रोग के समाप्त होने का दिखता है
ऐसी परस्पर विरोधी प्राकृतिक परिस्थितियाँ बनने का कुछ न कुछ कारण तो
अवश्य होता होगा|उस कारण को खोजने की सबसे पहले आवश्यकता है जिसके पता लग
जाने के बाद ही महामारियों का रहस्य खुल पाएगा | उसके बाद ऐसी घटनाओं के
विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा सकते हैं |
महामारी के कारणों की खोज आवश्यक है !
प्रकृति एवं जीवन में परिस्थितियाँ हमेंशा बदलती रहती हैं| इसीलिए कुछ
महीनों तक सर्दी कुछ महीने तक गरमी और कुछ महीने वर्षात होती है |सर्दी गरमी
जैसी परस्पर विरोधी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या है ?ये घटनाएँ अकारण तो नहीं घटित होने लगती हैं अपितु इनके घटित
होने का भी कोई न कोई कारण अवश्य होता है| इसप्रकार के सभी प्राकृतिक परिवर्तन मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं |
इसीप्रकार से दिन और रात जैसी
परस्पर विरोधी घटनाओं के घटित होने का भी कोई न कोई कारण होता होगा | इनका भी मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता होगा| ऐसे कारणों को पहचानने वाले लोग आगे से आगे ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान
लगा लिया करते हैं कि कितने महीनों या घंटों के बाद किस प्रकार की
प्राकृतिक परिस्थितियाँ बनते दिखाई दे सकती हैं | उसका स्वास्थ्य पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है |
इस प्रकार से सर्दी गरमी वर्षा आदि ऋतुएँ तथा दिन रात एवं प्रातः सायं आदि घटनाएँ निश्चित हैं और इनका समय भी निश्चित है कि कब किस प्रकार की घटनाएँ घटित होंगी |
मौसम संबंधी घटनाएँ जो कभी घटित होती हैं कभी नहीं भी घटित होती हैं इनका समय भी हमेंशा एक जैसा नहीं रहता है |
इन दोनों प्रकार की घटनाओं का प्रभाव प्राकृतिक वातावरण पर पड़ता है उससे मानव स्वास्थ्य प्रभावित होता है ?इसलिए ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण खोजा जाना आवश्यक है |
इसी प्रकार से सभी दिन एक जैसे नहीं होते किसी किसी दिन आँधी तूफ़ान आ रहा
होता है तो किसी दिन पूरे आकाश में बादल छाए होते हैं गरज के साथ पानी बरस
रहा होता है| किसी किसी दिन आकाश बिल्कुल साफ होता है| इन तीनों परस्पर
विरोधी घटनाओं के घटित होने का आधारभूत वास्तविक कारण क्या है ?उस कारण को
अच्छी प्रकार से जान समझकर ही उसी के आधार पर ऐसी घटनाओं के घटित होने के
रहस्य को समझा जा सकता है तथा इस विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधान किए जा सकते हैं |
इसी प्रकार से महामारियाँ हमेंशा तो रहती नहीं हैं| लंबे अंतराल के बाद
कुछ वर्षों के लिए आती हैं तथा उसके बाद फिर समाप्त हो जाती हैं उसके बाद
दशकों तक नहीं
आती हैं| ऐसे ही डेंगू जैसे रोग कुछ महीनों में होते
देखे जाते हैं उसके बाद फिर कई महीनों तक नहीं होते हैं| इन वर्षों या
महीनों में कुछ न कुछ तो ऐसा अलग से अवश्य होता होगा जिसके कारण ऐसे रोग
महारोग आदि जन्म लिया करते हैं |इनसे संबंधित अनुसंधानों के लिए इनके घटित होने का कारण खोजा जाना आवश्यक है |
इसी प्रकार से उन महीनों वर्षों के अतिरिक्त बाक़ी वर्षों महीनों आदि में कुछ न कुछ तो ऐसा होता रहा होगा जिससे उन महीनों वर्षों आदि में ऐसे रोगों महारोगों को स्वतः शांत होते देखा जाता है |वस्तुतः ऐसे रोग किसी
न किसी समयावधि से जुड़े होने के कारण वो समय बीतने के साथ साथ स्वतः
समाप्त होते जाते हैं | महामारी संबंधी अध्ययनों के लिए उन परिवर्तनों के
कारण खोजा जाना आवश्यक है |
ऐसी परिस्थिति में महामारियाँ जब प्रारंभ होती हैं और जब समाप्त होती
हैं या डेंगू जैसे रोग जब प्रारंभ होते हैं और जब समाप्त होते हैं | इन दोनों प्रकार की परस्पर विरोधी परिस्थितियों के पैदा होने का कारण खोजा
जाना चाहिए |जिन
महीनों वर्षों आदि में रोग महारोग आदि प्रारंभ होते हैं और जिनमें समाप्त
होते हैं उस प्रकार की परस्पर विरोधी घटनाओं के घटित होने में ऐसे क्या
परिवर्तन होते हैं जिनके कारण ऐसी परस्पर विरोधी परिस्थितियाँ पैदा होते
देखी जाती हैं कि एक समय रोग पैदा हो रहे होते हैं और दूसरे समय वही रोग
समाप्त हो रहे होते हैं | रोग पैदा होने का कोई कारण नहीं दिखता है और न ही रोग के समाप्त होने का दिखता है
ऐसी परस्पर विरोधी प्राकृतिक परिस्थितियाँ बनने का कुछ न कुछ कारण तो
अवश्य होता होगा|उस कारण को खोजने की सबसे पहले आवश्यकता है जिसके पता लग
जाने के बाद ही महामारियों का रहस्य खुल पाएगा | उसके बाद ऐसी घटनाओं के
विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा सकते हैं |
जीवन में घटित होने वाली स्वास्थ्य संबंधी घटनाओं के कारण खोजे जाने चाहिए !
महामारी होने के कारण लोग अस्वस्थ होते हैं या किसी समय विशेष में बड़ी
संख्या में लोगों के अस्वस्थ होने को ही महामारी मान लिया जाता है |
महामारी के कारण लोग यदि
अस्वस्थ हो रहे होते तो कुछ लोग ही क्यों होते फिर तो उस कालखंड में
जितने भी लोग थे उन सभी को संक्रमित होना चाहिए था | यदि ऐसा नहीं हुआ है
तो इसका मतलब है कि लोगों के अस्वस्थ होने का कारण केवल महामारी ही नहीं
है अपितु लोगों की अपनी व्यक्तिगत परिस्थिति भी रही है |
प्रकृति की तरह ही जीवन में घटित होने वाली घटनाओं से संबंधित कारण खोजे जाने आवश्यक हैं | डेंगू
या महामारी जैसे रोगों या महारोगों का समय आने पर भी एक ही स्थान पर एक
जैसी परिस्थिति में वाले सभी लोग ऐसे रोगों से प्रभावित नहीं होते
हैं|कुछ लोग तो ऐसे समयों पर भी पूरी तरह स्वस्थ बने रहते हैं जबकि कुछ
अस्वस्थ होकर पुनः स्वस्थ हो जाते हैं और कुछ रोगी अत्यंत गंभीर परिस्थिति
में पहुँच जाते हैं |इन तीन प्रकार की परिस्थितियों के बनने के कारण क्या
हो सकते हैं | उसे समझा जाना आवश्यक है | डेंगू या महामारी जैसे कालखंड में भी जो लोग जिन
कारणों से अस्वस्थ होने से बच गए या अस्वस्थ होकर भी स्वस्थ हो गए वे कारण
क्या थे ?जिन्हें खोजकर 'महामारी मुक्त समाज संरचना' के सपने को साकार
किया जा सकता है |
कोई व्यक्ति इसी जीवन में कभी स्वस्थ तो कभी अस्वस्थ रहते देखा जाता है |
उसके स्वस्थ और अस्वस्थ होने का कारण क्या हो सकता है | कभी लगता है कि खान
पान रहन सहन आदि बिगड़ने के कारण लोग रोगी होते होंगे | कई
बार लगता है कि डेंगू महामारी आदि का अवसर आने पर लोग रोगी होते हैं ,किंतु कई बार खान
पान रहन सहन आदि बिना बिगड़े भी लोग रोगी होते देखे जाते हैं | ऐसे ही कई
बार महामारी के बिना भी तो लोग अस्वस्थ होते देखे जाते हैं |
ऐसी परिस्थिति में किसी के स्वस्थ अस्वस्थ होने
का कारण क्या होता है | जिस समय जो व्यक्ति रोग ग्रस्त होता है उसी समय यदि मौसम बदल रहा
होता है तो उस व्यक्ति के अस्वस्थ होने का कारण बदलते मौसम को मान लिया
जाता है|कई बार जिस समय कोई रोगी होता है उस समय वह जो जो कुछ खा पी रहा
होता है जहाँ जैसे रह रहा होता है | उसी में से कुछ खोजकर उसे ही उसके अस्वस्थ होने का कारण मान लिया जाता है | कोरोना जैसी महामारियों के समय जो लोग अस्वस्थ होते हैं|उस समय महामारी चल रही होने के कारण उसके अस्वस्थ होने का कारण महामारीजनित संक्रमण को मान लिया जाता है |
किसी के अस्वस्थ होने के कारण यदि यही हैं तो उसी स्थान पर उसी प्रकार
के कुछ दूसरे लोग उन्हीं परिस्थितियों में रहते वही सब कुछ खाते पीते भी स्वस्थ
बने रहते हैं | उन्हें उस प्रकार के रोगों से पीड़ित होते नहीं देखा जाता है
जबकि कारण एक समान होने पर उनके परिणामों में भी समानता होनी चाहिए थी| ऐसा न
होने से लगता है कि कारणों की खोज में कहीं कुछ कमी अवश्य रह गई है|वैसे भी महामारी तो कभी कभी आती है किंतु लोगों का स्वस्थ अस्वस्थ होना तो निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है | इसलिए किसी के स्वस्थ या अस्वस्थ होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण क्या हो सकते हैं इसकी खोज अवश्य होनी चाहिए |
किसी की मृत्यु होने का कारण रोग महारोग या कुछ और ?
मृत्यु के विषय में माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु का समय
निश्चित होता है उससे एक क्षण भी आगे पीछे नहीं हो सकता है| मृत्यु के समय जो व्यक्ति जहाँ कहीं होता है या जो कुछ भी कर रहा होता है उसी
समय उसकी मृत्यु हो जाती है| उस समय संयोगवश वह जो कुछभी खाया पिया होता है
या जो जो कुछ कर रहा होता है या जहाँ कहीं जिस किसी भी अवस्था में होता
है या जिस किसी घटना में सम्मिलित होता है या जो कोई रोग होता है सामान्य रूप से वही उसकी
मत्यु का बहाना बन जाता है | इसीलिए उसे ही मृत्यु का कारण मान लिया जाता है
किंतु उसी समय में उसी प्रकार की परिस्थिति में रहते खाते पीते सोते जागते
रोगों का सामना करते या महामारी भूकंप आदि कुछ अन्य दुर्घनाओं में
सम्मिलित कुछ दूसरे लोग पूरी तरह स्वस्थ एवं सुख सुविधा पूर्ण जीवन जी रहे
होते हैं उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती है | ऐसी परिस्थिति में किसी की
मृत्यु का कारण उन कुछ घटनाओं को या उस प्रकार के रहन सहन खान पान या रोग
आदि को कैसे माना जा सकता है |
कोरोना काल में ही मृत्यु बहुत लोगों की हुई है इसमें संशय नहीं है किंतु उन मौतों का कारण एक समान नहीं था | मौतों का कारण महामारी
को मानना इसलिए उचित नहीं होगा क्योंकि मृतकों की मृत्यु के समय अलग अलग
प्रकार की घटनाएँ घटित हो रही थीं | कुछ लोग मृत्यु के समय कुछ पुराने
रोगों से पीड़ित थे कुछ महामारी जनित रोगों से संक्रमित थे|उसी समय कुछ लोग
कुछ हिंसक दंगों या गृहयुद्ध के शिकार हुए ,कई हिंसक आंदोलन भी हुए उसमें कुछ लोग मारे गए | कुछ देशों में उसी समय कई हिंसक आंदोलन भी हुए !कुछ देशों के बीच युद्ध
होने लगा उसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए | कुछ स्थानों पर ऐसी
प्राकृतिक आपदाएँ या आतंकवादी घटनाएँ घटित हुईं उसमें बहुत लोग मारे गए | इस
कोरोना काल में ऐसी हिंसक घटनाएँ अन्य समय की अपेक्षा अधिक घटित हुई हैं |
कोरोना काल में संयोगबश बहुत लोगों की मृत्यु हो रही थी
इसी समय इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु क्यों हुई ? इसका वास्तविक कारण क्या था यह अवश्य खोजा जाना चाहिए | किसी न किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ या मनुष्यकृत
दुर्घटनाएँ हमेंशा
घटित होती रहती हैं | ये शाश्वत चलने वाली प्रक्रिया है | जिस प्रकार से
अन्य समयों में किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण किसी आपदा या दुर्घटना को
मान लिया जाता है |उसी प्रकार से महामारी के समय मृत्यु का कारण महामारी को मान लिया जाता है |
ऐसी परिस्थिति में किसी की मृत्यु होने का कारण यदि उस दुर्घटना को माना
जाए तो ऐसी दुर्घटनाओं में बहुत लोग एक साथ प्रभावित होते हैं किंतु
मृत्यु उन सभी की तो नहीं होती है अपितु कुछ लोगों की ही होती है |कोरोना महामारी के समय ही देखा जाए तो
बहुत लोगों की मृत्यु हुई और जब मृत्यु हुई तब वे संयोगबश कोरोना से
संक्रमित थे |इसलिए मृतकों की मृत्यु कोरोना संक्रमित होने के कारण हुई या
मृत्यु के समय वे कोरोना संक्रमित थे|इन दोनों में से उन लोगों की मृत्यु
का वास्तविक कारण क्या था ? ये खोजा जाना चाहिए |
विगत कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुई हैं इसीसमय
संयोगवश कोरोना महामारी भी चल रही थी | इसलिए लोगों को लग रहा था कि ये
मौतें कोरोना महामारी के कारण हो रही हैं जबकि महामारी आना और मृत्यु होना
दोनों घटनाएँ एक दूसरे के आधीन हैं अर्थात एक दूसरे के सहयोग से घटित होती
हैं महामारी आवे और बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु न हो तो महामारी किस
बात की !दूसरा मनुष्यकृत किसी प्रयास के सम्मिलित हुए बिना यदि बहुत लोगों की मृत्यु अचानक होने लगे तो इसे महामारी ही कहा जाएगा |
विशेष बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु का कारण यदि
महामारी होती तो उन उन स्थानों पर उसी प्रकार की परिस्थितियों में रहने
वाले सभी लोगों की या अधिकाँश लोगों की
मृत्यु हो जानी चाहिए थी क्योंकि महामारी का प्रभाव तो सभी पर पड़ रहा है
फिर संक्रमित कुछ लोग ही क्यों हुए और उनमें से मृत्यु भी कुछ लोगों की ही
क्यों हुई ?
ऐसी परिस्थिति में लोगों की मृत्यु का कारण यदि महामारी नहीं तो और
दूसरा क्या हो सकता है और यदि महामारी ही है तो भिन्न भिन्न लोगों पर
उसका प्रभाव अलग अलग क्यों पड़ा ? ये मौतें कोरोना महामारी के कारण
हो रही हैं ऐसा मानकर मौतों के लिए महामारी को जिम्मेदार इसलिए ठहराया जाना
इसलिए उचित नहीं होगा क्योंकि उस समय जिनकी मौतें हो रही थीं उनमें से कुछ
लोग ही संक्रमित थे |
इसी प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में अनेकों बार सुखी दुखी आदि
होते देखा जाता है | कई बार प्रत्यक्ष परिस्थितियाँ एक जैसी रहने पर भी वह
सुखी दुखी आदि हुआ करता है | प्रसन्नता के समय जो जो कुछ किया रहा होता है
उसमें प्रायः सफल ही होता है ऐसे
समय उसके पास सुख सुविधा के संपूर्ण साधन कम प्रयास में उपलब्ध हो जाया
करते हैं | इसलिए उसे किसी से कुछ माँगना नहीं पड़ता है लोग अपनी इच्छा से
उसका सहयोग करते हैं | ऐसी परिस्थिति में प्रसन्नता होनी स्वाभाविक ही है
|
ऐसे समय उसके द्वारा किए गए यदि सारे प्रयास
सफल नहीं भी होते हैं तो भी लोग उसमें अपनी भलाई भाग्य भगवान की कृपा आदि
मानकर प्रसन्न हो लिया करते हैं |ऐसे समय में किसी के द्वारा कही गई अप्रिय
बातें भी लोग प्रसन्नता पूर्वक सह लिया करते हैं | ऐसे समय में उन्हें जो
लोग भी मिलते हैं उनकी बुरी बातें बुरी आदतें भूलकर उन्हें प्रसन्नता पूर्वक अपना बना लिया करते हैं |दुःख के समय यही सारी व्यवस्थाएँ उसके विपरीत होने लगती हैं |
महामारी से संक्रमित होने में अपनी मर्जी चलती है क्या ?
किसी
का महामारी से संक्रमित होना या न होना तथा किसी की मृत्यु होना या न होना
प्रकृति के आधीन होता है या इसके लिए संपूर्ण रूप से मनुष्य स्वयं
जिम्मेदार होता है | वर्षा होने पर जिस प्रकार से मनुष्य छतरी लेकर अपने को
भीगने बचा लेता है क्या उसी प्रकार से कोविड नियमों एवं वैक्सीन आदि का
सहारा लेकर अपने को संक्रमित होने से बचा सकता है या नहीं !
कई बार कोविड नियमों का पालन करके या दो दो डोज वैक्सीन लेकर भी लोग संक्रमित होते हैं तो कई बार कोविड नियमों का पालन न करने वाले लोग तथा वैक्सीन की एक भी डोज न लेने वाले लोग भी संक्रमित होने से बच जाते हैं | सन 2020 के मई जून या सितंबर आदि महीनों में बिना किसी औषधि वैक्सीन आदि के भी लोग महामारी से स्वतः स्वस्थ होते जा रहे थे |
कोरोना महामारी की पहली लहर के समय भी ऐसा होते देखा जाता रहा है जब
महामारी की कोई औषधि वैक्सीन आदि नहीं बनी थी तब भी तो पहली लहर बिना किसी
चिकित्सकीय सहयोग के ही समाप्त हुई थी | उस समय भी इस बात के लिए आश्चर्य
व्यक्त किया जा रहा था कि बिना औषधि वैक्सीन आदि के ही संक्रमण समाप्त कैसे हो रहा है |
वैक्सीन लगाने के प्रभाव के
विषय में जो यह कहा जा रहा है कि वैक्सीन
लेने के बाद लोग संक्रमित तो होंगे किंतु संक्रमण गंभीर होने का या मृत्यु
होने का उतना अधिक खतरा नहीं रहेगा | संभव है ऐसी बातों में कुछ सच्चाई भी
हो क्योंकि वैज्ञानिक कह रहे हैं किंतु किसी वैक्सीन के प्रभाव से मृत्यु
को टालना संभव है क्या ?वैसे भी जनता की दृष्टि में तो इस बात की
प्रमाणिकता तभी सिद्ध होगी जब वैक्सीन न लेने वालों की अपेक्षा वैक्सीन
लेने वालों की सुरक्षा का स्तर अधिक मजबूत है ऐसा अनुभव किया जा सके |
इसका
निराकरण तभी संभव है जब जिस
किसी को वैक्सीन लगाई जाए उसे कोई एक ऐसा मजबूत आश्वासन दिया जाए जो
वैक्सीन न लगवाने वालों से अलग हो और वह फिर प्रत्यक्ष दिखाई भी पड़े | यदि वैक्सीन न लगवाने वाले संक्रमित
हो सकते हैं तो वैक्सीन की दो दो डोज लगवाने वाले भी संक्रमित होते देखे
जाते हैं |दोनों प्रकार के लोगों में अंतर क्या रहा|ये तर्क देना कि
जिन्हें वैक्सीन लगा होगा उन्हें खतरा कम होगा जबकि उन्हें खतरा अधिक होगा
जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई है | इसका उत्तर यह है कि वैक्सीन न लगवाने
वालों में भी तो सभी गंभीर रूप से संक्रमित होते या उनमें से बहुतों की
मृत्यु होते जैसा कुछ नहीं देखा गया है |कुलमिलाकर अभी तक महामारी के
प्रकोप पर वैक्सीन के प्रभाव को अलग से चिन्हित नहीं किया जा सका है | कारण
जो भी रहे हों | कोई सूक्ष्म अंतर पड़ा हो तो उसका अनुभव वैज्ञानिकों को ही होगा |
कुल मिलाकर वर्तमान समय के जिस उन्नत विज्ञान की चर्चा की जाती रही है
उससे इतनी अपेक्षा तो थी ही कि सैकड़ों वर्ष पहले आने वाली महामारियों की
अपेक्षा अबकी बार कठिनाई कुछ तो कम होगी क्योंकि उस समय इतना उन्नत विज्ञान
नहीं था इतने विकसित चिकित्सा विषयक संसाधन नहीं थे वर्तमान समय तो
चिकित्सा जगत ने बहुत बड़ी तरक्की कर ली है इसलिए अब महामारी जैसी आपदाएँ
पुराने समय की भयावह नहीं हो पाएँगी | वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी जो
अपेक्षा थी वैसा दूर दूर तक कहीं दिखाई नहीं पड़ा |अब तो प्रकृति विषयक
सभी वैज्ञानिक अनुसंधानों से जुड़ी हर बात पर शंका होती है कि हो न हो यह बात भी गलत निकले |
वैज्ञानिक अनुसंधानों से अपेक्षा और आपूर्ति !
अनुसंधानों के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि कोरोना जैसी
भयावह महामारी से बचाव के लिए या संक्रमितों को रोग मुक्ति दिलाने हेतु सार्थक प्रयत्न करने के लिए महामारी की प्रकृति की पहचान होना
आवश्यक है| जिसके आधार पर रोग की पहचान करके चिकित्सा की प्रक्रिया खोजी
जा सके एवं प्रभावी औषधियों का निर्माण किया जा सके |
किसी रोग महारोग आदि का निदान जितना अच्छा होता है उस रोग को समझना भी उतना
ही आसान होता है उस रोग से मुक्ति दिलाने के लिए पीड़ितों की चिकित्सा करना
भी उतना ही आसान होता है|किसी रोग को ठीक ठीक प्रकार से समझे बिना उस रोग से मुक्ति दिलाना कैसे संभव है | किसी रोग से बचाव के लिए प्रतिरोधक क्षमता तैयार करने हेतु भी रोग की पहचान आवश्यक मानी जाती है |
महामारी को आए इतना समय बीतने के बाद भी इसे ठीक ठीक प्रकार से समझना अभी तक संभव नहीं हो पाया है | इसका अनुमान इसी से
लगाया जा सकता है कि कोरोना की उत्पत्ति कहाँ हुई कैसे हुई कब हुई इसका
स्वभाव कितना हिंसक एवं परिवर्तन शील रहा है | इसका प्रभाव किस प्रकार के
लोगों पर कैसा पड़ता है | इसका विस्तार कहाँ तक है | इसका प्रसार माध्यम
क्या है | इसमें अंतर्गम्यता कितनी
है|इस पर तापमान एवं वायु प्रदूषण बढ़ने और घटने का प्रभाव पड़ता है या नहीं
!संक्रमण बढ़ने घटने पर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं आदि बातों
का पता किया जाना महामारी को अच्छी प्रकार से समझने के लिए आवश्यक है किंतु संबंधित वैज्ञानिक
अनुसंधानों के द्वारा महामारी के किसी भी पक्ष को समझना संभव नहीं हो पाया
है | ऐसे अनुसंधानों के द्वारा अभी तक ऐसा कुछ हासिल नहीं किया जा सका है
जिसके द्वारा ऐसे अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध हो सकती हो |
इसके
अतिरिक्त महामारी शुरू होने का कारण क्या है ये समाप्त कैसे होगी !महामारी
शुरू कब और क्यों हुई थी और ये समाप्त कब और क्यों होगी !महामारी की लहरें
आने जाने का कारण क्या है |महामारी के स्वरूप परिवर्तित होने या वेरियंट
बदलने का कारण क्या है | ऐसी घटनाओं से बचाव के लिए अग्रिम तैयारियाँ किस प्रकार की करने की आवश्यकता है ?महामारी के विषय में सटीक अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए क्या किया जाना चाहिए | ऐसी बातों की खोज की दृष्टि से वैज्ञानिक अनुसंधानों को अभीतक कोई सफलता नहीं मिल सकी है |
कुलमिलाकर महामारी को समझकर एवं ऐसी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर जनता को अभी तक ऐसी क्या मदद नहीं पहुँचाई जा सकी है जिसके विषय में यह कहा जा सके कि यदि यह न पहुँचाई जा पाती तो इस
इस प्रकार से जनता का और अधिक नुकसान हो सकता था | ऐसी स्थिति में महामारी
से जूझती जनता को मदद पहुँचाने में ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों का क्या
योगदान रहा है यह स्वयं में अनुसंधान का विषय है |
महामारी ही भयावह है या उसे समझने का विज्ञान नहीं है ?
महामारी का स्वरूप ही इतना भयावह था कि उसे समझना या उसके विषय में कोई भी जानकारी जुटाना या अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव ही नहीं था या फिर किए जा रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों में ये क्षमता ही नहीं थी कि वे महामारी को समझ पाते|इसलिए महामारी उतनी भयावह नहीं थी जितना कि महामारी से संबंधित सार्थक अनुसंधानों का अभाव था|हमारे पास ऐसी कोई वैज्ञानिक अनुसंधान विधा ही नहीं थी जिसके द्वारा महामारी के विषय में कोई भी जानकारी जुटाना संभव होता|
कोरोना काल में यह सभी ने देखा था कि वैज्ञानिकों को महामारीविज्ञान के विषय में जो जानकारी थी उसके अनुसार वे प्रयत्न पूर्वक महामारी के विषय में जो भी अनुमान या पूर्वानुमान लगाते जा रहे थे वे सबके सब गलत निकलते जा रहे थे | बार बार ऐसा क्यों हो रहा है इसका वैज्ञानिकों के पास कोई संतोषजनक उत्तर नहीं था | जिसके द्वारा समाज का भय कुछ कम किया जाता |महामारी संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों की कमजोरी के कारण वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में समय समय पर दिए जाते रहे वक्तव्य जब जब गलत निकलते रहे तब तब इसका कारण वैज्ञानिक अनुसंधानों की कमजोरी बताने के बजाए महामारी के स्वरूप को और अधिक भयावह बता दिया जाता रहा | इससे जनता का भय और अधिक बढ़ता जा रहा था |
महामारी की भयावहता को तो तभी दोषी माना जा सकता है जब यह पता लगे कि महामारी विज्ञान के विषय में हमारी जानकारी कितनी थी |परीक्षा का प्रश्न पत्र कठिन था यह कहने का अधिकार उस विद्यार्थी को ही होता है जिसने पाठ्यक्रम में गए अपने विषय को ठीक से पढ़ा हो|किसी चाभी से कोई ताला न खुले इसका मतलब यही नहीं होता है कि ताला में खराबी है अपितु इसका मतलब यह भी होता है कि हो सकता है जिस चाभी से ताले को खोलने का प्रयास किया जा रहा है इस ताले की वह चाभी ही न हो |यदि कोई दूसरा आकर किसी अन्य चाभी से उस ताले को खोलते बंद करते देखा जा रहा हो तब तो यह संशय और मजबूत हो जाता है कि जिस चाभी से वह ताला खोलने का प्रयास किया जा रहा है वह चाभी उस ताले की है ही नहीं |
इसके
लिए यह तर्क देना उचित नहीं है कि मैं कई दिन से चाभी खोजने की रिसर्च चल रही थी उस रिसर्च से जो चाभी मिली है चूँकि रिसर्च से प्राप्त हुई है इसलिए ताले को उसी चाभी से खुल जाना चाहिए | जिसका उस ताले से कोई संबंध ही
नहीं है |
ऐसी परिस्थिति में तमाम चाभियाँ बदल बदल कर बार बार ताला खोलने का प्रयास करने पर भी ताले के न खुलने का मतलब यह नहीं कि ताला और अधिक खतरनाक होता जा रहा है या ताले का कोई वेरियंट बदल रहा है |हजारों चाभियों के द्वारा जो ताला नहीं खुला वो उसके बाद भी अपनी चाभी से उसी प्रकार आसानी से खुल जाता है जैसा हजारों चाभियों से प्रयत्न करने के पहले अपनी चाभी से खुल सकता है क्योंकि समस्या ताले के खतरनाक होने या वेरियंट बदलने की नहीं थी अपितु उस ताले को उसकी अपनी चाभी से नहीं खोला गया था |
यदि हर किसी चाभी से ताला खुलने लग जाता तो उस ताले का तालापन ही समाप्त हो जाता |इसी प्रकार से यदि सामान्य तीर तुक्कों से महामारी संक्रमित लोगों को रोग मुक्ति दिलाना संभव ही होता तो महामारी किस बात की ,फिर तो सामान्य रोगों की श्रेणी में महामारी जनित रोग भी होते |
ऐसा कहने के पीछे हमारे पास आधारभूत कुछ ऐसे प्रमाण हैं जिनसे ऐसा लगता है कि महामारी को ठीक ठीक समझना एवं उसके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव है |जिन अनुसंधानों से महामारी का कोई संबंध ही नहीं है उनसे
महामारी को समझा जाना कैसे संभव है |महामारी के विषय में जो भी अनुसंधान किए गए उनकी सार्थकता तभी है जब उनके
आधार पर महामारी के विषय में जुटाई गई जानकारी या लगाए गए अनुमान
पूर्वानुमान आदि सही सिद्ध हों |
वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में बताए जाने वाले अनुमान पूर्वानुमान आदि बार बार गलत होते जा रहे थे जिससे वैज्ञानिकों की बातों से समाज का विश्वास भी धीरे धीरे उठता जा रहा था | इसका प्रभाव वैक्सीन लगाते समय समाज में दिखाई भी पड़ा कि लोग वैक्सीन पर विश्वास ही करने को तैयार नहीं थे |समाज को लगता था कि जिन वैज्ञानिकों के द्वारा रोग को ही नहीं समझा जा सका वे उसकी औषधि टीका आदि का निर्माण कैसे कर सकते हैं जबकि चिकित्सा सिद्धांत के अनुसार किसी भी रोग से बचाव या मुक्ति दिलाने के लिए किसी औषधि का निर्माण करना तभी संभव है जब उस रोग की प्रकृति को भली प्रकार समझा जा चुका हो |
इसीलिए वेक्सिनेशन के प्रारंभिककाल में वैक्सीन लगवाने की दृष्टि से जनता में वैसा उत्साह नहीं दिखा जैसा कि महामारी से पीड़ित समाज में होना चाहिए था | धीरे धीरे लोगों का रुझान बढ़ा और वेक्सीन लगवाई गई !इसके बाद बड़ा धक्का तब लगा जब दो दो बार वेक्सीन लगवाए लोग भी संक्रमित होने लगे क्योंकि वेक्सीन लगवाने के पीछे जनता का उद्देश्य ही यही था कि इसके बाद महामारी से राहत मिलेगी |यदि ऐसा न हो तो चिंता तो होती ही है |
मौसम संबंधी अनुसंधान भी जिम्मेदार हैं !
महामारी संबंधी अनुसंधानों की असफलता के लिए केवल इससे संबंधित अनुसंधान ही दोषी नहीं हैं अपितु ये कमी उन अनुसंधानों की भी है जो महामारी को प्रभावित करने में सक्षम माने जाते हैं | यदि उन्ही अनुसंधानों के वास्तविक विज्ञान को नहीं खोजा जा सकेगा तो उनके द्वारा वो आवश्यक सामग्री उपलब्ध करवा पाना कैसे संभव होगा जो महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए अत्यंत आवश्यक है और यह उपलब्ध करवाना उन अनुसंधानों की जिम्मेदारी है जिसका वे निर्वाह नहीं कर पाए | महामारी संबंधी अनुसंधानों की असफलता के लिए मौसम संबंधी अनुसंधानों कीअसफलता भी जिम्मेदार है |
महामारी के पैदा होने में तथा इसकी लहरें आने जाने में एवं वेरियंट बदलने में मौसम को बड़ा कारण माना जाता रहा है | ऐसी परिस्थिति में महामारी की विभिन्न अवस्थाओं परिवर्तनों वेगों संक्रामकता आदि को ठीक ठीक समझने के लिए प्राकृतिक क्षेत्र में मौसम संबंधी अस्वाभाविक परिवर्तनों की न केवल जानकारी आवश्यक है अपितु इनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना भी आवश्यक है| उसी के आधार पर महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है किंतु मौसम संबंधी अनुसंधानों के द्वारा अभी तक मौसम संबंधी प्राकृतिक स्वभाव को समझना एवं इसके विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाया है |
चिकित्सा विशेषज्ञों के द्वारा तापमान के अस्वाभाविक रूप से बढ़ने घटने को महामारी से संबंधित वेरियंट बदलने एवं संक्रमण बढ़ने घटने के लिए जिम्मेदार बताया जाता रहा है | ऐसी परिस्थिति में तापमान के अस्वाभाविक रूप से बढ़ने घटने का कारण खोजना एवं तापमान के बढ़ने घटने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना आवश्यक है | महामारी से संबंधित वेरियंट बदलने या संक्रमण बढ़ने घटने के लिए तापमान का बढ़ना घटना ही यदि जिम्मेदार होगा भी तो तापमान विषयक आवश्यक जानकारी के बिना महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाया जा सकता है?यह तो मौसम वैज्ञानिकों का ही काम था | यदि उनके द्वारा इस प्रकार की आवश्यक जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई जा सकेगी तो महामारी संबंधी अध्ययनों के सफल होने की कल्पना कैसे की जा सकती है |
वायु प्रदूषण के बढ़ने को भी चिकित्सा विशेषज्ञों के द्वारा महामारी से संबंधित वेरियंट बदलने एवं संक्रमण बढ़ने घटने के लिए जिम्मेदार बताया जाता रहा है | ऐसी परिस्थिति में महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए वायु प्रदूषण के बढ़ने घटने का वास्तविक कारण खोजना एवं वायुप्रदूषण के बढ़ने घटने के विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना आवश्यक है अन्यथा महामारी पर पड़ने वाले वायुप्रदूषण के प्रभाव का अध्ययन कैसे किया जा सकेगा और महामारी से संबंधित वेरियंट बदलने या
संक्रमण बढ़ने घटने के विषय में कोई आवश्यक जानकारी कैसे जुटाई जा सकेगी |वायुप्रदूषण का बढ़ना घटना ही यदि महामारी संबंधित संक्रमण बढ़ने के लिए जिम्मेदार होगा तो वायु प्रदूषण के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए बिना महामारी के विषय में कोई सार्थक अनुसंधान कैसे किया जा सकता है |
जलवायु परिवर्तन को भी महामारी आने के लिए जिम्मेदार बताया जाता रहा है |ऐसी परिस्थिति में संभव है महामारी संबंधित लहरों के आने जाने पर भी जलवायु परिवर्तन ही हो | यदि ऐसा है तब तो महामारी को ठीक ठीक प्रकार से समझने के लिए पहले जलवायुपरिवर्तन को समझना पड़ेगा |जलवायुपरिवर्तन के विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की वैज्ञानिक पद्धति खोजनी होगी | जलवायुपरिवर्तन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्वसनीय अध्ययन अनुसंधान आदि करने के बाद ही महामारी को ठीक ठीक प्रकार से समझा जा सकता है एवं उसके विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है |
मौसम संबंधी वर्षा और आँधी तूफ़ान जैसी जितनी भी घटनाएँ घटित होती हैं उनके घटित होने के वास्तविक कारण क्या हैं जो ऐसी घटनाओं के निर्माण में सहायक होते हैं | जिनके प्रभाव से वर्षा कभी बहुत कम और कभी बहुत अधिक एवं कभी कम दिनों तक और कभी अधिक दिनों तक होते देखी जाती है |इसीप्रकार से आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि किसी किसी वर्ष बहुत अधिक एवं किसी किसी वर्ष बहुत कम घटित होते देखे जाते हैं |ऐसी घटनाएँ तापमान एवं वायु प्रदूषण दोनों के स्तर को कम करने के लिए जानी जाती हैं |महामारी संबंधित वेरियंट बदलने एवं संक्रमण बढ़ने घटने के लिए ये भी जिम्मेदार हो सकती हैं |इसलिए इनके घटित होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण खोजना एवं सही सटीक पूर्वानुमान लगाना महामारी संबंधित अनुसंधानों के लिए आवश्यक है | इसके बिना महामारी संबंधित वेरियंट बदलने एवं संक्रमण बढ़ने घटने के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाया जा सकता है |
भूकंप जैसी घटनाओं के घटित होने का कारण भूमिगत जिन प्लेटों का आपस में टकराना या भूगर्भ में संचित गैसों का दबाव माना जाता है |उन प्राकृतिक घटनाओं के किसी किसी वर्ष बहुत अधिक और किसी किसी वर्ष बहुत कम घटित होने का कारण क्या है |जिन प्राकृतिक परिस्थितियों के पैदा होने से उस प्रकार की भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होती हैं | वे परिस्थितियाँ भी तो इसी वातावरण में विद्यमान होंगी | उनके क्रम स्वरूप सामर्थ्य आदि को खोजे बिना महामारी पर पड़ने वाले इसके प्रभाव के विषय में कोई अनुसंधान कैसे किया जा सकता है | उसके बिना महामारी के आने और जाने एवं संक्रमितों की संख्या बढ़ने और घटने के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाया जा सकता है |
इस प्रकार से प्रकृति में जितनी भी अस्वाभाविक और असंतुलित घटनाएँ घटित होती हैं उन्हें रोगों महारोगों (महामारियों) संबंधी संक्रमण पैदा होने या घटने बढ़ने का कारण बताया जाता है | इसलिए महामारी को ठीक ठीक समझने एवं इसका अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने तथा इसकी चिकित्सा खोजने के लिए अस्वाभाविक एवं असंतुलित प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के कारण खोजने एवं उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए वास्तविक अनुसंधान किया जाना आवश्यक है |उसके बिना महामारी के विस्तार को समझना संभव नहीं है |
महामारी और मौसम संबंधी अध्ययनों की आवश्यकता !
वैज्ञानिकों को भी संभवतः इस सच्चाई का आभास होगा ही तभी तो पृथ्वी
विज्ञान मंत्रालय (MoES) द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य
चेतावनी प्रणाली (Early Health Warning System) विकसित की जा रही है, जिससे
देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा। बताया जाता है कि पृथ्वी
विज्ञान मंत्रालय (MoES) द्वारा विकसित किया जा रहा मॉडल मौसम में आने वाले
परिवर्तन और रोग की घटनाओं के बीच संबंध पर आधारित है।गौरतलब है कि मलेरिया जैसे कई ऐसे रोग हैं जिनमें तापमान और वर्षा पैटर्न के माध्यम से मौसम की स्थिति अहम भूमिका निभाती है। इसलिए प्रारंभिक स्वास्थ्य
चेतावनी प्रणाली में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) को भी इस विशिष्ट प्रणाली की अनुसंधान प्रक्रिया में सम्मिलित किया गया है |
"प्रारंभिक स्वास्थ्य
चेतावनी में प्रणाली" से संबंधित अनुसंधान प्रक्रिया में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) को सम्मिलित भले कर लिया गया है गया है किंतु ऐसे अनुसंधानों के लिए भी मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए ही मौसम विज्ञान विभाग या मौसमवैज्ञानिकों को सम्मिलित किया गया होगा ये स्वाभाविक है किंतु वे मौसम संबंधी प्राकृतिक परिवर्तनों को समझने में कितने सक्षम हैं और प्रकृति के स्वभाव को समझकर उसी के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा पाते हैं और वे जितने प्रतिशत सच निकलते हैं ऐसे मौसम वैज्ञानिक प्रकृति के स्वभाव को समझने में उतने प्रतिशत ही सक्षम माने जा सकते हैं |
आँधी तूफानों बादलों एवं वर्षा जैसी घटनाओं के विषय में उपग्रहों रडारों की मदद से जो अंदाजा लगाया जाता है उसमें विज्ञान नहीं है | यह तो आकाशस्थ कैमरों से प्राकृतिक घटनाओं को एक स्थान पर घटित होता देखकर उनकी दिशा एवं गति के हिसाब से इनके दूसरे स्थान पर पहुँचने का अंदाजा लगा लिया जाता है |इस प्रक्रिया के द्वारा प्रकृति के स्वभाव को समझना संभव नहीं है और प्रकृति के स्वभाव एवं घटनाओं की प्रवृत्ति को ठीक ठीक समझे बिना "प्रारंभिक स्वास्थ्य
चेतावनी प्रणाली"संबंधित अनुसंधान प्रक्रिया में मौसम विज्ञान के द्वारा कोई योगदान दिया जाना संभव ही नहीं है | स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधानों के लिए तो प्रकृति के स्थाई स्वभाव एवं समय के साथ साथ बदलते चलने वाले परिवर्तन शील स्वभाव अध्ययन किया जाना आवश्यक होगा | इसी के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि महामारी संबंधी अनुसंधानों में मददगार सिद्ध हो सकते हैं | जिसके आधार पर संभावित रोगों महारोगों (महामारियों )आदि के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है |
कुलमिलाकर मौसम वैज्ञानिकों के लिए उपग्रहों रडारों के माध्यम से प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कोई सही गलत अंदाजा लगा भले आसान लगता हो किंतु प्रकृति के स्वाभाविक परिवर्तनों के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लेना विज्ञान के लिए सबसे बड़ी चुनौती है !इसके बिना "प्रारंभिक स्वास्थ्य
चेतावनी में प्रणाली" से संबंधित अनुसंधान प्रक्रिया में मौसम वैज्ञानिकों की उपयोगिता ही क्या है ?
कुछ मात्रा में यदि उपग्रहों रडारों की पद्धति से प्राप्त होने वाली मौसम संबंधी जानकारी का उपयोग महामारी बिषयक अनुसंधानों में किया भी जाए तो महामारी जैसे कठिन समयों में मौसम पूर्वानुमान लगाना भी तो आसान नहीं रह जाता है | मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रत्यक्ष प्रक्रिया में उपग्रहों रडारों की मदद के अतिरिक्त डेटा जुटाने के कार्य में विमान सेवाएँ भी बड़ी मददगार होती हैं किंतु महामारी जैसे कठिन समय में जब ऐसे डेटा की सबसे अधिक आवश्यकता होती है उस समय लॉकडाउन आदि लग जाता है इसलिए विमान सेवाएँ पूरी तरह बंद कर दी जाती हैं |प्रत्यक्ष माध्यमों से लगाए जाने वाली मौसम पूर्वानुमान प्रक्रिया में यह भी एक बड़ी बाधा है |सन 2020 में AGU के जियोफिजिकल रिसर्ज लैटर्स जर्नल में प्रकाशित
हुए अध्ययन में पाया गया है कि कोरोना वायरस के कारण दुनिया में 50 से 75
प्रतिशत तक वायुयानों की सेवाओं का रद्द कर दी गई हैं | इन हवाईयात्राओं
के न होने के कारण मार्च से लेकर मई तक हवाई जहाजों के जरिए मिलने वाली
मौसम की जानकारियाँ भी हासिल नहीं हो सकी हैं.| वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना वायरस की वजह से ठप्प हुई वायुसेवाओं
के कारण मौसम के पूर्वानुमान लगाने की शुद्धता में बहुत कमी आई है |
ऐसी परिस्थिति में मौसम संबंधी अंदाजा लगाने वाली वैज्ञानिक प्रक्रिया से महामारी विषयक अनुसंधानों को मदद मिलने की आशा कैसे की जा सकती है |
घटनाओं के कारण खोजने के बाद ही खोजे जा सकते हैं बचाव के उपाय !
कोरोना जैसी महामारियाँ किसी किसी वर्ष ही आती हैं उसके बाद फिर दशकों तक नहीं आती हैं | इसी प्रकार से डेंगू जैसे रोग कुछ वर्षों या कुछ महीनों में होते देखे जाते हैं उसके बाद फिर बहुत समय तक नहीं होते हैं |
किसी भी घटना के विषय में अनुसंधान करने के लिए उस घटना के घटित होने का
कारण खोजना सबसे पहले आवश्यक होता है कारण जाने बिना उसका निवारण करना
संभव नहीं होता है| ब्यवहारिक जगत में भी मनुष्यकृत घटनाएँ घटित होते देखी
जाती हैं कई बार आपराधिक बारदातें घटित होती हैं उन पर भी अंकुश लगाने के
लिए उनके कारण खोजने आवश्यक माने जाते हैं | कारण जाने बिना उन घटनाओं पर
अंकुश लगाने की कल्पना करना कुछ करते दिखने का प्रदर्शनमात्र होता है |
रोड पर किसी एक ही जगह बार बार एक्सीडेंट होते हों तो उसका कारण खोजने पर पता लगता है कि यहाँ रोड में गड्ढा है या रोड टूटा हुआ है | कारण पता लगजाने पर उसकी रिपेयरिंग हो जाती है और उस जगह एक्सीडेंट होने बंद हो जाते हैं |
किसी के पेट में बार बार दर्द होने लगता है तो इसका कारण खोजने पर पता लगा कि पेट में पथरी है | आपरेशन करके पथरी निकाल दी गई तो पेट में बार बार दर्द होना बंद हो जाता है |
इसीलिए प्राकृतिक या मनुष्यकृत सभी घटनाओं को समझने के लिए उसके घटित होने का कारण पता होना आवश्यक है | चिकित्सक लोग भी इसी लिए जुकाम जैसा सामान्य
रोग होने पर भी सबसे पहले उसका कारण खोजते देखे जाते हैं | बहुत ठंडा कुछ खाया पिया तो नहीं था
? ठंडे स्थानों में तो नहीं गए
थे? वर्षा में तो नहीं भीगे थे ?आदि बातें पूछकर जुकाम होने का कारण खोजते देखे जाते हैं | उसी के आधार पर वे रोग से मुक्ति दिलाने के लिए प्रभावी प्रयत्न करते देखे जाते हैं | उनका प्रभाव भी पड़ता है जिससे स्वास्थ्य लाभ मिलता है |
कोरोना महामारी पर अंकुश न लग पाने के लिए जिम्मेदार सबसे बड़ा कारण यह भी है कोरोना महामारी के पैदा होने का कारण अभी तक नहीं पता लगाया जा सका है|महामारी प्रारंभ होने का कारण जाने के बिना महामारी के समाप्त होने के विषय में कोई भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं है |
इसी प्रकार से कोरोना महामारी की बार बार आने जाने वाली लहरों के आने और जाने का क्या कारण है यह खोजे बिना महामारी की के विषय में कोई भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं है |
इसीलिए महामारी एवं उससे संबंधित लहरों के आने जाने के विषय में अभी तक कोई अनुमान या पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | इसके बिना तो सूत्र मॉडल टाइप के जुगाड़ भिड़ाए भी गए उनका अपना ही कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है इसीलिए उनके द्वारा कुछ आंकड़ों के आधार पर लगाए गए अंदाजे सच होने की कल्पना भी कैसे की जा सकती है |
कोरोना जैसी इतनी बड़ी महामारी आने या कई लहरें बीत जाने के बाद भी अभी तक इस
बात का पता नहीं लगाया जा सका है कि कोरोना महामारी के प्रारंभ होने का
कारण क्या है ये प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !यदि यह महारोग प्राकृतिक है तो
वे कौन कौन से प्राकृतिक कारण हैं जो अन्य वर्षों में नहीं घटित हुआ करते थे
केवल इन्हीं दो चार वर्षों से घटित हो रहे हैं | यदि ये महामारी मनुष्यकृत
है तो इन्हीं दो चार वर्षों में मनुष्यों के द्वारा ऐसा क्या नया करना
प्रारंभ कर दिया गया है जो अन्य वर्षों में नहीं किया जाता था | आखिर ये
महामारी इन्हीं वर्षों में प्रारंभ होने का कारण क्या है ?
महामारी की शुरुआत का कारण यदि किसी देश विशेष को मान भी लिया जाए तो उसका वैज्ञानिक आधार क्या है ?विश्वास पूर्वक यह कैसे कहा जा सकता है कि यदि उस देश में महामारी प्रारंभ न हुई होती तो संपूर्ण विश्व महामारी से मुक्त बना रहता | कई बार गर्मियों में गाँव के किसी एक घर में आग लगती है तो पूरे गाँव में फैल जाती है | ऐसी स्थिति में आग लगना शुरू होने के लिए किसी एक देश को दोषी भले मान लिया जाए | यह इस बात को समझने के लिए सरल और सामान्य कारण हो
सकता है किंतु इसका विशेष कारण यही है कि आग बढ़ने के लिए आवश्यक ईंधन तो गाँव सभी लोगों ने अपने
अपने घरों में जमा कर रखा था तभी आग उसमें पकड़ती चली गई | यदि ऐसा न होता
अर्थात उस आग को फैलने के लिए गाँव के अन्य घरों में ईंधन न मिलता तो आग
जिस घर में लगी थी वहीं शांत हो जाती |इसलिए उस गाँव में आग लगने का कारण लोगों के घरों में संचित ईंधन है |
जिस प्रकार से किसी गाँव के सभी घरों में ईंधन होने जैसा एक समान कारण विद्यमान था | ऐसी परिस्थिति में आग यदि उस घर में न भी लगी होती ईंधन विद्यमान होने के कारण आग लगना किसी अन्य घर से भी प्रारंभ हो सकता था |इसलिए गॉंव के सभी घरों में अनावश्यक ईंधन संचय से बचते हुए उस गॉंव को अग्निकांड मुक्त गॉंव के रूप में सुरक्षित किया जा सकता है |
इसी प्रकार से महामारी के पैदा होने या उसके प्रसार के लिए सहयोगी समान कारण यदि खोज लिए जाएँ तो उनका निवारण खोजकर अपने अपने देशों प्रदेशों जिलों नगरों गाँवों परिवारों को महामारी काल महामारी मुक्त रखा जा सकता है |
जिस प्रकार से डेंगू के पैदा होने के लिए कुछ मच्छरों को कारण माना गया है इसलिए डेंगू जैसी महामारियों से बचाव के लिए मच्छरों से मुक्त वातावरण बनाने के लिए प्रयत्न किए जाते हैं | इसी प्रकार से महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार यदि वास्तविक कारण खोज लिया गया होता तो उससे भी बचाव के लिए उन कारणों से निवारण नियमों का पालन करके महामारी मुक्त समाज की संरचना की जा सकती थी |
इसीलिए महामारी की शुरुआत किसी एक देश में भले हुई हो किंतु उस महामारी के
फैलने लायक वातावरण तो अन्य देशों में भी मिलता गया जो महामारी के विस्तार
में सहायक बनता चला गया | वह कारण क्या था
जो सभी देशों में एक सामान रूप से विद्यमान था | उसे खोजा जाना आवश्यक है |उस कारण को खोजे बिना महामारी मुक्त समाज संरचना की कल्पना कैसे की जा सकती है |
निर्धारित कारणों का घटनाओं के साथ संबंध सिद्ध होना चाहिए !
किसी घटना के घटित होने का कारण कुछ भी बता देना ठीक नहीं है | प्रभावी अनुसंधानों के लिए बताए गए कारण की कारणता घटना के साथ सिद्ध होनी भी आवश्यक है |
महामारी फैलने का कारण संक्रमितों के साथ श्वास संपर्क या शारीरिक स्पर्श को माना गया | इसी को आधार मानते हुए इससे बचाव के लिए कुछ कोविड नियम बनाए गए !उन कोविड नियमों का पालन चिकित्सा विशेषज्ञों के द्वारा
आवश्यक बताया जाता रहा इसलिए सरकारें उसे अनिवार्य मानती रहीं |उन नियमों का पालन न करने वालों से कुछ देशों में जुर्माना भी वसूला जाता रहा |महामारी जैसे कठिन काल में कुछ लोग उधार व्यवहार हजार पाँच सौ रूपए लेकर राशन लेने जाते वहाँ मॉस्क न लगाए होने के कारण पकड़ जाते तो वही पैसे जुर्माने में देकर चले आते | बच्चे शाम को फिर भूखे रहते |
ऐसे कोविड नियमों के निर्माण का आधार क्या था इन नियमों के प्रभाव का परीक्षण किस प्रकार और कब किया गया उसके परिणाम क्या निकले या जनता को भी पता लगना चाहिए था |
ऐसे कोविड नियमों के प्रभाव का परीक्षण जब जनता ने अपनी दृष्टि से करना शुरू किया तो इनके विषय में समाज ऐसा सोचता था कि यदि ये वास्तव में कोविड नियम हैं तो इनका पालन करने वाले लोगों का उन लोगों की अपेक्षा अधिक बचाव होना चाहिए था जो कोविड नियमों का पालन नहीं कर रहे थे !इसके साथ ही नियमों का पालन न करने वाले लोगों को नियमों का पालन करने वाले लोगों की अपेक्षा अधिक संक्रमित होना चाहिए था |जनता के पास यही एक कसौटी थी |
व्यवहार में ऐसा देखा गया कि बहुत से साधन संपन्न लोग शुरू से ही एकांतवास करते हुए संपूर्णरूप से कोविड नियमों का पालन करते देखे जा रहे थे फिर भी उनमें से बहुत लोग संक्रमित हुए | दूसरी ओर कोरोना काल में गरीब एवं साधन विहीन लोग एवं उनके बच्चे कोरोना नियमों का पालन प्रायः नहीं कर पाए | परिवार चलने के लिए उस समय भी लुकछिपकार मजदूरी करते रहे,नगरों महानगरों में फल सब्जी बेचते रहे | भोजन की कतारों में दिन दिन भर खड़े रहते ! घनी बस्तियों,सामूहिक
आवासों एवं छोटे घरों में कई कई लोग एक साथ रहते रहे जहाँ कोविडनियमों का पालन करना संभव ही नहीं था ,दिल्ली मुंबई सूरत आदि से श्रमिक वर्ग का पलायन दुनियाँ ने देखा है जहाँ कोविड नियमों का आंशिक रूप से भी पालन संभव ही न था ,किंतु
ऐसे समयों में या ऐसे स्थानों पर ऐसे लोगों में संक्रमण बढ़ते नहीं देखा गया | वे
प्रायः स्वस्थ घूमते रहे जबकि कोरोना नियम निर्धारकों के द्वारा ये आशंका व्यक्त की जा रही थी कि ये लोग जहाँ जहाँ जाएँगे वहाँ बहुत अधिक मात्रा में कोरोना संक्रमण फैलेगा किंतु ऐसा होते तो नहीं देखा गया जबकि दिल्ली मुंबई में जहाँ कोविड नियमों के पूर्ण पालन का प्रयास किया जा रहा था वहाँ मजदूरों के पलायन के बाद सितंबर 2020 में काफी संक्रमण बढ़ते देखा गया था |
इसी प्रकार से दिल्ली में आंदोलनरत किसानवर्ग
,बिहार बंगाल की चुनावी
रैलियों में उमड़ी भारी भीड़ें ,धनतेरस और दीपावली जैसी त्योहारी बाजारों में
उमड़ी भारी भीड़ें, कुंभ मेले की भीड़ें बनी रहीं उनमें भी प्रायः कोरोना मुक्त वातावरण बना रहा|
ऐसी परिस्थिति में कोविड नियमों के पालन का कितना प्रभाव पड़ता है उसका अंदाजा कैसे लगाया जाता कि कोविड नियमों के पालन से बचाव होता है |
ऐसे ही वैज्ञानिकों
के द्वारा कहा गया कि तापमान कम होने पर महामारी संबंधित संक्रमण बढ़ सकता है और
तापमान अधिक होने पर संक्रमण कम हो सकता है | इसका परीक्षण करने हेतु जब
घटनाओं के साथ मिलान किया गया तो सन 2020 के अगस्त सितंबर में पहली लहर और सन 2021 के मार्च अप्रैल में दूसरी लहर आई थी | उस समय तापमान सर्दी के समय की अपेक्षा तो काफी अधिक था | ऐसे ही अनुमान के विरुद्ध सन 2020 -2021 की सर्दी में महामारी जनित संक्रमण क्रमशः कम होता जा रहा था |इसका कारण क्या था ?
इसी प्रकार से वैज्ञानिकों के द्वारा वायु प्रदूषण से कोरोना महामारी बढ़ने की बात कही गई थी किंतु ब्यवहार में ऐसा नहीं देखा गया ! सन 2020 के अगस्त सितंबर में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत कम होने पर भी महामारी की पहली लहर आई थी | सन 2021 के मार्च अप्रैल में जब दूसरी लहर आई थी उससमय भी वायुप्रदूषण का स्तर काफी कमजोर था जबकि सन 2020
के अक्टूबर नवंबर दिसंबर में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ा हुआ था
किंतु उस समय महामारी तो दिनोंदिन समाप्त होती जा रही थी | इसका कारण क्या
था ?
इस प्रकार से ये अनुमान घटनाओं के साथ प्रमाणित नहीं हो सके
इतनी विकराल महामारी के लिए इतने भ्रमित अनुसंधान
महामारी ही अधिक हिंसक है या फिर महामारी से निपटने की वैज्ञानिक तैयारियों में ही दम नहीं था !
इतना अधिक नुक्सान महामारी से हुआ या फिर महामारी से निपटने की तैयारियों
की कमी के कारण हुआ है | जिन वैज्ञानिक क्रिया कलापों को महामारी से
संबंधित
वैज्ञानिक अनुसंधान बताया जाता रहा | उन अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों की
जब आवश्यकता पड़ी तब वे किसी काम के नहीं निकले !उन अनुभवों के आधार पर
विभिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में जब जब जो जो अनुमान
पूर्वानुमान आदि लगाए जाते रहे वे सब के सब गलत निकलते चले गए | ये हमारे महामारी से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों की तैयारियों का स्तर रहा है
|
ऐसी परिस्थिति में उन अनुसंधानों से ये अपेक्षा कैसे की जा सकती थी कि
इनके आधार पर महामारी के विषय में जो कुछ बताया जा रहा है वह सही भी हो
सकता है |
आश्चर्य -
1 अप्रैल 2020-कोरोना वायरस की कोई दवा नहीं फिर भी देश में कैसे ठीक हो रहे हैं लोग?
21अप्रैल 2020कोरोना ने बदला मौसम का मिजाज़! भारत में सबसे ठंडा अप्रैल, ब्रिटेन में चल रही लू !कोरोना महामारी के बीच ब्रिटेन में
गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. वहाँ अप्रैल में भीषण
गर्मी और लू चल रही है |
8
सितंबर 2020- डब्ल्यूएचओ प्रमुख की चेतावनी, दुनिया को अगली महामारी के
लिए रहना होगा तैयार !डब्ल्यूएचओ ने एक बयान में कहा कि समिति ने कोविड-19
महामारी की लंबी अवधि के पूर्वानुमान को बताया है।
15अप्रैल
2021-केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि कोरोना वायरस और कितना खतरनाक
होगा और कब तक चलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। घर के घर कोविड ग्रस्त हैं
और आने वाले 15 दिन या 1 महीने में क्या होगा यह कहना मुश्किल है।
उन्होंने कहा कि लोगों को सर्वश्रेष्ठ के लिए सोचना चाहिए, लेकिन सबसे
खराब के लिए तैयार रहना चाहिए। इस महामारी से निपटने के लिए दीर्घकालिक
प्रबंधों की जरूरत है।
2
मई 2021-को एक समाचारपत्र में प्रकाशित "भारत के वैज्ञानिकों के एक समूह
ने कहा है कि भारत में आई कोरोना वायरस की दूसरी लहर की प्रकृति कैसी है,
इसको लेकर कोई सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। कोरोना वायरस मामलों की
वृद्धि का पूर्वानुमान लगाने के लिए गणितीय मॉडल पर काम कर रहे वैज्ञानिकों
के एक समूह ने कहा कि है वे देश में आई विनाशकारी दूसरी लहर के सटीक
प्रक्षेपवक्र (ट्रेजेक्ट्री) का अनुमान नहीं लगा सकते है क्योंकि समय के
साथ वायरस की गतिशीलता और इसकी संक्रामकता में काफी बदलाव आया है।
28
जून 2021- कोरोना टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कहा है कि महामारी
की अगली लहर का निश्चित समय नहीं बताया जा सकता. उन्होंने कहा कि किसी भी
अगली लहर का कोई भी समय निश्चित करना तर्कसंगत नहीं होगा क्योंकि कोरोना का
व्यवहार अनिश्चित है |
3
जुलाई 2021को IIT कानपुर के वैज्ञानिक मनींद्र अग्रवाल हैं जिन्होंने अप्रैल की
शुरुआत में गणितीय मॉडल के माध्यम से अनुमान लगाया गया था कि देश में 15
अप्रैल तक संक्रमण की दर अपने चरम पर पहुंच जाएगी, लेकिन यह सत्य साबित
नहीं हुई। अग्रवाल ने कहा कि मौजूदा चरण के लिए हमारे मॉडल के मापदंड
लगातार बदल रहे हैं, इसलिए एकदम सटीक आकलन मुश्किल है।आईआईटी के विशेषज्ञों
का मानना है कि तीसरी लहर दूसरी लहर से कमजोर होगी. एक्सपर्ट्स ने कहा कि
तीसरी लहर कब आएगी इसको लेकर ठोस भविष्यवाणी नहीं की जा सकती.
वैज्ञानिक मनींद्र अग्रवाल ने बताया कि महामारी का पूर्वानुमान लगाने के
लिए मॉडल में तीन मापदंडों का इस्तेमाल किया गया है। पहला बीटा या संपर्क,
जिसकी गणना इस आधार पर की जाती है कि एक व्यक्ति ने कितने अन्य को
संक्त्रमित किया। उन्होंने बताया कि दूसरा मापदंड है कि महामारी के प्रभाव
क्षेत्र में कितनी आबादी आई, तीसरा मापदंड पुष्टि हुए और गैर पुष्टि हुए
मामलों का संभावित अनुपात है।
विशेषबात
: आईआईटी कानपुर के द्वारा की गई इस रिसर्च का मतलब वह जनता क्या समझे
जिसे मदद पहुँचाने के लिए ऐसे रिसर्च किए जाते हैं और यदि उस जनता को कुछ
समझ में ही नहीं आया तो ऐसे रिसर्च का मतलब क्या है और इस संपूर्ण वक्तव्य
में कुछ निराधार तीर तुक्के जरूर दिखाई पड़ रहे हैं किंतु भविष्यवाणी जैसी
कोई बात तो दूर दूर तक नहीं है |
IIT हैदराबाद के एक
प्रोफेसर विद्यासागर :विद्यासागर की टीम के अनुमान गलत साबित हुए. उनका अनुमान था कि जून
महीने के मध्य तक कोविड वेव पीक पर होगी उन्होंने तब ट्विटर पर लिखा था कि
ऐसा गलत पैरामीटर्स के चलते हुआ | इसी साल मई में IIT हैदराबाद के एक
प्रोफेसर विद्यासागर ने कहा था कि भारत के कोरोनावायरस का प्रकोप
मैथेमेटिकल मॉडल के आधार पर कुछ दिनों में पीक पर हो सकता है. ब्लूमबर्ग के
मुताबिक, उस वक्त विद्यासागर ने बताया था ‘हमारा मानना है कि कुछ दिनों के
भीतर पीक आ जाएगा. मौजूदा अनुमानों के अनुसार जून के अंत तक प्रतिदिन
20,000 मामले दर्ज किए जा सकते हैं.’|
30-8-2021
-आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिक मणिंद्रअग्रवाल ने कहा कि अगर तीसरी लहर आती है तो देश में प्रतिदिन एक लाख
मामले सामने आएंगे। " ज्ञात रहे कि पिछले महीने, मॉडल के मुताबिक बताया गया
था कि तीसरी लहर अक्टूबर और नवंबर के बीच में चरम पर होगी और रोजाना मामले
प्रति दिन डेढ़ लाख से दो लाख के बीच होंगे !"
23 सितंबर 2021 -कैसी हो सकती हैं भविष्य में कोरोना की लहरें?विश्व
स्वास्थ्य संगठन और वैक्सीन एलायंस GAVI का आकलन है कि आने वाले कई वर्षों
तक कोरोना वायरस कहींजाने वाला नहीं है. कम या ज्यादा प्रभावी रूप में ये
अलग-अलग देशों और उनके अलग-अलग इलाकों में उभरता रहेगा. इससे निपटने के
उपायों के साथ-साथ लोगों को इसके साथ जीने की आदत डालनी होगी. WHO की चीफ
साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन कहती हैं- 'हम ऐसे फेज की ओर बढ़ रहे हैं
जिसे endemicity कहा जा सकता हैटॉप भारतीय वायरालॉजिस्ट डॉ. गगनदीप कांग
कहती हैं कि तीसरी लहर अगर आती है तो दूसरी लहर जितनी मजबूत होगी ये अभी
कहना उचित नहीं है.|
4अक्टूबर2021
- आईसीएमआर के बलराम भार्गव, समीरन पांडा और संदीप मंडल और इंपीरियल
कॉलेज लंदन में कहा है -तीसरी लहर अगर आती है तो दूसरी लहर जितनी मजबूत होगी ये अभी कहना
उचित नहीं है. मालन अरिनामिनपथी द्वारा गणितीय मॉडल ‘कोविड-19 महामारी के
दौरान और भारत के अंदर जिम्मेदार यात्रा’ पर आधारित यह ‘ओपिनियन पीस’
(परामर्श) ‘जर्नल ऑफ ट्रैवल मेडिसिन’ में प्रकाशित किया गया है.-"कोरोना
वायरस संक्रमण और कोरोना की तीसरी लहर का खतरा मंडरा रहा है. यदि किसी कारण
से भीड़ होती है तो कुछ राज्यों में कोरोना की तीसरी लहर की स्थिति भयावह
हो सकती है. विशेषज्ञों ने कहा है कि छुट्टियों की एक अवधि संभावित तीसरी
लहर की आशंका को 103 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है और उस लहर में संक्रमण के
मामले 43 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं
महामारी का जन्म
26मार्च 2020प्राकृतिक है कोरोना वायरस, लैब में नहीं बनाया गया !अमेरिका समेत कई देशों की मदद से हुए एक वैज्ञानिक शोध में दावा किया गया
है कि यह वायरस प्राकृतिक है। स्क्रीप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोध को नेचर
मेडिसिन जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। शोध को अमेरिका के
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ, ब्रिटेन के वेलकम ट्रस्ट, यूरोपीय रिसर्च
काउंसिल तथा आस्ट्रेलियन लौरेट काउंसिल ने वित्तीय मदद दी है तथा आधा दर्जन
संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए।
1 मई 2020 अमेरिका ने अब माना, 'मानवनिर्मित' नहीं है कोविड-19 वायरस, मगर लैब में जॉंच होती रहेगी |
2मई 2020 को विश्व
स्वास्थ्य संगठन में आपात स्थितियों के प्रमुख डॉक्टर माइकल रायन ने कहा
है कि WHO को भरोसा है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक रूप से पैदाहुआ है। रायन
ने कहा कि WHO की टीम ने बार-बार बहुत सारे वैज्ञानिकों से इस पर
चर्चा की है, जिन्होंने वायरस के जीन सीक्वेंस को देखा है और हमें इस बात
का पूरा भरोसा है कि ये वायरस प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है। उन्होंने ये
भी कहा कि कोरोना वायरस से प्राकृतिक होस्ट का पता लगाना जरूरी है, ताकि
इसके बारे में अधिक जानकारी मिल सके और भविष्य में ऐसे खतरे से बचा जा सके।
तापमान का प्रभाव !
10 अप्रैल 2020-अमेरिकन स्टडी का दावा- गर्म मौसम नहीं करेगा कोरोना वायरस को रोकने में मदद!
24
अप्रैल 2020
सनलाइट से जल्दी खत्म हो जाता है कोरोना वायरस, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने
किया रिसर्च में दावा | होमलैंड सुरक्षा सचिव के विज्ञान और तकनीकी विभाग
के सलाहकार विलियम ब्रायन
ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों से कहा कि सरकारी वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में
पाया है कि सूरज की पराबैंगनी किरणें पैथोगेन यानी वायरस पर प्रभावशाली
असर डालती हैं। उम्मीद है कि गर्मियों में इसका प्रसार कम होगा।
11
May 2020 भारतीय विषाणु वैज्ञानिक नगा सुरेश वीरापु का कहना है कि उच्च
तापमान से कोरोना वायरस के संक्रमण में कमी आएगी लेकिन गर्मी में वायरस के
पूरी तरह के खत्म होने की धारणा पूरी तरह से निराधार है.
27
मई 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ज्यादा तापमान कोरोना वायरस
के लिए अनुकूल नहीं है और निर्जीव वस्तुओं को देर तक धूप में रखने से उन पर
हुआ वायरस का असर खत्म हो जाता है, यानि ज्यादा तापमान पर वायरस नष्ट हो
जाता है।
3
जून 2020 -कैंब्रिज के माउंट ऑबर्न हॉस्पिटल के नए अध्ययन में पाया गया है
कि पिछला 52 डिग्री फ़ारेनहाइट तक गर्म मौसम कोरोनो वायरस को बिल्कुल
प्रभावित नहीं कर पाया।
3
जून 2020 -माउंट ऑबर्न हॉस्पिटल द्वारा की गई स्टडी में कहा गया है कि
सूर्य की अल्ट्रा वॉयलट किरणें इस इंफेक्श को नए लोगों तक बढ़ने से रोकने
में सहायक हैं।
6
जून 2020 को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुंबई के वैज्ञानिकों
ने एक अध्ययन में दावा किया है कि गर्म और शुष्क मौसम में सतह पर कोरोना
वायरस के सक्रिय रहने की गुंजाइश कम हो जाती है।
11
अगस्त 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि कोरोना वायरसमें मौसमी
प्रवृत्ति दिखाई नहीं पड़ रही है। इसके चलते इस खतरनाक वायरस पर अंकुश पाना
कठिन होता जा रहा है।डब्ल्यूएचओ के आपात मामलों के प्रमुख डॉ. माइकल रेयान
ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि श्वसन तंत्र पर हमला करने वाले
इंफ्लुएंजा जैसे वायरसों की तरह कोरोना नहीं है। इंफ्लुएंजा का खासतौर पर
सर्दी के मौसम में प्रसार होता है। जबकि कोरोना महामारी गर्मी में भी बढ़ती
जा रही है।
14
अगस्त 2020 (बीबीसी)-वैज्ञानिकों को आशंका है कि सर्दी के मौसम में दुनिया
को कोरोना वायरस की 'सेंकेंड वेव' का सामना करना पड़ सकता है | डर इस बात
का है कि ठंडी हवाओं के साथ बदलते मौसम की वजह से, कोरोना वायरस अपनी अधिक
ताक़त के साथ तेज़ी से फैल सकता है |
20
मार्च 2020 कोरोना वायरस क्या गर्मी से मर जाता है?गर्मी की मदद से कोरोना
वायरस को ख़त्म किया जा सकता है. कई दावों में पानी को गर्म करके पीने की
सलाह दी जा रही है. यहां तक कि नहाने के लिए गर्म पानी के इस्तेमाल की बात
कही जा रही है.गर्म पानी पीने और सूरज की रोशनी में रहने से इस वायरस को
मारा जा सकता है.|
17अप्रैल2021-
12 रिसर्चर्स की टीम में डॉ संदीप शुक्ला भी हैं जिनका कहना है कि ड्राइ
सरफेस की तुलना में वायरस पानी में ज्यादा समय तक सक्रिय रह सकता है इसलिए
हवा या जमीन से ज्यादा गंगा के बहते पानी से कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा
है |
वायु प्रदूषण-
8 अप्रैल 2020-
अधिक
वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने से कोविड-19 के कारण मौत होने का
अधिक जोखिम है। ऐसा अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में दावा किया गया है।हार्वर्ड
टी एच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने कहा कि शोध में सबसे
पहले लंबी अवधि तक हवा में रहने वाले सूक्ष्म प्रदूषक कण (पीएम2.5) और
अमेरिका में कोविड-19 से मौत के खतरा के बीच के संबंध का जिक्र किया गया
है।
26 अप्रैल 2020 को वायु प्रदूषण के कणों पर कोरोना वायरस का चला पता, ज्यादा प्रदूषित इलाके में उच्च संक्रमण देखा गया है | इटली के वैज्ञानिकों ने बर्गामो प्रांत के एक शहरी और एक औद्योगिक स्थल पर
बाहरी वायु प्रदूषण के नमूने एकत्र करने के लिए मानक तकनीकों का इस्तेमाल
किया है ।
बढ़ने के कारण
1अप्रैल
2021-दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. राणा अनिल
कुमार सिंह ने कहा है कि लोगों की लापरवाही और उदासीनता के चलते देशभर में
कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है। दिल्ली में भी
इसीलिए ऐसे हालात बने हैं।
19 जून 2021-अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक
रणदीपगुलेरिया ने चेतावनी दी कि यदि कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन नहीं
किया गया और भीड़-भाड़ नहीं रोकी गई तो अगले छह से आठ सप्ताह में वायरल
संक्रमण की अगली लहर देश में दस्तक दे सकती है।
7-5-2021
को कोरोना की तीसरी लहर के बिषय में सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार
के. विजय राघवन ने अपना बयान बदला और कहा -" अगर हम मजबूत उपाय करते हैं
तो ऐसा संभव है कि देश में अगली लहर कहीं ना आए !"
16
जुलाई 2021-दुनिया कोरोना महामारी की तीसरी लहर को लेकर सहमी हुई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूूएचओ) के प्रमुख टेड्रॉस ए. गेब्रेयेसिस ने
कहा है कि कोरोना की तीसरी लहर अभी शुरुआती दौर में हैं। दुनियाभर में
डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित मरीजों की संख्या अभी गिनती में हैं। अभी इसे
बेकाबू होनेसे रोकना संभव है, हमेशा की तरह इस बार भी अगर लापरवाही हुई तो
पहले से भी भयावह नतीजे सामने होंगे।
4अक्टूबर2021- मालन अरिनामिनपथी द्वारा गणितीय मॉडल ‘कोविड-19 महामारी के
दौरान और भारत के अंदर जिम्मेदार यात्रा’ पर आधारित यह ‘ओपिनियन पीस’
(परामर्श) ‘जर्नल ऑफ ट्रैवल मेडिसिन’ में प्रकाशित किया गया है.-"कोरोना
वायरस संक्रमण और कोरोना की तीसरी लहर का खतरा मंडरा रहा है. यदि किसी कारण
से भीड़ होती है तो कुछ राज्यों में कोरोना की तीसरी लहर की स्थिति भयावह
हो सकती है. विशेषज्ञों ने कहा है कि छुट्टियों की एक अवधि संभावित तीसरी
लहर की आशंका को 103 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है और उस लहर में संक्रमण के
मामले 43 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं
चिकित्सकों की बेबशी
23 अप्रैल 2020 - न्यूयॉर्क सिटी के बेलेउवे हॉस्पिटल के डॉक्टर रिचर्ड लेवितान ने कहा किकोरोना
वायरस की वजह से मरीजों का दम घुट रहा है. वेंटिलेटर और लाइफ सपोर्ट
सिस्टम भी बेकार साबित हो रहे हैं. डॉक्टर मरीजों को मरते हुए देखते रह
जाते हैं |
हृदय रोगियों को अधिक जोखिम !
13 अप्रैल 2020 को हृदय रोगों से पीड़ित और स्ट्रोक झेल चुके मरीजों को अधिक है कोरोना वायरस का जोखिम!उच्च रक्तचाप, मधुमेह या हृदय रोगों से पीड़ित लोगों को संक्रमण होने का
अधिक खतरा होता है। इन लोगों में कोरोना वायरस से गंभीर लक्षणों का अनुभव
करने के ज्यादा जोखिम भी हैं।
02-08-2020-कोरोना काल में 70 प्रतिशत कम हुए हार्ट अटैक !
महामारी का प्रसार
24 मार्च 2020(बीबीसी) 24 मार्च 2020 |कोरोना वायरस क्या हवा से भी फैल सकता है?
28 अप्रैल 2020
बीजिंग -वैज्ञानिकों ने हवा में कोरोना वायरस की आनुवंशिक सामग्री की
उपस्थिति पता लगाया है|
17अप्रैल2021-
12 रिसर्चर्स की टीम में डॉ संदीप शुक्ला भी हैं जिनका कहना है कि ड्राइ
सरफेस की तुलना में वायरस पानी में ज्यादा समय तक सक्रिय रह सकता है इसलिए
हवा या जमीन से ज्यादा गंगा के बहते पानी से कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा
है |
प्लाज्मा थेरेपी
7
अगस्त 2020 कोAIIMS स्टडी का दावा- प्लाज्मा थेरेपी कोरोना मृत्यु दर को
कम करने में कारगर नहीं है| डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने गुरुवार को बताया कि
एम्स के 30 मरीजों पर यह स्टडी की गई. लेकिन परीक्षण के दौरान प्लाज्मा
थेरेपी का कोई फायदा नज़र नहीं आया |
22
अप्रैल 2021 -कानपुर जीएसवीएम मेडिकल कालेज के विशेषज्ञों की रिपोर्ट में
पाया गया कि बीते साल जिन गंभीर रोगियों को प्लाज्मा थेरेपी दी गई उन्हें
तो नहीं बचाया जा सका। लेकिन जिन्हें निमोनिया की शुरुआत में प्लाज्मा
चढ़ाया गया, उनकी हालत गंभीर नहीं हुई और बच गए।
वैक्सीन बना लेने के दावे
5 मई 2020 को इजरायल के रक्षा मंत्री नैफ्टली बेन्नेट ने दावा किया है कि इजरायल के डिफेंस बायोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ने कोविड-19 का टीका बना
लिया है।
7 मई 2020 को कोरोना स्वरूप बदल रहा है | रूप बदलने पर अगर वायरस खतरनाक हो जाए तो नई बनाई गई वैक्सीन उस पर असर
नहीं करेगी.म्यूटेशन (बदलाव) होना वैक्सीन की प्रक्रिया पर असर डाल सकता है.
8
मई 2020 को अमेरिका के कैलीफोर्निया में स्थित बायोफार्मास्यूटिकल कंपनी
गिलियड साइंसेस ने कोरोना वायरस को खत्म करने वाली एंटीवायरस मेडिसिन बना
ली है। इसे वेकलरी नाम दिया गया है।अमेरिका के वरिष्ठ संक्रामक रोग
विशेषज्ञ डॉक्टर एंथोनी फॉसी ने इस दवा को कोरोना वायरस को खत्म करने वाली
एकमात्र दवा बताया है।इस दवा के इस्तेमाल को अमेरिका एक सप्ताह पहले ही
मंजूरी दे चुका है।अमेरिका के बाद जापान ने भी गंभीर हालत वाले मरीजों पर
इस दवा के इस्तेमाल मंजूरी दे दी है।
6
जून 2020 -अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उनके देश
में कोरोना महामारी की वैक्सीन खोज ली गई है। अमेरिका ने 20 लाख वैक्सीन
बना ली है |
02-08-2020 -विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सोमवार (2 अगस्त) को आगाह किया कि
कोविड-19 की सटीक दवा कभी संभव नहीं है। उसने कहा कि हालात सामान्य होने
में अभी वक्त लगेगा। 2सितंबर
2020-खुद को बार-बार बदल रहा है कोरोना वायरस, ऐसे में कैसे बन पाएगी
वैक्सीन, टेंशन में एक्सपर्ट !इस अध्यनन में कई रिसर्च इंसीट्यूट ने भाग
लिया था जिसमें संक्रामक रोगों और वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रम में
प्रतिरक्षा, मैकगिल विश्वविद्यालय स्वास्थ्य केंद्र के अनुसंधान संस्थान और
मैकगिल इंटरनेशनल टीबी सेंटर, कनाडा के विशेषज्ञ शामिल थे।
6
फरवरी 21:इस समय अमेरिका व ब्रिटेन समेत कई विकसित देशों में टीकाकरण
अभियान जोरों पर है, तब भी वहां कोरोना संक्रमण रफ्तार में है। भारत में
कोरोना वायरस के मामलों में क्यों आ रही तेजी से गिरावट हो रही है | यह भी
साफ हो चुका है कि कोरोना के मामलों में गिरावट जांच कम होने के कारण नहीं
है। अब विशेषज्ञ यह पता लगाने में जुटे हैं कि क्या भारत में कोरोना
महामारी समाप्ति की ओर है? क्या हर्ड इम्युनिटी विकसित हो चुकी है? लोगों
में जागरूकता या मौसम है वजह? यहाँ तक कि त्योहार के सीजन यानी कि अक्टूबर
और नवंबर में भी भारत में कोरोना के मामले गिरते नजर आए. वहीं, राजधानी
दिल्ली से लगी सीमाओं पर भारी संख्या में किसान दो महीने से अधिक समय से
प्रदर्शन कर रहे हैं, बावजूद इसके कोरोना संक्रमण में तेजी नहीं पाई गई है.
ऐसे में इसकी एक वजह बता पाना मुश्किल हो रहा है फिर भी कुछ वैज्ञानिकों
ने इसे लोगों की जागरूकताका परिणाम तो कुछ ने भारत की गर्म और आर्द्र
जलवायु को एवं कुछ ने माना कि आम लोगों में कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता
( इम्युनिटी) विकसित हो चुकी है |
16 अप्रैल 2020 -भारत में रूप बदल रहा है कोरोना, वैक्सीन की खोज को पलीता लग सकता है !अचानक वायरस की संरचना में बदलाव होने से वैज्ञानिकों को नए सिरे से मेहनत करनी पड़ सकती है|ताइवान के नेशनल चेंग्गुआ यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशन के वी-लुंग वांग और
ऑस्ट्रेलिया में मर्डोक विश्वविद्यालय के सहयोगियों ने किया है. शोधकर्ताओं
का कहना है कि कोरोना वायरस के रूप बदलने पर यह पहली रिपोर्ट है जिससे
वैक्सीन की खोज पर खतरा मंडरा सकता है. . स्वरूप बदलने के
कारण संभव है कि इस वायरस की वर्तमान में बन रही वैक्सीन बेकार हो जाए |
26 अप्रैल 2020 -यदि बदला कोरोना वायरस का स्वरूप तो बढ़ सकती है समस्या, 6 माह तक रखनी
होगी नजर !भविष्य में यदि कोरोना वायरस का
स्वरूप बदला तो ये पूरी दुनिया के लिए बड़ी समस्या बन सकता है। यदि ऐसा
नहीं हुआ तो इसकी वैक्सीन को बनाने में कम समय लगेगा।
11अगस्त
2020 रूस के राष्ट्रपति पुतिन की घोषणा- हमने वैक्सीन बनाकर रजिस्टर्ड
कराई, पहला डोज अपनी बेटी को लगवाया; नाम दिया 'स्पुतनिक वी'
14 अगस्त 2020 चीन का दावा, कहा- पहले हमने बनाई कोविड-19 की वैक्सीन, अप्रैल में ही ट्रायल हुआ था |
अनुमान
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अक्टूबर 2020 को सरकार द्वारा लॉकडाउन के प्रभाव और पूर्वानुमान के अध्ययन
के लिए हैदराबाद IIT के प्रोफेसर एम. विद्यासागर की अध्यक्षता में बनाई
गई समिति ने कहा कि कोरोना का पीक सितंबर 2020 में आ चुका है फरवरी 2021 तक
इससे मुक्ति मिल सकती है |प्रोफेसर विद्यासागर ने कहा, 'हमारी तैयारियों
में कमी के कारण स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई होती, जिससे कई अतिरिक्त
मौतें होतीं.'मास्क, डिसइंफेक्टिंग, टेस्टिंग और क्वारनटीन के अभ्यास को
लगातार जारी रखें. | अगर सभी प्रोटोकॉल्स को अच्छी तरह से लागू किया जाए
अगले साल फरवरी के अंत तक इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है|
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अक्टूबर 2020-विश्व स्वास्थ्य संगठन) की चीफ साइंटिस्ट सौम्या विश्वनाथन
दक्षिणी भारत वाणिज्य और उद्योग मंडल द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में
स्वामीनाथन ने कहा, 'हमें अनुशासित व्यवहार के लिए दो साल तक खुद को मानसिक
रूप से तैयार कर लेना चाहिए|
17अप्रैल2021-लांसेंट
जर्नल में प्रकाशित हुए एक शोध में भारत सरकार की कोरोना टास्क फोर्स के
सदस्य वैज्ञानिक भी सम्मिलित रहे हैं इस अध्ययन में भारत को लेकर यह दावा
किया गया है | ‘भारत की दूसरी कोरोना लहर के प्रबंधन के लिए जरूरी
कदम’शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जल्द ही देश में हर दिन
औसतन 1750 मरीजों की मौत हो सकती है. रोजाना मौतों की यह संख्या बहुत तेजी
से बढ़ते हुए जून के पहले सप्ताह में 2320 तक पहुंच सकती है |
24
अप्रैल 2021 वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ
मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) की ओर से कोविड-19 की आगामी स्थिति पर
अध्ययन किया गया है। 15 अप्रैल को प्रकाशित इस अध्ययन में कोविड टीकाकरण
अभियान के बावजूद दूसरी लहर के लंबे समय तक कहर बरपाने की आशंका जताई गई
है। आईएचएमई के विशेषज्ञों ने अध्ययन में चेतावनी दी है कि भारत में आने
वाले समय में कोरोना महामारी और विकराल रूप धारण कर सकती है। इस अध्ययन में
विशेषज्ञों ने भारत में कोरोना मरीजों की संख्या और कोविड से होने वाली
मौतों का आकलन किया है। अध्ययन में दावा किया गया है कि भारत में मई में
कोरोना महामारी से प्रतिदिन 5,600 से ज्यादा लोगों की मौत होगी। एक अनुमान
के मुताबिक, 12 अप्रैल से 1 अगस्त के बीच 3,29,000 लोगों की कोरोना से मौत
हो सकती है। कोरोना से मरने वालों की यह संख्या जुलाई के अंत तक 6,65,000
तक पहुंच सकती है।
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मई 2021को प्रकाशित- बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ने
आशंका जताई है कि अगर देश में कोरोना से मरने वालों रफ्तार मौजूदा की ही
तरह रही तो 11 जून तक देश में मौतों का आंकड़ा 4,04,000 से अधिक हो सकता
है. वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन स्थित इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मीट्रिक्स
एंड इवैल्युएशन के मुताबिक जुलाई के आखिर तक कोरोना संक्रमण से मरने वालों
की संख्या 10 लाख के पार पहुंच सकती है.वहीं ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में कहा
गया है कि भारत जैसे घनी आबादी वाले देशों में कोरोना संक्रमण के मामलों को
लेकर भविष्यवाणी करना आसान नहीं है. भारत में कोरोना टेस्टिंग और सोशल
डिस्टेंसिंग को बढ़ाने की जरूरत है. अगले कुछ महीनों में भारत कोरोना
संक्रमण से मरने वाले लोगों की संख्या के मामले में दुनिया का नंबर एक देश
बन सकता है. ब्राउन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ हेल्थ के डीन आशीष झा के अनुसार
भारत के लिए अगले 4 से 6 हफ्ते बेहद कठिन रहने वाले हैं. उन्होंने कहा कि
हमारे सामने चुनौती यह है कि कैसे भी इस लहर को सीमित किया जाए.
23 जून 2021- कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर को लेकर आईआईटी कानपुर के दो
वैज्ञानिकों के दावे अलग-अलग हैं। सर गणितीय मॉडल के आधार पर प्रो. राकेश
रंजन दावा कर रहे हैं कि सितंबर-अक्तूबर में तीसरी लहर का पीक होगा और वह
काफी खतरनाक साबित होगी, जबकि संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक पद्मश्री प्रो.
मणींद्र अग्रवाल सूत्र गणितीय मॉडल के आधार पर तीसरी लहर को दूसरी लहर की
अपेक्षा कमजोर मान रहे हैं।
30-8-2021
-आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिक मणिंद्रअग्रवाल ने कहा कि अगर तीसरी लहर आती है तो देश में प्रतिदिन एक लाख
मामले सामने आएंगे। " ज्ञात रहे कि पिछले महीने, मॉडल के मुताबिक बताया गया
था कि तीसरी लहर अक्टूबर और नवंबर के बीच में चरम पर होगी और रोजाना मामले
प्रति दिन डेढ़ लाख से दो लाख के बीच होंगे !"
30-8-2021
- आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिक मणिंद्रअग्रवाल हैंजोउस तीन सदस्यीय
विशेषज्ञ दल का हिस्सा हैं जिसे संक्रमण में बढ़ोतरी का अनुमान लगाने का
कार्य दिया गया है।उन्होंने कहा -"भारत में कोविड-19 की तीसरी लहर अक्टूबर
और नवंबर के बीच चरम पर हो सकती है। हालांकि इसकी तीव्रता दूसरी लहर की
तुलना में काफी कम होगी।अगर तीसरी लहर आती है तो देश में प्रतिदिन एक लाख
मामले सामने आएंगे। " ज्ञात रहे कि पिछले जुलाई महीने में मॉडल के मुताबिक बताया गया
था कि तीसरी लहर अक्टूबर और नवंबर के बीच में चरम पर होगी और रोजाना मामले
प्रति दिन डेढ़ लाख से दो लाख के बीच होंगे !"
तीसरी लहर में बच्चों को अधिक खतराहै?
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-6-2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान
दिल्ली के एम्स अस्पताल के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया नेकहा -"ऐसा कोई सबूत
नहीं है कि भविष्य में COVID-19 की लहर में बच्चे गंभीररूप से संक्रमित
होंगे।"(पहले तो कहा गया था कि तीसरी लहर में बच्चों को अधिक खतराहै )
9-6-2021
को चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र की प्रतिष्ठित पत्रिका लैनसेट की रिपोर्ट में
कहा गया है कि इस बात के अब तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, जिसके आधार
पर यह कहा जा सके कि कोविड-19 महामारी की तीसरी संभावित लहर में बच्चों के
गंभीर रूप से संक्रमित होने की आशंका है। लैंसेट कोविड-19 कमीशन इंडिया
टास्क फोर्स ने भारत में 'बाल रोग कोविड-19' के विषय के अध्ययन के लिए देश
के प्रमुख बाल रोग विशेषज्ञों के एक विशेषज्ञ समूह के साथ चर्चा करने के
बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। इसके लिए तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और
दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के 10 अस्पतालों में इस दौरान भर्ती हुए 10 साल से
कम उम्र के करीब 2600 बच्चों के क्लीनिकल आंकड़ों को एकत्र कर उसका
विश्लेषण करने के बाद ही यह रिपोर्ट तैयार की गई है।इस में कहा गया है कि
भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित बच्चों में उसी प्रकार के लक्षण पाए गए
हैं, जैसा कि दुनिया के अन्य देशों में देखने को मिले हैं।
पूर्वानुमान
2अप्रैल 2020 कोचीन के वैज्ञानिक का दावा- 4 हफ्तों में कम होंगे कोरोना वायरस के मामले !
चीन के सबसे बड़े कोरोना वायरस एक्सपर्ट ने दावा किया है कि अगले चार
हफ्तों में पूरी दुनिया पहले जैसी हो जाएगी. कोरोना वायरस के नए मामलों में
कमी आएगी. साथ ही ये भी भविष्यवाणी की है कि चीन में अब कोरोना वायरस का
दूसरा हमला नहीं होगा. ये भविष्यवाणी की हैं डॉ. झॉन्ग नैनशैन ने. डॉ.झॉन्ग कोरोना वायरस को लेकर चीन की सरकार द्वार तैनात मुख्य टीम के प्रमुख भी हैं |
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अप्रैल 2020 - स्टडी ग्लोबल कंसल्टिंग फर्म प्रोटिविटी और टाइम्स नेटवर्क
ने की है।यह मई के मध्य तक भारत को तेजी से अपनी चपेट में लेगी। फिर मई के
तीसरे हफ्ते में मामले अपने टॉप लेवल पर पहुंच सकते हैं। उसके बाद अगर
लॉकडाउन और बचाव के दूसरे तरीकों का सही तरीके से पालन किया गया तो मामलों
में कमी आनी शुरू हो जाएगी।
17अप्रैल 2020 -गृहमंत्रालय की ओर से किए गए एक आंतरिक सर्वेक्षण में पता चला है कि मई के
पहले सप्ताह में कोरोना के मरीजों में काफी तेजी देखने को मिलेगी. हालांकि
इसके बाद कोरोना मरीजों की संख्या धीरे-धीरे कम होने लगेगी |
18 अप्रैल 2020- ग्लोबल
कंसल्टिंग फर्म प्रोटिविटी और टाइम्स नेटवर्क के अनुसंधान के अनुसार कोरोना महामारी भारत में मई के बाद कमजोर पड़ सकती है।यह मई के मध्य तक भारत को तेजी से अपनी चपेट में
लेगी। फिर मई के तीसरे हफ्ते में मामले अपने टॉप लेवल पर पहुँच सकते हैं।
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अप्रैल 2021 - वाशिंगटन यूनिवर्सिटी की रिसर्च में कहा गया है कि भारत में
मध्य मई तक कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर शीर्ष पर पहुंच सकती है और रोजाना
5,000 से ज्यादा मौत के आंकड़ों को देखना पड़ सकता है
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अप्रैल 2021 :आईआईटी के वैज्ञानिकों ने अपने गणितीय मॉडल के आधार पर
अनुमान लगाया है कि भारत में महामारी की दूसरी लहर 14 से 18 मई के बीच चरम
यानी पीक पर होगी. उस दौरान देश में सक्रिय मरीजों का आंकड़ा बढ़कर 38 से 48
लाख तक पहुंच सकती है. उसके बाद मई के अंत तक मामलों में तेजी से कमी
आएगी.नए पूर्वानुमान में समयसीमा और मामलों की संख्या में सुधार किया गया
हैआईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों और हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने एप्लाइड दस
ससेक्टिबल, अनडिटेक्ड, टेस्टड (पॉजिटिव) ऐंड रिमूव एप्रोच (फॉर्मूला) मॉडल
के आधार पर ये अनुमान लगाया है कि कोरोना के मामलों में कमी आने से पहले
मध्य मई तक उपचाराधीन मरीजों की तादाद में 10 लाख की बढ़ोतरी हो सकती
है.पिछले हफ्ते, वैज्ञानिकों ने पूर्वानुमान लगाया था कि महामारी 11 से 15
मई के बीच चरम पर पहुंच सकती है और उपचाराधीन मामलों की संख्या 33-35 लाख
तक हो सकती है. वहीं मई के अंत तक इसमें तेजी से कमी आएगी.इस महीने के शुरू
में, वैज्ञानिकों ने पूर्वानुमान लगाया था कि देश में 15 अप्रैल तक
उपचाराधीन मामलों की संख्या चरम पर होगी, लेकिन यह बात सच साबित नहीं हुई.
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अप्रैल 2020 को सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन के
शोधकर्ताओं ने ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ड्रिवेन डाटा एनालिसिस के जरिए
कोरोना समाप्त होने की भारत समेत 131 देशों के लिए एक अनुमानित तारीख तय की
है उसके अनुशार भारत में कोरोनावायरस का असर 26 जुलाई तक पूरी तरह खत्म
होने का अनुमान लगाया है. अनुमान के मुताबिक, भारत में 21 मई तक Covid-19
का संक्रमण करीब 97 फीसदी तक कम हो जाएगा और 1 जून तक 99 फीसदी केस कम हो
जाएंगे. इसी तरह 26 जुलाई तक भारत कोरोना मुक्त हो जाएगा |
27 अप्रैल 2020 को इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने 21 मई से देश से कोरोना संकट खत्म होने की बात कही है ।
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May 2021-विश्व स्वास्थ संगठन के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस अधानोम
घेब्रेयेसस ने कहा, 'महामारी का दूसरा साल पहले साल के मुकाबले बहुत ही
जानलेवा होने की ओर बढ़ रहा है।'इसलिए अमीर देशों से गुजारिश है कि वे
फिलहाल बच्चों को वैक्सीन देने के बजाय कोवैक्स के लिए डोज दान करें। इसकी
वजह बताते हुए डब्लूएचओ चीफ टेड्रोस अधानोम ने 14 मई को कहा कि कोरोना
महामारी का दूसरा साल पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा जानलेवा होगा ।
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मई 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ट्रेड्रोस ए गेब्रेयेसस ने
वर्चुअल प्रेस ब्रीफिंग में चेतावनी दी कि संभव है कि कोरोना हमारे आस-पास
लंबे समय तक बना रहे | यह भी हो सकता है कि यह कभी ना जाए.|
6 जून 2020 -ऑनलाइन जर्नल एपीडेमीयोलॉजी इंटरनेशनल में प्रकाशित विश्लेषण
के अनुशार कोविड-19 महामारी मध्य सितंबर के आसपास भारत में खत्म हो सकती
है.यह रिसर्च स्वास्थ्य मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय
(डीजएसएच) में उप निदेशक (जन स्वास्थ्य) डॉ अनिल कुमार और डीजीएचएस में उप
सहायक निदेशक (कुष्ठ रोग) रूपाली रॉय के द्वारा किया गया है.|
16- 6-2020 को चेन्नई के भारतीय वैज्ञानिकन्यूक्लियर और अर्थ साइंटिस्ट डॉ.
के एल सुंदर कृष्णाने दावा किया है कि कोविड-19 महामारी किसी तरह पिछले साल 26 दिसंबर 2019 को हुए एक सूर्य ग्रहण
से जुड़ी हुई है. डॉ. के एल सुंदर कृष्ण ने एएनआई को बताया
कि उनका मानना है कि 26 दिसंबर को हुए ग्रहण ने सौर मंडल में ग्रह विन्यास
को बदल दिया.है कृष्णा का कहना है कि कोरोना वायरस के प्रकोप और सूर्य
ग्रहण के बीच सीधा कनेक्शन है जो 26 दिसंबर 2019 को हुआ था. उनका दावा है
कि आने वाले 21 जून के सूर्यग्रहण के दिन कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा.| डॉ. कृष्णा के मुताबिक, ग्रहों के बीच ऊर्जा में बदलाव
के कारण यह वायरस ऊपरी वायुमंडल से उत्पन्न हुआ है। इसी बदलाव के कारण धरती
पर उचित वातावरण बना। ये न्यूट्रॉन सूर्य की सबसे अधिक विखंडन ऊर्जा से
निकल रहे हैं। न्यूक्लियर फॉर्मेशन की यह प्रक्रिया बाहरी मटेरियल के कारण
शुरू हुई होगी, जो ऊपरी वायुमंडल में बायो मॉलिक्यूल और बायो न्यूक्लियर के
संपर्क में आने से हो सकता है। बायो मॉलिक्यूल संरचना (प्रोटीन) का
म्यूटेशन इस वायरस का एक संभावित स्रोत हो सकता है। सौर मंडल में ग्रहों की
स्थिति में बदलाव हुआ है।
विशेष बात:डॉ.
के एल सुंदर कृष्णाजी की बातों से यह सिद्ध होता है कि खगोलीय घटनाओं का
प्रभाव प्राकृतिक घटनाओं के साथसाथ महामारियों आदि पर भी पड़ता हैइसीलिए
उससे प्रकृति एवं जीवन दोनोंही प्रभावित होते हैं |
18
जुलाई 2020 को पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रो. के.
श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि कोविड-19 के मामले मध्य सितंबर में चरम पर पहुंच
सकते हैं | अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हृदय रोग विभागाध्यक्ष रह
चुके एवं हावर्ड में अभी अध्यापन कार्य से जुड़े हैं |
1
अगस्त 2020 को जेनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन की आपातकालीन समिति की
बैठक के बाद चेतावनी दी गई कि कोरोना वायरस महामारी के "लम्बे" वक्त रहने
की संभावना है | (लंबे का मतलब क्या समझा जाए कि कुछ वर्षों महीनों या
दिनों तक चलेगी .)
14
अगस्त 2020 (बीबीसी)-वैज्ञानिकों को आशंका है कि सर्दी के मौसम में दुनिया
को कोरोना वायरस की 'सेंकेंड वेव' का सामना करना पड़ सकता है | डर इस बात
का है कि ठंडी हवाओं के साथ बदलते मौसम की वजह से, कोरोना वायरस अपनी अधिक
ताक़त के साथ तेज़ी से फैल सकता है |
10
अक्टूबर 2020 को नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने दिल्ली सरकारको इस
स्तर पर तैयारी करने की सलाह दी है।डॉक्टर पॉल ने कहा कि सर्दियों में
कोरोना के मामले बढ़ सकते हैं। इस वजह से उन्होंने दिल्ली सरकार को रोज 15
हजार नए मरीजों के अनुसार तैयारी करने की सलाह दी थी ।
7
फरवरी 2021-ब्लूमबर्ग के वैक्सीन कैलकुलेटर के मुताबिक, उसकी गणना बताती
है कि कोरोना वायरस के खात्मे में अभी सात साल का समय और लग सकता है।
25
मार्च 2021 को -एसबीआई ने रिपोर्ट जारी कर कहा कि देश में दूसरी लहर
अप्रैल महीने के आखिर में अपने चरम पर होगी और यह लहर 100 दिन लंबी चलेगी,
जो कि 15 फरवरी से शुरू हो चुकी है।
6अप्रैल
2021-केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि
अगले चार हफ्ते हमारे लिए बहुत क्रिटिकल हैं. अभी देश के कई हिस्सों में
खतरनाक स्थिति बनी हुई है|
08
May 2021भारत में कोरोना कहर के बीच में एक राहत की भी खबर है कि इस महीने
कोरोना अपने पीक पर तो होगा, मगर जून में बड़ी गिरावट देखने को मिल सकती
है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सलाह देने वाली एक्सपर्ट्स की एक टीम ने
सुझाव दिया है कि आने वाले कुछ दिनों में भारत में कोरोना वायरस अपने पीक
पर होगा। मगर पिछले महीने इसी टीम का अनुमान गलत साबित हुआ था और कोरोना का
कहर और बढ़ गया। हालांकि, इस टीम का हाल का अनुमान उन वैज्ञानिकों के
सुझाव के करीब है, जिनका मानना है कि मई के मध्य तक भारत में कोरोना अपने
पीक पर होगा।
14
मई 2021को नीतिआयोग के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल से पूछा गया "क्या सरकार
दूसरी लहर की तीव्रता से अंजान थी?" इस सवाल के जवाब में डॉ वी.के. पॉल
ने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है. हम इस मंच से बार-बार चेतावनी देते रहे हैं
कि कोरोना की दूसरी लहर आएगी |
13
मई 2021 को हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डॉ. वीके पॉल से पूछा गया कि
क्या वायरस अपने उच्चतम स्तर यानी पीक पर पहुंच गया है. तब उन्होंने कहा
कि ऐसा कोई मॉडलिंग सिस्टम नहीं है, जिससे ये अंदाजा लगाया जा सके !कोरोना
वायरस के अबूझ व्यवहार की वजह से ये बहुत मुश्किल है. ये बात पूरी दुनिया
जानती है.| डॉ. पॉल ने बताया कि महामारी से जल्द निजात मिलने की कोई
संभावना नहीं है कोरोना वायरस का उच्चतम स्तर आना बाकी है.|कोरोना फिर से खतरनाक रूप में सामने आ सकता है|
मनिंद्र अग्रवाल(पूर्वानुमान)
3अप्रैल
2021आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों की इस टीम में शामिल मनिंद्र अग्रवाल
ने बताया कि बहुत आशंका है कि देश में मामले 15 से 20 अप्रैल के बीच बहुत
बढ़ जाएंगे।
9
अप्रैल 2021-प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने कहा कि यूपी में संक्रमितों की
संख्या काफी कम है। मॉडल के अनुसार यहां संक्रमण बढ़ने की संभावना भी काफी
कम है। महाराष्ट्र में 10 अप्रैल से केस कम होने शुरू होंगे। उन्होंने कहा
कि केस शून्य तो नहीं होंगे, लेकिन संख्या काफी कम हो जाएगी।
तीसरी लहर(मनिंद्र अग्रवाल)
9
अप्रैल 2021- प्रो. मणींद्र ने तीसरी लहर आने से भी इंकार किया है। तीसरी
वेव जब तक शुरू होगी, उस समय तक 70 फीसदी लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता
बढ़ चुकी होगी।
3
जुलाई 2021को IIT कानपुर की स्टडी में दावा- कोरोना की तीसरी लहर कमजोर
रहेगी बशर्ते कोई नया म्यूटेंट न आए !दूसरी बात अगस्त का महीना काफी अहम है
|
सूत्र ऐनालिसिस करने वाले वैज्ञानिकों की टीम में शामिल आईआईटी कानपुर के
प्रफेसर मनिंदर अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने कोरोना की तीसरी लहर को लेकर
तीन संभावित स्थितियों की भविष्यवाणी की है।
1. तीसरी लहर छोटी हो सकती है 2.तीसरी लहर कमजोर हो सकती है।3.वायरस का
कोई तेजी से फैलने वाला म्यूटेंट आ जाता है तो तीसरी लहर पहली वाली लहर के
जैसे ही होगी।
प्रफेसर अग्रवाल ने कहा, 'जो सबसे आशावादी अनुमान है, उसके मुताबिक अगस्त
तक जीवन सामान्य ढर्रे पर आ जाएगा बशर्ते कि कोई नया म्यूटेंट न आए। दूसरा
अनुमान यह है कि टीकाकरण 20 प्रतिशत कम प्रभावी होगा। तीसरी स्थिति
निराशाजनक है जिसके मुताबिक अगस्त में एक नया म्यूटेंट सामने आ सकता है जो
25 प्रतिशत ज्यादा संक्रामक होगा।
'सूत्र मॉडल के मुताबिक, अगर कोरोना वायरस का कोई ऐसा म्यूटेंट आ जाए जो
बड़े पैमाने पर वैक्सीन को भी चकमा दे दे या जो ठीक हो चुके लोगों की
इम्युनिटी को भी भेद सके तो ऊपर की तीनों संभावित परिस्थितियों का अनुमान
अमान्य हो जाएगा।अग्रवाल द्वारा साझा किए गए ग्राफ के अनुसार तीसरी लहर अक्टूबर और नवंबर के बीच अपने चरम पर पहुँच सकती है।
विज्ञान
और प्रौद्योगिकी विभाग ने पिछले साल गणितीय मॉडल का उपयोग कर कोरोना वायरस
संक्रमण के मामलों में वृद्धि का पूर्वानुमान लगाने के लिए समिति का गठन
किया था। समिति में आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक अग्रवाल के अलावा आईआईटी
हैदराबाद के वैज्ञानिक एम विद्यासागर और एकीकृत रक्षा स्टाफ उप प्रमुख
(मेडिकल) लेफ्टिनेंट जनरल माधुरी कानितकर भी हैं। इस समिति को कोविड की
दूसरी लहर की सटीक प्रकृति का अनुमान नहीं लगाने के लिए भी आलोचना का सामना
करना पड़ा था।ये वही वैज्ञानिक मनींद्र अग्रवाल हैं जिन्होंने अप्रैल की
शुरुआत में गणितीय मॉडल के माध्यम से अनुमान लगाया गया था कि देश में 15
अप्रैल तक संक्रमण की दर अपने चरम पर पहुंच जाएगी, लेकिन यह सत्य साबित
नहीं हुई। अग्रवाल ने कहा कि मौजूदा चरण के लिए हमारे मॉडल के मापदंड
लगातार बदल रहे हैं, इसलिए एकदम सटीक आकलन मुश्किल है।आईआईटी के विशेषज्ञों
का मानना है कि तीसरी लहर दूसरी लहर से कमजोर होगी. एक्सपर्ट्स ने कहा कि
तीसरी लहर कब आएगी इसको लेकर ठोस भविष्यवाणी नहीं की जा सकती.
वैज्ञानिक मनींद्र अग्रवाल ने बताया कि महामारी का पूर्वानुमान लगाने के
लिए मॉडल में तीन मापदंडों का इस्तेमाल किया गया है। पहला बीटा या संपर्क,
जिसकी गणना इस आधार पर की जाती है कि एक व्यक्ति ने कितने अन्य को
संक्त्रमित किया। उन्होंने बताया कि दूसरा मापदंड है कि महामारी के प्रभाव
क्षेत्र में कितनी आबादी आई, तीसरा मापदंड पुष्टि हुए और गैर पुष्टि हुए
मामलों का संभावित अनुपात है।
विशेषबात
: आईआईटी कानपुर के द्वारा की गई इस रिसर्च का मतलब वह जनता क्या समझे
जिसे मदद पहुँचाने के लिए ऐसे रिसर्च किए जाते हैं और यदि उस जनता को कुछ
समझ में ही नहीं आया तो ऐसे रिसर्च का मतलब क्या है और इस संपूर्ण वक्तव्य
में कुछ निराधार तीर तुक्के जरूर दिखाई पड़ रहे हैं किंतु भविष्यवाणी जैसी
कोई बात तो दूर दूर तक नहीं है |
30-8-2021
- आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिक मणिंद्रअग्रवाल हैंजोउस तीन सदस्यीय
विशेषज्ञ दल का हिस्सा हैं जिसे संक्रमण में बढ़ोतरी का अनुमान लगाने का
कार्य दिया गया है।उन्होंने कहा -"भारत में कोविड-19 की तीसरी लहर अक्टूबर
और नवंबर के बीच चरम पर हो सकती है। हालांकि इसकी तीव्रता दूसरी लहर की
तुलना में काफी कम होगी।
30-8-2021
-आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिक मणिंद्रअग्रवाल ने कहा कि अगर तीसरी लहर आती है तो देश में प्रतिदिन एक लाख
मामले सामने आएंगे। " ज्ञात रहे कि पिछले महीने, मॉडल के मुताबिक बताया गया
था कि तीसरी लहर अक्टूबर और नवंबर के बीच में चरम पर होगी और रोजाना मामले
प्रति दिन डेढ़ लाख से दो लाख के बीच होंगे !"
तीसरी लहर :भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT)
मेंमथुकुमल्ली विद्यासागर-
2
अगस्त 2021-हैदराबाद और कानपुर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT)
मेंमथुकुमल्ली विद्यासागर और मनिंद्र अग्रवाल के नेतृत्व में किए गए शोध
में यह दावा किया गया है कि अक्टूबर में तीसरी लहर का पीक देखने को मिल
सकता है. ब्लूमबर्ग के अनुसार विद्यासागर ने एक ईमेल में बताया कि केरल और
महाराष्ट्र जैसे राज्यों के चलते स्थिति फिर गंभीर हो सकती है |
IIT हैदराबाद के एक
प्रोफेसर विद्यासागर : विशेष
बात :विद्यासागर की टीम के अनुमान गलत साबित हुए. उनका अनुमान था कि जून
महीने के मध्य तक कोविड वेव पीक पर होगी उन्होंने तब ट्विटर पर लिखा था कि
ऐसा गलत पैरामीटर्स के चलते हुआ | इसी साल मई में IIT हैदराबाद के एक
प्रोफेसर विद्यासागर ने कहा था कि भारत के कोरोनावायरस का प्रकोप
मैथेमेटिकल मॉडल के आधार पर कुछ दिनों में पीक पर हो सकता है. ब्लूमबर्ग के
मुताबिक, उस वक्त विद्यासागर ने बताया था ‘हमारा मानना है कि कुछ दिनों के
भीतर पीक आ जाएगा. मौजूदा अनुमानों के अनुसार जून के अंत तक प्रतिदिन
20,000 मामले दर्ज किए जा सकते हैं.’उन्होंने ने ही फिर भविष्यवाणी की है -
तीसरी लहर
5-5-2021 को कोरोना की तीसरी लहर के बिषय में सरकार के प्रधान
वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन ने कहा कि कोरोना की तीसरी लहर भी आएगी।
इसे कोई नहीं रोक सकता है। हालांकि, यह कब आएगी और यह कैसे इफेक्ट करेगी,
अभी कहना मुश्किल है।
7-5-2021
को कोरोना की तीसरी लहर के बिषय में सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार
के. विजय राघवन ने अपना बयान बदला और कहा -" अगर हम मजबूत उपाय करते हैं
तो ऐसा संभव है कि देश में अगली लहर कहीं ना आए !"
4-6-2021
स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान नीति आयोग के सदस्य वीके
सारस्वत ने कहा कि भारत के महामारी विशेषज्ञों ने बहुत स्पष्ट संकेत दिए
हैं कि कोविड-19 की तीसरी लहर अपरिहार्य है और इसके सितम्बर-अक्टूबर से
शुरू होने की आशंका है |
23 जून 2021- कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर को लेकर आईआईटी कानपुर के गणितीय मॉडल के आधार पर प्रो. राकेश
रंजन दावा कर रहे हैं कि सितंबर-अक्तूबर में तीसरी लहर का पीक होगा और वह
काफी खतरनाक साबित होगी |
27जून
2021-केंद्र सरकार के कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के प्रमुख एनके अरोड़ा ने
रविवार को कहा कि देश में कोरोना की तीसरी लहर दिसंबर तक टल सकती है। डॉ.
अरोड़ा ने कहा कि ICMR की स्टडी से पता चला है कि तीसरी लहर देश में देरी
से आएगी।
28
जून 2021- कोरोना टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कहा है कि महामारी
की अगली लहर का निश्चित समय नहीं बताया जा सकता. उन्होंने कहा कि किसी भी
अगली लहर का कोई भी समय निश्चित करना तर्कसंगत नहीं होगा क्योंकि कोरोना का
व्यवहार अनिश्चित है |
2
जुलाई 2021 -एसबीआई रिसर्च द्वारा प्रकाशित 'कोविड -19: द रेस टू फिनिशिंग
लाइन' शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना की तीसरी लहर अगस्त
में आ सकती है और सितंबर में पीक होगा |
3
जुलाई 2021को IIT कानपुर की स्टडी में दावा- कोरोना की तीसरी लहर कमजोर
रहेगी बशर्ते कोई नया म्यूटेंट न आए !दूसरी बात अगस्त का महीना काफी अहम है
|
16
जुलाई 2021-दुनिया कोरोना महामारी की तीसरी लहर को लेकर सहमी हुई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूूएचओ) के प्रमुख टेड्रॉस ए. गेब्रेयेसिस ने
कहा है कि कोरोना की तीसरी लहर अभी शुरुआती दौर में हैं। दुनियाभर में
डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित मरीजों की संख्या अभी गिनती में हैं। अभी इसे
बेकाबू होनेसे रोकना संभव है, हमेशा की तरह इस बार भी अगर लापरवाही हुई तो
पहले से भी भयावह नतीजे सामने होंगे।
2
अगस्त 2021-हैदराबाद और कानपुर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT)
मेंमथुकुमल्ली विद्यासागर और मनिंद्र अग्रवाल के नेतृत्व में किए गए शोध
में यह दावा किया गया है कि अक्टूबर में तीसरी लहर का पीक देखने को मिल
सकता है. ब्लूमबर्ग के अनुसार विद्यासागर ने एक ईमेल में बताया कि केरल और
महाराष्ट्र जैसे राज्यों के चलते स्थिति फिर गंभीर हो सकती है |
IIT हैदराबाद के एक
प्रोफेसर विद्यासागर : विशेष
बात :विद्यासागर की टीम के अनुमान गलत साबित हुए. उनका अनुमान था कि जून
महीने के मध्य तक कोविड वेव पीक पर होगी उन्होंने तब ट्विटर पर लिखा था कि
ऐसा गलत पैरामीटर्स के चलते हुआ | इसी साल मई में IIT हैदराबाद के एक
प्रोफेसर विद्यासागर ने कहा था कि भारत के कोरोनावायरस का प्रकोप
मैथेमेटिकल मॉडल के आधार पर कुछ दिनों में पीक पर हो सकता है. ब्लूमबर्ग के
मुताबिक, उस वक्त विद्यासागर ने बताया था ‘हमारा मानना है कि कुछ दिनों के
भीतर पीक आ जाएगा. मौजूदा अनुमानों के अनुसार जून के अंत तक प्रतिदिन
20,000 मामले दर्ज किए जा सकते हैं.’उन्होंने ने ही फिर भविष्यवाणी की है |
30-8-2021
- आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिक मणिंद्रअग्रवाल हैंजोउस तीन सदस्यीय
विशेषज्ञ दल का हिस्सा हैं जिसे संक्रमण में बढ़ोतरी का अनुमान लगाने का
कार्य दिया गया है।उन्होंने कहा -"भारत में कोविड-19 की तीसरी लहर अक्टूबर
और नवंबर के बीच चरम पर हो सकती है। हालांकि इसकी तीव्रता दूसरी लहर की
तुलना में काफी कम होगी।अगर तीसरी लहर आती है तो देश में प्रतिदिन एक लाख
मामले सामने आएंगे। " ज्ञात रहे कि पिछले जुलाई महीने में मॉडल के मुताबिक बताया गया
था कि तीसरी लहर अक्टूबर और नवंबर के बीच में चरम पर होगी और रोजाना मामले
प्रति दिन डेढ़ लाख से दो लाख के बीच होंगे !"
4
सितंबर 2021 -कोरोना की महामारी फिलहाल अभी खत्म होने नहीं जा रही है। यह
कम से कम 6 और महीने रहेगी। पूरा दारोमदार वैक्सीनेशन पर है। महामारी से
तभी मुक्ति मिलेगी जब 90 से 95 फीसदी लोगों का वैक्सीनेशन हो जाएगा। अभी
यह दूर की कौड़ी है। ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स के हवाले
से कोरोना महामारी के 6 महीने के आउटलुक पर यह बात कही है। उधर, बीएचयू के
एक साइंटिस्ट ने दावा किया है कि अगले तीन महीने में कोरोना की तीसरी लहर
देश में दस्तक दे देगी।
23 सितंबर 2021 -कैसी हो सकती हैं भविष्य में कोरोना की लहरें?विश्व
स्वास्थ्य संगठन और वैक्सीन एलायंस GAVI का आकलन है कि आने वाले कई वर्षों
तक कोरोना वायरस कहींजाने वाला नहीं है. कम या ज्यादा प्रभावी रूप में ये
अलग-अलग देशों और उनके अलग-अलग इलाकों में उभरता रहेगा. इससे निपटने के
उपायों के साथ-साथ लोगों को इसके साथ जीने की आदत डालनी होगी. WHO की चीफ
साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन कहती हैं- 'हम ऐसे फेज की ओर बढ़ रहे हैं
जिसे endemicity कहा जा सकता हैटॉप भारतीय वायरालॉजिस्ट डॉ. गगनदीप कांग
कहती हैं कि तीसरी लहर अगर आती है तो दूसरी लहर जितनी मजबूत होगी ये अभी
कहना उचित नहीं है.|
4अक्टूबर2021
- आईसीएमआर के बलराम भार्गव, समीरन पांडा और संदीप मंडल और इंपीरियल
कॉलेज लंदन में कहा है -तीसरी लहर अगर आती है तो दूसरी लहर जितनी मजबूत होगी ये अभी कहना
उचित नहीं है. मालन अरिनामिनपथी द्वारा गणितीय मॉडल ‘कोविड-19 महामारी के
दौरान और भारत के अंदर जिम्मेदार यात्रा’ पर आधारित यह ‘ओपिनियन पीस’
(परामर्श) ‘जर्नल ऑफ ट्रैवल मेडिसिन’ में प्रकाशित किया गया है.-"कोरोना
वायरस संक्रमण और कोरोना की तीसरी लहर का खतरा मंडरा रहा है. यदि किसी कारण
से भीड़ होती है तो कुछ राज्यों में कोरोना की तीसरी लहर की स्थिति भयावह
हो सकती है. विशेषज्ञों ने कहा है कि छुट्टियों की एक अवधि संभावित तीसरी
लहर की आशंका को 103 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है और उस लहर में संक्रमण के
मामले 43 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं |
पशु फलों समेत संपूर्ण प्रकृति में कोरोना-
20 अप्रैल 2020,फ्रांस में गैर पीने योग्य पानी में कोरोना वायरस मिला है|
नए कोरोना वायरस के 'माइनसक्यूल' सूक्ष्म निशान पाए गए !अमेरिका में एक
बाघ में कोरोना पाया गया. वहीं कई जगहों में कुत्तों में भी कोरोना के
निशान मिले|
को तंजानिया
में बकरी और पपीता फल भी कोरोना पॉजिटिव, राष्ट्रपति ने कहा-टेस्ट किट सही
नहींकोरोना वायरस के ये सैंपल बकरी, पॉपॉ फल और भेड़ से लिए गए थे। सैंपल
को
जांच के लिए तंजानिया की लैब में भेजा गया, जहां बकरी और पॉपॉ फल कोरोना
पॉजिटिव निकले।
7 मई 2020 को कुत्तों और बल्लियों के बाद, अब ये जानवर भी पाया गया कोरोना वायरस पॉज़ीटिव
कुत्ते, बिल्ली, बाघ और शेर के कोरोना वायरस से शिकार होने के बाद अब
ऊदबिलाव भी इस बीमारी से संक्रमित होने वाले जानवरों की लिस्ट में
शामिल हो गया है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, नीदरलैंड्स के एक फर फार्म
में दो ऊदबिलाव नए कोरोना वायरस यानी कोविड-19 से संक्रमित पाए गए।
20 जून 2020 को कोरोना की दूसरी लहर की चेतावनी, इंसानों में काबू के बावजूद जानवर संक्रमण फैला सकते हैं|
20-4-2020 को - नदी के पानी में कोरोना के लक्षण !पेरिस की सीन नदी और
अवर्क नहर के पानी में कोरोना कोरोना वायरस का संक्रमण पाया गया है
!
17-7-2020 कोरोना वायरस: स्पेन में एक लाख ऊदबिलाव को मारने का आदेश !
उत्तर-पूर्वी स्पेन के एक फ़ार्म में कई ऊदबिलाव कोरोना वायरस संक्रमित पाए गए हैं जिसके बाद यह फ़ैसला किया गया है |
कोरोना अध्ययन
22 अप्रैल 2020 कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका खस्ताहाल, ट्रंप पर बड़ी आफत
14 मई 2020- कोरोना वायरस: इस बार मई के महीने में भी गर्मी नहीं, क्या हैं कारण
क्या
ये जलवायु परिवर्तन है?सेंटर ऑफ़ साइंस ऐंड एनवायर्नमेन्ट में जलवायु
मामलों पर नज़र रखने वाले तरुण गोपालकृष्णण ने बीबीसी को बताया कि केवल
उत्तर भारत या पूर्वी भारत में ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत में मौसम बीते
सालों की अपेक्षा इस साल अलग ही है.
बारिश-बाढ़ और भूकंप, प्रकृति के कहर से चीन का बुरा हाल !चीन में भारी बारिश के बाद आई बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित
हैं। वहीं, रविवार को तंगशान में आए भूकंप ने लोगों को पिछले हादसे की याद
दिलाकर और डरा दिया। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 5.1 मापी गई है।
22
जुलाई 21 -एक साथ 40 देशों में मौसम का प्रचंड रूप देखकर वैज्ञानिकों को
जलवायु परिवर्तन का डर सताने लगा है | कोरोना
वायरस महामारी के बीच मौसम की भी नाराजगी लोगों को झेलनी पड़ रही है.
महामारी तो शायद वैक्सीन की वजह से खत्म हो जाए लेकिन मौसम वैज्ञानिक अब
जलवायु परिवर्तन को लेकर परेशान हैं. एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, चीन
और रूस तक मौसम का प्रचंड रूप देखा जा सकता है. जो लोग यह मान रहे थे कि जलवायु परिवर्तन भविष्य का खतरा है, वो अब दिन पर दिन बदलते मौसम को देखकर
हैरान हैं. आर्कटिक तक क्लाइमेट चेंज हावी हो चुका है. यहां पर पोलर बीयर
को बर्फ खत्म होने के बाद बाहर आते हुए देखा गया है
दुनिया के कई देशों में पिछले कुछ हफ्तों में मौसम के बदलते मिजाज को
देखा गया है. यूरोप से लेकर एशिया और नॉर्थ अमेरिका से लेकर रूस तक कहीं
बाढ़ है, कहीं गर्म हवाएँ हैं तो कहीं पर सूखे की स्थिति है. यूरोप के 40 देश,
नॉर्थ अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में कहीं बाढ़, कहीं तूफान, कहीं हीट वेव,
कहीं जंगलों में लगी आग तो कहीं सूखे की स्थिति है. रूस, चीन, अमेरिका और न्यूजीलैंड में लोग गर्मी, बाढ़ और जंगलों में लगी
आग से परेशान हैं |पश्चिमी यूरोप में भारी बारिश हो रही है कहा जा रहा है कि एक सदी में पहली बार ऐसी बाढ़ आई है. बेल्जियम, जर्मनी,
लक्जमबर्ग और नीदरलैंड्स में 14और15जुलाई को इतनी अधिक बारिश हो गई है जितनी दो
माह में होती है. नॉर्थ यूरोप
में गर्मी से हालात बिगड़ते जा रहे हैं. फिनलैंड जहां गर्मी कभी नहीं
पड़ती, वहां पर लोग पसीना पोंछने को मजबूर हो रहे हैं. देश के कई हिस्सों
में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा हो गया है| रूस में साइबेरिया का तापमान इतना बढ़ गया है कि 216 ये ज्यादा
जंगलों में आग लगी हुई है | वहीं पश्चिमी-उत्तरी
अमेरिका में अत्यधिक गर्मी ने हालात खराब कर दिए हैं | कैलिफोर्निया, उटा
और पश्चिमी कनाडा में सर्वाधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया
है. कैलिफोर्निया की डेथ वैली में पिछले दिनों ट्रेम्प्रेचर 54.4 डिग्री
सेंटीग्रेट तक पहुंच गया था. यह दूसरा मौका था जब इस हिस्से में इस कदर
तापमान रिकॉर्ड किया गया. इसी तरह से एशिया के कई देशों जैसे कि चीन, भारत
और इंडोनेशिया के कुछ हिस्सों में बाढ़ की स्थिति है तो कुछ हिस्सों को
अभी तक बारिश का इंतजार है |
वैज्ञानिकों के वक्तव्य लिंक सहित ! अप्रैल 26, 2022 जीव जंतुओं में कोरोना 28 Jul 2020,ब्रिटेन में बिल्ली कोरोना पॉजिटिव, पालतू जानवर में कोविड-19 का पहला मामलाsee more.... https://www.prabhatkhabar.com/video/cat-found-corona-positive-in-britain 13 Aug2020-चीन से आई चौंकाने वाली खबर, चिकन में भी कोरोना वायरस!चीन ने फ्रोजन चिकनके पंख में भी कोविड-19 के होने की पुष्टि की है.see more.... https://zeenews.india.com/hindi/world/china-says-frozen-chicken-wings-from-brazil-test-positive-for-coronavirus/728140 17-7-2020 कोरोना वायरस: स्पेन में एक लाख ऊदबिलाव को मारने का आदेश ! उत्तर-पूर्वी स्पेन के एक फ़ार्म में कई ऊदबिलाव कोरोना वायरस संक्रमित पाए गए हैं जिसके बाद यह फ़ैसला किया गया है.see more.... https://www.bbc.com/hindi/international-53441767 30 जून 2020-चरवाहे को हुआ कोरोना वायरस, बकरियों और भेड़ों को सांस लेने में दिक्कत! see more... https://aajtak.intoda...
दो शब्द महामारी किसी बाढ़ की तरह आई और चली गई ,अपने साथ जितना जो कुछ बहाकर ले जा सकती ले गई !जितनी जनधन हानि होनी थी वो हुई | विज्ञान ने बहुत उन्नति कर ली है इसके बल पर हमें भरोसा था कि महामारी से हम सुरक्षित बचा लिए जाएँगे ,किंतु महामारी से होने वाली जनहानि को विज्ञान के द्वारा न तो रोका जा सका और न ही कम किया जा सका| महामारी उन मनुष्यों को वर्षों तक रौंदती रही जिन्हें सुख सुविधा पहुँचाने के लिए न जाने कितने संसाधनों का आविष्कार किया है|मनुष्यजीवन की कठिनाइयाँ कम करके उसे सरल बनाने के लिए जिस विज्ञान ने न जाने कितनी दुर्गम गुत्थियों को सुलझाया है| सफलता के न जाने कितने शिखर चूम लिए हैं |वही विज्ञान महामारी जैसे इतने भयंकर संकट की भनक तक नहीं पा सका कि इतनी बड़ी महामारी आने वाली है | ये...
समयविज्ञान भी महामारी मौसम और ग्रहगणितविज्ञान ऐसे प्रकरणों में भी उनकी मृत्यु होने का कारण उनका अपना समय ही होता है | यदि ऐसा न होता तो उन्हीं दुर्घटनाओं में उसीप्रकार से पीड़ित हुए कुछ दूसरे लोग या तो पूरी तरह सुरक्षित बच जाते हैं या फिर शिकार हुए आ गया हो तो उसकी सुरक्षा करना संभव नहीं है | इसलिए हर किसी की मृत्यु एक प्राकृतिक घटना है के रूप में मान लिया जाता है |अस्पतालों में शवगृह बनाए जाने से यह प्रमाणित हो जाता है कि मृत्यु को पराजित करना संभव नहीं है | ऐसे ही...