mahamari

                           समयविज्ञान भी महामारी मौसम और ग्रहगणितविज्ञान  
 
                                                       


  ऐसे प्रकरणों में भी उनकी मृत्यु होने का कारण उनका अपना समय ही होता है |
 यदि ऐसा न होता तो उन्हीं दुर्घटनाओं में उसीप्रकार से पीड़ित हुए कुछ दूसरे लोग या तो  पूरी तरह सुरक्षित बच जाते हैं या फिर शिकार हुए 
 
आ गया हो तो उसकी सुरक्षा करना संभव नहीं है | इसलिए हर किसी की मृत्यु एक प्राकृतिक घटना है  के रूप में मान लिया जाता है |अस्पतालों में शवगृह बनाए जाने से यह प्रमाणित हो जाता है कि मृत्यु को पराजित करना संभव नहीं है | 
   ऐसे ही किसी गंभीर आपरेशन करने से पहले रोगी के परिजनों से यह लिखा लिया जाना कि उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है | इसीलिए जिन रोगियों कोऑपरेशन के बाद होश नहीं आ पाता है | उनके लिए प्राकृतिक शक्तियों की ओर ही देखा जाता है | वह प्राकृतिक शक्ति समय ही है | कुछ लोग समय को ईश्वर मानते हैं (कालः साक्षादीश्वरः)  इसलिए ऐसे अवसरों पर वे ईश्वर की आराधना करते हैं |
    भगवान् श्री कृष्ण जी ने यही कहा था कि तुम्हारा अधिकार कर्म पर ही है (कर्मण्येवाधिकारस्ते) फल अर्थात परिणाम पर नहीं है| भगवान् जी का संकेत था कि तुम केवल कर्म कर सकते हो | उसका फल कर्म के अनुशार नहीं प्रत्युत समय अर्थात ईश्वर के अनुसार मिलेगा | 
     इससे यह शंका होनी स्वाभाविक ही है कि फल यदि कर्म के अनुसार नहीं ही मिलना है,तो कर्म किया ही क्यों जाए !विशेष बात ये है कि कोई भी मनुष्य कर्म वही करता है,जो उसकी इच्छा होती है | इच्छा उसकी वही होती है जो समय के द्वारा निश्चित किया गया होता है |इसीलिए कर्म करना तो मनुष्य के वश में है किंतु कर्म क्या करे अपने अंदर यह इच्छा पैदा करना मनुष्य के वश में नहीं है | यह इच्छा प्रत्येक मनुष्य के मन में उसके अपने समय की प्रेरणा से निश्चित होती है | 
    प्रश्न उठता है कि मनुष्य बहुत सारे कार्य करता है| जिनमें सफल असफल दोनों होते देखा जाता है | इच्छा यदि समय से प्रेरित होती है तब तो उसे सफल ही होना चाहिए क्योंकि समय की प्रेरणा गलत हो ही नहीं सकती है | ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति के असफल होने का क्या कारण हो सकता है |  
     इस विषय में विशेष बात ये है कि मनुष्य कुछ कार्य अपनी इच्छा से करता है और कुछ अपने अहंकार से !जो कार्य इच्छा से करता है वो तो समय प्रेरित होने के कारण सफल होता ही है, किंतु जो कार्य अपने अहंकार से करता है| उस कार्य में समय का सहयोग नहीं मिल पाता है इसलिए उसमें असफल होता है |    
     वस्तुतःअपने द्वारा निर्द्धारित कार्य समय स्वयं करता या किसी दूसरे से करवाता है | समय जिससे जो कार्य करवाता है | उसे  उस कार्य का यश दिलवाना होता है |कौरवों की मृत्यु उनकी आयु पूरी होने से हुई थी ,किंतु भगवान् श्री कृष्ण जीइतने बड़े बड़े योद्धाओं पर विजय प्राप्त करने का श्रेय अर्जुन को दिलवाना चाहते थे | उन्होंने अर्जुन पर वह कृपा कर दी |
     कुछ मिलाकर मनुष्य के बश में कर्म करना है| जो चाहे  वो कर सकता है,किंतु वह कब क्या चाहेगा !यह उसके वश में नहीं होता है | ये तो उसका समय ही निर्द्धारित करता है | समय के द्वारा निर्द्धारित कार्य को कोई करे या न करे वो अपने समय पर होता ही है | भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ आदि घटनाओं को मनुष्य चाह कर भी पैदा नहीं कर सकते फिर भी ऐसी घटनाएँ मनुष्यकृत प्रयासों की प्रतीक्षा नहीं करतीं  प्रत्युत अपने अपने समय से घटित होते देखी जाती हैं |
    इसलिए प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली सभी घटनाओं को समझने के लिए समय को समझना पड़ेगा | समय के संचार के विषय में पूर्वानुमान लगाना पड़ेगा | नदी की जलधारा में तैरती लकड़ियों की तरह भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ आदि घटनाएँ समय की धारा में बहती चली जा रही हैं | उन्हें समझने के लिए समय के विषय में ही पूर्वानुमान लगाना होगा | उसी के आधार पर घटनाओं के विषय में अपने आप से पूर्वानुमान लगता चला जाएगा |
      जिसप्रकार से किसी ट्रेन विशेष के विषय में पता करना हो कि दिल्ली से कौन ट्रेन कहाँ कब जाएगी !यह पता लगाने के दो मार्ग हैं | एक प्रत्यक्षमार्ग और दूसरा परोक्षमार्ग ! 
      प्रत्यक्षमार्ग में किसी ट्रेन को किसी दिन किसी समय किसी दिशा में जाते हुए देखकर यह पता लगाया जाता है कि कौन ट्रेन कहाँ कब जा रही है या पहुँचेगी |इस विधा में ट्रेन को जिस रूट पर जिस गति से जाते देखा जाता है उसी के अनुसार अंदाजा लगा लिया जाता है कि कौन ट्रेन कहाँ कब पहुँच सकती है| कोई ट्रेन दिल्ली से चलकर इटावा पहुँच चुकी हो तो वो कानपुर भी जाएगी ऐसा अंदाजा लगा लिया जाता है |दिल्ली से इटावा की जितनी दूरी है| इटावा से कानपुर की दूरी लगभग उससे आधी होगी | इस हिसाब से दिल्ली से इटावा पहुँचने में जो समय लगा है| उससे लगभग आधे समय में इटावा से कानपुर पहुँचने का अनुमान लगा लिया जाएगा |
     इसीप्रकार से प्रत्यक्ष प्रक्रिया में आकाशस्थ बादलों आँधी तूफानों को उपग्रहों रडारों आदि के द्वारा दूर से ही देख लिया जाता है | वो जिस गति से जिस दिशा में बढ़े चली आ रहे होते हैं|उसी दिशा में उसी गति से उनके आगे बढ़ने के विषय में अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं|बीच में हवा का रुख बउस समय उस प्रकार की घटनाएँ दलने से ये अंदाजा गलत निकल जाता है |इसीलिए मौसम संबंधी अंदाजे(पूर्वानुमान) उतने सही नहीं निकल पाते हैं | अनुमान      इसके अतिरिक्त पूर्वानुमान लगाने की जो परोक्ष प्रक्रिया है |उसे रेलवे समय सारिणी की तरह मानना चाहिए | जिस प्रकार से समय सारिणी के आधार पर किसी ट्रेन के विषय में महीनों वर्षों पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है|उसीप्रकार से परोक्षविज्ञान संबंधी गणितीय प्रक्रिया के आधार पर सूर्य चंद्र मंडलों को प्रत्यक्ष देखे बिना भी केवल गणित के द्वारा ही सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है|ऐसे ही अनुसंधान पूर्वक मौसमसंबंधी वर्षा बाढ़ आँधी तूफान जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में महीनों वर्षों पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 
     प्राकृतिकघटनाओं के घटित होने का कारण समय ही है! जिस प्रकार से प्रावृट  और वर्षाऋतु का समय आने पर वर्षा होने लगती है | हेमंत और शिशिर ऋतुओं का समय आने पर सर्दी होने लगती है | ऐसे ही बसंत और ग्रीष्म ऋतु का समय आने पर गर्मी होने लगती है | 
     कुलमिलाकर जिस समय जिस प्रकार का समय आता है | उस समय उस प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगती हैं | सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ अपने अपने समय से घटित होते देखी जाती हैं |स्वच्छ आकाश में वर्षा का समय आने पर बादल आ जाते हैं ,वर्षा होने लगती है |शांत वातावरण में आँधीतूफ़ान का समय आते ही आँधीतूफ़ान आने लगते हैं | 
 
    जिसप्रकार से रामलीलाओं के मंचन में अभिनय करने वाले पात्र पहले से तैयार होकर बैठ जाते हैं | अपनी  अपनी भूमिका की प्रतीक्षा करने लगते हैं | उसी प्रकार से सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ निर्मित तो बहुत पहले हो चुकी होती हैं | वे अपने अपने समय की प्रतीक्षा कर रही होती हैं | जिस घटना के घटित होने का समय जब आ जाता है | वो घटना उस समय घटित होने लग जाती है | 
    राम लीलाओं के मंचन में अभिनय करने वाले पात्र निर्द्धारित स्थल पर कुछ दिन या समय पहले ही पहुँच जाते हैं | इसके संकेत सभी को साफ साफ मिलने लग  जाते हैं | ऐसे ही सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से पहले ही वे घटनाएँ उन उन क्षेत्रों में पहुँचकर वहाँ के प्राकृतिक वातावरण एवं जीवन को प्रभावित करने लगती हैं | जिसका प्रभाव वहाँ की प्रकृति में तो दिखाई पड़ता ही है | वहाँ के जीवन में भी उस प्रकार का प्रभाव पड़ते देखा जाता है | 
     जिससे वायु जल अन्न फल पेड़ पौधे  बनस्पतियाँ आदि प्रभावित होने लगती हैं | पशुओं पक्षियों मनुष्यों समेत सभी प्रकार के जीवों के स्वभाव में उस प्रकार के परिवर्तन आने लगते हैं |उन परिवर्तनों को देखकर उनके आधार पर बहुत लोग उन घटनाओं के घटित होने के विषय में आगे से आगे अंदाजा लगा लिया करते हैं |उत्तर भारत के महाकवि घाघ इसी प्रकार से कुछ प्राकृतिक घटनाओं को देखकर कुछ दूसरी वर्षा आदि घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया करते थे |
    कुल मिलाकर जिस समय में जिस प्रकार की घटनाएँ घटित होनी होती हैं | उससमय उसीप्रकार की घटनाएँ घटित होने लगती हैं | उस समय के आधार पर घटनाओं से संबंधित प्राकृतिक चिन्हों को देखकर उन घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता था जो घटित होने वाली होती थीं |कोरोना महामारी के विषय में भी इसी प्रकार से पूर्वानुमान लगाया जा सकता था | जो ऐसा करने में सफल रहे उन्होंने सही पूर्वानुमान लगाए भी होंगे | इसी प्रकार से मैंने भी महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाए हैं |
 
 अनुसंधानों का  मतलब कुछ किया जाना ही नहीं, कुछ होना कुछ होना भी !
     अनुसंधान करने का मतलब किसी घटना के विषय में कुछ भी करने लगना नहीं है | जिस लक्ष्य के साधन के लिए अनुसंधान किए जाते हैं | उस दिशा में कुछ सफलता भी तो मिलनी चाहिए | लक्ष्य सफल हों तब तो ठीक है ही यदि ऐसा न हो पाए तो कुछ तर्कसंगत नए अनुभव ही मिल जाएँ ,तो भी उसे सफल अनुसंधान माना जा सकता है | जलवायुपरिवर्तन की तरह कोई ऐसी कल्पित कहानी ही न हो,जिसकी प्राकृतिक घटनाओं को समझने में या उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने में कोई भूमिका ही न हो| उसके सहारे केवल समय बिताया जा सकता हो | 
     प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान न लगाए जा पाने या लगाए गए पूर्वानुमानों के गलत निकल जाने के लिए आज के 50 वर्ष पहले जिस जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बता दिया जाता था |अभी भी वही हो रहा है | आखिर इन 50 वर्षों के अनुसंधानों की सार्थकता क्या रही | इसे कैसे सिद्ध किया जाए |  
     भूकंपों एवं  मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में एक ओर अनुसंधान चला ही करते हैं,दूसरी ओर घटनाएँ घटित हो ही जाती हैं| ऐसे विषयों में पूर्वानुमान लगाए ही नहीं जा पाते हैं | जो लगाए भी जाते हैं वे प्रायः सही नहीं निकलते हैं | ऐसे अनुसंधानों को करने के लिए विज्ञान भी है वैज्ञानिक भी हैं| संसाधन भी लगते हैं | धन भी लगता है,फिर भी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना संभव नहीं हो पा रहा है |ये अनुसंधानों के उद्देश्यों के अनुरूप नहीं है | किसी रोगी की चिकित्सा करते समय चिकित्सक यदि रोग को न समझ पा रहा हो या उससे कोई गलती छूट गई हो तो इसके लिए तो उसे समझता भी चिकित्सक ही है और उसका सुधार भी चिकित्सक ही करता है | प्राकृतिक के अलावा अन्य क्षेत्रों में जो अनुसंधान होते हैं उन विषयों को वैज्ञानिक ही सुधार करते हैं और वैज्ञानिक ही अपनी गलतियों का सुधार करके लक्ष्य को प्राप्त करते हैं| मौसम और महामारियों के विषय में भी अनुसंधानकर्ताओं की यही जिम्मेदारी बनती है |जलवायुपरिवर्तन या महामारी का स्वरूपपरिवर्तन हो भी रहा हो |इसका प्रभाव मौसमसंबंधी घटनाओं या महामारियों पर पड़ भी रहा हो तो यह भी उन्हें ही समझना होगा | जो ऐसे अनुसंधानों को करने की जिम्मेदारी सँभाल रहे हैं |
      इस प्रकार से केवल अनुसंधान होना ही पर्याप्त नहीं है,प्रत्युत उनसे कुछ निकलना भी चाहिए !सफलता मिले तो अच्छा यदि न भी मिले तो अनुभव तो मिलने चाहिए | ये तो पता लगना ही चाहिए कि असफल होने का कारण क्या था | जिन प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार बताकर 50 वर्षों का बहुमूल्य समय बिता दिया गया हो| महामारी जैसे भयंकर संकट को सहते हुए उसके स्वरूपपरिवर्तन को जिम्मेदार बताकर उस समय को बिता लिया गया हो | यह तो ठीक है किंतु चिंता इस बात की तो होती ही है कि जिस जनता को ऐसे अनुसंधानों से बहुत अपेक्षा होती है | उसे ऐसे अनुसंधान होते हुए भी यह संकट अपने बलपर स्वयं झेलना पड़ा है |प्रत्येक क्षेत्र में अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध होनी ही चाहिए !
                                               हाथीविज्ञान  और अनुसंधान 
     "हाथी कैसा होता है !" यह पता लगाने के लिए एक बार कुछ दृष्टिहीन (अंधे) लोगों को रिसर्च करने की जिम्मेदारी सौंपी गई | उन्होंने हाथी को कभी देखा ही नहीं था और न ही उसके विषय में कभी कुछ सुना था |ऐसे लोगों के बीच हाथी को लाकर खड़ा किया गया | उन्होंने अपनी अपनी सुविधा के अनुसार  हाथी का स्पर्श किया | उनमें से जिसका हाथ हाथी के जिस अंग पर पड़ा उसे लगा कि हाथी वैसा ही होता है | जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा उसने लिखा कि हाथी खंभे जैसा होता है !पेट पर जिसका हाथ पड़ा उसने लिखा कि हाथी पहाड़ जैसा होता है |जिसका सूँड़ पर पड़ा उसे हाथी अजगर जैसा लगा | ऐसे सभी अनुभवों को लिखकर एक  शोधप्रबंध (थीसिस)तो  तैयार कर दिया गया किंतु उसे पढ़कर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका कि हाथी वास्तव में होता कैसा है  |
     इसलिए उन्हीं लोगों को रिसर्च करने के लिए  एक और अवसर दिया गया | उन्होंने  फिर अपनी अपनी सुविधानुसार हाथी को स्पर्श किया |अबकी बार उनके हाथ पहली बार से अलग कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अबकी उनके अनुभव भी पहले की अपेक्षा अलग अलग हुए |इसलिए पहले के शोधप्रबंध से इस शोधप्रबंध की विषयवस्तु में बहुत अंतर आ गया |

      पहली बार जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा था | इसलिए उसे लगा था कि हाथी खंभे जैसा होता है | अबकी बार उसका  हाथ हाथी की पूँछ पर पड़ा तो उसे लगा कि हाथी सर्प जैसा होता है| ऐसे ही सभी के हाथ हाथी के कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अब उन सभी के अनुभव बदल चुके थे | पहली बार  पेट पर हाथ पड़ने से जिसने पहले हाथी को पहाड़ जैसा माना था | उसके हाथ में अबकी बार हाथी की सूँड लगी | इसलिए अबकी बार उन्होंने हाथी को अजगर जैसा बताया | 

     इस प्रकार से उन सभी के अनुभव बदलते देख कर उनसे पूछा  गया कि हाथी को आपने पहले तो  पहाड़ जैसा बताया था, किंतु अबकी बार आपने हाथी को अजगर जैसा बताया है |  इन दो प्रकार के उत्तरों में अंतर आने का कारण क्या है ? अपनी अनुसंधान क्षमता की कमी स्वीकार करने के बजाए उन्होंने कहा कि हाथी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है | इसलिए " हाथी कैसा होता है " यह पता लगाया जाना अनुसंधानों के वश की बात नहीं है | इस प्रकार से शोधप्रबंध तो एक नहीं दो दो तैयार हो गए किंतु यह नहीं पता लगाया जा सका  कि "हाथी कैसा होता है |" 

     इसी प्रकार से दूसरा दृष्टांत है | किसी गाँव में घुसकर हाथी उपद्रव मचाने लगते थे |वे गाँव में कहीं भी जाते, कुछ भी करते, किसी का घर गिराते, किसी पेड़ को तोड़ते जबतक ऐसे उपद्रव करते रहते तब तक उन्हें रोकने का साहस कोई नहीं कर पाता था | उपद्रव करते करते थककर जब वे गाँव से बाहर जाने लगते  तो उनके आगे पीछे भौंकने वाले गाँव के कुत्तों को यह भ्रम हो जाता कि उन्होंने ही भौंक भौंक कर हाथियों को गाँव के बाहर भगा दिया है |वही हाथी जब दोबारा फिर से गाँव में घुस आवें और फिर उपद्रव करने लगें | जिसे देखकर फिर कुत्ते उसी प्रकार से भौंकते हुए हाथी के आगे पीछे दौड़ने लगें |फिर भी हाथी गाँव से बाहर न जाकर वैसे ही उपद्रव वहीं करते रहते | कुत्तों के भौंकने का कोई प्रभाव ही न पड़े | इससे यह स्पष्ट हो गया कि हाथियों के गाँव से बाहर जाने में पहले भी कुत्तों के भौंकने की कोई भूमिका नहीं थी ,फिर भी कुत्तों को लगता था कि हाथियों का स्वभावपरिवर्तन हो गया है | 

     ऐसे ही तीसरा दृष्टांत है | किसी गाँव के एक ओर जंगल था | जिससे निकलकर हाथी गाँवों में घुस कर अक्सर उपद्रव मचाने लगते थे |गाँव वाले इकट्ठे होकर जब तक उन्हें खदेड़ पाते तब तक हाथियों के द्वारा काफी बड़ा नुक्सान कर दिया जाता था| इससे बचाव के लिए जंगल वाली दिशा में गाँव के बाहर ग्रामीणों ने कैमरे लगवा लिए | हाथी जैसे ही जंगलों से निकलकर गाँव की ओर आने लगते तो ग्रामीणों को कैमरों में दिखाई दे जाते |  गाँव के लोग इकट्ठे होकर उन्हें खदेड़ आते थे |

     ऐसे प्रयत्नों से ग्रामीणों का संभावित नुक्सान होने से तो बच जाता था किंतु इसे हाथीविज्ञान नहीं कहा जा सकता है | इसीप्रकार से उपग्रहों रडारों के माध्यम से बादलों आँधी तूफानों को देखकर उनकी गति और दिशा के अनुसार अंदाजा लगा लेने को मौसमविज्ञान मान लिया जाना ठीक नहीं है |

      ऐसे तीन दृष्टांतों के माध्यम से यह समझ में आ जाना चाहिए कि अनुसंधानों की यदि सार्थकता सिद्ध करनी है तो घटनाओं के स्वभाव को समझने का प्रयत्न करना होगा | उसके आधार पर किए गए अनुसंधान प्रायः सही निकलते हैं | इसमें प्राचीन गणितविज्ञान काफी अधिक सहायक हो सकता है | 


                                                 कार्य-कारण संबंध और महामारी !
   महामारी के रहस्य को कार्य-कारण पद्धति से सुलझाया जाना चाहिए !एक घटना का दूसरे के परिणामस्वरूप घटित होना,अर्थात दो या दो से अधिक घटनाएँ कार्य कारण  रूप से आपस में एक दूसरे से जुड़ी हुई होती हैं। इस समय जो घटना घट रही है | इसके लिए इसके पूर्व की कुछ प्रमुख घटनाएँ परिस्थितियाँ आदि जिम्मेदार होती हैं |उन्हें कारण कहते हैं | 
     प्राकृतिक व जीवन संबंधी भावी घटनाओं के विषय में भी पूर्वानुमान लगाना आवश्यक होता है |किसी भी अच्छी या बुरी घटना के पैदा होने का निश्चित कारण जाने बिना उसके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | पूर्वानुमान  लगाए बिना  उस दुर्घटना से सुरक्षा की जानी संभव नहीं होती है| यदि वह घटना अच्छी होती है तो उसका पूर्वानुमान लगाकर अधिक से अधिक लाभ लेने की तैयारियाँ पहले से करके रखी जा सकती हैं |यदि वो घटना बुरी है तो उससे बचाव के लिए पहले से प्रभावी उपाय खोज लिए जाएँगे | इसलिए अच्छी या बुरी दोनों ही प्रकार की घटनाओं के विषय में पहले से पूर्वानुमान पता होने बहुत आवश्यक होते हैं |      
     कुलमिलाकर जिन घटनाओं के सही कारण पता लग जाते हैं| उनके विषय में लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि तो सही निकलते ही हैं| इसके साथ ही साथ उन घटनाओं को शांत करने या उनसे बचाव कर लेने में बहुत मदद मिल जाती है | जैसे : 'किसी ने सुई चुभोई तो उससे पीड़ा हुई', 'चूहा मर गया तो उससे गंध आ रही है!' 
    जिसप्रकार से दर्द होने का कारण सुई चुभना है|ऐसे ही गंध आने का कारण मरे हुए चूहे का पड़ा रहना है | यदि ऐसी घटनाओं के कारण हमें पता हों कि सुई चुभोने से पीड़ा होगी या मृत चूहा पड़ा रहने से गंध फैलेगी तो सुई चुभोने से होने वाली भावी पीड़ा के विषय में पहले पूर्वानुमान लगाकर सुई चुभने से बचने का प्रयास किया जाएगा | ऐसे ही मृत चूहा पड़ा रहने से कुछ समय बाद गंध फैलेगी !इसका पूर्वानुमान लगाकर मृत चूहे को पहले ही वहाँ से हटा दिया जाएगा | 
    कार्य-कारण का तात्पर्य है कि एक घटना का दूसरे के परिणामस्वरूप घटित होना,अर्थात दो घटनाएँ कार्य कारण रूप से आपस में एक दूसरे से जुड़ी हुई होती हैं। इससमय जो घटना घट रही होती है| इसके लिए अतीत की कुछ घटनाएँ या परिस्थितियाँ जिम्मेदार होती हैं| उन्हें ही अच्छीप्रकार से समझना होता है|
    कई बार घटनाओं के जिए जिन काल्पनिक कारणों को जिम्मेदार माना जाता है | उनमें यदि सच्चाई होती है तब तो ठीक है और यदि सच्चाई नहीं होती है ,तो उनके आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकल जाते हैं |
    मौसम के क्षेत्र में भी प्रायः ऐसा ही होते देखा जाता है| मौसमसंबंधी घटनाओं के पैदा होने के लिए कुछ ऐसे कारणों को जिम्मेदार मान लिया जाता है |जो वास्तव में कारण होते नहीं हैं | उन्हीं गलत कारणों के आधार पर जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं|वे गलत निकल जाते हैं| ऐसे ही सही कारणों के आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि सही निकलते हैं |
    जिस घटना के घटित होने के लिए जिसकारण को जिम्मेदार माना गया ! यदि वह कारण नहीं हुआ और उसकी जगह कोई और दूसरा कारण हुआ,तो गलत कारणों के आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकल जाते हैं| उनके गलत निकलने का कारण उन घटनाओं के  सही कारणों की जानकारी न होना होता है | ऐसे प्रकरणों में आवश्यकता सही कारणों को खोजकर उनके आधार पर सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की होती है ,किंतु ऐसा होने के लिए काल्पनिक रूप से भ्रमवश  जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार मान लिया जाता है | 
     इसीप्रकार से महामारी पैदा होने या उसकी लहरों के आने जाने का सही कारण खोजा ही नहीं जा सका| इसी लिए जिन काल्पनिक कारणों के आधार पर अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते रहे |वे इसीलिए गलत निकलते रहे क्योंकि वे कारण सही नहीं थे! इसीलिए उनके आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि सही नहीं निकलते रहे| उसके लिए भ्रमवश  महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को जिम्मेदार मान लिया  जाता रहा है |
                                कितने  सही निकले महामारी विषयक अनुमान पूर्वानुमान
 
    महामारी संबंधी अनुमानों पूर्वानुमानों के सही न निकलने से यह प्रमाणित हो जाता है कि महामारी के विषय में कुछ भी समझना संभव नहीं हो पाया है | चिकित्सासिद्धांत के अनुसार जिस रोग की प्रकृति को समझा ही नहीं जा सका | उससे मुक्ति दिलाने के लिए हम न तो औषधि का निर्माण कर सकते हैं और न ही उस रोग से पीड़ित किसी रोगी की चिकित्सा ही कर सकते हैं | रोग को समझे बिना चिकित्सा की जानी कैसे संभव है | यह सच है कि कोरोना महामारी से समस्त विश्व पीड़ित हुआ है |
    इतनी बड़ी संख्या में लोगों के संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने के लिए कोरोना महामारी को जिम्मेदार करने के लिए  लोगों महामारी को भयंकर बताने के लिए के विषय में दावे कितने भी बड़े कर लिए जाएँ किंतु महामारी पैदा कैसे हुई !इसका विस्तार कितना था|प्रसार माध्यम क्या था !अंतर्गम्यता कितनी थी | इस पर मौसम का प्रभाव पड़ता था या नहीं!इस पर तापमान घटने बढ़ने का प्रभाव पड़ता था या नहीं ! इस पर वायुप्रदूषण घटने बढ़ने का प्रभाव पड़ता था या नहीं! ऐसे प्रश्नों के उत्तर खोजना महामारी समझने के लिए आवश्यक था !किंतु ऐसा किया जाना संभव न हो सका | महामारी से संबंधित अनुसंधानों की दृष्टि से कल्पनाएँ तो बहुत सारी की गईं | उनके आधार पर अनुसंधान भी किए गए | अनुमान पूर्वानुमान भी लगाए गए, किंतु वे सही नहीं निकले | 
      तापमान बढ़ने से कोरोना संक्रमण कम होगा ऐसा अनुमान तो लगाया गया था,किंतु ऐसा हुआ नहीं था | इसीलिए महामारी की पहली दूसरी और चौथीलहर का वेग  सबसे अधिक गर्मी (ग्रीष्मऋतु) में ही बढ़ा था | 
      तापमान घटने पर महामारीजनित संक्रमण  बढ़ने के विषय में अनुमान लगाया तो गया था,किंतु ऐसा हुआ नहीं भारत में केवल तीसरी लहर ही सर्दी (हेमंत या शिशिर) ऋतु में आई थी |
    वायुप्रदूषण बढ़ने से कोरोनासंक्रमण बढ़ेगा! ऐसा अनुमान तो लगाया गया था,किंतु 2020 के अक्टूबर नवंबर महीने में वायुप्रदूषण तो बहुत बढ़ा हुआ था,लेकिन कोरोनासंक्रमण दिनोंदिन कम होता चला जा रहा था | ऐसे ही मार्च अप्रैल  2021 में वायुप्रदूषण तो दिनोंदिन कम होता जा रहा था,यह इतना कम हुआ कि पंजाब और बिहार से हिमालयपर्वत के दर्शन होने लगे थे| भारत में इसीसमय कोरोनामहामारी की सबसे भयंकर लहर आई थी |अतएव वायुप्रदूषण  बढ़ने से कोरोनासंक्रमण बढ़ेगा और घटने से कोरोना संक्रमण घटेगा |ये अनुमान भी सही नहीं निकला था |
    ऐसे अनुमानों के गलत निकलने का कारण खोजा जाना चाहिए |वस्तुतः ऐसे अनुमान लगाने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार माना गया वे यदि सही होते तो ऐसे अनुमान भी सही निकलते| इनके गलत निकलने का कारण महामारी पैदा होने या संक्रमण के बढ़ने घटने के लिए जिम्मेदार माने गए कारणों का चयन सही न हो सकता है |  
     कोविडनियमों के पालन से संक्रमण के कम  होने का अनुमान लगाया गया था,किंतु ये अनुमान भी सही नहीं निकला था | महानगरों के साधन संपन्न परिवारों में महामारी प्रारंभ होते ही एकांतवास को अपना लिया गया था !इसके बाद भी उन घरों में लोग संक्रमित हुए हैं | उन्हीं घरों में नौकरी करने वाले कर्मचारी सभी जगह घूमते भी रहे !आवश्यक सामग्री लाते रहे| परिवार के किसी सदस्य के संक्रमित होने पर उसे अस्पताल लेकर जाते रहे | उनके कपड़े लाते ले जाते रहे ,फिर भी वे संक्रमित नहीं हुए हैं| महानगरों में गरीबों के बच्चे भोजन के लिए भटकते रहे !जिसने जैसे हाथों से जो कुछ दिया उसे उन्होंने खाया किंतु संक्रमित नहीं हुए | घनीबस्तियों में छोटे छोटे घरों में कई लोग एक साथ रहते रहे !वे संक्रमित नहीं हुए | फैक्ट्रियों आदि में अनेकों लोग एक साथ रहते रहे उनमें से कोई एक दो संक्रमित हुए तो भी वे सब साथ ही रहते रहे |ऐसे ही रेडी वाले सब्जी वाले फल वाले !कोविद नियमों का पालन न करके भी संक्रमित नहीं हुए | बिहार और बंगाल की चुनावी रैलियों में,हरिद्वार के कुंभ मेले में,दिल्ली के किसान आंदोलन में, दिल्ली मुंबई सूरत से श्रमिकों के पलायन करते समय भारी भीड़ें उमड़ीं | उनमें कोविड  नियमों का पालन संभव ही न था,फिर भी वहाँ संक्रमितों की संख्या नहीं बढ़ी,जबकि बढ़ने का अनुमान लगाया गया था | ये अनुमान भी सही नहीं निकला |      
      चिकित्सा की दृष्टि से भी ऐसा ही रहा | प्लाज्मा थैरेपी को प्रारंभ में तो लाभप्रद होने का अनुमान लगाया गया था | जिन लोगों पर परीक्षण किया गया था | उन प्रयोगों को भी सफल माना गया था | इसके बाद उस प्लाज्मा थैरेपी के प्रयोग को उस प्रकार का उपयोगी नहीं माना गया था | 
   ऐसे ही रेमडिसिविर टीके को पहले कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने में सहायक माना गया था,किंतु बाद में उसके उसप्रकार के प्रभाव को नहीं स्वीकार किया गया |
     कुल मिलाकर जिन घटनाओं के घटित होने या पैदा होने के वास्तविक कारण को नहीं खोजा जा सका !उनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं हो पाया है | जो लगाए भी जाते रहे वे गलत निकल जाते रहे |   
                                        घटनाएँ और उनके कारण एवं अंतर्कारणों का प्रभाव                   
     किसी कड़ाही में पकता हुआ दूध उबाल मार रहा है|उस दूध के उबाल मारने का कारण कड़ाही का गर्म होना है | कड़ाही के गर्म होने का कारण  उसके नीचे आग का जलना है | ये आग जब तक जलेगी तब तक कड़ाही का दूध उबाल मारता रहेगा|आग कब तक जलेगी जब तक उसमें जलने वाली लकड़ियाँ रहेंगी | लकड़ियाँ कितनी हैं कितने समय तक जलती रह सकती हैं|इसका अनुमान लगाकर इसी के आधार पर इस  बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कड़ाही में दूध कब तक उबलता रहेगा |
     कुल मिलाकर इतने सारे अंतर्कारणों को खोजते खोजते तब मूलकारण तक पहुँचा जा सका कि कड़ाही के नीचे की लकड़ियाँ जब तक जलती रहेंगी तब तक आग जलती रहेगी |उसके आधार पर  पूर्वानुमान लगाया जा सका | 
      इसीप्रकार से भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ तथा महामारी आदि घटनाओं के पैदा होने के लिए जिम्मेदार उनके सही कारणों एवं अंतर्कारणों को समझना होगा | उनके आधार पर लगाए गए पूर्वानुमानों के सही निकलने की संभावना अधिक होगी | इससे प्राकृतिक घटनाओं को तो समझा ही जा सकता है|इसके साथ ही साथ महामारी जैसी उन घटनाओं को भी समझा जा सकता है| जिनके पैदा होने का कारण मौसमसंबंधी  घटनाएँ होती हैं | 
     महामारीपैदा होने या संक्रमण बढ़ने के लिए तापमान कम होने को जिम्मेदार बताया जा रहा था| कहा जा रहा था कि तापमान बढ़ने पर महामारी संबंधी संक्रमण कम हो जाएगा| यद्यपि यह अनुमान सही नहीं निकला था |यदि यह अनुमान सही निकल जाता तो केवल इतने से ही महामारी के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना संभव न हो पाता | तापमान के आधार पर सही पूर्वानुमान लगाने के लिए तो तापमान कब बढ़ेगा और कब कम होगा ! पहले इसके विषय में सही पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता होगी |
      इसी प्रकार से कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने के लिए वायुप्रदूषण बढ़ने को जिम्मेदार बताया गया था |ये अनुमान यद्यपि गलत निकला था ,किंतु यदि यह अनुमान वास्तव में सच होता तो भी इसके आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं था | यदि ऐसा होता भी हो तो भी केवल इतना ही जान  लेने से महामारी कब बढ़ेगी इसका पूर्वानुमान लगाना संभव न हो पाता | महामारी का सही पूर्वानुमान लगाने के लिए वायुप्रदूषण बढ़ने के विषय में पहले पूर्वानुमान लगाना पड़ता !उसी के आधार पर महामारीजनित संक्रमण बढ़ने के विषय  में पूर्वानुमान लगा लिया जाता |
     ऐसे ही महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने के लिए मौसमसंबंधी घटनाओं को यदि कारण माना जाता तो पहले महामारी संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना पड़ता उसी के आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाना होता,किंतु मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में ही सही पूर्वानुमान लगा पाना यदि संभव नहीं है ,तो महामारी के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना कैसे संभव हो पाता |

                                        समस्याओं के समाधान कैसे खोजे जाएँ

    वर्तमान समय में विज्ञान उन्नतशिखर पर है,जिसके द्वारा सुख सुविधाओं के साधन तो विकसित किए जा सके हैं किंतु प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों से हो रही जनधन हानि को रोका जाना संभव नहीं हो पा रहा है |वर्तमान समय का उन्नत विज्ञान उस उँचाई पर नहीं पहुँच पा रहा है, जहाँ ऐसी समस्याओं का निर्माण होता है |समस्याओं के समाधान भी उसी उँचाई पर संभव हैं | किसी बड़े बाँध से काफी अधिक मात्रा में जल छोड़ा जा रहा हो तो उससे बाढ़ आनी निश्चित है|जिससे जनधन का नुक्सान हो सकता है | यदि इस नुक्सान से समाज की सुरक्षा की जानी है तो इस पानी छोड़े जाने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना सबसे पहले आवश्यक है |नदी के इतने तेज बहाव से होने वाले जनधन के नुक्सान को तत्काल की तैयारियों के बलपर सुरक्षित किया जाना संभव नहीं हो पाता है |

   इतनी अधिक मात्रा में पानी आ रहा है ये पहले से पता न हो तो अचानक बाढ़ आएगी ही उससे जनधन का नुक्सान भी उतना होगा ही जितना होना है |जल  के इतने तेज बहाव को कैसे रोक लिया जाएगा | उसके साथ बहे जा रहे जनधन को कैसे पकड़ लिया जाएगा और कितना सुरक्षित बचा लिया जाएगा | 

    जिस प्रकार से किसी गाँव में घुसकर उपद्रव मचा रहे हाथी के आगे पीछे कुत्ते भौंकते भले रहें किंतु उस हाथी के उपद्रवों को रोकना उन कुत्तों के वश में नहीं होता है | ये जानते हुए भी कुत्ते उस हाथी के आगे पीछे भौंकते रहते हैं और हाथी नुक्सान करता रहता है |जिस प्रकार से कुत्तों के भौंकने से हाथियों के उपद्रवों को तुरंत की तैयारियों के बल  पर रोका जाना संभव नहीं होता है | उसी प्रकार से मनुष्यों के द्वारा की गई तुरंत की तैयारियों के बलपर महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जनधन हानि को घटाया जाना संभव नहीं होता है | पहले से सही पूर्वानुमान लगाए बिना ऐसी आपदाओं से जनधन को सुरक्षित किया जाना संभव नहीं होता है | जिस प्रकार से हाथी को गाँव  छोड़कर कभी तो जाना ही होता है |इसलिए जब वो हाथी अपने आपसे गॉंव छोड़कर चला जाता है | हाथी के जाने को यदि कुत्तों के भौंकने का परिणाम मानने की गलती की जाती रही तो हाथियों के ऐसे उपद्रवों को सहने के लिए हमेंशा तैयार रहा जाना चाहिए |                             

         विज्ञान की इस कमजोरी को कैसे छिपाएँ                             

                                  

                                  

                                                                                                                   कुछ आवश्यक एवं अनुत्तरित प्रश्न !

                              


ऐसी परिस्थिति में सूर्य के प्रभाव परिवर्तन से ही कफ पित्त वात आदि का संतुलन बनता बिगड़ता है |

https://snvajpayee.blogspot.com/2022/03/blog-post.html  

                                    आधुनिक विज्ञान
   
 
                               



 
 
 
  अनुमानों के गलत निकलने के कारण खोजे जाएँ !
 

महामारी एवं आपदाओं से विज्ञान अभी बहुत दूर है !

      


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