mahamari
दो शब्द
भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा बाढ़ जैसी हिंसक प्राकृतिक आपदाएँ दिनोंदिन बढ़ते देखी जा रही हैं | उनसे प्रतिवर्ष जनधन का बहुत नुक्सान होता ही है | कोरोना जैसे महामारी आई इससे वर्षों तक जनधन का बहुत बड़ा नुक्सान होता रहा है | इसके अतिरिक्त मनुष्यकृत उपद्रवों आंदोलनों दंगों आदि में बहुत जनधन का नुक्सान होते देखा जाता है | छोटी छोटी बातों पर बड़े बड़े तनाव तैयार करके लोग हत्या आत्महत्या करने पर उतारू हो जाते हैं | वर्तमानसमय में देखा जा रहा है कि लोग उठते बैठते हँसते खेलते नाचते कूदते बोलते बताते या बैठे बैठे मृत्यु को प्राप्त होते देखे जा रहे हैं | ऐसी और भी बहुत सारी घटनाएँ घटित होते देखी जा रही हैं |
बुरे समय के कारण प्राकृतिक वातावरण बिगड़कर जीवन जीने के योग्य नहीं रह
जाता है |ऐसे वातावरण में साँस लेकर स्वस्थ रहना कठिन होता है |वातावरण के
बिषैलेपन का प्रभाव खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ने से उनमें उन पोषक तत्वों
की कमी हो जाती है | जो शरीरों को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक होते हैं |
ऐसे बिषैले वातावरण में पैदा हुए फल फूल अन्न दाल शाक सब्जियों को खा पीकर
पेट भले भर जाता हो किंतु ऐसे भोजन से शरीरों को वो पौष्टिकता नहीं मिल
पाती है | इसलिए ऐसा भोजन शरीरों को स्वस्थ रखने लायक नहीं रह जाता है |
इसीलिए उसे खा पीकर प्राणियों के स्वास्थ्य को सुरक्षित बचाए रखना कठिन हो जाता है |
इसीप्रकार के बिषैले वातावरण का प्रभाव औषधियों औषधीयद्रव्यों एवं बनस्पतियों पर पड़ने के कारण उनके उन स्वाभाविक गुणों में कमी आ जाती है | जो शरीरों को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं तथा रोग मुक्ति दिलाने में सक्षम माने जाते हैं |
ऐसी स्थिति में एक ओर शरीर रोगी होते हैं | दूसरे बिषैले वातावरण में साँस लेने से रोग बढ़ते हैं| तीसरे खान पान बिगड़ते रहने से रोग बढ़ने की प्रतिपल संभावना बनी रहती है |औषधियों का प्रभाव न पड़ने से रोग मुक्ति दिलाने का कोई साधन नहीं होता है | जिससे रोग दिनोंदिन बढ़ता हुआ महारोग बनते चला जाता है | जिससे मुक्ति दिलाने का समय बदलने के अतिरिक्त कोई दूसरा उपाय नहीं होता है |
भूमिका
प्राचीन विज्ञान वेत्ताओं का मानना रहा है कि महामारी एवं मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाना केवल गणितविज्ञान के द्वारा संभव है | प्राचीन काल में उपग्रहों रडारों सुपर कंप्यूटरों की सुविधा नहीं थी, फिर भी मौसम या महामारी से संबंधित पूर्वानुमान बिल्कुल सही निकलते थे| इसका कारण उस युग में मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विज्ञान को गणितविज्ञान के द्वारा ही खोजा जाता था | ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे अनुमान पूर्वानुमान लगाकर उनसे बचाव के लिए उपाय भी करने प्रारंभ कर दिए जाते थे |
वर्तमान समय में प्रकृति से लेकर जीवन तक सभी जगह तनाव बढ़ता अनुभव किया जा रहा है|भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा बाढ़ बज्रपात रोग महारोग (महामारी ) जैसे हिंसक प्राकृतिक संकट दिनोंदिन बढ़ते देखे जा रहे हैं| तरह तरह की दुर्घटनाएँ महारोग आदि पैदा होते देखे जा रहे हैं|लोगों में उन्माद असहनशीलता हिंसकभावना दिनों दिन बढ़ती जा रही है|अपराध,खाद्य सामग्री में मिलावट एवं धोखाधड़ी जैसी घटनाएँ अधिक मात्रा में घटित होते देखी जा रही हैं |वैवाहिक संबंध टूट रहे हैं|परिवार बिखर रहे हैं | समाज में वैमनस्यता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है| अच्छे अच्छे पढ़े लिखे ज्ञानी गुणवान अनुभवी लोगों पर समाज को दिशा देने की नैतिक जिम्मेदारी होती है | उन्हीं लोगों को वर्त्तमान समय में असहनशील होते देखा जा रहा है |हत्या आत्महत्या जैसी घटनाएँ उनके द्वारा भी घटित होती जा रही हैं |व्यापारियों विद्यार्थियों अफसरों से भी धर्म न्याय दयालुता कर्तव्यपालन आदि सदाचरण दूर होते देखे जा रहे हैं | पशुओं पक्षियों चूहों चमगादड़ों टिड्डियों में उन्माद की भावना बढ़ती दिख रही है |प्राकृतिक हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जा रही हैं|लोग हों या देश हिंसक भावना से भवित हैं | भूकंपों की आवृत्तियाँ बार बार होती दिख रही हैं |
ऐसी घटनाओं का कोरोना महामारी से कोई अंतर्संबंध तो नहीं है | यह पता लगाने के लिए ऐसी घटनाओं के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना आवश्यक है,क्योंकि ऐसी आपदाओं के शुरू हो जाने या घटित होने के बाद सुरक्षा के लिए कुछ भी किया जाना तुरंत संभव नहीं होता है|इनका वेग ही इतना अधिक होता है|इसके लिए तो पहले से ही तैयारी करके रखी जानी चाहिए |जो नहीं हो पा रहा है|यदि ऐसा होता तो प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों में उतना नुक्सान न हुआ होता जितना हो रहा है|
विज्ञान के बिना किसी भी रहस्य को सुलझाया जाना संभव नहीं हैं !इसी प्रकार से भविष्य को समझने के लिए भी विज्ञान की आवश्यकता होती है |विज्ञान के बिना भविष्य में झाँकना संभव नहीं है | इसके बिना भविष्य में कौन घटना कब घटित होगी |इसके विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है|पूर्वानुमान लगाए बिना प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों से समाज को सुरक्षित बचाया जाना संभव नहीं है !यही कारण है कि तीनों युद्धों में मिलाकर भारत को जितना नुक्सान नहीं उठाना पड़ा था |उससे कई गुना अधिक नुक्सान केवल कोरोना महामारी के समय में ही उठाना पड़ा है |
ऐसी परिस्थिति में सामरिक तैयारियाँ करके केवल शत्रु देशों से तो अपने देशवासियों की सुरक्षा की जा सकती है,किंतु कोरोना जैसी महामारी से मारे गए लाखों लोगों की सुरक्षा के लिए अभी भी तैयारियाँ क्या हैं|महामारी को समझने में या उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में वर्तमान समय के उन्नतविज्ञान से ऐसी क्या मदद मिल सकी है|जो वैज्ञानिक अनुसंधानों के बिना संभव न थी|कोरोना महामारी के कारण जितनी जनधन हानि हुई है ! वैज्ञानिक अनुसंधान न हुए होते तो क्या इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था |इस विषय में गंभीर चिंतन किए जाने की आवश्यकता है|
इसमें विशेष बिचारणीय यह है कि कोरोनामहामारी के समय जनधन का जितना नुक्सान हुआ है|उसका कारण महामारी की भयंकरता थी या महामारी से सुरक्षा के लिए कोई तैयारियाँ नहीं थीं|ऐसे ही कोरोना महामारी के कारण इतने लोगों की मृत्यु हुई है या प्रतिरोधक क्षमता की कमी के कारण ! ऐसे प्रश्नों का तर्क संगत उत्तर खोजा जाना चाहिए|महामारी पैदा कैसे हुई !इसका विस्तार कितना था ! प्रसारमाध्यम क्या था ! अंतर्गम्यता कितनी थी|इसपर मौसम का प्रभाव पड़ता था या नहीं ! वायुप्रदूषण का प्रभाव कैसा पड़ता था|तापमान बढ़ने या घटने का क्या प्रभाव पड़ता था या नहीं | ऐसे आवश्यक प्रश्नों के उत्तर खोजे बिना महामारी को समझना संभव नहीं है और महामारी को अच्छी प्रकार से समझे बिना उससे समाज को सुरक्षित रखने या संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए किसी भी प्रभावी औषधि का निर्माण किया जाना संभव नहीं है |
मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की जो विधि भारत के प्राचीन ग्रंथों में बताई गई है |मैंने उसी के अनुसार आज के तीस वर्ष पूर्व जो अनुसंधान प्रारंभ किया था | उससे जो अनुभव प्राप्त हुए उनके द्वारा मौसम संबंधी घटनाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के स्वभाव को न केवल समझा जा सकता है| प्रत्युत उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है|जो प्रायः सही निकलता है | ये जनहित में बहुत उपयोगी है | इसकी मदद लेकर प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों में हो रही जनधन हानि को कम करके मनुष्यों की सुरक्षा की जा सकती है |
प्रकृति से लेकर जीवन तक बहुत सारी घटनाएँ इसप्रकार की घटित होते देखी जाती हैं |जिनके घटित होने में मनुष्यों का कोई योगदान नहीं होता है,फिर भी वे घटनाएँ घटित हो रही होती हैं |किसी को अचानक कोई रोग हो जाता है,चोट लग जाती है ,अच्छा प्रयास करने पर भी कोई काम बिगड़ जाता है|नुक्सान हो जाता है ,नौकरी छूट जाती है |अकारण मानसिक तनाव बढ़ने लगता है,पति पत्नी के आपसी संबंध बिगड़ने लगते हैं |मानसिक तनाव बढ़ने लगता है |ऐसी अनेकों प्रकार की दुर्घटनाएँ घटित होने लगती हैं |जिसके लिए उसव्यक्ति ने या किसी अन्य ने ऐसा कोई प्रयत्न भी नहीं किया होता है | ऐसी दुर्घटना घटित हो,ऐसा वो चाहता भी नहीं है | उस दुर्घटना से बचाव के लिए वो प्रयत्न भी करता है,फिर भी उससे बचाव न होकर दुर्घटना घटित हो जाती है|
प्रकृति या जीवन में घटित होने वाली ऐसी घटनाएँ जो अपने आपसे घटित होती दिखाई देती हैं | संभव है कि ऐसी घटनाएँ किसी अलौकिक शक्ति से प्रेरित हों | यद्यपि वो प्रक्रिया प्रत्यक्षरूप में किसी को दिखाई तो नहीं पड़ती है किंतु इससे मुझे यह प्रेरणा अवश्य मिली कि जिस प्रकार से ये सभी घटनाएँ घटित होती हैं,महामारियाँ भी उसीप्रकार से पैदा हो सकती हैं| संभव है कि उसी प्रक्रिया से कोरोना जैसी महामारियाँ भी पैदा और समाप्त होती हों,या महामारी संबंधी संक्रमण घटने बढ़ने का कारण भी वही हो |
मैने कार्य कारण संबंध के आधार पर महामारी को समझने के लिए प्रयत्न किया है | मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार कारण खोजना होता है | कार्य - कारण संबंध प्रायः प्रत्येक काल में प्राच्य - पाश्चात्य विचारकों के चिंतन का विषय रहा है।महर्षि कपिल हों, महात्मा बुद्ध हों अथवा अरस्तु हों, सभी ने कार्य - कारण संबंध पर विचार अवश्य किया है | प्रकृति या जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटना परिस्थिति मनस्थिति आदि के लिए जिम्मेदार कोई न कोई कारण अवश्य होता है | कोई भी घटना या कार्य बिना कारण के नहीं घटित होता है| इसीलिए प्रकृति और जीवन से प्रत्येक घटना को समझने के लिए उसका कारण खोजना मनुष्यों के स्वभाव में सम्मिलित है |किसी रोगी के रोगी होने का कारण चिकित्सक जानना चाहता है | समाज में बढ़ते अपराधों,तनावों, हिंसक आंदोलनों आदि का कारण हर कोई जानना चाहता है | जिन घटनाओं के कारण पता लगे उनका पूर्वानुमान भी पता लग जाता है और यदि संभव हुआ तो उन समस्याओं के समाधान भी निकल जाते हैं |
महामारी समाप्त होने के लिए कुछ लोगों ने कोविड नियमों के पालन को जिम्मेदार माना है | प्लाज्मा थैरेपी ,रेंडीसीवीर,,वैक्सीनजबकि मैंने भगवती की कृपा को माना है
इसके बाद पूर्वानुमान लगाए जातेदूसरी
बात
महामारी के विषय अनुमान गलत निकलते रहे
पूर्वानुमानों का आधार ही गलत था तो अनुमान कैसे सही निकलते !
समस्याओं के समाधान कैसे खोजे जाएँ
वर्तमान समय में विज्ञान उन्नतशिखर पर है,जिसके
द्वारा सुख सुविधाओं के साधन तो विकसित किए जा सके हैं किंतु प्राकृतिक
आपदाओं तथा महामारियों से हो रही जनधन हानि को रोका जाना संभव नहीं हो पा
रहा है |वर्तमान समय का उन्नत विज्ञान उस उँचाई पर नहीं पहुँच पा रहा है,
जहाँ ऐसी समस्याओं का निर्माण होता है |समस्याओं के समाधान भी उसी उँचाई पर
संभव हैं | किसी बड़े बाँध से काफी अधिक मात्रा में जल छोड़ा जा रहा हो तो
उससे बाढ़ आनी निश्चित है|जिससे जनधन का नुक्सान हो सकता है | यदि इस
नुक्सान से समाज की सुरक्षा की जानी है तो इस पानी छोड़े जाने के विषय में
पूर्वानुमान लगाया जाना सबसे पहले आवश्यक है |नदी के इतने तेज बहाव से होने
वाले जनधन के नुक्सान को तत्काल की तैयारियों के बलपर सुरक्षित किया जाना
संभव नहीं हो पाता है |
इतनी अधिक मात्रा में पानी आ रहा है ये पहले से पता न हो तो अचानक बाढ़ आएगी ही उससे जनधन का नुक्सान भी उतना होगा ही जितना होना है |जल के इतने तेज बहाव को कैसे रोक लिया जाएगा | उसके साथ बहे जा रहे जनधन को कैसे पकड़ लिया जाएगा और कितना सुरक्षित बचा लिया जाएगा |
जिस प्रकार से किसी गाँव में घुसकर उपद्रव मचा रहे हाथी के आगे पीछे कुत्ते भौंकते भले रहें किंतु उस हाथी के उपद्रवों को रोकना उन कुत्तों के वश में नहीं होता है | ये जानते हुए भी कुत्ते उस हाथी के आगे पीछे भौंकते रहते हैं और हाथी नुक्सान करता रहता है |जिस प्रकार से कुत्तों के भौंकने से हाथियों के उपद्रवों को तुरंत की तैयारियों के बल पर रोका जाना संभव नहीं होता है | उसी प्रकार से मनुष्यों के द्वारा की गई तुरंत की तैयारियों के बलपर महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जनधन हानि को घटाया जाना संभव नहीं होता है | पहले से सही पूर्वानुमान लगाए बिना ऐसी आपदाओं से जनधन को सुरक्षित किया जाना संभव नहीं होता है | जिस प्रकार से हाथी को गाँव छोड़कर कभी तो जाना ही होता है |इसलिए जब वो हाथी अपने आपसे गॉंव छोड़कर चला जाता है | हाथी के जाने को यदि कुत्तों के भौंकने का परिणाम मानने की गलती की जाती रही तो हाथियों के ऐसे उपद्रवों को सहने के लिए हमेंशा तैयार रहा जाना चाहिए |
ऐसे अनुसंधानों से क्या हो पाएँगे समस्याओं के समाधान !
मौसम
संबंधी जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में हमेंशा अनुसंधान होते रहते हैं
!उन अनुसंधानों का आधार यदि सही हो और अनुसंधानों में सही वैज्ञानिक
प्रक्रिया का परिपालन किया जाए तो मौसम मानसून एवं प्राकृतिक आपदाओं के
विषय में तो सही पूर्वानुमान लगाया ही जा सकता है | इसके साथ ही साथ
महामारी जैसी घटनाओं से भी समाज की सुरक्षा करनी में इतनी कठिनाई नहीं होती
|जैसे अनुसंधान होंगे वैसे परिणाम निकलेंगे ! ऐसी रिसर्चों से सच्चाई कैसे
सामने लाई जा सकती है |
एक बार कुछ दृष्टिहीन (अंधे) लोगों को रिसर्च करने की जिम्मेदारी सौंपी गई | उन्हें पता लगाना था कि "हाथी कैसा होता है !" उन दृष्टिहीन लोगों ने हाथी को कभी देखा नहीं था और न ही उसके विषय में कभी कुछ सुना था |ऐसे लोगों के बीच हाथी को लाकर खड़ा किया गया | उन्होंने अपनी अपनी सुविधा के अनुसार हाथी का स्पर्श किया | उनमें से जिसका हाथ हाथी के जिस अंग पर पड़ा उसे लगा कि हाथी वैसा ही होता है | जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा उसने लिखा कि हाथी खंभे जैसा होता है !पेट पर जिसका हाथ पड़ा उसने लिखा कि हाथी पहाड़ जैसा होता है |इसी प्रकार से उनके अनुभवों से एक शोधप्रबंध (थीसिस)लिख तो दिया गया किंतु उसे पढ़कर यह जानना संभव नहीं हो पाया कि "हाथी कैसा होता है !"
इसलिए उन्हीं लोगों को रिसर्च करने के लिए एक और अवसर दिया गया | उन्होंने फिर अपनी अपनी सुविधानुसार हाथी को स्पर्श किया |अबकी बार उनके हाथ पहली बार से अलग कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अबकी उनके अनुभव भी पहले की अपेक्षा अलग हुए |इसलिए पहले के शोध प्रबंध से इस शोधप्रबंध की विषयवस्तु में बहुत अंतर आ गया |
पहली बार जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा था | इसलिए उसे लगा था कि हाथी खंभे जैसा होता है | अबकी बार उसका हाथ हाथी की पूँछ पर पड़ा तो उसे लगा कि हाथी सर्प जैसा होता है| ऐसे ही सभी के हाथ हाथी के कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अब उन सभी के अनुभव बदल चुके थे | पहली बार पेट पर हाथ पड़ने से जिसने पहले हाथी को पहाड़ जैसा माना था | उसके हाथ में अबकी बार हाथी की सूँड लगी | इसलिए अबकी बार उन्होंने हाथी को अजगर जैसा बताया |
इस प्रकार से उन सभी के अनुभव बदलते देख कर उनसे पूछा गया कि हाथी को आपने पहले तो पहाड़ जैसा बताया था, किंतु अबकी बार आपने हाथी को अजगर जैसा बताया है | इन दो प्रकार के उत्तरों में अंतर आने का कारण क्या है ? अपनी अनुसंधान क्षमता की कमी स्वीकार करने के बजाए उन्होंने कहा कि हाथी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है | इसलिए " हाथी कैसा होता है " अनुसंधानों के द्वारा यह पता लगाया जाना संभव ही नहीं है | इस प्रकार से "हाथी कैसा होता है |" यह पता लगाने के लिए शोधप्रबंध तो दो तैयार हो गए किंतु यह पता नहीं लगाया जा सका कि "हाथी कैसा होता है |"
इसी प्रकार से वर्षा आँधी तूफ़ान बज्रपात चक्रवात भूकंप एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में अनुसंधानों के नामपर शोध प्रबंध तो न जाने कितने तैयार किए जा चुके होंगे किंतु किसी भी घटना के स्वभाव के आधार पर उसे सही सही समझना एवं उसके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है | मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में ऐसी स्थिति हमेंशा से देखी जाती रही है | महामारी के विषय में अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं से समाज पहली बार परिचित हुआ है | इन्हीं अनुसंधानों के घमंड से जो लोग भारत के जिस प्राचीन विज्ञान को अंधविश्वास बताया करते हैं | उन्हीं के सामने भारत की उसी प्राचीन वैज्ञानिक क्षमता को प्रस्तुत कर रहा हूँ जिससे ये अनुमान लगाया जा सकता है कि इससे संबंधित अनुसंधान मौसम एवं महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए कितने सहायक हो सकते हैं |
पहली बार जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा था | इसलिए उसे लगा था कि हाथी खंभे जैसा होता है | अबकी बार उसका हाथ हाथी की पूँछ पर पड़ा तो उसे लगा कि हाथी सर्प जैसा होता है| ऐसे ही सभी के हाथ हाथी के कुछ दूसरे अंगों पर पड़े थे| इसलिए अब उन सभी के अनुभव बदल चुके थे | पहली बार पेट पर हाथ पड़ने से जिसने पहले हाथी को पहाड़ जैसा माना था | उसके हाथ में अबकी बार हाथी की सूँड लगी | इसलिए अबकी बार उन्होंने हाथी को अजगर जैसा बताया |
इस प्रकार से उन सभी के अनुभव बदलते देख कर उनसे पूछा गया कि हाथी को आपने पहले तो पहाड़ जैसा बताया था, किंतु अबकी बार आपने हाथी को अजगर जैसा बताया है | इन दो प्रकार के उत्तरों में अंतर आने का कारण क्या है ? अपनी अनुसंधान क्षमता की कमी स्वीकार करने के बजाए उन्होंने कहा कि हाथी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है | इसलिए " हाथी कैसा होता है " यह पता लगाया जाना अनुसंधानों के वश की बात नहीं है | इस प्रकार से शोधप्रबंध तो एक और तैयार हो गया किंतु यह नहीं पता लगाया जा सका कि "हाथी कैसा होता है |"
इसी प्रकार से दूसरा दृष्टांत देते हुए उन्होंने कहा कि किसी गाँव में घुस कर हाथी प्रायः उपद्रव मचाने लगते थे |वे गाँव में कहीं भी जाते, कुछ भी करते, किसी का घर गिराते, किसी पेड़ को तोड़ते जबतक ऐसे उपद्रव करते रहते तब तक उन्हें रोकने का साहस कोई नहीं कर पाता था | उपद्रव करते करते थककर जब वही हाथी गाँव से बाहर जाने लगते तो उनके आगे पीछे भौंकने वाले गाँव के कुत्तों को यह भ्रम हो जाता कि उन्होंने ही भौंक भौंक कर हाथियों को गाँव के बाहर भगा दिया है |वही हाथी जब दोबारा फिर से गाँव में घुस आवें और फिर उपद्रव करने लगें | जिसे देखकर फिर कुत्ते उसी प्रकार से भौंकते हुए हाथी के आगे पीछे दौड़ने लगें |फिर भी हाथी गाँव से बाहर न जाकर वैसे ही वहीं उपद्रव करते रहें कुत्तों के भौंकने का कोई प्रभाव ही न पड़े | इससे यह स्पष्ट हो गया कि हाथियों के गाँव से बाहर जाने में पहले भी कुत्तों के भौंकने की कोई भूमिका नहीं थी ,फिर भी कुत्तों को लगता था कि हाथियों का स्वभाव परिवर्तन हो गया है |
ऐसे ही तीसरा दृष्टांत देते हुए उन्होंने कहा कि किसी गाँव के एक ओर जंगल था | जिससे निकलकर हाथी गाँवों में घुस कर अक्सर उपद्रव मचाने लगते थे |गाँव वाले इकट्ठे होकर जब तक उन्हें खदेड़ पाते तब तक हाथियों के द्वारा काफी बड़ा नुक्सान कर दिया जाता था| इससे बचाव के लिए जंगल वाली दिशा में गाँव के बाहर ग्रामीणों ने कैमरे लगवा लिए | हाथी जैसे ही जंगलों से निकलकर गाँव की ओर आने लगते तो ग्रामीणों को कैमरों में दिखाई दे जाते | गाँव के लोग इकट्ठे होकर उन्हें खदेड़ आते थे | इससे ग्रामीणों का संभावित नुक्सान तो बच जाता था किंतु जिस प्रकार से इसे हाथी विज्ञान नहीं कहा जा सकता उसी प्रकार से उपग्रहों रडारों के माध्यम से बादलों आँधी तूफानों को देखकर उनकी गति और दिशा के अनुसार अंदाजा लगा लेने को मौसम विज्ञान नहीं कहा जा सकता है |
ऐसे तीन दृष्टांतों के माध्यम से गुरू जी ने हमें उपदेश देते हुए कहा कि अनुसंधानों की यदि सार्थकता सिद्ध करनी है तो घटनाओं के स्वभाव को समझने का प्रयत्न करना होगा | उसके आधार पर किए गए अनुसंधान प्रायः सही निकलते हैं | इसमें प्राचीन गणितविज्ञान काफी अधिक सहायक हो सकता है |
गुरू जी के आदेशानुसार ही मैंने गणितविज्ञान के आधार पर इन सार्थक अनुसंधानों की शुरुआत की थी !इस अनुसंधान यात्रा पर निकले तीसवर्ष से अधिक का समय बीत गया है |उसी का परिणाम है कि मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के स्वभाव को समझना संभव हो पाया है | उसी के आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान सही निकलते देखे जा रहे हैं |
उन्नत विज्ञान पर भरोसा भी है और भविष्य को लेकर चिंताएँ भी !
अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की तरह महामारी चीन के वुहान से निकलती है और निर्ममतापूर्वक मनुष्यों को संक्रमित करती हुई आगे बढ़ती जाती है |संपूर्ण विश्व का चक्कर लगाकर भारत पहुँचती है| इस विश्वपरिक्रमा में उसे अन्य देशों के साथ साथ कुछ विकासशील देश तो कुछ विकसित देश भी मिले |जिनकी चिकित्सा व्यवस्था अति उन्नत मानी जाती है | उन देशों की वैज्ञानिक क्षमता की परवाह न करती हुई महामारी आगे बढ़ती चली गई | वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा ऐसा कोई महामारीसुरक्षाकवच खोजा नहीं जा सका |जिसके बल पर समाज को यह विश्वास दिलाया जा सका हो कि महामारी से अब कोई भय नहीं है |विज्ञान से हमें पहले सुख सुविधाएँ चाहिए या सुरक्षा !
चिंता की बात यह है कि गर्व करने लायक इतने उन्नत विज्ञान की मदद से अभी तक यह समझा जाना संभव नहीं हो पाया है कि महामारी पैदा कैसे हुई ? महामारी से लोग रोगी कैसे हुए ? महामारी से संक्रमित लोग स्वस्थ कैसे हुए ? महामारी समाप्त कैसे हुई ? समाप्त हुई या अभी और आएगी ! महामारी की लहरें आने और जाने का कारण क्या था ?महामारी के बिषाणु पदार्थों या जीवों के अंदर प्रवेश कर सकते है या नहीं ? महामारी के बिषाणु प्राकृतिक वातावरण में मनुष्य शरीरों से पहुँचते हैं या मनुष्य शरीरों से प्राकृतिक वातावरण में ? महामारी से मुक्ति दिलाने में चिकित्सा की क्या भूमिका रही ? कोविडनियमों के पालन से क्या मदद मिली ?
तापमान बढ़ने घटने का महामारी पर प्रभाव पड़ता है या नहीं ? तापमान घटने बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव है क्या ?
वायुप्रदूषण बढ़ने से महामारीजनित संक्रमण बढ़ता है क्या ?वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण क्या है?वायुप्रदूषण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है क्या ?
महामारी
संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने में मौसम की भूमिका होती है या नहीं? मौसम
संबंधी परिवर्तनों का कारण क्या होता है ?मौसम के विषय में पूर्वानुमान
लगाया जाना संभव है क्या ?
भूकंपों का भी महामारी पर प्रभाव पड़ता है क्या ? महामारी के समय इतने अधिक भूकंप आने का कारण क्या था ?
महामारी
के समय कुछ वृक्षों में उनकी ऋतुओं के बिना भी फूल फल लगते देखे जा रहे थे
| फूलों फलों के आकार स्वाद सुगंध आदि में बदलाव होते सुने जा रहे थे |इसका कारण
महामारी ही थी या कुछ और ! ऐसे परिवर्तन कृषि संबंधी उत्पादों में भी होते
देखे जा रहे थे | ऐसा होने का कारण महामारी थी या कुछ और !
महामारी के समय पशुओं पक्षियों में इतनी अधिक बेचैनी क्यों थी ? पशुओं पक्षियों चूहों टिड्डियों ,कुत्तों, भेड़ियों आदि के उन्माद का कारण महामारी थी या कुछ और ?
महामारी के समय कुछ देशों में तनाव आतंकी घटनाएँ हिंसक आंदोलन एवं युद्ध जैसी हिंसक घटनाएँ घटित हो रही थीं !ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण महामारी थी या कुछ और !
महामारी काल से अभी तक उठते बैठते हँसते खेलते नाचते कूदते कुछ लोगों की
मृत्यु होते देखी जा रही है | इसका कारण कोरोना महामारी है या कुछ और !
महामारी का पूर्वानुमान लगाने के लिए भविष्य में झाँकने का विज्ञान होना आवश्यक है ऐसा विज्ञान न होने के बाद भी भविष्य महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाए जाते रहे कैसे !
कुलमिलाकर महामारी आकर चली भी गई है किंतु ऐसे प्रश्नों के उत्तर अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं | इसके बिना महामारी को समझना संभव नहीं है और महामारी को समझे बिना इससे मनुष्यों की सुरक्षा की जानी संभव नहीं है |
महामारी यदि लौटकर दोबारा भी आ जाए और उसका स्वरूप इससे भी भयंकर हो तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के बलपर इससे भी मना नहीं किया जा सकता है कि अब ऐसा नहीं होगा | ऐसा भी कहा जाना संभव नहीं है कि ऐसा कुछ होने से पहले उसके विषय में हम सही सही पूर्वानुमान लगा लेंगे |कोविडनियमों का पालन करके,प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के प्रयत्न करके या औषधियों टीकों आदि का अग्रिम प्रयोग करके समाज को रोगी होने से बचा लिया जाएगा ! महामारी से संक्रमित हो चुके रोगियों को चिकित्सा करके सुरक्षित बचा लिया जाएगा |विज्ञान के अत्यंत उन्नत अवस्था में पहुँचने पर भी ऐसी आपदाओं से यदि मनुष्य जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकी है तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा जो मनुष्यों की कठिनाइयाँ कम करके उन्हें सुखी बनाने के लिए खोजकर रखी गई हैं |
ऐसे अनुसंधानों से कितनी मदद मिलने की आशा की जाए !
महामारी पहले पैदा हो फिर लोग उससे तेजी से संक्रमित होने लगें,उनमें से कुछ की मृत्यु होते देखी जाए | इसके बाद उसे पहचानना प्रारंभ किया जाए ! वो रोग है या महारोग यह निश्चित किया जाए | उसका स्वभाव संक्रामकता लक्षणों आदि का पता लगाया जाए !उससे बचाव के उपाय खोजे जाएँ फिर उससे संक्रमितों को रोगमुक्ति दिलाने के लिए औषधियों को खोजा जाए ! औषधियों के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए | उसके लिए इतनी बड़ी मात्रा आवश्यक द्रव्यों का संग्रह किया जाए | इतनी अधिक मात्रा में औषधियों का निर्माण किया जाए | इतने विशाल समुदाय में जन जन तक पहुँचाया जाए | इसके बाद चिकित्सा पूर्वक संक्रमितों को रोग मुक्ति दिलाने के लिए प्रयत्न किया जाए |
ऐसा सब कुछ करने में बहुत समय लग जाएगा तब तक महामारी प्रतीक्षा तो नहीं करती रहेगी कि जब वैज्ञानिक अनुसंधान सफल हो जाएँ या औषधि निर्माण की सारी प्रक्रिया पूरी हो जाए | उतने समय में तो लाखों लोग संक्रमित होकर मृत्यु को भी प्राप्त जाएँगे | इसके बाद यदि चिकित्सा के प्रभाव से संक्रमितों को स्वस्थ करने में सफलता प्राप्त कर भी ली गई तो उससे उन लोगों को तो जीवित नहीं ही कर लिया जाएगा ! जो मृत्यु को प्राप्त हो चुके होंगे | जो संक्रमित होकर एक बार पीड़ा पा चुके हैं | उनके उस भय को भगाया नहीं जा सकेगा |
इसलिए महामारी में यदि समाज की मदद करनी ही है तो सबसे पहले ऐसा कोई
विज्ञान खोजना होगा ! जिसके द्वारा महामारी आने से पहले उसके विषय में
सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके कि महामारी आने वाली है |जिससे महामारी आने से
पहले इससे बचाव के साधनों से समाज को अवगत करा दिया जाए एवं ऐसी औषधियों का
प्रबंध कर लिया जाए | ऐसा प्रयत्न करके महामारी आने पर भी
महामारी के प्रकोप से समाज को सुरक्षित रखा जा सकता है | इससे मुक्त समाज निर्माण की संकल्पना को साकार किया जा सकता है |
प्राचीनविज्ञान हो या आधुनिकविज्ञान इनमें एक समानता तो है कि दोनों का आधार गणित ही है|प्राचीन विज्ञान प्राचीन गणितीय पद्धति पर आधारित है | प्राकृतिक विषयों में उसकी गणना अधिक सटीक बैठती है | गणित का प्रकृति से सीधा संबंध है | ऐसा विभिन्न वैज्ञानिकों ने समय समय पर स्वीकार किया है |
एक वैज्ञानिक प्रोफेसर गणितविज्ञान के साथ प्रकृति के सजीव संबंध को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि हमारी प्रकृति कुछ इस प्रकार से बनी है कि गणित के फार्मूले जो कागज़ पेन से लिखे जाते हैं | वे प्रकृति के कई सारे नियमों को ठीक तरीके से पकड़ लेते हैं |प्रकृति में क्या हो रहा है | ये वो गणित के सूत्र बता देते हैं | इसका कारण क्या है इसे कोई भी अच्छी तरीके से नहीं समझता है लेकिन ये हर जगह देखा गया है | चाहें न्यूटन के लॉ हों आइंस्टीन के लॉज हों सिंपल क्वेश्चंस हों |
एक वैज्ञानिक का मत है -"विज्ञान में हम सिद्धांतों की बात करते है और गणित के द्वारा ही उन सिद्धान्तों को सूत्रों में बदला जाता है।साफ़ तौर पर कहें तो विज्ञान ‘क्यों’ का उत्तर देता है और गणित ‘कब’ और ‘कितना’ का उत्तर देती है।"
एक वैज्ञानिक कहते हैं - "गणित विभिन्न नियमों, सूत्रों, सिद्धांतों आदि में संदेह की संभावना नहीं रखती है।"
गैलीलियो कहते हैं , “गणित वह भाषा है जिसमे परमेश्वर ने संपूर्ण जगत या ब्रह्मांड को लिख दिया है।”
एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के नियम, सिद्धांत, सूत्र सभी स्थानों पर एक
समान होते हैं | जिससे उनकी सत्यता की जाँच किसी भी समय तथा स्थान पर की जा
सकती है।गणित ज्ञान का आधार निश्चित होता है | जिससे उस पर विश्वास किया जा
सकता है।
एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेंद्रियाँ हैं।"
कुल मिलाकर प्रकृति या जीवन में जो जो कुछ घटित हो रहा है | गणित के द्वारा उसका आगे से आगे पता लगा लिया जाता है | जिस गणित विज्ञान के द्वारा सूर्य चंद्र आदि ग्रहों से संबंधित घटनाओं के विषय में हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता रहा है|उसी गणितविज्ञान के द्वारा ग्रहों के परिवर्तनों से घटित होने वाली ऋतुओं ऋतुप्रभावों एवं महामारी भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात आदि घटनाओं के विषय में भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता है|गणित के द्वारा ऐसा किया जाना संभव है|
इसीलिए विभिन्न आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी इस गणित विधा को वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए सहयोगी के रूप में स्वीकार किया है | प्राचीन समय की तरह ही अभी भी मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में गणित के द्वारा अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है | यही सोचकर ऐसी घटनाओं के विषय में गणित के आधार पर अनुसंधान पूर्वक मैं जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाता रहा हूँ| वे सही निकलते रहे हैं |आधुनिक विज्ञान की तरह ही ऐसे विषयों में अभी भी गंभीर अनुसंधानों की आवश्यकता है |प्राचीन विज्ञान भी गणित पर ही आधारित है |
मौसम एवं महामारियों को समझिए ग्रहगणितविज्ञान से
समय का स्वभाव और सामर्थ्य !
प्रकृति और जीवन में समय के अनुसार ही घटनाएँ घटित होती हैं | अच्छा समय होता है तो अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं और बुरा समय होता है तो बुरी घटनाएँ घटित होती हैं | समय निरंतर चलता रहता है| उसी क्रम में कभी अच्छा तो कभी बुरा समय आता जाता रहता है |उसी के अनुसार प्रकृति और जीवन में घटनाएँ घटित होती रहती हैं | भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाएँ समय के अनुसार ही घटित होती हैं | समय संचार की प्रक्रिया को समझे बिना ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं है |समय को समझना आवश्यक है |
समय की शक्ति - समय किसी के आधीन नहीं है कि वो जब जैसा चाहे वैसा समय चला ले ! इसीलिए बड़े बड़े पराक्रमी लोग इस पृथ्वी पर हुए किंतु समय के साथ उन्हें भी समाप्त होना पड़ा है | यहाँ तक कि ईश्वर का अवतरित होना या परमधाम गमन भी समय के ही आधीन है |
जिस समय के अनुसार ईश्वर को भी चलना पड़ता है | वह समय स्वयं में सर्वतंत्र स्वतंत्र है | इसीलिए कहा गया है -" कालः साक्षादीश्वरः" अर्थात समय साक्षाद ईश्वर है | वह असीम शक्ति से संपन्न एवं सर्वसक्षम है |
समय अपरिवर्तनीय है - समय के संचार क्रम को बदला नहीं जा सकता है | समय के स्वभाव को बदला नहीं जा सकता | समय अनंत काल से स्वनिर्धारित गति क्रम के अनुसार बढ़ता चला जा रहा है | समय स्वतंत्र तो है किंतु वो इतना भी स्वतंत्र नहीं है कि कभी भी कैसा भी परिवर्तित होकर चलने लगे | वो स्वनिर्धारित नियमों से इतनी दृढ़ता से निबद्ध है कि उसीप्रकार चलेगा जैसा हमेंशा से चलता आ रहा है |
संसार एवं अपने जीवन को समझने के लिए तथा प्रकृति तथा अपने जीवन में घटित होने वाली घटनाओं को समझने के लिए एवं सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रत्येकव्यक्ति को समय की जानकारी हमेंशा रखनी चाहिए |समय कभी किसी के अनुसार चलता है | प्रत्युत समय के अनुसार ही सभी को चलना पड़ता है |
समय के अनुसार चलने के लिए ये पता होना आवश्यक है कि कब कैसा समय चल रहा
है तथा किसके जीवन में कब कैसा समय चल रहा है | ये पता लगे बिना न तो
प्राकृतिक आपदाओं और न ही महामारियों के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान
आदि लगाना संभव हो सकता है |
हमें इस सच्चाई को समझना होगा कि घटनाएँ उपग्रहों रडारों के आधीन न होकर प्रत्युत समय के आधीन होती हैं | इसलिए उनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए समय को ही आधार बनाकर मौसम एवं महामारियों के विषय में अनुसंधान करने होंगे | इस वास्तविकता को जितनी जल्दी समझ लिया जाएगा ,उतनी जल्दी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से संबंधित रहस्य सुलझने लग जाएँगे | इस क्षेत्र में बीते डेढ़ सौ वर्षों में जो नहीं किया जा सका वो दस वर्षों में होने लगेगा | ऐसा मेरा विश्वास है |
यंत्रविज्ञान और समय का अनुसंधान
वर्तमानसमय में इतने बड़े बड़े विकसित यंत्रों को देखकर ऐसा लगना स्वाभाविक
ही है कि प्राचीनकाल में जब ऐसे यंत्र नहीं थे| उससमय विज्ञान का आस्तित्व
ही नहीं होगा| इसलिए प्राचीनकाल के लोगों के जीवन और जीवनशैली के विषय में
कितनी ऊटपटाँग कल्पनाएँ कर ली जाती हैं | उतने गिरे स्तर से सोचने का कारण
उस युग की वैज्ञानिकक्षमताओं के विषय में जानकारी का न होना होता है | उस
युग में यंत्र नहीं थे ये बात नहीं है उस युग में यंत्रों की आवश्यकता ही
नहीं थी | जिन यंत्रों की आवश्यकता होती थी वे बना लिए जाते थे | इस रहस्य
को न समझकर प्राचीन विज्ञान पर आधार विहीन शंकाएँ किया करते हैं | इसे
ऐसे समझिए -
जो लोग ऐसा कहते हैं कि समय को देखने के लिए अब तो घड़ी है | प्राचीन काल में क्या था ?उन्हें पता होना चाहिए कि उस युग में समय पता करने के लिए घड़ियों(उदकयंत्र) का प्रयोग किया जाता था | यद्यपि उस युग में समय देखने के लिए घड़ियों की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी | उस समय प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के समय को गणित के द्वारा पहले ही पता कर लिया जाता था | जिस समय वह घटना घटित होने लगती थी, तब उतना समय हुआ है ऐसा मान लिया जाता था | उस युग में प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का समय घड़ियों में नहीं देखना पड़ता था प्रत्युत घड़ियों के समय का मिलान प्राकृतिक घटनाओं से किया जाता था |विश्वास था कि घड़ियों का समय आगे पीछे हो भी सकता है किंतु प्राकृतिक घटनाएँ अपने समय पर ही घटित होती हैं | इसलिए उन्हें ही प्रमाण माना जाता था |
एक घडी 24 मिनट(60पल) की होती है |उदक यंत्र में समय का मान घड़ियों में पता लगता था | इसीलिए उस यंत्र का नाम घड़ी रखा गया था | उस युग में दिन की शुरुआत सूर्योदय से ही मानी जाती थी | सूर्योदय के बाद जितनी घड़ियाँ बीतती थीं | उतना समय हुआ है ऐसा माना माना जाता था |इसे ही इष्टकाल कहा जाता है | ज्योतिषी लोग कुंडली बनाते समय आज भी उसी इष्टकाल का प्रयोग करते हैं |
वर्तमान समय में जिसे कहा तो घड़ी कहा जाता है ,किंतु
वो समय की जानकारी घंटों के रूप में देती है | इसलिए उसे घंटा कहा जाना
चाहिए किंतु प्राचीनकाल से उसे घड़ी कहने का अभ्यास पड़ा हुआ है इसलिए उस
घंटे को अभी भी घड़ी ही कहा जाता है | प्राचीन भारत में समय देखने के लिए घड़ी पल का ही प्रचलन था | इस प्रकार से घड़ी शब्द और यंत्र की खोज प्राचीनभारत में ही की गई थी |
विशेष बात ये है कि समय प्रत्यक्ष तो दिखाई नहीं पड़ता है| इसीलिए सुदूर आकाश में जहाँ कोई दृश्य दिखाई नहीं पड़ते हैं|वहाँ समय के गतिशील होने का पता भी नहीं लगता है| प्रकृति और जीवन में होने वाले परिवर्तनों को देखकर ही समय के बीतने का अनुभव होता है | घड़ी यंत्रों से से ये पता लगना संभव नहीं है | कब अच्छा और कब बुरा समय चल रहा है|भविष्य में बुरे समय के प्रभाव से घटित होने वाली प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए ये पता करना होगा कि कब कैसा समय चलेगा !इस जानकारी को पाने के लिए प्राचीनकाल में 'कालज्ञानग्रहाधीनं' अर्थात समय का ज्ञान ग्रहों के आधार पर किया जाता था | सूर्य चंद्रादि ग्रहों के संचार के आधार पर न केवल समय के संचार के विषय में पता लगा लिया जाता था ! प्रत्युत अच्छे और बुरे समय के विषय में भी आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया जाता था |
समयसंचार को समझे बिना विज्ञान अधूरा है !
सुख सविधाओं को पाने, भोगने या उनके न मिलने पर दुखी होने जैसा मूर्छित जीवन जीने वाले लोग प्रकृति से दिनोंदिन दूर होते चले जा रहे हैं |उन्हें न तो प्रकृति के संकेत समझ में आते हैं और न ही प्रकृति की पुकार पर ध्यान है | उन्होंने प्रकृति को निर्जीव समझकर उसके स्वभाव एवं सम्मान के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दिया है |
बहुत सारे जीव जंतु पशु पक्षी मनुष्य आदि प्रकृति के स्वभाव को समझते हैं | उससे मिलने वाले संकेतों पर ध्यान देते हैं | उसके अनुसार उन्हें इस बात का अनुमान होने लगता है कि निकट भविष्य में कब कैसी घटनाएँ घटित होने वाली हैं वे उसी के अनुरूप व्यवहार करने लगते हैं | वर्षा ,तूफ़ान ,भूकंप या महामारी जैसी घटनाएँ घटित होने से पहले बहुत जीवों का स्वभाव व्यवहार आदि बदल जाता है | सर्प जैसे कुछ जीव ऐसे भी हैं जो मृत्यु का समय समीप आने पर एकांतवास एवं निराहार जीवन जीते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगते हैं | कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो जाती है |
प्रकृति के संकेत न समझ पाने के कारण ही प्राकृतिक घटनाओं के विषय में बहुत सारी निराधार कल्पनाएँ कर ली जाती हैं | जिनकी वास्तविकता हमेंशा संदिग्ध बनी रहती है | ऐसे रहस्यों को उदघाटिक किया जाना तभी संभव है जब समय गणित और प्रकृतिपरिवर्तनों के आपसी संबंध को समझा जाए और उसके भावी परिवर्तनों के विषय में सही पूर्वानुमान लगाए जाएँ |
प्रकृति और जीवन से संबंधित बहुत सारी घटनाओं को जलवायुपरिवर्तनजनित बता दिया जाता है | ऐसा होने के लिए मनुष्यों की जीवन शैली को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है |ऐसे ही महामारीजनित संक्रमण बढ़ने पर महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को दोषी बता दिया जाता है| ऐसे परिवर्तनों के लिए मनुष्यों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है|यद्यपि ऐसा किया जाना कुछ काल्पनिक कारणों पर आधारित होता है |ऐसे प्रकरणों में यह सोचा जाना चाहिए कि ये परिवर्तन समय जनित भी तो हो सकते हैं | संभव है कि ऐसे परिवर्तन प्रकृति क्रम के अनुसार किसी निश्चित अवधि के बाद स्वाभाविक रूप से होते ही हों |जिन्हें अज्ञानता के कारण हम समझ पाने में असमर्थ हों |जिस प्रकार से प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्य का प्रकाश और ऊष्मा कम होती है मध्यान्ह काल में सबसे अधिक और सायंकाल फिर कम हो जाती है |
कल्पना कीजिए कि किसी के जीवन में यदि प्रातः मध्याह्न और सायंकाल जैसी घटना पहली बार घट रही हो तब तो ऐसा सोचा जाएगा कि प्रातः से मध्यान्ह काल तक सूर्य का प्रकाश और ऊष्मा यदि इतनी बढ़ सकती है तो इसी अनुपात में सायंकाल तक
बढ़कर न जाने कितनी अधिक हो जाएगी | विशेष बात ये है कि जब तक हम इस विषय
से अनजान रहेंगे तभी तक ऐसी अज्ञानजनित कल्पनाएँ की जा सकती हैं | इस रहस्य
को समझते ही इस सच्चाई का पता लग जाता है कि मध्याह्न काल के बाद सूर्य का
प्रकाश और ऊष्मा दोनों स्वयं ही ढलने लगेंगे और सायंकाल में शांत हो जाएँगे | इसीप्रकार से जलवायुपरिवर्तन या महामारी
के स्वरूपपरिवर्तन जैसी घटनाएँ स्वाभाविक एवं प्रकृतिक्रम के अनुसार घटित
हो रही हैं | अपने अज्ञान के कारण हम इन्हें समझ नहीं पा रहे हैं | ये
अज्ञानजनित भ्रम है |
जिस प्रकार से किसी ताले को उसकी अपनी चाभी की जगह किसी दूसरी चाभी से खोलने का प्रयत्न किया जा रहा हो और उस ताले के न खुलने पर ताले में परिवर्तन हो गया है | इस प्रकार से जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन की तरह ताले को ही दोषयुक्त सिद्ध किया जा रहा हो |
वस्तुतः ये कमी न तो उस ताले की है और न ही उस चाभी की | ये कमी उस ताला
खोलने वाले की है जो अज्ञानवश उस ताले को पहचाने बिना ही किसी चाभी से ताला
खोल देना चाह रहा हो | उसकी वास्तविक चाभी को खोज न पा रहा हो | इसके साथ
ही लापरवाही उस शासक की भी है | जिसने किसी अयोग्य आदमी को विशेषज्ञ मानकर
उसे इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंप रखी है |ये काम यदि इतना ही आसान होता तब तो
कोई भी कर लेता ! इसीलिए तो विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है |
विशेष बात है कि परिवर्तन कुछ स्वाभाविक और कुछ आकस्मिक होते हैं| जो परिवर्तन आकस्मिक
होते हैं वो तो अहितकर हो सकते हैं किंतु स्वाभाविक परिवर्तनों को अहितकर
कैसे कहा जा सकता है | आम के छोटे फल का रंग हरा स्वाद खट्टा होता है उसकी
गुठली भी शक्त नहीं होती है | उसी फल के बड़े होने पर उसकी गुठलीशक्त रंग
पीला और स्वाद मधुर हो जाता है | स्वाभाविक परिवर्तन तो प्रतिपल प्रकृति के कण कण में होते देखे जा रहे हैं | ऐसे परिवर्तन तो प्रत्येक
व्यक्ति वस्तु परिस्थिति आदि में होते ही रहते हैं | उन्हें न तो अहितकर
कहा जा सकता है और न ही दोष युक्त माना जा सकता है | उन्हें तो समझकर ही हम
अपनी योग्यता सिद्ध कर सकते हैं यही उस विषय के विद्वान् की विशेषज्ञता
होती है | जिससे संपन्न होने के कारण ही तो उसे उस विषय के वैज्ञानिक होने
जैसा बड़ा सम्मान सुख सविधाएँ आदि प्रदान की जाती हैं |
कुछ आवश्यक एवं अनुत्तरित प्रश्न !
महामारी संक्रमण बढ़ने घटने में मौसम की भूमिका !
कुछ वैज्ञानिक इस बात से भले सहमत नहीं हैं कि महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने में मौसम का प्रभाव पड़ता है,जबकि वैज्ञानिकों के बड़े वर्ग को यह कहते सुना जाता रहा है कि महामारी जनित संक्रमण बढ़ने और घटने का कारण मौसम संबंधी घटनाएँ होती हैं| संभवतः इसीलिए महामारी संबंधी अनुसंधानों को करने की प्रक्रिया में मौसमवैज्ञानिकों को सम्मिलित किया गया है | वैज्ञानिकों के ऐसे दोनों प्रकार के वक्तव्यों से किसी निष्कर्ष पर पहुँचना संभव नहीं है| इससे कोई निष्कर्ष निकाला जाना तभी संभव है जब महामारी के घटने बढ़ने के विषय में मौसम के आधार पर पूर्वानुमान लगाया जाए यदि वो सही निकले तो मान लिया जाए कि महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता है अन्यथा नहीं पड़ता है |
इसी उद्देश्य से कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी
का वेग बढ़ने घटने के जो पूर्वानुमान व्यक्त किए गए वे सही नहीं घटित हुए
! वैसे भी कुछ वैज्ञानिकों के
द्वारा वर्षा होने पर संक्रमण कम होने की बात कही गई थी,किंतु पहली लहर का
पीक 18 सितंबर 2020 को जब आया था उस समय वर्षा ऋतु ही चल रही थी और दूसरी
लहर जब आई उस समय वर्षाऋतु न होने पर भी वर्षा निरंतर होते देखी जा रही थी
| वर्षा के प्रभाव से यदि संक्रमण कम होना होता तब तो उस समय संक्रमण बढ़ना
ही नहीं चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हुआ |ऐसी स्थिति में महामारी संबंधी
संक्रमण बढ़ने घटने पर मौसम संबंधी प्रभाव पड़ता है या नहीं | ये तर्कों एवं
साक्ष्यों के आधार पर कहा जाना अभीतक संभव नहीं हो सका है |
तापमान बढ़ने घटने से घटता बढ़ता है महामारी संक्रमण ?
कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा तापमान बढ़ने घटने का प्रभाव महामारी पर पड़ने की बात कही गई थी| जिसे मानकर कुछ लोगों ने अनावश्यक रूप से गर्म पानी से नहाना तथा गर्म पानी पीना आदि शुरू कर दिया था | वैज्ञानिकों के वक्तव्यों का अभिप्राय यह था कि तापमान बढ़ने पर महामारी संक्रमण कम होगा और तापमान कम होने पर महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ेगा | इस हिसाब से ग्रीष्म(गर्मी)की ऋतु में महामारी संबंधी संक्रमण कम होना चाहिए था और हेमंत एवं शिशिर जैसी सर्दी की ऋतुओं में बढ़ना चाहिए था |ऐसा कुछ हुआ नहीं !पहली लहर का पीक 18 सितंबर 2020 को जब आया था उस समय वर्षा ऋतु होते हुए भी ग्रीष्मऋतु की तरह ही तापमान काफी बढ़ा हुआ था |सामान्य वर्षों में ऐसा होते कम देखा जाता है | उस समय इतनी अधिक गर्मी थी | दूसरी लहर मार्च अप्रैल 2021 में जब आई उस समय बसंत और ग्रीष्मऋतुओं की संधि थी | ये कालखंड तापमान बढ़ने के लिए जाना जाता है | उस समय तापमान बढ़ने के प्रभाव से संक्रमण कम होना होता तो हो जाता,किंतु ऐसा हुआ नहीं प्रत्युत संक्रमण काफी अधिक बढ़ गया था |ऐसी स्थिति में महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने - घटने पर तापमान बढ़ने -घटने का प्रभाव पड़ता है या नहीं | ये तर्कों एवं साक्ष्यों के आधार पर कहा जाना अभीतक संभव नहीं हो सका है |
क्या वायुप्रदूषण बढ़ने से बढ़ जाता है संक्रमण !
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महामारी का विस्तार कितना है ?
कोरोना काल में पृथ्वी पर बिचारण
करने वाले मनुष्य उन्मादित थे | पशुओं में ऐसा पागलपन सवार था कि किसानों
की फसलें बर्बाद किए डाल रहे थे | आकाश में उड़ने वाले पक्षी भी बेचैन थे |
टिड्डियाँ आकाश ढके ले रही थीं |संपूर्ण
कोरोना काल में विभिन्न देशों प्रदेशों में अचानक बहुत बड़ी संख्या में
पक्षियों की मृत्यु होते देखी जा रही थी | बार बार आँधी तूफानों चक्रवातों
बज्रपातों की घटनाएँ घटित होते देखी जा रही थीं |वायु प्रदूषण विशेष बढ़ रहा
था | ऐसे ही संपूर्ण कोरोना काल में समूचे विश्व के समुद्रों नदियों
तालाबों में अचानक बड़ी संख्या में मछलियों की मृत्यु होते देखी जा रही थी
|कोरोना काल में धरती के अंदर रहने वाले चूहे इतने अधिक उन्मादित हो गए थे
कि ब्रिटेन आस्ट्रेलिया जैसे अनेकों देशों प्रदेशों में चूहों के कारण
लोगों का जीना मुश्किल हो रहा था |धरती में बार बार भूकंप आते देखे जा रहे
थे |
ऐसे सभी उपद्रव विशेषकर कोरोना काल में ही अधिक घटित हुए थे | ऐसी स्थिति
में जल थल आकाश पाताल समेत संपूर्ण पृथ्वी में जीव जंतुओं के साथ साथ
मनुष्यकृत उपद्रव घटित होते देखे जा रहे थे | कुछ देश एक दूसरे पर हमला
करते देखे जा रहे थे | कुछ देशों में आतंरिक कलह के कारण हिंसक आंदोलन
होते देखे जा रहे थे | ऐसी समस्त घटनाएँ कोरोना काल में अचानक घटित होने
लगने का कारण कोरोना महामारी से संबंधित था या कुछ और ! महामारी को समझने
के लिए इसे समझा जाना आवश्यक है कि महामारी का प्रभाव केवल पृथ्वी पर ही है, या आकाश और पाताल भी महामारीजनित बिषैलेपन से प्रभावित हुए हैं |महामारी
का विस्तारक्षेत्र अभी तक अघोषित है |
महामारी का प्रसार माध्यम क्या है ?
महामारी संक्रमितों के स्पर्श से फैलती है या इसके फैलने का कारण कुछ और
ही है |बहुत साधन संपन्न लोग ऐसे हैं जिन्होंने संपूर्ण रूप से कोविड
नियमों का पालन किया इसके बाद भी संक्रमित हुए | उन तक कोरोना संक्रमण कैसे
पहुँचा होगा |
कुछ देशों में फूलों फलों आदि खाद्य पदार्थों की जाँच किए जाने पर उनके अंदर महामारी के बिषाणुओं को पाया गया है | कुछ देशों में नदियों नालों तालाबों आदि के जलों को संक्रमित पाया गया है | कुछ देशों में पशुओं को संक्रमित होते देखा गया है |कुछ देशों में कौवों चमगादड़ों आदि को संक्रमित होते देखा गया है |यदि ऐसा है तब तो बहुत आसानी से प्रसार हो सकता है क्योंकि खाए पिए बिना तो कोई रहा नहीं होगा |
ऐसे ही कुछ देशों में पशुओं को भी संक्रमित पाया गया था |जिन पशुओं के दुग्ध का सेवन किया जा रहा था वे पशु यदि संक्रमित रहे होंगे तो उनका दुग्ध भी तो संक्रमित हुआ होगा | दुग्ध और दुग्ध संबंधी चाय आदि पीने खाने की चीजों का उपयोग तो हमेंशा होता ही रहा है |ये भी संक्रमण प्रसार का एक माध्यम हो सकता है |ये संशय अभी तक बना हुआ है कि कोरोना के प्रसार का माध्यम क्या रहा होगा |
कैसा है महामारी का स्वरूप और उसमें परिवर्तन क्या हुआ !
किसी भी रोगी की चिकित्सा करते समय सर्व प्रथम रोग और रोगी की प्रकृति
पहचाननी होती है |उसका स्वरूप समझना होता है |उसी के अनुशार औषधि या चिकित्सा के विषय में निर्णय लिया जाता है |महामारी का वेग इतना अधिक होता है कि रोग और रोगी की प्रकृति पहचानने या स्वरूप समझने के लिए समय ही नहीं होता है |उस समय तो बचाव के लिए तुरंत प्रभावी
प्रयत्न शुरू करने होते हैं |ऐसी स्थिति में जब रोग की प्रकृति और स्वरूप
पता ही नहीं लगाया जा सका तो ये किस आधार पर कहा जा सकता है कि महामारी का
स्वरूप परिवर्तन हो गया !ऐसा कहने के लिए महामारी के दोनों स्वरूपों को
सामने रखना होगा कि पहले स्वरूप वैसा था किंतु अब ऐसा है | ऐसा किया नहीं
जा सका !
महामारी का वेग काफी अधिक होने के कारण उसकी प्रकृति और स्वरूप समझे बिना ही केवल लक्षणों के आधार पर रोगियों को स्वस्थ करने के उद्देश्य से औषधियाँ देनी पड़ती हैं | रोग के विषय में कुछ भी पता न होने के कारण अंदाजे के आधार पर दी गई ऐसी औषधियों से रोगी को रोग मुक्ति मिलेगी या रोग और अधिक बढ़ जाएगा ! इस विषय में विश्वासपूर्वक कुछ भी कहा जाना संभव नहीं होता है|
महामारी के स्वरूपपरिवर्तन का मतलब क्या !
महामारी संबंधी संक्रमण प्राकृतिकरूप से कभी बढ़ने तथा कभी कम होने लगता है| संक्रमण बढ़ते समय बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होने लगते हैं और संक्रमण घटते समय अधिकांश संक्रमितों में सुधार तो प्राकृतिकरूप से होता है ,किंतु जो लोग कोई औषधि ले रहे होते हैं उन्हें लगता है कि उनके शरीरों में उसी औषधि के प्रभाव से सुधार हो रहा है |
ऐसे समय लोग स्वस्थ तो प्राकृतिक रूप से हो रहे होते हैं ,किंतु बहुत लोग स्वस्थ होने के लिए कोई न कोई उपाय भी कर रहे होते हैं | कुछ लोग औषधि ले रहे होते हैं !कुछ अपने अपने धार्मिक विश्वास के अनुशार कोई उपाय कर रहे होते हैं | वे सब अपने स्वस्थ होने का श्रेय अपने द्वारा किए जा रहे उपायों को देते हैं | चिकित्सालयों में भर्ती कुछ लोग चिकित्सा का लाभ ले रहे होते हैं | ऐसे समय उन्हें चिकित्सकों के द्वारा जो औषधियाँ दी जा रही होती हैं |उनके स्वस्थ होने का न केवल न केवल श्रेय उन औषधियों को दिया जाता है ,प्रत्युत उसी औषधि को महामारी की प्रभावी औषधि मानलिया जाता है |ऐसा भ्रम तब तक बना रहता है जब तक महामारी की दूसरी लहर नहीं आती है |
महामारी की दूसरी लहर आने पर जब संक्रमितों की संख्या अचानक तेजी से बढ़ने लगती है | ऐसे रोगियों पर तब उसी औषधि का प्रयोग किया जाता है जिसे पिछली बार महामारी से मुक्ति दिलाने वाली प्रभावी औषधि माना गया था | दूसरी लहर में जब उस औषधि से किसी रोगी को जब कोई लाभ नहीं होता है ,प्रत्युत संक्रमण तेजी से बढ़ता चला जा रहा होता है ,तब यह भ्रम टूट जाता है और सच्चाई सामने आ जाती है कि पहली लहर में प्राकृतिक रूप से स्वस्थ हुए लोगों को इस औषधि के प्रभाव से स्वस्थ हुआ गलती से मान लिया गया था | प्रत्यक्ष रूप से यह गलती स्वीकार किया जाना काफी कठिन होता है | इसलिए इस औषधि के विषय में हमारा अनुमान गलत निकला ऐसा न कहकर यह कह दिया जाता है कि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो जाने के कारण उस प्रभावी औषधि का इन संक्रमितों पर प्रभाव नहीं पड़ रहा है | सच्चाई ये है कि महामारी संक्रमितों पर उस औषधि का प्रभाव न उस समय पड़ा होता है और न ही अबकी बार पड़ा है | प्राकृतिक रोगों में ऐसा भ्रम होते हमेंशा से देखा जाता रहा है |वैसे भी जब महारोग और रोगी की प्रकृति एवं स्वरूप पहचाना ही न जा सका हो तो उसकी चिकित्सा के विषय में विश्वास पूर्वक कुछ कैसे कहा जा सकता है|
ऐसी स्थिति में यह पता लगाया जाना आवश्यक है कि उन औषधियों से पहली बार कोई लाभ हुआ था या नहीं !यदि हुआ था तो दूसरी बार उनसे लाभ न होने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन था या कुछ और !यदि स्वरूप परिवर्तन था तो पहले क्या स्वरूप था और बाद में उसमें किस प्रकार का ऐसा क्या बदलाव आया जिससे उन औषधियों से कोई लाभ नहीं हुआ ?
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कोविडनियमों का पालन न करके भी कुछ लोग संक्रमित नहीं हुए ?
नगरों महानगरों में गरीबों के बच्चे भोजन के लिए लाइनों में लगे रहे !जहाँ जिसने जो जैसा दिया वही खा या पहन लेते रहे ! शहरों में फल और सब्जी वाले लोग संपूर्ण कोरोनाकाल में फल सब्जी बेचते रहे ! संपन्न लोगों के यहाँ नौकरी करने वाले लोग उनके यहाँ न केवल फल सब्जी पहुँचाते रहे प्रत्युत उनके संक्रमित होने पर उन्हें लेकर अस्पताल जाते रहे उनके पहने हुए कपड़े लेकर घर आते रहे | कोरोना संक्रमण से मृत्यु होने पर पुजारी क्रियाकर्म कराने जाते रहे ! उनका स्पर्श किया हुआ किया समान भी लेते रहे !घनी बस्तियों में या बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों में आवासीयसंस्थाओं आश्रमों एवं अनाथाश्रमों आदि में जहाँ कहीं भी सामूहिक रहन सहन खानपान सोना जागना आदि होता रहा ! वहाँ ऐसा भी देखा गया कि उनमें से कुछ लोग संक्रमित हो भी गए तो उन्हीं के साथ रहने सोने जागने खाने पीने वाले लोग तो संक्रमित नहीं हुए |ऐसे ही दिल्ली मुंबई सूरत आदि से पलायित श्रमिक ,दिल्ली में किसानआंदोलन में सम्मिलित लोग, बिहार और बंगाल की चुनावी रैलियाँ एवं हरिद्वार में आयोजित कुंभमेला ऐसे सभी स्थानों पर भारी भीड़ें उमड़ीं वहाँ कोविड नियमों का पालन संभव ही न था |
कोविडनियमों के न पालन करने से कोरोनासंक्रमण बढ़ता है |ऐसा मानने वाले वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसी आशंका भी व्यक्त की गई थी कि ऐसे स्थानों पर कोविड नियमों का पालन न करने के कारण संक्रमितों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाएगी !किंतु ऐसा कुछ न करके भी वे सभी स्वस्थ बने रहे |
कोरोना बाहर से आया या शरीरों के अंदर ही पैदा हुआ !
कोरोनाविषाणुओं को हवा में भी पाया गया था ! यदि छुआछूत को संक्रमण के प्रसार का माध्यम मान लिया जाए तो कोरोना हवा में कैसे पहुँचा उस माध्यम को भी खोजा जाना चाहिए |कोरोना प्राकृतिक वातावरण से साँस के साथ मनुष्यों के अंदर पहुँचा या फिर मनुष्यों से साँस के साथ प्राकृतिक वातावरण में पहुँचा |
एक देश विशेष में की गई रिसर्च के अनुसार कहा गया कि कोरोना वायरस जंगल से इंसानों के बीच कस्तूरी बिलाव, चूहे और रैकून कुत्तों के जरिये पहुँचा। इस पर प्रश्न उठता है कि ऐसे जीवों को यह वायरस कहाँ से मिला और उनसे मनुष्यों में कैसे पहुँचा !
इसके समर्थन में तर्क दिए जाते हैं कि कोरोना एक दूसरे के संपर्कों से फैलता है | यदि ऐसा है तो लॉकडाउन जैसे कोविड नियमों का कठोर पहरा बैठाकर लोगों को एक दूसरे के संपर्क में नहीं आने दिया गया ! उस समय तो संक्रमण रुक जाना चाहिए था किंतु उसके बाद भी लोग महामारी से संक्रमित होते देखे जाते रहे हैं |इसलिए ऐसी शंकाएँ उठनी स्वाभाविक ही हैं कि ऐसा किया जाना विश्ववैज्ञानिक जगत का भ्रम ही तो नहीं था |
एक बात यह भी है कि तंजानियाँ जैसे कुछ देशों में फलों की जाँच किए जाने पर उनके आतंरिक भाग कोरोना संक्रमित पाए गए ! चारों ओर से पूरी तरह बंद पपीता आदि फलों का आतंरिक भाग बाह्य कारणों से कैसे संक्रमित हो सकता है |उसमें तो बाहरी हवा या पानी का प्रवेश संभव ही नहीं था| इसलिए स्पर्श के कारण तो कोरोना उसमें प्रवेश कर ही नहीं सकता था,तो उसके अंदर कोरोना कहाँ से आया होगा !
ऐसे ही एक गर्भस्थ शिशु को कोरोना था जबकि उसके माता पिता को कोरोना कभी हुआ ही नहीं था | 24 मई 2021 को बीएचयू अस्पताल में भर्ती हुई महिला की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई,जबकि उसने जिस बच्ची को जन्म दिया। उसका कोरोना टेस्ट कराया गया तो कोरोना संक्रमित पाई गई ! यदि पति पत्नी समेत परिवार के किसी सदस्य को कोरोना कभी हुआ ही नहीं था,तो उनकी गर्भस्थ बच्ची में कोरोना संक्रमण कैसे पहुँचा !ऐसी ही एक घटना दक्षिण भारत की भी सुनी गई थी |
ऐसी परिस्थिति में जिस प्रकार से बिना किसी प्रत्यक्ष माध्यम के चारों ओर से बंद पपीता आदि फलों के अंदर महामारी संबंधी बिषाणु पहुँच सकते हैं| उसी प्रकार से खाने पीने की वस्तुओं में ,औषधियों एवं औषधीय द्रव्यों से कोरोना पहुँच सकता है |
ऐसे ही जिस प्रकार से गर्भस्थ शिशु के अंदर ऐसे बिषाणु पहुँच सकते हैं |उसी प्रकार से सभी मनुष्यों के अंदर सबका अपना अपना कोरोना पैदा हो सकता है| ऐसे ही सभी प्राणियों के अंदर भी कोरोनाबिषाणु स्वयं ही पैदा हो सकते हैं|ऐसे ही लोगों के मुख की साँस के आवागमन से यदि हवा में बिषाणु पहुँच सकते हैं तो उसी हवा में साँस लेने के कारण हवा से दूसरे मनुष्यों के अंदर भी प्रवेश कर सकते हैं|खाने पीने की वस्तुओं से संक्रमण पहुँच सकता है|औषधियों एवं औषधीय द्रव्यों से कोरोना पहुँच सकता है|
ऐसी स्थिति में महामारी के बिषाणु यदि मनुष्यों के अंदर ही पैदा हुए हों | वे मनुष्य जो कुछ खा पी रहे थे वो भी संक्रमित था | जिससे संक्रमण और बढ़ रहा था | वो जिस हवा में साँस ले रहे थे वो हवा संक्रमित थी | जो उस संक्रमण को बढ़ाने में सहायक हो रही थी |महामारी जनित संक्रमण से संक्रमित होने के कारण संक्रमितों को दी जाने वाली औषधियाँ बनस्पतियाँ आदि भी संक्रमित हो सकती थीं |जिनके सेवन से कोरोना संक्रमितों को रोगमुक्ति दिलाने के लिए प्रयत्न किए जा रहे थे |
ऐसा बिचार करके मैंने ऐसे सभी विषयों में आवश्यक जानकारियाँ जुटाकर
उनके आधार पर महामारी को समझने के लिए प्रयत्न किया है |प्राचीन गणितविज्ञान आधार पर महामारी के विषय में मैं
जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाता रहा हूँ | वे सही
निकलते रहे हैं | प्रत्येक लहर के विषय में मैंने अभी तक जो जो पूर्वानुमान
लगाए हैं वे सही निकलते रहे हैं |वे तारीखों के साथ पीएमओ की मेल पर भेजता रहा हूँ |
सोचने वाली बात है कि यदि फलों के अंदर कोरोना के बिषाणु पाए गए हैं | गर्भिणी एवं उसके पति को कभी कोरोना न होने पर भी उसके गर्भस्थ शिशु को संक्रमित पाया गया है |ऐसे स्थानों पर बिषाणुओं के पहुँचने का कोई प्रत्यक्ष कारण दिखाई न देने पर ये आशंका होनी स्वाभाविक ही है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि कोरोनासंक्रमण शरीरों के अंदर आतंरिक कारणों से ही पैदा होता हो ! संभव है कि कोरोना महामारी प्रकृति में हुए किसी बड़े परिवर्तन का ही अंश हो ! इसलिए मनुष्य शरीरों में कोरोना संक्रमण कहीं बाहर से आ रहा था या कि शरीरों के अंदर ही पैदा हो रहा था | इस रहस्य को सुलझाया जाना बहुत आवश्यक है |कोविड नियमों का पालन करने बाद भी लोगों का कोरोना संक्रमित होना भी यही सिद्ध करता है | ऐसे कोई प्रामाणिक या अनुभवजनित साक्ष्य घोषित नहीं किए जा सकें हैं जिनके आधार पर यह कहा जाना संभव हो कि कोविड नियमों का पालन करने वाले महामारी जैसे संक्रमण से सुरक्षित हो जाते हैं |
कोरोना का प्रसार कैसे होता था !
कोरोना संक्रमितों के स्पर्श से ही कोरोना फैलता होगा यदि इसे सच मान लिया जाए तो उस पहले व्यक्ति में कोरोना कहाँ से आया होगा | जिसने किसी संक्रमित व्यक्ति को छुआ ही नहीं था फिर भी सबसे पहले संक्रमित हुआ था | दूसरी बात विश्व को यह तो पता चल ही गया था कि किसी देश विशेष में ऐसी किसी महामारी ने जन्म ले लिया है | उसका प्रसार प्रारंभ हो गया है |ऐसी स्थिति में चिकित्सा की दृष्टि से अत्यंत उन्नत साधनों से संपन्न अमेरिका जैसे देश उस देश विशेष से दूरी बनाकर अपने को सुरक्षित क्यों नहीं रख सखे | कुछ अन्य देश भी अपने संसाधनों के बलपर अपने को सुरक्षित रख सकते थे, किंतु ऐसा क्यों नहीं किया जा सका !
महामारी पीड़ितों पर नहीं पड़ रहा था औषधियों का प्रभाव !
चिकित्सा में प्रयोग की जाने वाली औषधियाँ कितनी शुद्ध थीं|ऐसी शंका होनी इसलिए स्वाभाविक है | क्योंकि महामारीजनित संक्रमण यदि फलों के अंदर तक पहुँच सकता है तो उन बनस्पतियों ,औषधियों या निर्मित औषधियों के भी आतंरिक भाग में प्रविष्ट होकर उन औषधियों के चिर प्रतिष्ठित गुणों में भी बिकार उत्पन्न कर सकता है | इससे जिन रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए जो ओषधियाँ जानी जाती रही हैं | उन रोगों पर उन औषधियों का अब वैसा प्रभाव पड़ना संभव नहीं होगा जैसा पहले पड़ता रहा है|ऐसी स्थिति में जिन औषधियों का प्रयोग करके जिसप्रकार के रोगों से मुक्ति दिलाई जाती रही है |उन औषधियों में बिकार आ जाने के कारण अब उस प्रकार का प्रभाव उनमें नहीं रहेगा जैसा पहले था |उस प्रकार के रोगियों पर जब उन औषधियों का प्रयोग किया जाएगा तो उनसे लाभ नहीं होगा ! ऐसी स्थिति में औषधियाँ देखने में वैसी ही लगती हैं | इसलिए उन पर तो संशय होता नहीं है,प्रत्युत रोग पर संशय होने लगता है कि यदि यह वही रोग होता तो उन औषधियों से लाभ मिलना चाहिए था !किंतु ऐसा न होने से लगता है कि महारोग का स्वरूप परिवर्तन हो गया है | इसलिए ऐसी औषधियों का गुणपरिवर्तन एवं महामारी के स्वरूप परिवर्तन का संयुक्त अनुसंधान करके यह पता लगाया जाना चाहिए कि महामारी से संक्रमितों पर औषधियों का प्रभाव न पड़ने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन था या औषधियों का गुणपरिवर्तन !
लोग महामारी के कारण रोगी हुए या प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण !
महामारी काल में संक्रमित होने का कारण प्रतिरोधक क्षमता की कमी को बताया जाता रहा है|इसका मतलब ये हुआ कि प्रतिरोधक क्षमता के मजबूत होने से संक्रमित होने का भय कम रह जाता है | इसीलिए जिनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रही वे संक्रमित ही नहीं हुए ! इनसे भी अधिक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग संक्रमितों के बीच रहकर भी संक्रमित नहीं हुए !इन दोनों से अधिक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग संक्रमितों के साथ रहकर भी स्वस्थ बने रहे !उन्हें वैक्सीन आदि औषधियों की भी आवश्यकता नहीं पड़ी |इन तीनों से भी अधिक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों ने तो न कोविड नियमों का पालन किया और न वैक्सीन आदि औषधियों का ही सेवन किया !संक्रमितों के बीच भी निर्भीक घूमते रहे फिर भी वे बिल्कुल संक्रमित नहीं हुए |
इसका मतलब क्या यह हुआ लोगों के संक्रमित होने का कारण महामारी न होकर प्रत्युत प्रतिरोधक क्षमता की कमजोरी थी |क्या ऐसा भी संभव है कि देशवासियों की प्रतिरोधक क्षमता यदि मजबूत होती तो देशवासियों को कोरोना महामारी से कोई भय ही नहीं होता |प्रतिरोधक क्षमता के बलपर क्या देश और समाज को महामारी मुक्त बनाए रखा जा सकता है |इस विषय में अनुसंधान पूर्वक कोई निश्चित उत्तर खोजा जाना चाहिए ! जो भविष्य के लिए हितकर होगा |
प्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ती है ?
बताया जाता है कि स्वास्थ्य के अनुकूल पौष्टिक खाने पीने से,समय से टीके लगवाने से,टॉनिक पीने,बिटामिन सेवन करने से, वातानुकूलित सुविधा पूर्ण शयन कक्षों में सुखद बिछौनों पर सोने आदि से प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ती है| साधन संपन्न लोगों के यहाँ तो ये सारी सुविधाएँ होती ही
हैं | वहाँ तो बच्चों का जन्म भी चिकित्सकों के हाथों में होता है|चिकित्सकों के द्वारा बताए गए टीके,टॉनिक,बिटामिन आदि का समय से सेवन किया जाता है|चिकित्सकों के द्वारा निर्द्धारित किए गए रहन सहन खानपान आदि का अनुपालन होता रहा है|इस
वर्ग ने चिकित्सकों के द्वारा बताए गए कोरोना नियमों का पालन बड़ी कठोरता
से किया है |ऐसा करने में इनकी कोई मजबूरी भी नहीं थी | ऐसे साधन संपन्न
लोग बड़ी बड़ी कोठियों के एकांत कमरों में रहकर अपने पारिवारिक चिकित्सकों से
सलाह लेते बने रहे | आवश्यक सामान कर्मचारी लोग समय से पहुँचाते रहे |इन सबसे उस साधनसंपन्न वर्ग की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जानी चाहिए थी,किंतु
यदि ऐसा हुआ होता तो साधन संपन्न वर्ग संक्रमित नहीं होता !किंतु यह वर्ग
गरीबों की अपेक्षा अधिक संक्रमित हुआ है| इसका कारण खोजा जाना अत्यंत
आवश्यक है |प्रतिरोधक क्षमता
के द्वारा कोरोना महामारी से बचाव हो सकता या नहीं !यदि हो सकता है तो हुआ
क्यों नहीं !दूसरी बात ऊपर कहे गए पौष्टिक खान पान आदि से प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ती है या नहीं |यदि बढ़ती है तो ऐसे लोगों की बढ़ी क्यों नहीं और
यदि नहीं बढ़ती है तो फिर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती कैसे है ?
प्रतिरोधकक्षमता से मृत्यु को टालना संभव है क्या ?
महामारीकाल में कुछ लोग स्वस्थ बने रहे !माना गया कि उनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रही होगी |कुछ लोग संक्रमित होने बाद स्वस्थ हो गए ! माना गया कि इनकी प्रतिरोधक क्षमता पहले कमजोर रही होगी तब संक्रमित हुए बाद में मजबूत हो गई तो स्वस्थ हो गए | विशेष बात यह है कि जो लोग संक्रमित होने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो गए !क्या ऐसी घटनाएँ भी प्रतिरोधक क्षमता की कमी के कारण घटित हुई हैं | प्रतिरोधक क्षमता यदि मजबूत होती तो क्या मृत्यु होने जैसी घटनाएँ टाली जा सकती थीं |दूसरी बात जो लोग संक्रमित हुए बिना ही हँसते खेलते नाचते गाते बात करते उठते बैठते खाते पीते पूजा पाठ करते समय अचानक मृत्यु को प्राप्त हो गए |ऐसे लोगों की मृत्यु तो हुई किंतु वे संक्रमित नहीं हुए | ऐसे लोगों की प्रतिरोधक क्षमता यदि कमजोर थी तो वे संक्रमित क्यों नहीं हुए और यदि प्रतिरोधक क्षमता मजबूत थी इसलिए संक्रमित नहीं हुए ! ऐसी स्थिति में प्रतिरोधक क्षमता यदि मजबूत ही थी तो उनकी मृत्यु होने का कारण क्या था ? अनुसंधान पूर्वक तर्क संगत ढंग से इस रहस्य को उद्घाटित किए जाने की आवश्यकता है |
मृत्यु होने का कारण रोग होता है या दुर्घटनाएँ !
महामारी में कुछ लोग संक्रमित हुए |उनमें से कुछ लोगों की मृत्यु हो गई | ऐसी मौतों के लिए महामारी से संक्रमित होने को जिम्मेदार मान लिया गया ! कुछ रोगियों को चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया ! उन सभी की पूर्ण सतर्कता पूर्वक अच्छी से अच्छी चिकित्सा की गई ,फिर भी उनमें से कुछ लोगों की मृत्यु हो गई जिसके लिए चिकित्सकीय लापरवाही को जिम्मेदार मान लिया गया | किसी स्थान पर कोई दुर्घटना घटित हुई | उसकी चपेट में आने पर भी कुछ लोगों को खरोंच भी नहीं आई !कुछ घायल हुए ! उनमें से कुछ घायलों की मृत्यु हो गई | ऐसी मौतों के लिए उस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है |
इसमें विशेष बात ये है कि संक्रमितों की मृत्यु का कारण यदि महामारी होती तो सभी संक्रमितों की मृत्यु होती !ऐसे ही चिकित्सकीय
लापरवाही से मृत्यु होती तो उन सभी की होती जिनकी एक जैसी चिकित्सा की गई
थी | दुर्घटना से मृत्यु होती उन सभी की होती जो एक ही दुर्घटना के शिकार
हुए थे !ऐसी स्थिति में महामारी के समय हुई इतनी अधिक मौतों का कारण क्या
था ये इसलिए पता लगाया जाना आवश्यक है | महामारी के समय हुई इतनी अधिक
मौतों के लिए क्या वास्तव में महामारी ही जिम्मेदार थी या कुछ और !यदि और
तो वह और क्या था !उस और से बचाव किया जा सकता है क्या यदि हाँ तो कैसे ?
मृत्यु होने का कोई कारण होना आवश्यक है क्या ?
कोई रोग हुए बिना या किसीप्रकार की चोट लगे बिना भी कुछ लोग अचानक मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | महामारी के समय और उसके बाद में भी ऐसा हुआ |रोगी होने के बाद संभव है कि शरीर अधिक दुर्बल होकर प्राणों को धारण करने लायक न रहे |ऐसे ही किसी दुर्घटना का शिकार होने से संभव है कि शरीर प्राणों को धारण करने लायक ही न बचे | ऐसे मृत्यु होने पर कारण प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा होता है | इसलिए उन घटनाओं को मृत्यु का कारण माना जा सकता है,परंतु जो लोग संक्रमित हुए बिना ही हँसते खेलते नाचते गाते बात करते उठते बैठते खाते पीते पूजा पाठ करते समय अचानक मृत्यु को प्राप्त हो गए |उनकी मृत्यु का प्रत्यक्षकारण दिखाई न देने पर उनकी मृत्यु के लिए किसे जिम्मेदार माना जाना चाहिए | ऐसे लोगों की मृत्यु के लिए जो कारण जिम्मेदार हो सकता है | वही कारण रोगी एवं दुर्घटनाग्रस्त लोगों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार क्यों नहीं हो सकता है |जो भी हो किंतु किसी की मृत्यु होने का वास्तविक कारण खोजे बिना इस बात को स्पष्ट किया जाना कैसे संभव है कि किसकी मृत्यु का कारण क्या है | मृत्यु के कारण को अच्छी प्रकार से समझे बिना महामारी के समय हुई मौतों के लिए महामारी को किस आधार पर जिम्मेदार ठहराया जा सकता है |जिस प्रकार से रोग का कारण समझे बिना चिकित्सा की जानी संभव नहीं है,उसी प्रकार से मृत्यु का वास्तविक कारण पता लगाए बिना लोगों के जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए प्रभावी प्रयत्न किया जाना कैसे संभव है |
मृत्यु होने का कारण समय भी हो सकता है क्या ?
भारत का प्राचीन परंपरा विज्ञान किसी की मृत्यु होने का कारण उसका अपना
समय मानता है | उसकी मान्यता यहाँ तक है कि कोई ऐसा रोग या कोई ऐसी
दुर्घटना जिससे मृत्यु होनी होती है | इसकी चपेट में वही व्यक्ति आता है
जिसकी अपनी आयु पूरी हो चुकी होती है | इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि कई
बार अधिक संख्या में लोग अचानक रोगी होने लगते हैं |जिनकी मृत्यु का समय नहीं आया होता है | ऐसे रोगी स्वस्थ हो जाते हैं |
उन रोगियों में कुछ रोगी ऐसे भी होते हैं,जिनकी आयु उसी समय पूरी हुई होती
है |इसलिए उनकी मृत्यु हो जाती है |मृत्यु आयु पूरी होने के कारण होती है
किंतु आयु पूरी होना परंपरा विज्ञान में तो माना जाता है किंतु आयु पूरी
होते प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ता है |इसलिए विज्ञान आयु पूरी होने को मृत्यु का कारण न मान कर उनके रोगी होने या दुर्घटनाग्रस्त होने जैसे प्रत्यक्षकारण को मृत्यु के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है |
कुछ रोगियों को चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया जाता है ! उनमें से कुछ रोगियों की आयु पूरी हो चुकी होती है| इसलिए पूर्ण सतर्कता के साथ अच्छी से अच्छी चिकित्सा तो उन सभी रोगियों की गई होती है ,किंतु स्वस्थ वही होते हैं जिनकी आयु पूरी नहीं हुई होती है | जिनकी आयु पूरी हो गई होती है अच्छी से अच्छी चिकित्सा का लाभ लेकर भी वे स्वस्थ नहीं हो पाते हैं | उनकी मृत्यु हो ही जाती है | आयु पूरी होना प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ने के कारण चिकित्सा में लापरवाही को जिम्मेदार कारण मान लिया जाता है |
ऐसे ही किसी स्थान पर जिस समय कोई दुर्घटना घटित हुई | वहाँ उपस्थित लोगों में से कुछ लोग उस दुर्घटना के शिकार हो गए हों | उन घायलों में से कुछ की मृत्यु का समय भी तभी आ पहुँचा हो !इसलिए उन लोगों की मृत्यु तो समय के प्रभाव से उसी समय हो जाती है | समय का प्रभाव प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ता है | दुर्घटना प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रही होती है | इसलिए ऐसी मौतों का प्रत्यक्ष कारण उस दुर्घटना को मान लिया जाता है |
इसी प्रकार से जिस समय महामारी आई उसी समय कुछ लोगों की मृत्यु का समय आ पहुँचा होगा | जिनकी मृत्यु का समय आया | इसलिए उन लोगों की मृत्यु तो समय प्रभाव से हुई होगी ,किंतु ऐसी मौतों के लिए महामारी को जिम्मेदार मान लिया जाता है !
कुल मिलाकर मृत्यु होने का कारण यदि समय ही होता है तो महामारी के समय इतनी बड़ी संख्या में लोगों की आयु पूरी होने का कारण क्या था | ये अनुसंधानपूर्वक पता लगाया जाना चाहिए |
मृत्यु होने का कारण केवल शरीर ही तो नहीं होता है !
परंपरा विज्ञान की दृष्टि से तो किसी की मृत्यु होने या न होने में शरीर के साथ साथ प्राणों और आत्मा की भी भूमिका होती है| शरीर के साथ प्राण आत्मा आदि का संयोग जब तक रहता है तब तक जीवन रहता है और जैसे ही प्राण आत्मा आदि शरीर से निकल जाते हैं वैसे ही मृत्यु हो जाती है | यह सच है कि शरीर के नष्ट होते ही प्राण आत्मा आदि शरीर को छोड़ देते हैं किंतु शरीर के संपूर्ण रूप से सुरक्षित रहते हुए भी जिनकी मृत्यु अचानक हो जाती है |ऐसे स्वस्थ एवं सुरक्षित शरीरों को भी प्राण आत्मा आदि छोड़कर जाने का कारण क्या होता है | प्राण आत्मा आदि के छोड़कर जाने की उनकी अपनी कोई परिस्थिति होती है ! जिसके कारण ऐसे शरीरों में उन्हें घुटन होने लगती है और ऐसे शरीरों में उनका रह पाना कठिन हो जाता है !उनके शरीरों में कोई बिकार आ जाता है या मन में कोई बिकार आ जाता है ! ऐसी भी संभावना हो सकती है क्या कि किसी अप्रत्यक्ष शक्ति के निर्देश के अनुशार ही उन्हें शरीरों में रहना या छोड़ना होता है |प्राण और आत्मा को किसी चिकित्सा के बलपर क्या किसी शरीर से बाँध कर रखा जाना संभव है यदि नहीं तो ये कैसे कहा जा सकता है ,कि अमुक व्यक्ति को यदि समय से चिकित्सा मिल जाती तो उसकी मृत्यु नहीं होती ! कुलमिलाकर प्राण और आत्मा के संचार को ठीक ठीक समझे बिना ये कैसे कहा जा सकता है कि किसकी मृत्यु होने का कारण क्या है ?इसलिए अनुसंधानों के आधार पर मृत्यु के रहस्य को सुलझाया जाना चाहिए | जिससे यह पता लगाया जा सके कि किसकी मृत्यु महामारी से हुई है या किसकी मृत्यु का समय ही आ गया था |क्या लौकिक प्रतिरोधक क्षमता के बलपर वो अलौकिक क्षमता विकसित की जा सकती है | जिससे मनुष्य के स्वस्थ रहने के साथ साथ प्राण रक्षा भी हो सके |
धर्म कर्म से जुड़े लोगों का भी होता रहा महामारी से बचाव !
किसान मजदूर गरीब ग्रामीण एवं रिक्साचालक, शहरों में फल सब्जी बेचने वाले
आदि मजबूरीबश कोविड नियमों का पालन न करके भी साधन संपन्न वर्ग की अपेक्षा
कम संक्रमित हुए हैं होते देखा गया | इसका कारण ये माना जा सकता है कि वे
परिश्रम अधिक करते हैं | इसलिए उनके शरीर अधिक मजबूत हो चुके हैं |प्रश्न
उठता है कि साधू संतों आदि धर्म कर्म से जुड़े लोगों को भी अपेक्षाकृत कम
संक्रमित होते देखा गया है |माना जा सकता है कि वे अपने अपने आश्रमों में
एकांतबास करते रहे | इसलिए कम संक्रमित हुए होंगे |यजमानों के यहाँ दुर्भाग्यवश किसी की मृत्यु होने पर महामारी काल में भी पंडितों
पुजारियों ने घर घर जाकर श्राद्ध आदि कर्म करवाए हैं ,फिर भी औरों की
अपेक्षा वे बहुत कम संख्या में संक्रमित हुए हैं |ऐसे ही श्मशानों में अंत
क्रिया करवाने वाले पंडा लोग भी कम संक्रमित हुए हैं | ऐसे लोंगों का
संक्रमित होने से बचाव होने का वास्तविक कारण क्या हो सकता है | ये
अनुसंधान पूर्वक पता लगाया जाना चाहिए |
गरीबों ग्रामीणों किसानों और श्रमिकों पर कम रहा महामारी का प्रभाव !
साधन संपन्न वर्ग की अपेक्षा किसानों मजदूरों श्रमिकों में कोरोना संक्रमण का प्रभाव कम पड़ा ! श्रमिकलोग अपने अपने गाँव जाने के लिए जब दिल्ली
मुंबई सूरत आदि शहरों से निकले उस समय कोविड नियमों का पालन संभव न था !
उस समय विशेषज्ञों को यह कहते सुना गया था कि ये श्रमिक जहाँ जहाँ जाएँगे ,
वहाँ वहाँ बहुत तेजी से संक्रमण फैलेगा !किंतु वे सब अपने अपने गाँवों में
सकुशल पहुँचे और सभी स्वस्थ बने रहे !बिहार बंगाल की चुनावी रैलियों के
समय भी ऐसी आशंका जताई गई थी ! दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के समय भी
ऐसा अनुमान किया गया था !हरिद्वार के कुंभ मेले के विषय में भी ऐसा कहा गया
था | महानगरों में फल और सब्जी वालों के विषय में भी यही आशंका जताई जा
रही थी !किंतु इसप्रकार की आशंका अंदाजे अनुमान आदि सही नहीं निकले और वे
लोग स्वस्थ एवं सुरक्षित बने रहे !जबकि इसी आशंका के कारण कोविडनियमों को
अनिवार्य बनाया गया था | बचाव के उद्देश्य से ही लॉकडाउन लगाया गया था |
ऐसी आशंकाएँ कितनी उचित थीं !ये केवल अंदाजा ही था या ऐसे अनुमानों का कोई
वैज्ञानिक आधार भी था और वो क्या था ! उस अनुमान के सच न निकलने का
अनुसंधान जनित कारण क्या था|भविष्य की सुरक्षा के लिए अनुसंधान पूर्वक इसका
सच सामने लाया जाना चाहिए |
प्राकृतिक रोगों की चिकित्सा और भ्रम !
ऐसी परिस्थिति में रोग और रोगी के विषय में वास्तविक जानकारी न होने पर चिकित्सा
से लाभ होगा या फिर नहीं होगा बात केवल इतनी ही नहीं है ,प्रत्युत कई
औषधियों के भयंकर दुष्प्रभाव भी होते देखे जाते हैं | ऐसी स्थिति में
महामारी जनित बड़ी बड़ी समस्याएँ जहाँ एक ओर डरा रही होती हैं | वहीं आधी
अधूरी कच्ची पक्की जानकारी के आधार पर की गई चिकित्सा के दुष्प्रभाव भी कई
बार भुगतने पड़ते हैं | महारोग से पीड़ितों के शरीर दुर्बल वैसे भी होते हैं |
ऐसे दुष्प्रभावों को सह पाना उनके लिए न केवल कठिन होता प्रत्युत कई बार असंभव भी होता है | जिसके बड़े दुष्प्रभाव भी देखने को मिलते हैं |
इसलिए सही तथ्यों के बिना किसी ऐसी औषधि को रोगविशेष की औषधि मान लेना उचित नहीं है जो उस रोग की औषधि ही न हो | कोरोना महामारी के समय में प्लाज्मा थैरेपी इसी का उदाहरण है |जिसे पहले औषधि माना गया बाद में चिकित्सा प्रक्रिया से अलग कर दिया गया | ऐसी स्थिति के पैदा होने का कारण यह है कि जिन लोगों को पहले प्लाज्मा दी गई थी |उसके बाद कुछ लोग स्वस्थ होते देखे गए थे | वे प्लाज्मा लेने के बाद स्वस्थ हुए थे, किंतु प्लाज्मा के प्रभाव से स्वस्थ नहीं हुए थे |वे स्वस्थ प्राकृतिक रूप से ही हुए थे |जिसे भ्रमवश प्लाज्मा का प्रभाव समझकर प्लाज्माप्रयोग को संक्रमितों की चिकित्सा के लिए उचित माना गया था |
मृत्यु का रहस्य क्या है ?
कौन रोगी होगा किसकी होगी मृत्यु समझिए गणितविज्ञान से !
इसमें कोई संशय नहीं है कि विज्ञान ने बहुत उन्नति की है |संशय इसमें भी नहीं है कि इतने उन्नत विज्ञान के होते हुए भी कोरोना महामारी के समय केवल भारत में ही लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं|मृतकों की यह संख्या इतनी अधिक है कि भारत को पडोसी देशों के साथ जो तीन युद्ध लड़ने पड़े हैं | उन तीनों युद्धों में जितने लोगों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हुई थी | उससे कई गुना अधिक लोगों की मृत्यु केवल कोरोनामहामारी में हुई है |ऐसे ही भूकंप बाढ़ आँधी तूफानों में बहुत जनधन की हानि हो जाती है |
चिकित्सा वैज्ञानिकों के प्रयत्नों से बड़ी संख्या में रोगियों को
आरोग्य प्रदान करके सुरक्षित कर लिया जाता है |ऐसे कार्यों में वैज्ञानिक
उपलब्धियाँ बड़ी सहायक सिद्ध होती हैं,किंतु कोरोनामहामारी से जूझते
संक्रमितों को स्वस्थ करने में एवं मृत्यु से सुरक्षित करने में किसी भी
प्रयत्न से जनता को कोई मदद नहीं पहुँचाई जा सकी है |
जिसप्रकार से शत्रुओं तथा शत्रुदेशों के द्वारा किए जाने वाले हमलों से
अपनी सुरक्षा सुनिश्चित के लिए शत्रुकृत उपद्रवों के विषय में
गुप्तसूचनाओं को पहले से पता लगाकर आगे से आगे से आगे तैयारियाँ करके रखनी
पड़ती हैं तब शत्रुओं को पराजित करके उसपर विजय पाना संभव हो पाता है| शत्रुओं से निपटने की जो तैयारियाँ हमेंशा चला
करती हैं|वही आवश्यकता पड़ने पर काम आती हैं| शत्रुपर विजय प्राप्त करने की
योजना बनाते समय सेना यह नहीं देखती है कि कहाँ किससे कितनी मदद लेनी पड़
रही है|वो किसानों मजदूरों चरवाहों से भी शत्रु संबंधित सूचनाएँ एकत्रित
करती है |किसान मजदूर चरवाहे आदि स्वयं सैनिक भले न हों किंतु हुए भी उनकी सहायता से सैनिकों को युद्ध जीतने में मदद मिलती है |
इसीप्रकार से महामारी से सुरक्षा का लक्ष्य लेकर आगे से आगे मजबूत तैयारियाँ की जानी चाहिए | महामारी के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान या प्रभावी चिकित्सकीय सहयोग जितना जहाँ से मिले वहाँ से लिया जाना चाहिए | महामारी पर विजयप्राप्त करने के लक्ष्य की पूर्ति में जितनी भी विधियाँ सहायक हो सकती हैं |उन सभी का सहयोग लेकर लक्ष्य साधन किया जाना चाहिए|आधुनिकविज्ञान,प्राचीनविज्ञान, आयुर्वेद, ज्योतिष आगम आदि जितनी भी विधाएँ सहायक हो सकती हैं| उन सबका सहयोग लेकर महामारी जैसी बड़ी समस्या का समाधान खोजा जाना चाहिए|शत्रुदेशों से सुरक्षा के लिए जैसे शक्तिसंचित की जाती है| कोरोना जैसी महामारियों से सुरक्षा के लिए उससे भी मजबूत तैयारियाँ करके हमेंशा रखकर चलना होगा |
इसके बिना कोई भी वैज्ञानिक उपलब्धि मनुष्यों को निर्भय एवं सुखशांति पूर्ण सुरक्षित जीवन नहीं प्रदान कर सकेगी |महामारियों आदि से मनुष्यों का जीवन सुरक्षित बचेगा तभी वैज्ञानिक उपलब्धियों से प्राप्त सुख सविधाओं का लाभ लिया जा सकेगा |
वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य तो मनुष्यों की कठिनाइयाँ कम करके उन्हें सुखी एवं सुरक्षित रखना है |महामारी से यदि मनुष्यों की ही सुरक्षा नहीं की जा सकी तो समय रहते इस पर बिचार किया जाना चाहिए | अभी तक तो ये सबकुछ किसी प्रकार से सहा गया | भविष्य की महामारियों से जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए ऐसे अनुसंधानों का कोई प्रभावी विकल्प खोजना होगा !यदि ऐसा नहीं किया जा सकता तो ऐसे अनुसंधानों का औचित्य सिद्ध किया जाना भी कठिन होगा |
इतना उन्नत विज्ञान फिर भी नहीं मिल पा रहे समस्याओं के समाधान !
विज्ञान भले सफलता के शिखर पर पहुँच चुका हो किंतु प्राकृतिक आपदाएँ हों या कोरोना जैसी महामारियाँ इन्हें न तो अभी तक समझना संभव हो पाया है और न ही इनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान ही खोजा जा सका है| महामारी के विषय में विशेषज्ञों के द्वारा लगाए जाते रहे अनुमान पूर्वानुमान आदि तो गलत निकलते ही रहे | इसके साथ ही महामारी संक्रमितों की चिकित्सा के लिए प्लाज्माथैरेपी या रेमडेसिविर जैसे प्रयोगों के प्रभाव के विषय में भी लगाए गए अनुमान सही नहीं निकले | ये गंभीर चिंता और चिंतन का विषय इसलिए है कि इतनी बड़ी महामारी से सुरक्षा के लिए हमारी ऐसी चिकित्सकीय तैयारियाँ थीं | महामारी विषयक अनुमानों पूर्वानुमानों के गलत निकलते जाने पर महामारी के स्वरूप परिवर्तन होने की बात कही गई |
इससे ये ध्वनित हुआ कि महामारी के विषय में जो समझकर अनुमान पूर्वानुमान लगाए गए उनके सही न होने का कारण महामारी का स्वरूपपरिवर्तन है |जो वैक्सीनें बनाई जा रही थीं | उनके विषय में भी विभिन्न विशेषज्ञों को कहते सुना गया कि महामारी के जिस स्वरूप से सुरक्षा का लक्ष्य रखकर वैक्सीनें बनाई जा रही हैं | महामारी का स्वरूपपरिवर्तन हो जाने के कारण अब उनकी भी उपयोगिता नहीं रह जाएगी |
ऐसी सभी बातों को यदि महामारी से सुरक्षा की कसौटी पर कसकर देखा जाए तो महामारी के स्वरूपपरिवर्तन के कारण ऐसे अनुसंधानों के विषय में न तो अनुमान पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं और न ही वैक्सीन आदि निर्माण की जा सकती है | ऐसी स्थिति में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि अनुसंधानों के द्वारा महामारी पीड़ितों को ऐसी क्या मदद पहुँचाई जा सकी जो ऐसे अनुसंधानों के बिना संभव न थी |महामारी संबंधी अनुसंधान यदि न किए गए होते तो इस इस प्रकार से इतना इतना नुक्सान और अधिक हो सकता था | अनुसंधानों के कारण उस संभावित नुक्सान से बचाव हो गया |
ऐसी दुविधा प्रकृति और जीवन से संबंधित अनुसंधानों में प्रायः हर जगह
दिखाई दे रही है |भूकंप विज्ञान है,भूकंप वैज्ञानिक हैं,भूकंपों के विषय
में अनुसंधान भी किए जा रहे हैं !उन अनुसंधानों से भूकंप
संबंधी आपदा से बचाव के लिए समाज को ऐसी क्या मदद पहुँचाई जा सकी है जो
भूकंप संबंधी अनुसंधानों के बिना संभव नहीं है | ऐसी बहुत सारी
प्राकृतिक घटनाओं से समाज को जूझना न पड़े उसकी सुरक्षा की जा सके | इसीलिए
तो ऐसे अनुसंधानों को करने की आवश्यकता पड़ी है| मदद मिलनी तो दूर उन
प्राकृतिकघटनाओं और उनके कारणों को खोजना ही अभीतक संभव नहीं हो पाया है|
इसी कारण प्रकृति के बहुत सारे रहस्य अभी तक अनसुलझे पड़े हुए हैं|जो जीवन को प्रभावित तो करते हैं किंतु उन्हें समझने के लिए कोई विज्ञान नहीं है | इसीलिए उन घटनाओं के विषय में कुछ कोरी कल्पनाओं के अतिरिक्त कोई मजबूत जानकारी अभी तक सामने नहीं लाई जा सकी है| ऐसी कल्पनाएँ रहस्यों को और अधिक उलझा देती हैं |
कहा जाता रहा कि जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर थी वे संक्रमित हुए हैं!
प्रश्न उठता है कि प्रतिरोधक क्षमता के कमजोर होने पर तो महामारी के बिना
भी लोग रोगी हो सकते हैं और हमेंशा होते रहते हैं ! उनके रोगी होने का कारण उनके अपने शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना है या कोरोना महामारी का दुष्प्रभाव ! निजी कारणों से अस्वस्थ होने के लिए किसी महामारी को
जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है !
प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने के विषय में कहा जाता है कि स्वास्थ्य के अनुकूल रहन सहन सुपौष्टिक खान पान आदि अपनाकर प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत किया जा सकता है,किंतु व्यवहार में ऐसा देखा जाता है जो साधन संपन्न वर्ग अपनी एवं
अपने बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने के लिए जन्म से लेकर जीवन भर
ऐसे सभी प्रयत्न करता रहता है |वही वर्ग उन साधन विहीन लोगों की तुलना में
अधिक संक्रमित हुआ है !
कहा जाता रहा कि संक्रमण के थोड़े भी लक्षण दिखाई दें तो चिकित्सालयों में शरण लो !वहाँ चिकित्सा का लाभ लेकर स्वस्थ हुआ जा सकता है, किंतु जिन विकसित देशों या विकसित नगरों महानगरों की चिकित्सा व्यवस्था विशेष उन्नत मानी जाती है | उन अमेरिका जैसे देशों या भारत के दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में महामारी का प्रकोप अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक हुआ ! यहाँ तक देखा गया कि गहन चिकित्सा कक्षों में वेंटीलेटरों पर रहते हुए भी उस वर्ग के रोगियों को प्राण छोड़ने पड़ रहे थे | जिसके जन्म से सारे टीके लगे टॉनिक पी,समय समय पर आवश्यक विटामिन लेता रहा ! स्वास्थ्य के अनुकल रहन सहन खानपान आदि अपनाता रहा !फिर भी सबसे अधिक संक्रमण का शिकार हुआ है !
कहा जाता रहा कि कोविड नियमों के पालन न करने से कोविड संक्रमण बढ़ता है किंतु कोरोना काल में दिल्ली मुंबई सूरत आदि से निकले यूपी बिहार के श्रमिक लोग ,दिल्ली में धरने पर बैठे किसान एवं बिहार बंगाल की चुनावी रैलियाँ एवं कुंभमेला समेत समस्त ऐसे स्थल जहाँ बहुत भीड़ होने के कारण कोविड नियमों का पालन नहीं किया जा सका ! विशेषज्ञों के द्वारा ऐसी संभावना भी व्यक्त की गई कि ऐसे स्थानों से संक्रमण बहुत फैलेगा !किंतु उन अवसरों पर उन भीड़ों में सम्मिलित लोगों से संक्रमण तो नहीं बढ़ा !
कहा गया कि वायु प्रदूषण बढ़ने से संक्रमण बढ़ता है किंतु अक्टूबर नवंबर 2020 में वायु प्रदूषण बढ़ने पर भी कोरोना संक्रमण कम होता जा रहा था तथा मार्च अप्रैल 2021 जब वायु प्रदूषणमुक्त आकाश होने के कारण पंजाब एवं बिहार से हिमालय दिखाई पड़ने लगा था | इतना प्रदूषणमुक्त वातावरण होने पर भी भारत में सबसे बड़ी कोरोना की लहर इसी समय आई थी |
सर्दी जैसी ऋतुओं के समय तापमान घट जाने के कारण कोरोनाजनित संक्रमण बढ़ने का अनुमान व्यक्त किया जाता रहा है और गर्मी में तापमान बढ़ जाने के कारण कोरोनाजनित संक्रमण कम होने की बातें कही जाती रही हैं | व्यवहार में देखा जाए तो सर्दी में तो केवल तीसरी लहर ही आई थी बाक़ी तीनों लहरें गर्मी के समय ही आईं थीं जब तापमान बढ़ा हुआ था |
ऐसे ही चिकित्सा के लिए जिन प्लाज्मा थैरेपी एवं रेमडेसिविर इंजेक्शनों
को पहले तो संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए प्रचारित किया जाता रहा किंतु
उनका वैसा प्रभाव नहीं दिखाई पड़ा जैसा कि अनुमान लगाया गया था |
कुलमिलाकर जहाँ एक ओर गर्व करने लायक इतना उन्नत विज्ञान वहीं दूसरी ओर इतनी बड़ी बड़ी हिंसक महामारियों समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं से अभी भी मनुष्य इतना अनजान है कि न जाने कब कितनी बड़ी प्राकृतिक आपदा या महामारी आ जाए जिससे अचानक समाज को जूझना पड़ जाए | महामारी अपने आपसे गई है या किसी मनुष्यकृत प्रयास से गई है या कोई लहर अभी और आने वाली है | इस विषय में किसी को कुछ पता ही नहीं है |इतने उन्नतविज्ञान के द्वारा उपलब्ध कराई गई सुख सुविधा की चीजों को भोगने के लिए जीवन की सुरक्षा तो सर्वप्रथम आवश्यक है | जीवन ही सुरक्षित न बचे तो सुख सुविधा के इतने सारे संसाधन मनुष्यों के किस का महामारी पैदा होने का कारण और पूर्वानुमान !
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