mahamari

 
                             समयविज्ञान महामारी मौसम और ग्रहगणितविज्ञान !

                                                                दो शब्द 

       भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा बाढ़ जैसी हिंसक प्राकृतिक आपदाएँ दिनोंदिन बढ़ते देखी जा रही हैं | उनसे प्रतिवर्ष जनधन का बहुत नुक्सान होता ही  है | कोरोना जैसे महामारी आई इससे वर्षों तक जनधन का बहुत बड़ा नुक्सान होता रहा है | इसके अतिरिक्त मनुष्यकृत उपद्रवों आंदोलनों दंगों आदि में बहुत जनधन का नुक्सान होते देखा जाता है | छोटी छोटी बातों पर बड़े बड़े तनाव तैयार करके लोग हत्या आत्महत्या करने पर उतारू हो जाते हैं | वर्तमानसमय में देखा जा रहा है कि  लोग उठते बैठते हँसते खेलते नाचते कूदते बोलते बताते या बैठे बैठे मृत्यु को प्राप्त होते देखे जा रहे हैं | ऐसी और भी बहुत सारी घटनाएँ घटित होते देखी जा रही हैं | 

     समय निरंतर बदलता रहता है | कभी अच्छा और कभी बुरा समय होता है |अच्छे समय में तो सब कुछ  अच्छा अच्छा होता है ,जबकि बुरा समय प्रारंभ होते ही प्राकृतिक वातावरण बिषैला होने लगता है | बुरे समय के प्रभाव से प्रकृति स्वयं ही हिंसक होने लगती है |सूखा बाढ़  बादल फटना,बज्रपात चक्रवात भूकंप  प्राकृतिक घटनाएँ  घटित होने लगती हैं |रोग महारोग आदि  फैलने लग जाते हैं  |

     बुरे समय के कारण प्राकृतिक वातावरण बिगड़कर जीवन जीने के योग्य नहीं रह जाता है |ऐसे वातावरण में साँस लेकर स्वस्थ रहना कठिन होता है |वातावरण के बिषैलेपन का प्रभाव खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ने से उनमें उन पोषक तत्वों की कमी हो जाती है | जो शरीरों को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक होते हैं | ऐसे बिषैले वातावरण में पैदा हुए फल फूल अन्न दाल शाक सब्जियों को खा पीकर पेट भले भर जाता हो किंतु ऐसे भोजन से शरीरों को वो पौष्टिकता नहीं मिल पाती है | इसलिए ऐसा भोजन शरीरों को स्वस्थ रखने लायक नहीं रह जाता है | इसीलिए उसे खा पीकर प्राणियों के स्वास्थ्य को सुरक्षित बचाए रखना कठिन हो जाता है |

     इसीप्रकार के बिषैले वातावरण का प्रभाव औषधियों औषधीयद्रव्यों एवं बनस्पतियों पर पड़ने के कारण उनके  उन स्वाभाविक गुणों में कमी आ जाती है | जो शरीरों को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं तथा रोग मुक्ति दिलाने में सक्षम माने जाते हैं |  

    ऐसी स्थिति में एक ओर शरीर रोगी होते हैं | दूसरे बिषैले वातावरण में साँस लेने से रोग बढ़ते हैं|  तीसरे खान पान बिगड़ते रहने से रोग बढ़ने की प्रतिपल संभावना बनी रहती है |औषधियों का प्रभाव न पड़ने से रोग मुक्ति दिलाने का कोई साधन नहीं होता है | जिससे रोग दिनोंदिन बढ़ता हुआ महारोग बनते चला जाता है | जिससे मुक्ति दिलाने का समय बदलने के अतिरिक्त कोई दूसरा उपाय नहीं होता है | 

                                                            भूमिका   

     प्राचीन विज्ञान वेत्ताओं का मानना रहा है कि महामारी एवं मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाना  केवल गणितविज्ञान के द्वारा संभव है | प्राचीन काल में उपग्रहों रडारों सुपर कंप्यूटरों की सुविधा नहीं थी, फिर भी मौसम या महामारी से संबंधित पूर्वानुमान बिल्कुल सही निकलते थे| इसका कारण उस युग में मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विज्ञान को गणितविज्ञान के द्वारा ही खोजा जाता था | ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे अनुमान पूर्वानुमान लगाकर उनसे बचाव के लिए उपाय भी करने प्रारंभ  कर दिए जाते थे |

     जिसप्रकार से कुछ हाथी  किसी गाँव में घुस कर अक्सर उपद्रव मचाने लगते हों उनसे बचाव के लिए गाँव के चारों ओर कैमरे लगा दिए जाएँ हाथी जैसे ही गाँव की ओर आते कैमरे में दिखें,तो उन्हें खदेड़ दिया जाए ! इससे हाथियों के द्वारा किए जाने वाले संभावित  नुक्सान से बचाव भले हो जाएगा किंतु यह हाथीविज्ञान नहीं है | 
    इसीप्रकार से उपग्रहों  रडारों आदि की मदद से बादलों या आँधी तूफानों को दूर से ही देख लिया जाता है| इससे सतर्कतापूर्वक बाढ़ या आँधीतूफानों से बचाव करने में मदद अवश्य मिल सकती है किंतु ये मौसम विज्ञान नहीं है |ये दूरस्थ घटनाओं वस्तुओं आदि को देख लेने का साधन मात्र है |
    जिस प्रकार से अँधेरे में पड़े किसी गेंद को यदि टार्च की मदद से खोज लिया जाए तो इस जुगाड़ को गेंदविज्ञान नहीं कहा जा सकता है| उसीप्रकार से सुदूर आकाश में स्थित बादलों या आँधी तूफानों को यदि उपग्रहों रडारों की मदद से देखकर उनकी गति और दिशा के हिसाब से उनके दूसरे स्थान पर पहुँचने एवं घटनाओं के घटित होने के विषय में अंदाजा लगा लिया जाए तो इस जुगाड़ को मौसमविज्ञान नहीं कहा जा सकता है | इसमें विज्ञान की भूमिका क्या है ?जिस प्रकार से टार्च अँधेरे में रखी वस्तुएँ देखने में मदद कारक है उसी प्रकार से उपग्रह रडार आदि दूर की वस्तुएँ घटनाएँ आदि देखने में मदद करते हैं | 
    ऐसे ही रोगों के परीक्षण के लिए जो यंत्र बने हैं वो चिकित्साकार्य  में सहायक होते हैं किंतु वे चिकित्साविज्ञान नहीं हैं |ऐसे ही भूकंप आने के कारण तथा उसकी गति गहराई आदि का अंदाजा लगाने  के लिए जो यंत्र मॉडल आदि बनाए गए हैं | वे भूकंपविज्ञान नहीं हैं |इस प्रक्रिया से न तो भूकंप के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और न ही भूकंप आने पर इस प्रक्रिया से समाज का बचाव ही किया जा सकता है | इस प्रक्रिया में भूकंपविज्ञान जैसा कुछ भी तो नहीं है |  
     ऐसे ही महामारी का पूर्वानुमान लगाने के लिए जो मॉडल आदि बनाए जाते हैं | उनमें न तो विज्ञान जैसा कुछ  होता है और न ही उसके आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं | इसीलिए ऐसे मॉडलों के आधार पर जितने भी पूर्वानुमान लगाए जाते रहे वे सब के सब गलत निकलते रहे हैं | 
    ऐसे ही जिस प्रक्रिया के द्वारा रोगों से मुक्ति दिलाने के कार्य में सफलता हासिल की जा सके |वही तो  चिकित्सा विज्ञान है | चिकित्सा करने के नाम पर जितना जो कुछ भी किया जाए वो सब कुछ चिकित्सा विज्ञान नहीं है | ईंधन लाने या आटा दाल चावल लाने आदि भोजन  बनाने संबंधी सहायक कार्यों को रसोईविज्ञान नहीं माना  जा सकता है |यंत्रों के द्वारा भूकंपों की तीव्रता गहराई आदि नापने को भूकंप विज्ञान नहीं  माना जा सकता है | यंत्रों की सहायता से बादलों या आँधी तूफानों को दूर से देखकर उनके विषय में कोई अंदाजा लगाने को मौसम विज्ञान नहीं कहा जा सकता है |यंत्रों की मदद से वायुप्रदूषण के स्तर को नाप लेने या उसके बढ़ने के लिए कुछ काल्पनिक कारणों को जिम्मेदार मान लेने की प्रक्रिया को पर्यावरण विज्ञान नहीं कहा जा सकता है |
    कोरोना महामारी के विषय में ही लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि के अतिरिक्त किसी और के द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि सही नहीं निकले | ऐसे ही महारोग मुक्ति की चिकित्सा के विषय में प्रमाण पूर्वक परिणामप्रद चिकित्सा उपलब्ध नहीं करवाई जा सकी | महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए बनाए गए टीकों के प्रभाव को संशय मुक्त नहीं किया जा सका !कोविड  से बचाव के लिए बनाए गए नियमों का प्रभाव प्रायोगिक रूप से प्रमाणित नहीं किया जा सका !चिकित्सा संबंधी कुछ प्रयत्नों को एक बार प्रभावी बताने के बाद प्रायोगिक रूप से प्रमाणित न सिद्ध हो पाने पर कदम पीछे खींचने पड़े | ऐसे संपूर्ण क्रिया कलापों वक्तव्यों दावों को महमारीविज्ञान कैसे कहा जा सकता है | इसकी उपयोगिता  को जनहित में कैसे सिद्ध किया जा सकता है |
    कुल मिलाकर प्राकृतिक घटनाओं या महामारियों को समझने के लिए जो भी वैकल्पिक व्यवस्थाएँ हैं| उन्हें तब तक उनका विज्ञान नहीं माना जाना चाहिए ,जब तक उस शोध से संबंधित मनुष्यों की चिंताओं को कम करके उन्हें सुरक्षित रखने एवं सुख सुविधा पहुँचाने संबंधी अनुभवों में सहायक रूप से प्रमाणित न किए जा सकें | 
 
                                  प्राचीनविज्ञान  महामारी और प्राकृतिक आपदाएँ
 
     वर्तमान समय में प्रकृति से लेकर जीवन तक सभी जगह तनाव बढ़ता अनुभव किया जा रहा है|भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा बाढ़ बज्रपात रोग महारोग (महामारी ) जैसे हिंसक प्राकृतिक संकट   दिनोंदिन बढ़ते देखे जा रहे हैं| तरह तरह की दुर्घटनाएँ महारोग आदि पैदा होते देखे जा रहे हैं|लोगों में उन्माद असहनशीलता हिंसकभावना दिनों दिन बढ़ती जा रही है|अपराध,खाद्य सामग्री में मिलावट एवं धोखाधड़ी जैसी घटनाएँ अधिक मात्रा में घटित होते देखी जा रही हैं |वैवाहिक संबंध टूट रहे हैं|परिवार बिखर रहे हैं | समाज में वैमनस्यता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है| अच्छे अच्छे पढ़े लिखे ज्ञानी गुणवान अनुभवी लोगों पर समाज को दिशा देने की नैतिक जिम्मेदारी होती है | उन्हीं लोगों को वर्त्तमान समय में असहनशील होते देखा जा रहा है |हत्या आत्महत्या जैसी घटनाएँ उनके द्वारा भी घटित होती जा रही हैं |व्यापारियों विद्यार्थियों अफसरों से भी धर्म न्याय दयालुता कर्तव्यपालन आदि सदाचरण दूर होते देखे जा रहे हैं | पशुओं पक्षियों चूहों चमगादड़ों टिड्डियों में उन्माद की भावना बढ़ती दिख रही है |प्राकृतिक हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जा रही हैं|लोग हों या देश हिंसक भावना से भवित हैं | भूकंपों की आवृत्तियाँ बार बार होती दिख रही हैं |

      ऐसी घटनाओं का कोरोना महामारी से कोई अंतर्संबंध तो नहीं है | यह पता लगाने के लिए ऐसी घटनाओं के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना  आवश्यक है,क्योंकि ऐसी आपदाओं के शुरू हो जाने या घटित होने के बाद सुरक्षा के लिए कुछ भी किया जाना तुरंत संभव नहीं होता है|इनका वेग ही इतना अधिक होता है|इसके लिए तो पहले से ही तैयारी करके रखी जानी चाहिए |जो नहीं हो पा रहा है|यदि ऐसा होता तो प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों  में उतना नुक्सान न हुआ होता जितना हो रहा है|

    विज्ञान के बिना किसी भी रहस्य को सुलझाया जाना संभव नहीं हैं !इसी प्रकार से भविष्य को समझने के लिए भी विज्ञान की आवश्यकता होती है |विज्ञान के बिना भविष्य में झाँकना संभव नहीं है | इसके बिना भविष्य में कौन घटना कब घटित होगी |इसके विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है|पूर्वानुमान लगाए बिना प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों से समाज को सुरक्षित बचाया जाना संभव नहीं है !यही कारण है कि तीनों युद्धों में मिलाकर भारत को जितना नुक्सान नहीं उठाना पड़ा था |उससे कई गुना अधिक नुक्सान केवल कोरोना महामारी के समय में ही उठाना पड़ा है |

     ऐसी परिस्थिति में सामरिक तैयारियाँ करके केवल शत्रु देशों से तो अपने देशवासियों की सुरक्षा की जा सकती है,किंतु कोरोना जैसी महामारी से मारे गए लाखों लोगों की सुरक्षा के लिए अभी भी तैयारियाँ क्या हैं|महामारी को समझने में या उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में वर्तमान समय के उन्नतविज्ञान से ऐसी क्या मदद मिल सकी है|जो वैज्ञानिक अनुसंधानों के बिना संभव न थी|कोरोना महामारी के कारण  जितनी जनधन हानि हुई है ! वैज्ञानिक अनुसंधान न हुए होते तो क्या इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था |इस विषय में गंभीर चिंतन किए जाने की आवश्यकता है|

    इसमें विशेष बिचारणीय यह है कि कोरोनामहामारी के समय जनधन का जितना नुक्सान हुआ है|उसका कारण  महामारी की भयंकरता थी या महामारी से सुरक्षा के लिए कोई तैयारियाँ नहीं थीं|ऐसे ही कोरोना महामारी के कारण इतने लोगों की मृत्यु हुई है या प्रतिरोधक क्षमता की कमी के कारण ! ऐसे प्रश्नों का तर्क संगत उत्तर खोजा जाना चाहिए|महामारी पैदा कैसे हुई !इसका विस्तार कितना था ! प्रसारमाध्यम क्या था ! अंतर्गम्यता कितनी थी|इसपर मौसम का प्रभाव पड़ता था या नहीं ! वायुप्रदूषण का प्रभाव कैसा पड़ता था|तापमान बढ़ने या घटने का क्या प्रभाव पड़ता था या नहीं | ऐसे आवश्यक प्रश्नों के उत्तर खोजे बिना महामारी को समझना संभव नहीं है और महामारी को अच्छी प्रकार से समझे बिना उससे समाज को सुरक्षित रखने या संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए किसी भी प्रभावी औषधि  का निर्माण किया जाना संभव नहीं है |

      मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की जो विधि भारत के प्राचीन ग्रंथों में बताई गई है |मैंने उसी के अनुसार आज के तीस वर्ष पूर्व जो अनुसंधान प्रारंभ किया था | उससे जो अनुभव प्राप्त हुए उनके द्वारा मौसम संबंधी घटनाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के स्वभाव को न केवल समझा जा सकता है| प्रत्युत उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है|जो प्रायः सही निकलता है | ये जनहित में बहुत उपयोगी है | इसकी मदद लेकर प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों में हो रही जनधन हानि को कम करके मनुष्यों की सुरक्षा की जा सकती है |
 
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                                             चिकित्सा के लिए चुनौती !
        कोई साधन संपन्न व्यक्ति किसी साधारण रोग से पीड़ित होने पर रोग से मुक्ति पाने के उद्देश्य से किसी बड़े  चिकित्सालय में एडमिट हो जाता है|रोग से मुक्ति दिलाने के लिए चिकित्सक अच्छी से अच्छी चिकित्सा करते हैं, फिर भी  उस रोगी पर चिकित्सा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है | उसका रोग बढ़ते बढ़ते वो रोगी वेंटिलेटर पर पहुँच जाता है |दूसरी ओर चिकित्सा चलती जा रही होती है | वेंटिलेटर पर पड़े ऐसे रोगी की मृत्यु हो जाती है | इस मृत्यु का कारण क्या होता है | उस पर चिकित्सा का प्रभाव न पड़ने का क्या कारण क्या हो सकता है |
      रोगमुक्त हो चुके रोगियों को देखकर तो कहा जा सकता है कि ये चिकित्सा के प्रभाव से स्वस्थ हुए हैं !किंतु स्वस्थ होना यदि चिकित्सा से संभव होता तो जिनकी मृत्यु हुई है | चिकित्सा का प्रभाव उन पर भी वैसा ही पड़ना चाहिए था और उन्हें भी रोगमुक्ति मिलनी चाहिए थी | यदि उसमें सुधार न भी होता तो चिकित्सा का प्रभाव  इतना तो पड़ना ही चाहिए था कि रोगी अस्वस्थ ही बना रहता उसकी मृत्यु ही नहीं हुई होती ! तो सोच लिया जाता कि चिकित्सा के प्रभाव से रोगी की स्थिति बिगड़ने नहीं दी गई |
      चिकित्सालय लाए जाने के बाद  चिकित्सा का लाभ लेते हुए भी रोगी की स्थिति यदि बिगड़ती चली गई |उसके बाद रोगी की मृत्यु हो गई,तो उसकी मृत्यु होने का कारण यदि चिकित्सा क दुष्प्रभाव न भी माना जाए तो भी ये तो कहा ही जा सकता है कि उस रोगी पर चिकित्सा का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है | ऐसी स्थिति में स्वस्थ हुए रोगियों के विषय में ये कहा जाना कितना तर्कसंगत  है,कि जो रोगी स्वस्थ हुए हैं वे चिकित्सा के प्रभाव से स्वस्थ हुए हैं |  मैंने अनुभव किया कि एक  जैसी चिकित्सा के दो प्रकार के परिणाम निकलने का कारण क्या है | उसे खोजे जाने की आवश्यकता है |   
     चिकित्सालयों में अनेकों प्रकार के रोगी लाए जाते हैं|उनमें से कुछ के स्वस्थ होने,कुछ के अस्वस्थ रहने एवं कुछ की मृत्यु होने का क्या कारण होता है |चिकित्सालयों में शवगृह बनाए जाने से ये सिद्ध होता है कि कुछ रोगी मृत्यु को प्राप्त होंगे ही !ऐसा क्यों और इसका कारण क्या होता है ?चिकित्सा के द्वारा क्या उन्हीं रोगियों को स्वस्थ किया जा सकता है ,जो रोगी स्वस्थ होने लायक होते हैं | यदि ऐसा है तो ऐसे रोगी तो जहाँ रहेंगे वहीँ स्वस्थ हो जाएँगे उन्हें चिकित्सालय लाए जाने की आवश्यकता ही क्या है ?जंगल में कुछ पशु आपस में लड़कर घायल होते हैं | उनके बड़े बड़े घाव बिना किसी चिकित्सा के भी कुछ समय में भर जाते हैं |दूसरी ओर  अच्छी से अच्छी चिकित्सा के प्रभाव से भी घावों को तुरंत तो नहीं ठीक किया जा सकता है |चिकित्सा के साथ साथ समय उनमें भी लगता है | दोनों प्रकार के रोगियों के स्वस्थ होने में यदि समय लगना ही है,तो चिकित्सा के प्रभाव का आकलन कैसे किया जा सकता है | 
                                    कोरोना महामारी पैदा होने का कारण क्या था !

      प्रकृति से लेकर जीवन तक बहुत सारी घटनाएँ इसप्रकार की घटित होते देखी जाती हैं |जिनके घटित होने में मनुष्यों का कोई योगदान नहीं होता है,फिर भी वे घटनाएँ घटित हो रही होती हैं |किसी को अचानक कोई रोग हो जाता है,चोट लग जाती है ,अच्छा प्रयास करने पर भी कोई काम बिगड़ जाता है|नुक्सान हो जाता है ,नौकरी छूट जाती है |अकारण मानसिक तनाव बढ़ने लगता है,पति पत्नी के आपसी संबंध बिगड़ने लगते हैं |मानसिक तनाव बढ़ने लगता है |ऐसी अनेकों प्रकार की दुर्घटनाएँ घटित होने लगती हैं |जिसके लिए उसव्यक्ति ने या किसी अन्य ने ऐसा कोई प्रयत्न  भी नहीं किया होता है | ऐसी दुर्घटना घटित हो,ऐसा वो चाहता भी नहीं है | उस दुर्घटना से बचाव के लिए वो प्रयत्न  भी करता है,फिर भी उससे बचाव न होकर दुर्घटना घटित हो जाती है| 
   इसलिए कोरोना महामारी संबंधी चिंतन करते समय कई बार ऐसा लगता है कि महामारी पैदा होने के लिए मनुष्यकृत  कारण ही जिम्मेदार हों ऐसा आवश्यक तो नहीं है |
    ऐसे ही प्राकृतिक दृष्टि से देखा जाए तो समस्त ग्रह नियमबद्ध रूप से आकाश में भ्रमण कर रहे हैं! सूर्य चंद्र अपने अपने समय से उगते और अस्त होते रहते हैं|ग्रहण पड़ते हैं |सभी ऋतुएँ अपने अपने समय से आती जाती रहती हैं|भूकंप आँधी तूफान वर्षा बज्रपात आदि ऐसी असंख्य घटनाएँ प्रतिपल अपने आपसे घटित हो रही होती हैं | ये प्रकृति हरी भरी कैसे है| ये पर्वत समुद्र आदि क्यों बने |नदियाँ किसकी प्रेरणा से बह रही हैं|कई बार देखा जाता है बिना किसी मनुष्यकृत कारण के आकाश में अचानक घनघोर बादल छा जाते हैं वर्षा होने लगती है |कुछ समय बाद बादल छँट जाते हैं और धूप निकल आती है | ऐसी सभी घटनाएँ अपने आपसे से घटित होती हैं या इनके घटित होने का भी कोई प्रेरक कारण है |इसे अनुसंधापूर्वक खोजना होगा |  
     प्रकृति या जीवन में घटित होने वाली ऐसी घटनाएँ जो अपने आपसे घटित होती दिखाई देती हैं | संभव है कि ऐसी घटनाएँ किसी अलौकिक शक्ति से प्रेरित हों | यद्यपि वो प्रक्रिया प्रत्यक्षरूप में किसी को दिखाई तो नहीं पड़ती है किंतु इससे मुझे यह प्रेरणा अवश्य मिली कि जिस प्रकार से ये सभी घटनाएँ घटित होती हैं,महामारियाँ भी उसीप्रकार से पैदा हो सकती हैं| संभव है कि  उसी प्रक्रिया से कोरोना जैसी महामारियाँ भी पैदा और समाप्त होती हों,या महामारी संबंधी संक्रमण घटने बढ़ने का कारण भी वही हो |  
     कोरोना महामारी क्यों आई! इससे जो लोग संक्रमित हुए और जो नहीं हुए उनके संक्रमित होने और न होने के लिए जिम्मेदार कारण क्या थे! इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु होने के कारण क्या थे !ऐसे सभी प्रश्नों का उत्तर यही है कि  ऐसी सभी  घटनाओं के घटित होने का कोई न कोई प्राकृतिक  कारण होता है | जिसे खोजकर ही ऐसे विषयों को समझा जा सकता है |
    ऐसे ही वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि घटनाओं के घटित होने के लिए भी कोई न कोई कारण अवश्य जिम्मेदार होता है |जिसे खोजकर ही ऐसी घटनाओं के पैदा होने का कारण समझना होगा | उसके बाद ऐसी  घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव  हो पाएगा | 
     उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों की मदद लेकर मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में जो अंदाजा लगाया जाता है | वो कार्य-कारण पद्धति से प्रमाणित न होने के कारण विश्वास पूर्वक ये नहीं कहा जा सकता है कि ये ऐसा ही होगा |
        कुलमिलाकर कोरोनामहामारी पैदा होने  के लिए कोई न कोई कारण अवश्य जिम्मेदार रहा होगा | उस वास्तविक कारण को खोजे बिना महामारी को समझना संभव नहीं है| इसीलिए महामारी से संबंधित बहुत प्रश्न अभी तक अनुत्तरित हैं | 
     महामारी मनुष्यकृत है या प्राकृतिक !यदि मनुष्यकृत है तो उसके लिए कोई न कोई कारण जिम्मेदार होगा | उस कारण की प्रवृत्ति  को समझे बिना महामारी को समझा जाना संभव नहीं है | महामारी को समझने के लिए उसका कारण खोजा जाना बहुत आवश्यक है,क्योंकि  कारण को समझे बिना न तो महामारी को समझा जा सकता है और न ही उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाया जा सकता है| इन सबके बिना न तो महामारी से सुरक्षा के लिए प्रभावी प्रयत्न किए जा सकते हैं और न ही संक्रमितों की चिकित्सा की जा सकती है | 
     महामारी यदि प्राकृतिक है तो भी उसको सही सही समझे बिना मानवता की मदद नहीं की जा सकती है|महामारी को समझने के लिए उसका कारण खोजा जाना बहुत आवश्यक है| कारण को खोजे बिना महामारी का  विस्तार कितना है!प्रसार माध्यम क्या है! इसमें अंतर्गम्यता कितनी है|इसपर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं ! इसपर वायुप्रदूषण का प्रभाव पड़ता है या नहीं ! महामारी संबंधी संक्रमण वायु में विद्यमान था या नहीं | महामारीजनित संक्रमण छुआछूत से फैलता था या नहीं ! महामारी से सुरक्षा के लिए इन आवश्यक बातों का पता लगाया जाना बहुत आवश्यक है |    
      महामारी से जो लोग संक्रमित हुए उसका कारण महामारी की संक्रामकता थी या लोगों में प्रतिरोधक क्षमता की कमी !इसका कारण यदि महामारी की संक्रामकता को माना जाए तो महामारी का एक समान प्रभाव सभी लोगों पर पड़ता है | इसलिए सभी को संक्रमित होना चाहिए |  
      कोरोनाकाल में जो लोग संक्रमित हुए उसका कारण कोरोना महामारी थी या प्रतिरोधक क्षमता की कमी ! यदि लोगों के संक्रमित  होने का कारण प्रतिरोधकक्षमता की कमी है तो इतनी बड़ी संख्या में लोगों की प्रतिरोधक क्षमता इसी समय कम होने का कारण क्या था ?उसे खोजा  जाना चाहिए | महामारी से सुरक्षा संबंधी चिकित्सा के लिए इन आवश्यक बातों का पता लगाया जाना बहुत आवश्यक है |
     ऐसे ही महामारी के समय में जिनकी मृत्यु हुई उसका कारण महामारी थी या लोगों की आयु ही पूरी हो चुकी थी !ऐसा संशय इसलिए भी होना स्वाभाविक है,क्योंकि महामारी के महीनों वर्षों बाद तक हँसते खेलते नाचते कूदते बातें करते सोते सोते बहुत लोगों की मृत्यु होती देखी जा रही है |इस समय महामारी तो नहीं है और न  ही मृत्यु को प्राप्त होने वाले लोग संक्रमित ही हैं | उनकी मृत्यु होने का कारण खोजे बिना कोरोनाकाल में मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों की  मृत्यु होने के लिए महामारी को केवल इस आधार पर जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि उनकी मृत्यु उस समय हुई थी जब कोरोना महामारी  का समय चल रहा था | इसलिए कोरोना महामारी के समय लोगों की मृत्यु का कारण क्या है ! उस कारण को खोजा जाना चाहिए |
     महामारी पैदा होने का  कारण न समझ पाने के कारण महामारी को न तो समझा जा सका और न ही उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाए जा सके | जो अनुमान या पूर्वानुमान लगाए भी जाते रहे वे न तो विश्वसनीय थे और न ही सच निकले |
     किसी रोग के पैदा होने या घटने बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण समझे बिना चिकित्सा के द्वारा उस रोग से मुक्ति दिलाना संभव नहीं है | रोग का कारण ही पता न हो तो उससे मुक्ति दिलाने संबंधी औषधि या टीके का निर्माण किस आधार पर किया जा सकता है |
     कुल मिलाकर  कोरोना महामारी के पैदा होने का निश्चित कारण क्या है ये अभी तक खोजा नहीं जा सका है |इसके बिना महामारी के विषय में न तो अनुमान पूर्वानुमान लगाना संभव है और न ही किसी औषधि टीके आदि का निर्माण किया जाना ही संभव है | 
                      कार्य-कारण संबंधों के आधार पर खोजा जाए महामारी का रहस्य !


 
     मैने कार्य कारण संबंध के आधार पर महामारी को समझने के लिए प्रयत्न किया है | मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार कारण खोजना होता है | कार्य - कारण संबंध प्रायः प्रत्येक काल में प्राच्य - पाश्चात्य विचारकों के चिंतन का विषय रहा है।महर्षि कपिल हों, महात्मा बुद्ध हों अथवा अरस्तु हों, सभी ने कार्य - कारण संबंध पर विचार अवश्य  किया है |  प्रकृति या जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटना परिस्थिति मनस्थिति आदि के लिए जिम्मेदार कोई न कोई कारण अवश्य होता है | कोई भी घटना या कार्य बिना कारण के नहीं घटित होता है| इसीलिए प्रकृति और जीवन से प्रत्येक घटना को समझने के लिए उसका कारण खोजना मनुष्यों के स्वभाव में सम्मिलित है |किसी रोगी के रोगी होने का कारण चिकित्सक जानना चाहता है | समाज में बढ़ते अपराधों,तनावों, हिंसक आंदोलनों आदि का कारण हर कोई जानना चाहता है | जिन घटनाओं के कारण पता लगे उनका पूर्वानुमान भी पता लग जाता है और यदि संभव हुआ तो उन समस्याओं के समाधान भी निकल जाते हैं |
  
     जिस प्रकार से कड़ाही में पक रहे दूध में उबाल आने पर दूध आग में गिरने लगता है | उससे आग का वेग धीमा हो जाने के कारण उबाल कुछ समय के लिए रुक जाता है | उसके बाद आग फिर तेज होती है | उससे  दूध को फिर उबलते देखा जाता है |उसी प्रकार से कोरोना महामारी  संक्रमण बार बार बढ़ने लग रहा था | इसके बाद स्वतः शांत होने लगता था|उसके कुछ समय बाद फिर संक्रमण बढ़ने लगता था फिर शांत होता था |उसके बाद भी संक्रमण बढ़ते देखा जाता था |
      दूध में उबाल आना पूरी तरह से कब बंद होगा ! उबलते हुए दूध को देखकर यह पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है |इसके लिए दूध के उबलने का कारण उस आग को खोजना होगा जो कड़ाही के नीचे जल रही है | वो आग कब तक जलेगी इसका अनुमान आग में पड़े हुए ईंधन के आधार पर लगाना होगा | इसका मतलब हुआ कि जितनी देर आग जलती रहेगी उतनी देर उबाल आता रहेगा ,तथा आग कब तक जलती रहेगी जबतक आग में ईंधन बना रहेगा| ऐसी स्थिति में दूध में उबाल कबतक आते रहेंगे ! इसके लिए आग में जल रहे ईंधन के आधार पर अनुमान लगाना होगा | 
      इसी प्रकार से महामारी संबंधी संक्रमण पूरी तरह से बंद कब होगा !यह पता लगाने के लिए  महामारी पैदा होने या घटने बढ़ने के लिए जिम्मेदार कारण को खोजकर उसके आधार पर पूर्वानुमान लगाना होता है | 
    महामारी पैदा होने की घटना के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार माना जाता  रहा है | उन उन के विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाकर उनके आधार पर महामारी के घटने बढ़ने और समाप्त होने के विषय में पूर्वानुमान लगाना होगा |
      महामारी पैदा होने का कारण मौसमसंबंधी घटनाओं को बताया जाता रहा है |यदि वास्तव में महामारी पैदा होने या उससे संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने के लिए मौसमसंबंधी घटनाएँ ही वास्तव में जिम्मेदार होती हैं,तो मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में सही सटीक पूर्वानुमान लगाकर उसके आधार पर महामारी के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने होंगे |मौसमसंबंधी पूर्वानुमान जितने प्रतिशत सही लगाए जा सकेंगे महामारी संबंधी पूर्वानुमान भी उतने प्रतिशत ही सही निकल पाएँगे |
   ऐसे ही महामारी पैदा होने के लिए तापमान कम होने को जिम्मेदार बताया जाता रहा है| यदि ये अनुमान सच है कि महामारी पैदा होने एवं संक्रमण बढ़ने के लिए तापमान का कम होना सबसे बड़ा कारण है | ऐसी स्थिति में महामारी बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए तापमान कम कब होगा ! इसके विषय में पहले पूर्वानुमान लगाना  होगा | उसके आधार पर ही महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
     इसीप्रकार से महामारी पैदा होने एवं संक्रमण बढ़ने के लिए वायु प्रदूषण बढ़ने  को जिम्मेदार बताया जाता रहा है |इसे यदि सच माना जाए तो महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए वायुप्रदूषण बढ़ने के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना होगा |उसी के आधार पर वायुप्रदूषण जब जब बढ़ेगा तब तब महामारी संबंधी संक्रमण भी बढ़ेगा | ऐसा पूर्वानुमान लगाना होगा !
     विशेष बात यह है कि मौसमसंबंधी घटनाएँ हों या तापमान कम होने संबंधी घटनाएँ या फिर वायुप्रदूषण बढ़ने संबंधी घटनाएँ इनके विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाए बिना महामारी के विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है | 
  मौसमविज्ञान और महामारीविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों की भी यही स्थिति है,जो घटना किसी भी रूप में घटित होते दिखाई दे रही होती है |केवल उसी के  विषय में कुछ अंदाजा लगा लिया जाता है ,किंतु  उस घटना के बाद क्या होगा |इस विषय में किसी को कुछ पता नहीं होता है |  
     कुलमिलाकर दूध के उबलने का कारण आग है| यह पता लग जाने के कारण आग के आधार पर दूध के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि दूध में उबाल कब तक आएगा |
     इसीप्रकार से कोरोनामहामारी पैदा होने का कारण यदि वर्षा संबंधी वातावरण में बदलाव हैं अपने प्राकृतिक कारण से पैदा हुई थी | प्राकृतिक कारण से ही उसका संक्रमण बढ़ते घटते देखा जा रहा था |  महामारी समाप्त भी अपने प्राकृतिक कारण से ही हुई है |
    विशेष बात यह है कि दूध के उबलने का कारण  कड़ाही के नीचे जलने वाली आग है | यह पता लग जाने से आग के आधार पर दूध के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि इसमें उबाल कब तक आएगा !किंतु महामारी पैदा होने का वास्तविक कारण क्या है ये आज तक पता नहीं लगाया जा सका !जो कारण गिनाए जाते रहे | उनके विषय में  ऐसी स्थिति में महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगा  पाना कैसे संभव हो सकता है |  
                                                          घटनाएँ और उनके कारण     
       
     जिस किसी भी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना होता है| सबसे पहले उसके घटित होने के निश्चित कारण खोजे जाने बहुत आवश्यक होते हैं |कारणों को जाने बिना लगाए गए पूर्वानुमान विश्वसनीय नहीं होते हैं | वे गलत निकलते इसीलिए देखे जाते हैं क्योंकि पूर्वानुमान लगाने वालों को उनके निश्चित कारण पता नहीं होते | जिन कारणों को  सच मानकर वे पूर्वानुमान लगाते हैं |यदि  वे वास्तविक कारण नहीं होते तो उनके आधार पर लगाए गए पूर्वानुमान गलत  निकल जाते हैं |
     मौसमसंबंधी घटनाओं के निर्माण होने का कारण क्या है |स्वच्छ आकाश में अचानक बादल क्यों आ जाते हैं !कभी बरसते हैं | कभी कम बरसते हैं तो कभी अधिक बरसते हैं | कभी बिना बरसे ही चले जाते हैं |इसके बाद आकाश फिर साफ हो जाता है| ऐसा होने का कारण क्या है ? ऐसे ही शांत स्वच्छ आकाशीय वातावरण में कभी अचानक आँधी तूफ़ान आ जाते हैं| उनका वेग कभी कम तो कभी अधिक तो कभी बहुत अधिक हो जाता है| ऐसा होने के लिए जिम्मेदार आधारभूत कारण क्या होता है | उस कारण की खोज किए बिना मौसम को समझना कैसे संभव है और इसके बिना पूर्वानुमान लगाया जाना बिल्कुल संभव नहीं है |
      विशेष बात यह है कि मौसमसंबंधी घटनाओं के घटित होने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार माना जाता है | वे कितने सही हैं | इसका परीक्षण करने के लिए उन कारणों के आधार पर मौसम संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाए जाएँ | यदि ये सही निकल  जाते हैं | इसका मतलब है कि मौसम संबंधी घटनाओं के लिए वही कारण जिम्मेदार हैं |ऐसे कारणों की खोज किए बिना मौसम को न तो समझना संभव है और न ही उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना ही संभव है | उस मुख्य कारण की खोज किए बिना यह भी विश्वास पूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि जलवायुपरिवर्तन जैसी कोई घटना घटित होती भी है या नहीं !उसका प्रभाव मौसम पर कोई प्रभाव पड़ता भी है या नहीं |      
      नहरें मनुष्यों द्वारा उचित ढलान देकर बनाई जाती हैं | इसीलिए नहरों में न तो गड्ढे होते हैं और न ही नदियों की तरह कहीं कहीं तालाब होते हैं ,न ही अधिक ढलान होता है | नहरों में पानी मनुष्यों के द्वारा ही अपनी इच्छा के अनुसार उचित मात्रा में छोड़ा जाता है| उस पानी की मात्रा प्रवाह ढलान ठहराव आदि सब कुछ मनुष्यों के द्वारा नियंत्रित हो रहा होता है | इसलिए उस पानी में बहते जा  रहे लकड़ी के टुकड़ों ,फूलों फलों पत्तियों आदि के विषय में ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये यदि इतने घंटों में इतनी दूर जा सकते हैं ,तो इतनी दूरी और तय करने के लिए इन्हें कितने घंटे और चाहिए | उस हिसाब से अंदाजा इसलिए लगाया जा सकता है ,क्योंकि यहाँ सब कुछ मनुष्य निर्मित है |
        नदियाँ प्राकृतिक होती हैं  इसलिए उन पर ये बात संपूर्ण रूप से लागू नहीं होती है | नदियों कर रुख समझने के लिए उनसे संबंधित प्राकृतिक परिस्थितियों को समझना होता है | नदी की धारा ढलान पर तेज बहती है | कहीं कहीं चौड़ाई बढ़ने के कारण तालाब जैसा बन जाता है | वहाँ गति धीमी हो जाती है ! कई जगह नदियाँ मुड़ती हुई जाती हैं | बाढ़ के समय कहीं कहीं भँवरें पड़ती हैं | वहाँ पानी तेजी से घूमता है | ये सब कुछ नदी के बहाव में देखने को मिलता है |विशेष बात ये है कि पानी के बहाव में जो ये विभिन्न प्रकार की घटनाएँ घटित होती दिखाई पड़ रही होती हैं | इसका प्रभाव नदी के बहाव पर पड़ने से उसकी गति घटती बढ़ती रहती है | इसलिए नदी के पानी में बहते जा  रहे लकड़ी के टुकड़ों ,फूलों फलों पत्तियों आदि के बहाव के विषय में नहरों की तरह इतना सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है |
       नहरों का बहाव मनुष्यों द्वारा नियंत्रित होता है,जबकि नदियों का बहाव स्वतंत्र होता है |नदी को जहाँ जब जैसी प्राकृतिक परिस्थितियाँ मिलती हैं |नदी की धारा को वहाँ वैसा ही बहना पड़ता है! इसलिए नदी की धारा में बहते जा रहे लकड़ी के टुकड़े,  फल फूल पत्तियों आदि के विषय में यदि जानना हो कि ये बहकर कब कहाँ पहुँचेंगे,तो इसका अनुमान पूर्वानुमान आदि नदी की धारा के अनुसार ही लगाया जा सकेगा ,क्योंकि लकड़ी के टुकड़े,फल फूल पत्तियों आदि का बहाव नदी की धारा के आधीन है | नदी की धारा अपनी प्राकृतिक परिस्थितियों के आधीन है | इसलिए उन परिस्थितियों के आधार पर नदी के बहाव के विषय में अंदाजा लगाना पड़ेगा और नदी के बहाव के आधार पर नदी में बहते लकड़ी के टुकड़ों ,फलों  फूलों पत्तियों आदि के विषय में यह पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा | ये कितनी गति से बहकर कैसे कैसे कब कहाँ पहुँच पाएँगे | 
     इसीप्रकार से उपग्रहों रडारों के द्वारा बादलों आँधीतूफानों को दूर से देख लिया जाता है| वे जिस दिशा में जितनी गति जा रहे होते हैं| उसी के आधार पर  यह अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं| इसमें विशेष ध्यान देने की बात ये है कि ये अंदाजा तब सही निकलेगा जब उसी गति से उसी दिशा में आगे बढ़ते रहें ,किंतु अक्सर ऐसा होता नहीं है | हवाओं का रुख कभी भी बदल सकता है|उसके बदलते ही मौसम भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं |
     मौसमसंबंधी वर्षा बादलों एवं आँधी तूफानों से संबंधित पूर्वानुमानों के लिए ऐसी घटनाओं को पहले से उपग्रहों रडारों से देख लिया जाता है वे जिस दिशा में जितनी गति से जा रहे होते हैं उसी के अनुशार आगे के विषय में अनुमान लगा लिया जाता है | ऐसे पूर्वानुमान वर्षा बादलों एवं आँधी तूफानों को देखकर लगाए जाते हैं |वे स्वयं स्वतंत्र नहीं होते वे जिन  वायु समूहों के साथ उड़ रहे होते हैं | उन वायु समूहों के अचानक मुड़ जाने से वर्षा बादलों एवं आँधी तूफानों को भी उसी ओर मुड़ना होगा | 
      ऐसी घटनाओं से संबंधित मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ जिन हवाओं का रुख बदल जाने के कारण गलत निकल जाती हैं | उन हवाओं के विषय में अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाना होगा कि हवाओं के चलने का कारण क्या होता है | हवाओं की गति घटने बढ़ने का कारण क्या होता है | हवाओं की दिशा बदलने का कारण क्या होता है|हवाओं के विषय में यह सब कुछ पता लगा लिए जाने के बाद ही उसके आधार पर वर्षा बादलों एवं आँधी तूफानों से संबंधित सही पूर्वानुमानों को लगाना संभव हो पाएगा | हवाओं की गति कब कितनी हो सकती है और हवाओं के बहने की दिशा कब कौन सी बदल सकती है| हवाओं का रुख भविष्य में कब कैसा बदलेगा | इसका पूर्वानुमान लगाए बिना मौसम के विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है | ऐसे ही मौसमसंबंधी दीर्घावधि (लंबीअवधि ) के पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसमसंबंधी घटनाओं के निर्माण का कारण खोजना होगा !
     ऐसे ही महामारी के पैदा और समाप्त होने में या संक्रमण के घटने बढ़ने के वास्तविक कारणों को खोजकर उनके आधार पर लगाए गए महामारी संबंधी पूर्वानुमान सही निकल सकते हैं | इसके अतिरिक्त ऐसी आशा नहीं करनी चाहिए | 
                                      
                            प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने का कारण कौन ?
    भूकंप आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात जैसी सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ आती जाती रहती हैं|महामारियाँ हमेंशा से  आती जाती रहती हैं |  ये प्रकृति का नियम है | इसे वैज्ञानिक अनुसंधानों या प्रयत्नों के द्वारा न तो बदला जा सकता है और न ही रोका जा सकता है |
    भूकंप आएँगे तो धरती हिलेगी ही| इसके बिना भूकंप नहीं आ सकते | आँधी तूफ़ान आएगा तो हवाएँ तेज चलेंगी ही ! धीरे धीरे हवाएँ चलके तूफ़ान नहीं आता है|अधिक वर्षात हुए बिना बाढ़ नहीं आती| इसलिए धरती हिलना,तेज हवाओं का चलना एवं अधिक वर्षा होना इन्हें रोका नहीं जा सकता है | महामारियाँ आएँगी बड़ी संख्या में लोग संक्रमित भी होंगे और मृत्यु को भी प्राप्त होंगे | ये तो प्राकृतिक घटनाएँ हैं जो घटेंगी ही | ये उनके अपने अपने स्वरूप हैं | उनसे ये अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वे ऐसा न करें |         
     धरती हिलने पर भी बहुत भवन सुरक्षित बने रहते हैं |भूकंप आने के लिए धरती को हिलना ही होगा ! धरती हिलेगी तो कमजोर भवन आदि गिरेंगे ही !भवनों में रहने या उसके आस पास रहने या आने जाने वाले लोग उन भवनों के मलबे में दबेंगे भी ,किंतु दबाने से उनकी मृत्यु हो ही जाएगी ये निश्चित इसलिए नहीं है क्योंकि दबे हुए सभी लोग मृत्यु को प्राप्त नहीं होते हैं | ऐसे बहुत लोग तो कई कई दिनों बाद तक जीवित निकलते हैं | 
     इसका मतलब भूकंप आने का कारण जो है वो मकानों के गिरने का कारण नहीं है और मकानों के गिरने का जो कारण है वो लोगों की मृत्यु का कारण नहीं है और लोगों की मृत्यु का जो कारण है वो मकानों के मलबे में दबा रहना नहीं है | प्रत्येक घटना कार्य कारण भाव से अलग अलग घटित हो रही होती है| ऐसा ही आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात आदि में होता है |
     तूफ़ान आने के कारण अचानक तेज हवाएँ  चलने लगती हैं|जिन हवाओं को अपने तेज भागने की पड़ी होती है उन्हें किसी का सामान उड़ाने या किसी व्यक्ति को नुक्सान पहुँचाने का समय कहाँ होता है | इसी प्रकार से बाढ़ आने पर जो जनधन का नुक्सान होता है वो बाढ़ का लक्ष्य नहीं होता है | बाढ़ तो अपने कारण से आती है !नदियों के जल का वेग बहुत अधिक हो जाता है| जनधन का नुक्सान हो जाए तो इसके लिए बाढ़ क्या करे !बज्रपात जहाँ होता है वहाँ उपस्थित लोगों को उसका नुक्सान उठाना पड़ता है |महामारी जहाँ आती है वहाँ का प्राकृतिक वातावरण इतना अधिक बिगड़ जाता है |लोग अस्वस्थ होने तथा मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं |  
       ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाएँ बिल्कुल उसी प्रकार की होती हैं जैसे बस चलती है |  रास्ते में खड़े कुछ यात्री उस में बैठ जाते हैं | कुछ दूर जाने के बाद रास्ते में जाम लगा होता है |तो उस गाड़ी का चालक अपनी गाड़ी को किसी अन्य रास्ते में मोड़ लेता है | वहाँ उधर से कोई बस तेज गति से आ रही होती है उससे टक्कर हो जाने के कारण उन यात्रियों की मृत्यु हो जाती है | ऐसी स्थिति में उन यात्रियों की मृत्यु का कारण उस बस को मना जाए जिस पर वे बैठे हैं या उस बस को माना जाए जिसने टक्कर मार दी या उस बस चालक को माना जाए जिसने जाम देखकर अपनी गाड़ी को अन्य रास्ते में मोड़ लिया |
      इस घटना को प्रत्यक्ष दृष्टि से देखा जाए तो उन दोनों बस चालकों में से किसी एक या फिर दोनों बस चालकों की गलती से यह बस दुर्घटना घटित हुई है |जिसमें उन यात्रियों की मृत्यु हुई है |
    इस घटना पर यदि गंभीरता से बिचार किया जाए तो उन दोनों बस चालकों का उद्देश्य न तो बसों को लड़ाना था और न ही उन यात्रियों को मारना ही था और न ही उन्हें इससे कोई लाभ था | बस में बैठे यात्रियों का उद्देश्य ही मृत्यु को प्राप्त करना था |रास्ते में जो जाम लगा था वो भी उस उद्देश्य से नहीं लगाया गया था कि यहाँ जाम लगने से यह बस दूसरी और मुड़कर जाए और किसी दूसरी बस से टकराए जिससे यात्रियों की मृत्यु हो जाए |विपरीत दिशा से आ रही बस का भी यह उद्देश्य नहीं था|वह अपनी योजना के अनुसार अपने रास्ते पर चली आ रही थी |
    कुलमिलाकर इस दुर्घटना में  हर कोई अपनी अपनी इच्छा परिस्थिति उद्देश्य तथा योजना के अनुसार आचरण कर रहा था|जिसमें यात्रियों की मृत्यु हो गई| जिसप्रकार से सभी घटनाएँ अपने आप से घटित हुई हैं|उन यात्रियों की मृत्यु भी उसीप्रकार की एक घटना है |जो अपने आपसे घटित हुई है | उसमें किसी बस या चालक को या उन यात्रियों को कारण मानना उचित नहीं होगा | ऐसी घटनाएँ किसी अन्य शक्ति  से प्रेरित होकर घटित होती हैं | उस शक्ति को समझे बिना इन घटनाओं को समझा जाना संभव नहीं है |
      उस अप्रत्यक्ष शक्ति को रोका जाना किसी व्यक्ति के वश की बात होती तो चिकित्सालयों में शवगृह नहीं बनाने पड़ते ! कोरोना महामारी के समय इतने लोगों के बहुमूल्य जीवन नहीं खोने पड़ते |किसी रोगी के कोमा में जाने के बाद उसे होश में लाने के लिए किसी अप्रत्यक्ष शक्ति के सामने नहीं गिड़गिड़ाना पड़ता |
     संसार में ऐसी घटनाएँ अनेकों बार घटित होते देखी जाती हैं | जिनके घटित होने का कारण किसी को पता नहीं होता है|उन्हें देखने में ऐसा लगता है कि वे किसी मनुष्य के द्वारा की गई हैं!जबकि मनुष्य बार बार सफाई दे रहा होता है|मैंने ऐसा सोचा भी नहीं था जो उसके मुख से निकल गया !जो गलती उससे हो गई वो उसे करना नहीं चाहता था| किसी ने किसी को गोली मारी लेकिन वो उसे न लगकर किसी दूसरे को लग गई | जिसे लगी वो उसका अपना था| इसी श्रेणी में गैर इरादतन किए गए अपराध आते हैं |कई बार लोग अपनेअपने चोट मारने,अपने को नुक्सान पहुँचाने या आत्महत्या करने जैसे जघन्य कृत्य कर डालते हैं ,जबकि वे अपने एक सुई चुभोने में भी डरा करते थे |  

      कुलमिलाकर जिसने जो सोचा ही नहीं वो उसके मुख से निकल गया,जिस कार्य को  जो करना ही नहीं चाह  रहा था | वो कार्य उससे हो गया | इन सबसे इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि केवल प्राकृतिक घटनाएँ ही नहीं प्रत्युत मनुष्य जीवन में भी बहुत ऐसी घटनाओं को घटित होते देखा जाता है | जिनमें वो मनुष्य मानसिक रूप से सम्मिलित ही नहीं होता है,जबकि वे घटनाएँ उसी के द्वारा करवाई जा रही होती हैं |  
 
                                     उस अप्रत्यक्ष 'शक्ति' को कैसे समझा जाए !                
   
    भूकंप आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं का कारण यदि जलवायु परिवर्तन,अलनीनो लानिना जैसी  घटनाओं को मान भी लिया जाए,तो ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या हो सकता है ! जिन  घटनाओं के  अपने घटित होने का कारण स्पष्ट नहीं है | वे किसी दूसरी घटना के घटित होने का कारण कैसे बन सकती हैं |वैसे भी वे घटनाएँ  निर्जीव होती हैं | इसलिए उनमें कर्ता होने की पात्रता ही नहीं होती है |कोई पक्षी अपने आपसे उड़ सकता है किंतु कपड़ा पत्ता आदि निर्जीव होता है | उसे उड़ने के लिए किसी दूसरे की मदद की आवश्यकता होती है|जिसकी मदद से उसे उड़ना है उसी के आधार पर उस कपड़े या पत्ते के उड़ने के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
      ऐसे ही किसी नदी की धारा में बहते जा रहे लकड़ी के टुकड़ों को देखकर उनके आधार पर यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि ये कब कहाँ पहुँचेंगे| इसके लिए  सबसे पहले उनके बहने का कारण उस जलधारा को समझना पड़ेगा जिसमें वे बहते चले जा रहे हैं| उस जलधारा के आधार पर लकड़ी के टुकड़ों के बहने के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए जाएँगे वे सही निकलेंगे |यही पूर्वानुमान यदि जलधारा के आधार पर न लगाकर लकड़ी के टुकड़ों के आधार पर लगाए जाते तो उनके सही निकलने की संभावना उसी प्रकार से बहुत कम होती जैसे बादलों को देखकर वर्षा के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान विशेष विश्वसनीय नहीं होते हैं | उसका कारण वह हवा है जिसमें बादल उड़ रहे होते हैं | वह हवा अपना रुख जब जिधर कर लेगी जितनी गति से उड़ेगी बादलों को भी उसी गति से उड़कर उसी दिशा में जाना होगा | 
    ऐसे ही भूकंप आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं उसी प्रकार से प्राकृतिक आपदाएँ निर्जीव होती हैं उन्हें घटित होने के लिए किसी दूसरे बल की आवश्यकता होती है | उसे समझकर  उसके अनुसार आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं को समझना एवं इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव हो पाएगा |      
      इसी प्रकार से भूकंप आने के लिए भूगर्भगत जिन प्लेटों के आपस में टकराने को जिम्मेदार माना जाता है या धरती के गर्भ में संचित ऊर्जा के बाहर निकलने को जिम्मेदार कारण बताया जाता है| भूकंपों के लिए ऐसी घटनाएँ जिम्मेदार हैं या नहीं इसका निश्चय करने के लिए इनके आधार पर भूकंपों के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान सही निकलने चाहिए | जब तक ऐसा किया जाना संभव नहीं है तब तक यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि भूकंपों के आने का कारण भूगर्भगत प्लेटों का आपस में टकराना या धरती के गर्भ में संचित ऊर्जा के बाहर निकलने का दबाव ही है | दूसरी बात यदि ऐसा ही हो तो भी जिस कारण से भूगर्भगत प्लेटों के आपस में टकराने धरती के गर्भ में संचित ऊर्जा के बाहर निकलने की संभावना है | उस कारण को खोजे बिना भूकंपों के पैदा होने के विषय में निश्चित तौर पर कुछ भी कहा जाना संभव नहीं है | 
     ऐसी दुर्घटनाओं में जिन मनुष्यों की मृत्यु होती है |उन मृत्युओं का कारण उन दुर्घटनाओं को मान लिया जाना उचित नहीं है | दुर्घटनाएँ तो निर्जीव होती हैं वे स्वयं किसी दूसरे के बल से घटित हो रही होती हैं | वे तो पराधीन हैंउन्हें तो  घटित होना ही पड़ेगा ! उनमें ये शक्ति नहीं है कि समय आने पर  वे घटित न हों | ऐसी स्थिति में वे किसी दूसरी घटना के घटित होने का कारण नहीं हो सकती हैं |इसके लिए वे जिस कारण से घटित हो रही होती हैं उस कारण को अच्छी प्रकार से समझना पड़ेगा |
     कुल मिलाकर ऐसी सभी घटनाओं को किसी  अप्रत्यक्ष शक्ति के प्रभाव से घटित होना पड़ रहा होता है |     वह अप्रत्यक्ष शक्ति कौन है, कहाँ है,उसका प्रभाव कितना है,उसकी कार्यशैली क्या है|यह खोजने के लिए उस प्रकार के सक्षम अनुसंधान किए जाने चाहिए |उसे अच्छीप्रकार से समझे बिना प्रकृति या जीवन में घटित होने वाली किसी भी घटना के वास्तविक कारण को समझना संभव नहीं है | 
                                समय के  कारण घटित होती हैं अच्छी बुरी घटनाएँ !
      प्रकृति एवं जीवन से संबंधित अनुसंधान यात्रा में मैंने अनेकों बार अनुभव किया है कि समय को समझे बिना ऐसी घटनाओं को समझना एवं उनके विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव ही नहीं है | संभवतः यही कारण है कि समय की गणना किए बिना लगाए गए पूर्वानुमान सच नहीं निकलते हैं | मौसम हो या महामारी किसी के विषय में भी विश्वास पूर्वक यह नहीं कहा जा सकता है कि यह हमारे द्वारा लगाया गया पूर्वानुमान सच निकलेगा |कितने भी उपग्रह रडार आदि स्थापित कर लिए जाएँ | कितने भी सुपर कंप्यूटरों की मदद ले ली जाए फिर भी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण पता न होने से घटनाओं की प्रवृत्ति को समझना संभव नहीं हो पाता है | इसके  बिना पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाता है |
     प्रकृति पूर्ण अनुशासित है | इसमें घटित हो रही सभी प्रकार की घटनाएँ समय के द्वारा ही नियंत्रित होती हैं |समय की शक्ति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कोई मनुष्य अपने जीवन के विषय में जो करना चाहता है | वह करने के लिए प्रयत्न भी करता है,किंतु उसमें असफल हो जाता है और कुछ दूसरा करने में सफल हो जाता है जिसके विषय में उसने न तो कभी कुछ सीखा या पढ़ा था, न ही वैसा करने को सोचा था और न कोई प्रयत्न किया था |समय से प्रेरित उसके किसी मित्र ने वैसा संकेत किया ! समय प्रभाव से उसे मित्र की सलाह पर विश्वास हो गया ! उसने वह करना शुरू कर दिया | उसमें सफल होता चला गया | ये समयशक्ति  का प्रभाव है | 
   कुल मिलाकर समय के द्वारा सबकुछ पहले से ही निर्द्धारित है | सबकुछ अपने अपने समय पर ही घटित होता जाता है| ऋतुएँ अपने समय से न केवल आती जाती हैं,प्रत्युत प्रकृति भी ऋतुओं के अनुसार ही व्यवहार करते देखी जाती है | ग्रीष्मऋतु में गर्मी पड़ने लगती है, वर्षा ऋतु में बारिस होने लगती है,हेमंत शिशिर जैसी ऋतुओं में सर्दी पड़ने लगती है |ऐसे ही सूर्य  और चंद्र का उदय या अस्त होना,अमावस्या पूर्णिमा का आना जाना तथा सूर्य और चंद्र के ग्रहणों का घटित होना ये सभी समय के आधार पर ही घटित होने वाली घटनाएँ है | 
      बसंत ऋतु में पेड़ पुराने पत्ते छोड़कर नई नई कोपलें धारण कर लेते हैं |सूर्योदय के समय कमल खिल जाते हैं सूर्यास्त के समय  बंद  हो जाते हैं | अमावस्या पूर्णिमा आते ही समुद्र में ज्वारभाटा जैसी घटनाएँ घटित होते देखी  जाती हैं | जिस प्रकार से प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली सभी घटनाएँ समय के आधार पर घटित होती हैं | उसी प्रकार से भूकंप आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ भी समय के अनुसार ही घटित होती हैं | 
                                          मृत्यु के लिए समय जिम्मेदार होता है या घटनाएँ 
 
      भारत को पडोसी देशों के साथ तीन बड़े युद्ध लड़ने पड़े उन तीनों युद्धों में मिलाकर जितने नागरिकों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हुई है उससे बहुत अधिक लोगों की मृत्यु केवल कोरोना महामारी के समय हुई है | इन मृत्युओं का कारण यदि कोरोना महामारी को माना जाए तो फिर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि इतने उन्नत विज्ञान के होने पर भी यदि महामारी के समय इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु होनी ही है तो इतने महँगे अनुसंधानों को करने से लाभ ही क्या है | यदि महामारी काल में इनकी कोई उपयोगिता ही नहीं सिद्ध हो पा रही है |
      विशेष बात यह है कि कोरोनाकाल में जिनकी मृत्यु हुई है | उन मृत्युओं का कारण महामारी को माना जाए तो महामारी जाने के बाद जिन लोगों की मृत्यु हँसते खेलते नाचते कूदते अभिनय करते बातें करते उठते बैठते सोते जागते हो जा रही है | उन मृत्युओं का कारण यदि महामारी नहीं तो और दूसरा क्या है ?
     भूकंप आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के समय बहुत लोगों की मृत्यु हो जाती है किंतु उन मृत्युओं का कारण उन सबका अपना अपना समय होता है| समय के महत्त्व को न समझने वाले लोग उन लोगों की मृत्यु का कारण उन  प्राकृतिक आपदाओं को मान लेते हैं जो उस समय घटित हो रही होती हैं |     प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने एवं उन लोगों की मृत्यु होने जैसी घटनाएँ एक साथ घटित होने के कारण उन लोगों की मृत्यु होने के लिए प्राकृतिक घटनाओं को जिम्मेदार मान लिया जाता है | बिचार किया जाए तो महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के न होने पर यहाँ तक कि शरीर में कोई रोग न होने पर कोई प्रत्यक्ष घटना न घटित होने पर भी लोगों की मृत्यु होते देखी जाती है |उन मृत्युओं का कारण क्या होता है |
    जिस प्रकार से किसी जगह कोई रैली की जा रही हो उसी के पास यदि कोई आतंकी विस्फोट हो जाए,तो विस्फोट  होने के लिए उस रैली को जिम्मेदार  नहीं ठहराया  जा सकता | उसीप्रकार से प्राकृतिक आपदाएँ और उसी स्थान पर,उसी समय हुई लोगों की मृत्यु  ये दोनों घटनाएँ एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग हैं | प्राकृतिक आपदाओं या महामारी में होने वाली मृत्युओं का आपस में कोई संबंध ही नहीं होता है !प्राकृतिक आपदाएँ अपने समय से घटित हो रही होती हैं ,उसी स्थान पर उसी समय कुछ ऐसे लोगों की मृत्यु हो रही होती है |जिनकी अपनी मृत्यु का समय आ गया हो | जिन जंगलों में शेर आदि अनेकों हिंसक जीव जंतु रहते हैं | उन्हीं जंगलों में हिरण खरगोश आदि जीव जंतु रहते हैं | जो कभी उनका भोजन बन सकते हैं | उनकी सुरक्षा के लिए कोई घर या दीवार भी नहीं होती,फिर भी उन्हीं जंगलों में ऐसे सभी जीव जंतु हजारों वर्षों से समय रूपी बाड़े रहते चले आ रहे हैं | 
      कुल मिलाकर मृत्यु जैसी इतनी बड़ी घटना  यूँ ही अचानक नहीं घटित हो जाती है | वो प्रत्येक व्यक्ति के अपने अपने समय के अनुसार ही घटित होती है |जिस प्रकार से सूर्योदय के समय ही सूर्यास्त का समय निश्चित हो जाता है | उसी प्रकार से किसी मनुष्य के जन्म के समय ही उसकी मृत्यु का समय निश्चित हो जाता है | किसी भवन के निर्माण के समय ही उसके नष्ट होने का समय निश्चित हो जाता है और सृष्टि के आरंभकाल में ही भूकंप आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का समय निश्चित हो जाता है |कभी कभी ये तीनों घटनाएँ एक साथ घटित हो जाती हैं | भूकंप अपने समय पर आता है, भवन अपने पर गिरता है और मनुष्य की मृत्य अपने समय पर होती है | ये तीनों प्रकार की घटनाएँ कभी कभी एक ही समय पर एक ही स्थान पर घटित हो जाती हैं | उस समय यह भ्रम होता है कि भूकंप अचानक आया है ! भवन भूकंप से गिरा है,मृतक लोग भवन के मलवे में दबकर मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | बिचार किया जाए तो उसी भवन ने अनेकों भूकंप सही हैं तब नहीं गिरा और उस भवन के मलबे में अनेकों लोग दबे कुछ तो कुछ सप्ताह बाद भी सुरक्षित निकले | उसमें कुछ लोगों की मृत्यु होने का कारण यदि समय नहीं तो और दूसरा क्या हो सकता है | 
     प्रत्येक व्यक्ति या वस्तु अपनी मजबूती से मजबूत नहीं होती है ,प्रत्युत अपने समय की मजबूती से मजबूत होती हैं | किसी मनुष्य का शरीर कितना भी मजबूत हो फिर भी उसके शरीर को नष्ट करने की लाखों प्रक्रियाएँ होती हैं ,किंतु जिसका अपना समय जबतक मजबूत रहता है ,तब तक वो हजारों संकटों में फँसकर भी सुरक्षित लौटता है | इसके लिए उसका अपना समय उसे सुरक्षित बचाकर रखता है | ये उसके अपने समय की जिम्मेदारी होती है |     जिस प्रकार से  प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु के पैदा होते ही उसके नष्ट होने का समय शुरू और निश्चित हो जाता है | जन्म के समय कोई व्यक्ति या वस्तु समय की दृष्टि से यदि सौ प्रतिशत मजबूत होती है,तो वहीं से उसका क्रमिक रूप से नष्ट होना प्रारंभ हो जाता है | एक एक प्रतिशत नष्ट होते होते एक दिन उसके समय की मजबूती शून्य प्रतिशत रह जाती है | उस दिन उसका शरीर देखने में कितना भी मजबूत हो कोई दुर्घटना घटित हो या न घटित हो फिर भी वह शरीर छूट ही जाता है |जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है | समय संबंधी इस रहस्य को न समझने वाले लोग मृत्यु के लिए किसी न किसी ऐसी घटना को जिम्मेदार मानते हैं | जिससे शरीर पीड़ित हो किंतु बहुत लोग व्यायाम आदि क्रियाओं एवं पौष्टिक खानपान आदि से अपने शरीरों को तो मजबूत बनाए रखते हैं किंतु  समय दुर्बल हो जाता है | इसीलिए कहा जाता है जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु अवश्य होती है |
                                           जीवन का लक्ष्य क्या मृत्यु ही है !
          समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो जन्म और मृत्यु दोनों भाई बहन हैं | ये दोनों भाई बहन एक दूसरे के साथ लुका छिपी का खेल खेल रहे हैं | जब बहन छिप जाती है तब भाई बहन को खोजने निकलता है और जब भाई छिप जाता है तो भाई को बहन खोजने निकलती है | 
      इसीलिए इस संसार में जन्म लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपनी मृत्यु को खोजने निकला है|मृत्यु से मुलाक़ात जैसे और जहाँ होनी होती है|उसीप्रकार के माता पिता के यहाँ उसका जन्म होता है|वो वचपन से ही उसी प्रकार का आचरण करने लगता है |उसीप्रकार की शिक्षा ग्रहण करता है | उसी प्रकार का कार्य व्यापार नौकरी आदि चुनता है |उसी प्रकार के लोगों को मित्र शत्रु आदि बनाता है | मृत्यु के मिलने की संभावना होती है वो उन सभी स्थानों पर जाता है | जिस दिन मृत्यु मिल जाती है उसी दिन खेल पूरा हो जाता है | उसके बाद जन्म का खेल शुरू हो जाता है | 
     कल्पना चावला की मृत्यु यदि पृथ्वी से उतनी उँचाई पर छिपी हुई थी तो वहाँ ऐसे हर किसी का पहुँचना तो संभव होता नहीं है |इसलिए भारत के करनाल में पैदा होने के बाद उस प्रकार की शिक्षा लेकर उस प्रकार के देश में जाकर उस प्रकार की संस्था से जुड़कर उसप्रकार के मिशन में सम्मिलित होकर वहाँ तक पहुँची जहाँ उसकी मृत्यु छिपी हुई थी | उससे मिलते ही जीवन का खेल पूरा हो गया |

   इसीप्रकार से पूर्व लोक सभाध्यक्ष जीएमसी बालयोगी एवं पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी जैसे अनेकों लोग जिन सामान्य परिवारों में पैदा हुए वहाँ से उस उँचाई पर पहुँचकर जीवन को पूरा करना संभव न था | इसके लिए उन्हें आर्थिकदृष्टि से सक्षम होना या फिर राजनीति के उन उच्चपदों तक पहुँचना आवश्यक था| जिनसे उस प्रकार के  संसाधनों का पाना आसान हो जाए | जिनकी मदद से उस समय उस ऊँचाई पर पहुँच पाना  संभव हो पावे | जहाँ जीवन पूरा होना है | 
    प्राचीन विज्ञान की मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि सभी की मृत्यु अपने निर्द्धारित समय और स्थान पर ही होती है | उस समय और स्थान को आगे पीछे नहीं किया जा सकता है | ऐसी स्थिति में क्या यह मान लिया जाए कि लोगों की मौतों का कोरोना महामारी से कोई संबंध ही नहीं था |लोग तो अपनी मृत्यु से मर रहे थे |ध्यान दिया जाना चाहिए कि कोरोना काल में ही कोरोना महामारी के अतिरिक्त  भिन्न भिन्न हिंसक घटनाओं युद्धों दंगों आदि में भी बहुत बड़ी संख्या में लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |विभिन्न  प्रकरणों में थोड़े थोड़े कारणों ,पैसों, बातों का  बहाना लेकर लोग ह्त्या आत्महत्या करते देखे जा रहे थे |
      ऐसी स्थिति में  प्रश्न उठता है कि क्या इतनी बड़ी संख्या में लोग एक साथ ही आयु खो चुके थे !यदि हाँ तो ऐसा होने का कारण क्या था उसे भी अनुसंधान पूर्वक खोजा जाना चाहिए कि लोगों की मृत्यु का कारण क्या था !  कोरोना का समय बीतने के बाद हँसते खेलते नाचते कूदते स्वस्थ और युवा लोगों की  मृत्यु होते  देखी जा रही थी !उन मौतों के होने का कारण खोजे बिना कोरोनाकाल  में हुई मौतों के लिए कोरोना को कैसे जिम्मेदार माना जा सकता है | संभव है कि उन मौतों का कोरोना से कोई संबंध ही न रहा हो ! संभव है कि कोरोना का समय बीतने के बाद हँसते खेलते नाचते कूदते स्वस्थ युवाओं की मृत्यु होने का भी वही कारण रहा हो, जो कोरोना काल में हुई मौतों का रहा हो !यदि ऐसा है तो वो कारण क्या रहा होगा !पहले उसे खोजा जाना चाहिए | इसके बाद इस बात का निर्णय किया जाना चाहिए कि कोरोना काल से उसके बाद तक  होती रही लोगों की मौतों का कारण क्या था |                                जीवन में शरीर और समय की भूमिका ! 
      प्रत्येक व्यक्ति अपने शरीर से  नहीं प्रत्युत अपने समय से स्वस्थ अस्वस्थ सुखी दुखी जन्म मृत्यु आदि को प्राप्त करता है| उसका किसी से मिलना बिछुड़ना भी उसके शरीर से नहीं प्रत्युत समय के आधार पर होता है | जिन स्त्री पुरुषों या  व्यक्तियों का समय जब तक अच्छा या बुरा रहता है तक वो अपने  जैसे समय वाले लोगों को अपना मित्र बनाया करता है | इसीलिए कई बार बहुत संपन्न परिवारों की अत्यंत सुंदर संतानें किसी गरीब कुरूप दुर्गुणी आदि को अपना साथी या जीवन साथी बना लेते हैं ,क्योंकि उस समय उन लोगों का शरीर सुंदरता संपन्नता पद प्रतिष्ठा आदि में अंतर भले हो किंतु समय उन दोनों का एक जैसा ही होता है |उनमें से किसी एक का या दोनों का समय बदलते ही उन दोनों का साथ छूट जाता है,क्योंकि समय बदलते ही स्वास्थ्य सुंदरता स्वाद स्वभाव सफलता व्यवहार आदि में वर्तमान समय के अनुसार बदलाव आ जाते हैं | समय बदलने पर भी संबंध न टूटे इसीलिए ऋषियों ने विवाह जैसे पवित्र संबंध को सुरक्षित रखने के लिए धर्म को साथ में जोड़ा है | 
     इसीलिए तो जो व्यक्ति किसी को सुंदर स्वस्थ मित्र आदि लगता है वो सब वैसा रहते हुए भीउसका संबंध टूटना का कारण समय ही होता है | कोई व्यक्ति जिस योग्यता अनुभव परिश्रम आदि से किसी व्यवसाय को खड़ा करता है | वो व्यक्ति वैसा ही बना रहता है किंतु उसी व्यवसाय में नुक्सान हो जाता है | इसका कारण समय में बदलाव है बाक़ी सबकुछ तो वैसा ही होता है |
     कुछ लोगों  को विवाह संबंधी सुख उत्तम होता है | संतान की दृष्टि से पति पत्नी पूरी तरह स्वस्थ होते हैं | इसलिए उनकी मेडिकल रिपोर्ट सभी ठीक आ रही होती हैं किंतु समय  की दृष्टि से नपुंसकता का प्रभाव होता है | इसलिए उन्हें शरीर स्वस्थ होने एवं मेडिकल रिपोर्ट नार्मल  होने के बाद भी समयसंबंधी नपुंसकता के कारण संतान नहीं होती है | 
     कुल मिलाकर समय शरीर से अलग रहते हुए भी शरीर संबंधी अधिकाँश निर्णय समय ही लेता है | अपने मन से मनुष्य जो कुछ करता है | समय चाहता है तो उसमें सफल कर देता है अन्यथा उस कार्य को रोककर किसी दूसरे कार्य में सफल कर देता है |  
      जीवन में समय की सबसे बड़ी भूमिका होती है | जिस मनुष्य का जिस समय अपना समय ठीक चल रहा होता है | उस समय वो जिससे मिलता है मित्रता करता है या काम के लिए जहाँ जाता है उसका भी समय ठीक ही चल रहा होता है | अच्छे समय के प्रभाव से उसका  तो काम हो जाता है और जिसके पास काम के लिए जाता है उसे यश मिल जाता है | 
     इसी प्रकार से चिकित्सा में अच्छे समय वाले रोगी अच्छे समय वाले चिकित्सक के पास जाते हैं | समय प्रभाव से उन रोगियों को स्वस्थ होना ही होता है | इसलिए अच्छे समय वाले चिकित्सक अच्छे समय वाले रोगियों को औषधि के नाम पर मिट्टी दे दे उससे भी वह स्वस्थ हो जाता है | इससे रोगी को स्वास्थ्य लाभ एवं चिकित्सक को यश मिल जाता  है |
       ऐसे रोगी अपने स्वस्थ होने का श्रेय उस चिकित्सक को देने लगते हैं |इसलिएदूसरों को भी उसी चिकित्सक के पास चिकित्सा के लिए भेजने लगते हैं |जिन जिन का समय अच्छा होता है |वे तो स्वस्थ हो जाते हैं और जिनका समय अच्छा नहीं होता है |  ऐसे बुरे समय वाला रोगी यदि उसी चिकित्सक के पास जाना चाहता है तो पहली बात उसे उस पर विश्वास नहीं होता है | किसी तरह विश्वास कर भी ले और चिकित्सक से मिलने चला भी जाए तो उससे या तो मुलाक़ात नहीं हो पाती या उसकी बातों पर भरोसा नहीं होता या फिर जो दवाएँ वो लिखता है वो मिलती नहीं हैं तो मिल गईं तो उन्हें खाने के बाद उसे नुक्सान करने का वहम होने लगता है |जिससे  चिकित्सा छोड़ दी जाती है | 
      कुल मिलाकर बुरे समय से पीड़ित रोगी अच्छे समय वाले चिकित्सकों से चिकित्सा नहीं करवा पाते हैं और बुरे समय वाले चिकित्सकों के पास जाएँगे तो उनकी चिकित्सा से लाभ नहीं होगा !ऐसे ही अच्छे समय वाले चिकित्सक बुरे समय से पीड़ित रोगियों की चिकित्सा करने में रुचि ही नहीं लेते |

 
 
 

 
 
      कार्य-कारण का तात्पर्य है कि एक घटना का दूसरे के परिणामस्वरूप घटित होना,अर्थात दो घटनाएँ कारणात्मक रूप से आपस में एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। सभी घटनाएँ अलग-अलग या स्वतंत्र नहीं है। अपितु एक दूसरे से अटूट संबंध रखती है इस समय जो घटना घट रही है इसके लिए इसके पूर्व की कुछ खास परिस्थितियाँ जिम्मेदार होती हैं | 'किसी ने सुई चुभाई उससे पीड़ा हुई','रात को दही खाया उससे जुकाम हुआ !' कारण का अर्थ प्रेरणा या आदर्श या लक्ष्य भी हो सकता है |
 
                             
      किसी नौका में पानी भरने लगा हो तो उससे डूबना संभव है |इस बिपत्ति से बचाव के दो मार्ग  हैं |  एक तो  नौका से निरंतर पानी उलीचते रहा जाए और गंतव्य तक पहुँच जाया जाए| ये तो बचाव के लिए किया गया एक जुगाड़ है | इसमें विशेष ध्यान इस बात का रखना होगा कि पानी कहीं सीमा से अधिक न भर जाए |
     इसीसंकट का समाधान दूसरी प्रकार से भी निकाला जा सकता है|इसमें पानी तो उलीचा ही जाए किंतु यह भी पता लगाते रहा जाए कि नौका में पानी भरने का कारण क्या है| कारण पता लगते ही उसके परिणाम के विषय में अंदाजा लगाया जा सकता है |
 
इस संकट से मुक्ति पाने के लिए न केवल पूर्वानुमान लगा लिया जाएगा,प्रत्युत उस संकट का निवारण करके नौका में पानी भरना भी बंद किया जा सकता है | ये इस संकट के निवारण का वास्तविक उपाय होगा |
    किसी भी अच्छी या बुरी घटना के घटित होने का निश्चित कारण जाने बिना उसके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | पूर्वानुमान  लगाए बिना  उस दुर्घटना से सुरक्षा की जानी संभव नहीं है| यदि वह घटना अच्छी है तो उसका पूर्वानुमान लगाकर अधिक से अधिक लाभ लेने की तैयारियाँ पहले से करके रखी जा सकती हैं |इसलिए अच्छी या बुरी दोनों ही प्रकार की घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान पता होने बहुत आवश्यक हैं | 
        

   कार्य उसे कहते हैं जब किसी वस्तु को बाहरी बल के द्वारा उसके स्थान से विस्थापित किया जाता है | वस्तु पर कोई बल लगाने से वह वस्तु बल की दिशा में यदि  कुछ विस्थापित होती है, तो प्रमाणित हो जाता है कि बल ने कार्य किया है।
    इस प्रक्रिया में  वस्तु पर कोई बल लगना ही पर्याप्त नहीं होता है | उससे वह  वस्तु विस्थापित भी होनी चाहिए। यदि इनमें से कोई भी दशा पूरी नहीं होती तो कार्य नहीं किया गया।एक बैल ज़मीन के एक टुकड़े पर हल खींच रहा है, एक आदमी  गाड़ी को धक्का दे रहा है, एक छात्र अपने स्कूल बैग को अपने कंधे पर रख रहा है | ये सब कार्य होते देखे जाते हैं| कोई व्यक्ति किसी दीवार को धक्का देते देते थक भले ही जाता है,किंतु यदि वैसी हिलती या खिसकती नहीं है जैसी कि करने के लिए वो धक्का दे रहा होता है,तो वह कार्य नहीं हुआ है | ऐसा माना  जाता है |
    कार्य-कारण का तात्पर्य है कि एक घटना का दूसरे के परिणामस्वरूप घटित होना,अर्थात दो घटनाएँ कारणात्मक रूप से आपस में एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। संसार की घटनाएँ अलग-अलग या स्वतंत्र नहीं है। अपितु एक दूसरे से अटूट संबंध रखती है इस समय जो घटना घट रही है इसके लिए इसके पूर्व की कुछ खास परिस्थितियाँ जिम्मेदार होती हैं | 'किसी ने सुई चुभाई उससे पीड़ा हुई','रात को दही खाया उससे जुकाम हुआ !' कारण का अर्थ प्रेरणा या आदर्श या लक्ष्य भी हो सकता है |
 
  
 

    महामारी समाप्त होने के लिए कुछ लोगों ने कोविड नियमों के पालन को जिम्मेदार माना है | प्लाज्मा थैरेपी ,रेंडीसीवीर,,वैक्सीनजबकि मैंने भगवती की कृपा को माना है 

इसके बाद पूर्वानुमान लगाए जाते
 

दूसरी बात 

महामारी के विषय  अनुमान गलत निकलते रहे 

पूर्वानुमानों का आधार ही गलत था तो अनुमान कैसे सही निकलते !


समस्याओं के समाधान कैसे खोजे जाएँ

    वर्तमान समय में विज्ञान उन्नतशिखर पर है,जिसके द्वारा सुख सुविधाओं के साधन तो विकसित किए जा सके हैं किंतु प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों से हो रही जनधन हानि को रोका जाना संभव नहीं हो पा रहा है |वर्तमान समय का उन्नत विज्ञान उस उँचाई पर नहीं पहुँच पा रहा है, जहाँ ऐसी समस्याओं का निर्माण होता है |समस्याओं के समाधान भी उसी उँचाई पर संभव हैं | किसी बड़े बाँध से काफी अधिक मात्रा में जल छोड़ा जा रहा हो तो उससे बाढ़ आनी निश्चित है|जिससे जनधन का नुक्सान हो सकता है | यदि इस नुक्सान से समाज की सुरक्षा की जानी है तो इस पानी छोड़े जाने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना सबसे पहले आवश्यक है |नदी के इतने तेज बहाव से होने वाले जनधन के नुक्सान को तत्काल की तैयारियों के बलपर सुरक्षित किया जाना संभव नहीं हो पाता है |

   इतनी अधिक मात्रा में पानी आ रहा है ये पहले से पता न हो तो अचानक बाढ़ आएगी ही उससे जनधन का नुक्सान भी उतना होगा ही जितना होना है |जल  के इतने तेज बहाव को कैसे रोक लिया जाएगा | उसके साथ बहे जा रहे जनधन को कैसे पकड़ लिया जाएगा और कितना सुरक्षित बचा लिया जाएगा | 

    जिस प्रकार से किसी गाँव में घुसकर उपद्रव मचा रहे हाथी के आगे पीछे कुत्ते भौंकते भले रहें किंतु उस हाथी के उपद्रवों को रोकना उन कुत्तों के वश में नहीं होता है | ये जानते हुए भी कुत्ते उस हाथी के आगे पीछे भौंकते रहते हैं और हाथी नुक्सान करता रहता है |जिस प्रकार से कुत्तों के भौंकने से हाथियों के उपद्रवों को तुरंत की तैयारियों के बल  पर रोका जाना संभव नहीं होता है | उसी प्रकार से मनुष्यों के द्वारा की गई तुरंत की तैयारियों के बलपर महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जनधन हानि को घटाया जाना संभव नहीं होता है | पहले से सही पूर्वानुमान लगाए बिना ऐसी आपदाओं से जनधन को सुरक्षित किया जाना संभव नहीं होता है | जिस प्रकार से हाथी को गाँव  छोड़कर कभी तो जाना ही होता है |इसलिए जब वो हाथी अपने आपसे गॉंव छोड़कर चला जाता है | हाथी के जाने को यदि कुत्तों के भौंकने का परिणाम मानने की गलती की जाती रही तो हाथियों के ऐसे उपद्रवों को सहने के लिए हमेंशा तैयार रहा जाना चाहिए | 

ऐसे अनुसंधानों से क्या हो पाएँगे समस्याओं के समाधान !

      मौसम संबंधी जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में हमेंशा अनुसंधान होते रहते हैं !उन अनुसंधानों का आधार यदि सही हो और अनुसंधानों में सही वैज्ञानिक प्रक्रिया का परिपालन किया जाए तो मौसम मानसून एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में तो सही पूर्वानुमान लगाया ही जा सकता है | इसके साथ ही साथ महामारी जैसी घटनाओं से भी समाज की सुरक्षा करनी में इतनी कठिनाई नहीं होती |जैसे अनुसंधान होंगे वैसे परिणाम निकलेंगे ! ऐसी रिसर्चों से सच्चाई कैसे सामने लाई जा सकती है |

     एक बार कुछ दृष्टिहीन (अंधे) लोगों को रिसर्च करने की जिम्मेदारी सौंपी गई | उन्हें पता लगाना था कि "हाथी कैसा होता है !" उन दृष्टिहीन लोगों ने हाथी को कभी देखा नहीं था और न ही उसके विषय में कभी कुछ सुना था |ऐसे लोगों के बीच हाथी को लाकर खड़ा किया गया | उन्होंने अपनी अपनी सुविधा के अनुसार  हाथी का स्पर्श किया | उनमें से जिसका हाथ हाथी के जिस अंग पर पड़ा उसे लगा कि हाथी वैसा ही होता है | जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा उसने लिखा कि हाथी खंभे जैसा होता है !पेट पर जिसका हाथ पड़ा उसने लिखा कि हाथी पहाड़ जैसा होता है |इसी प्रकार से उनके अनुभवों से एक  शोधप्रबंध (थीसिस)लिख तो दिया गया किंतु उसे पढ़कर यह जानना संभव नहीं हो पाया कि "हाथी कैसा होता है !"

     इसलिए उन्हीं लोगों को रिसर्च करने के लिए  एक और अवसर दिया गया | उन्होंने  फिर अपनी अपनी सुविधानुसार हाथी को स्पर्श किया |अबकी बार उनके हाथ पहली बार से अलग कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अबकी उनके अनुभव भी पहले की अपेक्षा अलग हुए |इसलिए पहले के शोध प्रबंध से इस शोधप्रबंध की विषयवस्तु में बहुत अंतर आ गया |

      पहली बार जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा था | इसलिए उसे लगा था कि हाथी खंभे जैसा होता है | अबकी बार उसका  हाथ हाथी की पूँछ पर पड़ा तो उसे लगा कि हाथी सर्प जैसा होता है| ऐसे ही सभी के हाथ हाथी के कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अब उन सभी के अनुभव बदल चुके थे | पहली बार  पेट पर हाथ पड़ने से जिसने पहले हाथी को पहाड़ जैसा माना था | उसके हाथ में अबकी बार हाथी की सूँड लगी | इसलिए अबकी बार उन्होंने हाथी को अजगर जैसा बताया | 

     इस प्रकार से उन सभी के अनुभव बदलते देख कर उनसे पूछा  गया कि हाथी को आपने पहले तो  पहाड़ जैसा बताया था, किंतु अबकी बार आपने हाथी को अजगर जैसा बताया है |  इन दो प्रकार के उत्तरों में अंतर आने का कारण क्या है ? अपनी अनुसंधान क्षमता की कमी स्वीकार करने के बजाए उन्होंने कहा कि हाथी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है | इसलिए " हाथी कैसा होता है " अनुसंधानों के द्वारा यह पता लगाया जाना संभव ही नहीं है | इस प्रकार से  "हाथी कैसा होता है |" यह पता लगाने के लिए शोधप्रबंध तो दो तैयार हो गए किंतु यह पता नहीं लगाया जा सका  कि  "हाथी कैसा होता है |" 

     इसी प्रकार से वर्षा आँधी तूफ़ान बज्रपात चक्रवात भूकंप एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में अनुसंधानों के नामपर शोध प्रबंध तो न जाने कितने तैयार किए जा चुके होंगे किंतु किसी भी घटना के स्वभाव के आधार पर उसे सही सही समझना एवं उसके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है |  मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में ऐसी स्थिति हमेंशा से देखी जाती रही है | महामारी के विषय में अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं से समाज पहली बार परिचित हुआ है | इन्हीं अनुसंधानों के घमंड से जो लोग भारत के जिस प्राचीन विज्ञान को अंधविश्वास बताया करते हैं | उन्हीं के सामने भारत की उसी प्राचीन वैज्ञानिक क्षमता को प्रस्तुत कर रहा हूँ जिससे ये अनुमान लगाया जा सकता है कि इससे संबंधित अनुसंधान मौसम एवं महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए कितने सहायक हो सकते हैं |

 मेलें और पूर्वानुमान
 

 
 
 
                             
                                       विनम्र निवेदन ! (अनुसंधानों का  मतलब क्या ?)

      इसे समझने में मेरा पूरा जीवन जीवन ही बीत गया | वाराणसी में काशी हिंदू विश्व विद्यालय से जब मैं पीएचडी कर रहा था !एक दिन अपने गुरू जी से मिला उन्होंने पूछा क्या कर रहे हो तो मैंने कह दिया कि रिसर्च कर रहा हूँ |उन्होंने कहा पढ़ने लिखने के समय को क्यों यूँ ही  बर्बाद कर रहे हो !मैंने कहा गुरूजी पढ़ लिख ही तो रहा हूँ|किसी विषय पर अनुसंधान करना भी तो पढ़ना लिखना ही होता है| गुरू जी बोले रिसर्च करने का मतलब कुछ भी करने लगना या उसके विषय में कुछ भी कह देना नहीं होता है !प्रत्युत कुछ ऐसा करके दिखाना होता है|जो लक्ष्य साधन करने में कुछ तो सहायक हों ! अन्यथा लक्ष्यहीन अनुसंधान किस काम के |
     भूकंपों एवं  मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में एक ओर अनुसंधान चला ही करते हैं,दूसरी ओर घटनाएँ घटित हो जाती हैं| ऐसे विषयों में उनके द्वारा न अनुमान लगाए गए होते हैं और न ही पूर्वानुमान !जो लगाए भी जाते हैं वे प्रायः गलत निकलते रहते हैं| ऐसे अनुसंधानों को करने के लिए विज्ञान भी है वैज्ञानिक भी हैं| संसाधन भी लगते हैं | धन भी लगता है,फिर भी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना संभव नहीं हो पा रहा है |ये अनुसंधानों के उद्देश्यों के अनुरूप नहीं है | 
     इस विषय में  गुरू जी ने मुझे एक दृष्टांत सुनाया ! "हाथी कैसा होता है !" यह पता लगाने के लिए  कुछ ऐसे दृष्टिहीन (अंधे) लोगों को रिसर्च करने की जिम्मेदारी सौंपी गई | जिन्होंने हाथी को कभी देखा नहीं था और न ही उसके विषय में कभी कुछ सुना था |ऐसे दृष्टिहीन (अंधे) लोगों के बीच हाथी को लाकर खड़ा किया गया | उन्होंने अपनी अपनी सुविधा के अनुसार  हाथी का स्पर्श किया | उनमें से जिसका हाथ हाथी के जिस अंग पर पड़ा उसे लगा कि हाथी वैसा ही होता है | जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा उसने लिखा कि हाथी खंभे जैसा होता है !पेट पर जिसका हाथ पड़ा उसने लिखा कि हाथी पहाड़ जैसा होता है |इसी प्रकार से उनके अनुभवों से एक  शोधप्रबंध (थीसिस)लिख तो दिया गया किंतु उसे पढ़कर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका कि हाथी वास्तव में होता कैसा है  |
     इसलिए उन्हीं लोगों को रिसर्च करने के लिए  एक और अवसर दिया गया | उन्होंने  फिर अपनी अपनी सुविधानुसार हाथी को स्पर्श किया |अबकी बार उनके हाथ पहली बार से अलग कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अबकी उनके अनुभव भी पहले की अपेक्षा अलग हुए |इसलिए पहले के शोध प्रबंध से इस शोधप्रबंध की विषयवस्तु में बहुत अंतर आ गया |

      पहली बार जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा था | इसलिए उसे लगा था कि हाथी खंभे जैसा होता है | अबकी बार उसका  हाथ हाथी की पूँछ पर पड़ा तो उसे लगा कि हाथी सर्प जैसा होता है| ऐसे ही सभी के हाथ हाथी के कुछ दूसरे अंगों पर पड़े थे| इसलिए अब उन सभी के अनुभव बदल चुके थे | पहली बार  पेट पर हाथ पड़ने से जिसने पहले हाथी को पहाड़ जैसा माना था | उसके हाथ में अबकी बार हाथी की सूँड लगी | इसलिए अबकी बार उन्होंने हाथी को अजगर जैसा बताया | 

     इस प्रकार से उन सभी के अनुभव बदलते देख कर उनसे पूछा  गया कि हाथी को आपने पहले तो  पहाड़ जैसा बताया था, किंतु अबकी बार आपने हाथी को अजगर जैसा बताया है |  इन दो प्रकार के उत्तरों में अंतर आने का कारण क्या है ? अपनी अनुसंधान क्षमता की कमी स्वीकार करने के बजाए उन्होंने कहा कि हाथी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है | इसलिए " हाथी कैसा होता है " यह पता लगाया जाना अनुसंधानों के वश की बात नहीं है | इस प्रकार से शोधप्रबंध तो एक और तैयार हो गया किंतु यह नहीं पता लगाया जा सका  कि "हाथी कैसा होता है |" 

     इसी प्रकार से दूसरा दृष्टांत देते हुए उन्होंने कहा कि किसी गाँव में घुस कर हाथी प्रायः उपद्रव मचाने लगते थे |वे गाँव में कहीं भी जाते, कुछ भी करते, किसी का घर गिराते, किसी पेड़ को तोड़ते जबतक ऐसे उपद्रव करते रहते तब तक उन्हें रोकने का साहस कोई नहीं कर पाता था | उपद्रव करते करते थककर जब वही हाथी  गाँव से बाहर जाने लगते  तो उनके आगे पीछे भौंकने वाले गाँव के कुत्तों को यह भ्रम हो जाता कि उन्होंने ही भौंक भौंक कर हाथियों को गाँव के बाहर भगा दिया है |वही हाथी जब दोबारा फिर से गाँव में घुस आवें और फिर उपद्रव करने लगें | जिसे देखकर फिर कुत्ते उसी प्रकार से भौंकते हुए हाथी के आगे पीछे दौड़ने लगें |फिर भी हाथी गाँव से बाहर न जाकर वैसे ही वहीं उपद्रव करते रहें कुत्तों के भौंकने का कोई प्रभाव ही न पड़े | इससे यह स्पष्ट हो गया कि हाथियों के गाँव से बाहर जाने में पहले भी कुत्तों के भौंकने की कोई भूमिका नहीं थी ,फिर भी कुत्तों को लगता था कि हाथियों का स्वभाव परिवर्तन हो गया है | 

     ऐसे ही तीसरा दृष्टांत देते हुए उन्होंने कहा कि किसी गाँव के एक ओर जंगल था | जिससे निकलकर हाथी गाँवों में घुस कर अक्सर उपद्रव मचाने लगते थे |गाँव वाले इकट्ठे होकर जब तक उन्हें खदेड़ पाते तब तक हाथियों के द्वारा काफी बड़ा नुक्सान कर दिया जाता था| इससे बचाव के लिए जंगल वाली दिशा में गाँव के बाहर ग्रामीणों ने कैमरे लगवा लिए | हाथी जैसे ही जंगलों से निकलकर गाँव की ओर आने लगते तो ग्रामीणों को कैमरों में दिखाई दे जाते |  गाँव के लोग इकट्ठे होकर उन्हें खदेड़ आते थे | इससे ग्रामीणों का संभावित नुक्सान तो बच जाता था किंतु जिस प्रकार से इसे हाथी विज्ञान नहीं कहा जा सकता उसी प्रकार से उपग्रहों रडारों के माध्यम से बादलों आँधी तूफानों को देखकर उनकी गति और दिशा के अनुसार अंदाजा लगा लेने को मौसम विज्ञान नहीं कहा जा सकता है |

      ऐसे तीन दृष्टांतों के माध्यम से गुरू जी ने हमें उपदेश देते हुए कहा कि अनुसंधानों की यदि सार्थकता सिद्ध करनी है तो घटनाओं के स्वभाव को समझने का प्रयत्न करना होगा | उसके आधार पर किए गए अनुसंधान प्रायः सही निकलते हैं | इसमें प्राचीन गणितविज्ञान काफी अधिक सहायक हो सकता है | 

       गुरू जी के आदेशानुसार  ही मैंने गणितविज्ञान के आधार पर इन सार्थक अनुसंधानों की शुरुआत की थी !इस अनुसंधान यात्रा पर निकले तीसवर्ष से अधिक का समय बीत गया है |उसी का परिणाम है कि मौसम एवं महामारी  जैसी घटनाओं के स्वभाव को समझना संभव हो पाया है | उसी के आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान सही निकलते देखे जा रहे हैं | 

                               उन्नत विज्ञान पर भरोसा भी है और भविष्य को लेकर चिंताएँ भी !

      अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की तरह महामारी चीन के वुहान से निकलती है और निर्ममतापूर्वक मनुष्यों को संक्रमित करती हुई आगे बढ़ती जाती है |संपूर्ण विश्व का चक्कर लगाकर भारत पहुँचती है| इस विश्वपरिक्रमा में उसे अन्य देशों के साथ साथ कुछ विकासशील देश तो कुछ विकसित देश भी मिले |जिनकी चिकित्सा व्यवस्था अति उन्नत मानी जाती है | उन देशों की वैज्ञानिक क्षमता की परवाह न करती हुई महामारी आगे बढ़ती चली गई |  वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा ऐसा कोई महामारीसुरक्षाकवच खोजा नहीं जा सका |जिसके बल पर समाज को यह विश्वास दिलाया जा सका हो कि महामारी से अब कोई भय नहीं है |
      जिस प्रकार से गाँव में घुसे हाथी को भौंक भौंक कर भगाने के लिए ग्रामीण कुत्ते बहुत प्रयत्न करते हैं,किंतु उनके भौंकने का प्रभाव हाथी पर बिल्कुल नहीं पड़ता है |उसे जबतक उपद्रव करना होता है तब तक करता है बाद में वह हाथी अपने मन से ही गाँव छोड़कर जाता है |
        कोरोना महामारी उसी उन्मत्त हाथी की तरह निरंकुश होकर उपद्रव करती जा रही थी और उस महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए किए जा रहे सभी प्रयत्न निरर्थक होते दिख रहे थे |  न कोई अनुमान सहीं निकल रहा था और न ही पूर्वानुमान !अनुसंधानों के नाम पर जिसे जो मन आ रहा था | वो वही बोले जा रहा था | 
       कुलमिलाकर महामारी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा मनुष्यकृत प्रयासों से कहीं रोका नहीं जा सका | महामारी महीनों वर्षों तक संपूर्ण विश्व को रौंदती रही और लोग सहते रहे|जिसप्रकार से गाँव में उपद्रव मचा रहे हाथी को गाँव  छोड़कर कभी तो जाना ही होता है | इसलिए हाथी जब जी भर उपद्रव मचाकर चला जाता है ,तब भी उन कुत्तों को यही भ्रम बना रहता है कि उनके भौंकने के  भय से भयभीत होकर ही  हाथी गाँव से बाहर चला गया है | 
     महामारी से निपटने के लिए हम मनुष्यों के द्वारा किए गए प्रयासों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही रही है | महामारी अपने आप से  जब वापस लौटने लगती तो संक्रमितों की संख्या घटने लगती थी | इसे देखकर चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न लोग महामारी को पराजित कर देने के या महामारी पर विजय प्राप्त कर लेने के दावे करने लग जाते !महामारी पुनः संक्रमित करना शुरू कर देती और वे दावे गलत निकल जाते ! ऐसा कई बार हुआ | इसीलिए कुछ वर्षों तक महामारी बार बार घट घट कर बढ़ते देखी जा रही थी |  
   ऐसे कठिन समय में कोई भी देश अपनी वैज्ञानिक तैयारियों के बलपर महामारी का सामना करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था |  कोई अनुसंधान औषधि उपाय आदि महामारी के सामने ठहर नहीं पा रहे थे !  महामारी भी उस उन्मत्त हाथी की तरह जितना उपद्रव मचाना था वो मचाकर ही गई है | मनुष्यकृत प्रयासों से उसे रोका जाना संभव नहीं  हो सका है | महामारी अपने अश्वमेध यज्ञ को संपूर्ण समझकर दिग्विजय पताका लहराती हुई अपने आपसे अंतर्ध्यान हो गई |इससे संबंधित अनुसंधान अधूरे ही बने रहे |ऐसी स्थिति में ये कैसे पता लगे कि ऐसे प्रयत्नों का प्रभाव महामारी पर पड़ सकता था या नहीं !
     कुल मिलाकर  समय प्रभाव से संक्रमितों की संख्या जब अपने आपसे कम होने लगती तब जो औषधि आदि दी जा रही होती थी | संक्रमण कम होने का श्रेय लोग उसी औषधि को देने लग जाया करते थे | संक्रमितों की संख्या कम होने का कारण  उसी औषधि धर्माचरण या टोने  टोटके आदि का प्रभाव मान लिया जाता था! संक्रमितों की संख्या बढ़ने पर उसी प्रकार के प्रयत्नों का प्रयोग जब दोबारा किया जाता तो उस औषधि का संक्रमितों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता  था, तब यह भ्रम टूटता था कि पहले भी जो लोग स्वस्थ हुए थे | वे किसी औषधि आदि के प्रभाव से नहीं प्रत्युत समय के प्रभाव से ही स्वस्थ हुए थे |इसके बाद उन औषधियों को महामारी की चिकित्सा व्यवस्था से अलग  कर दिया जाता रहा है | मुझे महामारी से इतना तो समझ में आ ही जाना चाहिए कि महामारी से बचाव के लिए अभी तक ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे सुरक्षा की जा सके |

                                                                           समय खंड

                               विज्ञान से  हमें पहले सुख सुविधाएँ चाहिए या सुरक्षा !
        वर्तमान समय विज्ञान बहुत उन्नत है | यह कहने के बजाए सोचने की आवश्यकता है कि प्राकृतिक विषयों में अनुसंधानों की आवश्यकता क्यों पड़ी ! मनुष्यों की आवश्यकताओं पर अनुसंधान कितने खरे उतर पा रहे हैं| वर्तमान परिस्थिति में यह हम सभी को मिलकर तय करना है ,कि हमें सुख सुविधा के संसाधन पहले चाहिए या फिर प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों आदि से मनुष्यों की  सुरक्षा !वर्तमान समय में सुख सुविधा के साधन तो बहुत हैं किंतु प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से मनुष्यों को सुरक्षित बचाने की तैयारियों को कोरोनाकाल में दुनियाँ ने देखा है | याँ बचाया जाए ! कोरोना महामारी काल में हुए अनुभवों को सामने रखकर ये सोचे जाने की आवश्यकता है कि महामारी कैसे पैदा होती है !लोग संक्रमित कैसे होते हैं और चिकित्सा से कितनी मदद मिलती है ?     

     चिंता की बात यह है कि गर्व करने लायक इतने उन्नत विज्ञान की मदद से अभी तक यह समझा जाना संभव नहीं हो पाया है कि महामारी पैदा कैसे हुई ? महामारी से लोग रोगी कैसे हुए ? महामारी से संक्रमित लोग स्वस्थ कैसे हुए ? महामारी समाप्त कैसे हुई ? समाप्त हुई या अभी और आएगी ! महामारी की लहरें आने और जाने का कारण क्या था ?महामारी के बिषाणु पदार्थों या जीवों के अंदर प्रवेश कर सकते है या नहीं ? महामारी के बिषाणु प्राकृतिक वातावरण में मनुष्य शरीरों से पहुँचते हैं या मनुष्य शरीरों से प्राकृतिक वातावरण में ? महामारी से मुक्ति दिलाने में चिकित्सा की क्या भूमिका रही ? कोविडनियमों के पालन से क्या मदद मिली ?  

    तापमान बढ़ने घटने का महामारी पर  प्रभाव पड़ता है या नहीं ? तापमान घटने बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव है क्या ?

 वायुप्रदूषण बढ़ने से महामारीजनित संक्रमण बढ़ता है क्या ?वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण क्या है?वायुप्रदूषण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है क्या ?

 महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने में मौसम की भूमिका होती है या नहीं? मौसम संबंधी परिवर्तनों का कारण क्या होता है ?मौसम के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव है क्या ?    

भूकंपों का भी महामारी पर प्रभाव पड़ता है क्या ? महामारी के समय इतने अधिक भूकंप आने का कारण क्या था ?

   महामारी के समय कुछ वृक्षों में उनकी ऋतुओं के बिना भी फूल फल लगते देखे जा रहे थे | फूलों फलों  के आकार स्वाद सुगंध आदि में बदलाव होते सुने जा रहे थे |इसका कारण महामारी ही थी या कुछ और ! ऐसे परिवर्तन कृषि संबंधी उत्पादों में भी होते देखे जा रहे थे | ऐसा होने का कारण महामारी थी या कुछ और !

    महामारी के समय पशुओं पक्षियों में इतनी अधिक बेचैनी क्यों थी ? पशुओं पक्षियों चूहों टिड्डियों ,कुत्तों, भेड़ियों आदि के उन्माद का  कारण महामारी थी या कुछ और ?

    महामारी के समय कुछ देशों में  तनाव आतंकी घटनाएँ हिंसक आंदोलन एवं युद्ध जैसी हिंसक घटनाएँ घटित हो रही थीं !ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण महामारी थी या कुछ और !

    महामारी काल से अभी तक उठते बैठते हँसते खेलते नाचते कूदते कुछ लोगों की मृत्यु होते देखी जा रही है | इसका कारण कोरोना महामारी है या कुछ और !

 महामारी का पूर्वानुमान लगाने के लिए भविष्य में  झाँकने का विज्ञान होना आवश्यक है ऐसा विज्ञान न होने के बाद भी भविष्य महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाए जाते रहे कैसे !

      कुलमिलाकर  महामारी आकर चली भी गई है किंतु ऐसे प्रश्नों के उत्तर अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं | इसके बिना महामारी को समझना संभव नहीं है और महामारी को समझे बिना इससे मनुष्यों की सुरक्षा की जानी संभव नहीं है | 

       महामारी यदि लौटकर दोबारा भी आ जाए और उसका स्वरूप इससे भी भयंकर हो तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के बलपर इससे भी मना नहीं किया जा सकता है कि अब ऐसा नहीं होगा | ऐसा भी कहा जाना संभव नहीं है कि ऐसा कुछ होने से पहले उसके विषय में हम सही सही पूर्वानुमान लगा लेंगे |कोविडनियमों का पालन करके,प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के प्रयत्न करके या औषधियों टीकों आदि का अग्रिम प्रयोग करके समाज को रोगी होने से बचा लिया जाएगा ! महामारी से संक्रमित हो चुके रोगियों को चिकित्सा करके सुरक्षित बचा लिया जाएगा |विज्ञान के अत्यंत उन्नत अवस्था में पहुँचने पर भी ऐसी आपदाओं से यदि मनुष्य जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकी है तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा जो मनुष्यों  की कठिनाइयाँ कम करके उन्हें सुखी बनाने के लिए खोजकर रखी गई हैं |   

                               ऐसे अनुसंधानों से कितनी मदद मिलने की आशा की जाए !  

      महामारी पहले पैदा हो फिर लोग उससे तेजी से संक्रमित होने लगें,उनमें से  कुछ की मृत्यु होते देखी जाए | इसके बाद उसे पहचानना प्रारंभ किया जाए ! वो रोग है या महारोग यह निश्चित किया जाए | उसका स्वभाव संक्रामकता लक्षणों आदि का  पता लगाया जाए !उससे बचाव के उपाय खोजे जाएँ फिर उससे संक्रमितों को रोगमुक्ति दिलाने के लिए औषधियों को खोजा जाए ! औषधियों के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए | उसके लिए इतनी बड़ी मात्रा आवश्यक द्रव्यों का संग्रह किया जाए | इतनी अधिक मात्रा में औषधियों का निर्माण किया जाए | इतने विशाल समुदाय में जन जन तक पहुँचाया जाए | इसके बाद चिकित्सा पूर्वक संक्रमितों को रोग मुक्ति दिलाने के लिए प्रयत्न किया जाए |

     ऐसा सब कुछ करने में बहुत समय लग जाएगा तब तक महामारी प्रतीक्षा  तो नहीं करती रहेगी कि जब वैज्ञानिक अनुसंधान सफल हो जाएँ या औषधि निर्माण की सारी प्रक्रिया पूरी हो जाए | उतने समय में तो लाखों लोग संक्रमित होकर मृत्यु को भी  प्राप्त  जाएँगे | इसके बाद यदि  चिकित्सा के प्रभाव से संक्रमितों को स्वस्थ करने में सफलता प्राप्त कर भी ली गई तो उससे उन लोगों को तो जीवित नहीं ही कर लिया जाएगा ! जो मृत्यु को प्राप्त हो चुके होंगे | जो संक्रमित होकर एक बार पीड़ा पा चुके हैं | उनके उस भय को भगाया नहीं जा सकेगा | 

     इसलिए महामारी में यदि समाज की मदद करनी ही है तो सबसे पहले ऐसा कोई विज्ञान खोजना होगा ! जिसके द्वारा महामारी आने से पहले उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके कि महामारी आने वाली है |जिससे महामारी आने से पहले इससे बचाव के साधनों से समाज को अवगत करा दिया जाए एवं ऐसी औषधियों का प्रबंध कर लिया जाए | ऐसा प्रयत्न करके महामारी आने पर भी महामारी के प्रकोप से समाज को सुरक्षित रखा जा सकता है | इससे मुक्त समाज निर्माण  की संकल्पना को साकार किया जा सकता है |    

                                    प्रकृति और जीवन को समझिए  गणितविज्ञान से !   
     
        प्राकृतिक बिषयों में गणित के बिना विज्ञान अधूरा होता है|किसी प्राकृतिकघटना के घटित होने के बिषय में विज्ञान के द्वारा यदि यह पता लगा भी लिया जाता है कि ऐसी घटना घटित होने की संभावना है|तो प्रश्न उठता है कि कब घटित होगी | इसका कोई संतोष जनक उत्तर नहीं होता है | भूकंप विशेषज्ञों के द्वारा अक्सर कहा जाता है कि निकट भविष्य में हिमालय के आस पास बहुत बड़ा भूकंप आ सकता है | इसका आधार क्या है प्रमाण क्या है और ऐसी घटना के घटित होने का संभावित समय क्या होगा ! इसका किसी के पास कोई उत्तर नहीं होता है | 
      ऐसे ही जलवायु परिवर्तन के प्रभाव विषय में कहा जाता है कि जंगलों में आग लग  सकती है | सूखा , तूफान और बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाएँ अधिक तीव्र और अप्रत्याशित हो सकती हैं।इसके कारण तरह तरह के रोग महामारियाँ आदि फैलेंगी | जलवायु परिवर्तन कहीं भयंकर सूखे का कारण बन सकता है जबकि दूसरी जगह भयंकर बाढ़ हो सकती है।ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे |उससे समुद्र का जलस्तर बढ़ सकता है | ऐसा सब कुछ कहाँ होगा कब होगा कितना होगा ऐसे प्रश्नों का किसी के पास कोई उत्तर नहीं होता है |
     कुल मिलकर तापमान बढ़ने,सूखा , तूफान ,बाढ़,रोग और महारोग जैसी मौसमसंबंधी घटनाओं के घटित होने का कारण जिस जलवायुपरिवर्तन को बताया जाता है | उस जलवायुपरिवर्तन के कारण मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना असंभव बताया जाता है|ऐसी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसमविज्ञान की परिकल्पना की गई है | यदि मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है तो मौसमविज्ञान है क्या और इसका औचित्य ही क्या बचता है |
   जलवायुपरिवर्तन के प्रभाव को लेकर सुदूरभविष्य के विषय में एक ओर इतनी बड़ी बड़ी बातें तो दूसरी ओर मौसम एवं महामारी के विषय में घटनाओं के घटित होने के चार दिन पहले लगाने जाने वाले पूर्वानुमान अक्सर गलत निकलते रहते हैं | मौसम संबंधी मध्यावधि दीर्घावधि पूर्वानुमान सही निकलते ही नहीं हैं | तात्कालिक पूर्वानुमान भी विश्वसनीय बहुत कम ही देखे जाते हैं | ऐसी स्थिति में जलवायुपरिवर्तन के प्रभाव के विषय में की गई भविष्यवाणी कितनी सच एवं विश्वसनीय हैं कैसे पता लगे | 
       ऐसे ही दुविधापूर्ण वक्तव्य प्रकृति विषयक अन्य क्षेत्रों में भी  देखे जाते हैं| ऐसा होने का कारण प्राकृतिक अनुसंधानों का गणितीय आधार न होना होता है |ऐसे विषयों में प्राचीन गणितविज्ञान  के आधार पर किए गए अनुसंधान अधिक सटीक होते हैं | इसीलिए गणित और विज्ञान दोनों मिलकर ही प्राकृतिक रहस्यों  को सुलझा सकते हैं | भारत की जो प्राचीन पारंपरिक विज्ञान पद्धति थी | उसका मूल आधार गणित ही है | प्राचीन काल में गणित के बलपर प्रकृति एवं जीवन से संबंधित घटनाओं के रहस्यों को सुलझा लिया जाता था | 
       वस्तुतः अच्छे बुरे मौसम और महामारियों का कारक सूर्य के संचार को माना जाता है | गणित के द्वारा सौरसंचार को समझना संभव है तभी तो  सूर्य सिद्धांत जैसे अनेकों आर्ष ग्रंथों में प्रकृति एवं जीवन को समझने के लिए गणित के सूत्रों का उपयोग किया गया है | गणित के द्वारा सूर्य आदि ग्रहों के संचार के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया बताई गई है | उसी पद्धति से पृथ्वी सूर्य चंद्र आदि के एक सीध में आने के विषय में सही सटीक अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाकर गणित के द्वारा ही सूर्य चंद्रग्रहणों का भी सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |                                               

      प्राचीनविज्ञान हो या आधुनिकविज्ञान इनमें एक समानता तो है कि दोनों का आधार गणित ही है|प्राचीन विज्ञान प्राचीन गणितीय पद्धति पर आधारित है | प्राकृतिक विषयों में उसकी गणना अधिक सटीक बैठती है | गणित का प्रकृति से सीधा संबंध है | ऐसा विभिन्न वैज्ञानिकों ने समय समय पर स्वीकार किया है |

     एक वैज्ञानिक प्रोफेसर  गणितविज्ञान के साथ प्रकृति के सजीव संबंध को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि     हमारी प्रकृति कुछ इस प्रकार से बनी है कि गणित के फार्मूले जो कागज़ पेन से लिखे जाते हैं | वे प्रकृति के कई सारे नियमों को ठीक तरीके से पकड़ लेते हैं |प्रकृति में क्या हो रहा है | ये वो गणित के सूत्र बता देते हैं | इसका कारण क्या है इसे कोई भी अच्छी तरीके से नहीं समझता है लेकिन ये हर जगह देखा  गया है | चाहें न्यूटन के लॉ हों आइंस्टीन के लॉज हों सिंपल क्वेश्चंस हों |

    एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित में आंकड़ों की प्रधानता है तथा विज्ञान में तत्वों की और ये दोनों प्रकृति से जुड़े हुए हैं । गणित का उपयोग प्राचीन समय से ब्रह्मांड में तारा एवं ग्रहों की दूरी का पता लगाने  के लिए किया जा रहा है ।"    
    एक वैज्ञानिक का मत है -"विज्ञान में हम सिद्धांतों की बात करते है और गणित के द्वारा ही उन सिद्धान्तों को सूत्रों में बदला जाता है।साफ़ तौर पर कहें तो विज्ञान ‘क्यों’ का उत्तर देता है और गणित ‘कब’ और ‘कितना’ का उत्तर देती है।"
   एक वैज्ञानिक कहते हैं -  "गणित विभिन्न नियमों, सूत्रों, सिद्धांतों आदि में संदेह की संभावना नहीं रखती है।"
  गैलीलियो कहते हैं , “गणित वह भाषा है जिसमे परमेश्वर ने संपूर्ण जगत या ब्रह्मांड को लिख दिया है।”

      एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के नियम, सिद्धांत, सूत्र सभी स्थानों पर एक समान होते हैं | जिससे उनकी सत्यता की जाँच किसी भी समय तथा स्थान पर की जा सकती है।गणित ज्ञान का आधार निश्चित होता है | जिससे उस पर विश्वास किया जा सकता है।
एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेंद्रियाँ हैं।" 

   कुल मिलाकर  प्रकृति या जीवन में जो जो कुछ घटित हो रहा है | गणित के द्वारा उसका आगे से आगे पता लगा लिया जाता है | जिस गणित विज्ञान के द्वारा सूर्य चंद्र आदि ग्रहों से संबंधित घटनाओं के विषय में  हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता रहा है|उसी गणितविज्ञान के द्वारा ग्रहों के परिवर्तनों से घटित होने वाली ऋतुओं ऋतुप्रभावों एवं महामारी भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात आदि घटनाओं के विषय में भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता है|गणित के द्वारा ऐसा किया जाना संभव है| 

     इसीलिए विभिन्न आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी इस गणित विधा को वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए सहयोगी के रूप में स्वीकार किया है | प्राचीन समय की तरह ही अभी भी मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में गणित के द्वारा अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है | यही सोचकर ऐसी घटनाओं के विषय  में गणित के आधार पर अनुसंधान पूर्वक मैं जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाता रहा हूँ| वे सही निकलते रहे हैं |आधुनिक विज्ञान की तरह ही  ऐसे विषयों में अभी भी गंभीर अनुसंधानों की आवश्यकता है |प्राचीन विज्ञान भी गणित पर ही आधारित है |

                         मौसम एवं महामारियों को समझिए ग्रहगणितविज्ञान  से 

        इनमें से   जल,अग्नि अर्थात कफ और पित्त का अभिप्राय सर्दी और गर्मी ही प्रमुख हैं |यदि ग्रहों की दृष्टि से देखा जाए तो सर्दी से अभिप्राय चंद्र तथा गर्मी का प्रतिनिधित्व सूर्य करता है | विशेष बात यह है कि चंद्र शीतलता का प्रतिधित्व अवश्य करता है किंतु प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव सूर्य का ही दिखाई पड़ता है ,क्योंकि पूर्णमासी को चंद्रमा पूर्ण प्रकट दिखाई देता है उस रात्रि को देखने में अच्छा तो लगता है किंतु उससे ठंड होने का अनुभव नहीं होता है | ऐसे ही अमावस्या को चंद्रमा के क्षीण हो जाने पर गर्मी अधिक नहीं पड़ते देखी जाती है | वैसे भी चंद्रमा तो सूर्य के  प्रकाश से ही प्रकाशित है | इसलिए चंद्रमा का चमकना एवं उसकी शीतलता सूर्य के आधीन ही रहती है | सूर्य जैसे जैसे अपना प्रभाव प्रकाश आदि कम करता जाता है वैसे वैसे चंद्र का प्रभाव अँधेरा शीतलता आदि बढ़ते देखी जाती है| ग्रीष्मऋतु में सूर्य का प्रभाव बढ़ने पर वातावरण में गर्मी बढ़ते देखी जाती है और शिशिर ऋतु में सूर्य का प्रभाव घटने से दिन छोटे एवं रातें बड़ी होने लगती हैं | इससे वातावरण में सर्दी होते दिखाई देती है | इसी प्रकार से दिन में सूर्य की उपस्थिति रहने के कारण रात्रि की अपेक्षा दिन का तापमान बढ़ा रहता है | 
    कुलमिलाकर बात जो तापमान के बढ़ने और घटने की है इसका कारण तो सूर्य ही है | सूर्य का प्रभाव बढ़ते ही तापमान बढ़ जाता है और सूर्य का प्रभाव घटते ही तापमान कम होना शुरू हो जाता है | इसप्रकार से प्राकृतिक वातावरण में तापमान का कम और अधिक होना दोनों ही परिस्थितियाँ सूर्य के ही आधीन हैं |  मौसम बनता बिगड़ता है | मानसून आता जाता है | ऋतुखंडों में उनका प्रभाव अत्यधिक बढ़ने सम रहने एवं कम होने का कारण सूर्य ही है | सूर्य की ऊष्मा के कारण ही हवाओं, बादलों, चक्रवातों भूकंपों एवं अन्य मौसमसंबंधी परिघटनाओं का जन्म होता है। पृथ्वी पर बेमौसम बारिश, बाढ़, सूखा, ग्लेशियरों के पिछलने जैसी घटनाएँ भी तो सूर्य संबंधी परिवर्तन के ही प्रभाव हैं |मौसम में परिवर्तन अचानक हो सकता है एवं इसका अनुभव किया जा सकता है जबकि ऋतु परिवर्तन अपने समय से ही होता है ऋतुध्वंस कभी भी हो सकता है किंतु ये बात हमेंशा पृथ्वी के मौसम रूपी इंजन को चलाने वाला ऊर्जा स्रोत सूर्य ही है। सूर्य की ऊर्जा व ऊष्मा के बगैर कोयला, जीवाश्म ईंधन, पौधे, हवा और बारिश ही नहीं अपितु जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं है। सूर्य ही हवा के गर्म या ठंडी, तूफानी या शांत होने का कारण है | 
     इसलिए प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए सूर्य के संचार को समझना आवश्यक होता है |सूर्य के  स्वभाव और प्रभाव में समय समय पर आते रहने वाले परिवर्तनों के कारण ही तापमान बढ़ता घटता है |उसका प्रभाव वायु के संचार पर पड़ता है | 
    भविष्य में घटित होने वाले सूर्य के संभावित संचार के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाना होता है | ऐसा किया जाना  प्राचीन विज्ञान के द्वारा ही संभव है |इसे  उपग्रहों रडारों दूरवीनों आदि से देखा नहीं जा सकता और अलनीनो लानिना जैसी कल्पनाओं के आधार पर सूर्य के संचार या सूर्य चंद्र ग्रहण के विषय में अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है | इसके लिए काल्पनिक विज्ञान से ऊपर उठकर गणितविज्ञान के आधार पर अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है |  
      विशेष बात यह है कि यदि उपग्रहों रडारों दूरवीनों आदि के द्वारा निकट समय में घटित होने वाले संभावित ग्रहणों के विषय में पूर्वानुमान लगाना जिस किसी भी प्रकार से संभव मान भी लिया जाए तो भी भविष्य संबंधी ग्रहणों के विषय में कोई पूर्वानुमान लगाने के परिकल्पना कैसे की जा सकती है ! जबकि आज के हजारों वर्ष पहले  घटित होने वाले ग्रहणों के विषय में जो पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | वह एक एक सेकेंड सही घटित होता है | ऐसा तभी संभव हो पाया है जब प्राचीन विज्ञान को आधार बनाकर ऐसी घटनाओं की गणना  की गई है | 
  इसकी एक विशेषता यह भी है कि इस ज्ञान के द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमानों को कोई अलनीनो लानिना एवं जलवायु परिवर्तन आदि प्रभावित नहीं कर पाता है |सूर्य चंद्र ग्रहण हों या सभी ग्रहों के उदयअस्त के समय के विषय में गणित के द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि कभी गलत नहीं हुए हैं | 
     ऐसी परिस्थिति में यदि सूर्य और चंद्र के संचार को गणित के द्वारा समझा जा सकता है इनके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता है तो उसी सूर्य के प्रभाव से घटित होने वाली महामारी एवं मौसमसंबंधी वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात आदि घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सकता है |              

                                          समय का स्वभाव और सामर्थ्य !

      प्रकृति और जीवन में  समय के अनुसार ही घटनाएँ घटित होती  हैं | अच्छा समय होता है तो अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं और बुरा समय होता है तो बुरी घटनाएँ घटित होती हैं | समय निरंतर चलता रहता है| उसी क्रम में कभी अच्छा तो कभी बुरा समय आता जाता रहता है |उसी के अनुसार प्रकृति और जीवन में घटनाएँ घटित होती रहती हैं | भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात एवं महामारी जैसी  प्राकृतिक घटनाएँ समय के अनुसार ही घटित होती हैं | समय संचार की प्रक्रिया को समझे बिना ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं है |समय को समझना आवश्यक है |  

      समय की शक्ति - समय किसी के आधीन नहीं है कि वो जब जैसा चाहे वैसा समय चला ले ! इसीलिए बड़े बड़े पराक्रमी लोग इस पृथ्वी पर हुए किंतु समय के  साथ उन्हें भी समाप्त होना पड़ा है | यहाँ तक कि ईश्वर का अवतरित होना या परमधाम गमन भी समय के ही आधीन है |

    जिस समय के अनुसार ईश्वर को भी चलना पड़ता है | वह समय स्वयं में सर्वतंत्र स्वतंत्र है | इसीलिए कहा गया है -" कालः साक्षादीश्वरः" अर्थात समय साक्षाद ईश्वर है | वह असीम शक्ति से संपन्न एवं सर्वसक्षम है |

    समय अपरिवर्तनीय है - समय के संचार क्रम को बदला नहीं जा सकता है | समय के स्वभाव को बदला नहीं जा सकता | समय अनंत काल से स्वनिर्धारित गति क्रम के अनुसार बढ़ता चला जा रहा है | समय स्वतंत्र तो है किंतु वो इतना भी स्वतंत्र नहीं है कि कभी भी कैसा भी परिवर्तित होकर चलने लगे | वो स्वनिर्धारित नियमों से इतनी दृढ़ता से निबद्ध है कि उसीप्रकार चलेगा जैसा हमेंशा से चलता आ रहा है | 

    संसार एवं अपने जीवन को समझने के लिए तथा प्रकृति तथा अपने जीवन में घटित होने वाली घटनाओं को समझने के लिए एवं सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रत्येकव्यक्ति  को समय की जानकारी हमेंशा रखनी चाहिए |समय कभी किसी के अनुसार  चलता है | प्रत्युत समय के अनुसार ही सभी को चलना पड़ता है | समय के अनुसार चलने के लिए ये पता होना आवश्यक है कि कब कैसा समय चल रहा है तथा किसके जीवन में कब कैसा समय चल रहा है | ये पता लगे बिना न तो प्राकृतिक आपदाओं और न ही महामारियों के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव हो सकता है |

   हमें इस सच्चाई को  समझना होगा कि घटनाएँ उपग्रहों रडारों के आधीन न होकर प्रत्युत समय के आधीन होती   हैं | इसलिए उनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए समय को ही आधार बनाकर मौसम एवं महामारियों के विषय में  अनुसंधान करने होंगे | इस वास्तविकता को जितनी जल्दी समझ लिया जाएगा ,उतनी जल्दी प्राकृतिक  आपदाओं एवं महामारियों से संबंधित रहस्य सुलझने लग जाएँगे | इस क्षेत्र में बीते डेढ़  सौ वर्षों में जो नहीं किया जा सका वो दस वर्षों में होने लगेगा | ऐसा मेरा विश्वास है | 

                                                     यंत्रविज्ञान और समय का अनुसंधान

     वर्तमानसमय में इतने बड़े बड़े विकसित यंत्रों को देखकर ऐसा लगना स्वाभाविक ही है कि प्राचीनकाल में जब ऐसे यंत्र नहीं थे| उससमय विज्ञान का आस्तित्व ही नहीं होगा| इसलिए प्राचीनकाल के लोगों के जीवन और जीवनशैली के विषय में  कितनी ऊटपटाँग कल्पनाएँ कर ली जाती हैं | उतने गिरे स्तर से सोचने का कारण उस युग की वैज्ञानिकक्षमताओं के विषय में जानकारी का न होना होता है | उस युग में यंत्र नहीं थे ये बात नहीं है उस युग में यंत्रों की आवश्यकता ही नहीं थी | जिन यंत्रों की आवश्यकता होती थी वे बना लिए जाते थे | इस रहस्य को न समझकर प्राचीन  विज्ञान पर आधार विहीन शंकाएँ  किया करते हैं | इसे ऐसे समझिए -

     जो लोग ऐसा कहते हैं कि समय को देखने के लिए अब तो घड़ी है | प्राचीन काल में क्या था ?उन्हें पता होना चाहिए कि उस युग में समय पता करने के लिए घड़ियों(उदकयंत्र) का प्रयोग किया जाता था |  यद्यपि उस युग में  समय देखने के लिए घड़ियों की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी | उस समय प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के समय को गणित के द्वारा पहले ही पता कर लिया जाता था | जिस समय वह घटना घटित होने लगती थी, तब उतना समय हुआ है ऐसा मान लिया जाता था | उस युग में प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का समय घड़ियों में नहीं देखना पड़ता था प्रत्युत घड़ियों के समय का मिलान प्राकृतिक घटनाओं से किया जाता था |विश्वास था कि घड़ियों का समय आगे पीछे हो भी सकता है किंतु प्राकृतिक घटनाएँ अपने समय पर ही घटित होती हैं | इसलिए उन्हें ही प्रमाण माना जाता था | 

   एक घडी 24 मिनट(60पल) की होती है |उदक यंत्र में समय का मान घड़ियों में पता लगता था | इसीलिए उस यंत्र का नाम घड़ी रखा गया था | उस युग में दिन की शुरुआत सूर्योदय से ही मानी जाती थी | सूर्योदय के बाद  जितनी घड़ियाँ बीतती थीं | उतना समय हुआ है ऐसा माना माना जाता था |इसे ही इष्टकाल कहा जाता है | ज्योतिषी लोग कुंडली बनाते समय आज भी उसी इष्टकाल का प्रयोग करते हैं | 

   वर्तमान समय में जिसे कहा तो घड़ी कहा जाता है ,किंतु वो समय की जानकारी घंटों के रूप में देती है | इसलिए उसे घंटा कहा जाना चाहिए किंतु प्राचीनकाल से उसे घड़ी कहने का अभ्यास पड़ा हुआ है इसलिए उस घंटे को अभी भी घड़ी ही कहा जाता है | प्राचीन भारत में समय देखने के लिए घड़ी पल का ही प्रचलन था | इस प्रकार से घड़ी शब्द और यंत्र की खोज प्राचीनभारत में ही की गई थी |

     समय को पूछने बताने के लिए  कहा जाता है कि कितने बजे हैं या अभी इतने बजे हैं | सच्चाई ये है कि अब तो बजते नहीं हैं | प्राचीनकाल में जब उदकयंत्र से समय का पता लगाया जाता था | उस समय समाज को सूचित करने के लिए घंटे बजाए जाते थे | जब जितना समय होता था उतने घंटे बजाए जाते थे | जिन्हें सुनकर आपस में लोग चर्चा करते थे कि कितने बजे हैं तो दूसरे बताते थे अभी इतने बजे हैं| ये 'बजना' शब्द भी प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है | 

    विशेष बात ये है कि समय प्रत्यक्ष तो दिखाई नहीं पड़ता है| इसीलिए सुदूर आकाश में जहाँ कोई दृश्य दिखाई नहीं पड़ते हैं|वहाँ समय के गतिशील होने का पता भी नहीं लगता है| प्रकृति और जीवन में होने वाले  परिवर्तनों को देखकर ही समय के बीतने का अनुभव होता है | घड़ी यंत्रों से से ये पता लगना संभव नहीं है | कब अच्छा और कब बुरा समय चल रहा है|भविष्य में बुरे समय के प्रभाव से घटित होने वाली प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए ये पता करना होगा कि कब कैसा समय चलेगा !इस जानकारी को पाने के लिए प्राचीनकाल में 'कालज्ञानग्रहाधीनं' अर्थात समय का ज्ञान ग्रहों के आधार पर किया जाता था | सूर्य चंद्रादि ग्रहों के संचार के आधार पर न केवल समय के संचार के विषय में पता लगा लिया जाता था ! प्रत्युत अच्छे और बुरे समय के विषय में भी आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया जाता था |

                                        समयसंचार को समझे बिना विज्ञान अधूरा है !

      सुख सविधाओं को पाने, भोगने या उनके न  मिलने पर दुखी होने जैसा मूर्छित जीवन जीने वाले लोग प्रकृति से दिनोंदिन दूर होते चले जा रहे हैं |उन्हें न तो प्रकृति के संकेत समझ में आते हैं और न ही प्रकृति की पुकार पर ध्यान है | उन्होंने प्रकृति को निर्जीव समझकर उसके स्वभाव एवं सम्मान के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दिया है | 

    बहुत सारे जीव जंतु पशु पक्षी मनुष्य आदि प्रकृति के स्वभाव को समझते  हैं | उससे मिलने वाले संकेतों पर ध्यान देते हैं | उसके अनुसार उन्हें इस बात का अनुमान होने लगता है कि निकट भविष्य में कब कैसी घटनाएँ घटित होने वाली हैं वे उसी के अनुरूप व्यवहार करने लगते हैं | वर्षा ,तूफ़ान ,भूकंप या महामारी जैसी घटनाएँ घटित होने से पहले बहुत जीवों का स्वभाव व्यवहार आदि बदल जाता है | सर्प जैसे कुछ जीव ऐसे भी हैं जो मृत्यु का समय समीप आने पर एकांतवास एवं निराहार जीवन जीते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगते हैं | कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो जाती है |  

    प्रकृति के संकेत न समझ पाने के कारण ही प्राकृतिक घटनाओं के विषय में बहुत सारी निराधार कल्पनाएँ कर ली जाती हैं | जिनकी वास्तविकता हमेंशा संदिग्ध बनी रहती है | ऐसे रहस्यों को उदघाटिक किया जाना तभी संभव है जब समय गणित और प्रकृतिपरिवर्तनों के आपसी संबंध को समझा जाए और उसके भावी परिवर्तनों के विषय में सही पूर्वानुमान लगाए जाएँ | 

      प्रकृति और जीवन से संबंधित बहुत सारी घटनाओं को जलवायुपरिवर्तनजनित बता दिया जाता है | ऐसा होने के लिए मनुष्यों की जीवन शैली को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है |ऐसे ही महामारीजनित संक्रमण बढ़ने पर महामारी के  स्वरूपपरिवर्तन को दोषी बता दिया जाता है| ऐसे परिवर्तनों के लिए मनुष्यों की लापरवाही को जिम्मेदार  ठहरा दिया जाता है|यद्यपि ऐसा किया जाना कुछ काल्पनिक कारणों पर आधारित होता है |ऐसे प्रकरणों में यह सोचा जाना चाहिए कि ये परिवर्तन समय जनित भी तो हो सकते हैं | संभव है कि ऐसे परिवर्तन प्रकृति क्रम के अनुसार किसी निश्चित अवधि के बाद स्वाभाविक रूप से होते ही हों |जिन्हें अज्ञानता के कारण हम समझ पाने में असमर्थ हों |जिस प्रकार से प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्य का प्रकाश और ऊष्मा कम होती है मध्यान्ह काल में सबसे अधिक और सायंकाल फिर कम हो जाती है | 

     कल्पना कीजिए कि किसी के जीवन में यदि प्रातः मध्याह्न और सायंकाल जैसी घटना पहली बार घट रही हो तब तो ऐसा सोचा जाएगा कि प्रातः से मध्यान्ह काल तक सूर्य का प्रकाश और ऊष्मा यदि इतनी बढ़ सकती है तो इसी अनुपात में सायंकाल तक बढ़कर न जाने कितनी अधिक हो जाएगी | विशेष बात ये है कि जब तक हम इस विषय से अनजान रहेंगे तभी तक ऐसी अज्ञानजनित कल्पनाएँ की जा सकती हैं | इस रहस्य को समझते ही इस सच्चाई का पता लग जाता है कि मध्याह्न काल के बाद सूर्य का प्रकाश और ऊष्मा दोनों स्वयं ही ढलने लगेंगे  और सायंकाल में शांत हो जाएँगे | इसीप्रकार से जलवायुपरिवर्तन या  महामारी के  स्वरूपपरिवर्तन जैसी घटनाएँ स्वाभाविक एवं प्रकृतिक्रम के अनुसार घटित हो रही हैं | अपने अज्ञान के कारण हम इन्हें समझ नहीं पा  रहे हैं | ये अज्ञानजनित  भ्रम है |

    जिस प्रकार से किसी ताले को  उसकी अपनी चाभी की जगह किसी दूसरी चाभी से खोलने का प्रयत्न किया जा रहा हो और उस ताले के न  खुलने पर ताले में परिवर्तन हो गया है | इस प्रकार से जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन की तरह  ताले को ही दोषयुक्त सिद्ध किया जा रहा हो |

    वस्तुतः ये कमी न तो उस ताले की है और न ही उस चाभी की | ये कमी उस ताला खोलने वाले की है जो अज्ञानवश उस ताले को पहचाने बिना ही किसी चाभी से ताला खोल देना चाह रहा हो | उसकी वास्तविक चाभी को खोज न पा रहा हो | इसके साथ ही  लापरवाही उस शासक की भी है | जिसने किसी अयोग्य आदमी को विशेषज्ञ मानकर उसे इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंप रखी है |ये काम यदि इतना ही आसान होता तब तो कोई भी कर लेता ! इसीलिए तो विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है |

    विशेष बात है कि परिवर्तन कुछ स्वाभाविक और कुछ आकस्मिक होते हैं| जो परिवर्तन आकस्मिक होते हैं वो तो अहितकर हो सकते हैं किंतु स्वाभाविक परिवर्तनों को अहितकर कैसे कहा जा सकता है | आम के छोटे फल का रंग हरा स्वाद खट्टा होता है उसकी गुठली भी शक्त नहीं होती है | उसी फल के बड़े होने पर उसकी गुठलीशक्त रंग पीला और स्वाद मधुर हो जाता है | स्वाभाविक परिवर्तन तो प्रतिपल प्रकृति के कण कण में होते देखे जा रहे हैं | ऐसे परिवर्तन तो प्रत्येक व्यक्ति वस्तु परिस्थिति आदि में होते ही रहते हैं | उन्हें न तो अहितकर कहा जा सकता है और न ही दोष युक्त माना जा सकता है | उन्हें तो समझकर ही हम अपनी योग्यता सिद्ध कर सकते हैं यही उस विषय के विद्वान् की विशेषज्ञता होती है | जिससे संपन्न होने के कारण ही तो उसे उस विषय के वैज्ञानिक होने जैसा बड़ा सम्मान सुख सविधाएँ आदि प्रदान की जाती हैं | 

                                                                             कुछ आवश्यक एवं अनुत्तरित प्रश्न !

                                महामारी संक्रमण बढ़ने घटने में मौसम की भूमिका !

      कुछ वैज्ञानिक इस बात से भले सहमत नहीं हैं कि महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने में मौसम का  प्रभाव पड़ता है,जबकि वैज्ञानिकों के बड़े वर्ग को यह कहते सुना जाता रहा है कि महामारी जनित संक्रमण बढ़ने और घटने का कारण मौसम संबंधी घटनाएँ होती हैं| संभवतः इसीलिए महामारी संबंधी अनुसंधानों को करने  की प्रक्रिया में मौसमवैज्ञानिकों को सम्मिलित किया गया है |  वैज्ञानिकों के ऐसे दोनों प्रकार के वक्तव्यों से किसी निष्कर्ष पर पहुँचना संभव नहीं है| इससे कोई निष्कर्ष निकाला जाना तभी संभव है जब महामारी के घटने बढ़ने के विषय में मौसम के आधार पर पूर्वानुमान लगाया जाए यदि वो सही निकले तो मान लिया जाए कि महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता है अन्यथा नहीं पड़ता है | 

    इसी उद्देश्य से कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी का वेग बढ़ने घटने के जो पूर्वानुमान व्यक्त किए गए वे सही नहीं घटित हुए ! वैसे भी कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा वर्षा होने पर संक्रमण कम होने की बात कही गई थी,किंतु पहली लहर का पीक 18 सितंबर 2020  को जब आया था उस समय वर्षा ऋतु ही चल रही थी और दूसरी लहर जब आई उस समय वर्षाऋतु न होने पर भी वर्षा निरंतर होते देखी जा रही थी | वर्षा के प्रभाव से यदि संक्रमण कम होना होता तब तो उस समय संक्रमण बढ़ना ही नहीं चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हुआ |ऐसी स्थिति में महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने पर मौसम संबंधी प्रभाव पड़ता है या नहीं | ये तर्कों एवं साक्ष्यों के आधार  पर कहा   जाना अभीतक संभव नहीं हो सका है |

 तापमान बढ़ने घटने से घटता बढ़ता है महामारी संक्रमण ?

     कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा तापमान बढ़ने घटने का प्रभाव महामारी पर पड़ने की बात कही गई थी| जिसे मानकर कुछ लोगों ने अनावश्यक रूप से गर्म पानी से नहाना तथा गर्म पानी पीना आदि शुरू कर दिया था | वैज्ञानिकों के वक्तव्यों का अभिप्राय यह था कि तापमान बढ़ने पर महामारी संक्रमण कम होगा और तापमान कम होने पर  महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ेगा | इस हिसाब से ग्रीष्म(गर्मी)की ऋतु में महामारी संबंधी संक्रमण कम होना चाहिए था और हेमंत एवं शिशिर जैसी सर्दी की ऋतुओं में  बढ़ना चाहिए था |ऐसा कुछ हुआ नहीं !पहली लहर का पीक 18 सितंबर 2020  को जब आया था उस समय वर्षा ऋतु होते हुए भी ग्रीष्मऋतु की तरह ही तापमान काफी बढ़ा हुआ था |सामान्य वर्षों में ऐसा होते कम देखा जाता है | उस समय इतनी अधिक गर्मी थी | दूसरी लहर मार्च अप्रैल 2021 में जब आई उस समय बसंत और ग्रीष्मऋतुओं की संधि थी | ये कालखंड तापमान बढ़ने के लिए जाना जाता है | उस समय तापमान बढ़ने के प्रभाव से संक्रमण कम होना होता तो हो जाता,किंतु  ऐसा हुआ नहीं प्रत्युत संक्रमण काफी अधिक बढ़ गया था |ऐसी स्थिति में महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने - घटने पर तापमान बढ़ने -घटने का प्रभाव पड़ता है या नहीं | ये तर्कों एवं साक्ष्यों के आधार  पर कहा जाना अभीतक संभव नहीं हो सका है |

 क्या वायुप्रदूषण बढ़ने से बढ़ जाता है संक्रमण !

    महामारीजनित संक्रमण बढ़ने के लिए कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा वायुप्रदूषण बढ़ने को जिम्मेदार बताया  गया था | इसके आधार पर ऐसे कोई भी पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके जिन्हें सही निकलते देखा गया हो | वैसे भी देखा गया कि 2020 के अक्टूबर नवंबर महीने में वायु प्रदूषण तो बहुत अधिक बढ़ा हुआ था किंतु महामारी जनित संक्रमण बहुत तेजी से कम होता चला जा रहा था | इसके बिपरीत मार्च अप्रैल 2021 में महामारी की सबसे भयानक दूसरी लहर जब कहर ढहा रही थी | उस समय इस सीमा तक वायुप्रदूषण मुक्त  आकाश हो गया था कि पंजाब के अमृतशर से एवं बिहार के सीतामढ़ी से हिमालय के दर्शन होने लगे थे |नेपाल में स्थित हिमालय पर्वतमाला के नूनथड़ पहाड़ के पीछे बर्फ से ढंका एवरेस्ट भी दिखने लगा था ।इसलिए महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने पर वायु प्रदूषण बढ़ने का प्रभाव पढ़ता है या नहीं ये अनिश्चित ही है |

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 महामारी का विस्तार कितना है ?

   कोरोना काल में पृथ्वी पर बिचारण करने वाले मनुष्य उन्मादित थे | पशुओं में ऐसा पागलपन  सवार था कि किसानों की फसलें बर्बाद किए डाल रहे थे | आकाश में  उड़ने वाले पक्षी भी बेचैन थे | टिड्डियाँ आकाश ढके ले रही थीं |संपूर्ण कोरोना काल में विभिन्न देशों प्रदेशों में अचानक बहुत बड़ी संख्या में पक्षियों की मृत्यु होते देखी जा रही थी | बार बार आँधी तूफानों चक्रवातों बज्रपातों की घटनाएँ घटित होते देखी जा रही थीं |वायु प्रदूषण विशेष बढ़ रहा था |  ऐसे ही संपूर्ण कोरोना काल में समूचे विश्व के समुद्रों नदियों तालाबों में अचानक बड़ी संख्या में मछलियों की मृत्यु होते देखी जा रही थी |कोरोना काल में धरती के अंदर रहने वाले चूहे इतने अधिक उन्मादित हो गए थे कि ब्रिटेन आस्ट्रेलिया जैसे अनेकों देशों प्रदेशों में चूहों के कारण लोगों का जीना मुश्किल हो रहा था |धरती में बार बार भूकंप आते देखे जा रहे थे | 

   ऐसे सभी उपद्रव विशेषकर कोरोना काल में ही अधिक घटित हुए थे | ऐसी स्थिति में जल थल आकाश पाताल  समेत संपूर्ण पृथ्वी में जीव जंतुओं के साथ साथ मनुष्यकृत उपद्रव घटित होते देखे जा रहे थे | कुछ देश एक दूसरे पर हमला करते देखे जा रहे थे | कुछ देशों में आतंरिक  कलह के कारण हिंसक आंदोलन होते देखे जा रहे थे | ऐसी  समस्त घटनाएँ कोरोना काल में अचानक घटित होने लगने का कारण कोरोना महामारी से संबंधित था या कुछ और ! महामारी को समझने के लिए इसे समझा जाना आवश्यक है कि महामारी का प्रभाव केवल पृथ्वी पर ही है, या आकाश और पाताल भी महामारीजनित बिषैलेपन से प्रभावित हुए हैं |महामारी का विस्तारक्षेत्र अभी तक अघोषित है |

      महामारी का प्रसार माध्यम क्या है ?

      महामारी संक्रमितों के स्पर्श से फैलती है या इसके फैलने का कारण कुछ और ही है |बहुत साधन संपन्न लोग ऐसे हैं जिन्होंने संपूर्ण रूप से कोविड नियमों का पालन किया इसके बाद भी संक्रमित हुए | उन तक कोरोना संक्रमण कैसे पहुँचा होगा |

    कुछ देशों में फूलों फलों आदि खाद्य पदार्थों की जाँच किए जाने पर उनके अंदर महामारी के बिषाणुओं को पाया गया है | कुछ देशों में नदियों नालों तालाबों आदि के जलों को संक्रमित पाया गया है | कुछ देशों में पशुओं को संक्रमित होते देखा गया है |कुछ देशों में  कौवों चमगादड़ों आदि को संक्रमित होते देखा गया है |यदि ऐसा है तब तो बहुत आसानी से प्रसार हो सकता है क्योंकि खाए पिए बिना तो कोई रहा नहीं होगा |

    ऐसे ही कुछ देशों में पशुओं को भी संक्रमित पाया गया था |जिन पशुओं के दुग्ध का सेवन किया जा रहा था वे पशु यदि संक्रमित रहे होंगे तो उनका दुग्ध भी तो संक्रमित हुआ होगा | दुग्ध और दुग्ध संबंधी चाय आदि पीने खाने की चीजों का उपयोग तो हमेंशा होता ही रहा है |ये भी संक्रमण प्रसार का एक माध्यम हो सकता है |ये संशय अभी तक बना हुआ है कि कोरोना के प्रसार का माध्यम क्या रहा होगा |

       कैसा है महामारी का स्वरूप और उसमें परिवर्तन क्या हुआ !

     किसी भी रोगी की चिकित्सा करते समय सर्व प्रथम रोग और रोगी की प्रकृति पहचाननी होती है |उसका स्वरूप समझना होता है |उसी के अनुशार औषधि या चिकित्सा के विषय में निर्णय लिया जाता है |महामारी का वेग इतना अधिक होता है कि रोग और रोगी की प्रकृति पहचानने या स्वरूप समझने के लिए समय ही नहीं होता है |उस समय तो बचाव के लिए तुरंत प्रभावी प्रयत्न शुरू करने होते हैं |ऐसी स्थिति में जब रोग की प्रकृति और स्वरूप पता ही नहीं लगाया जा सका तो ये किस आधार पर कहा जा सकता है कि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो गया !ऐसा कहने के लिए महामारी के दोनों स्वरूपों को सामने रखना होगा कि पहले स्वरूप वैसा था किंतु अब ऐसा है | ऐसा किया नहीं जा सका ! 

     महामारी का वेग काफी अधिक होने के कारण उसकी प्रकृति और स्वरूप समझे बिना ही केवल लक्षणों के आधार पर रोगियों को  स्वस्थ करने के उद्देश्य से औषधियाँ देनी पड़ती हैं | रोग के विषय में कुछ भी पता न होने के कारण अंदाजे के आधार पर दी गई ऐसी औषधियों से रोगी को रोग मुक्ति मिलेगी या रोग और अधिक बढ़ जाएगा ! इस विषय में विश्वासपूर्वक कुछ भी कहा जाना संभव नहीं होता है| 

 महामारी के स्वरूपपरिवर्तन का  मतलब क्या !

    महामारी संबंधी संक्रमण प्राकृतिकरूप से कभी बढ़ने तथा कभी कम होने लगता है| संक्रमण बढ़ते समय बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होने लगते हैं और संक्रमण घटते समय अधिकांश संक्रमितों में सुधार तो प्राकृतिकरूप से होता है ,किंतु जो लोग कोई औषधि ले रहे होते हैं उन्हें लगता है कि उनके शरीरों में उसी औषधि के प्रभाव से सुधार हो रहा है | 

    ऐसे समय लोग स्वस्थ तो प्राकृतिक रूप से हो रहे होते हैं ,किंतु बहुत लोग स्वस्थ होने के लिए कोई न कोई उपाय भी कर रहे होते हैं | कुछ लोग औषधि ले रहे होते हैं !कुछ अपने अपने धार्मिक विश्वास के अनुशार कोई उपाय कर रहे होते हैं | वे सब अपने स्वस्थ होने का श्रेय अपने द्वारा किए जा रहे उपायों को देते हैं | चिकित्सालयों में भर्ती कुछ लोग चिकित्सा का लाभ ले रहे होते हैं | ऐसे समय उन्हें चिकित्सकों के द्वारा जो औषधियाँ दी जा रही होती हैं |उनके स्वस्थ होने का न केवल न केवल श्रेय उन औषधियों को दिया जाता है ,प्रत्युत उसी औषधि   को महामारी की प्रभावी औषधि  मानलिया जाता है |ऐसा भ्रम तब तक बना रहता है जब तक महामारी की दूसरी लहर नहीं आती है | 

    महामारी की दूसरी लहर आने पर जब संक्रमितों की संख्या अचानक तेजी से बढ़ने लगती है | ऐसे रोगियों पर तब उसी औषधि का प्रयोग किया जाता है जिसे पिछली बार महामारी से मुक्ति दिलाने वाली प्रभावी औषधि माना गया था | दूसरी लहर में जब उस औषधि से किसी रोगी को जब कोई लाभ नहीं होता है ,प्रत्युत संक्रमण तेजी से बढ़ता चला जा रहा होता है ,तब यह भ्रम टूट जाता है और सच्चाई सामने आ जाती है कि पहली लहर में प्राकृतिक रूप से स्वस्थ हुए लोगों को इस औषधि के प्रभाव से स्वस्थ हुआ गलती से मान लिया गया था | प्रत्यक्ष रूप से यह गलती स्वीकार किया जाना काफी कठिन होता है | इसलिए इस औषधि के विषय में हमारा अनुमान गलत निकला ऐसा न कहकर यह कह दिया जाता है कि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो जाने के कारण उस प्रभावी औषधि का इन संक्रमितों पर प्रभाव नहीं पड़ रहा है | सच्चाई ये है कि महामारी संक्रमितों पर उस औषधि का प्रभाव न उस समय पड़ा होता है और न ही अबकी बार पड़ा है | प्राकृतिक रोगों में ऐसा भ्रम होते हमेंशा  से देखा जाता रहा है |वैसे भी जब महारोग और रोगी की प्रकृति एवं स्वरूप पहचाना ही न जा सका हो तो उसकी चिकित्सा के  विषय में विश्वास पूर्वक कुछ कैसे कहा जा सकता है| 

   ऐसी स्थिति में यह पता लगाया जाना आवश्यक है कि उन औषधियों से पहली बार कोई लाभ हुआ था या नहीं !यदि हुआ था तो दूसरी बार उनसे लाभ न होने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन था या कुछ और !यदि स्वरूप परिवर्तन था तो पहले क्या स्वरूप था और बाद में उसमें किस प्रकार का ऐसा क्या बदलाव आया जिससे उन औषधियों से कोई लाभ नहीं हुआ ?                                   

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                      कोविडनियमों का पालन न करके भी कुछ लोग संक्रमित नहीं हुए ?

      नगरों महानगरों में गरीबों के बच्चे भोजन के लिए लाइनों में लगे रहे !जहाँ जिसने जो जैसा दिया वही खा या पहन लेते रहे ! शहरों में फल और सब्जी वाले  लोग  संपूर्ण कोरोनाकाल में  फल सब्जी बेचते रहे !   संपन्न लोगों के यहाँ नौकरी करने वाले लोग उनके यहाँ न केवल फल सब्जी पहुँचाते रहे प्रत्युत उनके संक्रमित होने पर उन्हें लेकर अस्पताल जाते रहे उनके पहने हुए कपड़े लेकर घर आते रहे | कोरोना संक्रमण से मृत्यु होने पर पुजारी क्रियाकर्म कराने जाते रहे ! उनका स्पर्श किया हुआ किया समान भी लेते रहे !घनी बस्तियों में या बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों में आवासीयसंस्थाओं आश्रमों एवं अनाथाश्रमों आदि में जहाँ कहीं भी सामूहिक रहन सहन खानपान सोना जागना आदि होता रहा ! वहाँ ऐसा भी देखा गया कि उनमें से कुछ लोग संक्रमित हो भी गए तो उन्हीं के साथ रहने सोने जागने खाने पीने वाले लोग तो संक्रमित नहीं हुए |ऐसे ही दिल्ली मुंबई सूरत आदि से पलायित श्रमिक ,दिल्ली में किसानआंदोलन में सम्मिलित लोग, बिहार और बंगाल की चुनावी रैलियाँ एवं हरिद्वार में आयोजित कुंभमेला ऐसे सभी स्थानों पर भारी भीड़ें उमड़ीं वहाँ कोविड नियमों का पालन संभव ही न था |      

     कोविडनियमों के न पालन करने से कोरोनासंक्रमण  बढ़ता है |ऐसा मानने वाले  वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसी आशंका भी व्यक्त की गई थी कि ऐसे स्थानों पर कोविड नियमों का पालन न करने के कारण संक्रमितों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाएगी !किंतु ऐसा कुछ न करके भी वे सभी स्वस्थ बने रहे | 

                           कोरोना बाहर से आया या शरीरों के अंदर ही पैदा हुआ !   

      कोरोनाविषाणुओं को हवा में भी पाया गया था ! यदि छुआछूत को संक्रमण के प्रसार का माध्यम मान लिया जाए तो कोरोना हवा में कैसे पहुँचा उस माध्यम को भी खोजा जाना चाहिए |कोरोना प्राकृतिक वातावरण से साँस के साथ मनुष्यों के अंदर पहुँचा या फिर मनुष्यों से साँस के साथ प्राकृतिक वातावरण में पहुँचा | 

      एक देश विशेष में की गई रिसर्च के अनुसार कहा गया कि कोरोना वायरस जंगल से इंसानों के बीच कस्तूरी बिलाव, चूहे और रैकून कुत्तों के जरिये पहुँचा। इस पर प्रश्न उठता है कि ऐसे जीवों को यह वायरस कहाँ से मिला और उनसे मनुष्यों में कैसे पहुँचा !  

    इसके समर्थन में तर्क दिए जाते हैं कि कोरोना एक दूसरे के संपर्कों से फैलता है | यदि ऐसा है तो लॉकडाउन जैसे कोविड नियमों का कठोर पहरा बैठाकर लोगों को एक दूसरे के  संपर्क में नहीं आने दिया गया ! उस समय तो संक्रमण रुक जाना चाहिए था किंतु उसके बाद भी लोग महामारी से संक्रमित होते देखे जाते रहे हैं |इसलिए ऐसी शंकाएँ उठनी स्वाभाविक ही हैं कि ऐसा किया जाना विश्ववैज्ञानिक जगत का भ्रम ही तो नहीं था |

     एक बात यह भी है कि तंजानियाँ जैसे कुछ देशों में फलों की जाँच किए जाने पर उनके आतंरिक भाग कोरोना संक्रमित पाए गए ! चारों ओर  से पूरी तरह बंद पपीता आदि फलों का आतंरिक भाग बाह्य कारणों से कैसे संक्रमित हो सकता है |उसमें तो बाहरी हवा या पानी का प्रवेश संभव ही नहीं था| इसलिए स्पर्श के कारण तो कोरोना उसमें प्रवेश कर ही नहीं सकता था,तो उसके अंदर कोरोना कहाँ से आया होगा !

    ऐसे ही एक गर्भस्थ शिशु को कोरोना था जबकि उसके माता पिता को कोरोना कभी हुआ ही नहीं था | 24 मई 2021 को बीएचयू अस्पताल में भर्ती हुई महिला की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई,जबकि उसने जिस बच्ची को जन्म दिया। उसका कोरोना टेस्ट कराया गया तो कोरोना संक्रमित पाई गई ! यदि पति पत्नी समेत परिवार के किसी सदस्य  को कोरोना कभी हुआ ही नहीं था,तो उनकी गर्भस्थ बच्ची में कोरोना संक्रमण कैसे पहुँचा !ऐसी ही एक घटना दक्षिण भारत की भी सुनी गई थी | 

      ऐसी परिस्थिति में जिस प्रकार से बिना किसी प्रत्यक्ष माध्यम के चारों ओर से बंद पपीता आदि फलों के अंदर  महामारी संबंधी बिषाणु पहुँच सकते हैं| उसी प्रकार से खाने पीने की वस्तुओं में ,औषधियों एवं औषधीय द्रव्यों से  कोरोना पहुँच सकता है |

     ऐसे ही जिस प्रकार से गर्भस्थ शिशु के अंदर ऐसे बिषाणु पहुँच सकते हैं |उसी प्रकार से सभी मनुष्यों के अंदर सबका अपना अपना कोरोना पैदा हो सकता है| ऐसे ही सभी प्राणियों के अंदर भी कोरोनाबिषाणु स्वयं ही पैदा हो सकते हैं|ऐसे ही लोगों के मुख की साँस के आवागमन से  यदि हवा में बिषाणु पहुँच सकते हैं तो उसी हवा में साँस लेने के कारण हवा से दूसरे मनुष्यों के अंदर भी प्रवेश कर सकते हैं|खाने पीने की वस्तुओं से संक्रमण पहुँच सकता है|औषधियों एवं औषधीय द्रव्यों से कोरोना पहुँच सकता है|

   ऐसी स्थिति में महामारी के बिषाणु यदि मनुष्यों के अंदर ही पैदा हुए हों | वे मनुष्य जो कुछ खा पी रहे थे वो भी संक्रमित था | जिससे संक्रमण और बढ़ रहा था | वो जिस हवा में साँस ले रहे थे वो हवा संक्रमित थी | जो उस संक्रमण को बढ़ाने में सहायक हो रही थी |महामारी जनित संक्रमण से संक्रमित होने के कारण संक्रमितों को दी जाने वाली औषधियाँ बनस्पतियाँ आदि भी संक्रमित हो सकती थीं |जिनके सेवन से कोरोना संक्रमितों को रोगमुक्ति दिलाने के लिए प्रयत्न किए जा रहे थे |                                               

        ऐसा बिचार करके मैंने ऐसे सभी विषयों में आवश्यक जानकारियाँ जुटाकर उनके आधार पर महामारी को समझने के लिए प्रयत्न किया है |प्राचीन गणितविज्ञान आधार पर महामारी के विषय में मैं जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाता रहा हूँ | वे सही निकलते रहे हैं | प्रत्येक लहर के विषय में मैंने अभी तक जो जो पूर्वानुमान लगाए हैं वे सही निकलते रहे हैं |वे तारीखों के साथ पीएमओ की मेल पर भेजता रहा हूँ |

       सोचने वाली बात है कि यदि फलों के अंदर कोरोना के बिषाणु पाए गए हैं | गर्भिणी एवं उसके पति को कभी कोरोना न होने पर भी उसके गर्भस्थ शिशु को संक्रमित पाया गया है |ऐसे स्थानों पर बिषाणुओं के पहुँचने का कोई प्रत्यक्ष कारण दिखाई न देने पर ये आशंका होनी स्वाभाविक ही है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि कोरोनासंक्रमण शरीरों के अंदर आतंरिक कारणों से ही पैदा होता हो ! संभव है कि कोरोना महामारी प्रकृति में हुए किसी बड़े परिवर्तन का ही अंश हो ! इसलिए मनुष्य शरीरों में कोरोना संक्रमण कहीं बाहर से आ रहा था या कि शरीरों के अंदर ही पैदा हो रहा था | इस रहस्य को सुलझाया जाना बहुत आवश्यक है |कोविड नियमों का पालन करने बाद भी  लोगों का  कोरोना संक्रमित होना भी यही सिद्ध करता है | ऐसे कोई प्रामाणिक या अनुभवजनित साक्ष्य घोषित नहीं किए जा सकें हैं जिनके आधार पर यह कहा जाना संभव हो कि कोविड नियमों का पालन करने वाले महामारी जैसे संक्रमण से सुरक्षित हो जाते हैं | 


कोरोना का प्रसार कैसे होता था !

       कोरोना संक्रमितों के स्पर्श से ही कोरोना फैलता होगा यदि इसे सच मान लिया जाए तो उस पहले व्यक्ति में कोरोना कहाँ से आया होगा | जिसने किसी संक्रमित व्यक्ति को छुआ ही नहीं था फिर भी सबसे पहले संक्रमित हुआ था | दूसरी बात विश्व को यह तो पता चल ही गया था कि किसी देश विशेष में ऐसी किसी महामारी ने जन्म ले लिया है | उसका प्रसार प्रारंभ हो गया है |ऐसी स्थिति में चिकित्सा की दृष्टि से अत्यंत उन्नत साधनों से संपन्न अमेरिका जैसे देश उस देश विशेष से दूरी बनाकर अपने को सुरक्षित क्यों नहीं रख सखे | कुछ अन्य देश भी अपने संसाधनों के बलपर अपने को सुरक्षित रख सकते थे, किंतु ऐसा क्यों नहीं किया जा सका !


महामारी पीड़ितों पर नहीं पड़ रहा था औषधियों का प्रभाव ! 

     चिकित्सा में प्रयोग की जाने वाली औषधियाँ कितनी शुद्ध थीं|ऐसी शंका होनी इसलिए स्वाभाविक है | क्योंकि महामारीजनित संक्रमण यदि फलों के अंदर तक पहुँच सकता है तो उन बनस्पतियों ,औषधियों या निर्मित औषधियों के भी आतंरिक भाग में प्रविष्ट होकर उन औषधियों के चिर प्रतिष्ठित गुणों में भी बिकार उत्पन्न कर सकता है | इससे जिन रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए जो ओषधियाँ जानी जाती रही हैं | उन रोगों पर उन औषधियों का अब वैसा प्रभाव पड़ना संभव नहीं होगा जैसा पहले पड़ता रहा है|ऐसी स्थिति में जिन औषधियों का प्रयोग करके जिसप्रकार के रोगों से मुक्ति दिलाई जाती रही है |उन  औषधियों में बिकार आ जाने के कारण अब उस प्रकार का प्रभाव उनमें नहीं रहेगा जैसा पहले था |उस प्रकार के रोगियों पर जब उन औषधियों का प्रयोग किया जाएगा तो उनसे लाभ नहीं होगा ! ऐसी स्थिति में औषधियाँ देखने में वैसी ही लगती हैं | इसलिए उन पर तो संशय होता नहीं है,प्रत्युत रोग पर संशय होने लगता है कि यदि यह वही रोग होता तो उन औषधियों से लाभ मिलना चाहिए था !किंतु ऐसा न होने से लगता है कि महारोग का स्वरूप परिवर्तन हो गया है | इसलिए ऐसी औषधियों का  गुणपरिवर्तन एवं महामारी के स्वरूप परिवर्तन का संयुक्त अनुसंधान करके यह पता लगाया जाना चाहिए कि महामारी से संक्रमितों पर औषधियों का प्रभाव न पड़ने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन था या औषधियों का  गुणपरिवर्तन !

लोग महामारी के कारण रोगी हुए या प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण !

      महामारी काल में संक्रमित होने का कारण प्रतिरोधक क्षमता की कमी को बताया जाता रहा है|इसका मतलब ये हुआ कि प्रतिरोधक क्षमता के मजबूत होने से संक्रमित होने का भय कम रह जाता है | इसीलिए जिनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रही वे संक्रमित ही नहीं हुए ! इनसे भी अधिक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग संक्रमितों के बीच रहकर भी संक्रमित नहीं हुए !इन दोनों से अधिक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग संक्रमितों के साथ रहकर भी स्वस्थ बने रहे !उन्हें वैक्सीन आदि औषधियों की भी आवश्यकता नहीं पड़ी |इन तीनों से भी अधिक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों ने तो न कोविड नियमों का पालन किया और न वैक्सीन आदि औषधियों का ही सेवन किया !संक्रमितों के बीच भी निर्भीक घूमते रहे फिर भी वे बिल्कुल संक्रमित नहीं हुए |

    इसका मतलब क्या यह हुआ लोगों के संक्रमित होने का कारण महामारी न होकर प्रत्युत प्रतिरोधक क्षमता की कमजोरी थी |क्या ऐसा भी संभव है कि देशवासियों की प्रतिरोधक क्षमता यदि मजबूत होती तो देशवासियों  को कोरोना महामारी से कोई भय ही नहीं होता |प्रतिरोधक क्षमता के बलपर क्या देश और समाज को महामारी मुक्त बनाए रखा जा सकता है |इस विषय में अनुसंधान पूर्वक कोई निश्चित उत्तर खोजा जाना चाहिए ! जो भविष्य के लिए हितकर होगा |

प्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ती है ?

      बताया जाता है कि स्वास्थ्य के अनुकूल पौष्टिक खाने पीने से,समय से टीके लगवाने से,टॉनिक पीने,बिटामिन  सेवन करने से, वातानुकूलित सुविधा पूर्ण शयन कक्षों में सुखद बिछौनों पर सोने आदि से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है| साधन संपन्न लोगों के यहाँ तो ये सारी सुविधाएँ होती ही हैं | वहाँ तो बच्चों का जन्म भी चिकित्सकों के हाथों में होता है|चिकित्सकों के द्वारा बताए गए टीके,टॉनिक,बिटामिन आदि का समय से सेवन किया जाता है|चिकित्सकों के द्वारा निर्द्धारित किए गए रहन सहन खानपान आदि का अनुपालन होता रहा है|इस वर्ग ने चिकित्सकों के द्वारा बताए गए कोरोना नियमों का पालन बड़ी कठोरता से किया है |ऐसा करने में इनकी कोई मजबूरी भी नहीं थी | ऐसे साधन संपन्न लोग बड़ी बड़ी कोठियों के एकांत कमरों में रहकर अपने पारिवारिक चिकित्सकों से सलाह लेते बने रहे | आवश्यक सामान  कर्मचारी लोग समय से पहुँचाते रहे |इन सबसे उस साधनसंपन्न वर्ग की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जानी चाहिए थी,किंतु  यदि ऐसा हुआ होता तो साधन संपन्न वर्ग संक्रमित नहीं होता !किंतु यह वर्ग गरीबों की अपेक्षा अधिक संक्रमित हुआ है| इसका कारण खोजा जाना अत्यंत आवश्यक है |प्रतिरोधक क्षमता के द्वारा कोरोना महामारी से बचाव हो सकता या नहीं !यदि हो सकता है तो हुआ क्यों नहीं !दूसरी बात ऊपर कहे गए पौष्टिक खान पान आदि से प्रतिरोधक क्षमता  बढ़ती है या नहीं |यदि बढ़ती है तो ऐसे लोगों की बढ़ी क्यों नहीं और यदि नहीं बढ़ती है तो फिर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती कैसे है ? 

प्रतिरोधकक्षमता से मृत्यु को टालना संभव है क्या ? 

    महामारीकाल में कुछ लोग स्वस्थ बने रहे !माना गया कि उनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रही होगी |कुछ लोग संक्रमित होने बाद स्वस्थ हो गए ! माना गया कि इनकी प्रतिरोधक क्षमता पहले कमजोर रही होगी तब संक्रमित हुए बाद में मजबूत हो गई तो स्वस्थ हो गए | विशेष बात यह है कि जो लोग संक्रमित होने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो गए !क्या ऐसी घटनाएँ भी प्रतिरोधक क्षमता की कमी के कारण घटित हुई हैं | प्रतिरोधक क्षमता यदि मजबूत होती तो क्या मृत्यु होने जैसी घटनाएँ टाली जा सकती थीं |दूसरी बात जो लोग संक्रमित हुए बिना ही हँसते खेलते नाचते गाते बात करते उठते बैठते खाते पीते पूजा पाठ करते समय अचानक मृत्यु को प्राप्त हो गए |ऐसे लोगों की मृत्यु तो हुई किंतु वे संक्रमित नहीं हुए | ऐसे लोगों की प्रतिरोधक क्षमता यदि कमजोर थी तो वे संक्रमित क्यों नहीं हुए और यदि प्रतिरोधक क्षमता मजबूत थी इसलिए संक्रमित नहीं हुए ! ऐसी स्थिति में प्रतिरोधक क्षमता यदि मजबूत ही थी तो उनकी मृत्यु होने का कारण क्या था ? अनुसंधान पूर्वक तर्क संगत ढंग से इस रहस्य को उद्घाटित किए जाने की आवश्यकता है | 

मृत्यु होने का कारण रोग होता है या दुर्घटनाएँ !

   महामारी में कुछ लोग संक्रमित हुए |उनमें से कुछ लोगों की मृत्यु हो गई | ऐसी मौतों के लिए महामारी से संक्रमित होने को जिम्मेदार मान लिया गया ! कुछ रोगियों को चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया ! उन सभी की पूर्ण सतर्कता पूर्वक अच्छी से अच्छी चिकित्सा की गई ,फिर भी उनमें से कुछ  लोगों की मृत्यु हो गई जिसके लिए चिकित्सकीय लापरवाही को जिम्मेदार मान लिया गया | किसी स्थान पर कोई दुर्घटना घटित हुई | उसकी चपेट में आने पर भी कुछ लोगों को खरोंच भी नहीं आई !कुछ घायल हुए ! उनमें से कुछ घायलों की मृत्यु हो गई | ऐसी मौतों के लिए उस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है | 

     इसमें विशेष बात ये है कि संक्रमितों की मृत्यु का कारण यदि महामारी होती तो सभी संक्रमितों की मृत्यु होती !ऐसे ही चिकित्सकीय लापरवाही से मृत्यु होती तो उन सभी की होती जिनकी  एक जैसी चिकित्सा की गई थी | दुर्घटना से मृत्यु होती उन सभी की होती जो एक ही दुर्घटना के शिकार हुए थे !ऐसी स्थिति में महामारी के समय हुई इतनी अधिक मौतों का कारण क्या था ये इसलिए पता लगाया जाना आवश्यक है | महामारी के समय हुई इतनी अधिक मौतों के लिए क्या वास्तव में महामारी ही जिम्मेदार थी या कुछ और !यदि और तो वह और क्या था !उस और से बचाव किया जा सकता है क्या यदि हाँ तो कैसे ?

 मृत्यु होने का कोई कारण होना आवश्यक है क्या ?

    कोई रोग हुए बिना या किसीप्रकार की चोट लगे बिना भी कुछ लोग अचानक मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | महामारी  के समय और उसके बाद में भी ऐसा हुआ |रोगी होने के बाद संभव है कि शरीर अधिक दुर्बल होकर प्राणों को धारण करने लायक न रहे |ऐसे ही किसी दुर्घटना का शिकार होने से संभव है कि शरीर प्राणों को धारण करने लायक ही न बचे | ऐसे मृत्यु होने पर कारण प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा होता है | इसलिए उन घटनाओं को मृत्यु का कारण माना जा सकता है,परंतु जो लोग संक्रमित हुए बिना ही हँसते खेलते नाचते गाते बात करते उठते बैठते खाते पीते पूजा पाठ करते समय अचानक मृत्यु को प्राप्त हो गए |उनकी मृत्यु का प्रत्यक्षकारण दिखाई न देने पर उनकी मृत्यु के लिए किसे जिम्मेदार माना जाना चाहिए | ऐसे लोगों की मृत्यु के लिए जो कारण जिम्मेदार हो सकता है | वही कारण रोगी एवं दुर्घटनाग्रस्त लोगों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार क्यों नहीं हो सकता है |जो भी हो किंतु किसी की मृत्यु होने का वास्तविक कारण खोजे बिना इस बात को स्पष्ट किया जाना कैसे संभव है कि किसकी मृत्यु का कारण क्या है | मृत्यु के कारण को अच्छी प्रकार से समझे बिना महामारी के समय हुई मौतों के लिए महामारी को किस आधार पर जिम्मेदार ठहराया जा सकता है |जिस प्रकार से रोग का कारण समझे बिना चिकित्सा की जानी संभव नहीं है,उसी प्रकार से  मृत्यु का वास्तविक कारण पता लगाए बिना लोगों के जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए प्रभावी प्रयत्न किया जाना कैसे संभव है |

 मृत्यु होने का कारण समय भी हो सकता है क्या ?

   भारत का प्राचीन परंपरा विज्ञान किसी की मृत्यु  होने का कारण उसका अपना समय मानता है | उसकी मान्यता यहाँ तक है कि कोई ऐसा रोग या कोई ऐसी दुर्घटना जिससे मृत्यु होनी होती है | इसकी चपेट में वही व्यक्ति आता है जिसकी अपनी आयु पूरी हो चुकी होती है | इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि कई बार अधिक संख्या में लोग अचानक रोगी होने लगते हैं |जिनकी मृत्यु का समय नहीं आया होता है | ऐसे रोगी  स्वस्थ हो जाते हैं | उन रोगियों में कुछ रोगी ऐसे भी होते हैं,जिनकी आयु उसी समय पूरी हुई होती है |इसलिए उनकी मृत्यु हो जाती है |मृत्यु आयु पूरी होने के कारण होती है किंतु आयु पूरी होना परंपरा विज्ञान में तो माना जाता है किंतु आयु पूरी होते प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ता है |इसलिए विज्ञान आयु पूरी होने को मृत्यु का कारण न मान कर उनके रोगी होने या दुर्घटनाग्रस्त होने जैसे प्रत्यक्षकारण को मृत्यु के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है |   

     कुछ रोगियों को चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया जाता है ! उनमें से कुछ रोगियों की आयु पूरी हो चुकी होती है| इसलिए पूर्ण सतर्कता के साथ अच्छी से अच्छी चिकित्सा तो उन सभी रोगियों की गई होती है ,किंतु स्वस्थ वही होते हैं जिनकी आयु पूरी नहीं हुई होती है | जिनकी आयु पूरी हो गई होती है अच्छी से अच्छी चिकित्सा का लाभ लेकर भी वे स्वस्थ नहीं हो पाते हैं | उनकी मृत्यु हो ही जाती है | आयु पूरी होना प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ने के कारण  चिकित्सा में लापरवाही को जिम्मेदार कारण मान लिया जाता है |

    ऐसे ही किसी स्थान पर जिस समय कोई दुर्घटना घटित हुई | वहाँ उपस्थित लोगों में से कुछ लोग उस दुर्घटना के शिकार हो गए हों | उन घायलों में से  कुछ की मृत्यु का समय भी तभी आ पहुँचा हो !इसलिए उन लोगों की मृत्यु तो समय के प्रभाव से उसी समय हो जाती है | समय का प्रभाव प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ता है | दुर्घटना प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रही होती है | इसलिए ऐसी मौतों का प्रत्यक्ष कारण उस दुर्घटना को मान लिया जाता है |

  इसी प्रकार से जिस समय महामारी आई उसी समय कुछ लोगों की मृत्यु का समय आ पहुँचा होगा | जिनकी मृत्यु का समय आया | इसलिए उन  लोगों की मृत्यु तो समय प्रभाव से हुई होगी ,किंतु ऐसी मौतों के लिए महामारी को जिम्मेदार मान लिया जाता है ! 

    कुल मिलाकर मृत्यु होने का कारण यदि समय ही होता है तो महामारी के समय इतनी बड़ी संख्या में लोगों की आयु पूरी होने का कारण क्या था | ये अनुसंधानपूर्वक पता लगाया जाना चाहिए | 

मृत्यु होने का कारण  केवल शरीर ही तो नहीं होता है !

    परंपरा विज्ञान की दृष्टि से तो किसी की मृत्यु होने या न होने में शरीर के साथ साथ प्राणों और आत्मा की भी भूमिका होती है| शरीर के साथ प्राण आत्मा आदि का संयोग जब तक रहता है तब तक जीवन रहता है और जैसे ही प्राण आत्मा आदि शरीर से निकल जाते हैं वैसे ही मृत्यु हो जाती है | यह सच है कि शरीर के नष्ट होते ही प्राण आत्मा आदि शरीर को छोड़ देते हैं किंतु शरीर के संपूर्ण रूप से सुरक्षित रहते हुए भी जिनकी मृत्यु अचानक हो जाती है |ऐसे स्वस्थ एवं सुरक्षित शरीरों को भी प्राण आत्मा आदि छोड़कर जाने का कारण क्या होता है | प्राण आत्मा आदि के छोड़कर  जाने की उनकी अपनी कोई परिस्थिति होती है ! जिसके कारण ऐसे शरीरों में उन्हें घुटन होने लगती है और ऐसे शरीरों में उनका रह पाना कठिन हो जाता है !उनके शरीरों में कोई बिकार आ जाता है या मन में कोई बिकार आ जाता है ! ऐसी भी संभावना हो सकती है क्या कि किसी अप्रत्यक्ष शक्ति के निर्देश के अनुशार ही उन्हें शरीरों में रहना या छोड़ना होता है |प्राण और आत्मा को किसी चिकित्सा के बलपर क्या किसी शरीर से बाँध कर रखा जाना संभव है यदि नहीं तो ये कैसे कहा जा सकता है ,कि अमुक व्यक्ति को यदि समय से चिकित्सा मिल जाती तो उसकी मृत्यु नहीं होती ! कुलमिलाकर  प्राण और आत्मा के संचार को ठीक ठीक समझे बिना ये कैसे कहा जा सकता है कि किसकी मृत्यु होने का कारण क्या है ?इसलिए अनुसंधानों के आधार पर मृत्यु के रहस्य को सुलझाया जाना चाहिए | जिससे यह पता लगाया जा सके कि किसकी मृत्यु महामारी से हुई है या किसकी मृत्यु का समय ही आ गया था |क्या लौकिक प्रतिरोधक क्षमता के बलपर वो अलौकिक क्षमता  विकसित की जा सकती है | जिससे मनुष्य के स्वस्थ रहने के साथ साथ प्राण रक्षा भी हो सके |

धर्म कर्म से जुड़े लोगों का भी होता रहा महामारी से बचाव !

      किसान मजदूर गरीब ग्रामीण एवं रिक्साचालक, शहरों में फल सब्जी बेचने वाले आदि मजबूरीबश कोविड नियमों का पालन न करके भी साधन संपन्न वर्ग की अपेक्षा कम संक्रमित हुए हैं होते देखा गया | इसका कारण ये माना जा सकता है कि वे परिश्रम अधिक करते हैं | इसलिए उनके शरीर अधिक मजबूत हो चुके हैं |प्रश्न उठता है कि साधू संतों आदि धर्म कर्म से जुड़े लोगों को भी अपेक्षाकृत कम संक्रमित होते देखा गया है |माना जा सकता है कि वे अपने अपने आश्रमों में एकांतबास करते रहे | इसलिए कम संक्रमित हुए होंगे |यजमानों के यहाँ दुर्भाग्यवश किसी की मृत्यु होने पर महामारी काल में भी पंडितों पुजारियों ने घर घर जाकर श्राद्ध आदि कर्म करवाए हैं ,फिर भी औरों की अपेक्षा वे बहुत कम संख्या में संक्रमित हुए हैं |ऐसे ही श्मशानों में अंत क्रिया करवाने वाले पंडा लोग भी कम संक्रमित हुए हैं | ऐसे लोंगों  का संक्रमित होने से बचाव होने का वास्तविक कारण क्या हो सकता है | ये अनुसंधान पूर्वक पता लगाया जाना चाहिए |

गरीबों ग्रामीणों किसानों  और श्रमिकों पर कम रहा महामारी का प्रभाव !

      साधन संपन्न वर्ग की अपेक्षा  किसानों मजदूरों श्रमिकों में कोरोना संक्रमण का प्रभाव कम पड़ा ! श्रमिकलोग अपने अपने गाँव जाने के लिए जब दिल्ली मुंबई सूरत आदि शहरों से निकले उस समय कोविड नियमों का पालन संभव न था ! उस समय विशेषज्ञों को यह कहते सुना गया था कि ये श्रमिक जहाँ जहाँ जाएँगे , वहाँ वहाँ बहुत तेजी से संक्रमण फैलेगा !किंतु वे सब अपने अपने गाँवों में सकुशल पहुँचे और सभी स्वस्थ बने रहे !बिहार बंगाल की चुनावी रैलियों के समय भी ऐसी आशंका जताई गई थी ! दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के समय भी ऐसा अनुमान किया गया था !हरिद्वार के कुंभ मेले के विषय में भी ऐसा कहा गया था | महानगरों में फल और सब्जी वालों के विषय में भी यही आशंका जताई जा रही थी !किंतु इसप्रकार की आशंका अंदाजे अनुमान आदि सही नहीं निकले और वे लोग स्वस्थ एवं सुरक्षित बने रहे !जबकि इसी आशंका के कारण कोविडनियमों को अनिवार्य बनाया गया था | बचाव के उद्देश्य से ही लॉकडाउन लगाया गया था | ऐसी आशंकाएँ कितनी उचित थीं !ये केवल अंदाजा ही था या ऐसे अनुमानों का कोई वैज्ञानिक आधार भी था और वो क्या था ! उस अनुमान के सच न निकलने का  अनुसंधान जनित कारण क्या था|भविष्य की सुरक्षा के लिए अनुसंधान पूर्वक इसका सच सामने लाया जाना चाहिए |       

                                        प्राकृतिक रोगों की चिकित्सा और भ्रम !

      ऐसी परिस्थिति में रोग और रोगी के विषय में वास्तविक जानकारी न होने पर चिकित्सा से लाभ होगा या फिर नहीं होगा बात केवल इतनी ही नहीं है ,प्रत्युत कई औषधियों के भयंकर दुष्प्रभाव भी होते देखे जाते हैं | ऐसी स्थिति में महामारी जनित बड़ी बड़ी समस्याएँ जहाँ एक ओर डरा रही होती हैं | वहीं आधी अधूरी कच्ची पक्की जानकारी के आधार पर की गई चिकित्सा के दुष्प्रभाव भी कई बार भुगतने पड़ते हैं | महारोग से पीड़ितों के शरीर दुर्बल वैसे भी होते हैं | ऐसे दुष्प्रभावों को सह पाना उनके लिए न केवल कठिन होता प्रत्युत कई बार असंभव भी होता है | जिसके बड़े दुष्प्रभाव भी देखने को मिलते हैं | 

      इसलिए सही तथ्यों के बिना किसी ऐसी औषधि को रोगविशेष की औषधि मान लेना उचित  नहीं है जो उस रोग की औषधि ही न हो | कोरोना महामारी के समय में प्लाज्मा थैरेपी इसी का उदाहरण है |जिसे पहले औषधि माना गया बाद में चिकित्सा प्रक्रिया से अलग कर दिया गया | ऐसी स्थिति के पैदा होने का कारण यह है कि जिन लोगों को पहले प्लाज्मा दी गई थी |उसके बाद कुछ लोग स्वस्थ होते देखे गए थे | वे प्लाज्मा लेने के बाद स्वस्थ हुए थे, किंतु प्लाज्मा के प्रभाव से स्वस्थ नहीं हुए थे |वे स्वस्थ प्राकृतिक रूप से ही हुए थे |जिसे भ्रमवश प्लाज्मा का प्रभाव समझकर प्लाज्माप्रयोग को संक्रमितों की चिकित्सा के लिए  उचित माना गया था |  

      ऐसी स्थिति में जिन वैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर जिस औषधि को  पहले महामारी से मुक्ति दिलाने वाली औषधि माना गया था | दूसरी लहर के समय महामारी में ऐसा क्या बदलाव दिखा जिसके कारण उन औषधियों से दूसरी लहर में लाभ नहीं हुआ | स्वास्थ्य लाभ क्यों नहीं हुआ यह खोजने के बजाए इस लाभ न होने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन मान लिया गया | ऐसा मानने  के पीछे अनुसंधान जनित कुछ साक्ष्य भी हैं | 

                                                  मृत्यु का रहस्य क्या है ?

    कौन रोगी होगा किसकी होगी मृत्यु समझिए गणितविज्ञान से !

       महामारी हो या प्राकृतिक आपदाएँ ये उसीप्रकार से अचानक आक्रमण करती हैं जैसे कोई शासक अपने शत्रुदेश पर अचानक हमला करता है | शत्रु के द्वारा हमला किए जाने पर भी यदि अपनी सुरक्षा की तैयारियाँ मजबूत हों तो जिस प्रकार से शत्रु कुछ नहीं बिगाड़ पाता  है | उसीप्रकार से  महामारी और प्राकृतिक आपदाएँ तभी नुक्सान पहुँचाने में सफल होती हैं | जब उनसे सुरक्षा के लिए की गई तैयारियाँ  या तो कमजोर होती हैं या फिर कब कैसी घटना घटित होने वाली है|  इस जानकारी के अभाव में तैयारियॉँ करके रखी ही ही नहीं गई होती हैं | 
 
ऐसी परिस्थिति में सूर्य के प्रभाव परिवर्तन से ही कफ पित्त वात आदि का संतुलन बनता बिगड़ता है |

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                                    आधुनिक विज्ञान
   
  विज्ञान की उपलब्धियाँ देखें या जीवन की समस्याएँ !

     इसमें कोई संशय नहीं है कि विज्ञान ने बहुत उन्नति की है |संशय इसमें भी नहीं है कि इतने उन्नत विज्ञान के होते हुए भी कोरोना महामारी के समय केवल भारत में ही लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं|मृतकों की यह संख्या इतनी अधिक है कि भारत को पडोसी देशों के साथ जो तीन युद्ध लड़ने पड़े हैं | उन तीनों युद्धों में जितने लोगों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हुई थी | उससे कई गुना अधिक लोगों की मृत्यु केवल कोरोनामहामारी में हुई है |ऐसे ही भूकंप बाढ़ आँधी तूफानों में बहुत जनधन की हानि हो जाती है | 

     चिकित्सा वैज्ञानिकों के प्रयत्नों से बड़ी संख्या में रोगियों को आरोग्य प्रदान करके सुरक्षित कर लिया जाता है |ऐसे कार्यों में वैज्ञानिक उपलब्धियाँ बड़ी सहायक सिद्ध होती हैं,किंतु कोरोनामहामारी से जूझते संक्रमितों को स्वस्थ करने में एवं मृत्यु से सुरक्षित करने में किसी भी प्रयत्न से जनता को कोई मदद नहीं पहुँचाई जा सकी है |

     जिसप्रकार से शत्रुओं तथा शत्रुदेशों के द्वारा किए जाने वाले हमलों से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित के लिए शत्रुकृत उपद्रवों के विषय में गुप्तसूचनाओं को पहले से पता लगाकर आगे से आगे से आगे तैयारियाँ करके रखनी पड़ती हैं तब शत्रुओं को पराजित करके उसपर विजय पाना संभव हो पाता है| शत्रुओं से निपटने की जो तैयारियाँ हमेंशा चला करती हैं|वही आवश्यकता पड़ने पर काम आती हैं| शत्रुपर विजय प्राप्त करने की योजना बनाते समय सेना यह नहीं देखती है कि कहाँ किससे  कितनी मदद लेनी पड़ रही है|वो किसानों मजदूरों चरवाहों से भी शत्रु संबंधित सूचनाएँ एकत्रित करती है |किसान मजदूर चरवाहे आदि स्वयं सैनिक भले न हों किंतु  हुए भी उनकी सहायता से सैनिकों को युद्ध जीतने में मदद मिलती है |

     इसीप्रकार से महामारी से सुरक्षा का लक्ष्य लेकर आगे से आगे मजबूत तैयारियाँ की जानी चाहिए | महामारी के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान या प्रभावी चिकित्सकीय सहयोग जितना जहाँ से मिले वहाँ से लिया जाना चाहिए | महामारी पर विजयप्राप्त करने के लक्ष्य की पूर्ति में जितनी भी विधियाँ सहायक हो सकती हैं |उन सभी का सहयोग लेकर लक्ष्य साधन किया जाना चाहिए|आधुनिकविज्ञान,प्राचीनविज्ञान, आयुर्वेद, ज्योतिष आगम आदि जितनी भी विधाएँ सहायक हो सकती हैं| उन सबका सहयोग लेकर महामारी जैसी बड़ी समस्या का समाधान खोजा जाना चाहिए|शत्रुदेशों से सुरक्षा के लिए जैसे शक्तिसंचित की जाती है| कोरोना जैसी महामारियों से सुरक्षा के लिए उससे भी मजबूत तैयारियाँ करके हमेंशा रखकर चलना होगा | 

       इसके बिना कोई भी वैज्ञानिक उपलब्धि मनुष्यों को निर्भय एवं सुखशांति पूर्ण सुरक्षित जीवन नहीं प्रदान कर सकेगी |महामारियों आदि से मनुष्यों का जीवन सुरक्षित बचेगा तभी  वैज्ञानिक उपलब्धियों से प्राप्त सुख सविधाओं का लाभ लिया जा सकेगा | 

    वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य तो मनुष्यों की कठिनाइयाँ कम करके उन्हें सुखी एवं सुरक्षित रखना है |महामारी से यदि मनुष्यों की ही सुरक्षा नहीं की जा सकी तो समय रहते इस पर बिचार किया जाना चाहिए | अभी तक तो ये सबकुछ किसी प्रकार से सहा  गया | भविष्य की महामारियों से जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए ऐसे अनुसंधानों का कोई प्रभावी विकल्प खोजना होगा !यदि ऐसा नहीं किया जा सकता तो ऐसे अनुसंधानों का औचित्य सिद्ध किया जाना भी कठिन होगा | 

                          इतना उन्नत विज्ञान फिर भी नहीं मिल पा रहे समस्याओं के समाधान !

     विज्ञान भले सफलता के शिखर पर पहुँच चुका हो  किंतु प्राकृतिक आपदाएँ हों या कोरोना जैसी महामारियाँ इन्हें न तो अभी तक समझना संभव हो पाया है और न ही इनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान ही खोजा जा सका है| महामारी के विषय में विशेषज्ञों के द्वारा लगाए जाते रहे अनुमान पूर्वानुमान आदि तो गलत निकलते ही रहे | इसके साथ ही महामारी संक्रमितों की चिकित्सा के लिए  प्लाज्माथैरेपी या रेमडेसिविर जैसे प्रयोगों के प्रभाव के विषय में भी लगाए गए अनुमान सही नहीं निकले | ये गंभीर चिंता और चिंतन का विषय इसलिए है कि इतनी बड़ी महामारी से सुरक्षा के लिए हमारी ऐसी चिकित्सकीय तैयारियाँ थीं | महामारी विषयक अनुमानों पूर्वानुमानों के गलत निकलते जाने पर महामारी के स्वरूप परिवर्तन होने की बात कही गई | 

     इससे ये ध्वनित हुआ कि महामारी के विषय में जो समझकर अनुमान पूर्वानुमान लगाए गए उनके सही न होने का कारण महामारी का स्वरूपपरिवर्तन है |जो वैक्सीनें बनाई जा रही थीं | उनके विषय में भी विभिन्न विशेषज्ञों को कहते सुना गया कि महामारी के जिस स्वरूप से सुरक्षा का लक्ष्य रखकर वैक्सीनें बनाई जा रही हैं | महामारी का  स्वरूपपरिवर्तन हो जाने के कारण अब उनकी भी उपयोगिता नहीं रह जाएगी | 

    ऐसी सभी बातों को यदि महामारी से सुरक्षा की कसौटी पर कसकर देखा  जाए तो महामारी के स्वरूपपरिवर्तन के कारण ऐसे अनुसंधानों के विषय में न तो अनुमान पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं और न ही वैक्सीन आदि निर्माण की जा सकती है | ऐसी स्थिति में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि अनुसंधानों के द्वारा महामारी पीड़ितों को ऐसी क्या मदद पहुँचाई जा सकी जो ऐसे अनुसंधानों के बिना संभव न थी |महामारी संबंधी अनुसंधान यदि न किए गए होते तो इस इस प्रकार से  इतना इतना नुक्सान और अधिक हो सकता था | अनुसंधानों के कारण उस संभावित नुक्सान से बचाव हो गया |

    ऐसी दुविधा प्रकृति और जीवन से संबंधित अनुसंधानों में प्रायः हर जगह दिखाई दे रही है |भूकंप विज्ञान है,भूकंप वैज्ञानिक हैं,भूकंपों के विषय में अनुसंधान भी किए जा रहे हैं !उन अनुसंधानों से भूकंप संबंधी आपदा से बचाव के लिए समाज को ऐसी क्या मदद पहुँचाई जा सकी है जो भूकंप संबंधी अनुसंधानों के बिना संभव नहीं है |       ऐसी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाओं से समाज को जूझना न पड़े उसकी सुरक्षा की जा सके |  इसीलिए तो ऐसे अनुसंधानों को करने की आवश्यकता पड़ी है| मदद मिलनी तो दूर उन प्राकृतिकघटनाओं और उनके कारणों को खोजना ही अभीतक संभव नहीं हो पाया है|

    इसी कारण प्रकृति के बहुत सारे रहस्य अभी तक अनसुलझे पड़े हुए हैं|जो जीवन को प्रभावित तो करते हैं किंतु उन्हें समझने के लिए कोई विज्ञान नहीं है | इसीलिए  उन घटनाओं के विषय में कुछ कोरी कल्पनाओं के अतिरिक्त कोई मजबूत जानकारी अभी तक सामने नहीं लाई जा सकी है| ऐसी कल्पनाएँ रहस्यों को और अधिक उलझा देती हैं | 

     कहा जाता रहा कि जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर थी वे संक्रमित हुए हैं! प्रश्न उठता है कि प्रतिरोधक क्षमता के कमजोर होने पर तो महामारी के बिना भी लोग रोगी हो सकते हैं और हमेंशा होते रहते हैं ! उनके रोगी होने का कारण उनके अपने शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना है या कोरोना महामारी का दुष्प्रभाव ! निजी कारणों से अस्वस्थ होने के लिए किसी महामारी को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता  है !

    प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने  के विषय में कहा जाता है कि स्वास्थ्य के अनुकूल रहन सहन सुपौष्टिक खान पान आदि अपनाकर प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत किया जा सकता है,किंतु व्यवहार में ऐसा देखा जाता है  जो साधन संपन्न वर्ग अपनी एवं अपने बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने के लिए जन्म से लेकर जीवन भर  ऐसे सभी प्रयत्न करता रहता है |वही वर्ग उन साधन विहीन लोगों की तुलना में अधिक संक्रमित हुआ है !

     कहा जाता रहा कि संक्रमण के थोड़े भी लक्षण दिखाई दें तो चिकित्सालयों में शरण लो !वहाँ चिकित्सा का लाभ लेकर स्वस्थ हुआ जा सकता है, किंतु जिन विकसित  देशों या विकसित नगरों महानगरों की चिकित्सा व्यवस्था विशेष उन्नत मानी जाती है | उन अमेरिका जैसे देशों या भारत के दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में महामारी का प्रकोप अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक हुआ ! यहाँ तक देखा गया कि गहन चिकित्सा कक्षों में वेंटीलेटरों पर रहते हुए भी उस वर्ग के रोगियों को प्राण छोड़ने पड़ रहे थे |  जिसके जन्म से सारे टीके लगे टॉनिक पी,समय समय पर आवश्यक विटामिन लेता रहा ! स्वास्थ्य के अनुकल रहन सहन खानपान आदि अपनाता रहा !फिर भी सबसे अधिक संक्रमण का शिकार हुआ है !

    कहा जाता रहा कि कोविड नियमों के पालन न करने से कोविड संक्रमण  बढ़ता है किंतु कोरोना काल में दिल्ली मुंबई सूरत आदि से निकले यूपी बिहार के श्रमिक लोग ,दिल्ली में धरने पर बैठे किसान एवं बिहार बंगाल की चुनावी रैलियाँ एवं कुंभमेला समेत समस्त ऐसे स्थल जहाँ बहुत भीड़ होने के कारण कोविड नियमों का पालन नहीं किया जा सका ! विशेषज्ञों के द्वारा ऐसी संभावना भी व्यक्त की गई कि ऐसे स्थानों से संक्रमण बहुत फैलेगा !किंतु उन अवसरों पर उन भीड़ों में सम्मिलित लोगों से संक्रमण तो नहीं बढ़ा !

     कहा गया कि वायु प्रदूषण बढ़ने से संक्रमण बढ़ता है किंतु अक्टूबर नवंबर 2020 में वायु प्रदूषण बढ़ने पर भी कोरोना संक्रमण कम होता जा रहा था तथा मार्च अप्रैल 2021 जब वायु प्रदूषणमुक्त आकाश होने के कारण पंजाब एवं बिहार से हिमालय दिखाई पड़ने लगा था | इतना प्रदूषणमुक्त वातावरण होने पर भी भारत में   सबसे बड़ी कोरोना की लहर इसी समय आई थी |  

       सर्दी जैसी ऋतुओं के समय तापमान घट जाने के कारण कोरोनाजनित संक्रमण बढ़ने का अनुमान व्यक्त किया जाता रहा है और गर्मी में तापमान बढ़ जाने के कारण कोरोनाजनित संक्रमण कम होने की बातें कही जाती रही हैं | व्यवहार में देखा जाए तो सर्दी में तो केवल तीसरी लहर ही आई थी बाक़ी तीनों लहरें गर्मी के समय ही आईं  थीं जब तापमान बढ़ा हुआ था | 

    ऐसे ही चिकित्सा  के लिए जिन प्लाज्मा थैरेपी एवं रेमडेसिविर इंजेक्शनों को पहले तो संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए प्रचारित किया जाता रहा किंतु उनका वैसा प्रभाव नहीं दिखाई पड़ा जैसा कि अनुमान लगाया गया था |

    कुलमिलाकर जहाँ एक ओर गर्व करने लायक इतना उन्नत विज्ञान वहीं दूसरी ओर इतनी बड़ी बड़ी हिंसक महामारियों समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं से अभी भी मनुष्य इतना अनजान है कि न जाने कब कितनी बड़ी प्राकृतिक आपदा या महामारी आ जाए जिससे अचानक समाज को जूझना पड़ जाए | महामारी अपने आपसे गई है या किसी मनुष्यकृत प्रयास से गई है या कोई लहर अभी और आने वाली है | इस विषय में किसी को कुछ पता ही नहीं है |इतने उन्नतविज्ञान के द्वारा उपलब्ध कराई गई सुख सुविधा की चीजों को भोगने के लिए जीवन की सुरक्षा तो सर्वप्रथम आवश्यक है | जीवन ही सुरक्षित न बचे तो सुख सुविधा के इतने सारे संसाधन मनुष्यों के  किस का महामारी पैदा होने का कारण और पूर्वानुमान !

     
       महामारी पैदा होने का स्पष्ट कारण पता लगे तो उसके आधार पर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | किसी भी घटना के घटित होने के कारण को जाने बिना पूर्वानुमान लगाया जाना संभव ही नहीं है | किसी रोग की चिकित्सा करने से पहले रोग का कारण पता  लगाना होता है कारण पता लगने के बाद न केवल पूर्वानुमान लगाना आसान हो जाएगा प्रत्युत उस कारण के आधार पर ही रोग का निवारण कर लिया जाएगा |
     कारण पता लगे बिना पूर्वानुमान लगाना तो संभव नहीं है किंतु संकट के अनुसार ही समाधान के लिए प्रयत्न कर लिए जाते हैं !चक्रवात आते हैं तो उन्हें उपग्रहों रडारों से देखकर यथा संभव बचाव करने का प्रयत्न किया  जाता है |बिल्कुल मदद न मिलने की अपेक्षा इस जुगाड़ से जितनी भी मदद मिल पाती है | उतनी भी बहुत है |
   कभी कभी कई कई चक्रवात बहुत कम अंतराल में आते देखे जाते हैं | ऐसी स्थिति में उपग्रहों रडारों से देखकर यह अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि एक और आ रहा है | उसके बाद भी वही कि एक और आ रहा है,किंतु उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों से यह नहीं पता लगाया जा सकता है कि इस वर्ष इस समय ही ऐसा क्यों हो रहा है कि इतने कम समय में इतने अधिक चक्रवात आते देखे जा रहे हैं | 
     ऐसा ही वर्षा के विषय में होता है |उपग्रहों रडारों से जितनी दूर तक के बादल देखे जा सकते हैं |उतने के विषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है | इसीलिए कई बार जो बादल दिखाई दिए उनकी गति और दिशा के अनुसार ये पता लगा लिया गया कि ये कब कहाँ पहुँच कर लगभग कितने दिन बरस सकते हैं | उसी के अनुसार भविष्यवाणी कर दी जाती है कि उस स्थान पर तीन दिन वर्षा होने की संभावना है | उन तीन दिनों में दो दिन बीतने के बाद कुछ दूसरे बादल फिर से उपग्रहों रडारों में दिखाई देने लगे !उनके अनुसार फिर भविष्यवाणी कर दी जाती है कि अभी 48 घंटे वर्षा और होगी | उन 48 घंटों के बीत जाने के बाद भी वर्षा होना बंद नहीं हुआ !उधर उपग्रहों रडारों में कुछ और बादल भी आते दिखाई देने लगे तो 72 घंटे और वर्षा होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है | इस बार इतने कम समय में लगातार इतने दिनों तक वर्षा होने का कारण क्या है | इस प्रश्न का उत्तर उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों से मिल पाना कैसे संभव है | 
     ऐसी स्थिति में यदि चक्रवात निर्मित होने के वास्तविक कारण पता होते तो उन कारणों के आधार पर चक्रवात आने से काफी पहले चक्रवातश्रंखला के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है|ऐसे ही  वर्षा होने के लिए जिम्मेदार यदि वास्तविक कारण पहले से पता होते तो उन कारणों के आधार पर वर्षा शुरू होने से पूर्व ही यह पूर्वानुमान लगाया जा चुका होता कि इस वर्ष इस समय में इतने दिनों तक वर्षा होगी | 
      इसी प्रकार से कोरोना महामारी के पैदा होने का यदि वास्तविक कारण पता होता तो  महामारी पैदा होने के विषय में एवं उसकी लहरों के आने और जाने के विषय में उसी कारण के आधार पर महामारी या उसकी लहरों के आने और जाने के विषय में काफी पहले ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता था |
      इसमें विशेष बात यह है कि वह कारण यदि परिवर्तनशील है तो पहले उस कारण के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना आवश्यक होता | उन्हीं कारण संबंधी पूर्वानुमानों के आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता था |
      उदाहरणरूप में महामारी पैदा होने के लिए यदि तापमान बढ़ने या घटने  को जिम्मेदार कारण माना जाता,तो तापमान बढ़ने और घटने के विषय में जितना सही पूर्वानुमान लगाया जा पाता महामारी या उसकी लहरों के आने और जाने के विषय में उतना ही सही पूर्वानुमान लगाया जा सकता था |ऐसे ही  ,वर्षा होने न होने,वायु प्रदूषण बढ़ने  घटने जैसी जिस किसी भी घटना को महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार कारण  माना जाता | उसके विषय जितना सही पूर्वानुमान लगाया जा पाता महामारी या उसकी लहरों के आने और जाने के विषय में उतना ही सही पूर्वानुमान लगाया जा सकता था | 
        महामारी पैदा होने का कारण क्या था ?
    
      विज्ञान प्रत्यक्ष को मानता है ऐसा सुना जाता है | इसलिए वैज्ञानिकों से ये अपेक्षा भी की जाती है कि उनके द्वारा जिस प्राकृतिक घटना के पैदा होने के लिए जिस प्राकृतिक कारण को जिम्मदार बताया जाता है | उसे प्रयोग पूर्वक सिद्ध भी किया जाना चाहिए !यदि वैसा हो जाता है तब तो उसे उस घटना के कारण रूप में स्वीकार कर लिया जाए अन्यथा हाथ के हाथ उसका खंडन कर दिया जाना चाहिए | 
    जिसप्रकार से वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए अनेकों घटनाओं को जिम्मेदार कारण मान लिया जाता है |दीपावली में पटाखे फोड़ने,साँप की टिक्की जलाने,पराली जलाने,ईंट भट्ठा चलाने से निकलने वाले धुएँ एवं उद्योगों वाहनों आदि से निकलने वाले धुएँ तथा निर्माणकार्यों से उड़ने वाली धूल को वायुप्रदूषण के लिए जिम्मेदार बताया जाता है |इसी के आधार पर ऐसे लोगों को जिम्मेदार मानकर उनके विरुद्ध कार्यवाही भी की जाती है |इसमें विशेष बात यह है कि ऐसी घटनाओं को वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार केवल मान लिया गया है या  ऐसा मानने के पीछे अनुसंधानजनित कोई वैज्ञानिक कारण भी है |उस वास्तविक कारण की खोज किए बिना लोगों को दंडित किए जाने से जिन लोगों के द्वारा समाज को लाभ पहुँचाया जाना था | उन्हीं से समाज की परेशानियाँ बढ़ने  लगती हैं | 
     महामारी पैदा होने या संक्रमण बढ़ने  का कारण मौसमसंबंधी घटनाओं  को बताया जाता रहा है! घटनाओं को अलग से चिन्हित नहीं किया गया है,फिर भी जिस प्रकार की घटनाओं को महामारी के लिए जिम्मेदार बताया गया हो ! उसप्रकार की घटनाओं के आधार पर महामारी की लहरों के आने और जाने के विषय में पूर्वानुमान लगाकर इस बात का परीक्षण किया जाना चाहिए था कि  इस बात में सच्चाई कितनी है | मौसम संबंधी घटनाओं के आधार लगाए गए महामारी विषयक पूर्वानुमान यदि सही निकल जाते तो ये बात प्रमाणित हो जाती कि महामारी के पैदा और समाप्त होने एवं महामारी की लहरों के आने और जाने के लिए मौसम संबंधी घटनाएँ ही जिम्मेदार हैं | अर्थात महामारी आने और जाने के लिए तथा संक्रमण बढ़ने और घटने का वास्तविक कारण मौसम संबंधी घटनाएँ ही हैं |
    इसीप्रकार से कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा  महामारी पैदा होने या संक्रमण बढ़ने  का कारण तापमान का कम होना बताया गया | ऐसी स्थिति में तापमान कम और अधिक के आधार पर महामारी आने और जाने तथा संक्रमण बढ़ने और घटने के विषय में पूर्वानुमान लगाए जाने चाहिए थे | यदि वे सही निकल जाते तो वैज्ञानिकों की इस प्रकार की आशंकाएँ सच सिद्ध हो जातीं कि वास्तव में महामारी के पैदा और समाप्त होने एवं महामारी की लहरों के आने और जाने के लिए तापमान का घटना और बढ़ना ही जिम्मेदार है |
     ऐसे ही वायुप्रदूषण को महामारी बढ़ने एवं  उसकी लहरों के आने जाने का कारण बताया जाता रहा है|  ऐसा कहा तो गया था किंतु महामारी के साथ इसे अनुसंधान पूर्वक प्रमाणित किया जाना चाहिए था | महामारी पैदा होते समय क्या वायुप्रदूषण बहुत बढ़ा हुआ था और महामारी समाप्त होते समय क्या वायु प्रदूषण बिल्कुल समाप्त हो गया था | ऐसे ही वायु प्रदूषण जब बढ़ा होता था | महामारी की नई लहर क्या उसी समय शुरू होती थी |इसीप्रकार से कोई लहर जब समाप्त होने लगती थी उस समय वायुप्रदूषण  का स्तर क्या बहुत कम हो चुका होता था |     
    कुलमिलाकर महामारी पैदा होने या किसी लहर के आने के लिए यदि बढ़ने को जिम्मेदार माना जाएगा तब तो किसी लहर के समाप्त होते समय वायुप्रदूषण कम एवं कोरोना महामारी समाप्त होते समय वायुप्रदूषण विशेष कम हो जाना चाहिए था |यदि ऐसा होता तब तो वायुप्रदूषण को महामारी के लिए जिम्मेदार माना जा सकता था अन्यथा नहीं थीं |
     महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने के लिए  आपस में एक दूसरे को छूने से बचने की सलाह दी जाती रही थी !इसीलिए कोविडनियमों के पालन को अनिवार्य बताया गया था| ऐसा होता है या नहीं इसका अनुसंधान पूर्वक परीक्षण किया जाना चाहिए था |घनीबस्तियों,चुनावी रैलियों आदि भीड़भाड़ वाले स्थानों पर कोरोना संक्रमण विशेष अधिक बढ़ना चाहिए था था कोविड नियमों का पालन करने वालों के यहाँ कोविड नहीं होना चाहिए था |ऐसे ही महामारी आने के समय क्या आपसी छुआछूत बहुत अधिक बढ़गई थी | उसके बाद कोविड नियमों का पालन करके क्या उस दूरी को कम लिया गया था | उसी के प्रभाव से महामारी से मुक्ति मिली थी | यदि ऐसा है तब तो कोविड नियमों का पालन न करने को महामारी पैदा होने या संक्रमण बढ़ने का कारण माना जा सकता है अन्यथा नहीं ! 
                                 



 
 
 
  अनुमानों के गलत निकलने के कारण खोजे जाएँ !
 

महामारी एवं आपदाओं से विज्ञान अभी बहुत दूर है !

      


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