mahamari
पहली बार जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा था | इसलिए उसे लगा था कि हाथी खंभे जैसा होता है | अबकी बार उसका हाथ हाथी की पूँछ पर पड़ा तो उसे लगा कि हाथी सर्प जैसा होता है| ऐसे ही सभी के हाथ हाथी के कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अब उन सभी के अनुभव बदल चुके थे | पहली बार पेट पर हाथ पड़ने से जिसने पहले हाथी को पहाड़ जैसा माना था | उसके हाथ में अबकी बार हाथी की सूँड लगी | इसलिए अबकी बार उन्होंने हाथी को अजगर जैसा बताया |
इस प्रकार से उन सभी के अनुभव बदलते देख कर उनसे पूछा गया कि हाथी को आपने पहले तो पहाड़ जैसा बताया था, किंतु अबकी बार आपने हाथी को अजगर जैसा बताया है | इन दो प्रकार के उत्तरों में अंतर आने का कारण क्या है ? अपनी अनुसंधान क्षमता की कमी स्वीकार करने के बजाए उन्होंने कहा कि हाथी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है | इसलिए " हाथी कैसा होता है " यह पता लगाया जाना अनुसंधानों के वश की बात नहीं है | इस प्रकार से शोधप्रबंध तो एक नहीं दो दो तैयार हो गए किंतु यह नहीं पता लगाया जा सका कि "हाथी कैसा होता है |"
इसी प्रकार से दूसरा दृष्टांत है | किसी गाँव में घुसकर हाथी उपद्रव मचाने लगते थे |वे गाँव में कहीं भी जाते, कुछ भी करते, किसी का घर गिराते, किसी पेड़ को तोड़ते जबतक ऐसे उपद्रव करते रहते तब तक उन्हें रोकने का साहस कोई नहीं कर पाता था | उपद्रव करते करते थककर जब वे गाँव से बाहर जाने लगते तो उनके आगे पीछे भौंकने वाले गाँव के कुत्तों को यह भ्रम हो जाता कि उन्होंने ही भौंक भौंक कर हाथियों को गाँव के बाहर भगा दिया है |वही हाथी जब दोबारा फिर से गाँव में घुस आवें और फिर उपद्रव करने लगें | जिसे देखकर फिर कुत्ते उसी प्रकार से भौंकते हुए हाथी के आगे पीछे दौड़ने लगें |फिर भी हाथी गाँव से बाहर न जाकर वैसे ही उपद्रव वहीं करते रहते | कुत्तों के भौंकने का कोई प्रभाव ही न पड़े | इससे यह स्पष्ट हो गया कि हाथियों के गाँव से बाहर जाने में पहले भी कुत्तों के भौंकने की कोई भूमिका नहीं थी ,फिर भी कुत्तों को लगता था कि हाथियों का स्वभावपरिवर्तन हो गया है |
ऐसे ही तीसरा दृष्टांत है | किसी गाँव के एक ओर जंगल था | जिससे निकलकर हाथी गाँवों में घुस कर अक्सर उपद्रव मचाने लगते थे |गाँव वाले इकट्ठे होकर जब तक उन्हें खदेड़ पाते तब तक हाथियों के द्वारा काफी बड़ा नुक्सान कर दिया जाता था| इससे बचाव के लिए जंगल वाली दिशा में गाँव के बाहर ग्रामीणों ने कैमरे लगवा लिए | हाथी जैसे ही जंगलों से निकलकर गाँव की ओर आने लगते तो ग्रामीणों को कैमरों में दिखाई दे जाते | गाँव के लोग इकट्ठे होकर उन्हें खदेड़ आते थे |
ऐसे प्रयत्नों से ग्रामीणों का संभावित नुक्सान होने से तो बच जाता था किंतु इसे हाथीविज्ञान नहीं कहा जा सकता है | इसीप्रकार से उपग्रहों रडारों के माध्यम से बादलों आँधी तूफानों को देखकर उनकी गति और दिशा के अनुसार अंदाजा लगा लेने को मौसमविज्ञान मान लिया जाना ठीक नहीं है |
ऐसे तीन दृष्टांतों के माध्यम से यह समझ में आ जाना चाहिए कि अनुसंधानों की यदि सार्थकता सिद्ध करनी है तो घटनाओं के स्वभाव को समझने का प्रयत्न करना होगा | उसके आधार पर किए गए अनुसंधान प्रायः सही निकलते हैं | इसमें प्राचीन गणितविज्ञान काफी अधिक सहायक हो सकता है |
समस्याओं के समाधान कैसे खोजे जाएँ
वर्तमान समय में विज्ञान उन्नतशिखर पर है,जिसके
द्वारा सुख सुविधाओं के साधन तो विकसित किए जा सके हैं किंतु प्राकृतिक
आपदाओं तथा महामारियों से हो रही जनधन हानि को रोका जाना संभव नहीं हो पा
रहा है |वर्तमान समय का उन्नत विज्ञान उस उँचाई पर नहीं पहुँच पा रहा है,
जहाँ ऐसी समस्याओं का निर्माण होता है |समस्याओं के समाधान भी उसी उँचाई पर
संभव हैं | किसी बड़े बाँध से काफी अधिक मात्रा में जल छोड़ा जा रहा हो तो
उससे बाढ़ आनी निश्चित है|जिससे जनधन का नुक्सान हो सकता है | यदि इस
नुक्सान से समाज की सुरक्षा की जानी है तो इस पानी छोड़े जाने के विषय में
पूर्वानुमान लगाया जाना सबसे पहले आवश्यक है |नदी के इतने तेज बहाव से होने
वाले जनधन के नुक्सान को तत्काल की तैयारियों के बलपर सुरक्षित किया जाना
संभव नहीं हो पाता है |
इतनी अधिक मात्रा में पानी आ रहा है ये पहले से पता न हो तो अचानक बाढ़ आएगी ही उससे जनधन का नुक्सान भी उतना होगा ही जितना होना है |जल के इतने तेज बहाव को कैसे रोक लिया जाएगा | उसके साथ बहे जा रहे जनधन को कैसे पकड़ लिया जाएगा और कितना सुरक्षित बचा लिया जाएगा |
जिस प्रकार से किसी गाँव में घुसकर उपद्रव मचा रहे हाथी के आगे पीछे
कुत्ते भौंकते भले रहें किंतु उस हाथी के उपद्रवों को रोकना उन कुत्तों के
वश में नहीं होता है | ये जानते हुए भी कुत्ते उस हाथी के आगे पीछे भौंकते
रहते हैं और हाथी नुक्सान करता रहता है |जिस प्रकार से कुत्तों के भौंकने
से हाथियों के उपद्रवों को तुरंत की तैयारियों के बल पर रोका जाना संभव
नहीं होता है | उसी प्रकार से मनुष्यों के द्वारा की गई तुरंत की तैयारियों
के बलपर महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जनधन हानि को घटाया
जाना संभव नहीं होता है | पहले से सही पूर्वानुमान लगाए बिना ऐसी आपदाओं
से जनधन को सुरक्षित किया जाना संभव नहीं होता है | जिस प्रकार से हाथी
को गाँव छोड़कर कभी तो जाना ही होता है |इसलिए जब वो हाथी अपने आपसे गॉंव
छोड़कर चला जाता है | हाथी के जाने को यदि कुत्तों के भौंकने का परिणाम
मानने की गलती की जाती रही तो हाथियों के ऐसे उपद्रवों को सहने के लिए
हमेंशा तैयार रहा जाना चाहिए |
कुछ आवश्यक एवं अनुत्तरित प्रश्न !
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