महामारी किसी बाढ़ की तरह आई और चली गई ,अपने साथ जितना जो कुछ बहाकर ले जा सकती ले गई !जितनी जनधन हानि होनी थी वो हुई | विज्ञान ने बहुत उन्नति कर ली है इसके बल पर हमें भरोसा था कि महामारी से हम सुरक्षित बचा लिए जाएँगे ,किंतु महामारी से होने वाली जनहानि को विज्ञान के द्वारा न तो रोका जा सका और न ही कम किया जा सका| महामारी उन मनुष्यों को वर्षों तक रौंदती रही जिन्हें सुख सुविधा पहुँचाने के लिए न जाने कितने संसाधनों का आविष्कार किया है|मनुष्यजीवन की कठिनाइयाँ कम करके उसे सरल बनाने के लिए जिस विज्ञान ने न जाने कितनी दुर्गम गुत्थियों को सुलझाया है| सफलता के न जाने कितने शिखर चूम लिए हैं |वही विज्ञान महामारी जैसे इतने भयंकर संकट की भनक तक नहीं पा सका कि इतनी बड़ी महामारी आने वाली है | ये मनुष्यमात्र के लिए सबसे अधिक चिंता की बात है | मनुष्य जीवन ही सुरक्षित नहीं बचेगा तो उन सुख संसाधनों का क्या होगा जिनका मनुष्यों को सुखी करने के लिए आविष्कार किया गया है |
महामारी के विषय में न तो पूर्वानुमान लगाया जा सका और न ही उसकी लहरों के आने जाने के विषय में ही पूर्वानुमान लगाया जा सका है |महामारी प्राकृतिक है या मनुष्यकृत ! इसका विस्तार कितना है ! प्रसार माध्यम क्या है ! अंतर्गम्यता कितनी है |इस पर तापमान का प्रभाव पड़ता है या नहीं !मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं !वायु प्रदूषण का प्रभाव पड़ता है या नहीं! भूकंपों का प्रभाव पड़ता है या नहीं,आदि ऐसे अनेकों महत्वपूर्ण प्रश्न हैं | जिनका उत्तर खोजे बिना महामारी को समझना संभव नहीं है | विज्ञान के द्वारा ऐसे प्रश्नों के उत्तर खोजे जाने संभव हों तो बहुत अच्छा है और यदि न संभव हों तो खुलेमन से उदारता पूर्वक उन विकल्पों पर भी बिचार किया जाना चाहिए | आधुनिक विज्ञान के जन्म होने के हजारों वर्ष पहले से जिस प्राचीन विज्ञान ने यह जिम्मेदारी सँभाल रखी थी |उसका प्रयोग करके भी देखा जाना चाहिए संभव है कि महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य समाज को सुरक्षित बचाने में सनातनविज्ञान से कुछ मदद मिल सके |
प्राचीन काल में जब उपग्रहों रडारों की व्यवस्था नहीं थी | सुपर कंप्यूटर नहीं थे |रोगों
का परीक्षण करने के लिए ऐसे प्रभावी चिकित्सा सहायक यंत्र नहीं थे|
दूरसंचार माध्यम नहीं थे, यातायात के साधन नहीं थे | नए प्रकार की सोच रखने
वाले आधुनिक चिकित्सक नहीं थे| इतने बड़े बड़े चिकित्सालय नहीं थे |वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप आदि आपदाएँ एवं महामारियाँ तो उस प्राचीनकाल में भी घटित होती रही होंगी|जीवन को सुरक्षित बचाने की चुनौती तो तब भी कठिन होती रही होगी |इतने
सारे अभावों के बाद भी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से लोगों की
सुरक्षा उस युग में कैसे की जाती रही होगी | जिससे कम जनसंख्या के समय में भी सृष्टि का विस्तार निरंतर होता चला आ रहा है |
इससे ये विश्वास किया जाना चाहिए कि उस युग में जिस प्राचीनविज्ञान के द्वारा प्राकृतिक आपदाओं महामारियों आदि से मनुष्यों की सुरक्षा होती रही होगी | उसके द्वारा अभी भी प्राकृतिक आपदाओं महामारियों आदि से सुरक्षा की जा सकती है क्या ये प्रयोगपूर्वक अनुभव किया जाना चाहिए |उस प्राचीन वैज्ञानिकपद्धति के आधार पर अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है |
महामारी तथा मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में यदि प्राचीन काल में सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता था तो अब क्यों नहीं ! इसी उद्देश्य से उसी प्राचीनवैज्ञानिक विधा के अनुशार पिछले 35 वर्षों से मैं अनुसंधान करता आ रहा हूँ और वह प्राचीन विज्ञान अनुभव में अभी भी सही निकलते देखा जा रहा है | इससे ऐसी आपदाओं के विषय में सही पूर्वानुमान तो लगाया ही जा सकता है |इसके साथ ही साथ प्राचीन याज्ञिक प्रयोगों से ऐसे प्राकृतिक संकटों के वेग को भी कम होते अनुभव किया जा रहा है |
वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों का उद्देश्य भविष्य में होने वाले ऐसे रोगों महारोगों के विषय में आगे
से आगे अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना होता है | स्वास्थ्य संबंधी प्रतिकूल परिस्थिति पैदा होने पर
उससे समाज को सावधान करना होता है !बचाव के लिए आगे से आगे उपाय खोजना होता है ! समाज को उन उपायों से अवगत कराना ! ऐसे रोगों महारोगों से मुक्ति
दिलाने के लिए चिकित्सा खोजना,औषधीय द्रव्यों का संग्रह करना, औषधियों का
निर्माण करना ,औषधियों को जन जन तक पहुँचाने की व्यवस्था करना आदि होता है| वैज्ञानिकों को ऐसी जिम्मेदारियाँ
निभाने के लिए अग्रिम तैयारियाँ करके रखनी होती हैं |
कोरोना महामारी आने से पहले भी ऐसा होता रहा होगा|वे पूर्वकृत तैयारियाँ कितनी सार्थक रहीं ये तभी पता लग पता है जब महामारी या ऐसा कोई स्वास्थ्य संकट उपस्थित होता है| कोरोना महामारी आने पर पहले की गई अनुसंधानजनित तैयारियाँ महामारी पीड़ितों के कितने काम आ सकीं ! इसपर बिचार किए जाने की आवश्यकता है |
कोरोना के समय चिकित्सकों ने जो जो समझाया उसे सच मानकर उसका पालन किया गया |महामारी के विषय में जो
अनुमान पूर्वानुमान आदि बताए गए उन पर भरोसा किया गया |उन्होंने
संक्रमितों को तुरंत अस्पताल ले जाने के लिए कहा वैसा ही किया गया |
उन्होंने प्लाज्मा थैरेपी को महामारी से मुक्ति दिलाने में सक्षम बताया
! तो प्लाज्मा थैरेपी को अपनाया जाने लगा | ऐसे ही रेमडेसिविर इंजेक्शन को लाभप्रद बताया गया |उस पर भरोसा किया गया | कोविड नियमों के पालन के लिए प्रेरित किया गया तो समाज बड़ी निष्ठा के साथ उन नियमों का पालन करता रहा ! चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा जिन जिन औषधियों आहारों व्यवहारों उपायों आदि को बताया वो सब कुछ करने के बाद भी कोरोना महामारी से जनधन का इतना अधिक नुक्सान होते जाने का कारण क्या था | ये मनुष्यकृत प्रयासों की असफलता के कारण ही अस्पतालों से लेकर श्मशानों तक में जगह नहीं बची थी | चिकित्सा संबंधी
संसाधनों से संपन्न अत्यंत विकसित देशों प्रदेशों नगरों महानगरों के अत्यंत उन्नत अस्पतालों में वेंटिलेटर पड़े रोगियों की मृत्यु हो रही थी | साधन संपन्न लोग अत्यंत उन्नत चिकित्सा सेवाओं
का लाभ लेते हुए वेंटीलेटरों पर पड़े पड़े प्राण छोड़ रहे थे |आखिर चूक कहाँ हुई है | पता तो लगना चाहिए |
इतना उन्नत विज्ञान है, इतने विद्वान एवं अनुभवशील वैज्ञानिक हैं |उन्होंने महामारी के समय जो जो कुछ करने को कहा वो सब कुछ किया गया | इसके
बाद भी महामारी में जनधन का इतना बड़ा नुक्सान हुआ | इसके लिए कौन कितना
जिम्मेदार है|क्या जनता से कोई चूक हुई है या सरकारों से या वैज्ञानिकों से !महामारी से सुरक्षित रहने
के लिए जनता को ऐसा क्या करना चाहिए था,जो जनता के द्वारा नहीं किया जा
सका | सरकारों को ऐसा क्या करना चाहिए था जिसे करने में सरकारें असफल रहीं | जिसके कारण महामारी से इतना बड़ा नुक्सान हुआ है |
महामारी के रूप में इतनी बड़ी दुर्घटना घटित होने के बाद जिम्मेदारी तो तय होनी ही चाहिए ,ताकि भविष्य के लिए पहले से कुछ और अच्छी तैयारियाँ करके रखी जा सकें |
बिचारणीय विषय यह है कि कोरोना महामारी के विषय में क्या किया जा सका और
क्या नहीं वो बात बीत गई उससे जनधन को जो नुक्सान होना था वो हो गया,अब वो
तो वापस लौटेगा नहीं| वैज्ञानिकों को कोरोना महामारी के समय ऐसे क्या अनुभव हुए
जिनसे भविष्य की महामारियों में मदद
मिल सकती है |उन अनुभवों का संचय पूर्वक उपयोग किया जाना चाहिए |
मेरा विनम्र निवेदन !
महामारी से इतना तो समझ में आ ही जाना चाहिए कि रिसर्च करने का मतलब कुछ भी करना या कुछ भी कह देना नहीं होता है !रिसर्च सही दिशा में हो, सही लक्ष्य लेकर हो उससे जो परिणाम निकलें उनका उस व्यक्ति वस्तु स्थान घटना आदि से कुछ तो संबंध सिद्ध हो | जिससे उन परिणामों के आधार पर आगे के लिए भी जो पूर्वानुमान लगाए जा रहे हों वे सही निकलें !निरर्थक रूप से कुछ भी करने लगने को रिसर्च कैसे कहा जा सकता है |
कुछ दृष्टिहीन (अंधे) लोगों को एक रिसर्च का काम सौंपा गया !जिसमें पता लगाना था कि "हाथी कैसा होता है !"उन्होंने हाथी को कभी देखा नहीं था और न ही उसके विषय में कभी कुछ सुना था | हाथी कैसा होता है यह पता करने के लिए उन्होंने हाथी को छुआ तो जिसका हाथ हाथी के जिस अंग पर पड़ा उसे लगा कि हाथी वैसा ही है | जिसका हाथ हाथी
के पैर पर पड़ा उसे हाथी खंभे जैसा लगा !पेट पर जिसका हाथ पड़ा उसे हाथी
पहाड़ जैसा लगा | ऐसे ही जिसका हाथ जिस अंग पर पड़ा उसने हाथी को वैसा ही
समझा | इसी प्रकार से सभी ने अपने अपने अनुभवों का संग्रह किया गया !जिससे एक थीसिस तो लिख दी गई, किंतु उस पूरे शोधप्रबंध को पढ़कर यह निष्कर्ष नहीं निकाला
जा सका कि हाथी वास्तव में होता कैसा है |
इसलिए उन्हीं लोगों को रिसर्च
करने के लिए एक अवसर और दिया गया | उन्होंने फिर हाथी के भिन्न भिन्न
अंगों पर हाथ रखे |अबकी बार उनके हाथ कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अबकी
अनुभव भी पहले की अपेक्षा अलग आए | पहले के शोध प्रबंध से इस शोध प्रबंध की विषयवस्तु में बहुत
अंतर आ गया | जिसने हाथी को पहले खंभे
जैसा माना था अबकी उसके हाथ में हाथी की पूँछ पड़ी तो उसे वैसा अनुभव हुआ |
ऐसे ही पेट पर हाथ पड़ने से जिसने पहले हाथी को पहाड़ जैसा माना था | उसके
हाथ में अबकी बार हाथी की सूँड लगी | इसलिए अबकी बार उसे हाथी का अनुभव अजगर जैसा
हुआ | उनसे जब पूछा गया कि हाथी को आपने पहले तो पहाड़ जैसा बताया था अब
उसकी अपेक्षा पतला अजगर जैसा बताया है | इन दो प्रकार के उत्तरों में अंतर
आने का कारण क्या है ? उसने कहा हाथी था तो पहाड़ जैसा ही किंतु जलवायु
परिवर्तन के प्रभाव से दुबला होकर वह अजगर जैसा हो गया है | ऐसे अनुभवों से शोधप्रबंध तो एक और तैयार हो गया किंतु यह नहीं पता लगाया जा सका कि हाथी होता कैसा
है |
ऐसे ही महामारी हो या भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक
घटनाएँ इन्हें समझने का विज्ञान न होने के कारण ऐसी घटनाओं के विषय में
अनुसंधान खूब होते रहते हैं किंतु प्राकृतिक घटनाओं की सच्चाई पता नहीं लग पाती
है कि कौन घटना किस कारण से घटित होती है | जलवायु
परिवर्तन या स्वरूप परिवर्तन जैसे भ्रम अलग से पाल लिए जाते हैं |यही कारण
है कि महामारी के विषय में जितने मुख उतनी बातें सुनी जा रही थीं !कोरोना
महामारी के विषय में बड़े बड़े वैज्ञानिकों के द्वारा बड़े बड़े वक्तव्य दिए
जा रहे थे किंतु उन सभी के वक्तव्यों का मंथन करके भी कोरोना महामारी की
विभिन्न अवस्थाओं के विषय में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँच पाना संभव
नहीं हो सका |
एक बार किसी गाँव में घुसकर हाथी उपद्रव मचा रहा था |गाँव के कुत्ते हाथी के आगे पीछे भौंक तो रहे थे,किंतु उस हाथी को गाँव से बाहर भगा नहीं पा रहे थे |हाथी उपद्रव मचाते चला जा रहा था |बेवश कुत्ते उसे ताकते घूरते भौंकते उसके पीछे पीछे चले जा रहे थे |हाथी जब गाँव से जाने लगता है तो कुत्तों को भ्रम होता है कि उनके भौंकने से डरकर हाथी भगा जा रहा है | इससे उत्साहित होकर कुत्ते और तेज तेज भौंकने लगते हैं |इसी बीच हाथी दोबारा लौटकर फिर उपद्रव मचाने लगता है ! ऐसा बार बार होता रहता है |
कोरोना महामारी उसी उन्मत्त हाथी की तरह निरंकुश होकर उपद्रव करती जा रही थी और महामारी को भगाने के लिए किए
जा रहे सभी प्रकार के मनुष्यकृत प्रयत्न उन बेवश लाचार ग्रामीण कुत्तों के
भौंकने जैसे निरर्थक थे! न कोई अनुमान सहीं निकल रहा था और न ही
पूर्वानुमान !जिसे जो मन आ रहा था वो वही कहे जा रहा था |
इसी प्रकार से महामारी में चिकित्सकीय प्रयत्नों का योगदान रहा | समय
प्रभाव से संक्रमितों की संख्या जब कम होने लगती तब जो औषधि आदि दी जा रही
होती थी | संक्रमण कम होने का श्रेय उसी औषधि को देने लग जाते थे | संक्रमितों की संख्या कम होने का कारण उसी औषधि आदि का प्रभाव मान लिया जाता था!संक्रमितों की संख्या बढ़ने पर उसी औषधि आदि का प्रयोग जब दोबारा किया जाता तो उस औषधि
का संक्रमितों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था, तब यह भ्रम टूटता कि पहले भी
जो लोग स्वस्थ हुए थे वे किसी औषधि के प्रभाव से नहीं अपितु समय के प्रभाव
से ही स्वस्थ हुए थे |इसके बाद उन औषधियों को महामारी की चिकित्सा व्यवस्था
से अलग कर दिया जाता |
जिसप्रकार से गाँव में उपद्रव मचा रहे हाथी को गाँव छोड़कर कभी तो जाना ही होता है | इसलिए हाथी जब जी भर उपद्रव मचाकर चला जाता तब भी उन कुत्तों को यही भ्रम बना रहता है कि उनके भौंकने के भय से भयभीत होकर ही हाथी गाँव से बाहर चला गया है | महामारी से निपटने के लिए हम मनुष्यों के द्वारा किए गए प्रयासों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही रही है |महामारी भी उस उन्मत्त हाथी की तरह जितना उपद्रव मचाना था वो मचाकर ही गई है |मनुष्यकृत प्रयासों से उसे रोका जाना संभव नहीं हो सका है |
अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की तरह महामारी चीन के वुहान से निकलती है और मनुष्यों को संक्रमित करती हुई निर्ममतापूर्वक आगे बढ़ती जाती है |संपूर्ण विश्व का चक्कर लगाकर भारत पहुँचती है| इस विश्वपरिक्रमा में उसे अन्य देशों के साथ साथ कुछ विकासशील देश तो कुछ विकसित देश भी मिले |जिनकी चिकित्सा व्यवस्था अति उन्नत मानी जाती है | कोई भी देश अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं के बल पर अपने देश वासियों को ऐसा कोई महामारीसुरक्षाकवच उपलब्ध नहीं करवा जा सका |जिसके बल पर यह लगे कि महामारी से अब कोई विशेष भय नहीं है |
इसमें विशेष चिंता की बात यह है कि महामारी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा मनुष्यकृत प्रयासों से कहीं रोका नहीं जा सका |महामारी महीनों वर्षों तक संपूर्ण विश्व को रौंदती रही और लोग सहते रहे | महामारी
जब वापस लौटने लगती तो चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न लोग महामारी को
पराजित कर देने के दावे करने लग जाते !महामारी पुनः संक्रमित करने लग जाती !
ऐसा कई बार हुआ | इसीलिए महामारी बार बार घट घट कर बढ़ते देखी जा रही थी
|ऐसा सबकुछ वर्षों तक होता रहा | उस समय कोई भी देश अपनी वैज्ञानिक तैयारियों के बलपर महामारी का सामना करने का साहस नहीं जुटा सका | कोई अनुसंधान औषधि उपाय आदि महामारी के सामने ठहर नहीं सका ! महामारी अपने अश्वमेध यज्ञ को संपूर्ण समझकर दिग्विजय पताका लहराती हुई अंतर्ध्यान हो गई |इससे संबंधित अनुसंधान अधूरे ही बने रहे |
विनम्रनिवेदन !
महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अनुसंधानों का उद्देश्य ऐसे घटनाओं से मनुष्यों की सुरक्षा करना है | इसके लिए घटनाओं के निर्मित होने के लिए जिम्मेदार सही कारण खोजने होते हैं | जो कारण खोजे गए हैं वे कितने सही हैं|इसका परीक्षण करने के लिए उन कारणों के आधार पर भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं | वे जितने प्रतिशत सही निकलते हैं|खोजे गए उन कारणों में उतने ही प्रतिशत सच्चाई होती है |
मौसम
के विषय में मानसून का समय से पहले या पीछे आना या जाना,वर्षा या आँधी
तूफ़ान आदि मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के गलत निकल जाने कारण जलवायुपरिवर्तन
न होकर प्रत्युत ऐसी घटनाओं के घटित होने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार
मानकर ऐसी भविष्यवाणियाँ की जाती हैं | उन कारणों के चयन का आधार ही गलत
होता है |
इसीप्रकार से महामारी
या उसकी लहरों के विषय में जो भी पूर्वानुमान लगाए गए उनके गलत निकलने का
कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन न होकर प्रत्युत उन कारणों को खोजने में
गलती हुई होती है | जिन्हें महामारी आने या उसकी लहरों के आने के लिए जिम्मेदार
माना जा रहा था |
वस्तुतः प्राकृतिक घटनाएँ परोक्ष कारणों से घटित होती हैं |उन्हें समझने के लिए परोक्षविज्ञान का ही सहारा लेना पड़ेगा |परोक्ष कारणों से निर्मित घटनाओं को प्रत्यक्ष विज्ञान से समझना संभव ही नहीं है,फिर भी जो लोग ऐसा करते हैं तो वे अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकल जाते हैं| उसके लिए स्वरूपपरिवर्तन या जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराकर जवाबदेही से बच भले लिया जाए किंतु ये अनुसंधान भावना के अनुरूप नहीं है
वर्तमान समय में अक्सर देखा जा रहा है कि भूकंप आता है चला जाता है उससे जनधन का जो नुक्सान होना होता है वो हो जाता है|भूकंपविज्ञान की सार्थकता तभी है,जब इस नुक्सान को कम किया जा सके|यदि नुक्सान हो ही जाता है|उसके बाद भूकंप की गहराई कितनी थी|भूकंप का केंद्र कहाँ था|ऐसी बातों का कोई मजबूत आधार तो होता नहीं है और यदि हो भी तो ऐसे अंदाजे माज के किस काम के हैं |भूकंपविज्ञान का उद्देश्य ऐसी घटनाओं से समाज की सुरक्षा करना है |भूकंप की गहराई और केंद्र बता देने से समाज की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित हो जाती है |
इसलिए आवश्यकता के अनुसार अनुसंधान होने चाहिए |इसलिए आवश्यकता है महामारी के विषय में सही पूर्वानुमान पता लगाने की किंतु पता लगाया जा रहा है कि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है | ऐसे ही मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में आवश्यकता है सही पूर्वानुमान लगाने की,किंतु जलवायुपरिवर्तन होने की सूचना दी जा रही है| आवश्यकता है भूकंप का पूर्वानुमान लगाने की किंतु भूकंप की गहराई और केंद्र की सूचना दी जा रही है |
ऐसे ही वर्षा बाढ़ आदि से संबंधित अनुसंधान भी मनुष्य केंद्रित होने चाहिए !अर्थात किस प्राकृतिक घटनाओं से अपनी सुरक्षा के लिए अनुसंधानों का उद्देश्य ही प्राकृतिक आपदाओं से समाज को सुरक्षित रखना है|ऐसे प्राकृतिक संकटों से यदि समाज को जूझना पड़ ही गया,तो उन अनुसंधानों से उसे क्या लाभ हुआ !
इसी प्रकार से कोरोना महामारी से संबंधित अनुसंधानों की सार्थकता इसी में थी कि महामारी से समाज को सुरक्षित बचाया जा सका होता|महामारी में जितने लोगों को संक्रमित होना था, वे हुए | जिन लोगों की मृत्यु होनी थी उनकी मृत्यु हुई| इसके बाद महामारी और भी कुछ बुरा करना चाहती तो वो भी कर सकती थी | मनुष्यकृत ऐसी कोई तैयारी नहीं थी जिससे मनुष्यों को सुरक्षित रखा जाना संभव होता |
बताया जाता है कि विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है | इसके बाद भी यह पता लगाया जाना संभव नहीं हो पाया है कि महामारी की कितनी लहरें अभी
और आनी जानी हैं| उनका समय कब कब होगा |निकट भविष्य में ऐसी कोई महामारी
या प्राकृतिक आपदा आनेवाली है या नहीं! मनुष्यों की सुरक्षा से जुड़े ऐसे पूर्वानुमान लगाए जाने आवश्यक हैं|मनुष्यों को ये तो पता होना ही चाहिए कि उनके साथ कब क्या घटित होने की संभावना है|उससे बचाव के लिए जो संभव होगा वो किया जाएगा |
कोरोनामहामारी
ने विश्ववैज्ञानिकों को अपने
अनुसंधानों की गुणवत्ता प्रकट करने के लिए यह सर्वोत्तम अवसर उपलब्ध करवाया
था| इसमें वैज्ञानिक क्षमता के बल पर महामारी आने से पहले उसके विषय में या उसकी लहरों के
विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा सकते थे| आवश्यक उपाय अपनाकर महामारी से समाज को
सुरक्षित
बचा सकते थे| संक्रमितों की मदद करके महामारी से मुक्ति दिला सकते थे |
ऐसे सफल प्रयासों से विश्वमंच पर ये स्वतः सिद्ध हो जाता कि वास्तव में विज्ञान ने बहुत
उन्नति कर ली है |
कुलमिलाकर महामारी
आने से यह तो सिद्ध हो ही गया है कि वर्तमानवैज्ञानिक क्षमता के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों से सुरक्षा के लिए कोई मजबूत इंतजाम
नहीं हैं| इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए ऐसी हिंसकघटनाओं के विषय में नए सिरे से अनुसंधान शुरू किए जाने की आवश्यकता है|
जिस प्रकार से किसी
देश में अवैध कब्जे रोकने के लिए नियम बना दिया जाएँ या भूमिगत जलस्तर
नीचे चले जाने के कारण बोरिंग करने पर प्रतिबंध लगा दिए जाएँ |ऐसे
प्रतिबंधों के पालन के लिए कुछ अधिकारी कर्मचारियों को जिम्मेदारी सौंप दी
जाए | इसके बाद भी अवैध कब्जे एवं अवैध बोरिंग होती रहें | वे इन्हें रोकने
में सफल न हों तो उन्हें पारिश्रमिक क्यों दिया जाए ! जनता के द्वारा कर रूप में शासक को दिया गया धन उन्हीं कार्यों पर खर्च होना चाहिए |जो जनता को सुरक्षा और सुख सुविधा प्रदान करने में सहायक हों |
इसी प्रकार से जिस आवश्यकता की पूर्ति के लिए जो अनुसंधान किए जाते हैं उन कार्यों को करने में सफल होने वाले व्यक्ति को ही उससे संबंधित पद प्रतिष्ठा एवं पारिश्रमिक आदि प्रदान किया जाना चाहिए |
अधूरे अनुसंधानों का महामारी से हुआ सामना !
वर्तमानसमय विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है|जिससे मनुष्यजीवन की कठिनाइयों
को कम करके सुख सुविधा के साधन जुटा लिए गए हैं| विज्ञान
की उपलब्धियाँ जिस जनता के काम आनी हैं | उन्हीं लाखों
लोगों का जीवन महामारी निगल गई| इतने उन्नत विज्ञान के होने पर भी कोरोनामहामारी से लाखों लोगों की मृत्यु हो जाना गंभीर चिंता की बात है | इसलिए वैज्ञानिक उपलब्धियों की सार्थकता तभी है जब महामारी से जीवन की सुरक्षा का प्रबंध पहले कर लिया जाए,बाकी सारी सुख सुविधाएँ उसके बाद हैं|जीवन सुरक्षित बचेगा तभी ऐसी सुख सुविधाओं का आनंद लिया जा सकेगा |
महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के विषय में यदि सही सही अनुमानपूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं हो पाया है, तो इसके लिए जितने आधुनिकवैज्ञानिक जिम्मेदार हैं|प्राचीन वैज्ञानिकों की भी उतनी ही जिम्मेदारी बनती है|जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में आधुनिकवैज्ञानिक अपनी वैज्ञानिकपद्धति से अनुसंधान करते हैं|उन्हीं प्राकृतिक घटनाओं के विषय में प्राचीनवैज्ञानिकों को भी अपनी पद्धति से अनुसंधान करके के सरकार एवं समाज के सामने प्रस्तुत करना चाहिए | दोनों की अपनी अपनी वैज्ञानिक विधाएँ हैं|दोनों अपने अपने विषयों के अनुसार अनुसंधान करते हैं |
विशेष बात यह है कि आधुनिकवैज्ञानिकों के अनुसंधानों से प्राकृतिकघटनाओं के विषय में जो अनुभव अनुमान पूर्वानुमान आदि प्राप्त होते हैं| वे तो समाज को पता लगते हैं और उनसे कभी कभी समाज को भी लाभ मिलता है| आधुनिकविज्ञान
का जब जन्म नहीं हुआ था तब तो यही सारी जिम्मेदारी प्राचीनवैज्ञानिकों को ही सँभालनी पड़ती थीं| ऐसी प्राकृतिकआपदाओं रोगों
एवं महामारियों से स्वास्थ्यसुरक्षा वही प्राचीन वैज्ञानिक ही प्रदान किया करते थे| आधुनिकविज्ञान और उससे संबंधित वैज्ञानिकों के आ जाने से अब ऐसा क्या हो
गया कि प्राचीनवैज्ञानिकों के द्वारा किए जा रहे अनुसंधानों का पता ही
नहीं लग पा रहा है| प्राकृतिकआपदाओं या महामारियों से चाहें जितनी भी
जनधन हानि हो उससे बचाव में प्राचीन वैज्ञानिकों का योगदान ही पता नहीं लग पाता है |
ज्योतिष की तरह ही आयुर्वेद या वेद आदि प्राचीन विज्ञान के क्षेत्र में जो अनुसंधान होते हैं उनसे क्या प्राप्त होता है | ये न तो समाज को पता लगता है और न ही समाज उससे लाभान्वित होता है| प्राचीनवैज्ञानिकों के द्वारा इन्हीं क्षेत्रों में बहुत बड़े बड़े कार्य किए गए हैं |प्रकृति के अनेकों रहस्य सुलझाए गए हैं| सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में न केवल पूर्वानुमान लगाए गए हैं,प्रत्युत पूर्वानुमान लगाने के लिए गणितीय प्रक्रिया भी खोजी गई है | आधुनिकविज्ञान और उससे संबंधित वैज्ञानिकों के आ जाने से अब ऐसा क्या हो गया कि प्राचीन वैज्ञानिकों ने अब अपने को बिल्कुल ही पीछे कर लिया है | कोरोना महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के विषय में उनके द्वारा भी पूर्वानुमान लगाए जाने चाहिए |संभव है कि आधुनिकवैज्ञानिकों और प्राचीन वैज्ञानिकों के द्वारा यदि मिलजुल कर संयुक्त रूप में अनुसंधान किए जाएँ तो वर्तमान समाज की कुछ बड़ी समस्याओं के समाधान निकाले जा सकते हैं |
ज्योतिषशास्त्र को अत्यंत प्राचीनकाल से ही भविष्य को देखने
में सक्षम माना जाता रहा है |इसके द्वारा जिस प्रकार से प्रकृति और जीवन
में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाता रहा है|उसी प्रकार से महामारियों के विषय में भी तो पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |ज्योतिष विद्वानों के ऐसा न कर पाने का कारण क्या है ?इसके द्वारा यह भी पता
लगाया जा सकता है कि इस महामारी से किस व्यक्ति के संक्रमित होने की कितनी
संभावना है |किस व्यक्ति को कितना कष्ट मिल सकता
है | इस प्रकार से ज्योतिषशास्त्र महामारी जैसी घटनाओं से बचाव के लिए बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है |
इसीप्रकार से आयुर्वेद संबंधी चिकित्साविज्ञान है | जो भारत की अत्यंत प्राचीन परंपरा है |आधुनिक विज्ञान आने से पहले उसी के आधार पर बड़े बड़े रोगों की सफल चिकित्सा होती रही है | चरकसंहिता और सुश्रुतसंहिता
जैसे शीर्ष ग्रंथों में रोगों महारोगों (महामारियों) के आने से पहले
अनुमान
पूर्वानुमान आदि लगाने ,औषधीय द्रव्यों के आहरण करने एवं चिकित्सा प्रारंभ
करने के लिए जो ज्योतिषीय विधि बताई गई है |भविष्य में आने वाली महामारी से सुरक्षा के लिए आवश्यक औषधीयद्रव्यों का संग्रह कर लेने के लिए भी समझाया गया है | जिनके प्रभाव से महामारी आने पर उससे मुक्ति दिलाना संभव हो सके |
विशेष बात ये है कि उसप्रकार की ज्योतिषीय बातों को समझने के लिए ज्योतिष की
जानकारी होनी आवश्यक है|प्राचीनकाल में वैद्य लोग ज्योतिष भी जानते थे
उसके आधार पर रोगों महारोगों के विषय में पूर्वानुमान तो लगा ही लिया करते
ही थे|इसके साथ ही साथ रोगी परीक्षण एवं रोग परीक्षण के लिए भी
ज्योतिषविज्ञान का सहारा लेकर ये भी पता लगा लिया करते थे कि किस रोगी को स्वस्थ होना है और किसको नहीं ! उसी के अनुसार वे चिकित्सा किया करते थे | यही कारण है कि उस युग में वैद्यों के सान्निध्य में न तो किसी रोगी की मृत्यु होती थी और न ही उन्हें अपने यहाँ शवगृह बनाकर रखने पड़ते थे|वर्तमान आयुर्वैदिक शिक्षा पाठ्यक्रम में ज्योतिष का अभाव है| इसीलिए आयुर्वेद के चरकसंहिता और सुश्रुतसंहिता आदि ग्रंथों में वर्णित ज्योतिषीय प्रकरणों को समझना संभव नहीं हो पाया है |
प्राचीनविज्ञान के द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में न केवल पूर्वानुमान
लगाया जाना संभव है, प्रत्युत ऐसी हिंसक घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए
भी यज्ञवैज्ञानिक प्रयोग बताए गए हैं |वैदिकविज्ञान अत्यंत प्राचीन विज्ञान है | इसमें यज्ञों के माध्यम
से महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्यों को सुरक्षित रखने की विधि
बताई गई है | प्राचीनकाल में प्रकृति एवं जीवन से संबंधित ऐसी बड़ी बड़ी
आपदाओं महामारियों को यज्ञों के द्वारा नियंत्रित करने का वर्णन मिलता है | ऐसा किया जाना अभी भी संभव है ,किंतु महामारी से बचाव क्यों नहीं किया जा सका !
ऐसे ही धर्म के नाम पर कुछ लोग किसी के मन की बात या बीती बात बता देते हैं| कुछ लोग बड़े बड़े दरवार लगाकर रोगों या संकटों से मुक्ति दिलाने का दावा करते हैं| कुछ लोग स्वयं को भगवान बताते हैं !कुछ लोग गुरु
जगद्गुरु ब्रह्मांडगुरु योगगुरु ,साधक,सिद्ध तांत्रिक मांत्रिक आदि बनकर
समस्याओं का समाधान करने के लिए चौकी
गद्दी सभा दरवार आदि लगाते हैं| ऐसे ही भिन्न भिन्न धर्मों से
संबंधित जो लोग अपने अपने धर्म को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए दूसरे धर्म वालों से लड़ा करते हैं|ऐसे
धर्मों में ऊँचे पदों पर प्रतिष्ठित लोग अपने को साधक सिद्ध सर्वज्ञ
आदि बताते हैं|ऐसे सभी लोगों से भी आग्रह किया जाना चाहिए कि यदि आपके पास ऐसा कोई तपोबल है तो कोरोना जैसी महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं के समय जनसुरक्षा की दृष्टि प्रभावी भूमिका निभाएँ अन्यथा ऐसे दावों पर विराम लगा दिया जाना चाहिए |
अनुसंधानों की प्रक्रिया में परिवर्तन होना चाहिए !
प्राचीन काल में विद्वान और तपस्वी लोगों को भी अपनी विद्या तपस्या आदि के द्वारा जनहित के कार्यों का दायित्व सँभालना पड़ता था | जंगल में रहकर ऋषि मुनि प्रतिपल बदलते प्राकृतिक वातावरण का अध्ययन किया करते थे|ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति को जनहित की कोई न कोई जिम्मेदारी सँभालनी पड़ती थी|ऐसा किए बिना जनता के द्वारा कर रूप में राजा को दिया गया धन यूँ ही किसी व्यक्ति या विद्वान पर खर्च नहीं किया जाता था |वैज्ञानिक अनुसंधानों के क्षेत्र में भी इस प्रक्रिया का पालन किया जाता था |
प्राचीनकाल
में राजकाज का संचालन इसी पवित्रप्रक्रिया के आधार पर अत्यंत न्यायपूर्ण
ढंग से किया जाता था |जनता के जिस कार्य को करने की जिम्मेदारी जिसे सौंपी
जाती थी | वह कार्य पूर्ण होने पर उस कार्य के बदले उसे पारिश्रमिक दिया
जाता था| जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी अपनी आजीविका अर्जन के लिए स्वयं
जिम्मेदार हुआ करता था| पारिश्रमिक पाने के लिए उसे जिम्मेदारी का निर्वाह
करना ही पड़ता था | जिस
देश में किसी कार्य को करने की जिम्मेदारी सौंपते समय ही उसका वेतन
निर्द्धारित कर दिया जाता है | जिम्मेदारी का निर्वाह न करने पर भी उसे किसी हानि का भय नहीं होता है | यदि उसे उतना वेतन मिलना ही है तो वो उन जिम्मेदारियों का
बोझ क्यों उठाना चाहेगा | ऐसी मानसिकता का प्रभाव सभी क्षेत्रों में देखा जाता है |
पूर्वानुमानों के आधार पर प्रोत्साहन !
प्राचीनकाल में वैज्ञानिकों की योग्यता का आधार न तो उनकी शिक्षा या अनुसंधानों को नहीं माना जाता था | राजा लोग विद्वानों से प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगवाते थे |उनमें से जितने प्रतिशत सही निकल जाते थे | उन्हें उतने प्रतिशत सफल वैज्ञानिक मान लिया जाता था |
राजा लोग इस बात में ब्यर्थ समय नहीं गँवाते थे कि विज्ञान क्या है
क्या नहीं !किस वैज्ञानिक ने क्या पढ़ा है क्या नहीं!किसने किस प्रकार के अनुसंधान
किए हैं किस प्रकार के नहीं!ऐसे ही कौन भूकंप कितनी गहराई में आया था |किस भूकंप की तीव्रता कितनी थी| जमीन के अंदर कितनी प्लेटें हैं | कौन प्लेट कहाँ किस पर तैरती या किससे टकराती है| ऐसी अनावश्यक किस्से कहानियों को सुनने के लिए उनके पास समय कहाँ होता था | वैसे भी ऐसी काल्पनिक बातें समाज के भूकंप संबंधी संकटों को कम करने में सहायक नहीं होती हैं |इसलिए राजा लोग भूकंपों के आने के विषय में केवल पूर्वानुमान जानना चाहते थे ताकि भूकंपों के आने से पहले वे बचाव के लिए कुछ अग्रिम तैयारियाँ करके रख सकें | जिन के द्वारा लगाए पूर्वानुमान सही निकलते थे उन्हें भूकंप वैज्ञानिक मानकर राजसभा में रख लिया जाता था | जिनके द्वारा लगाए गए भूकंप संबंधी पूर्वानुमान सही न निकलें तो वे किस बात के भूकंपवैज्ञानिक !ऐसे लोगों को राजसभा में रखकर भी उनका क्या करते !क्योंकि राजाओं का उद्देश्य भूकंपों से होने वाली जनधन हानि को कम करना होता था |
ऐसे ही मौसम के क्षेत्र में अलनीनो है या लानिना है ! मानसून आने या जाने की तारीखें कौन कौन हैं !पश्चिमी विक्षोभ है या नहीं ! जलवायु परिवर्तन हो रहा है या नहीं ! ऐसी किसी बात से आम समाज का कोई लेना देना ही नहीं है|जनता मौसमवैज्ञानिकों से केवल इतनी अपेक्षा रखती है कि वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं के विषय में आगे से आगे सही पूर्वानुमान उपलब्ध कराए जाते रहें |
ऐसे ही महामारी या उसकी लहरों के विषय में पूर्वानुमान लगाए जाने की सबसे पहले आवश्यकता होती है | महामारी के अचानक आक्रमण से बचाव हेतु अग्रिम तैयारियाँ करने के लिए समय तो चाहिए ही होता है|समय तभी मिल सकता है जब पहले से पूर्वानुमान पता हों |इसीलिए वैज्ञानिक लोग महामारी और उसकी लहरों के विषय में पहले अनुमान पूर्वानुमान लगाते थे | जिनकी भविष्यवाणियाँ सही निकल गईं उन्हें महामारी वैज्ञानिक के रूप में पद प्रतिष्ठा प्रदान करके राज सभाओं में आजीविका प्रदान कर दी जाती थी |
इसके अतिरिक्त तापमान बढ़ने से महामारी घटेगी या वर्षा होने से महामारी घटेगी ऐसी काल्पनिक बातों को सुनने में राजाओं की कोई रुचि नहीं होती थी ! क्योंकि ऐसी बातें जिनके विषय में निश्चित तौर पर कुछ कहा ही नहीं जा सकता है | उनके आधार पर राजा लोग प्रजा की सुरक्षा के लिए कोई योजना भी तो नहीं बना सकते थे |
कुल मिलाकर किसी भी धर्मराज्य में प्रजा के द्वारा कर रूप में दिए गए धन का उपयोग राजा लोग प्रजा के हित में ही किया करते थे |अयोग्य लोगों को योग्यपदों पर बैठाकर उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी निरर्थक रूप से प्रजा पर नहीं डाली जाती थी | प्रत्येक व्यक्ति को यह सिद्ध करना पड़ता था कि वह प्रजा के जीवन को सुरक्षित रखने या सुख सुविधा पहुँचाने में किस प्रकार से सहयोगी सिद्ध होगा |
सामान्य रूप से भूकंप,मौसम या महामारी संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमानपूर्वक परीक्षण किए बिना ही जो राजा भूकंपवैज्ञानिक, मौसमवैज्ञानिक या महामारीवैज्ञानिक जैसे पदों पर प्रतिष्ठित करके उन पर प्रजाधन व्यय किया जाता है | ये धर्मसम्मत न होने के कारण ऐसी घटनाओं के घटित होने पर इसका दंड राजा प्रजा दोनों को सहना पड़ता है |ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ जब जब घटित होती हैं तब तब जनता पीड़ित होती है | राजा सुरक्षा के लिए परेशान होता है|ऐसे कठिन समय में उन काल्पनिक वैज्ञानिकों से प्रजा को कोई मदद नहीं मिल पाती है ,जबकि प्रजाधन से ही उन्हें आजीविका समेत समस्त सुख सुविधाएँ प्रदान की जा रही होती हैं,जबकि ऐसे संकटों के समय प्रजा की सुरक्षा में उनकी कोई विशेष भूमिका सिद्ध नहीं हो पाती है | इसीलिए प्राचीन काल में अनुसंधानों को
करने की जिम्मेदारी केवल उसे सौंपी जाती थी|जो जिस विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर अपनी उस प्रकार की योग्यता सिद्ध
कर चुका होता था |प्राकृतिक घटनाओं पर परीक्षण के बिना किसी को केवल उसकी शिक्षा के बल पर उसे वैज्ञानिक मान लिया जाना इसी आधार पर उसे किसी पद विशेष पर अभिषिक्त कर दिए जाने से समस्याओं का समाधान नहीं होता |
वैसे भी किसी प्राकृतिक घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी ऐसे विज्ञान का होना आवश्यक है जिसके द्वारा भविष्य की घटनाओं को देखा जाना संभव हो | ज्योतिष के अतिरिक्त ऐसा कोई दूसरा विज्ञान नहीं है, जिसके द्वारा भविष्य में झाँकना संभव हो |ज्योतिष को यदि विज्ञान के रूप में स्वीकार न किया जाए तो दूसरा ऐसा कौन सा विज्ञान है जिसके आधार पर मौसम एवं महामारी संबंधी पूर्वानुमान लगाए जाते हैं | ऐसे अवैज्ञानिक पूर्वानुमानों को मौसम एवं महामारी के समय बार बार गलत निकलते देखा जाता रहा है | महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं का सामना इतनी कमजोर तैयारियों के बल पर नहीं किया जा सकता है |
जिम्मेदारी दिए बिना नहीं हो सकते अनुसंधान
देश की सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन सैनिकों को सौंपी जाती है | उन्हें सुरक्षा करनी ही होती है | यदि वे अपने कर्तव्य पालन में चूक जाएँ और शत्रु आकर युद्ध छेड़ दे तो उस चूक के लिए सैनिक चाहें जितने कारण गिनावें !उन पर ध्यान दिए बिना उनसे अपेक्षा यही की जाती है कि सीमाओं की सुरक्षा तो की ही जानी चाहिए थी | सैनिकों पर यदि सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है तो शत्रु स्वरूप परिवर्तन करके लड़े या फिर युद्ध के प्रकार में परिवर्तन कर ले | उन सारे परिवर्तनों को समझकर उनसे निपटना सैनिकों की स्वयं की जिम्मेदारी होती है | उन्हें हर हाल में युद्ध जीतना पड़ता है |
इसी प्रकार से भूकंप मौसम और महामारी से संबंधित पूर्वानुमान लगाने की जिम्मेदारी जिन्हें सौपी जाती है| ये उनका दायित्व बनता है कि वे ऐसी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान खोजकर अपनी जिम्मेदारी पर खरे उतरें |जलवायु परिवर्तन तथा महामारी के स्वरूप परिवर्तन जैसी बाधाओं का निराकरण वे स्वयं निकालें यही तो उनमें विशेषज्ञता होनी चाहिए | जनता की आवश्यकता के अनुरूप आपूर्ति की जानी चाहिए |
भूकंप
अचानक आते हैं !उससे जनधन का बहुत नुक्सान हो जाता है |ऐसे में जनता को अपना
बचाव करने के लिए समय नहीं मिल पाता है | इसलिए जनता की आवश्यकता भूकंप के विषय में सही पूर्वानुमान पाना है | कहाँ कब भूकंप आ सकता है | जनता यह जानना चाहती है ताकि उसे अपना बचाव करने के
लिए समय मिल जाए | भूकंपों के विषय में सही पूर्वानुमान लगाकर जनता को कोई भी बता दे
जनता के लिए वही भूकंप वैज्ञानिक है | उसने भूकंप विज्ञान पढ़ा है या नहीं
इससे उसे कोई मतलब नहीं होता है |
इसीलिए प्राचीनकाल में प्राकृतिकघटनाओं
के पूर्वानुमानों पर केंद्रित अनुसंधान किए जाते थे | जिस घटना के विषय में जिसके द्वारा लगाए
लगाए गए पूर्वानुमान जितने अधिक सही निकल जाते थे | उन्हें उस घटना के विषय में
पूर्वानुमान लगाने में उतना सक्षम मान लिया जाता था | इसप्रकार से महामारी या प्राकृतिक आपदाओं से जनता की
सुरक्षा करने में जिसकी जितनी प्रभावी भूमिका होती है |उसे जनधन से उतना
पारिश्रमिक एवं पद प्रतिष्ठा आदि प्रदान की जाती थी |
वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात आदि प्राकृतिक घटनाओं
के विषय में भी जो जितने सही पूर्वानुमान जितने पहले उपलब्ध करवा देता था | जनता की आवश्यकता की आपूर्ति करने में सक्षम होने के कारण उसे उसप्रकार की पद प्रतिष्ठा पारिश्रमिक आदि प्रदान किया जाता था | |
सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही महामारियाँ भी अचानक आकर लोगों
को तेजी से संक्रमित करने लगती हैं| उतने कम समय में महामारियों को पहचानना
उनकी चिकित्सा के विषय में निर्णय लेकर इतनी अधिक मात्रा में औषधि का
निर्माण करके उसे जन जन तक पहुँचाना संभव नहीं हो पाता है| इसलिए
महामारियों से जनधन को सुरक्षित बचाने के लिए महामारी के विषय में सही पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है ताकि महामारी से सुरक्षा के
लिए अग्रिम तैयारियाँ करके पहले से रखी जा सकें |
महामारियों के विषय में जिसके द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान जितने अधिक सही
निकलें | महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में पूर्वानुमान लगाने की
जिम्मेदारी उसे सौंपकर उसके योग्य पद प्रतिष्ठा पारिश्रमिक आदि का उसे प्रदान किया जाना चाहिए |
कुल मिलाकर भूकंप मौसम या महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जनता की आवश्यकता सही पूर्वानुमानों की होती है | ऐसी घटनाओं के जो सही पूर्वानुमान समय से उपलब्ध करवा दे
वो वैज्ञानिक हो भूकंप वैज्ञानिक हो ,ज्योतिषी हो ,तांत्रिक हो ,योगी हो
,साधक ,सिद्ध आदि कुछ भी हो या कुछ भी न हो जनता की आवश्यकता का ऐसी बातों से कोई लेना देना ही नहीं है | जनता का तो केवल सही पूर्वानुमानों से मतलब होता है | जो भूकंप मौसम या महामारी जैसी हिंसक प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने पर सुरक्षा में सहायक होते हैं |
ऐसी घटनाओं के विषय में किसी ने क्या पढ़ा है क्या नहीं या अनुसंधानों के नाम पर क्या किया है क्या नहीं | वो कितनी उपाधियों से विभूषित है ! कितना विद्वान है इससे राजा और प्रजा का कोई लेना देना नहीं होता था |वैज्ञानिकों की पहचान करते समय केवल उसका वो गुण देखा जाता था जिसके लिए उसकी आवश्यकता होती है | उसके पास बाक़ी सारे गुण हों केवल वो गुण न हो !जिसकी आवश्यकता है तो उससे उस समाज का क्या लाभा जिसके द्वारा कर रूप में दिया गया धन उनके भरण पोषण आजीविका आदि पर खर्च किया जाता है |
किसी भूकंप वैज्ञानिक को भूगर्भ में लावा पर तैरती प्लेटों की पूरी जानकारी हो !उनके आपस में टकराने से भूकंप आता है ये भी पता हो,भूगर्भ में गैसों का दबाव बनने से भूकंप आता है ये भी पता हो | किस जोन में भूकंप आने का कितना ख़तरा रहता है ये भी पता हो !वो व्यक्ति भूकंप की तीव्रता कितनी है ये पता लगा लेता हो | भूकंप कितनी गहराई से आया है ये जनता हो |किंतु भूकंप के विषय में पूर्वानुमान लगाना न जानता हो तो बाक़ी सारी जानकारी जनता के किसी काम की नहीं है | जो लोग भूकंप वैज्ञानिक हुए बिना ही भूकंपों के आने के विषय में पूर्वानुमान घोषित कर दिया करते थे |उनमें से जिनके पूर्वानुमान सही निकल जाते थे | वे वास्तव में भूकंप वैज्ञानिक कहलाने के अधिकारी होते हैं | प्राचीन काल में ऐसे
वैज्ञानिकों को न केवल उचित पारिश्रमिक दिया जाता था, प्रत्युत उनके
द्वारा लगाए गए पूर्वानुमानों की सच्चाई के आधार पर उन्हें पद प्रतिष्ठा आजीविका आदि प्रदान की जाती थी |
ऐसे ही वर्षा बाढ़ आँधीतूफ़ान जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जिन वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान सही निकलते थे | केवल उन्हें ही वैज्ञानिकों के रूप में पद प्रतिष्ठा पारिश्रमिक आदि प्रदान किया जाता था |
इसीप्रकार
से रोगों महारोगों (महामारियों) आदि के विषय में सही सटीक अनुमान
पूर्वानुमान लगाकर महामारियों से निपटने की अग्रिम तैयारियाँ करके रख लेने
वाले वैज्ञानिकों को ही महामारी वैज्ञानिकों के रूप में पद प्रतिष्ठा पारिश्रमिक आदि दिया जाना न्यायपूर्ण समझा जाता था |
कुछ साधक तपस्वी यज्ञवैज्ञानिक आदि अपनी साधना तपस्या यज्ञ आदि के द्वारा प्राकृतिक आपदाओं
तथा महामारियों के वेग को नियंत्रित कर लिया करते थे | इससे जनधन हानि
होने से बचाव हो जाया करता था|जो लोग ऐसा करके अपनी क्षमता को प्रमाणित रूप
से प्रस्तुत कर पाते थे|उन्हें उसी के अनुरूप उचित पारिश्रमिक एवं पद
प्रतिष्ठा आदि प्रदान की जाती थी|
इसप्रकार से अपने अपने क्षेत्रों में सर्वाधिक सफल भूमिका का निर्वाह करने वाले लोगों को राजज्योतिषी राजवैद्य राजपंडित राजपुरोहित आदि सम्मानित पदों के निर्वाह की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी |
प्राचीनकाल में अनुसंधानों को घटनाओं की कसौटी पर कसा जाता था | वर्तमान समय में भी घटनाओं पर आधारित अनुसंधान पद्धति होनी चाहिए | वैज्ञानिक कहलाने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए | प्राकृतिक घटनाओं के विषय में ही विद्वानों से भविष्यवाणी करवाई जानी चाहिए | जिनकी भविष्यवाणियाँ जितनी सही निकलें ,उन्हें ही उतनी पद प्रतिष्ठा
आजीविका आदि मिलनी चाहिए | प्राचीनकाल में राजा लोग ऐसे विद्वानों की आजीविका का बोझ प्रजा पर नहीं
डालते थे| जो अपनी योग्यता से प्रजा की मदद करने में सक्षम न हों |शिक्षा
के क्षेत्र में पहले डिग्रियाँ होती नहीं थीं |इसलिए
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता प्रत्यक्ष रूप से ही सिद्ध करनी होती
थी| जैसे धनुर्विद्या की परीक्षा प्रत्यक्ष रूप में ली जाती थी | उसी प्रकार से प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की परीक्षा भी प्रत्यक्ष रूप से ही करवाई जाती थी | विद्वानों से भविष्यवाणियाँ करवाई जाती
थीं|जिनकी भविष्यवाणियाँ जितनी सही निकलती थीं उन्हें उतनी पद प्रतिष्ठा
पैसे आदि मिलते थे | जिनके द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि सबसे
अधिक सही निकलते थे! उन्हें राजज्योतिषी जैसी पद प्रतिष्ठा प्राप्त होती
थी| ऐसे ही चिकित्सा के क्षेत्र में जो जितना सिद्ध हस्त होता था |उसे उस
प्रकार का सम्मान एवं राजवैद्य पद प्रतिष्ठा आदि प्रदान की जाती थी | इसीप्रकार से वेद वैज्ञानिक यज्ञविज्ञान के द्वारा संकट
कालीन परिस्थितियों में प्रजा की मदद किया करते थे |
भारतवर्ष में परंपरा से प्राप्त वैज्ञानिक सफलताओं का अत्यंत उत्तम इतिहास रहा है|प्राचीनविज्ञान
के द्वारा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान महामारी आदि घटनाओं के विषय में अनुमान
पूर्वानुमान आदि हमेंशा से लगाए जाते रहे हैं|जो सही भी निकलते रहे हैं|उसी
परंपरागतगणित विज्ञान
के द्वारा सूर्य चंद्र आदि ग्रहणों के विषय में वर्षों सदियों पूर्व लगाए
जाते रहे पूर्वानुमानों का सही निकलना इस बात का प्रमाण है कि
प्राचीनविज्ञान के आधार पर वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान महामारी आदि घटनाओं के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना संभव है |
जिस प्रकार से किसी सर्जन चिकित्सक की डिग्रियाँ उसकी विषयगत
योग्यता का प्रमाण अवश्य होती हैं किंतु उसमें आप्रेशन करने की योग्यता उस
शिक्षा एवं अनुभव के संयुक्त अभ्यास से ही आती है |कुछ सफल सर्जरी कर लेने
के बाद ही उसे सर्जरी कर लेने की विश्वसनीयता प्राप्त होती है |
इसीप्रकार से प्राचीनविज्ञान हो या आधुनिकविज्ञान उससे संबंधित
वैज्ञानिकों को केवल उनकी डिग्रियों के आधार पर पूर्वानुमान लगाने जैसी बड़ी
जिम्मेदारी नहीं दे दी जानी चाहिए | भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान महामारी आदि घटनाओं के विषय में अध्ययन अनुसंधान जैसी जनधन सुरक्षा से जुड़ी बड़ी जिम्मेदारी केवल उसी को मिलनी चाहिए | जिसने संबंधित घटना के विषय में अपनी योग्यता अनुभव आदि के आधार पर अभ्यास पूर्वक
सही अनुमान पूर्वानुमान आदि पहले से घोषित करने जैसे प्रमाण प्रस्तुत किए
हों | ऐसे वैज्ञानिकों से ही आवश्यकता पड़ने पर सही पूर्वानुमानों की
अपेक्षा करनी चाहिए |
अनुभव एवं अभ्यासशून्य डिग्रीवान वैज्ञानिकों के द्वारा सही पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाता है|इसके लिए उन्हें उन घटनाओं के विषय में अपने अध्ययन अनुभव एवं अनुसंधान के आधार पर अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने होते हैं | ऐसा किए बिना पूर्वानुमानों के नाम पर वे जो बताते भी हैं | वे उनकी कल्पनाऍं मात्र होती हैं | उनका ऐसा कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है जो अनुभव जनित भी हो| कोरोना महामारी के समय इसका अनुभव सारी दुनियाँ ने किया है |
कई बार भूकंप जैसे विषयों में विज्ञान संबंधी डिग्री धारकों को देखा जाता
है कि वे भूकंपों के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान भले न लगा पाते हों
किंतु भूकंप आने का कारण क्या है ?भूकंप कितनी गहराई से आया है | उसकी
तीव्रता कितनी है आदि विषयों में जानकारियाँ देते रहते हैं|ऐसी बातों की
भूकंपों के विषय में न तो कोई उपयोगिता होती है और न ही भूकंप आने पर ऐसी बातों से समाज को कोई मदद ही मिल पाती है,फिर भी भूकंप वैज्ञानिकों के रूप में सारी सुख सुविधाएँ पद प्रतिष्ठा आदि उन्हें सारे जीवन प्राप्त होते रहते हैं |
इसीलिए प्राकृतिक विषयों में प्राचीन वैज्ञानिक हों या आधुनिक उनकी
योग्यता परीक्षण में डिग्रियों के साथ साथ उन अनुभवों अनुसंधानों अनुमानों
पूर्वानुमानों को भी अवश्य सम्मिलित किया जाना चाहिए जो संबंधित प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पहले से करके प्रकाशित किए गए हों बाद में उसी प्रकार की घटनाएँ घटित हुई हों |
कई बार विमान दुर्घटना,रेल दुर्घटना,आतंकी दुर्घटनाएँ,दंगे तथा शत्रु
देशों के द्वारा रचे जाने वाले युद्ध संबंधी षड्यंत्रों के विषय में पहले
से पूर्वानुमान लगाए जाने चाहिए | ऐसी दुर्घटनाओं से समाज को सुरक्षित
बचाकर उत्साह बढ़ाना चाहिए |
कुल मिलाकर ऐसे सभी वैज्ञानिकों एवं धर्मवैज्ञानिकों को महामारी के रूप
में एक अच्छा अवसर मिला था | जिसमें वे अपने अपने अनुसंधानों आराधनाओं आदि
की विशेष क्षमता विश्वमंच पर प्रमाणित रूप से प्रस्तुत कर सकते थे|वैज्ञानिकों एवं धर्मवैज्ञानिकों का संपूर्ण खर्च वैसे भी जनता ही वहन करती है| इसलिए उनके अनुसंधानबल या तपोबल पर जनता का भी उतना ही आत्मीय अधिकार है|इससे हर हाल में जनता की सुरक्षा सुनिश्चित की ही जानी चाहिए |
मेरा विश्वास है कि ऐसी बड़ी हिंसक घटनाओं से संबंधित अनुसंधानों को किसी
ऐसे विज्ञान से बाँधकर नहीं रखा जाना चाहिए | जो विज्ञान की श्रेणी में तो
आते हों किंतु भविष्य जानना उनके बश का न हो | कुछ विषय ऐसे हैं जो विज्ञान
की श्रेणी में तो आते हैं किंतु भविष्य की घटनाओं को देखना उनके बश की बात
नहीं है | इसलिए वे ऐसी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान नहीं लगा पाते
हैं | कुछ विषय ऐसे हैं जिनसे भविष्य को देखा जा सकता है किंतु उन्हें
विज्ञान नहीं माना जाता है | इसलिए उनके द्वारा लगाए गए सही पूर्वानुमान भी
नकार दिए जाते हैं | ऐसी स्थिति में मेरा विश्वास है कि महामारी एवं प्राकृतिक घटनाओं से हो रही जनधन हानि को
घटाने में प्राचीन विज्ञान एवं उससे संबंधित वैज्ञानिक सक्षम हैं |
ऐसी स्थिति में अनुसंधानों की जिम्मेदारी किसी विषय विशेष पर न डालकर यह उद्घोषित किया जाना चाहिए
कि जो भी व्यक्ति संगठन समुदाय आदि जिस किसी भी ज्ञान विज्ञान पारंपरिक
ज्ञान,ज्योतिषविज्ञान,धर्मविज्ञान आदि ऐसा करने में सक्षम हो | वह ऐसे विषयों में अपनी प्रमाणिकता प्रस्तुत करे और जिम्मेदारी सँभाले | किसी व्यक्ति ने यदि अपने
जप तप योग आदि के द्वारा ही ऐसी किसी परावैज्ञानिक शक्ति को प्राप्त किया
है जिसके द्वारा ऐसा किया जाना संभव हो |वह अपनी साधना या ज्ञान विज्ञान के
रहस्य को प्रकट किए बिना ऐसी घटनाओं से मनुष्यों की सुरक्षा में मदद कर
सकता है तो उसकी विशेष क्षमताओं का जनहित में उपयोग किया जाना चाहिए |
पूर्वानुमान लगाने के लिए है प्राचीनविज्ञान !
आधुनिक विज्ञान का उदय ही अभी हुआ है |मुझे नहीं लगता कि भविष्य की घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए आधुनिक विज्ञान में कुछ है,फिर भी मौसम पूर्वानुमान एवं महामारी की लहरों के विषय में पूर्वानुमान लगाने की घटनाएँ सुनी जाती रही हैं|भविष्य में झाँकने के लिए जब कोई विज्ञान ही नहीं है तो ऐसे पूर्वानुमानों के सही निकलने की आशा भी नहीं की जा सकती है और सही निकलते भी नहीं हैं ,फिर भी उन्हें विज्ञान सम्मत माना जाता है |
विज्ञान के क्षेत्र में भारत अति प्राचीनकाल से ही समृद्ध रहा है | पूर्वानुमान लगाने के लिए भी प्राचीन विज्ञान में बहुत कुछ है|सभीप्रकार की प्राचीन घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाने का कार्य हजारों वर्ष पहले किया जाने लगा था | सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सही सही पूर्वानुमान उसी युग में लगा लिया जाने लगा था जब आधुनिक विज्ञान का जन्म ही नहीं हुआ था | भविष्य में झाँकने के लिए आधुनिक विज्ञान में कुछ भले न हो किंतु प्राचीन विज्ञान में तो कई विद्याएँ हैं | जिनके आधार पर प्रकृति और जीवन से संबंधित भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में वर्तमान में ही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | भविष्यसंबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए तो संपूर्ण ज्योतिषशास्त्र ही है | योगशास्त्र में स्वरविज्ञान एक ऐसी विधा है जिसके आधार पर भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | इष्टसिद्धि या किसी देवी देवता की मंत्रसिद्धि करके उनकी कृपा के प्रभाव से भविष्य की घटनाओं के विषय में पहले से पता लगाया जाता है | शकुन शास्त्र के आधार पर भी भविष्य संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में घटित हो रही कुछ प्राकृतिक घटनाओंके आधार पर भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | ऐसी ही विधाओं के आधार पर ऋषि मुनि महात्मा मंत्रसाधक योगी ज्योतिषी आदि अनेकों घटनाओं के विषय में भविष्यवाणी कर दिया करते हैं | वे सही भी निकलती हैं |
प्राचीन साहित्य का बहुत बड़ा अंश परतंत्रता के समय नष्ट कर दिया गया है | इसके बाद भी जो जितना बच गया है वो इतना कम भी नहीं है कि उसके आधार पर प्रकृति एवं जीवन संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान न लगाया जा सके !प्राचीन वैज्ञानिक पद्धति के विद्वान बहुत कम बचे हैं और जो हैं वे भी धीरे धीरे समाप्त होते जा रहे हैं |सरकार एवं समाज दोनों ही ओर से प्राचीन अनुसंधानों को प्रोत्साहन न मिलने के करण अनुसंधान किए नहीं जा रहे हैं |यदि किसी ने अपने व्यक्तिगत संसाधनों के बलपर ऐसे अनुसंधान करके कुछ सही पूर्वानुमान निकाले भी तो उन्हें उपयोगी न मानते हुए उनकी उपेक्षा इसलिए कर दी जाती है ,क्योंकि ये प्राचीनविज्ञान के द्वारा निकाले गए हैं | प्राचीनविज्ञान को जो लोग विज्ञान मानते ही नहीं हैं |वे प्राचीनविज्ञान के द्वारा निकाले गए सही पूर्वानुमानों को भी नहीं स्वीकार कर पाते हैं,जबकि ये प्राकृतिक संकटों के समय जनधन की सुरक्षा में सहायक हो सकते हैं |
इसमें विशेष बिचार करने की बात ये है कि सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ या महामारियाँ अत्यंत तेजी से आक्रमण करके समाज को पीड़ित करती हैं | जिनसे तुरंत की तैयारियों के बलपर बचाव किया जाना संभव नहीं होता है | इसलिए इनके विषय में पूर्वानुमान पता किए जाने अत्यंत आवश्यक होते हैं |जिससे बचाव की तैयारियाँ करने के लिए कुछ समय मिल जाए| आधुनिकविज्ञान के द्वारा भविष्य की घटनाओं को देखा जाना संभव नहीं है और प्राचीनविज्ञान के द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है किंतु उसे यदि माना ही नहीं जाएगा तो उससे समाज को जो लाभ मिलना चाहिए वो नहीं मिल पाएगा |इस कारण महामारी आदि प्राकृतिक संकटों से जो बचाव किया भी जा सकता है वो भी नहीं हो पाएगा |
अनुसंधानों में कमी कहाँ रह गई !
विज्ञान आज उन्नति के शिखर पर है और दिनोंदिन तरक्की करता जा रहा है! इससे मनुष्यों को बहुत सारी सुख सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं|इस तरक्की या सुख सविधाओं का लाभ केवल वही उठा पाएँगे ,जो प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों से जीवित बचेंगे | प्राकृतिक आपदाएँ एवं महामारियाँ अचानक आती हैं और जनधन का नुक्सान करके चली जाती हैं |इसके लिए प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से समाज को सुरक्षित बचाना उन्नति के शिखर पर पहुँच चुके विज्ञान के लिए सबसे बड़ी चुनौती है |
ऐसी आपदाओं महामारियों के घाव लोग वर्षों दशकों तक सहलाया करते हैं | कोरोना महामारी में ही लाखों परिवार उजड़ गए उनके जीवन को सुरक्षित नहीं बचाया जा सका है,जबकि ऐसी घटनाओं के विषय में वैज्ञानिक लोग अनुसंधान हमेंशा किया करते हैं |
भूकंप विज्ञान है| भूकंपों के विषय में अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिक भी हैं| अनुसंधान कार्य भी हमेंशा चला करते हैं | इसके बाद भी जब भूकंप आते हैं तो उनसे जनधन का जो नुक्सान होना होता है वो होता ही है |
विशेष बात यह है कि ऐसी घटनाओं को समझने या इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर इनसे बचाव करने के लिए ही ऐसे विषयों में अनुसंधान कार्य किए जाते हैं| यदि नुक्सान होना ही है तो ऐसे अनुसंधानों का औचित्य ही क्या रह जाता है|
ऐसे ही मौसम विज्ञान है,मौसमवैज्ञानिक भी हैं,इसके विषय में कार्य भी हमेंशा चला करते हैं !किंतु 2018 के अप्रैल मई महीने में बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में बार बार आँधी तूफ़ान आए जा रहे थे | ऐसे ही केदार नाथ जी में आया सैलाव रहा हो या केरल आदि अनेकों स्थानों की बाढ़ जिनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके |ऐसे अनुसंधानों से लाभ क्या हुआ |
ऐसे ही महामारी विज्ञान है,महामारी वैज्ञानिक हैं एवं महामारी से संबंधित अनुसंधान हमेंशा होते रहते हैं !किंतु जब महामारी आई तब न विज्ञान काम आया न ही वैज्ञानिक और महामारी संबंधी अनुसंधानों से भी महामारी संक्रमितों एवं मृतकों की सुरक्षा नहीं की जा सकी | ऐसी स्थिति में महामारी से संबंधित अनुसंधान संक्रमितों के किस काम आए | जिन लोगों को संक्रमित होना था वे संक्रमित हुए ही एवं जिन लोगों को मृत्यु को प्राप्त होना था | वे मृत्यु को प्राप्त हुए ही | ऐसे में महामारी से संबंधित अनुसंधानों का उन्हें क्या लाभ मिला |
महामारियाँ अचानक हमला करती हैं और पता ही तब लग पाता है जब महामारी अचानक आकर अत्यंत तेजी से बहुत बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित करने लगती है, लोग मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं|महामारी का वेग इतना अधिक होता है कि अस्पतालों से लेकर श्मशान तक सब भर जाते हैं|कहीं जगह नहीं बचती है|
इतने कम समय में महामारी से सुरक्षा करना आसान नहीं होता है | इतने कम समय में महारोग को पहचानना है, उसके लक्षण निश्चित करने हैं , उसकी चिकित्सा के विषय में निर्णय लेना है | सबसे बड़ी बात इतनी अधिक मात्रा में औषधि निर्माण करने के लिए अधिक औषधीय द्रव्यों का संग्रह करके रखना है | प्रत्येक व्यक्ति के लिए औषधि निर्माण करना है एवं उसे जन जन तक पहुँचाना है | इतने सारे कार्य इतने कम समय में करके महामारी पीड़ितों की सुरक्षा की जानी संभव ही नहीं है |
ऐसी महामारियों से सुरक्षा के लिए पहले से तैयारियाँ करके रखनी पड़ती हैं | ऐसा किया जाना तभी संभव है जब ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान पहले से पता हो |पूर्वानुमान लगाने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान नहीं है | जो लोग ज्योतिष को मानते नहीं हैं वे पूर्वानुमान लगाने की कल्पना ही कैसे कर सकते हैं | ज्योतिष के बिना पूर्वानुमानों के नाम पर जो अंदाजे लगाए जाते हैं | उनके गलत निकलने पर दोष महामारी के स्वरूप परिवर्तन का बताया जाता है | ऐसे ही या प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अंदाजा लगाते हैं उसके गलत निकलने पर दोष जलवायु परिवर्तन का बताया जाता है,जबकि इनके द्वारा लगाए गए गलत अंदाजों का कारण विज्ञान के बिना पूर्वानुमान लगाना होता है |
कुल मिलाकर अनुसंधान करना और अनुसंधानों का घटनाओं से संबंध सिद्ध होना दोनों अलग अलग बातें हैं |उनके आधार पर जो भी अनुमान या पूर्वानुमान बताए जाएँ, वे सही भी निकलें ! तभी तो ऐसे अनुसंधानों की सार्थकता है | अनुसंधानों के नाम पर कुछ भी क्या जाना अनुसंधान करना नहीं होता है |
प्राचीनविज्ञान और महामारी !
ज्योतिषशास्त्र
में महामारी एवं वर्षा आँधी तूफानों आदि प्राकृतिक घटनाओं या आपदाओं आदि
के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने की जिम्मेदारी ज्योतिष शास्त्र
से संबंधित विद्वानों की है | ज्योतिष विद्वानों के साथ साथ विश्व
विद्यालयों में ज्योतिष पढ़ाने वाले रीडरों प्रोफेसरों को यह जिम्मेदारी
प्रमुख रूप से निभानी चाहिए | वे ऐसे विषयों के लिए अधिकृत हैं |
मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर रोगों महारोगों के पैदा होने के
विषय में आयुर्वेद के ग्रंथों में महामारी आदि आने की जो पहचान बताई गई है
|उसके आधार पर अनुसंधान पूर्वक संभावित महामारी से सुरक्षा के लिए औषधीय
द्रव्यों का संग्रह करके पहले से रख लिया जाना चाहिए ,ताकि महामारी आने पर
उसका उपयोग तुरंत शुरू करके जनधन की रक्षा की जा सके |आयुर्वेद से संबंधित
विद्वानों के साथ साथ विश्व विद्यालयों में आयुर्वेद पढ़ाने वाले रीडरों प्रोफेसरों को यह जिम्मेदारी निभानी चाहिए |
वेदविज्ञान से संबंधितग्रंथों में ऐसे ऐसे यज्ञ अनुष्ठान आदि प्रयोग बताए
गए हैं|जिन्हें करने से समय पर आवश्यकता के अनुसार कृषि के लिए हितकारिणी
वर्षा के अनुकूल प्राकृतिक वातावरण तैयार किया जा सकता है | इसके साथ ही
साथ सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों को टाला जा सकता है
| उनके दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है| ऐसे प्रयोगों को करके समाज को
प्राकृतिकआपदाओं एवं महामारियों के संकट से मुक्त रखने के लिए वेद
वैज्ञानिकों को प्रयत्न करने चाहिए | विश्वविद्यालयों में वेद पढ़ाने वाले रीडरों प्रोफेसरों को यह जिम्मेदारी निभाते हुए जनधन की सुरक्षा करनी चाहिए |
योग में स्वर वैज्ञानिकप्रक्रिया के द्वारा चैत्रशुक्ल प्रतिपदा के
सूर्योदयकाल में ही ध्यानपूर्वक एक वर्ष के मौसम, प्राकृतिकआपदाओं एवं
महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है| नित्यप्रति
योगाभ्यास करने वाले योगियों को ऐसी आपदाओं से समाज की सुरक्षा की
जिम्मेदारी का निर्वाह करना चाहिए |
भविष्य को जानने के लिए ज्योतिषशास्त्र के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान नहीं है, किंतु वर्तमानसमय में ज्योतिष संबंधी अनुसंधानों की धारा इतनी कमजोर है कि उसके द्वारा महामारी या मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है | यही कारण है कि कोरोना महामारी हो या मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाएँ इनके विषय में किसी ज्योतिषी के द्वारा कोई ऐसी भविष्यवाणी नहीं सुनी जा रही है| जिससे ऐसे संकटों से जूझते समाज को कुछ मदद पहुँचाई जा सकी हो | कोरोना महामारी आने से पहले ऐसे पूर्वानुमान उपलब्ध करवाए जाने चाहिए थे | जो नहीं किया जा सका |ऐसे अनुसंधानों के लिए सरकार एवं समाज दोनों को ही रुचि लेनी पड़ेगी |परतंत्रता काल में ज्योतिष से संबंधित ग्रंथों को नष्ट कर दिया गया था | जो थोड़ा बहुत बचा उसे जिस आत्मीयता के साथ अनुसंधान पूर्वक व्यवस्थित किया जाना चाहिए था वो नहीं किया गया |विज्ञान की अन्य विधाओं की तरह ही ज्योतिष के विषय में भी गंभीर अनुसंधान करवाए जाने चाहिए |
प्राचीनविज्ञान और प्रभावी अनुसंधान
प्राचीन विज्ञान की क्षमता से मैं सुपरिचित था कि इसके आधार पर महामारी एवं मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है किंतु ऐसा करने वाले सक्षम विद्वान नहीं हैं और जो हैं भी वे ऐसे विषयों में रुचि नहीं ले रहे हैं |
संस्कृत
विश्व विद्यालयों में ज्योतिष विषय पढ़ाने के लिए स्वतंत्र विभाग
बनाए गए हैं | जिनमें ज्योतिष की कक्षाएँ चलती हैं | परीक्षाएँ होती हैं |
परीक्षा परिणाम घोषित किए जाते हैं | शोध होते हैं तथा शोध प्रबंध लिखे
जाते हैं | पीएचडी की डिग्री मिलती है| उसके आधार पर छात्रों को भविष्य में
रीडर प्रोफेसर बनने का अवसर मिलता है | ऐसे लोग ज्योतिष के क्षेत्र में
ऊँचे ऊँचे निर्णायक पदों पर पहुँच जाते हैं ,किंतु जब ज्योतिष संबंधी आवश्यकता पड़ती
है उस समय वे उपयोगी नहीं सिद्ध हो पाते हैं| कोरोना महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय सभी देखते हैं |विशेष बात यह है कि वर्षा आँधी तूफ़ान रोगों
महामारियों आदि के विषय में पूर्वानुमान लगाने की विधि छात्रों को पढ़ाई तो जाती है किंतु
ऐसी घटनाएँ जब घटित होती हैं तब उनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान
लगाते नहीं देखा जाता है|ये कमी ज्योतिषशास्त्र की नहीं प्रत्युत इससे
संबंधित विद्वानों की है |
ऐसा ही आयुर्वेद एवं यज्ञविज्ञान के क्षेत्र में है| ऐसे विषयों को पढ़ते
पढ़ाते या प्रवचन करते समय शास्त्रीयज्ञान विज्ञान की जो विशेषता तो बहुत बताई जाती
है |उसे अनुसंधान पूर्वक उपयोगी सिद्ध करना संभव नहीं हो पा रहा है |कोरोनामहामारी के समय ही सभी ज्योतिषशास्त्रीय विद्वानों का कर्तव्य था कि वो अपने शास्त्रीयज्ञान के द्वारा महामारी या उसकी लहरों के विषय में समाज को पूर्वानुमान उपलब्ध करवाता तथा यज्ञविज्ञान के द्वारा महामारी पर अंकुश लगाकर समाज की मदद करता |
मौसम एवं महामारी जैसे विषयों में मैं पिछले तीस वर्षों से प्राचीनविज्ञान के आधार पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ | इसके आधार पर मैं मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में तो पूर्वानुमान लगाता आ ही रहा हूँ | महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में भी जो पूर्वानुमान लगाए हैं वे सही निकलते रहे हैं |
उदाहरण के तौर पर भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण 2021 का अप्रैल अत्यंत
डरावना बीत रहा था | अस्पतालों से लेकर श्मशानों तक कहीं जगह नहीं बची थी|
चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई थी|वैज्ञानिकों के द्वारा मई
उत्तरार्द्ध या जून 2021 तक महामारी बढ़ने के पूर्वानुमान बताए जा रहे थे |यह सुन कर लोग और अधिक घबड़ा रहे थे |
कोरोना काल में सरकार
से संबंधित कुछ लोगों से व्यक्तिगत तौर पर मेरी चर्चा होती रहती थी |ऐसे ही हमारे कुछ मित्रों ने 19 अप्रैल 2021
शाम को फोन करके कहा कि महामारी को लेकर सरकार बहुत चिंतित है | इसलिए आप कोई ऐसा यज्ञ करवाइए जिसके द्वारा महामारी का प्रकोप कुछ कम किया जा सके | जिससे महामारी को नियंत्रित किया जा सके | इस पर मैंने उन्हें आश्वासन
देते हुए कहा कि कल अर्थात 20 अप्रैल 2021 से ही 11 दिनों के लिए मैं ऐसा यज्ञ व्यक्तिगत तौर पर
करूँगा !जिसके प्रभाव से कल से ही महामारी पर अंकुश लगना तुरंत प्रारंभ होगा किंतु वेग अधिक है,इसलिए 23 अप्रैल से गति धीमी होने लगेगी जबकि 2 मई से
संक्रमण तेजी से कम होने लगेगा | यही बात एक पत्र के रूप में लिखकर पीएमओ की मेल पर भी मैंने 19 अप्रैल 2021 को ही रात्रि 11.57 पर भेज दी थी | 20 अप्रैल 2021 से मैंने वह यज्ञ प्रारंभ किया था |उसके प्रभाव से 2 मई से दिल्ली में कोरोना संक्रमण कम होना शुरू हो गया था और 6 से 8 मई के बीच पूरे देश में संक्रमण घटना शरू हो गया
था |
ऐसे विषयों पर मैं पिछले कुछ दशकों से न केवल अनुसंधान करता आ रहा हूँ,प्रत्युत इसी आयुर्वेद और ज्योतिषशास्त्र के द्वारा महामारी
एवं उसकी लहरों के विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाने में सफल हुआ हूँ
|ऐसे ही यज्ञविज्ञान के द्वारा महामारी को नियंत्रित करने के लिए मेरे द्वारा जो यज्ञीय उपाय किए
गए वे भी सफल हुए हैं |जिस आयुर्वेद ज्योतिष एवं यज्ञविज्ञान के आधार पर महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में
मैं यदि मैं पूर्वानुमान लगा सकता हूँ या महामारी पर
अंकुश लगाने के लिए वेदविज्ञान के आधार पर यदि मैं सफल प्रयत्न कर सकता हूँ तो उन्होंने क्यों नहीं किए जिन्हें ऐसे विषयों का विद्वान मानकर सरकारी विश्व विद्यालयों में शिक्षक पदों पर नियुक्त किया गया है | इसी प्रकार से सरकारी संस्थानों में निरंतर अनुसंधान करते रहने वाले वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान गलत क्यों निकलते गए !महामारी पर अंकुश लगाने संबंधी प्रयत्नों के द्वारा लोगों की महामारी से सुरक्षा क्यों नहीं की जा सकी !ऐसे विषयों में सरकारों को गंभीर चिंतन करना चाहिए कि जिस महामारी के विषय में जो स्वयं कुछ नहीं कर सके उनके पढ़ाए हुए विद्यार्थी अपने ज्ञान विज्ञान से भविष्य में ऐसी महामारियों के समय क्या कर पाएँगे | ये विफलता केवल कोरोना महामारी तक ही सीमित नहीं है, प्रत्युत ये भविष्य के लिए भी निराश करने वाली है |
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