31-7-2024 महामारी आगमन की आहट पहले ही लग गई थी !जानवरों का आतंक -मौसम में बड़े बदलाव
दो शब्द
प्रकृति और जीवन को समझने में गणित विज्ञान सक्षम है |
"हमारी प्रकृति कुछ इस प्रकार से बनी है कि गणित के जो फार्मूले हैं जो कि कागज़ पेन से लिखे जाते हैं वे प्रकृति के कई सारे नियमों को ठीक तरीके से पकड़ लेते हैं और वो कागज़ पेन से की गई कैलकुलेशन वो प्रकृति में क्या हो रहा है ये बता देते हैं | इसका कारण क्या है इसे कोई भी पूरी अच्छी तरीके से नहीं समझता है लेकिन ये हर जगह देखा गया है | चाहें न्यूटन के लॉ हों आइंस्टीन के लॉज हों सिंपल क्वेश्चंस हैं लेकिन वो कागज़ पेन से की हुई चीजें वास्तविक प्रकृति में क्या हो रहा है बड़ी बड़ी चीजें कैसे घटित हो रही हैं ये बता देती हैं | "
इसी प्रकार से एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित में आंकड़ों की प्रधानता है और विज्ञान में तत्वों की और ये दोनों प्रकृति से जुड़े हुए है।वैसे तो गणित का उपयोग प्राचीन समय से ब्रम्हांड में तारा एवं ग्रहों की दूरी के लिए कर रहे हैं ।"
एक वैज्ञानिक कहते हैं -"विज्ञान में हम सिद्धांतों की बात करते है और गणित के द्वारा ही उन सिद्धान्तों को सूत्रों में बदला जाता है।साफ़ तौर पर कहें तो विज्ञान ‘क्यों’ का उत्तर देता है और गणित ‘कब’ और ‘कितना’ का उत्तर देती है।"
एक वैज्ञानिक कहते हैं - "गणित विभिन्न नियमों, सूत्रों, सिद्धांतों आदि में संदेह की संभावना नहीं रहती है।"
गैलिलियो के अनुसार, “गणित वह भाषा है जिसमे परमेश्वर ने सम्पूर्ण जगत या ब्रह्माण्ड को लिख दिया है।”
एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेंद्रियाँ हैं।"
कुलमिलाकर प्राकृतिक बिषयों में गणित के बिना विज्ञान अधूरा होता है|किसी प्राकृतिक घटना के घटित होने के बिषय में विज्ञान के द्वारा यदि यह पता लगा भी लिया जाता है कि ऐसी घटना घटित होने की संभावना है|तो प्रश्न उठता है कि कब घटित होगी उसके लिए गणित की आवश्यकता होती है | इसलिए गणित और विज्ञान दोनों मिलकर ही प्राकृतिक रहस्यों को सुलझा सकते हैं |
भारत की जो प्राचीन पारंपरिक ज्ञान की पद्धति थी उस विज्ञान का गणित ही मूल आधार है | उस गणित के बलपर वे बड़ी बड़ी घटनाओं के रहस्यों को सुलझा लिया करते थे | इसीलिए उन्हें वर्तमान समय की तरह यंत्रों पर आश्रित नहीं होना पड़ता था |
महामारी आगमन की आहट पहले ही लग गई थी !
मैं पिछले लगभग तैंतीस वर्षों से ऐसे प्राकृतिक बिषयों पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ जिसमें भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ वायु प्रदूषण एवं तापमान का घटता बढ़ता स्तर प्राकृतिक स्वास्थ्य समस्याएँ मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं एवं महामारियों के बिषय में अनुसंधान करता आ रहा हूँ | प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण पैदा होने वाली सामाजिक राजनैतिक वैश्विक आदि समस्याओं के पैदा होने एवं उनका समाधान निकलने के बिषय में भी पूर्वानुमान लगाता आ रहा हूँ | उसी क्रम में सन 2010 के बाद सुदूर आकाश से समुद्र समेत समस्तप्रकृति में कुछ इस प्रकार के परिवर्तन दिखाई देने लगे थे जो निकट भविष्य में किसी बड़ी महामारी या अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदा या युद्ध आदि के द्वारा बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की ओर संकेत देने लगे थे | सन 2013 के बाद प्राकृतिक वातावरण पूरी तरह बदला बदला दिखाई देने लगा था आकाशीय परिस्थितियाँ सूर्य चंद्रादि ग्रहों के विंबीय आकार प्रकार वर्ण आदि परिस्थितियाँ क्रमशः बदलती जा रही थीं वायुसंचार में बदलाव वृक्ष बनस्पतियों में परिवर्तन होने लगे थे | समय जैसे जैसे बीतते जा रहा था वैसे वैसे जल वायु अन्न आदि समस्त खाद्य वस्तुएँ अपने अपने गुण स्वाद आदि से विहीन होती जा रहीं थीं | औषधीय बनस्पतियाँ जिन गुणों के लिए जानी जाती थीं उनमें उसप्रकार के गुणों का ह्रास होता चला जा रहा था |
वायुतत्व दिनोंदिन अधिक चंचल एवं प्रदूषित होता जा रहा था| वायुमंडल में प्रदूषण ,बज्रपात की हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जा रही थीं | इसीलिए 2018 के अप्रैल मई में आँधी तूफानों की घटनाएँ बारबार घटित होने लगी थीं | चक्रवात जैसी हिंसक घटनाएँ घटित होते अक्सर देखी जाने लगी थीं |
पृथ्वीतत्व के स्थिरता संबंधी स्वाभाविक गुण विकृत होने लगे थे | धरती बार बार काँपने लगी थी भूकंपों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी |सुनामीजैसी घटनाओं के डरावने दृश्य दिखाई पड़ने लगे थे | महामारी काल में केवल भारत में ही एक हजार बार से अधिक भूकंप घटित हुए थे |
प्रकुपित अग्नितत्व हिंसक स्वरूप धारण करता जा रहा था | कहीं भी कभी भी आग लगने की घटनाएँ घटित होती देखी जा रही थीं इसीलिए तो 2016 अप्रैल में बिहार सरकार ने दिन में हवन करने एवं चूल्हा जलाने आदि पर रोक लगा दी गई थी |
जलतत्व में दिनोंदिन विकृति आती देखी जा रही थी कहीं भीषण बाढ़ तो कहीं सूखा था | जमीन के अंदर का जलस्तर दिनों दिन कम होता जा रहा था |जल की गुणवत्ता में कमी होती जा रही थी !बादलों के फटने की घटनाएँ देखी जाने लगी थीं |
आकाश अक्सर धूम्रवर्ण या लाल पीला होता दिख रहा था !नीला एवं स्वच्छ आकाश तो वर्ष के कुछ महीनों में ही दिखाई देने लगा था | इसके अतिरिक्त आकाश में और भी प्रतिसूर्य गंधर्वनगर जैसी घटनाएँ दिखने लगीं थीं |
इस प्रकार से पंचतत्वों में बढ़ते विकार बनस्पतियों एवं खाद्यपदार्थों के स्वाद एवं गुणवत्ता में आती कमी मनुष्य समेत सभी जीव जंतुओं के स्वभाव में बढ़ते अस्वाभाविक बदलाव किसी बड़ी विपदा की ओर संकेत करने लगे थे | ऐसी घटनाओं का जब गणितीय पद्धति से परीक्षण किया गया तो महामारी जैसी किसी बड़ी हिंसक प्राकृतिक घटना का आभास होने लगा था |
इसलिए इसीप्राचीन अनुसंधान के आधार पर सन 2017 से ही वर्तमान महामारी के बिषय में मुझे संभावना दिखने लगी थी इस बिषय में मैंने संबंधित मंत्रालयों सरकारी विभागों निजीसंस्थाओं एवं विविध मीडिया माध्यमों से अपनी बात सरकार तक पहुँचाने का प्रयत्न करता रहा हूँ | इसी संदर्भ में सामाजिक स्वयं सेवी संगठनों एवं निजी संगठनों के बड़े बड़े नेताओं से संपर्क करके भारत सरकार तक अपनी बात पहुँचाने का प्रयास करता रहा कई पत्र रजिस्टर्ड डॉक से भी भेजे हैं | पीएमओ की मेल पर भेजकर प्रधानमंत्री जी से मैंने मिलने के लिए समय माँगा किंतु मुझे अपनी बात भारत के प्रधानमंत्री जी तक पहुँचाने का अवसर नहीं मिल सका ऐसे प्रयासों में भटकते भटकते काफी लंबा समय बीत गया तब तक सन 2020 प्रारंभ हो चुका था महामारी प्रारंभ हो चुकी थी उसकी चर्चा सभी जगह सुनाई देने लगी थी महामारी को लेकर तरह तरह की आशंकाएँ व्यक्त की जा रही थीं महामारी के बिषय में लोग तरह तरह की अफवाहें फैलाए जा रहे थे | मीडिया माध्यमों से भारत सरकार भी चिंतित दिखाई दे रही थी किंतु चाहकर भी मैं अपनी बात भारत के प्रधानमंत्री जी तक नहीं पहुँचा सका इसलिए अब निराश हताश होकर शांत बैठ गया था | इसी बीच अचानक एक बात मन में आई कि बिषय में मैं अपनी बात पीएमओ की मेल पर डाल दूँगा तो भविष्य के लिए यह प्रमाण सुरक्षित बना रहेगा | इसलिए मैंने पीएमओ की मेल पर सबसे पहला पर 19 मार्च 2020 को भेजा था जिसमें महामारी के बिषय में हमारे द्वारा कुछ आवश्यक बातें लिखी गई थीं |
1. कोरोना प्राकृतिक है -" किसी महामारी पर नियंत्रण न हो पाने का कारण यह है कि कोई भी महामारी तीन चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती है ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है | "
2. कोरोनाहवा में विद्यमान है -"पर्यावरण बिगड़ने का प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों आदि का जल प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है इसलिए शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम पड़ पाता है यहीं से महामारी फैलने लगती है |"
3. महामारी में होने वाले रोग को न तो पहचाना जा सकता है और न ही इसकी औषधि बनाई जा सकती है -"इसमें चिकित्सकीय प्रयासों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है |"
4. महामारी में होने वाले रोगके वेग को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर घटाया जा सकता है -"ऐसी महामारियों को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |"
"24 मार्च 2020 के बाद इस महामारी का समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा | |उसके बाद के समय में पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से मुक्ति पा सकेगा |"
"यह महामारी 9 अगस्त 2020 से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर 2020 तक रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और 16 नवंबर 2020 के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"
यह पूर्वानुमान पूरी तरह से सही हुआ था 9 अगस्त से संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगी थी सरकारी गणना के अनुशार 17 सितंबर को सबसे अधिक संक्रमितों की संख्या आयी थी उसके बाद क्रमशः कम होते चले जा रहे थे ! समय विज्ञान की दृष्टि से प्राकृतिक कोरोना महामारी यहाँ से संपूर्ण रूप से समाप्त हो जानी चाहिए थी और कोरोना अब तक समाप्त हो चुका होता !ऐसा होते प्रत्यक्ष देखा भी जा रहा था !यदि वैक्सीन न लगाई जाती तो मुझे विश्वास है कि कोरोना संक्रमण यहीं से समाप्त हो जाता | इसी बीच भारत सरकार की ओर से वैक्सीन लगाने की तैयारियाँ की जाने लगीं !इस समय वैक्सीन लगाने से संक्रमितों की संख्या बढ़ने की पूरी संभावना थी |
भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री जी एवं नीतिआयोग के डॉ.वी.के.पाल साहब ने अक्टूबर 2020 में आशंका जताई थी कि सर्दी में कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा | कुछ अन्य लोगों ने कहा था कि सर्दी में वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा | इस बिषय में भी मैंने पीएमओ को पत्र भेजकर स्थिति स्पष्ट की थी कि सर्दी के मौसम में तापमान कम होने से कोरोना नहीं बढ़ेगा |
हमारे द्वारा पीएमओ को भेजा गया तीसरा मेल -
3. इसीलिए 23 दिसंबर 2020 को मेल भेजकर मैंने पीएमओ से वैक्सीन न लगावाने के लिए निवेदन किया था और यदि लगवाना भी हो तो बहुत सोच बिचार कर बहुत सोच बिचार कर लगाने के लिए निवेदन किया था उस मेल का इस बिषय से संबंधित अंश :-
23 दिसंबर 2020 को मेल भेजकर पीएमओ को सूचित करने का मेरा उद्देश्य यही था कि वैक्सीन लगाने का कार्यक्रम या तो रोका जाएगा और या फिर वैक्सीन लगने के बाद संभावित संक्रमण बढ़ने की आशंका को ध्यान में रखते हुए उसे नियंत्रित करने के लिए पहले आवश्यक तैयारियॉँ कर लेने के बाद वैक्सीन लगाई जाएगी किंतु मेरे पूर्वानुमान के अनुशार वैक्सीन लगने के बाद संक्रमण दिनोंदिन अनियंत्रित होता चला गया !
5. "प्रधानमंत्री जी !यदि अब भी मैं मौन बैठा रहा तो प्रकुपित ईश्वरीय शक्तियाँ विश्वका चेहरा बर्बाद कर देने पर आमादा दिख रही हैं | दैवी शक्तियों का मानवजाति पर इतना अधिक क्रोध !आश्चर्य !! महोदय ! ऐसी परिस्थिति में जनता की ब्यथा से ब्यथित होकर व्यक्तिगत रूप से मैं एक बड़ा निर्णय लेने जा रहा हूँ |अपने अत्यंत सीमित संसाधनों से कल अर्थात 20 अप्रैल 2021 से "श्रीविपरीतप्रत्यंगिरामहायज्ञ" अपने ही निवास पर गुप्त रूप से प्रारंभ करने जा रहा हूँ | यह कम से कम 11 दिन चलेगा ! इसयज्ञ रूपी 'ईश्वरीयन्यायालय' में विश्व की समस्त भयभीत मानव जाति की ओर से व्यक्तिगत रूप से पेश होकर क्षमा माँगने का मैंने निश्चय किया है |मुझे विश्वास है कि ईश्वर क्षमा करके विश्व को महामारी से मुक्ति प्रदान कर देगा | यज्ञ प्रभाव के विषय में मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |"
21अप्रैल 2020 को प्रकाशित : कोरोना ने बदला मौसम का मिजाज़! भारत में सबसे ठंडा अप्रैल, ब्रिटेन में चल रही लू !कोरोना महामारी के बीच ब्रिटेन में गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. वहाँ अप्रैल में भीषण गर्मी और लू चल रही है |
22 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका की स्थिति बिगड़ती जा रही थी |
19 सितंबर 2020 को प्रकाशित :जिस सितंबर में मौसम करवट लेने लगता है और जाड़े की सुगबुगाहट होने लगती है, इस बार दिल्ली वासी उमस भरी गर्मी झेलने को विवश हैं। सितंबर के मध्य में भी मई-जून जैसी तपिश झेलनी पड़ रही है।तेज धूप की चुभन और उमस पसीना पोंछने पर मजबूर कर रही है,
पृथ्वी तत्व -
कोरोना महामारी के समय एक डेढ़ वर्ष में केवल भारत में ही एक हजार से अधिक भूकंप आए हैं ऐसा क्यों हुआ क्या इनसे महामारी का कोई संबंध है इस संबंध को खोजना अनुसंधान कर्ताओं की जिम्मेदारी है | इन भूकंपों का महामारी से कोई संबंध नहीं है तो इसी समय इतने अधिक भूकंपों के आने का कारण क्या है |
1मई 2020- को प्रकाशित :दिल्ली-एनसीआर में डेढ़ महीने में 10 बार भूकंपआया | संपूर्ण भारत वर्ष में एक साल में 950 बार से अधिक बार भूकंप आए | (पहले तो ऐसा नहीं होता था )
30 मई 2020 को प्रकाशित: दिल्ली में फिर टूटा कोरोना का रिकॉर्ड, 24 घंटे में 1163 नए केस, 18 लोगों की मौत !दिल्ली में हर रोज कोरोना का रिकॉर्ड टूट रहा है. पिछले 24 घंटे में कोरोना के 1163 नए मामले सामने आए हैं, जो एक दिन में सबसे ज्यादा है | (ऐसा होने के पीछे भूकंप तो कारण नहीं है )
17\18जुलाई को बहुत भूकंप आए हैं और 19 जुलाई 2020 को प्रकाशित समाचार में कहा गया --"भारत में शुरू हुआ कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड, हालात बहुत खराब : आईएमए का कहना है कि भारत में कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू हो चुका है, जिसके मतलब है कि आगे हालात और ज्यादा खराब हो सकते हैं।एएनआई से बात करते हुए आईएमए (हॉस्पिटल बोर्ड ऑफ इंडिया) के अध्यक्ष डॉ वीके मोंगा ने कहा, 'यह अब घातक रफ्तार से बढ़ रहा है। हर दिन मामलों की संख्या लगभग 30,000 से अधिक आ रही है। यह देश के लिए वास्तव में एक खराब स्थिति है। कोरोना वायरस अब ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रहा है, जो की एक बुरा संकेत है। इससे पता चलता है कि देश में कोरोना का कम्यूनिटी स्प्रेड शुरू हो चुका है।(कोरोना संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने का संबंध भूकंपों से तो नहीं था )
कोरोनामहामारी के समय जीव जंतुओं में बेचैनी !
टिड्डियों का आतंक - 28-5-2020 को प्रकाशित : टिड्डियों का आना दिसंबर 2019 से आरंभ हुआ है। टिड्डियों ने सबसे पहले गुजरात तबाही मचाई। अनुमान के तौर पर सिर्फ दो जिलों के 25 हजार हेक्टेयर की फसल तबाह हुई है।भारत के राजस्थान,पंजाब,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश आदि टिड्डियों से प्रभावित हुए थे ।पाकिस्तान आदि में भी टिड्डियों का प्रकोप बहुत अधिक बढ़ गया था | वहाँ तो टिड्डियाँ पकड़ने को प्रोत्साहित करने के लिए 20 रुपये प्रति किलो टिड्डियाँ खरीदी जा रही थीं |
26 -7- 2016 को प्रकाशित :चूहों से संक्रमण और बीमारियाँ तेजी से फैल रही हैं !
8-6-2020- को प्रकाशित :कोरोना वायरस: क्या लॉकडाउन ने चूहों को भी गुस्सैल बना दिया है?
28-5-2021 को प्रकाशित : चूहों की जन्मदर बढ़ी ,ऑस्ट्रेलिया में चूहों से हाहाकार, खेतों को किया बर्बाद अब घर में लगा रहे आग, भारत को 5 हजार लीटर जहर का ऑर्डर !आस्ट्रेलिया चूहों से बहुत ज्यादा परेशान है. फैक्ट्री और खेतों से निकलने वाले इन चूहों की संख्या लाखों में है, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया के लोगों को न सिर्फ परेशान कर दिया है बल्कि वहां लोग चूहों से डरे हुए हैं.| ऑस्ट्रेलिया के कृषि मंत्री एडम मार्शल ने कहा है कि 'अगर हम वसंत तक चूहों की संख्या को कम नहीं कर पाते हैं तो ग्रामीण और क्षेत्रीय साउथ वेल्स में आर्थिक और सामाजिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।' । लाखों की तादाद में चूहों ने किसानों और फैक्ट्री मालिकों को परेशान कर रखा है। लाखों चूहें ऑस्ट्रेलिया के अलग अलग फैक्ट्री और खेतों से निकल रहे थे |
पशुओं पक्षियों फलों में कोरोना !
5 मई 2020को प्रकाशित : तंजानिया में बकरी और फल भी कोरोना पॉजिटिव, राष्ट्रपति ने कहा-टेस्ट किट सही नहीं तंजानिया के राष्ट्रपति ने कहा-टेस्ट किट सही नहींकोरोना वायरस के ये सैंपल बकरी भेड़ से लिए गए थे। सैंपल को जांच के लिए तंजानिया की लैब में भेजा गया, जहां बकरी पपीता और तंजानिया में एक खास तरह का फल पॉपॉ में कोरोना वायरस के होने की पुष्टि हुई है |
28 जुलाई 2020 को प्रकाशित :ब्रिटेन में बिल्ली कोरोना पॉजिटिव, पालतू जानवर में कोविड-19 के मामले मिले |
13 अगस्त 2020-को प्रकाशित :चीन से आई चौंकाने वाली खबर, चिकन में भी कोरोना वायरस!चीन ने फ्रोजन चिकनके पंख में भी कोविड-19 के होने की पुष्टि की है|
17 जुलाई 2020 को प्रकाशित :कोरोना वायरस: स्पेन में एक लाख ऊदबिलाव को मारने का आदेश !उत्तर-पूर्वी स्पेन के एक फ़ार्म में कई ऊदबिलाव कोरोना वायरस संक्रमित पाए गए हैं जिसके बाद यह फ़ैसला किया गया है|
ऋतुध्वंस होने पर ऋतुओं के गुणों में अंतर आने लगता है! वर्षाऋतु(जुलाई अगस्त ) में सूखा पड़ जाना या बहुत अधिक वर्षा बाढ़ हो जाना ! ग्रीष्मऋतु(मई जून) में बहुत अधिक गर्मी पड़ना या बहुत कम गर्मी पड़ना या अधिक वर्षा होना ! ऐसे ही शिशिर ऋतु (दिसंबर जनवरी) में बहुत अधिक सर्दी पड़ना या बहुत कम सर्दी पड़ना या अधिक वर्षा हो जाना ! ऐसा सब कुछ ऋतुबिपरीत होने का कारण ऋतुध्वंस होता है |
विशेष बात ये है कि मनुष्य शरीर को स्वस्थ रखने के लिए एवं चिकित्सा के लिए सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ बहुत उपयोगी होती हैं | इसीलिए आयुर्वेद में ऋतुचर्या को बहुत महत्व दिया गया है | मनुष्य शरीरों के लिए संतुलित मात्रा में ऋतु प्रभाव मिलना आवश्यक है ,किंतु इस वेग को वे उतना ही सह सकते हैं जितना सहने का उन्हें पहले से अभ्यास होता है | सहनशीलता की उस सीमा से कम या अधिक ऋतुवेग होने पर मनुष्य शरीर रोगी होने लग जाते हैं | यदि यह अंतर थोड़ा बहुत ही रहा तब तो रोगी होकर चिकित्सा आदि के सहयोग से स्वस्थ हो जाते हैं ,किंतु ऋतुध्वंस के वेग का यह अंतर यदि काफी अधिक घटने या बढ़ने लगता है तब महामारी जैसे रोगों के पैदा होने की संभावना बनती है| महामारी से पीड़ित रोगियों को स्वस्थ करने की न कोई औषधि अभी तक बनाई जा सकी है और न ही भविष्य में बनाई जा सकेगी | इसीलिए चिकित्सा की कोई पद्धति हो ही नहीं सकती है और न ही संक्रमण से मुक्ति दिलाने में कोई औषधि सक्षम नहीं होती है |
इसका कारण यह है कि महामारी आने के वर्षों पहले से ऋतुएँ अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करने लगती हैं | इस ऋतुध्वंस का वेग इतना अधिक होता है कि मनुष्य शरीर स्वयं तो संक्रमित होते ही हैं उस समय प्राकृतिक वातावरण के साथ साथ सभी पेड़ पौधे वृक्ष बनस्पतियों समेत खाने पीने की सभी वस्तुएँ संक्रमित हो जाती हैं | ऐसे में मनुष्य अपने संक्रमण से तो रोगी होते ही हैं |इसके साथ ही जिस वातावरण में वे साँस ले रहे होते हैं वो भी संक्रमित होता है और जो कुछ खा पी रहे होते हैं वो भी संक्रमित होता है| जो औषधि दी जा रही होती है वो भी संक्रमित होती है | ऐसे में संक्रमित वातावरण में साँस लेने वाले को , संक्रमित भोजन पानी लेने वाले को संक्रमित औषधियों का सेवन कराकर स्वस्थ नहीं किया जा सकता है |
इस सच्चाई से अनभिज्ञ लोग अपने अपने बचाव के लिए कुछ न कुछ उपाय अपनाते देखे जाते हैं | साधन संपन्न लोग चिकित्सा के लिए बड़े बड़े अस्पतालों में भर्ती हो जाते हैं जबकि मध्यमवर्ग के लोग सामान्य अस्पतालों में एवं गरीब लोग परंपरा से प्राप्त बनौषधियों का सेवन करते हैं | शासन प्रशासन महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए कुछ न कुछ औषधियाँ वितरित करवाता है टीके लगवाता है | धार्मिक लोग अपने स्वस्थ होने के लिए दान धर्म अपनाते हैं |
ऐसे सभी उपायों की महामारी से मुक्ति दिलाने की दृष्टि से कुछ विशेष भूमिका न होने पर भी इसी समय समय प्रभाव से महामारी की वो लहर समाप्त हो रही होती है |इसलिए बहुत लोग अपने आपसे स्वस्थ होने लगते हैं | समय प्रभाव से स्वस्थ होने वाले उन लोगों को भ्रमवश उन उपायों के प्रभाव से स्वस्थ हुआ मान लिया जाता है ,जबकि उसी प्रकार के उपाय करने वाले कुछ दूसरे लोगों की मृत्यु होते देखी जाती है | इस सच से मुख मोड़ते हुए कुछ लोग अपने उपायों को महामारी की वास्तविक औषधि सिद्ध कर देते हैं ,किंतु दूसरी लहर आने पर लोग जब फिर संक्रमित होने लगते हैं | ऐसे समय उन्हीं उपायों औषधियों टीकों आदि का प्रयोग करने पर भी जब संक्रमण बढ़ता जा रहा होता है तब ये भ्रम टूटता है कि हम जिसे महामारी से मुक्ति दिलाने की औषधि बता रहे थे | वह तो हमारा भ्रम था | इस सच्चाई को स्वीकार करने के बजाए औषधि से लाभ न होने को महामारी का स्वरूप परिवर्तन प्रचारित कर दिया जाता है | प्लाज्मा थैरेपी,रेमडीसीवीर के प्रयोग और परित्याग का कारण ऐसा ही स्वनिर्मित भ्रम था |
महामारी के पैदा और समाप्त होने का कारण !
महामारियाँ समय के प्रभाव से पैदा और समाप्त होती हैं और समयप्रभाव से ही महामारियों की लहरों का आना और जाना होता है| समय के संचार की प्रक्रिया को यदि ठीक से समझ लिया जाए तो महामारियों के विषय में बहुत सारी विश्वसनीय जानकारी बहुत कम समय में और बहुत कम लागत में महामारी आने के बहुत पहले ही पता लगा ली जा सकती है | उसके आधार पर महामारी आने के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाकर संभावित जनधन हानि को कम किया जा सकता है |समयसंबंधी अनुसंधानों के अभाव में महामारी को समझने एवं उससे बचाव किया जाना बिल्कुल असंभव सा होता है | अज्ञानवश महामारी को समझा कुछ जाता है उसके विषय में अनुमान कुछ लगाया जाता है पूर्वानुमान कुछ लगाया है | उसके आधार पर जो अनुमान लगाए जाते हैं और जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं और जो औषधियाँ निर्मित की जाती हैं |समय वैज्ञानिक आधार के अभाव में अनुमान ,पूर्वानुमान गलत निकल जातें हैं और उसी के आधार पर निर्मित औषधियाँ निष्प्रभावी निकल जाती हैं | ऐसी स्थिति में महामारी के स्वरूप परिवर्तन का भ्रम होना स्वाभाविक ही है |
प्राकृतिक रोगों महारोगों (महामारी) से बचाव के लिए जो औषधियाँ या टीके बनाए जाते हैं | उनके ट्रॉयल के समय में भी ऐसा भ्रम इसीलिए बना रहता है ,क्योंकि समय प्रभाव से महारोगों की लहरें बार बार आती जाती रहती हैं| समय के प्रभाव से ही कोई लहर जब जा रही होती है | उस समय सभी रोगी बिना किसी औषधि के स्वतः स्वस्थ होने लगते हैं | ऐसे समय औषधियों या टीकों का परीक्षण जिन रोगियों पर किया जा रहा होता है |समय प्रभाव से वे भी स्वस्थ होने लगते हैं किंतु उनके स्वस्थ होने का श्रेय उन औषधियों या टीकों को देकर उन्हें परीक्षण में सफल मान लिया जाता है |
जनहित में ऐसे विषयों की सच्चाई तक पहुँचने के लिए ऐसा सोचा जाना चाहिए कि जब अधिकाँश देशों प्रदेशों में संक्रमितों की संख्या अपने आपसे कम होने लगती है | इसका मतलब महामारी का प्रभाव प्राकृतिक रूप से कम हो रहा है | इसलिए लोग स्वस्थ हो रहे हैं |उसके आधार पर यदि औषधियों टीकों आदि का ट्रॉयल सफल मान लेने का मतलब ही है कि उस औषधि टीकों आदि को महामारी से बचाव की औषधि के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया जाएगा ! समाज भी इसी रूप में उस पर भरोसा करने लगेगा | उसके बाद यदि कोई लहर नहीं आती है तब तो उस औषधि को महामारी की औषधि के रूप में प्रतिष्ठा मिल ही जाएगी !
इसके बाद कोई दूसरी लहर और आ गई | यदि उससे लोग संक्रमित होने या मृत्यु को प्राप्त होने लगेंगे,तो समाज पूछेगा ही कि वो औषधियाँ कहाँ गईं जो महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए तैयार की गई थीं | आखिर उनसे लाभ क्यों नहीं हो रहा है |ऐसे प्रश्न का उत्तर ये तो नहीं ही दिया जा सकता है कि उस औषधि का प्रभाव नहीं पड़ रहा है | कहा तो यही जाएगा कि इतना समय और धनराशि लगाकर जो औषधि बनाई गई है वो तो सही है किंतु महामारी ने ही अपना स्वरूप बदल लिया है | इसका प्रत्युत्तर तो ये भी हो सकता है कि किसी भी शत्रुदेश के सैनिक स्वरूप बदल कर यदि किसी देश में घुस जाएँ तो क्या उस देश की अपनी सुरक्षा तैयारियों की कमजोरी नहीं माना जाएगा | महामारी भी शत्रुदेश के सैनिकों की तरह ही अचानक आक्रमण करती है | उससे अपनी इच्छाओं के अनुरूप व्यवहार करने की अपेक्षा ही क्यों की जानी चाहिए |
इसीलिए तो युद्ध जीतने की इच्छा रखने वाले राजा को शत्रु से निपटने की संपूर्ण तैयारी करके चलना पड़ता है | ऐसे ही महामारी से अपनी प्रजा की सुरक्षा चाहने वाले राजा को महामारी पर विजय प्राप्त करने की संपूर्ण तैयारी करके चलना होता है | इसके लिए महामारी के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाना आवश्यक होता है |इसके बिना ऐसा किया जाना संभव ही नहीं होता है |
मेरे द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान और अनुसंधान
भारत में सन 2013 में केदारनाथ जी में आया सैलाव हो या सन 2015 में भारत और नेपाल में आया हिंसक तूफ़ान या भूकंप हो | 2016 में आग लगने की अत्यधिक घटनाएँ घटित हुई थीं !एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में आई प्राकृतिक आपदाओं में 1487 लोग और 41,965 मवेशी मारे गए. जबकि, 546,518 मकान ध्वस्त या क्षतिग्रस्त हो गए थे | सन 2018 में आँधी तूफ़ान चक्रवात जैसी हिंसक घटनाएँ बहुत अधिक मात्रा में घटित हुई थीं |2018 में देश में आई प्राकृतिक आपदाओं और चक्रवाती तूफानों में 2057 लोगों की मौत हुई एवं 46,888 पशु मृत्यु को प्राप्त हुए थे | 915,878 मकान ध्वस्त या क्षतिग्रस्त हो गए.थे | . 2018 के अंतिम चार महीनों में सबसे ज्यादा परेशान करने वाले चक्रवाती तूफान आए थे !2019 में महामारी प्रारंभ हो ही गई थी | इसके बाद ऐसी हिंसक प्राकृतिक घटनाएँ और महामारी साथ साथ चलती रही थी |
2020 की जनवरी इतिहास की सबसे गर्म जनवरी थी ! भारत में लगातार वर्षा होते रहने के कारण अप्रैल 2020 सबसे ठंडा बीत रहा था,जबकि ब्रिटेन में लू चल रही थी !बताया जाता है कि ब्रिटेन में गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.|अप्रैल 2020 में कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका की हालत दिनोंदिन बिगाड़ रहे थे | में बारिश-बाढ़ और भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं से चीन का बुरा हाल हुआ जा रहा था ! सितंबर 2020 में दिल्ली बासियों को मई-जून जैसी तपिश झेलनी पड़ रही थी ।मॉनसून
की विदाई देर से हुई थी | जो पहले 1 सितंबर
से होनी शुरू हो जाती थी, वो 17 सितंबर के करीब विदा हुआ था |
21अप्रैल 2020 को प्रकाशित : कोरोना ने बदला मौसम का मिजाज़! भारत में सबसे ठंडा अप्रैल, ब्रिटेन में चल रही लू !कोरोना महामारी के बीच ब्रिटेन में गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है वहाँ अप्रैल में भीषण गर्मी और लू चल रही है |
22 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका की स्थिति बिगड़ती जा रही है |
5 मई 2020 को प्रकाशित:वैज्ञानिकों ने यह खुलासा किया है कि कोरोना काल में सूरज की रोशनी पाँच गुणा तेजी से घटी है |
12 जुलाई 2020 को प्रकाशित : बारिश-बाढ़ और भूकंप, प्रकृति के कहर से चीन का बुरा हाल ! चीन में भारी बारिश के बाद आई बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित हैं। वहीं, 12 जुलाई को तंगशान में आए भूकंप ने लोगों को पिछले हादसे की याद दिलाकर और डरा दिया। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 5.1 मापी गई है।
19 सितंबर 2020 को प्रकाशित :जिस सितंबर में मौसम करवट लेने लगता है और जाड़े की सुगबुगाहट होने लगती है, इस बार दिल्ली वासी उमस भरी गर्मी झेलने को विवश हैं। सितंबर के मध्य में भी मई-जून जैसी तपिश झेलनी पड़ रही है।तेज धूप की चुभन और उमस पसीना पोंछने पर मजबूर कर रही है |
22 जुलाई 2021 को प्रकाशित : एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, चीन और रूस तक मौसम का प्रचंड रूप देखा जा सकता है | यूरोप से लेकर एशिया और नॉर्थ अमेरिका से लेकर रूस तक कहीं बाढ़ है, कहीं गर्म हवाएँ हैं कहीं जंगलों में लगी आग तो कहीं सूखे की स्थिति है| रूस, चीन, अमेरिका और न्यूजीलैंड में लोग गर्मी, बाढ़ और जंगलों में लगी आग से परेशान हैं |
पश्चिमी यूरोप में भारी बारिश हो रही थी कहा जा रहा था कि एक सदी में पहली
बार ऐसी बाढ़ आई है| बेल्जियम, जर्मनी, लक्जमबर्ग और नीदरलैंड्स में 14और15जुलाई 2020 को इतनी
अधिक बारिश हो गई है जितनी दो माह में होती है | नॉर्थ यूरोप में गर्मी से
हालात बिगड़ते जा रहे हैं | फिनलैंड जहाँ गर्मी कभी नहीं पड़ती है , वहाँ भी गर्मी पड़ रही गई | देश के कई हिस्सों में तापमान 25
डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा हो गया है | रूस में साइबेरिया का तापमान
इतना बढ़ गया है कि 216 ये ज्यादा जंगलों में आग लगी हुई है | वहीं
पश्चिमी-उत्तरी अमेरिका में अत्यधिक गर्मी ने हालात खराब कर दिए हैं |
कैलिफोर्निया, उटा और पश्चिमी कनाडा में सर्वाधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया
है | कैलिफोर्निया की डेथ वैली में पिछले दिनों ट्रेम्प्रेचर 54.4 डिग्री
सेंटीग्रेट तक पहुँच गया है | इसी तरह से एशिया के कई देशों जैसे कि चीन,
भारत
और इंडोनेशिया के कुछ हिस्सों में बाढ़ की स्थिति है तो कुछ हिस्सों में बारिश का इंतजार है | इस प्रकार से 40 देशों में मौसम का प्रचंड रूप देखकर समाज को डर सताने लगा है |
भूकंप और उनका महामारी से संबंध !
सन 2009 के बाद प्राकृतिकअसंतुलन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था | अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते देखी जा रही थीं |
23 नवंबर 2015 को प्रकाशित : 23 नवम्बर 2015 को पूरी दुनिया में कुल 95 स्थानों पर भूकंप आ चुके हैं। पिछले एक सप्ताह में 700 जगहों पर भूकंप आये। पिछले एक महीने में 3105 भूकंप पूरी दुनिया में आये।पिछले एक वर्ष में 38,816 बार धरती अलग-अलग जगहों पर हिल चुकी है। इस सप्ताह सबसे ज्यादा तीव्रता का भूकंप इसाबेल में आया, जिसकी तीव्रता 7 थी। इस महीने अफगानिस्तान के बडकशन में 7.5 तीव्रता का भूकंप आया। पिछले एक साल में सबसे बड़ा भूकंप चिली में आया, जिसकी तीव्रता 8.3 थी।
इसप्रकार से सन 2015 के पहले की अपेक्षा बाद में भूकंपों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी |उसी क्रम में अप्रैल 2020 में जहाँ बार बार भूकंप आते रहे | उसी के अनुसार कोरोना संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती रही |
30 मई 2020 को प्रकाशित: दिल्ली में फिर टूटा कोरोना का रिकॉर्ड, 24 घंटे में 1163 नए केस, 18 लोगों की मौत !दिल्ली में हर रोज कोरोना का रिकॉर्ड टूट रहा है. पिछले 24 घंटे में कोरोना के 1163 नए मामले सामने आए हैं, जो एक दिन में सबसे ज्यादा है | (ऐसा होने के पीछे भूकंप तो कारण नहीं है )
19 जुलाई 2020 को प्रकाशित : 17\18जुलाई को भारत में बहुत भूकंप आए हैं | विशेष बात ये है कि उसी के तुरंत बाद भारत में शुरू हुआ कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड, हालात बहुत खराब : आईएमए का कहना है कि भारत में कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू हो चुका है, जिसका मतलब है कि आगे हालात और ज्यादा खराब हो सकते हैं।कहा गया कि अब घातक रफ्तार से बढ़ रहा है। हर दिन मामलों की संख्या लगभग 30,000 से अधिक आ रही है। यह देश के लिए वास्तव में एक खराब स्थिति है। कोरोना वायरस अब ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रहा है, जो कि एक बुरा संकेत है। इससे पता चलता है कि देश में कोरोना का कम्यूनिटी स्प्रेड शुरू हो चुका है।(कोरोना संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने का संबंध भूकंपों से तो नहीं था !)
प्राकृतिक घटनाओं से लगाया जा सकता है महामारी का पूर्वानुमान !
जिसप्रकार से भोजन और औषधियों के निर्माण में द्रव्यों को निर्धारित मात्रा से कम या अधिक डाल देने से उसका स्वाद और गुण दोनों बिगड़ जाते हैं |उसी प्रकार से प्रकृति में सर्दी गरमी वर्षा आदि की उतनी ही मात्रा सुखद हो सकती है जितनी उपयोगी होती है |उससे कम या अधिक होते ही प्राकृतिक आपदाओं एवं रोगों महारोगों (महामारियों) को पैदा होते देखा जाता है| ऐसे ही शरीरों में वात पित्त कफ की मात्रा जब तक उचित अनुपात में बनी रहती है, तभी तक शरीर स्वस्थ रहता है | यह अनुपात बिगड़ते ही तरह तरह के रोग पैदा होने लग जाते हैं | यह संतुलन यदि बहुत अधिक बिगड़ने लगे तब शरीर अपने आंतरिक कारणों से महामारी जैसे बड़े रोगों के शिकार होने लगते हैं |
महामारियाँ दो प्रकार से पैदा होती हैं | एक तो प्राकृतिक वातावरण में बड़ा बदलाव होने लगे!उससे सामूहिक रूप से बड़े बड़े रोग पैदा होने लगें | दूसरे शरीरों में आंतरिक कारणों से स्वास्थ्य के विपरीत बदलाव होने लगें ,तो उससे बड़े बड़े रोग पैदा होने लगते हैं |
कुल मिलाकर मानव शरीर में जब तक वात पित्त कफ संतुलित मात्रा में
बना रहता है तब तक शरीर स्वस्थ बना रहता है | संतुलन बिगड़ते ही शरीर
रोगी होने लगता है |इसीप्रकार से प्रकृति में वात पित्त कफ आदि जब तक संतुलित रहते
हैं तब तक सबकुछ ठीक रहता है|इनका आपसी संतुलन बिगड़ते ही प्राकृतिक
आपदाओं रोगों महामारियों आदि का निर्माण होने लगता है|ऐसा स्वाभाविक भी है | भोजन और औषधियों के निर्माण में द्रव्यों को निर्धारित मात्रा
से कम या अधिक डाल देने से उसका स्वाद और गुण दोनों बिगड़ सकते हैं, तो सर्दी गर्मी वर्षा आदि यदि अपनी सीमा से काफी कम या काफी अधिक हो जाता है तो उसका भी प्रभाव बदल सकता है| उसके परिणाम स्वरूप रोग महारोग एवं प्राकृतिक आपदाएँ आदि पैदा हो सकते हैं |
महामारी के आने से लगभग 12 वर्ष पहले से प्राकृतिक वातावरण का रुख बिगड़ने लगा था | कभी सर्दी बहुत अधिक पड़ रही थी तो किसी वर्ष जनवरी फरवरी में ही सर्दी बहुत कम होते देखी जा रही थी | ऐसे ही गरमी कभी बहुत अधिक पड़ती तो कभी अप्रैल मई तक वर्षा होते देखी जा रही थी | वर्षाऋतु में वर्षा बहुत कम या बहुत अधिक होना ,कहीं बादल फटना तो कहीं सूखा पड़ना बार बार आँधी तूफानों चक्रवातों आदि का घटित होना | बार बार भूकंपों के आने जैसी घटनाएँ बार बार घटित होते देखी जा रही थीं |
इसप्रकार से समस्त प्राकृतिक वातावरण में ऐसे कुछ अस्वाभाविक बदलाव होने लगे थे |जिनसे ऐसे संकेत स्पष्ट रूप से मिलने लगे थे कि या तो कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा घटित होने वाली है या फिर कोई रोग महारोग आदि जन्म लेने वाला है | प्रकृति में जिन तत्वों का प्रभाव जितना कम या जितना अधिक बढ़ रहा था | उन्हीं की कमी या अधिकता से प्राकृतिक आपदाओं या रोगों महारोगों आदि का निर्माण होने जा रहा था |
मैंने प्राचीन वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों
के विषय में गणित के द्वारा जो पूर्वानुमान लगाए थे | उनका मिलान उन छोटी
बड़ी प्राकृतिक घटनाओं से करता आ रहा था | जो महामारी आने के काफी पहले से
घटित होने लगी थीं | उन्हें भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ चक्रवात
बज्रपात आदि स्वरूपों में देखा जा रहा था | इसके अतिरिक्त पेड़ों पौधों की
पत्तियों फूलों फलों आदि के अकार प्रकार स्वाद सुगंध आदि अस्वाभाविक बदलाव
होते देखे जा रहे थे | फसलों में बीजों के अंकुरण से लेकर उनके बढ़ने में
उनके फूलने फलने तथा उपज आदि से संबंधित परिवर्तनों के रूप में दिखाई दे
रहे थे | बसंत आए बिना ही आम के वृक्षों में बौर लगने लगते थे | पशुओं पक्षियों समेत अन्य जीव जंतुओं के स्वभाव व्यवहार आदि में
भी उसप्रकार के परिवर्तन होने लगे थे | ऐसे सभी प्रकार के प्राकृतिक
संकेतों का संयुक्त अनुसंधान करने से ये लगने लगा था कि निकट भविष्य में
महामारी जैसे किसी बड़े रोग की संभावना बनती जा रही है |
इसी के आधार पर महामारी के विषय में न केवल पूर्वानुमान लगाया जा सका था ,प्रत्युत यह भी पता लगाना संभव हो पाया था कि महामारी से किस व्यक्ति का स्वास्थ्य कितना तक बिगड़ सकता है |
विज्ञान ने जितनी तरक्की अन्य क्षेत्रों में की है उतनी ही उन्नति यदि प्राकृतिक क्षेत्र में भी की होती तो आज मौसम और महामारी के स्वभाव को समझने में सफलता मिल चुकी होती |प्राकृतिक घटनाएँ घटित कैसे होती हैं | उनमें से किस घटना के घटित होने का कारण क्या होता है | ये अब तक पता लगा लिया गया होता ! उन्हीं कारणों के आधार पर घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाकर उनका परीक्षण भी कर लिया होता कि जिसप्रकार की घटनाओं के लिए जिसप्रकार के कारणों को जिम्मेदार माना गया है | उसके आधार पर घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाकर उन कारणों का परीक्षण भी कर लिया गया होता | यदि वे पूर्वानुमान सही निकलते तो जिस घटना के घटित होने के लिए जिस कारण को जिम्मेदार माना गया है वो सही है अन्यथा गलत है |घटनाओं के कारणों का सही चयन होते ही जलवायुपरिवर्तन एवं महामारी के स्वरूपपरिवर्तन जैसे भ्रम स्वतः समाप्त हो गए होते| इनकी सच्चाई पता लग चुकी होती कि वास्तव में ऐसा हो रहा है या ऐसी घटनाओं के घटित होने के कारण प्रकृति की जितनी गहराई में विद्यमान हैं| वैज्ञानिक सोच का वहाँ तक पहुँचना अभी संभव नहीं हो पाया है |
जिस प्रकार से किसी स्थान पर धुआँ उठते देखकर यह पता नहीं लगाया जा सकता है कि ये धुआँ कितने समय तक उठता रहेगा | इसका कारण खोजना होगा कि जब तक आग जलती रहेगी तब तक धुआँ उठता रहेगा | आग कब तक जलती रहेगी जब तक उसमें ईंधन रहेगा | इसका मतलब ये हुआ कि धुआँ कब तक उठेगा जब तक आग में ईंधन रहेगा | इसप्रकार से घटनाओं के वास्तविक कारणों को खोजने के लिए कभी कभी कई कई कारणों का भेदन करते हुए मुख्यकारण तक पहुँचना होता है | यदि वे कारण सही हैं तो घटनाओं के विषय में जो समझा गया है वह भी सही होता है और उसके आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि भी सही निकलते हैं |
इसीलिए उपग्रहों रडारों से बादलों को देखकर वर्षा और बाढ़ के विषय में पूर्वानुमान लगाना,आँधी तूफानों को देखकर उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना एवं महामारी से बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित होते देखकर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाकर उनके सच निकलने की उम्मींद अधिक नहीं की जानी चाहिए | इसके लिए वास्तविक कारण तक पहुँचना ही होगा | जिस प्रकार से धुएँ के उठने का कारण आग और आग के उठने का कारण ईंधन होता है| ऐसे ही मौसम एवं महामारी जैसी समस्त प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित कई कई अंतर्कारणों को पार करते हुए मुख्यकारण तक पहुँचना होता है |
समय,आकाशीय लक्षणों समुद्रों नदियों तालाबों पहाड़ों वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों आदि
में हमेंशा परिवर्तन होते रहते हैं | ऐसे सभी परिवर्तनों के साथ साथ पशुओं
पक्षियों समेत समस्त जीव जंतुओं के स्वभावों व्यवहारों स्वास्थ्य लक्षणों
आदि में प्रतिपल होते रहने वाले परिवर्तनों को देखना एवं उनके विषय में निरंतर अनुभव करते रहना ही अनुसंधान होता
है |ऐसे सूक्ष्म परिवर्तन प्रकृति के अन्य अंगों में होने वाले भावी
परिवर्तनों की ही भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में संकेत दे
रहे होते हैं |प्रकृति के किसी एक अंग में होने वाले परिवर्तन का प्रभाव
प्रकृति के दूसरे अंगों में भी उभरते हुए देखा जा सकता है | जिसप्रकार से
धुआँ होने का मतलब वहाँ आग की उपस्थिति है,किंतु जहाँ आग होती है वहाँ केवल
धुआँ ही नहीं होता प्रत्युत प्रकाश और ताप(गर्मी) भी होता है | जहाँ से
धुआँ निकल रहा है वहाँ यदि प्रकाश और ताप भी है इसका मतलब है कि वहाँ आग भी
है अन्यथा धुआँ निकलने का कारण कुछ दूसरा भी हो सकता है |
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