31-7-2024 महामारी आगमन की आहट पहले ही लग गई थी !जानवरों का आतंक -मौसम में बड़े बदलाव

                  दो शब्द

   प्रकृति और जीवन को समझने में गणित विज्ञान सक्षम है |

    प्राचीन विज्ञान वेत्ताओं का मानना है कि महामारी एवं मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाना  केवल गणितविज्ञान के द्वारा संभव है | इसीलिए प्राचीन काल में मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं को समझने के लिए केवल गणित विज्ञान का ही सहारा लिया जाता था |वस्तुतः मौसम और महामारियों का कारक सूर्य को माना जाता है | इसलिए सूर्य के संचार को ठीक ठीक समझकर उसी के आधार पर मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
     सूर्य सिद्धांत जैसे अनेकों आर्ष ग्रंथों में प्रकृति एवं जीवन को समझने के लिए गणित के सूत्रों का उपयोग किया गया है | गणित के द्वारा सूर्य आदि ग्रहों के संचार के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया बताई गई है | उसी पद्धति से पृथ्वी सूर्य चंद्र आदि के एक सीध में आने के विषय में सही सटीक अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाकर गणित के द्वारा ही सूर्य चंद्रग्रहणों का भी सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | 
    ऐसी परिस्थिति में जिस गणित विज्ञान के द्वारा सूर्य चंद्र आदि ग्रहों से संबंधित घटनाओं के विषय में  हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है तो इन्हीं के संचार परिवर्तनों से घटित होने वाली महामारी भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात आदि घटनाओं के विषय में भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है | गणित के द्वारा ऐसा किया जाना संभव है| इसीलिए विभिन्न आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी इस गणित विधा को वैज्ञानिक अनुसंधानों के सहयोगी के रूप में स्वीकार किया है | 
                                                                   गणितागत  पूर्वानुमान !
     विज्ञान में गणित की महत्ता  बताते हुए आईआईटी कानपुर के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के एक प्रोफेसर  गणितविज्ञान के साथ प्रकृति के सजीव संबंध को स्वीकार करते हुए कहते हैं -
    "हमारी प्रकृति कुछ इस प्रकार से बनी है कि गणित के जो फार्मूले हैं जो कि कागज़ पेन से लिखे जाते हैं वे प्रकृति के कई सारे नियमों को ठीक तरीके से पकड़ लेते हैं और वो कागज़ पेन से की गई कैलकुलेशन वो प्रकृति में क्या हो रहा है ये बता देते हैं | इसका कारण क्या है इसे कोई भी पूरी अच्छी तरीके से नहीं समझता है लेकिन ये हर जगह देखा  गया है | चाहें न्यूटन के लॉ हों आइंस्टीन के लॉज हों सिंपल क्वेश्चंस हैं लेकिन वो कागज़ पेन से की हुई चीजें वास्तविक प्रकृति में क्या हो रहा है बड़ी बड़ी चीजें कैसे घटित हो रही हैं ये बता देती हैं | "
       इसी प्रकार से एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित में आंकड़ों की प्रधानता है और विज्ञान में तत्वों की और ये दोनों प्रकृति से जुड़े हुए है।वैसे तो गणित का उपयोग प्राचीन समय से ब्रम्हांड में तारा एवं ग्रहों की दूरी के लिए कर रहे हैं ।"    
    एक वैज्ञानिक कहते हैं -"विज्ञान में हम सिद्धांतों की बात करते है और गणित के द्वारा ही उन सिद्धान्तों को सूत्रों में बदला जाता है।साफ़ तौर पर कहें तो विज्ञान ‘क्यों’ का उत्तर देता है और गणित ‘कब’ और ‘कितना’ का उत्तर देती है।"
   एक वैज्ञानिक कहते हैं -  "गणित विभिन्न नियमों, सूत्रों, सिद्धांतों आदि में संदेह की संभावना नहीं रहती है।"
  गैलिलियो के अनुसार, “गणित वह भाषा है जिसमे परमेश्वर ने सम्पूर्ण जगत या ब्रह्माण्ड को लिख दिया है।”
      एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के नियम, सिद्धांत, सूत्र सभी स्थानों पर एक समान होते हैं जिससे उनकी सत्यता की जाँच किसी भी समय तथा स्थान पर की जा सकती है।गणित ज्ञान का आधार निश्चित होता है जिससे उस पर विश्वास किया जा सकता है।
एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेंद्रियाँ हैं।"
       कुलमिलाकर प्राकृतिक बिषयों में गणित के बिना विज्ञान अधूरा होता है|किसी प्राकृतिक घटना के घटित होने के बिषय में विज्ञान के द्वारा यदि यह पता लगा भी लिया जाता है कि ऐसी घटना घटित होने की संभावना है|तो प्रश्न उठता है कि कब घटित होगी उसके लिए गणित की आवश्यकता होती है | इसलिए गणित और विज्ञान दोनों मिलकर ही प्राकृतिक रहस्यों  को सुलझा सकते हैं |
    भारत की जो प्राचीन पारंपरिक ज्ञान की पद्धति थी उस विज्ञान का गणित ही मूल आधार है | उस गणित के बलपर वे बड़ी बड़ी घटनाओं के रहस्यों को सुलझा लिया करते थे | इसीलिए उन्हें वर्तमान समय की तरह यंत्रों पर आश्रित नहीं होना पड़ता था |           

 


  महामारी आगमन की आहट पहले ही लग गई थी !

     मैं पिछले लगभग तैंतीस वर्षों से ऐसे प्राकृतिक बिषयों पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ जिसमें भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ वायु प्रदूषण एवं तापमान का घटता बढ़ता स्तर प्राकृतिक स्वास्थ्य समस्याएँ  मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं एवं महामारियों के बिषय में अनुसंधान करता आ रहा हूँ | प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण पैदा होने वाली सामाजिक राजनैतिक वैश्विक आदि समस्याओं के पैदा होने एवं उनका समाधान निकलने के बिषय में भी पूर्वानुमान लगाता आ रहा हूँ | उसी क्रम में सन 2010 के बाद सुदूर आकाश से समुद्र समेत समस्तप्रकृति में कुछ इस प्रकार के परिवर्तन दिखाई देने लगे थे जो निकट भविष्य में किसी बड़ी महामारी या अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदा या युद्ध आदि के द्वारा बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की ओर संकेत देने लगे थे | सन 2013 के बाद प्राकृतिक वातावरण पूरी तरह बदला बदला दिखाई देने लगा था आकाशीय परिस्थितियाँ सूर्य चंद्रादि ग्रहों के विंबीय आकार प्रकार वर्ण आदि परिस्थितियाँ क्रमशः बदलती जा रही थीं वायुसंचार में बदलाव वृक्ष बनस्पतियों में परिवर्तन होने लगे थे | समय जैसे जैसे बीतते जा रहा था वैसे वैसे जल वायु अन्न आदि समस्त खाद्य वस्तुएँ अपने अपने गुण स्वाद आदि से विहीन होती  जा रहीं थीं | औषधीय बनस्पतियाँ जिन गुणों के लिए जानी जाती थीं उनमें उसप्रकार के गुणों का ह्रास होता चला जा रहा था | 

      वायुतत्व दिनोंदिन अधिक चंचल एवं प्रदूषित होता जा रहा था| वायुमंडल में प्रदूषण ,बज्रपात की हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जा रही थीं | इसीलिए 2018 के अप्रैल मई में आँधी तूफानों की घटनाएँ बारबार घटित होने लगी थीं | चक्रवात जैसी हिंसक घटनाएँ घटित होते अक्सर देखी जाने लगी थीं | 

    पृथ्वीतत्व के स्थिरता संबंधी स्वाभाविक गुण विकृत होने लगे थे | धरती बार बार काँपने लगी थी भूकंपों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी |सुनामीजैसी घटनाओं के डरावने दृश्य दिखाई पड़ने लगे थे | महामारी काल में केवल भारत में ही एक हजार बार से अधिक भूकंप घटित हुए थे |

प्रकुपित अग्नितत्व  हिंसक स्वरूप  धारण करता जा रहा था | कहीं भी कभी भी आग लगने की घटनाएँ घटित होती देखी जा रही थीं इसीलिए तो 2016 अप्रैल में बिहार सरकार ने दिन में हवन करने एवं चूल्हा जलाने आदि पर रोक लगा दी गई थी | 

    जलतत्व में दिनोंदिन विकृति आती  देखी जा रही थी कहीं भीषण बाढ़ तो कहीं  सूखा था | जमीन के अंदर का जलस्तर  दिनों दिन कम होता जा रहा था |जल की गुणवत्ता में कमी होती जा रही थी !बादलों के फटने की घटनाएँ  देखी जाने लगी थीं | 

     आकाश अक्सर धूम्रवर्ण या लाल पीला होता दिख रहा था !नीला एवं स्वच्छ आकाश तो वर्ष के कुछ महीनों में ही दिखाई देने लगा था | इसके अतिरिक्त आकाश में और भी प्रतिसूर्य गंधर्वनगर जैसी घटनाएँ दिखने लगीं थीं | 

    इस प्रकार से पंचतत्वों में बढ़ते विकार बनस्पतियों एवं खाद्यपदार्थों के स्वाद एवं गुणवत्ता में आती कमी मनुष्य समेत सभी जीव जंतुओं के स्वभाव में बढ़ते अस्वाभाविक बदलाव  किसी बड़ी विपदा की ओर संकेत करने लगे थे | ऐसी  घटनाओं का जब गणितीय पद्धति से परीक्षण किया गया तो महामारी जैसी किसी बड़ी हिंसक प्राकृतिक घटना का आभास होने लगा था | 

    इसलिए इसीप्राचीन अनुसंधान के आधार पर सन 2017 से ही वर्तमान महामारी के बिषय में मुझे संभावना दिखने लगी थी इस बिषय में मैंने संबंधित मंत्रालयों सरकारी विभागों निजीसंस्थाओं एवं विविध मीडिया माध्यमों से अपनी बात सरकार तक पहुँचाने का प्रयत्न करता रहा हूँ | इसी संदर्भ में सामाजिक स्वयं सेवी संगठनों एवं निजी संगठनों के बड़े बड़े नेताओं से संपर्क करके भारत सरकार तक अपनी बात पहुँचाने का प्रयास करता रहा कई पत्र रजिस्टर्ड डॉक से भी भेजे हैं | पीएमओ की मेल पर भेजकर प्रधानमंत्री जी से मैंने मिलने के लिए समय माँगा किंतु मुझे अपनी बात भारत के प्रधानमंत्री जी तक पहुँचाने का अवसर नहीं मिल सका ऐसे प्रयासों में भटकते भटकते काफी लंबा समय बीत गया तब तक सन 2020 प्रारंभ हो चुका था महामारी प्रारंभ हो चुकी थी उसकी चर्चा सभी जगह सुनाई देने लगी थी महामारी को लेकर तरह तरह की आशंकाएँ व्यक्त की जा रही थीं महामारी के बिषय में लोग तरह तरह की अफवाहें फैलाए जा रहे थे | मीडिया माध्यमों से भारत सरकार भी चिंतित दिखाई दे रही थी किंतु चाहकर भी मैं अपनी बात भारत के प्रधानमंत्री जी तक नहीं पहुँचा सका इसलिए अब निराश हताश होकर शांत बैठ गया था | इसी बीच अचानक एक बात मन में आई कि  बिषय में मैं अपनी बात पीएमओ की मेल पर डाल दूँगा तो भविष्य के लिए यह प्रमाण सुरक्षित बना रहेगा | इसलिए मैंने पीएमओ की मेल पर सबसे पहला पर 19 मार्च 2020 को भेजा था जिसमें महामारी के बिषय में हमारे द्वारा कुछ आवश्यक बातें लिखी गई थीं | 

      महामारी के जन्म स्वभाव प्रभाव विस्तार प्रसारमाध्यम अंतर्गम्यता आदि को ठीक ठीक जाने बिना महामारी से राहत दिलाने वाली प्रभावी तैयारियाँ करना संभव न था और न ही महामारी से मुक्ति दिलाने योग्य औषधि वैक्सीन आदि का निर्माण ही किया जा सकता था | इसीलिए महामारी से संबंधित कुछ और जरूरी जानकारियाँ 19मार्च 2020 को मेल भेजकर मैंने पीएमओ को दी थी !ये हैं वे महत्वपूर्ण जानकारियाँ जिन्हें वैज्ञानिकों ने बहुत बाद  में स्वीकार किया था !उसी मेल के संबंधित अंश मैं यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ -
1.  कोरोना प्राकृतिक है -" किसी महामारी पर नियंत्रण न हो पाने का कारण यह है कि  कोई भी महामारी तीन चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती  है  ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है | "
2.    कोरोनाहवा में विद्यमान है -"पर्यावरण बिगड़ने का प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है इसलिए शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम पड़ पाता है यहीं से महामारी फैलने लगती है |"
 3.  महामारी में होने वाले रोग को न तो पहचाना जा सकता है और न ही इसकी औषधि बनाई जा सकती है -"इसमें चिकित्सकीय प्रयासों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है |"
 4. महामारी में होने वाले रोगके वेग को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर घटाया जा सकता है -"ऐसी महामारियों को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |"
5.  प्रकृति के द्वारा इस समय दवाओं की शक्ति समाप्त कर दी गई है इसलिए महामारी में होने वाले रोगों में प्रयोग की गई औषधियाँ निष्प्रभावी रहेंगी -"विशेष बात यह है जो औषधियाँ बनस्पतियाँ आदि ऐसे रोगों में लाभ पहुँचाने के लिए जानी जाती रही हैं बुरे समय का प्रभाव उन पर भी पड़ने से वे उतने समय के लिए निर्वीर्य अर्थात गुण रहित हो जाती हैं जिससे उनमें रोगनिवारण की क्षमता नष्ट हो जाती है | "
   1. कोरोना प्रथम चरण के बिषय में 19 मार्च 2020 को मेल भेजकर मैंने पीएमओ को सूचित किया था यह है उस मेल का इस बिषय से संबंधित अंश :-
       "24 मार्च 2020 के बाद इस महामारी का समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा | |उसके बाद के समय में पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से मुक्ति पा सकेगा |"
     इसी समय से महामारी समाप्त होने भी लगी थी महामारी का वेग क्रमशः कम होता चला जा रहा था यह देखकर विश्व के कुछ देशों के वैज्ञानिक तो यहाँ तक सोचने लगे थे कि अब वैक्सीन नहीं बन पाएगी क्योंकि ट्रायल के लिए संक्रमित रोगी ही नहीं मिलेंगे तो वैक्सीन कैसे बन पाएगी | कुलमिलाकर समूचे विश्व में संक्रमण की गति धीमी पड़  चुकी थी भारत में भी लोग दिनोंदिन लापरवाह होते चले जा रहे थे | उन्हें नहीं पता था कि 9 अगस्त 2020 से कोरोना संक्रमण दोबारा बढ़ने लगेगा | तब हमने पीएमओ को दूसरा मेल 16 जून  2020 को भेजा था | 
 
   2. दूसरे चरण के बिषय में 16 जून  2020 को मेल भेजकर मैंने पीएमओ को सूचित किया था यह है उस मेल का इस बिषय से संबंधित अंश :-

        "यह महामारी 9 अगस्त 2020 से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर 2020 तक रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और  16 नवंबर 2020 के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"  

     यह पूर्वानुमान पूरी तरह से सही हुआ था  9 अगस्त से संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगी थी सरकारी गणना के  अनुशार 17 सितंबर को सबसे अधिक संक्रमितों की संख्या आयी थी उसके बाद क्रमशः कम होते चले जा रहे थे !    समय विज्ञान की दृष्टि से  प्राकृतिक कोरोना महामारी यहाँ से संपूर्ण रूप से समाप्त हो जानी चाहिए थी और  कोरोना अब तक समाप्त हो चुका होता !ऐसा होते प्रत्यक्ष देखा भी जा रहा था !यदि वैक्सीन न लगाई जाती तो मुझे विश्वास है कि कोरोना संक्रमण यहीं से समाप्त हो जाता | इसी बीच भारत सरकार की ओर से वैक्सीन लगाने की तैयारियाँ की जाने लगीं !इस समय वैक्सीन लगाने से संक्रमितों की संख्या बढ़ने की पूरी संभावना थी | 

      भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री जी एवं नीतिआयोग के डॉ.वी.के.पाल साहब ने  अक्टूबर 2020 में आशंका जताई थी कि सर्दी में कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा | कुछ अन्य लोगों ने कहा था कि सर्दी में वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा | इस बिषय में भी मैंने पीएमओ को पत्र भेजकर स्थिति स्पष्ट की थी कि सर्दी के मौसम में तापमान कम होने से कोरोना नहीं बढ़ेगा |   

      हमारे द्वारा पीएमओ को भेजा गया तीसरा मेल -

    3.  इसीलिए  23 दिसंबर 2020 को मेल भेजकर मैंने पीएमओ से वैक्सीन न लगावाने के लिए निवेदन किया था और यदि लगवाना भी हो तो बहुत सोच बिचार कर बहुत सोच बिचार कर लगाने के लिए निवेदन किया था उस मेल का इस बिषय से संबंधित अंश :-

4.  23 दिसंबर 2020 के मेल का अंश :-  "  आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि अच्छी प्रकार परीक्षण करवाकर ही कोरोना वैक्सीन लोगों को लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए |वेद वैज्ञानिक दृष्टि में मैं संपूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि ब्रिटेन में फैल रहा कोरोना वायरस का नया स्वरूप लोगों को लगाए जा रहे कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव हो सकते हैं |"
    "महामारी से संक्रमितों की संख्या बिना किसी दवा या वैक्सीन के स्वयं ही दिनोंदिन तेजी से कम होती जा रही है |केवल श्रेय लेने की होड़ में सम्मिलित लोगों के द्वारा वैक्सीन के रूप में एक नई समस्या को जन्म दिया जा सकता है | ऐसी परिस्थिति में देश और समाज की सुरक्षा के लिए विशेष सतर्कता संयम  एवं सावधानी की आवश्यकता है | वैसे भी यदि कोरोना महामारी भारत वर्ष में लगभग समाप्त हो ही चुकी है तो किसी वैक्सीन के रूप में एक नए प्रकार की समस्या मोल लेने की आवश्यकता ही आखिर क्या है ? "
   "ऐसी परिस्थिति में यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना अतिशीघ्र समाप्त हो ही जाएगा क्योंकि वातावरण में अब कोरोना वायरस के उत्पन्न होने की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है और भारत समेत समस्त विश्व को कोरोना के इस नए स्वरूप से अब डरने की आवश्यकता बिलकुल ही नहीं है | यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत विश्वसनीय नहीं हैं |"      
      23 दिसंबर 2020 को मेल भेजकर पीएमओ को सूचित करने का मेरा उद्देश्य यही था कि वैक्सीन लगाने का कार्यक्रम या तो रोका जाएगा और या फिर वैक्सीन लगने के बाद संभावित संक्रमण बढ़ने की आशंका को ध्यान में रखते हुए उसे नियंत्रित करने के लिए पहले आवश्यक तैयारियॉँ कर लेने के बाद वैक्सीन लगाई जाएगी किंतु मेरे पूर्वानुमान के अनुशार वैक्सीन लगने के बाद संक्रमण दिनोंदिन अनियंत्रित होता चला गया !
                                                            : विशेष बात : 
     ब्रिटेन में ऐसा हो चुका था वहाँ 8 दिसंबर 2020 को वैक्सीनेशन प्रारंभ किया गया था उसके बाद एक सप्ताह के अंदर संक्रमण बढ़ने लग गया था | यही स्थिति भारत की हुई एक ओर वैक्सीनेशन होता जा रहा था तो दूसरी ओर संक्रमण बढ़ता जा रहा था | जिन जिन प्रदेशों ने वैक्सीनेशन में जितनी अधिक सक्रियता दिखाई उन प्रदेशों में उतनी तेजी से बढ़ता चला  गया | पहली लहर में कोरोना संक्रमण गाँवों तक नहीं पहुँच पाया  था किंतु वैक्सीनेशन की प्रक्रिया जैसे जैसे गाँवों की ओर बढ़ने लगी वैसे वैसे संक्रमण गाँवों में भी पैर पसारता चला जा रहा था |     
   अस्पतालों शमशानों में लाइनें लगने लगीं आक्सीजन कम पड़ गई  सरकारों एवं चिकित्सावैज्ञानिकों के प्रयास निष्फल होते चले जा रहे थे | कुंभ जैसे ऐतिहासिक महामेले का समय से पूर्व विसर्जन करना पड़ा साधू संत अपने अपने आश्रमों के लिए  रवाना होने लगे | 
        महामारी से संक्रमित लोग सरकारों से संपर्क कर रहे थे !महामारी के आगे बेवश सरकारें संसाधन विहीन थीं अस्पतालों में बेड नहीं थे बाजार में आक्सीजन दवाएँ इंजेक्शन आदि कुछ भी नहीं मिल रहे थे समस्त चिकित्सा पद्धतियाँ महामारी के सामने असहाय थीं अस्पतालों की क्या कहें शमशानों में जगह नहीं थी !धनी लोगों का धन पहली बार उनके काम नहीं आ पा रहा था |वह कितना भयावह मंजर था | सेवा भाव में लगे चिकित्सक मित्रों को मैंने रोते देखा है | सरकारों में स्वास्थ्य सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रहे कुछ लोगों या उनके प्रतिनिधियों की लाचारी के फोन हमारे पास आ रहे थे | जिसमें कहा जा रहा था कि कई दिनों से रात रात भर हम सो नहीं पा रहे हैं सिफारिस के लिए मेरे पास फ़ोन आ रहे हैं किंतु उनकी मदद कर पाने लायक मेरे पास कुछ भी नहीं है फिर भी फोन तो उठाने ही पड़ते हैं |किसे क्या आश्वासन दूँ समझ में नहीं आ रहा है |मीडियाकर्मी संक्रमित होते जा रहे थे आशंकाओं से ग्रस्त जनता घरों में कैद थी | सभी ओर भय का वातावरण बना हुआ था |
      ऐसे भयावह वातावरण में निराश हताश होकर जनता वैज्ञानिकों के मुख की ओर देख रही थी | विवश वैज्ञानिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं वे जहाँ जब जैसा कुछ होते देखते थे वैसा ही आगे होता रहेगा जैसी कुछ बातें बोल दिया करते थे इतने दिन से होते चले आ रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों से केवल इतनी ही मदद जनता को मिल पा रही थी | महामारी का नाम कोरोना रख दिया गया था संपूर्ण महामारी काल में वैज्ञानिक अनुसंधानों की यही एक सबसे बड़ी सफलता मानी जा सकती है | कोई यह बताने की स्थिति में नहीं था कि महामारी कितनी और बढ़ेगी कितने दिनों सप्ताहों तक और चलेगी आगे इसका स्वरूप और अधिक विकराल होगा या सामान्य होगा | इस बिषय में कोई प्रामाणिक तौर पर कुछ कहने की स्थिति में नहीं था | 
    ऐसी परिस्थिति में प्राचीन काल में महामारी समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के लिए यज्ञ किए जाते थे उन यज्ञों के माध्यम से मानवता की ओर से दैवी शक्तियों से माफी माँगी जाती थी उससे दैवी शक्तियाँ मानवता को क्षमा कर दिया करती थीं और महामारियों समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं को समेट लिया करती थीं | 
     इसी आशा से 15 से 19 अप्रैल के बीच मीडिया शासन एवं सरकारों से जुड़े हमारे कई भयभीत मित्रों ने हमसे फ़ोन पर संपर्क किया और अत्यंत हैरान परेशान होकर बड़ी आशा से व्यक्तिगत रूप से हमसे ऐसा कुछ उपाय करने को कहा जिससे भारत समेत समस्त विश्व वासियों को महामारी के भय पूर्ण वातावरण से मुक्ति मिल सके |दुखी मैं स्वयं भी था ही ऊपर से उन  मित्रों के दबाव में आकर मुझे उन्हीं परिस्थितियों में एक गुप्तयज्ञ करने का निर्णय लेना पड़ा | 
    हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी महामारी दैवी शक्तियों से प्रेरित थी इसलिए उसे मनुष्यकृत प्रयासों से रोका जाना संभव न था !इधर कोरोना योद्धाओं के द्वारा महामारी को पराजित करने या महामारी पर विजय प्राप्त करने की बड़ी बड़ी बातें की जा रही थीं किंतु दैवीशक्तियों को पराजित करना संभव न था | सरकारों समेत समस्त अहंकारी मनुष्यजाति का मानमर्दन करने पर उतारू दैवी शक्तियों ने मनुष्यकृत प्रयासों को कुचलना शुरू कर दिया था | ऐसी परिस्थिति में कुपित दैवी शक्तियों के सामने कौन टिकता !इसीलिए महामारी को पराजित करने के लिए जितने भी प्रयास किए जा रहे थे वे सारे न केवल निष्फल होते जा रहे थे अपितु उन प्रयासों के दुष्प्रभावों से नए नए रोग पैदा होते जा रहे थे |सरकार को मेरी बात सुनने का समय नहीं था मेरा ऐसा कोई वजूद भी नहीं था कि प्रधानमंत्री जी मुझे मिलने का समय देना जरूरी समझते !मिल भी लेते तो मेरी बात क्यों मानते मेरे जैसे बहुत लोग ऐसी बातें करते होंगे | यदि मेरी बात सुन भी लेते और वैक्सीनेशन रोकने संबंधी हमारा निवेदन मान भी लेते तो उनके लिए दूसरी बड़ी मुसीबत यह तैयार हो जाती कि उन्हें विपक्ष के सामने उत्तर देना कठिन हो जाता | खैर मैंने यथा संभव कुछ सरकारों तक अपनी बात पहुँचाई कि महामारी को पराजित करने वाली बातें बोलना बंद कर दीजिए आप महामारी की एक चपेट सहने की स्थिति में तो हैं नहीं महामारी को पराजित करन संभव नहीं है | हमारी इन बातों को अपने कुछ लोगों ने माना भी जिससे उनका भी दैवी शक्तियों  पर विश्वास बढ़ने लगा | 
      लोगों के विशेष आग्रह पर मैंने इसी उद्देश्य से एक यज्ञ करने का निश्चय किया जो गुप्त एवं व्यक्तिगत रूप से किया जा रहा था | ये यज्ञ 20 अप्रैल 2021 से मेरे द्वारा प्रारंभ किया गया था और 2 मई 2021 तक चलना  था !इसकी सूचना भी 19 अप्रैल 2021 को मैंने मेल भेजकर पीएमओ को दे दी थी यह है उस मेल का इस बिषय से संबंधित अंश -
5.  "प्रधानमंत्री जी !यदि अब भी मैं मौन बैठा रहा तो प्रकुपित ईश्वरीय शक्तियाँ विश्वका चेहरा बर्बाद कर देने पर आमादा दिख रही हैं | दैवी शक्तियों का मानवजाति पर इतना अधिक क्रोध !आश्चर्य !! महोदय ! ऐसी परिस्थिति में जनता की ब्यथा से ब्यथित होकर व्यक्तिगत रूप से मैं एक बड़ा निर्णय लेने जा रहा हूँ |अपने अत्यंत सीमित संसाधनों से कल अर्थात 20 अप्रैल 2021 से "श्रीविपरीतप्रत्यंगिरामहायज्ञ" अपने  ही निवास पर गुप्त रूप से प्रारंभ करने जा रहा हूँ | यह कम से कम 11 दिन चलेगा ! इसयज्ञ रूपी 'ईश्वरीयन्यायालय' में विश्व की समस्त भयभीत मानव जाति की ओर से व्यक्तिगत रूप से पेश होकर क्षमा  माँगने का मैंने  निश्चय किया है |मुझे विश्वास है कि ईश्वर क्षमा करके विश्व को महामारी से मुक्ति प्रदान कर  देगा | यज्ञ प्रभाव के विषय में मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |" 
      भगवती से की गई प्रार्थना के प्रभाव से महामारी का वेग 20 अप्रैल से ही रुकने लगा था 23 अप्रैल के बाद दिखाई भी पड़ने लगा था और दो मई से समाप्त होने लगा था |

                                     प्राचीन युग कैसे लगाए जाते थे महामारियों के पूर्वानुमान !
      प्राचीनकाल में राजा लोग अपनी प्रजा की सुरक्षा केवल प्रत्यक्ष शत्रुओं से ही नहीं करते थे प्रत्युत प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों जैसे परोक्षशत्रुओं से प्रजा की सुरक्षा करना भी अपना धर्म समझते थे |कई बार ऐसी आपदाएँ महामारियाँ आदि प्रत्यक्ष शत्रुओं की  अपेक्षा जन धन का अधिक नुकसान कर जाती हैं | हम प्रत्यक्ष शत्रुओं से सुरक्षा की तैयारियाँ किए बैठे रहते हैं फिर भी ऐसी आपदाएँ महामारियाँ आदि लाखों लोगों को मारकर चली जाती हैं | कोरोना काल में ही  देखा जाए तो भारत को बीते दशकों में पड़ोसी के  साथ तीन युद्ध लड़ने पड़े उन तीनों युद्धों में मिलाकर जितनी जनधन हानि  हुई है | उससे बहुत अधिक लोग केवल कोरोना महामारी में ही मृत्यु को  प्राप्त हुए हैं |
     इसीलिए राजा लोग एक ओर शत्रुओं से अपने देश एवं देशवासियों की रक्षा करते थे तो दूसरी ओर प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से भी  देश एवं देशवासियों की सुरक्षा के लिए अत्यंत सतर्क रहा करते थे | इसे  गंभीरता से लेने के  कारण ही राजा लोग शिकार आदि के बहाने प्रकृति में हो रहे परिवर्तनों का अनुभव करने के लिए अक्सर जंगलों में जाया करते थे | जंगलों में ऋषियों मुनियों के आश्रमों में जा जाकर उनसे अनुभव लिया करते थे कि भविष्य में ऐसी कोई महामारी या प्राकृतिक आपदा तो नहीं आने वाली है | निकट भविष्य में वर्षा कैसी होगी फसलें कैसी होंगी आदि आवश्यक जानकारियाँ जंगलों में रहने वाले ऋषियों मुनियों से लिया करते थे | 
     ऋषि मुनि  चाहते तो राजालोग  उनके रहने की सुख सुविधा पूर्ण अत्यंत अच्छी व्यवस्था महानगरों में करवा सकते थे,ऋषिलोग भजन यज्ञ जप तप आदि तो महानगरों के सुंदर भवनों में रहकर भी कर सकते थे ,किंतु महानगरों में रहकर प्रकृति का अनुभव नहीं किया जा सकता था | इसीलिए न तो राजाओं ने ऋषिमुनियों से कभी ऐसा आग्रह किया और न ही ऋषि मुनियों ने राजाओं से कभी महानगरों में सुख सुविधा पूर्ण रहन सहन देने की कभी इच्छा प्रकट की ,क्योंकि ऋषि मुनियों और राजाओं को पता था कि प्रकृति संबंधी अनुभवों के अभाव में प्रजा को प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों का सामना अचानक करना पड़ सकता है | इनसे सुरक्षा के लिए अग्रिम तैयारियाँ न होने के कारण ऐसी आपदाओं एवं महामारियों से जनधन का बहुत बड़ा  नुक्सान हो सकता है | 
      जंगलों में रहने वाले बनवासियों ,पहाड़ों पर बसने वाले लोगों, किसानों, पशुपालकों  तथा नदियों तालाबों समुद्रों के संपर्क में रहने वालों से राजा लोग स्वयं मिला करते थे |उनको राजदरवारों में बुलाकर मिलते जुलते एवं ऐसे विषयों पर चर्चा करते थे| 
     इसप्रकार जिन प्राकृतिक परिवर्तनों के आधार पर  भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि पता लगा लिए जाते थे |किस प्रकार के प्राकृतिक परिवर्तन होने की संभावना कब है इसका पूर्वानुमान ज्योतिष के द्वारा लगाया जाता था |ज्योतिष के द्वारा भविष्य में होने वाली महामारियों के विषय में भी पूर्वानुमान लगा लिए जाते थे | इसकी विधि का वर्णन ज्योतिष में तो मिलता ही है | आयुर्वेद के चरकसंहिता आदि ग्रंथों में भी मिलता है |इस प्रक्रिया के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के विषय में सूर्य चंद्र ग्रहणों की तरह ही सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य में कब कैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो सकती हैं | 
     प्राचीनकाल में ऐसी सभी विधियों के आधार पर अनुमान पूर्वानुमान लगाकर ऐसी आपदाओं को टालने एवं उनसे  सुरक्षा के लिए राजाओं के द्वारा बड़े बड़े यज्ञ अनुष्ठान आदि करवाए जाते थे | जिनके प्रभाव से ऐसी आपदाओं महामारियों आदि का वेग कम करके अपना बचाव कर लिया जाता था | ऐसे सभी अनुभवों के आधार पर प्रजा रक्षा के लिए ऋषिमुनियों के द्वारा बताए गए सुरक्षा संबंधी उपायों का पालन राजा प्रजा दोनों ही करते थे | 
       ऐसी प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों से किस व्यक्ति को कितना कष्ट हो सकता है|ज्योतिष के  द्वारा इसके विषय में भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |इसी के आधार पर लोग व्यक्तिगत रूप से भी उन संभावित प्राकृतिक संकटों से बचाव के लिए यज्ञों अनुष्ठानों का सहारा लिया करते थे | जिससे बचाव हो जाता था ऐसा उनके द्वारा लिखे हुए ग्रंथों में मिलता है |वर्तमान समय में मेरे द्वारा किए जा रहे अनुसंधानों प्रयोगों में भी ये सब सही घटित होता है | ऐसा मैंने करके देखा है | इसके प्रमाण  भी हैं |
                                  कोरोना महामारी के समय पंचतत्वों  के प्रभाव में परिवर्तन ! 
 
     अग्नि -वायुतत्व : ऑस्ट्रेलिया में आग लगने की भयंकर घटनाएँ घटित होते देखी जा  रही थीं |  जो लंबे समय तक चलती रहीं |विश्व के विभिन्न देशों में ऐसी घटनाएँ अधिक मात्रा में घटित होते देखी जा रहीं थीं |
 भारत वर्ष में भी 2016 की शुरुआत से ही ऐसी घटनाएँ अधिक घटित होते देखी जा रही थीं | 11 अप्रैल के बाद ऐसी घटनाओं का वेग बहुत अधिक बढ़ गया था | मई में भी आग लगने की भीषण दुर्घटनाएँ घटित होते देखी गई थीं | अप्रैल मई जून आदि के महीनों में गर्मी तो हर वर्ष होती है किंतु  2016 के अप्रैल मई में आधे भारत में गरमी से संबंधित अचानक अलग प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगी थीं  !
     जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे थे |महाराष्ट्र का एक परिवार जल के अभाव में गाँव से निकलकर  खेत में रहने लगा ! उस समय खेत के कुएँ में जल था,किंतु एक सप्ताह के अंदर ही उस कुएँ का पानी भी सूख गया था |  जल की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर दिल्ली से लातूर एक ट्रेन भेजी गई थी |
    गर्मी का प्रभाव केवल जमीन के अंदर ही नहीं था अपितु प्राकृतिक वातावरण में ज्वलन शीलता इतनी अधिक विद्यमान थी कि आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक घट रही थीं | यह स्थिति उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016 से ही प्रारंभ हो गई थी | आग लगने की घटनाएँ दिनोंदिन बढ़ती चली जा रही थीं | कहीं भी कभी भी आग लग जा रही थी | 10 अप्रैल 2016 के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत तेजी आ गई थी !
     अग्नि प्रकोप इतना अधिक था कि आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान पूजा करने, हवन करने, गेहूँ  का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी |
     इस बिषय में जब वैज्ञानिकों से पूछा गया कि इसी वर्ष ऐसा क्यों हो रहा है और यदि ऐसा होना ही था तो इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका ?तो उन्होंने कहा कि इस बिषय में हमें स्वयं ही कुछ नहीं पता है कि इस वर्ष ऐसा क्यों हुआ !ये तो रिसर्च का बिषय है इसलिए ऐसे बिषयों पर अनुसंधान की आवश्यकता है |  
   विज्ञान जगत के द्वारा असमंजस में ऐसा होने का कारण ग्लोबलवार्मिंग को बताया जा रहा था! किंतु ग्लोबलवार्मिंग तो दीर्घावधिक निरंतर  घटित होने वाली घटना है| अधिक आग लगने का कारण यदि ग्लोबलवार्मिंग  होता, तब तो हर वर्ष ऐसी घटनाएँ घटित होतीं | इसी वर्ष ऐसा होने का कारण क्या था | इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक क्यों घटित हो रही हैं | इसका कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |वैदिक विज्ञानं के आधार पर मैंने यह पूर्वानुमान पहले ही प्रकाशित कर दिया था | जो आज भी प्रमाण रूप में हमारे पास विद्यमान है | 
   तापमान-
   सन 2020 के जनवरी मास को इतिहास की सबसे गर्म जनवरी बताई जा रही थी ! कुल मिलाकर सर्दी के सीजन  सर्दी  बहुत कम हुई एवं गर्मी के सीजन में गर्मी कम हुई ! यूरोप में जनवरी का तापमान औसत से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया, जबकि  पूर्वोत्तर यूरोप के कई हिस्सों में औसत से 6 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया !जनवरी माह का वैश्विक तापमान अपने चरम पर पहुंच गया था।विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा किये विश्लेषण के अनुसार 2019 को मानव इतिहास के दूसरा सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया था। आंकड़ों के अनुसार  2019 के वार्षिक वैश्विक तापमान में औसत (1850 से 1900 के औसत तापमान) से 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है। जबकि 2016 का नाम अभी भी रिकॉर्ड में सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज है। आंकड़ें दिखाते हैं कि 2010 से 2019 के बीच पिछले पांच साल रिकॉर्ड के सबसे गर्म वर्ष रहे हैं।  

   21अप्रैल 2020 को प्रकाशित : कोरोना ने बदला मौसम का मिजाज़! भारत में सबसे ठंडा अप्रैल, ब्रिटेन में चल रही लू !कोरोना महामारी के बीच ब्रिटेन में गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. वहाँ अप्रैल में भीषण गर्मी और लू चल रही है |

 22 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका की स्थिति बिगड़ती जा रही थी |

14 मई 2020 को प्रकाशित:सेंटर ऑफ़ साइंस ऐंड एनवायर्नमेन्ट में जलवायु मामलों पर नज़र रखने वाले तरुण गोपालकृष्णण का बीबीसी में प्रकाशित वक्तव्य :  केवल उत्तर भारत या पूर्वी भारत में ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत में भी मौसम बीते सालों की अपेक्षा इस साल अलग ही है | 
    को प्रकाशित : बारिश-बाढ़ और भूकंप, प्रकृति के कहर से चीन का बुरा हाल  ! चीन में भारी बारिश के बाद आई बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित हैं। वहीं, को तंगशान में आए भूकंप ने लोगों को पिछले हादसे की याद दिलाकर और डरा दिया। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 5.1 मापी गई है। 
 

19 सितंबर 2020 को प्रकाशित :जिस सितंबर में मौसम करवट लेने लगता है और जाड़े की सुगबुगाहट होने लगती है, इस बार दिल्ली वासी उमस भरी गर्मी झेलने को विवश हैं। सितंबर के मध्य में भी मई-जून जैसी तपिश झेलनी पड़ रही है।तेज धूप की चुभन और उमस पसीना पोंछने पर मजबूर कर रही है,

 पृथ्वी तत्व -

 कोरोना महामारी के समय एक डेढ़ वर्ष में केवल भारत में ही एक हजार से अधिक भूकंप आए हैं ऐसा क्यों हुआ क्या इनसे महामारी का कोई संबंध है इस संबंध को खोजना अनुसंधान कर्ताओं की जिम्मेदारी है | इन भूकंपों का महामारी से कोई संबंध  नहीं है तो इसी समय इतने अधिक भूकंपों के आने का कारण क्या  है |

1मई 2020- को प्रकाशित :दिल्ली-एनसीआर में डेढ़ महीने में 10 बार भूकंपआया | संपूर्ण भारत वर्ष में एक साल में 950 बार से अधिक बार भूकंप आए | (पहले तो ऐसा नहीं होता था )

 30 मई 2020 को प्रकाशित: दिल्ली में फिर टूटा कोरोना का रिकॉर्ड, 24 घंटे में 1163 नए केस, 18 लोगों की मौत !दिल्ली में हर रोज कोरोना का रिकॉर्ड टूट रहा है. पिछले 24 घंटे में कोरोना के 1163 नए मामले सामने आए हैं, जो एक दिन में सबसे ज्यादा है | (ऐसा होने के पीछे भूकंप तो कारण नहीं है )

 17\18जुलाई को बहुत भूकंप आए हैं और 19 जुलाई 2020 को प्रकाशित समाचार में कहा गया --"भारत में शुरू हुआ कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड, हालात बहुत खराब : आईएमए का कहना है कि भारत में कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू हो चुका है, जिसके मतलब है कि आगे हालात और ज्यादा खराब हो सकते हैं।एएनआई से बात करते हुए आईएमए (हॉस्पिटल बोर्ड ऑफ इंडिया) के अध्यक्ष डॉ वीके मोंगा ने कहा, 'यह अब घातक रफ्तार से बढ़ रहा है। हर दिन मामलों की संख्या लगभग 30,000 से अधिक आ रही है। यह देश के लिए वास्तव में एक खराब स्थिति है। कोरोना वायरस अब ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रहा है, जो की एक बुरा संकेत है। इससे पता चलता है कि देश में कोरोना का कम्यूनिटी स्प्रेड शुरू हो चुका है।(कोरोना संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने का संबंध भूकंपों से तो नहीं था )

जल में कोरोना -
 19-1-2020 को प्रकाशित - ऑस्ट्रेलिया मसूलधार बारिश और बाढ़ झेल रहा है।मौसम विभाग के मुताबिक यह 100 साल में सबसे अधिक होने वाली बारिश है | पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन और क्वींसलैंड में भारी तबाही हुई है। 
   सूखा वर्षा बाढ़ जैसी  भयानक हिंसक घटनाएँ पिछले कुछ वर्षों से विश्व के अनेकों देशों प्रदेशों  में घटित होते देखी जा रही हैं | भारत में भी असम  केरल कश्मीर बिहार महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में समय समय पर घटित होती देखी जाती रही हैं | अगस्त 2018 में केरल में भीषण बाढ़ आई ! 2020 के  अप्रैल में इतनी बारिश हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। मई की बारिश ने भी चौका दिया है।गरमी की ऋतु में  मई जून तक वर्षा होती रही |ऐसी बहुत सारी घटनाएँ घटित होती रही हैं | 
जल में कोरोना संक्रमण :
 20 अप्रैल 2020को प्रकाशित :कोरोना वायरस ने  फ्रांस में लगातार कोहराम मचा रखा है. कोरोना से निपटने के लिए यहां लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. इसके तहत जब शोध हो रहा था तब गैर पीने योग्य पानी में नए कोरोना वायरस के 'माइनसक्यूल' सूक्ष्म निशान पाए गए !अब फ्रांस की राजधानी पेरिस में पानी में कोविड  पाया गया है.यहां के एक अधिकारी सेलिया ब्लाउज के मुताबिक गैर पीने योग्य पानी में कोरोना के बेहद ही बारीक निशान मिले हैं| 
 16 अप्रैल  2021 को प्रकाशित : हवा या जमीन से ज्यादा गंगा के बहते पानी से कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा, वैज्ञानिकों ने एक बड़े खतरे की चेतावनी दी है |  
20अप्रैल 2020 को प्रकाशित : नदी के पानी में कोरोना के लक्षण !पेरिस की सीन नदी और अवर्क नहर के पानी में कोरोना कोरोना वायरस का संक्रमण पाया गया है!

आकाश तत्व 
     26 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :-वैज्ञानिकों का दावा: अपने आप ठीक हुआ ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद ! दुनिया इस समय कोविड-19 महामारी से लड़ रही है। वहीं एक अच्छी खबर यह है कि पृथ्वी के बाहरी वातावरण की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद स्वत: ही ठीक हो गया है। वैज्ञानिकों ने पुष्टि है कि आर्कटिक के ऊपर बना दस लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला छेद बंद हो गया है। इसके बारे में वैज्ञानिकों को अप्रैल महीने की शुरुआत में पता चला था। 

वायु तत्व -19 जून 2020 को प्रकाशित : ऑस्ट्रेलिया में  100 साल का सबसे भीषण तूफान आया है |इस प्रकार के हिंसक आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि पिछले कुछ वर्षों से विश्व के अनेकों देशों में घटित होते देखे जाते रहे हैं | विशेषरूप से  भारत में भी ऐसी आपदाएँ अक्सर घटित होते देखी जाती  रही हैं | 
    2018 के अप्रैल और मई में पूर्वोत्तर भारत के हिंसक  आँधी तूफान  आए | ऐसे आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं | 2 मई की रात्रि में आए तूफ़ान से पूर्वी उत्तर प्रदेश में काफी जन धन हानि हुई थी | इसी समय ऐसी ही कई और हिंसक घटनाएँ घटित हुई थीं  |

                                      कोरोनामहामारी के समय जीव जंतुओं में बेचैनी !

 कोरोना काल में आवारा जानवरों का आतंक - विगत कुछ वर्षों में पशु अचानक इतने अधिक बढ़ गए हैं या कि पशुओं के स्वभाव में कुछ बदलाव हो रहा है |  भारत के कई प्रदेशों  में किसानों को आवारा पशुओं के क्रोध का शिकार होना पड़ रहा है सारी खेती चौपट होती जा रही है |

 टिड्डियों का आतंक  -   28-5-2020 को प्रकाशित : टिड्डियों का आना  दिसंबर 2019 से आरंभ हुआ है। टिड्डियों ने सबसे पहले गुजरात तबाही मचाई। अनुमान के तौर पर सिर्फ दो जिलों के 25 हजार हेक्टेयर की फसल तबाह हुई है।भारत के राजस्थान,पंजाब,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश आदि  टिड्डियों से प्रभावित हुए थे ।पाकिस्तान आदि में भी टिड्डियों का प्रकोप बहुत अधिक बढ़ गया था | वहाँ तो टिड्डियाँ पकड़ने को प्रोत्साहित करने के लिए  20 रुपये प्रति किलो टिड्डियाँ खरीदी जा रही थीं |

चूहों का आतंक बढ़ा :-

26 -7- 2016 को प्रकाशित :चूहों से संक्रमण और बीमारियाँ तेजी से फैल रही हैं !

8-6-2020- को प्रकाशित :कोरोना वायरस: क्या लॉकडाउन ने चूहों को भी गुस्सैल बना दिया है?

28-5-2021 को प्रकाशित : चूहों की  जन्मदर बढ़ी ,ऑस्ट्रेलिया में चूहों से हाहाकार, खेतों को किया बर्बाद अब घर में लगा रहे आग, भारत को 5 हजार लीटर जहर का ऑर्डर !आस्ट्रेलिया चूहों से बहुत ज्यादा परेशान है. फैक्ट्री और खेतों से निकलने वाले इन चूहों की संख्या लाखों में है, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया के लोगों को न सिर्फ परेशान कर दिया है बल्कि वहां लोग चूहों से डरे हुए हैं.| ऑस्ट्रेलिया के कृषि मंत्री एडम मार्शल ने कहा है कि 'अगर हम वसंत तक चूहों की संख्या को कम नहीं कर पाते हैं तो ग्रामीण और क्षेत्रीय साउथ वेल्स में आर्थिक और सामाजिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।' । लाखों की तादाद में चूहों ने किसानों और फैक्ट्री मालिकों को परेशान कर रखा है। लाखों चूहें ऑस्ट्रेलिया के अलग अलग फैक्ट्री और खेतों से निकल रहे थे | 

24-10- 2021 को प्रकाशित : उत्तर प्रदेश के कानपुर में चूहों ने करीब 40 करोड़ की पुल को कुतर दिया है. कानपुर में 4 साल पहले राज्य सेतु निगम की ओर से खपरा मोहाल रेलवे ओवरब्रिज बनाया गया था. चूहों की वजह से पुल का एक हिस्सा भरभरा कर गिर गया है | 
16-12-2021को प्रकाशित : चूहे मारने पर लाखों खर्च कर चुका है रेलवे, फिर भी कम नहीं हो रहा आतंक !
चूहों से होने वाले नुकसान की खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं. रेलवे स्टेशन !कोई भी हो हर जगह मोटे-मोटे चूहे आपको आसानी से दिख जाएँगे|  झांसी से लेकर नागपुर तक इन चूहों को मारने के लिए रेलवे द्वारा बड़ी रकम खर्च करने के बाद भी चूहों के आतंक मुक्ति नहीं मिल पाई थी|
21-2-2022 को प्रकाशित :कोरोना महामारी के बाद ब्रिटेन में फैला चूहों का आतंक, टॉयलेट के रास्ते घरों में घुस रहे बिल्ली के आकार के चूहे !कोरोना के कारण चूहों की संख्या में 25% की वृद्धि ब्रिटेन में चूहों की संख्या में हुए विस्फोट से अफरातफरी मची हुई है। एक अनुमान के अनुसार उनकी संख्या 150 मिलियन तक पहुँच गई है, जो की अब तक की सबसे अधिक है। हेलैंड्स ने कहा कि कोविड महामारी के कारण इसमें हर साल 25% की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि लोग काफी डरे हुए हैं और ये स्वभाविक है। ब्रिटेन में पहले से कहीं अधिक चूहें हैं और वे लगातार हावी हो रहे हैं।
जुलाई 2020 में प्रकाशित :चीन में ब्यूबोनिक प्लेग का मामला सामने आने के बाद चेतावनी जारी की गई है |                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                          8 जून 2020 में प्रकाशित:यूके में लॉकडाउन में डेढ़ फुट लंबे गुस्सैल चूहों का आतंक; भूख ऐसी कि एक-दूसरे को खा रहे, इन पर जहर भी बेअसर हो रहा है | ब्रिटेन में चूहे इतने बढ़ गए, जितने कि 200 साल पहले की औद्योगिक क्रांति के दौरान भी नहीं थे |लॉकडाउन में चूहे खाने और रहने के नए ठिकाने ढूंढ़ने में लगे हैं |दुनियाभर में लॉकडाउन के दौरान जानवरों के नए रूप देखने को मिले हैं। लेकिन, ब्रिटेनवासी कोरोना के साथ-साथ बड़े चूहों से बेहद परेशान और खौफ में हैं। 18 से 20 इंच तक लंबे इन चूहों ने लॉकडाउन के दौरान अपने व्यवहार को अधिक आक्रामक बना लिया है | इन पर रेट पॉयजन का भी असर नहीं हो रहा है।भारत में भी मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और राजस्थान समेत कई राज्यों से चूहों के आतंक और करोड़ों के माल की नुकसान की खबरें मिली हैं, हालांकि हमारे यहाँ के चूहे ब्रिटेन के चूहों जितने बड़े नहीं हैं।विश्व के अनेकों देश लॉकडाउन के दौरान चूहों के आतंक का सामना कर रहे हैं। अमेरिका में, सेंटरफॉर डिसीज कंट्रोल ने चूहों के आक्रामक हो रहे व्यवहार के बारे में लोगों को सचेत किया है।ब्रिटिश पेस्ट कंट्रोल एसोसिएशन के एक सर्वे से पता चला है कि ब्रिटेन में बड़े चूहों के उपद्रव की घटनाओं में 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। ब्रिटेन में चूहे इतने बढ़ गए हैं जितने कि 200 साल पहले की औद्योगिक क्रांति के दौरान भी नहीं थे। कुतरने वाले जीवों पर पीएचडी करने वाले अर्बन रोडेन्टोलॉजिस्ट बॉबी कोरिगन कहते हैं -"हमने मानव जाति के इतिहास में देखा है, जिसमें लोग जमीन पर कब्जा करने की कोशिश करते हैं। वे पूरी सेना के साथ धावा बोलते हैं और जमीन हथियाने के लिए आखिरी साँस तक लड़ते हैं | चूहे भी अब ऐसा ही कर रहे हैं।
21 अगस्त 2024 को प्रकाशित : कोरोनाकाल   में पकिस्तान में चूहों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई है खेतों  | चूहों के उपद्रव अभी तक तो घरों खेतों आदि में ही दिखाई पड़ते थे| सरकारी कार्यालयों के साथ साथ अब  पाकिस्तान की संसद  में भी चूहों ने उपद्रव मचाना शुरू कर दिया है | फाइलें कुतर जा  रहे हैं | जिनसे  बचाव के लिए अब शिकारी बिल्लियाँ  मँगवाई जा रही हैं |

पशुओं पक्षियों फलों में  कोरोना !     

20 जनवरी 2022-को प्रकाशित :हांगकांग में चूहे भी हो रहे कोरोना पॉजिटिव, 2000 से ज्यादा चूहों को मारने का आदेश !22 दिसंबर 2022 से पालतू जानवरों की दुकानों से चूहे खरीदने वालों को भी अनिवार्य रूप से कोविड-19 की जांच करानी होगी |
20 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :अमेरिका में एक बाघ में कोरोना पाया गया. वहीं कई जगहों में कुत्तों में भी कोरोना के निशान मिले. अब फ्रांस की राजधानी पेरिस में पानी में कोविड पाया गया है | 

5 मई 2020को प्रकाशित : तंजानिया में बकरी और फल भी कोरोना पॉजिटिव, राष्ट्रपति ने कहा-टेस्ट किट सही नहीं तंजानिया के  राष्ट्रपति ने कहा-टेस्ट किट सही नहींकोरोना वायरस के ये सैंपल बकरी  भेड़ से लिए गए थे। सैंपल को जांच के लिए तंजानिया की लैब में भेजा गया, जहां बकरी पपीता और तंजानिया में एक खास तरह का फल पॉपॉ में कोरोना वायरस के होने की पुष्टि हुई है | 

28 जुलाई  2020 को प्रकाशित :ब्रिटेन में बिल्ली कोरोना पॉजिटिव, पालतू जानवर में कोविड-19 के मामले मिले | 

13 अगस्त 2020-को प्रकाशित :चीन से आई चौंकाने वाली खबर, चिकन में भी कोरोना वायरस!चीन ने फ्रोजन चिकनके पंख में भी कोविड-19 के होने की पुष्टि की है| 

 17 जुलाई 2020 को प्रकाशित :कोरोना वायरस: स्पेन में एक लाख ऊदबिलाव को मारने का आदेश !उत्तर-पूर्वी स्पेन के एक फ़ार्म में कई ऊदबिलाव कोरोना वायरस संक्रमित पाए गए हैं जिसके बाद यह फ़ैसला किया गया है| 

30 जून 2020को प्रकाशित :चरवाहे को हुआ कोरोना वायरस, बकरियों और भेड़ों को साँस लेने में दिक्कत !
विशेष बात :विश्व के कई देशों प्रदेशों में पक्षियों के मरने की घटनाएँ सुनाई देती रही हैं |  भारत के कई प्रदेशों में बड़ी संख्या में  कौवों के मरने की घटनाएँ दिखाई सुनाई देती रहीं | 
  मई 2020 में गोरखपुर बरेली बिहार मध्यप्रदेश आदि में कोरोना काल में बहुत बड़ी संख्या में मरे हुए चमगादड़ पाए गए हैं। एक साथ इतनी बड़ी संख्‍या में चमगादड़ों की मौत से ग्रामीणों में अज्ञात सा डर फैल गया है।  लंपी रोग से बड़ी संख्या में गायों को मरते देखा जा रहा है |
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                                                   महामारी आ रही है कैसे पता करें !
    कई बार लगता है कि प्राकृतिक घटनाओं से या जीव जंतुओं के बदलते व्यवहार को देखकर  महामारी  आने के विषय में कैसे पता लग सकता है,किंतु ये सच है | समय के अनुसार मौसम में बदलाव होते हैं और समय के अनुसार पशु पक्षियों समेत समस्त जीव जंतुओं के व्यवहार में परिवर्तन होते रहते हैं |समय के अनुसार ही महामारियाँ या उसकी लहरें आती जाती हैं | ऐसी स्थिति में समय जब अपने संचार क्रम के अनुसार परिवर्तित हो रहा होता है|उससमय उसीप्रकार का प्राकृतिक वातावरण बनते देखा जाता है|उसका वैसा ही प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है | उसी के अनुसार रोग महारोग आदि होते देखे जाते हैं |
     कुलमिलाकर मौसम एवं रोगों का मुख्य कारण समय ही है | महामारी को समझने के लिए सबसे पहले समय को समझना होगा ! समयसंबंधी परिवर्तनों को या तो गणित के द्वारा समझना होगा या फिर मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर समझना होगा !
     पशुपक्षियों को भी समय की बहुत समझ होती है | मुर्गा सुबह ब्रह्म मुहूर्त में बोलता  है|कोयल बसंत में कूकती  है|मेढ़क वरसात में बोलते हैं |ऐसे ही बहुत सारे पशुपक्षियों के व्यवहार में समयजनित बदलाव देखने को मिलते हैं | इसलिए पशुओं पक्षियों के स्वभाव व्यवहार आदि में हो रहे समय संबंधी परिवर्तनों के आधार पर भी समय संबंधी परिवर्तनों को समझा जा सकता है | 
    इसके अतिरिक्त और भी बहुत सारे समयसंबंधी परिवर्तन चराचर जगत में होते देखे जाते हैं | जिन्हें शकुन अपशकुन के नाम से जाना जाता है | प्राचीन भारत में शकुन अपशकुन के आधार पर समय संबंधी बदलावों को समझा जाता था | उसी के आधार पर मौसम एवं रोगों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता था |       ऐसे ही पेड़ पौधे अपनी ऋतु  आने पर ही फूलते फलते हैं |सर्दी  गर्मी वर्षा  आदि प्राकृतिक घटनाएँ अपनी अपनी ऋतुओं में ही अधिक घटित होते देखी जाती हैं | कई पौधों के बीज सारी बरसात में जमीन में पड़े पड़े भीगते रहने पर भी अंकुरित नहीं होते अपनी ऋतु  आने पर ही उगते हैं | समुद्र में ज्वार भाटा जैसी घटनाओं के घटित होने का भी समय निश्चित होता है | प्राकृतिक घटनाएँ आपदाएँ महामारियाँ आदि अपने अपने समय पर ही शुरू होती हैं | समयसंचार को  या तो गणित के द्वारा पहचाना जाता है ,या फिर  प्राकृतिक परिवर्तनों के आधार पर  अथवा जीव जंतुओं के स्वभाव व्यवहार आदि में होने वाले बदलावों के आधार पर समय संबंधी परिवर्तनों का अनुभव किया  जाता है |जीव जंतुओं को भी समय की अद्भुत पहचान होती है | 
      सभी जीव जंतुओं का संबंध मौसम से होता है |टिड्डी दल ओमान के रेगिस्‍तानों में भारी बारिश के बाद तैयार होते हैं। हिंद महासागर में भी साइक्‍लोन आने से रेगिस्‍तान में बारिश होने लगी है, इस वजह से भी टिड्डियां पैदा होती हैं। कुछ दूसरे वैज्ञानिकों का मत है कि 2018 में आए साइक्‍लोन की वजह से ओमान के रेगिस्‍तान में टिड्डियों के लिए परफेक्‍ट ब्रीडिंग ग्राउंड बना।वैज्ञानिकों के एक वर्ग का मानना था कि वर्ष 2019 में मानसून पश्चिमी भारत में समय से पहले (जुलाई के पहले सप्ताह से छह सप्ताह पहले) शुरू हुआ, विशेषकर टिड्डियों से प्रभावित क्षेत्रों में। यह सामान्य रूप से सितंबर/अक्टूबर माह के बजाय एक माह आगे नवंबर तक सक्रिय रहा। विस्तारित मानसून के कारण टिड्डी दल के लिये उत्कृष्ट प्रजनन की स्थितियाँ पैदा हुई। इसके साथ ही प्राकृतिक वनस्पति का भी उत्पादन हुआ, जिससे वे लंबे समय तक भोजन के लिये आश्रित रह सकीं।कुछ विज्ञानियों का मानना था किहिंद महासागर के गर्म होने का एक अप्रत्यक्ष परिणाम है।वर्षा के कारण नम हुए अफ्रीकी रेगिस्तानों ने टिड्डियों के प्रजनन को बढ़ावा मिला | कुल मिलाकर टिड्डियों की अधिकता का कारण मौसमसंबंधी प्राकृतिक परिवर्तन ही थे | 
     जिस प्रकार से टिड्डियों के प्रजनन से लेकर प्रकुपित होने तक सारी गतिविधियाँ मौसम के आधीन होती हैं | इसी प्रकार से सभी जीव जंतुओं में पशुओं पक्षियों मनुष्यों आदि आदि पर मौसम का प्रभाव  पड़ते देखा जाता है |  इसलिए जीवों के बदलते व्यवहार को देखकर मौसम के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | मौसम संबंधी घटनाओं में आ रहे विशेष परिवर्तनों के आधार पर महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है |
                                प्राकृतिक वातावरण के आधार पर महामारी का पूर्वानुमान !
     समय में अच्छे बदलाव होते हैं तो सबकुछ अच्छा अच्छा होता है और बुरे बदलाव होते हैं तो प्रकृति से लेकर जीवन तक सभी जगह बुरे बदलाव दिखाई देते हैं | उससे मौसम असंतुलित होने लगता है | जल और वायु प्रदूषित होने लगता है | अनेकों प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ पैदा होने लगती हैं | जिनसे जनधन का नुकसान होता है |
     प्राकृतिक वातावरण प्रदूषित होते ही पेड़ पौधे फूल फल आनाज दालें शाक सब्जियाँ आदि सबकुछ उस विषैलेपन से प्रभावित होता है | जल प्रदूषित होता है वायु प्रदूषित होती है |इससे जिस अनुपात में मनुष्यों के खाने पीने का सामान प्रदूषित हो रहा होता है |उसी अनुपात में औषधियाँ बनस्पतियाँ आदि भी बिषैली हो रही होती हैं | इससे शरीर तो रोगी होने ही लगते हैं|बनस्पति आदि द्रव्यों से निर्मित औषधियाँ गुणहीन होने के कारण रोगी शरीरों को स्वस्थ करने में असफल हो जाती हैं | रोग बढ़ते जा रहे हों और औषधियों का प्रभाव न पड़ रहा हो | ऐसी स्थिति को ही महामारी कहते हैं | 
    प्राकृतिक वातावरण में ऐसे बदलाव होते ही खान पान की चीजों का स्वाद विगड़ने लगता है| इससे जीवों का स्वास्थ्य तो बिगड़ता ही है सोच भी बदलने लगती है | समाज में उन्माद की भावना पनपने लगती है | लोग बात बात में विवाद बढ़ाकर अकारण बड़े बड़े आत्मघाती  संघर्षों को पैदा कर लेते हैं | यही उन्मादित चिंतन कई देशों में युद्धों के स्वरूप में परिणत हो जाता है |मनुष्यों की तरह ही पशु पक्षी भी बेचैनी के कारण अचानक उन्मादित हो उठते हैं | वे अपने स्वभाव से अलग आचरण करते देखे  जाते हैं |
    प्रकृति के जिस तत्व में विकार आने शुरू होते हैं समस्त प्राकृतिक वातावरण में उसी से संबंधित बदलाव होने लगते हैं | समस्त खाने पीने की वस्तुओं में औषधियों में जीवों में उसी तत्व की न्यूनाधिकता से होने वाले रोग महारोग आदि होते अनुभव किए जाते हैं | जिस प्रकार से तापमान बढ़ने से गर्मी का प्रभाव तो सभी पेड़ों पौधों वृक्षों बनस्पतियों जीवों पर पड़ता है किंतु इससे पित्त प्रकृति के मनुष्यों पशुओं पक्षियों समेत समस्त जीवों में बेचैनी अधिक बढ़ जाती है | 
                          महामारियाँ पैदा होने का कारण होता है ऋतुध्वंस !(जलवायुपरिवर्तन)         

     ऋतुध्वंस होने पर ऋतुओं के गुणों में अंतर आने लगता है! वर्षाऋतु(जुलाई अगस्त )  में सूखा पड़ जाना या बहुत अधिक वर्षा बाढ़ हो जाना ! ग्रीष्मऋतु(मई जून) में बहुत अधिक गर्मी पड़ना या बहुत कम गर्मी पड़ना या अधिक वर्षा होना ! ऐसे ही शिशिर ऋतु (दिसंबर जनवरी)  में  बहुत अधिक सर्दी पड़ना या बहुत कम सर्दी पड़ना या अधिक वर्षा हो जाना ! ऐसा सब कुछ ऋतुबिपरीत  होने का कारण ऋतुध्वंस होता है | 

      विशेष बात ये है कि मनुष्य शरीर को  स्वस्थ रखने के लिए  एवं चिकित्सा के लिए सर्दी गर्मी वर्षा आदि  ऋतुएँ बहुत  उपयोगी होती हैं | इसीलिए आयुर्वेद में ऋतुचर्या को बहुत महत्व दिया गया है | मनुष्य शरीरों  के लिए संतुलित मात्रा में ऋतु प्रभाव मिलना आवश्यक है ,किंतु इस वेग को वे उतना ही सह सकते हैं जितना सहने का उन्हें पहले से अभ्यास होता है | सहनशीलता की उस सीमा से कम या अधिक ऋतुवेग होने पर मनुष्य शरीर रोगी होने लग जाते हैं | यदि यह अंतर थोड़ा बहुत ही रहा तब तो रोगी होकर चिकित्सा आदि के सहयोग से स्वस्थ हो जाते हैं ,किंतु  ऋतुध्वंस के वेग का यह अंतर यदि काफी अधिक घटने या बढ़ने लगता है तब महामारी जैसे रोगों के पैदा होने की संभावना बनती है| महामारी से पीड़ित रोगियों को स्वस्थ करने की न कोई औषधि अभी तक बनाई  जा सकी है और न ही भविष्य में बनाई जा सकेगी | इसीलिए चिकित्सा की कोई पद्धति हो ही नहीं सकती है और न ही संक्रमण से मुक्ति दिलाने में कोई औषधि सक्षम नहीं होती है |

      इसका कारण यह है कि महामारी आने के वर्षों पहले से ऋतुएँ अपनी सीमाओं का  अतिक्रमण करने  लगती हैं | इस ऋतुध्वंस का वेग इतना अधिक होता है कि मनुष्य शरीर स्वयं तो संक्रमित होते ही हैं उस समय प्राकृतिक वातावरण के साथ साथ सभी पेड़ पौधे वृक्ष बनस्पतियों समेत खाने पीने की सभी वस्तुएँ संक्रमित हो जाती हैं | ऐसे में मनुष्य अपने संक्रमण से तो  रोगी होते ही हैं |इसके साथ ही जिस वातावरण में वे साँस ले रहे होते हैं वो भी संक्रमित होता है और जो कुछ खा पी रहे होते हैं वो भी संक्रमित होता है| जो औषधि दी जा रही होती है वो भी संक्रमित होती है | ऐसे में संक्रमित वातावरण  में साँस लेने वाले को , संक्रमित भोजन पानी लेने वाले को  संक्रमित औषधियों का सेवन कराकर स्वस्थ नहीं किया जा सकता है |

       इस सच्चाई से अनभिज्ञ लोग अपने अपने  बचाव के लिए  कुछ  न कुछ  उपाय अपनाते  देखे जाते हैं | साधन संपन्न  लोग चिकित्सा के लिए बड़े  बड़े अस्पतालों में  भर्ती हो जाते हैं जबकि मध्यमवर्ग  के लोग सामान्य अस्पतालों में एवं  गरीब लोग परंपरा से प्राप्त  बनौषधियों का सेवन करते हैं | शासन प्रशासन महामारी से मुक्ति दिलाने  के लिए कुछ न कुछ औषधियाँ  वितरित करवाता है टीके लगवाता है | धार्मिक लोग अपने स्वस्थ होने के लिए दान  धर्म अपनाते हैं | 

      ऐसे सभी उपायों की महामारी से मुक्ति दिलाने की दृष्टि से कुछ विशेष भूमिका न होने  पर भी इसी समय समय प्रभाव से महामारी की वो लहर समाप्त हो रही  होती है |इसलिए बहुत लोग अपने आपसे स्वस्थ होने लगते हैं | समय प्रभाव से स्वस्थ होने वाले उन लोगों को भ्रमवश उन उपायों के प्रभाव से स्वस्थ हुआ मान लिया जाता है ,जबकि उसी प्रकार के  उपाय  करने वाले कुछ दूसरे लोगों की मृत्यु होते देखी जाती है | इस सच से मुख मोड़ते हुए कुछ लोग अपने उपायों को महामारी की वास्तविक औषधि सिद्ध कर  देते हैं ,किंतु दूसरी लहर आने पर लोग जब फिर संक्रमित होने लगते हैं | ऐसे समय उन्हीं उपायों औषधियों टीकों आदि का प्रयोग करने पर भी जब संक्रमण बढ़ता जा रहा होता है तब ये भ्रम टूटता है कि हम जिसे महामारी से मुक्ति दिलाने की औषधि बता रहे थे | वह तो  हमारा भ्रम  था | इस सच्चाई को स्वीकार करने के बजाए औषधि से लाभ न होने को महामारी का स्वरूप परिवर्तन प्रचारित  कर दिया जाता है | प्लाज्मा थैरेपी,रेमडीसीवीर के प्रयोग और परित्याग का कारण ऐसा ही स्वनिर्मित भ्रम था |

                                             महामारी के पैदा और समाप्त होने का कारण !

       महामारियाँ समय के प्रभाव से पैदा और समाप्त होती हैं और समयप्रभाव से ही महामारियों की लहरों का आना और जाना होता है| समय के संचार की प्रक्रिया  को यदि ठीक से समझ लिया जाए तो महामारियों के विषय में  बहुत सारी  विश्वसनीय जानकारी बहुत कम समय में और बहुत कम  लागत में महामारी आने के बहुत पहले ही पता लगा ली  जा  सकती है | उसके आधार पर महामारी आने के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाकर संभावित जनधन हानि को कम किया जा सकता है |समयसंबंधी अनुसंधानों के अभाव में महामारी को समझने एवं उससे बचाव किया जाना बिल्कुल असंभव सा  होता है | अज्ञानवश महामारी को समझा कुछ जाता है उसके विषय में अनुमान कुछ लगाया जाता है पूर्वानुमान कुछ लगाया  है | उसके आधार पर जो अनुमान लगाए जाते हैं  और जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं और जो औषधियाँ निर्मित की जाती हैं |समय वैज्ञानिक आधार के अभाव में  अनुमान ,पूर्वानुमान गलत निकल जातें हैं और उसी के  आधार पर निर्मित औषधियाँ निष्प्रभावी निकल जाती हैं | ऐसी  स्थिति में महामारी के स्वरूप परिवर्तन का भ्रम होना स्वाभाविक ही है | 

       प्राकृतिक  रोगों महारोगों (महामारी) से बचाव के लिए जो औषधियाँ या टीके बनाए जाते हैं | उनके ट्रॉयल के समय  में भी ऐसा भ्रम इसीलिए बना रहता है ,क्योंकि समय प्रभाव से महारोगों की लहरें बार बार आती जाती रहती हैं| समय के प्रभाव से ही कोई लहर  जब जा रही होती है | उस समय सभी  रोगी बिना किसी औषधि के स्वतः स्वस्थ होने लगते हैं | ऐसे समय औषधियों या टीकों का परीक्षण जिन रोगियों पर किया जा रहा होता है |समय प्रभाव से वे भी स्वस्थ होने लगते हैं किंतु उनके स्वस्थ होने का श्रेय उन औषधियों या टीकों को देकर उन्हें परीक्षण में सफल मान लिया जाता है |  

       जनहित में  ऐसे विषयों की सच्चाई तक पहुँचने के लिए ऐसा सोचा जाना चाहिए कि जब अधिकाँश देशों प्रदेशों में संक्रमितों की संख्या अपने आपसे कम होने लगती है | इसका मतलब महामारी का  प्रभाव प्राकृतिक रूप से कम हो रहा है | इसलिए लोग स्वस्थ हो रहे हैं |उसके आधार पर यदि औषधियों टीकों आदि का ट्रॉयल सफल मान लेने का मतलब ही है कि उस औषधि टीकों आदि को महामारी से बचाव  की औषधि के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया जाएगा ! समाज भी इसी रूप में उस पर भरोसा करने लगेगा | उसके बाद यदि कोई लहर नहीं आती है तब तो उस औषधि को महामारी की औषधि के रूप में प्रतिष्ठा मिल ही जाएगी !

     इसके बाद कोई दूसरी लहर  और आ गई |  यदि उससे लोग संक्रमित होने या मृत्यु को प्राप्त होने लगेंगे,तो समाज पूछेगा ही कि वो औषधियाँ कहाँ गईं जो महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए तैयार की गई थीं | आखिर उनसे लाभ क्यों नहीं हो रहा है |ऐसे प्रश्न का उत्तर ये  तो नहीं ही दिया जा सकता है कि उस औषधि का प्रभाव नहीं पड़ रहा है | कहा तो यही जाएगा कि इतना समय और धनराशि लगाकर जो औषधि बनाई  गई है वो तो सही है किंतु महामारी ने ही अपना स्वरूप बदल लिया है | इसका प्रत्युत्तर तो ये भी हो सकता है कि किसी भी शत्रुदेश के सैनिक स्वरूप बदल कर यदि किसी देश में घुस जाएँ तो क्या उस देश की अपनी सुरक्षा तैयारियों की कमजोरी नहीं माना जाएगा | महामारी भी शत्रुदेश के सैनिकों की तरह ही अचानक आक्रमण करती है | उससे अपनी इच्छाओं के अनुरूप  व्यवहार करने की अपेक्षा ही क्यों की जानी  चाहिए | 

       इसीलिए तो युद्ध जीतने की इच्छा रखने वाले राजा को शत्रु से निपटने की  संपूर्ण तैयारी करके चलना पड़ता है | ऐसे ही महामारी से अपनी प्रजा की सुरक्षा चाहने वाले राजा को महामारी पर विजय प्राप्त करने  की संपूर्ण तैयारी करके चलना  होता है | इसके लिए महामारी के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाना आवश्यक होता है |इसके बिना ऐसा किया जाना संभव  ही नहीं होता है | 

                                          मेरे द्वारा लगाए गए  पूर्वानुमान और अनुसंधान 

     विगत दस वर्षों में घटित हुई प्राकृतिक घटनाओं एवं ज्योतिष के आधार पर मैंने जो पूर्वानुमान लगाए  हैं | उन्हें सही घटित होते देखा गया है | इसके लिए बीते दस वर्षों में वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप बज्रपात  जैसी अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ जिस समय जहाँ घटित हुई थीं एवं उन घटनाओं के आगे पीछे जिस प्रकार की जो जो   प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई थीं |पहले उन घटनाओं के विषय में जो पूर्वानुमान लगाया गया था जब वो सही निकला तो उन्हीं प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का जो समय था उस समय के आधार पर खगोलविज्ञान के द्वारा गणितीय पद्धति से महामारी जनित संक्रमण घटने बढ़ने या महामारी के  विषय में जो  पूर्वानुमान लगाए गए हैं वे सही घटित हुए हैं | इसी गणितीय पद्धति से हमारे द्वारा मौसमसंबंधी जो पूर्वानुमान अभी भी लगाए  जाते हैं वे भी सही घटित होते देखे जाते हैं | ऐसा बीते 35 वर्षों से मेरे द्वारा अनुसंधान पूर्वक अनुभव किया  जा रहा है |
     तापमान का महत्त्व शरीर और प्रकृति दोनों में है | तापमान बढ़ने या कम होने का कारण सूर्य का न्यूनाधिक प्रभाव होता है |इसे ही मौसम की दृष्टि से सर्दी और गर्मी संबंधी ऋतुओं के रूप में जाना जाता है | इसे ही शरीर की दृष्टि से पित्त और कफ के रूप में जाना जाता है |सूर्य के उत्तरायण  होने पर सूर्य का प्रभाव अधिक बढ़ता है और सूर्य के दक्षिणायन होने पर सूर्य का प्रभाव कम होता है या चंद्र का प्रभाव बढ़ता है|ऐसा माना जाता है |
   इसीप्रकार से प्रत्येक वर्ष में सर्दी गर्मी वर्षा आदि प्रमुख ऋतु प्रभाव हैं | इनका क्रम मात्रा अवधि आदि सबकुछ निश्चित है | उससे अप्रत्याशित रूप से घटने बढ़ने का मतलब प्राकृतिक संतुलन बिगड़ना होता है | ऐसे समय में किसी प्राकृतिक आपदा या रोग महारोग आदि का निर्माण हो रहा होता है |  
    प्राकृतिक रूप से जब वातावरण बहुत अधिक ठंढा या बहुत अधिक गर्म होने लगता है तब रोग जन्म लेने लगते हैं |ऐसे ही जब सभी ऋतुएँ अपने अपने स्वभाव के अनुसार वर्ताव न करके दूसरी ऋतुओं के गुणों को अपनाने लगती हैं | वर्षाऋतु में वर्षा कम होकर दूसरी ऋतुओं में वर्षा होने लगे ऐसे ही सर्दी गर्मी में ऋतुएँ अपने अपने गुणों का परित्याग करके दूसरे गुणों को ग्रहण करने लगें लगातार कुछ वर्ष ऐसा होता रहे तो रोग महामारी आदि के पैदा होने की परिस्थिति बन जाती है | 
     किसी व्यक्ति को बहुत अधिक या बहुत कम तापमान में रख दिया जाए या रहना पड़े तो वह रोगी हो जाता है |इसीलिए जब किसी व्यक्ति को अधिक ठंड या अधिक गर्मी, लू आदि लग जाती है तो उसका रोगी होना स्वाभाविक होता है | यह रोग ही शारीरिक आपदा है | इसमें विशेष बात यह है कि जिस व्यक्ति को जब अधिक ठंड या अधिक गर्मी या  लू आदि लग जाती है ,तब लोग प्रायः इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं कि उन्हें सर्दी या गर्मी लग जाने के कारण किस किस प्रकार के रोग हो सकते हैं |  उससे बचाव के उपाय भी खोज लेते हैं उसी के अनुसार  आहार बिहार रहन सहन आदि में बदलाव करके अपने को रोगी होने से बचा लिया करते हैं |     
       कुल मिलाकर वर्तमानसमय में  प्रकृति या स्वास्थ्य से संबंधित घटित होने वाली प्रत्येकघटना नई नहीं होती है !वह न केवल अतीत में घटित हुई किसी घटना के परिणामस्वरूप घटित हो रही होती है, प्रत्युत भविष्य में  उसी प्रकार की घटना के घटित होने की सूचना दे रही होती है |ऐसा मैंने अनुभव करके देखा है |

                           प्रकृति में हो रहे थे बड़े बदलाव ! दे रहे थे महामारी आने के संकेत |

        भारत में सन 2013 में केदारनाथ जी में आया सैलाव हो या सन 2015 में भारत और नेपाल में आया हिंसक तूफ़ान या भूकंप हो | 2016 में आग लगने की अत्यधिक घटनाएँ घटित हुई थीं !एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में आई प्राकृतिक आपदाओं में 1487 लोग और 41,965 मवेशी मारे गए. जबकि, 546,518 मकान ध्वस्त या क्षतिग्रस्त हो गए थे | सन 2018 में आँधी तूफ़ान चक्रवात जैसी हिंसक घटनाएँ बहुत अधिक मात्रा में घटित हुई थीं |2018 में देश में आई प्राकृतिक आपदाओं और चक्रवाती तूफानों में 2057 लोगों की मौत हुई एवं  46,888 पशु मृत्यु को प्राप्त हुए थे | 915,878 मकान ध्वस्त या क्षतिग्रस्त हो गए.थे | . 2018 के अंतिम चार महीनों में सबसे ज्यादा परेशान करने वाले चक्रवाती तूफान आए थे !2019 में महामारी प्रारंभ हो ही गई थी | इसके बाद ऐसी हिंसक प्राकृतिक घटनाएँ और महामारी साथ साथ चलती रही थी |  

      2020 की जनवरी इतिहास की सबसे गर्म जनवरी थी ! भारत में लगातार वर्षा होते रहने के कारण अप्रैल 2020  सबसे ठंडा बीत रहा था,जबकि ब्रिटेन में लू चल रही थी !बताया जाता है कि ब्रिटेन में गर्मी ने  पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.|अप्रैल 2020 में कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका की हालत दिनोंदिन बिगाड़ रहे थे | में बारिश-बाढ़ और भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं से चीन का बुरा हाल हुआ जा रहा था  ! सितंबर 2020 में दिल्ली बासियों को मई-जून जैसी तपिश झेलनी पड़ रही थी ।मॉनसून की विदाई देर से हुई थी | जो पहले 1 सितंबर से होनी शुरू हो जाती थी, वो  17 सितंबर के करीब विदा हुआ था |

21अप्रैल 2020 को प्रकाशित : कोरोना ने बदला मौसम का मिजाज़! भारत में सबसे ठंडा अप्रैल, ब्रिटेन में चल रही लू !कोरोना महामारी के बीच ब्रिटेन में गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है वहाँ अप्रैल में भीषण गर्मी और लू चल रही है | 

 22 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका की स्थिति बिगड़ती जा रही है |
5  मई 2020 को प्रकाशित:वैज्ञानिकों ने यह खुलासा किया है कि  कोरोना काल में सूरज की रोशनी पाँच गुणा तेजी  से घटी  है |

12 जुलाई 2020 को प्रकाशित : बारिश-बाढ़ और भूकंप, प्रकृति के कहर से चीन का बुरा हाल  ! चीन में भारी बारिश के बाद आई बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित हैं। वहीं, 12 जुलाई को तंगशान में आए भूकंप ने लोगों को पिछले हादसे की याद दिलाकर और डरा दिया। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 5.1 मापी गई है। 

19 सितंबर 2020 को प्रकाशित :जिस सितंबर में मौसम करवट लेने लगता है और जाड़े की सुगबुगाहट होने लगती है, इस बार दिल्ली वासी उमस भरी गर्मी झेलने को विवश हैं। सितंबर के मध्य में भी मई-जून जैसी तपिश झेलनी पड़ रही है।तेज धूप की चुभन और उमस पसीना पोंछने पर मजबूर कर रही है |

22 जुलाई 2021 को प्रकाशित : एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, चीन और रूस तक मौसम का प्रचंड रूप देखा जा सकता है | यूरोप से लेकर एशिया और नॉर्थ अमेरिका से लेकर रूस तक कहीं बाढ़ है, कहीं गर्म हवाएँ हैं  कहीं जंगलों में लगी आग तो कहीं सूखे की स्थिति है| रूस, चीन, अमेरिका और न्‍यूजीलैंड में लोग गर्मी, बाढ़ और जंगलों में लगी आग से परेशान हैं |

    पश्चिमी यूरोप में भारी बारिश हो रही थी कहा जा रहा था कि एक सदी में पहली बार ऐसी बाढ़ आई है|  बेल्जियम, जर्मनी, लक्‍जमबर्ग और नीदरलैंड्स में 14और15जुलाई 2020 को इतनी अधिक बारिश हो गई है जितनी दो माह में होती है |  नॉर्थ यूरोप में गर्मी से हालात बिगड़ते जा रहे हैं | फिनलैंड जहाँ गर्मी कभी नहीं पड़ती है , वहाँ भी गर्मी पड़ रही गई | देश के कई हिस्‍सों में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से भी ज्‍यादा हो गया है | रूस में साइबेरिया का तापमान इतना बढ़ गया है कि 216 ये ज्‍यादा जंगलों में आग लगी हुई है | वहीं पश्चिमी-उत्‍तरी अमेरिका में अत्‍यधिक गर्मी ने हालात खराब कर दिए हैं | कैलिफोर्निया, उटा और पश्चिमी कनाडा में सर्वाधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया है |  कैलिफोर्निया की डेथ वैली में पिछले दिनों ट्रेम्‍प्रेचर 54.4 डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुँच गया है | इसी तरह से एशिया के कई देशों जैसे कि चीन, भारत और इंडोन‍ेशिया के कुछ हिस्‍सों में बाढ़ की स्थिति है तो कुछ हिस्‍सों में बारिश का इंतजार है | इस प्रकार से 40 देशों में मौसम का प्रचंड रूप देखकर समाज को  डर सताने लगा है |

भूकंप और उनका महामारी से संबंध !

   सन 2009  के बाद प्राकृतिकअसंतुलन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था | अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते देखी जा रही थीं | 

   23  नवंबर 2015 को प्रकाशित : 23 नवम्बर 2015  को पूरी दुनिया में कुल 95 स्थानों पर भूकंप आ चुके हैं। पिछले एक सप्ताह में 700 जगहों पर भूकंप आये। पिछले एक महीने में 3105 भूकंप पूरी दुनिया में आये।पिछले एक वर्ष में 38,816 बार धरती अलग-अलग जगहों पर हिल चुकी है।   इस सप्ताह सबसे ज्यादा तीव्रता का भूकंप इसाबेल में आया, जिसकी तीव्रता 7 थी। इस महीने अफगानिस्तान के बडकशन में 7.5 तीव्रता का भूकंप आया। पिछले एक साल में सबसे बड़ा भूकंप चिली में आया, जिसकी तीव्रता 8.3 थी।

    इसप्रकार से सन 2015 के पहले की अपेक्षा बाद में भूकंपों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही  थी |उसी क्रम में  अप्रैल 2020 में जहाँ बार बार भूकंप आते रहे | उसी के अनुसार कोरोना संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती रही |

   30 मई 2020 को प्रकाशित: दिल्ली में फिर टूटा कोरोना का रिकॉर्ड, 24 घंटे में 1163 नए केस, 18 लोगों की मौत !दिल्ली में हर रोज कोरोना का रिकॉर्ड टूट रहा है. पिछले 24 घंटे में कोरोना के 1163 नए मामले सामने आए हैं, जो एक दिन में सबसे ज्यादा है | (ऐसा होने के पीछे भूकंप तो कारण नहीं है )

19 जुलाई 2020 को प्रकाशित : 17\18जुलाई को भारत में बहुत भूकंप आए हैं | विशेष बात ये है कि उसी के तुरंत बाद भारत में शुरू हुआ कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड, हालात बहुत खराब : आईएमए का कहना है कि भारत में कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू हो चुका है, जिसका मतलब है कि आगे हालात और ज्यादा खराब हो सकते हैं।कहा गया कि अब घातक रफ्तार से बढ़ रहा है। हर दिन मामलों की संख्या लगभग 30,000 से अधिक आ रही है। यह देश के लिए वास्तव में एक खराब स्थिति है। कोरोना वायरस अब ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रहा है, जो कि एक बुरा संकेत है। इससे पता चलता है कि देश में कोरोना का कम्यूनिटी स्प्रेड शुरू हो चुका है।(कोरोना संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने का संबंध भूकंपों से तो नहीं था !)  

                                 प्राकृतिक घटनाओं से लगाया जा सकता है महामारी का पूर्वानुमान !

        भोजन निर्माण करने में जिस द्रव्य (मसाले  ) को जितनी मात्रा में डाला जाना होता है | उतना ही डाला जाए तो स्वादिष्ट और स्वास्थ्यकर होता है | उससे कम या अधिक डाल दिया जाए, तो उसका स्वाद और गुण दोनों बदल जाते हैं | ऐसे ही किसी औषधि का निर्माण करते समय कोई द्रव्य यदि निर्धारित मात्रा से कम या अधिक पड़ जाए ,तो उसका प्रभाव बदलकर लाभ न करने वाला या हानिकर भी हो सकता है|उसके स्वाद एवं गुणों में अंतर आना स्वाभाविक होता है | 

    जिसप्रकार  से  भोजन और औषधियों के निर्माण में द्रव्यों को निर्धारित मात्रा से कम या अधिक डाल देने से उसका स्वाद और गुण दोनों बिगड़ जाते हैं |उसी प्रकार से  प्रकृति में सर्दी गरमी वर्षा आदि की उतनी ही मात्रा सुखद हो सकती है जितनी उपयोगी होती है |उससे कम या अधिक होते ही प्राकृतिक आपदाओं एवं रोगों महारोगों (महामारियों) को पैदा होते देखा जाता है| ऐसे ही शरीरों में वात पित्त कफ की मात्रा  जब तक उचित अनुपात में बनी रहती है, तभी तक शरीर स्वस्थ रहता है | यह अनुपात बिगड़ते ही  तरह तरह के रोग पैदा होने लग जाते हैं | यह संतुलन यदि बहुत अधिक बिगड़ने लगे तब शरीर अपने आंतरिक कारणों से महामारी जैसे बड़े रोगों के शिकार होने लगते हैं |

     महामारियाँ दो  प्रकार से पैदा होती हैं | एक तो प्राकृतिक वातावरण में बड़ा बदलाव होने लगे!उससे सामूहिक रूप से बड़े बड़े रोग पैदा होने लगें | दूसरे शरीरों में आंतरिक कारणों से स्वास्थ्य के विपरीत बदलाव होने लगें ,तो उससे बड़े बड़े रोग पैदा होने लगते हैं |

   कुल मिलाकर मानव शरीर में जब तक वात पित्त कफ संतुलित मात्रा में बना रहता है तब तक शरीर स्वस्थ बना रहता है | संतुलन बिगड़ते ही शरीर रोगी होने लगता है |इसीप्रकार से प्रकृति में वात पित्त कफ आदि जब तक संतुलित रहते हैं तब तक सबकुछ ठीक रहता है|इनका आपसी संतुलन बिगड़ते ही प्राकृतिक आपदाओं रोगों महामारियों आदि का निर्माण होने लगता है|ऐसा स्वाभाविक भी है | भोजन और औषधियों के निर्माण में द्रव्यों को निर्धारित मात्रा से कम या अधिक डाल देने से उसका स्वाद और गुण दोनों बिगड़ सकते हैं, तो सर्दी गर्मी वर्षा आदि यदि अपनी सीमा से काफी कम या काफी अधिक  हो जाता है तो उसका भी प्रभाव बदल सकता है| उसके परिणाम स्वरूप रोग महारोग एवं प्राकृतिक आपदाएँ आदि पैदा हो सकते हैं |

      महामारी के आने से लगभग 12 वर्ष पहले से प्राकृतिक वातावरण का रुख बिगड़ने लगा था | कभी सर्दी बहुत अधिक पड़ रही थी तो किसी वर्ष जनवरी फरवरी में ही सर्दी बहुत कम होते देखी जा रही थी | ऐसे ही गरमी कभी बहुत अधिक पड़ती तो कभी अप्रैल मई तक वर्षा होते देखी जा रही थी | वर्षाऋतु में वर्षा बहुत कम या बहुत अधिक होना ,कहीं बादल फटना तो कहीं सूखा पड़ना बार बार आँधी तूफानों चक्रवातों आदि का घटित होना | बार बार भूकंपों के आने जैसी घटनाएँ बार बार घटित होते देखी जा रही थीं | 

      इसप्रकार से समस्त प्राकृतिक वातावरण में ऐसे कुछ अस्वाभाविक बदलाव होने लगे थे |जिनसे ऐसे संकेत स्पष्ट रूप से मिलने लगे थे कि या तो कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा घटित होने वाली है  या फिर कोई रोग महारोग आदि जन्म लेने वाला है | प्रकृति में जिन तत्वों का प्रभाव जितना कम या जितना अधिक बढ़ रहा था | उन्हीं की कमी या अधिकता से  प्राकृतिक आपदाओं या रोगों महारोगों आदि का निर्माण होने जा रहा था | 

     मैंने प्राचीन वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों के विषय में गणित के द्वारा जो पूर्वानुमान लगाए थे | उनका मिलान उन छोटी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं से करता आ रहा था | जो महामारी आने के काफी पहले से घटित  होने लगी थीं | उन्हें भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ चक्रवात बज्रपात आदि स्वरूपों में देखा जा रहा था | इसके अतिरिक्त पेड़ों पौधों की पत्तियों फूलों फलों आदि के अकार प्रकार स्वाद सुगंध आदि अस्वाभाविक बदलाव होते देखे जा रहे थे | फसलों में बीजों के अंकुरण से लेकर उनके बढ़ने में उनके फूलने फलने तथा उपज आदि से संबंधित परिवर्तनों के रूप में दिखाई दे रहे थे | बसंत आए बिना ही आम के वृक्षों में बौर लगने लगते थे | पशुओं पक्षियों समेत अन्य जीव जंतुओं के स्वभाव व्यवहार आदि में भी  उसप्रकार के परिवर्तन होने लगे थे | ऐसे सभी प्रकार के प्राकृतिक संकेतों का संयुक्त अनुसंधान करने से ये लगने लगा था कि निकट भविष्य में महामारी जैसे किसी बड़े रोग की संभावना  बनती जा रही है | 

   इसी के आधार पर महामारी के विषय में न केवल पूर्वानुमान लगाया जा सका था ,प्रत्युत यह भी पता लगाना संभव हो पाया था कि महामारी से किस व्यक्ति का स्वास्थ्य कितना तक बिगड़ सकता है |  

                                                               महामारी और पूर्वानुमान   

      विज्ञान ने जितनी तरक्की अन्य क्षेत्रों में की है उतनी ही उन्नति यदि प्राकृतिक क्षेत्र में भी की होती तो आज मौसम  और महामारी के स्वभाव को समझने में सफलता मिल चुकी होती |प्राकृतिक घटनाएँ घटित कैसे होती हैं | उनमें से किस घटना  के घटित होने का कारण क्या होता है | ये अब तक पता लगा लिया गया होता ! उन्हीं कारणों के आधार पर  घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाकर उनका परीक्षण भी कर लिया होता कि जिसप्रकार की घटनाओं के लिए जिसप्रकार के कारणों को जिम्मेदार माना गया है | उसके आधार पर घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान  लगाकर उन कारणों का परीक्षण भी कर लिया गया होता | यदि वे पूर्वानुमान  सही  निकलते तो जिस घटना के घटित होने के लिए जिस कारण को जिम्मेदार माना गया है वो सही है अन्यथा गलत है |घटनाओं के कारणों का  सही चयन होते ही जलवायुपरिवर्तन एवं महामारी के स्वरूपपरिवर्तन जैसे भ्रम स्वतः समाप्त हो गए होते| इनकी सच्चाई पता लग चुकी होती कि वास्तव में ऐसा हो रहा  है या ऐसी घटनाओं के घटित होने के कारण प्रकृति की जितनी गहराई  में विद्यमान हैं| वैज्ञानिक सोच का वहाँ तक पहुँचना अभी संभव नहीं हो पाया है |

     जिस प्रकार से  किसी स्थान पर धुआँ उठते देखकर यह पता नहीं लगाया जा सकता है कि ये धुआँ कितने समय तक उठता रहेगा | इसका कारण खोजना  होगा कि जब तक आग जलती रहेगी तब तक धुआँ उठता रहेगा | आग कब तक जलती रहेगी जब तक उसमें ईंधन रहेगा | इसका मतलब ये हुआ कि धुआँ कब तक उठेगा जब तक आग में ईंधन रहेगा | इसप्रकार से घटनाओं के वास्तविक कारणों को खोजने के लिए कभी कभी कई कई कारणों का भेदन करते हुए मुख्यकारण तक पहुँचना होता है | यदि वे कारण सही हैं तो घटनाओं के विषय में जो समझा गया है वह भी सही होता है और उसके आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि भी सही निकलते हैं | 

     इसीलिए उपग्रहों रडारों से बादलों को देखकर वर्षा और बाढ़ के विषय में पूर्वानुमान लगाना,आँधी तूफानों को देखकर उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना एवं महामारी से बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित होते देखकर महामारी के  विषय में पूर्वानुमान लगाकर उनके सच निकलने की उम्मींद अधिक नहीं की जानी चाहिए | इसके लिए वास्तविक कारण तक पहुँचना ही होगा |  जिस प्रकार से  धुएँ के उठने का कारण आग और आग के उठने का कारण ईंधन होता है| ऐसे ही मौसम एवं महामारी जैसी समस्त प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित कई कई अंतर्कारणों को पार करते हुए मुख्यकारण तक पहुँचना होता है |

    समय,आकाशीय लक्षणों  समुद्रों नदियों तालाबों पहाड़ों वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों आदि में हमेंशा परिवर्तन होते रहते हैं | ऐसे सभी परिवर्तनों के साथ साथ पशुओं पक्षियों समेत समस्त जीव जंतुओं के स्वभावों व्यवहारों स्वास्थ्य लक्षणों आदि में प्रतिपल होते रहने वाले परिवर्तनों को देखना एवं उनके विषय में निरंतर अनुभव करते रहना ही अनुसंधान होता है |ऐसे सूक्ष्म परिवर्तन प्रकृति के अन्य अंगों में होने वाले भावी परिवर्तनों की ही भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में संकेत दे रहे होते हैं |प्रकृति के किसी एक अंग में होने वाले परिवर्तन का प्रभाव प्रकृति के दूसरे अंगों में भी उभरते हुए देखा जा सकता है | जिसप्रकार से धुआँ होने का मतलब वहाँ आग की उपस्थिति है,किंतु जहाँ आग होती है वहाँ केवल धुआँ ही नहीं होता प्रत्युत प्रकाश और ताप(गर्मी) भी  होता है | जहाँ से धुआँ निकल रहा है वहाँ यदि प्रकाश और ताप भी है इसका मतलब है कि वहाँ आग भी है अन्यथा धुआँ निकलने का कारण कुछ दूसरा भी हो सकता है | 

   ऐसे ही प्राकृतिकपरिवर्तनों का प्रकृति के कुछ दूसरे परिवर्तनों से मिलान करके भविष्यसंबंधी कुछ तीसरी घटनाओं के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाता है | कोरोना महामारी के समय  प्रकृति से लेकर प्राणियों के स्वभाव व्यवहार तक में अत्यंत तेजी से परिवर्तन होते देखे जा रहे थे |प्रकृति में तो बदलाव हो ही रहे थे |जीवों के स्वभाव आदि में भी तेजी से बदलाव होते देखे जा रहे थे| उन संकेतों को समझकर उसी के आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता था |
         
से लगाए जाते हैं मौसम और महामारी के पूर्वानुमान !
 गणित के द्वारा तो महामारी के विषय में वर्षों रेलवे समय सारिणी
 
                                 प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर महामारी का पूर्वानुमान !
       भारत के प्राचीन गणितविज्ञान के आधार पर महामारी का  पूर्वानुमान लगाना यदि संभव न हो तो मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |महामारी आने के कुछ समय पहले से प्राकृतिक वातावरण में उस प्रकार परिवर्तन होने प्रारंभ हो जाते हैं |उसी प्रकार की मौसम संबंधी घटनाएँ घटित होने लग जाती हैं | उन परिवर्तनों(घटनाओं)  के आधार पर महामारी आने के कुछ समय पूर्व महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 
     इसके लिए मौसम संबंधी सही पूर्वानुमान जितने पहले लगाना संभव हो महामारी के विषय में उतने ही पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 


 




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