आदरणीय प्रधानमंत्री जी आपको
आदरणीय प्रधानमंत्री जी आपको
सादरप्रणाम !
विषय :वैदिकविज्ञान के अनुसार मौसम या महामारी संबंधी भविष्यवाणियों के विषय में विनम्र निवेदन !
महोदय,
भारत को पड़ोसी देशों के साथ तीन युद्ध लड़ने पड़े हैं| उन तीनों में जितने लोगों की मृत्यु हुई थी | उनसे बहुत अधिक लोगों की मृत्यु केवल कोरोना महामारी से हुई है| वर्तमान समय के अत्यंत उन्नत विज्ञान से महामारी पीड़ितों को कोई प्रभावी मदद नहीं मिल सकी है | इसलिए भविष्य में महामारियों से मनुष्यों की सुरक्षा करने हेतु उन सभी विकल्पों पर बिचार किए जाने की आवश्यकता है | जिनसे ऐसे संकटों से बचाव के लिए मनुष्यों को कुछ तो मदद मिल सके |
वैज्ञानिक अनुसंधानों का लक्ष्य मनुष्यों को सुख सुविधा संपन्न एवं को सुरक्षित बचाना है|अनुसंधानों से मनुष्यजीवन सुख सुविधा संपन्न तो हुआ है किंतु महामारी तथा प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकी है |मनुष्य ही सुरक्षित नहीं बचेंगे तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा जो मनुष्यों को सुख पहुँचाने के लिए खोजी गई हैं |
मान्यवर, प्राकृतिक आपदाएँ और महामारियाँ बिना बताए और बिना बोलाए ही हमेंशा से आती रही हैं| प्राचीनकाल में काफी पहले से पूर्वानुमान लगाकर उनसे मनुष्यों की पहले से सुरक्षा कर ली जाती रही है | कोरोना महामारी से अधिक नुक्सान होने का एक कारण यह भी रहा है कि पहले से सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | जिस गणितविज्ञान के द्वारा सूर्यचंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता रहा है| उसीविज्ञान से महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में भी पूर्वानुमान लगाकर प्रयत्नपूर्वक मनुष्यों को सुरक्षित बचा लिया जाता रहा है | विश्व में केवल भारत के पास ही ऐसा विज्ञान है | जिसके द्वारा भविष्य में झाँककर प्रकृति एवं जीवन संबंधी भावी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता हो |
इसी प्राचीन विज्ञान के आधार पर प्रकृति और जीवन के स्वभाव को समझने के लिए मैं पिछले 35 वर्षों से अनुसंधान करता आ रहा हूँ | जो प्रायः सही निकलते रहे हैं | महामारी की सभी लहरों के विषय में मेरे द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान सत्तर अस्सी प्रतिशत तक सही निकलते रहे हैं |जिसके प्रमाण मेरी एवं पीएमओ की मेल पर सुरक्षित हैं | वर्तमान समय में फिर कुछ देशों में महामारी जैसा संक्रमण बढ़ते देखकर समाज सशंकित है | ऐसे में मेरे द्वारा किए जा रहे अनुसंधान काफी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं | ऐसा मेरा अनुमान है | आप कृपा पूर्वक मुझे मिलने का समय दें ताकि अनुसंधानों से संबंधित विषयवस्तु मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ |
निवेदक
-डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
पीएचडी ( B.H.U.)
संस्थापक :राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान
A-7\41 शनिबाजार, लालक्वार्टर कृष्णानगर -दिल्ली - 51
मोबाईल : 9811226983
______________________________________________________
आदरणीय प्रधानमंत्री जी आपको
सादरप्रणाम !
विषय : मौसम एवं महामारी संबंधी अनुसंधानों को उपयोगी बनाने के विषय में विनम्र निवेदन !
महोदय,
प्राकृतिक आपदाएँ और महामारियाँ हमेंशा से बिना बताए और बिना बोलाए ही आती रही हैं|ऐसी
घटनाओं का वेग ही इतना अधिक होता है कि ये पहले झटके में ही बहुत बड़ी चोट
दे जाती हैं | उतने कम समय में बचाव के लिए कोई भी प्रभावी प्रयत्न नहीं किए जा सकते हैं| ऐसी घटनाओं के अचानक घटित होने से सुरक्षा संबंधी उपायों के लिए समय नहीं मिल पाता है|ऐसी स्थिति में बचाव के लिए जो उपाय किए भी जा सकते हैं |समय के अभाव में वे भी नहीं किए जा पाते हैं |ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी मजबूत भविष्यविज्ञान की आवश्यकता है,जो है नहीं |
वर्तमान समय में विज्ञान के बिना ही मौसम एवं महामारी के विषय में पूर्वानुमानों के नाम पर कुछ अंदाजे लगाए जाते हैं|उनमें से जो सही निकलते हैं उन्हें पूर्वानुमान एवं गलत निकलने वालों का कारण जलवायुपरिवर्तन होगा | ऐसी कल्पना कर ली जाती है | इस कल्पना का कोई तर्क संगत वैज्ञानिक आधार नहीं होता है |ऐसे ही कोरोना महामारी के विषय में भी पूर्वानुमानों के नाम पर कुछ ऐसे ही तीर तुक्के लगाए जाते रहे जो गलत निकल जाते रहे | उनके गलत निकलने का कारण महामारी का स्वरूपपरिवर्तन होगा|ऐसी कल्पना कर ली जाती रही है |ऐसी कल्पना का तर्क संगत कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है |
विश्व में ऐसा कोई विज्ञान ही नहीं है जिसके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके या जलवायुपरिवर्तन तथा महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर प्रमाणित किया जा सके |इतनी कमजोर तैयारियों के बलपर प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी कैसे निभाई जा सकती है | प्रकृति या महामारी के स्वभाव को समझे बिना केवल उपग्रहों रडारों से देखकर मौसम के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान हवा बदलते ही गलत निकल जाते हैं | यह एक जुगाड़ है विज्ञान नहीं है |
विश्व में केवल भारत के पास ही ऐसा विज्ञान है जिसके द्वारा अनुसंधानपूर्वक भविष्य में झाँकना संभव है | प्राचीनकाल में इसी भारतीय गणितविज्ञान के द्वारा सूर्यचंद्र
ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता
रहा है| उसीविज्ञान से महामारी,मौसम एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अभी भी
पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं | मैंने अनुसंधान पूर्वक ऐसा करके देखा है | इसी विषय में मैं 35 वर्षों से अनुसंधान करता आ रहा हूँ |
श्रीमान जी ! वर्तमान समय में समाज फिर एक महामारी को लेकर सशंकित है |ऐसी स्थिति में समाज किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचना चाहता है कि महामारी आ रही है या नहीं !यदि आ रही है तो कब और इसमें संक्रामकता कितनी होगी | इससे बचाव के लिए क्या किया जाना उचित होगा |ऐसे प्रश्नों का किसी के पास कोई निश्चित उत्तर नहीं है | इसी उहापोह की स्थिति में यदि महामारी आ भी गई और कोरोना जैसी आपदा फिर से प्रारंभ हुई तो इन आधे अधूरे अनुसंधानों से समाज को क्या मदद पहुँचाई जा सकेगी |
ऐसी परिस्थिति में आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि मैं आपके सम्मुख अपने द्वारा किए गए कुछ ऐसे अनुसंधान प्रस्तुत करना चाहता हूँ | जो ऐसे प्राकृतिक संकटों के समय समाज को सुरक्षित बचाने में सहायक हो सकते हैं |यदि संभव हो तो आप मुझे मिलने के लिए समय दें |
निवेदक
-डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
पीएचडी ( B.H.U.)
संस्थापक :राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान
A-7\41 शनिबाजार, लालक्वार्टर कृष्णानगर -दिल्ली - 51
मोबाईल : 9811226983
भारत
के प्राचीनविज्ञान में ये क्षमता है कि कि इतना लाचार कभी नहीं रहा कि
महामारी मनुष्य जीवन को इतनी निर्ममतापूर्वक निगलती चली जा रही थी|बेवश
मनुष्य केवल सहने के लिए मजबूर थे| यही स्थिति संपूर्ण विश्व की रही है,किंतु इसका समाधान केवल भारत के प्राचीन शास्त्रीय विज्ञान में है |जिसके द्वारा प्राचीनकाल में महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में समय से पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता था |
भी जो सही भी निकल रहे हैं | भारतीय मौसम
विज्ञान विभाग में कुछ वर्षों तक मुझसे लिए भी जाते रहे हैं | में ये
क्षमता है कि उसके आधार पर भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में
पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
जिसके
लिए नाम पर मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में जो अंदाजे लगाए जाते हैं | उन
अंदाजों के गलत निकल जाने के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार मान लिया
जाता है| ऐसी घटनाओं के विषय में कोई अंदाजा न लगाया जा सके और घटना घटित
हो जाए | इसके लिए भी जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार
माना जाता है | ऐसे ही महामारी संबंधी पूर्वानुमान लगाने के नाम पर जो
अंदाजे लगाए जाते रहे वे सभी गलत निकलते चले गए | जिसके लिए महामारी के
स्वरूपपरिवर्तन को जिम्मेदार बताया गया था |
श्रीमान जी! भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को देखने के लिए अभी तक विश्व में कोई ऐसा विज्ञान नहीं खोजा जा सका है |जिसके द्वारा भविष्य में झाँकना संभव हो और भविष्य में झाँके बिना भविष्य की घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव ही नहीं है |
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए भी लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीत चुके
हैं|अभी भी मौसम संबंधी जो घटनाएँ किसी एक स्थान पर घटित हो रही होती हैं|
उन्हें उपग्रहों रडारों के माध्यम से देखकर उनकी गति और दिशा के अनुसार
ये अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये बादल या ये आँधी तूफ़ान इतनी गति से इस
दिशा में जा रहे हैं तो कितने घंटों में कहाँ पहुँच सकते हैं | उस हिसाब से
अंदाजा लगा लिया जाता है |हवाएँ यदि उसी दिशा में उसी गति से चलती रहीं तो
ऐसे अंदाजे सही भी निकल सकते हैं अन्यथा गलत निकल जाते हैं |वैश्विक स्तर
पर देखा जाए तो इसके अतिरिक्त मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई
वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं है |
मान्यवर ! भारत के जिस प्राचीन गणित विज्ञान के द्वारा सूर्यचंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |उसी गणित विज्ञान के आधार पर पूर्वानुमान लगाने का मैं पिछले
के आधार पर पिछले तीस वर्षों से
वर्षा के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं !उसमें सब कुछ प्रत्यक्ष होता है !उपग्रहों रडारों से बादलों को दूर से ही देख लिया जाता है कि किस दिशा में कितनी गति से जा रहे हैं उसी के अनुसार ये अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं | हवाएँ यदि उसी दिशा में उसी गति से चलती रहीं तब तो वो अंदाजा सही निकल जाता है | यदि इसमें बदलाव हुआ तो अंदाजा गलत निकल जाता है |
दूसरी बात उपग्रहों
रडारों की मदद से जितनी दूर तक के बादल देखे जा सकते हैं ,बस उतने के विषय
में ही अंदाजा लगाया जा सकता है | इसीलिए वर्षा संबंधी पूर्वानुमान बार
बार बदलने पड़ते हैं | तीन दिन वर्षा होने की भविष्यवाणी के तीन दिन बीतने
के बाद फिर 48 घंटे या 72 और वर्षा होते रहने की भविष्यवाणी करनी पड़ती है |
बादलों की श्रंखला जब तक दिखाई पड़ती रहती है तब तक भविष्यवाणियाँ बदलते
रहनी पड़ती हैं |
ऐसी स्थिति में आवश्यकता किसी ऐसे विज्ञान के खोजे जाने की है |जिसके
द्वारा विशुद्ध वैज्ञानिक रूप से तब पूर्वानुमान लगा लिया जाए जब उपग्रहों रडारों की मदद से भी बादल दूर दूर तक दिखाई ही न पड़ रहे हों| ऐसा तभी संभव है जब समय और गणितविज्ञान के आधार पर अनुसंधान किया जाए !
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें