आदरणीय प्रधानमंत्री जी आपको

 आदरणीय प्रधानमंत्री जी आपको

                                              सादरप्रणाम !

 विषय :आईएमडी के डेढ़ सौ वर्ष पूरे होने पर आपके द्वारा दिये गए भाषण के विषय में विनम्र निवेदन !

    महोदय,

      भारतीय मौसमविज्ञान विभाग के डेढ़ सौ वर्ष पूरे होने पर आपने अपने भाषण भारत के पारंपरिक विज्ञान को घाघ भंडरी के लक्षण विज्ञान को उद्धृत किया इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई | 

     श्रीमान जी ! ऐसे विषयों पर अपने अनुसंधान कई बार मैं भारतीय मौसमविज्ञान विभाग के जिम्मेदार लोगों के सामने प्रस्तुत किए | उन्होंने प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाकर देने को कहे वे देता रहा |वे सही निकलते रहे | कई वर्ष ऐसा चलता रहा | जब ऐसे अनुसंधानों की मदद करने के विषय में उनके द्वारा दिए हुए बचन को निभाने की बारी आई तो उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि आपकी वैदिक या पारंपरिक या ज्योतिषीय अनुसंधान प्रक्रिया वैज्ञानिक नहीं है | यह कहते हुए उन्होंने हमारे अनुसंधानों में मदद करने से मना कर दिया | कल आपका भाषण सुनकर मुझे फिर आशा बँधी इसलिए आपको यह निवेदन पत्र भेज रहा हूँ |

    विश्व में भविष्य में झाँकने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान ही नहीं है| इसलिए ज्योतिष  का सहयोग लिए बिना मौसम या महामारी से संबंधित किसी भी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाया ही नहीं जा सकता | इसीलिए मौसम विषयक दीर्घावधि या मध्यावधि मौसम पूर्वानुमान आज तक जितने भी लगाए जाते रहे वे सही नहीं निकले हैं |यहाँ तक कि अलनीनो लानिना के आधार पर वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जाते रहे सभी पूर्वानुमान गलत निकलते रहे हैं | महामारी या महामारी की लहरों के विषय में अनेकों वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए सभी पूर्वानुमान गलत निकले हैं | मैंने ऐसे प्रायः सभी हिंदी अखवारों में प्रकाशित पूर्वानुमानों का संग्रह किया है |जो प्रमाण के लिए प्रस्तुत किए जा सकते हैं |  

     मान्यवर,आपने जो ज्योतिष तथा लक्षणों पर आधारित परंपरा विज्ञान की जो चर्चा की है |पूर्वानुमान लगाने के लिए वो एक सही विकल्प है | उसी के आधार पर सैकड़ों वर्ष पहले सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सही पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं | मौसम और महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए वही विश्वसनीय विज्ञान है | उसी के आधार पर पिछले पैंतीस वर्षों से मैं अनुसंधान  करता आ रहा हूँ | उसके आधार पर मौसम एवं महामारी की सभी लहरों के विषय में मैं आगे से आगे पूर्वानुमान लगाकर आपके यहाँ भेजता रहा हूँ जो सही निकलते रहे हैं | इससे संबंधित अखवारों में प्रकाशित कटिंग भी पात्र के साथ संग्रंथित है | 

     आपसे विनम्र निवेदन है कि भारत की इस प्राचीन वैज्ञानिक विधा को भी ऐसे प्राकृतिक अनुसंधानों की प्रक्रिया में सम्मिलित करवाइए | यह इतना अधिक विश्वसनीय है कि भारत को विश्व गुरुत्व की पावन प्रतिष्ठा प्राप्त करवाने में अपना प्राचीन विज्ञान बहुत सहयोगी सिद्ध हो सकता है | 

     मैं पिछले पैंतीस वर्षों से इसी पारंपरिक विज्ञान के आधार पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ |जिसके आधार पर पिछले पाँच वर्षों से(2018से 2023) मौसम संबंधी पूर्वानुमान भारतीय मौसमविज्ञान विभाग को देता आ रहा हूँ | जो सही निकलते रहे हैं |उन्हीं से IMD की प्रतिष्ठा बनी है |पिछले वर्ष से मैंने अपने पूर्वानुमान देने इसीलिए बंद कर दिए हैं ताकि सच्चाई सरकार एवं समाज के सामने आ सके |  अब इन पाँच वर्षों की तुलना अगले पाँच वर्षों से आप कर लीजिएगा |आपको पता लग जाएगा कि पिछले डेढ़ सौ वर्षों में IMD ने मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की दृष्टि से कितनी विशेषज्ञता अर्जित की है |

      अपने अनुसंधानों के आधार पर मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि आधुनिक विज्ञान संबंधी अनुसंधानों के लिए कितने भी संसाधन उपलब्ध करवा दिए जाएँ | इनके आधार पर कितनी भी तरक्की कर ली जाए फिर भी न पिछले डेढ़ सौ वर्षों में वैज्ञानिक आधार पर पूर्वानुमान लगाना संभव हो पाया है और न ही आगामी एक हजार वर्षों में  भविष्य की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में |पूर्वानुमान लगाना संभव हो पाएगा | भविष्य ज्ञान के लिए जब कोई विज्ञान ही नहीं है तो वैज्ञानिकों से ऐसी अपेक्षा ही कैसे की जा सकती है | 

      मान्यवर, उपग्रहों रडारों से भविष्य में घटित होने वाली घटनाएँ नहीं देखी जा सकती हैं|  इनसे तो केवल तत्कालीन प्राकृतिक परिस्थितियाँ ही देखी जा सकती हैं | जिनके आधार पर अधिकतम 5 दिनों के मौसम के विषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है | केवल चक्रवात ही हैं जो लंबे समय तक आकाश में घूमते हैं | उसे बनने और कहीं पहुँचने के बीच कई बार काफी अंतराल रहता है |उपग्रहों रडारों से बनते समय ही देख लिए जाते हैं | उन्हें कहीं पहुँचने में कई बार 12 दिन भी लग जाते हैं | इसलिए उनका अंदाजा तो 12 दिन पहले लग जाता है | वर्षा आदि के विषय में ऐसा नहीं होता है |

      सुदूर आकाश में स्थित आँधी तूफानों चक्रवातों बादलों को उपग्रहों रडारों से देखकर उनकी दिशा और गति के अनुसार ये अंदाजा लगाया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं | यदि हवा के रुख में बदलाव नहीं हुआ तो ये अंदाजे कभी कभी सही भी निकल जाते हैं |हवा का रुख बदला तो अंदाजे बदल जाते हैं |इसके अतिरिक्त कोई ऐसा विज्ञानं नहीं है जिसके द्वारा भविष्य में घटित हुई घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके | 

                                               निवेदक

                                    -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 

                                            पीएचडी ( B.H.U.) 

                              संस्थापक :राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान

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                      प्रधान मंत्री जी ! ये हैं पिछले 10 वर्षों IMD का योगदान ! 

   मान्यवर,आपने अपने भाषण में पिछले दस वर्षों के मौसमपूर्वनुमान सही होने के लिए IMD के सही पूर्वानुमानों की प्रशंसा की है | कुछ चक्रवातों को छोड़कर और कितने पूर्वानुमान लगाए जा सके हैं और उनमें से कितने सही निकले हैं |

केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव :16 जून 2013 को केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव आया उसमें हजारों लोग मारे गए !16 जून, 2013 को उत्तराखंड में आई भीषण जलप्रलय की। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक तीर्थस्थल केदारनाथ और इसके आसपास भारी बारिश, बाढ़ और पहाड़ टूटने से सबकुछ तबाह हो गया और हजारों लोग मौत के आगोश में समा गए थे।इस घटना के बिषय में  IMD के  द्वारा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था  |

जम्मू कश्मीर में आई भीषण बाढ़: सितंबर 2014 में मूसलाधार मानसूनी वर्षा के कारण भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर ने अर्ध शताब्दी की सबसे भयानक बाढ़ आई। यह केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित नहीं थी अपितु पाकिस्तान नियंत्रण वाले आज़ाद कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान व पंजाब प्रान्तों में भी इसका व्यापक असर दिखा। 8 सितंबर 2014 तक, भारत में लगभग 200 लोगों तथा पाकिस्तान में 190 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। 450 गाँव जल समाधि ले चुके थे।इस घटना के बिषय में  IMD के  द्वारा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था  | 
भीषण वर्षा के कारण बनारस में प्रधानमंत्री जी आपकी दो दो सभाएँ रद्द करनी पड़ीं थीं !
28 जून 2015 को आपकी वाराणसी में सभा होने वाली थी किंतु भीषण वर्षा के कारण उस सभा को रद्द करना पड़ा था |वही सभा दूसरी बार 16 जुलाई 2015 को वर्षा से निपटने की अधिक तैयारियों के साथआयोजित की गई वो भी भीषण वर्षा के कारण रद्द करनी पड़ी |चिंता की बात तो यह है कि भीषण वर्षा के कारण प्रधानमंत्री जी आपके बहुमूल्य समय का उपयोग नहीं किया जा सका |इस घटना के बिषय में  IMD के  द्वारा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था  |
मद्रास में भीषण बाढ़ : नवंबर 2015 में चैन्नई में भीषण बाढ़ एक महीने से अधिक समय तक रही थी !उसमें भी काफी जनधन की हानि हुई थी ,इस घटना के बिषय में  IMD के  द्वारा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था  |
2016 अप्रैल मई में आग लगने की भीषण दुर्घटनाएँ : अप्रैल मई जून आदि के महीनों में गर्मी तो हर वर्ष होती है किंतु  2016 के अप्रैल मई में आधे भारत में गरमी से संबंधित अचानक अलग प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगीं ! जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे | पानी की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर दिल्ली से लातूर एक ट्रेन भेजी गई थी |गर्मी का असर केवल जमीन के अंदर ही नहीं था अपितु प्राकृतिक वातावरण में इतनी अधिक ज्वलन शीलता विद्यमान थी कि आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक घट रही थीं | यह स्थिति उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016  से ही प्रारंभ हो गई थी जो  क्रमशः धीरे धीरे बढ़ती चली जा रही थी 10 अप्रैल 2016 के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत तेजी आ गई थी ! ऐसा होने के पीछे का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हो रही थीं इस बिषय में संबंधित वैज्ञानिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे उन्हें खुद कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था | अंत में आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान पूजा करने, हवन करने, गेहूँ  का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी |   इस बिषय में जब वैज्ञानिकों से पूछा गया कि इसी वर्ष ऐसा क्यों हो रहा है और यदि ऐसा होना ही था तो इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका ?तो उन्होंने कहा कि इस बिषय में हमें स्वयं ही कुछ नहीं पता है कि इस वर्ष ऐसा क्यों हुआ !ये तो रिसर्च का बिषय है इसलिए ऐसे बिषयों पर अनुसंधान की आवश्यकता है |इस घटना के बिषय में  IMD के  द्वारा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था  | 

 असम में भीषण वर्षा और बाढ़ : इसी वर्ष में 13 अप्रैल 2016 से असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में भीषण वर्षा और बाढ़ का भयावह दृश्य था त्राहि त्राहि मची हुई थी |यह वर्षा और बाढ़ का तांडव 60 दिनों से अधिक समय तक लगातार चलता रहा था |इस घटना के बिषय में  IMD के  द्वारा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था  |

    वैज्ञानिकों के वक्तव्य :     सन 2016 के अप्रैल मई में घटित हुई परस्पर विरोधी इन दोनों घटनाओं के बिषय में वैज्ञानिकों से पत्रकारों ने पूछा कि इन दोनों घटनाओं के बिषय में पहले से कोई पूर्वानुमान क्यों नहीं बताया जा सका था | इस पर वैज्ञानिकों ने कहा कि असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में हो रही भीषण वर्षा और बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन है तथा बिहार उत्तर प्रदेश राजस्थान मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आदि में अधिक गर्मी एवं आग लगने की अधिक घटनाओं का कारण ग्लोबल वार्मिंग है | जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता | 

     बिहार में आई भीषण बाढ़ :सितंबर 2019 में बिहार में आई भीषण बाढ़ के बिषय में कोई पूर्वानुमान बताने में मौसम विभाग असफल रहा था !मौसम पूर्वानुमान बताने वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा  रहे थे और जो बता रहे थे वो गलत होता जा रहा था तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने पत्रकारों से बात करते हुए स्वीकार किया था कि मौसम विभाग वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा  रहे हैं | वर्षा के बिषय में वे सुबह कुछ कहते हैं दोपहर में कुछ दूसरा कहते हैं और शाम होते होते कुछ और कहने लगते हैं | पत्रकारों ने पूछा तो इस बाढ़ के बिषय में आप जनता से क्या कहना चाहेंगे तो नीतीश जी ने कहा कि मेरा मानना है कि हथिया नक्षत्र के कारण यह अधिक बारिश हो रही है | इसीप्रकार से स्वास्थ्यराज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे जी ने भी पत्रकारों के पूछने पर यही कहा था कि हथिया नक्षत्र के कारण ही बिहार में  अधिक बारिश हो रही है | मौसम विज्ञान पर विश्वास न करके ज्योतिष की नक्षत्र विद्या के ही गुण गाने लगे थे |इस घटना के बिषय में  IMD के  द्वारा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था  |  

 2018 के अप्रैल और मई में हिंसक आँधी तूफान:    2018 के अप्रैल और मई में हिंसक आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं 2 मई की रात्रि में आए तूफ़ान से काफी जन धन हानि हुई थी | ऐसे तूफानों के बिषय में किसी मौसम वैज्ञानिक के द्वारा पहले से कुछ भी नहीं बताया गया था | मौसम वैज्ञानिकों को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ऐसे बिषयों में क्या बोला जाए !इस विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान तो था नहीं समाज एवं सरकार उनसे पूर्वानुमान जानने की अपेक्षा रखते थे | विवश होकर वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणियाँ करने के लिए कुछ तीर तुक्के लगाए भी किंतु वे पूरी तरह से गलत निकलते चले गए !जिस दिन वे बतावें कि इस दिन आँधी तूफ़ान आएगा उस दिन न आवे और जिस दिन के लिए न बतावें उस दिन आ जाए |3 मई को आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की गई उस दिन नहीं आई और 5 मई के लिए नहीं की गई उस दिन तूफ़ान आ गया | इसके बाद मौसम वैज्ञनिकों ने दिल्ली एवं उसके आस पास 7 और 8 मई 2018 को भीषण आँधी तूफ़ान आने की एक ऐसी भविष्यवाणी कर दी जिससे यहाँ के निवासियों में दहशत का वातावरण बन गया | यहाँ तक कि इस भविष्यवाणी से भयभीत होकर कुछ प्रदेशों की भयभीत सरकारों ने अपने अपने प्रदेशों में 7 और 8 मई 2018 को स्कूल कालेज बंद कर दिए छुट्टियाँ घोषित कर दी गईं |  इतने धूम धाम से भविष्यवाणी कर देने के बाद 7 और 8 मई 2018 को आँधी तूफ़ान तो दूर  हवा का एक झोंका भी नहीं आया ! यह भी नहीं हुआ कि दिल्ली और उसके आस पास न आकर कुछ दूर दराज के देशों प्रदेशों में आ जाता तो यही कहने लायक हो जाता कि आँधी तूफ़ान आया तो किंतु उसकी दिशा बदल गई | इसके बाद समाचार पत्रों में पढ़ने को मिला कि इस बिषय को बाद में पीएमओ ने संज्ञान में भी लिया था और जिम्मेदार लोगों से इतनी बड़ी चूक होने के आधार भूत कारण भी पूछे गए थे| इसी घटना के बिषय में एक निजी टीवी चैनल के साथ परिचर्चा में मौसम विज्ञान विभाग के तत्कालीन निदेशक महोदय डॉ.के जे रमेश जी से एक पत्रकार महोदय ने प्रश्न कर दिया कि क्या कारण है कि आपका विभाग इतने भयंकर आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सका और जो लगाए भी गए वे गलत निकलते चले गए !इस पर डॉ.के जे रमेश जी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसे आँधी तूफ़ान आ रहे हैं इसीलिए इनके बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है और अचानक आ  रहे हैं आँधी तूफ़ान पता ही नहीं लग पा रहा है | अगले दिन कई अखवारों में हेडिंग छपी थी -"चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"इस घटना के बिषय में  IMD के  द्वारा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था  |

केरल में भीषण बाढ़ :केरल में जब भीषण बाढ़ आई तो उसमें भी मौसम विज्ञान विभाग की ऐसी ही ढुलमुल भूमिका रही !3 अगस्त 2018 को मौसम विज्ञान विभाग की ओर से जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई उसमें भविष्यवाणी की गई थी कि अगस्त और सितंबर महीने में दक्षिण भारत में सामान्य वर्षा की संभावना है !जबकि 5 अगस्त से ही भीषण बारिश प्रारंभ हो गई थी जिससे केरल कर्नाटक आदि दक्षिण भारत में त्राहि त्राहि माही हुई थी | जिसके बिषय में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने स्वीकार भी किया कि यदि मौसम विभाग की भविष्यवाणी झूठी न निकली होती तो बाढ़ से जनता इतनी अधिक पीड़ित न हुई होती | इसके बिषय में मौसम निदेशक डॉ.के. जे. रमेश से एक टीवी चैनल ने पूछा तो उन्होंने कहा कि केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसलिए इसके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | इसका कारण जलवायु परिवर्तन है जबकि दक्षिण भारत में 2018 के अगस्त महीने में हुई इसी भीषण वर्षा के बिषय में 2018 के अगस्त महीने का मौसम पूर्वानुमान मैंने मौसम विभाग के निदेशक डॉ.के जे रमेश जी की मेल पर 29 जुलाई 2018 को ही भेज दिया था !उसमें लिखा है कि अगस्त की एक से ग्यारह तारीख के बीच इतनी भीषण वर्षा दक्षिण भारत में होगी कि बीते कुछ दशकों का रिकार्ड टूटेगा !वर्षा का स्वरूप इतना अधिक डरावना होगा !"यह हमारी मेल पर अभी भी पड़ा है जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया था कि मेरा वर्षा पूर्वानुमान सही निकला है |इस घटना के बिषय में  IMD के  द्वारा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था  |
सर्दियों के बिषय में  मौसम विभाग की गलत हुई भविष्यवाणी : सन 2019 \2020 की सर्दियों के बिषय में  मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिए । इस पर पत्रकारों ने मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा कि सर्दी की दस्तक से पहले मौसम विभाग ने कहा था कि इस साल सर्दी सामान्य से कम रहेगी,लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिए।IMD पूर्वानुमानों में इतनी बड़ी गलती कि पूर्वानुमान सीधे सीधे इतने विपरीत चले गए | 

     मौसम वैज्ञानिक का वक्तव्य : मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा गया कि पहले मानसून और अब सर्दी का पूर्वानुमान भी गलत साबित हुआ क्यों ?   इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि कड़ाके की ठंड मौसम की चरम गतिविधि का नतीजा है  जिसका सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |भारत जैसे ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र में मौसम के इस तरह के अनपेक्षित और अप्रत्याशित रुझान का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक दुनिया में कहीं भी नहीं है।सर्दी ही नहीं, अतिवृष्टि और भीषण गर्मी जैसी मौसम की चरम गतिविधियों का दीर्घकालिक अनुमान संभव ही नहीं है।मौसम की चरम गतिविधियों के दौरान, मौसम का मिजाज तेजी से बदलने की प्रवृत्ति प्रभावी होने के कारण अल्पकालिक अनुमान भी मुश्किल से ही सटीक साबित होता है| मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुये चरम गतिविधियों का दौर भविष्य में और अधिक तेजी से देखने को मिल सकता है। इनकी आवृत्ति में भी तेजी देखी जा सकती है। ऐसे में बारिश के अनुकूल परिस्थिति बनने पर मूसलाधार बारिश होना या गर्मी का वातावरण तैयार होने पर अचानक तापमान में उछाल या गिरावट जैसी घटनायें भविष्य में बढ़ सकती हैं। मौसम संबंधी शोध और अनुभव से स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल है। ऐसे में पूर्वानुमान के गलत साबित होने की संभावना भी रहेगी। 

अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी गलत हुई :2020-21 में  लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु अबकी  बार तो जनवरी से ही तापमान बढ़ने लग गया था ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था | IMD के  द्वारा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था  |  

अत्यधिक बारिश हुई जिसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका !: इस बार सन 2020 के अप्रैल मई में  इतनी अधिक बारिश हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। इन दो माह में अब तक कुल 51.4 मिमी बारिश हो चुकी है।इसके बाद मौसम विभाग की ओर से और अधिक बारिश होने का अनुमान बताया गया | इस घटना के बिषय में  IMD के  द्वारा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था  |

13 May 2020-इस बार पड़ेगी सूरज के तपिश की मार नहीं पड़ेगी , इस वर्ष ज्यादा गर्मी के आसार नहीं हैं !ये मौसमवैज्ञानिकों  के द्वारा बताया गया पूर्वानुमान  प्रकाशित हुआ |  

19 -9- 2020- सितंबर में पड़ रही अप्रैल-मई जैसी गर्मी, मौसम विभाग ने बताई आखिर क्या है वजह !प्रादेशिक मौसम विज्ञान केंद्र के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव ने बताया कि इन दिनों आसमान में बादल बहुत कम हैं। बीच में कोई अवरोधक न होने से सूरज की रोशनी सीधे भी जमीन तक पहुँच रही है।

15 Oct 2020 :इस साल पड़ेगी कड़ाके की सर्दी !मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय मोहापात्रा ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए की तरफ से 'शीत लहर के खतरे में कमी' पर आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि इस साल कड़ाके की ठंड पड़ सकती है। पिछले साल सर्दी के मौसम के दौरान शीत लहर अधिक लंबा खींची थी। इस साल कड़ाके की ठंड पड़ने की क्या वजह बताई कि इस साल ला नीना की स्थिति के कारण कड़ाके की ठंड पड़ सकती है। 

 04 Mar 2021-साल 1901 में जब से भारतीय मौसम विभाग ने रिकॉर्ड रखना शुरू किया, तब से आज तक कुल 120 सालों में इस साल की सर्दी तीसरी सबसे गर्म सर्दी रही यानी तीसरा सबसे कम सर्दी वाला मौसम रहा। खास बात यह कि शीतलता प्रदान करने वाली भौगोलिक घटना ला-नीना के असर के बावजूद जनवरी से फरवरी के बीच सर्दी गर्म रही।
5 Jan 2021- 1901 के बाद आठवां सबसे ज्यादा गर्म साल 2020 रहा !भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) कहा कि 1901 के बाद से 2020 आठवां सबसे अधिक गर्म वर्ष रहा !


विशेष बात :

            वर्षा ऋतु के चार महीनों में से किस महीने में वर्षा कैसी होगी कृषि कार्यों के लिए यह बहुत उपयोगी एवं आवश्यक होता है किंतु इसी उद्देश्य से की गई भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना को लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं किंतु बीते 145 वर्षों में सही सही दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान किसानों को उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है | ये चिंता की बात होनी चाहिए | किसान मार्च अप्रैल के महीने में एक फसल पूरी हो जाने के बाद जुलाई अगस्त में बोई जाने वाली दूसरी फसल के बिषय में योजना बनाते हैं | वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार फसलों का चयन किया जाता है उसी के हिसाब से ऊँचे नीचे आदि खेतों के हिसाब से इस वर्ष में किस प्रकार की फसल बोना हितकर होगा |इसके साथ ही वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार ही वे एक वर्ष के लिए आनाज भूसा आदि का संरक्षण करते हैं बाक़ी मार्च अप्रैल के महीने में ही फसल पूरी हो जाने पर खर्चे के लिए बेच लिया करते हैं | कृषिक्षेत्र के अतिरिक्त सैन्य आदि अन्य क्षेत्रों में भी दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | 

     अल्पावधि मौसम पूर्वानुमान की यह स्थिति है कि इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान भावना का कोई विशेष योगदान नहीं होता है इसमें तो रडारों एवं उपग्रहों के सहयोग सेजो घटना एक जगह घटित होते देख ली जाती है उसकी गति और दिशा के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये इतने दिन में उस देश प्रदेश या जिले आदि में पहुँच सकती है | बीच में हवाओं का रुख बदल जाने से लगाया हुआ अंदाजा गलत हो जाता है | वैसे भी जो बादल जिधर जिधर जाते हैं सभी जगह तो नहीं बरसते हैं कुछ जगहों पर बरसकर वापस लौट जाते हैं | तूफानों चक्रवातों में ऐसे कैमरों से मिली तस्बीरें कई बार काम आ जाती हैं जिनसे कुछ तीर तुक्के सही फिट भी हो जाते हैं इस कैमरा जुगाड़ से कभी कभी निकट भविष्य में होने वाली जनधन की हानि से बचाव हो जाता है ,क्योंकि इनमें बादलों की तरह बिना बरसे लौटने की गुंजाइस बहुत कम रहती है ये जहाँ पहुँचते हैं वहाँ नुक्सान करते ही हैं |

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 आदरणीय प्रधानमंत्री जी आपको

                                              सादरप्रणाम !

 विषय :वैदिकविज्ञान के अनुसार मौसम या महामारी संबंधी भविष्यवाणियों के विषय में विनम्र निवेदन !

    महोदय,

     भारत को पड़ोसी देशों के साथ तीन युद्ध लड़ने पड़े हैं| उन तीनों में जितने लोगों की मृत्यु हुई थी | उनसे बहुत अधिक लोगों की मृत्यु केवल कोरोना महामारी से हुई है| वर्तमान समय के अत्यंत उन्नत विज्ञान से महामारी पीड़ितों को कोई प्रभावी मदद नहीं मिल सकी है | इसलिए भविष्य में महामारियों से मनुष्यों की सुरक्षा करने हेतु उन सभी विकल्पों पर बिचार किए जाने की आवश्यकता है | जिनसे ऐसे संकटों से बचाव के लिए मनुष्यों को कुछ तो मदद मिल सके |    

      वैज्ञानिक अनुसंधानों का लक्ष्य मनुष्यों को सुख सुविधा संपन्न  एवं को सुरक्षित बचाना है|अनुसंधानों से  मनुष्यजीवन सुख सुविधा संपन्न तो हुआ है किंतु  महामारी तथा प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकी है |मनुष्य ही सुरक्षित नहीं बचेंगे तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा जो मनुष्यों को सुख पहुँचाने के लिए खोजी गई हैं | 

    मान्यवर, प्राकृतिक आपदाएँ और महामारियाँ बिना बताए और बिना बोलाए ही हमेंशा से आती रही हैं| प्राचीनकाल में काफी पहले से पूर्वानुमान लगाकर उनसे मनुष्यों की पहले से सुरक्षा कर ली जाती रही है | कोरोना महामारी से अधिक नुक्सान होने का एक कारण यह भी रहा है कि पहले से सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | जिस गणितविज्ञान के द्वारा सूर्यचंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता रहा है| उसीविज्ञान से महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में भी पूर्वानुमान लगाकर प्रयत्नपूर्वक  मनुष्यों को सुरक्षित बचा लिया जाता रहा है | विश्व में केवल भारत के पास ही ऐसा विज्ञान है | जिसके द्वारा भविष्य में झाँककर प्रकृति एवं जीवन संबंधी भावी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता हो |

    इसी प्राचीन विज्ञान के आधार पर प्रकृति और जीवन के स्वभाव को समझने के लिए मैं पिछले 35 वर्षों से अनुसंधान करता आ रहा हूँ | जो प्रायः सही निकलते रहे हैं |  महामारी की सभी लहरों के विषय में मेरे द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान सत्तर अस्सी प्रतिशत तक सही निकलते रहे हैं |जिसके प्रमाण मेरी एवं पीएमओ की मेल पर सुरक्षित हैं | वर्तमान समय में फिर कुछ देशों में महामारी जैसा संक्रमण बढ़ते देखकर समाज सशंकित है | ऐसे में मेरे द्वारा किए जा रहे अनुसंधान काफी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं | ऐसा मेरा अनुमान है | आप कृपा पूर्वक मुझे मिलने का समय दें ताकि अनुसंधानों से संबंधित  विषयवस्तु  मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ |

                                               निवेदक

                                    -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 

                                            पीएचडी ( B.H.U.) 

                              संस्थापक :राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान

                        A-7\41 शनिबाजार, लालक्वार्टर कृष्णानगर -दिल्ली - 51

                                       मोबाईल :   9811226983

 

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 आदरणीय प्रधानमंत्री जी आपको

                                              सादरप्रणाम !

 विषय : मौसम एवं महामारी संबंधी अनुसंधानों को उपयोगी बनाने के विषय में विनम्र निवेदन !

    महोदय,

       प्राकृतिक आपदाएँ और महामारियाँ हमेंशा से बिना बताए और बिना बोलाए ही आती रही हैं|ऐसी घटनाओं का वेग ही इतना अधिक होता है कि ये पहले झटके में ही बहुत बड़ी चोट दे जाती हैं | उतने कम समय में बचाव के लिए कोई भी प्रभावी प्रयत्न नहीं किए जा सकते हैं| ऐसी घटनाओं के अचानक घटित होने से सुरक्षा संबंधी उपायों के लिए समय नहीं मिल पाता है|ऐसी स्थिति में  बचाव के लिए जो उपाय किए भी जा सकते हैं |समय के अभाव में वे भी नहीं किए जा पाते हैं |ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी मजबूत भविष्यविज्ञान की आवश्यकता है,जो है नहीं |

     वर्तमान समय में  विज्ञान के बिना ही मौसम एवं महामारी के विषय में पूर्वानुमानों के नाम पर  कुछ अंदाजे लगाए जाते हैं|उनमें से जो सही निकलते हैं उन्हें पूर्वानुमान एवं गलत निकलने वालों का कारण जलवायुपरिवर्तन होगा | ऐसी कल्पना कर ली जाती है | इस कल्पना का कोई तर्क संगत वैज्ञानिक आधार नहीं होता है |ऐसे ही कोरोना महामारी के विषय में भी पूर्वानुमानों के नाम पर कुछ ऐसे ही तीर तुक्के लगाए जाते रहे जो गलत निकल जाते रहे | उनके गलत निकलने का कारण महामारी का स्वरूपपरिवर्तन होगा|ऐसी कल्पना कर ली जाती रही है |ऐसी कल्पना का  तर्क संगत कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है |

     विश्व में ऐसा कोई विज्ञान ही नहीं है जिसके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके या  जलवायुपरिवर्तन तथा महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर प्रमाणित किया जा सके |इतनी कमजोर तैयारियों के बलपर प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी कैसे निभाई जा सकती है | प्रकृति या महामारी के स्वभाव को समझे बिना केवल उपग्रहों रडारों से देखकर मौसम के विषय में लगाए गए  पूर्वानुमान हवा बदलते ही गलत निकल जाते हैं | यह एक जुगाड़ है विज्ञान नहीं है |

      विश्व में केवल भारत के पास ही ऐसा विज्ञान है जिसके द्वारा अनुसंधानपूर्वक भविष्य में झाँकना संभव है | प्राचीनकाल में इसी भारतीय गणितविज्ञान के द्वारा सूर्यचंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता रहा है| उसीविज्ञान से महामारी,मौसम  एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अभी भी पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं | मैंने अनुसंधान पूर्वक ऐसा करके देखा है | इसी विषय में मैं 35 वर्षों से अनुसंधान करता आ रहा हूँ |   

     श्रीमान जी ! वर्तमान समय में समाज फिर एक महामारी को लेकर सशंकित है |ऐसी स्थिति में समाज किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचना  चाहता है कि महामारी आ रही है या नहीं !यदि आ रही है तो कब और इसमें संक्रामकता कितनी होगी | इससे बचाव के लिए क्या किया जाना उचित होगा |ऐसे प्रश्नों का किसी के पास कोई निश्चित उत्तर नहीं है | इसी उहापोह की स्थिति में यदि महामारी आ भी गई और कोरोना जैसी आपदा फिर से प्रारंभ हुई तो इन आधे अधूरे अनुसंधानों से समाज को क्या मदद पहुँचाई जा सकेगी | 

     ऐसी परिस्थिति में आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि मैं आपके सम्मुख अपने द्वारा किए गए कुछ ऐसे अनुसंधान प्रस्तुत करना चाहता हूँ | जो ऐसे प्राकृतिक संकटों के समय समाज को सुरक्षित बचाने में सहायक हो सकते हैं |यदि संभव हो तो आप मुझे मिलने के लिए समय दें | 

                                                   निवेदक

                                    -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 

                                            पीएचडी ( B.H.U.) 

                              संस्थापक :राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान

                        A-7\41 शनिबाजार, लालक्वार्टर कृष्णानगर -दिल्ली - 51

                                       मोबाईल :   9811226983

 

 

 

भारत के प्राचीनविज्ञान में ये क्षमता है कि कि इतना लाचार कभी नहीं रहा कि महामारी मनुष्य जीवन को इतनी निर्ममतापूर्वक  निगलती चली जा रही थी|बेवश मनुष्य केवल सहने के लिए मजबूर थे| यही स्थिति संपूर्ण विश्व की रही है,किंतु इसका समाधान केवल भारत के प्राचीन शास्त्रीय विज्ञान में है |जिसके द्वारा प्राचीनकाल में महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में समय से पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता था |



       


 

भी जो सही भी निकल रहे हैं | भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में कुछ वर्षों तक मुझसे लिए भी जाते रहे हैं |  में ये क्षमता है कि उसके आधार पर भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |

 

 जिसके लिए नाम पर मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में जो अंदाजे लगाए जाते हैं | उन अंदाजों के गलत निकल जाने के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार मान लिया जाता है| ऐसी घटनाओं के विषय में कोई अंदाजा न लगाया जा सके और घटना घटित हो जाए | इसके लिए भी जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार माना जाता है | ऐसे ही महामारी संबंधी पूर्वानुमान लगाने के नाम पर जो अंदाजे लगाए जाते रहे वे सभी गलत निकलते चले गए | जिसके लिए महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को जिम्मेदार बताया गया था |

     श्रीमान जी! भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को देखने के लिए अभी तक विश्व में कोई ऐसा विज्ञान नहीं खोजा जा सका है |जिसके द्वारा भविष्य में झाँकना संभव हो और भविष्य में झाँके बिना भविष्य की घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव ही नहीं है |

    भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए भी लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीत चुके हैं|अभी भी  मौसम संबंधी जो घटनाएँ किसी एक स्थान पर घटित हो रही होती हैं| उन्हें उपग्रहों रडारों के माध्यम  से देखकर उनकी गति और दिशा के अनुसार ये अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये बादल या ये आँधी तूफ़ान इतनी गति से इस दिशा में जा रहे हैं तो कितने घंटों में कहाँ पहुँच सकते हैं | उस हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है |हवाएँ यदि उसी दिशा में उसी गति से चलती रहीं तो ऐसे अंदाजे सही भी निकल सकते हैं अन्यथा गलत निकल जाते हैं |वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो  इसके अतिरिक्त मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं है |

   मान्यवर ! भारत के जिस प्राचीन गणित विज्ञान के द्वारा सूर्यचंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |उसी गणित विज्ञान के आधार पर पूर्वानुमान लगाने का मैं पिछले

 

 के आधार पर पिछले तीस वर्षों से

 

 

वर्षा के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं !उसमें सब कुछ प्रत्यक्ष होता है !उपग्रहों रडारों से बादलों को दूर से ही देख लिया जाता है कि किस दिशा में कितनी गति से जा रहे हैं उसी के अनुसार ये अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं | हवाएँ यदि उसी दिशा में उसी गति से चलती  रहीं तब तो वो अंदाजा सही निकल जाता है | यदि इसमें बदलाव हुआ तो अंदाजा गलत निकल जाता है | 

    दूसरी बात उपग्रहों रडारों की मदद से जितनी दूर तक के बादल देखे जा सकते हैं ,बस उतने के विषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है | इसीलिए वर्षा संबंधी पूर्वानुमान बार बार बदलने पड़ते हैं | तीन दिन वर्षा होने की भविष्यवाणी के तीन दिन बीतने के बाद फिर 48 घंटे या 72 और वर्षा होते रहने की भविष्यवाणी करनी पड़ती है | बादलों की श्रंखला जब तक दिखाई पड़ती रहती है तब तक भविष्यवाणियाँ बदलते रहनी पड़ती हैं |

     ऐसी स्थिति में आवश्यकता किसी ऐसे विज्ञान के खोजे जाने की है |जिसके द्वारा विशुद्ध वैज्ञानिक रूप से तब पूर्वानुमान लगा लिया जाए जब उपग्रहों रडारों की मदद से भी बादल दूर दूर तक दिखाई ही न पड़ रहे हों| ऐसा तभी संभव है जब समय और गणितविज्ञान के आधार पर अनुसंधान किया जाए !

          


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