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    विज्ञान ने जितनी तरक्की अन्य क्षेत्रों में की है उतनी ही उन्नति यदि प्राकृतिक क्षेत्र में भी की होती तो आज मौसम  और महामारी के स्वभाव को समझने में सफलता मिल चुकी होती |प्राकृतिक घटनाएँ घटित कैसे होती हैं | उनमें से किस घटना  के घटित होने का कारण क्या होता है | ये अब तक पता लगा लिया गया होता ! उन्हीं कारणों के आधार पर  घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाकर उनका परीक्षण भी कर लिया होता कि जिसप्रकार की घटनाओं के लिए जिसप्रकार के कारणों को जिम्मेदार माना गया है | उसके आधार पर घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान  लगाकर उन कारणों का परीक्षण भी कर लिया गया होता | यदि वे पूर्वानुमान  सही  निकलते तो जिस घटना के घटित होने के लिए जिस कारण को जिम्मेदार माना गया है वो सही है अन्यथा गलत है |घटनाओं के कारणों का  सही चयन होते ही जलवायुपरिवर्तन एवं महामारी के स्वरूपपरिवर्तन जैसे भ्रम स्वतः समाप्त हो गए होते| इनकी सच्चाई पता लग चुकी होती कि वास्तव में ऐसा हो रहा  है या ऐसी घटनाओं के घटित होने के कारण प्रकृति की जितनी गहराई  में विद्यमान हैं| वैज्ञानिक सोच का वहाँ तक पहुँचना अभी संभव नहीं हो पाया है |

     किसी स्थान पर धुआँ उठते देखकर यह पता नहीं लगाया जा सकता है कि ये धुआँ कितने समय तक उठता रहेगा | इसका कारण खोजना  ही होगा कि जब तक आग जलती रहेगी तब तक धुआँ उठता रहेगा | आग कब तक जलती रहेगी जब तक उसमें ईंधन रहेगा | इसका मतलब ये हुआ कि धुआँ कब तक उठेगा जब तक ईंधन रहेगा | इस प्रकार से घटनाओं के वास्तविक कारणों को खोजने के लिए कई कई कारणों का भेदन करते हुए मुख्यकारण तक पहुँचना होता है यदि वे कारण सही हैं तो घटनाओं के विषय में समझा गया है वह भी सही होता है और उसके आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि भी सही निकलते हैं | 

     इसीलिए उपग्रहों रडारों से बादलों को देखकर वर्षा और बाढ़ के विषय में पूर्वानुमान लगाना,आँधी तूफानों को देखकर उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना एवं महामारी से बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित होते देखकर महामारी के  विषय में पूर्वानुमान लगाकर उनके सच निकलने की उम्मींद अधिक नहीं की जानी चाहिए | उसके लिए वास्तविक कारण तक पहुँचना ही होगा | 

       जिस प्रकार से  धुएँ के उठने का कारण आग और आग के उठने का कारण ईंधन होता है |  ऐसे ही मौसम एवं महामारी जैसी समस्त प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित कई कई अंतर्कारणों को पार करते हुए मुख्यकारण तक पहुँचना होता है |समय,आकाशीय लक्षणों  समुद्रों नदियों तालाबों पहाड़ों वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों आदि में हमेंशा परिवर्तन होते रहते हैं | ऐसे सभी परिवर्तनों के साथ साथ पशुओं पक्षियों समेत समस्त जीव जंतुओं के स्वभावों व्यवहारों स्वास्थ्य लक्षणों आदि में प्रतिपल होते रहने वाले परिवर्तनों को देखना एवं उनके विषय में निरंतर अनुभव करते रहना होता है |ऐसे सूक्ष्म परिवर्तन प्रकृति के अन्य अंगों में होने वाले भावी परिवर्तनों की ही भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में संकेत दे रहे होते हैं |प्रकृति के किसी एक अंग में होने वाले परिवर्तन का प्रभाव प्रकृति के दूसरे अंगों में भी उभरते हुए देखा जा सकता है | जिसप्रकार से धुआँ होने का मतलब वहाँ आग की उपस्थिति है,किंतु जहाँ आग होती है वहाँ केवल धुआँ ही नहीं होता प्रत्युत प्रकाश और ताप(गर्मी) भी  होता है | जहाँ से धुआँ निकल रहा है वहाँ यदि प्रकाश और ताप भी है इसका मतलब है कि वहाँ आग भी है अन्यथा धुआँ निकलने का कारण कुछ दूसरा भी हो सकता है | 

   ऐसे ही प्राकृतिकपरिवर्तनों का प्रकृति के कुछ दूसरे परिवर्तनों से मिलान करके भविष्यसंबंधी कुछ दूसरी घटनाओं के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाता है | कोरोना महामारी के समय  प्रकृति से लेकर प्राणियों के स्वभाव व्यवहार तक में अत्यंत तेजी से परिवर्तन होते देखे जा रहे थे |प्रकृति में तो बदलाव हो ही रहे थे | जीवों के स्वभाव आदि में भी तेजी से बदलाव होते देखे जा रहे थे |  उन संकेतों को समझकर उसी के आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता था | 


    

 

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