Yachika melen
दो शब्द
आधुनिक विज्ञान चलकर मानता है जबकि प्राचीन विज्ञान मानकर चलता है |
कोरोना महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को बिल्कुल बेदम कर दिया है|लोग भयभीत और असुरक्षित हैं, ये राष्ट्र की सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण और गंभीर मामला है, क्योंकि महामारी के घातक हमले अब भी जारी हैं | भारत के पाकिस्तान के साथ तीन बड़े युद्ध हुए और चीन के साथ एक. पिछले दो दशकों में भारत पर कई घातक चरमपंथी हमले हुए जिनमें सैकड़ों देशवासियों की जानें गई |अब तक हुए छोटे-बड़े सभी युद्धों और चरमपंथी हमलों को मिलाकर भी इतने लोग नहीं मरे या अर्थव्यवस्था को इतनी क्षति नहीं पहुँची जितनी इस कोरोना महामारी से हुई है | ये गंभीर बात है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी महामारी के किसी भी पक्ष को अभी तक न ठीक ठीक समझा जा सका है और न ही इसके विषय में कोई विश्वसनीय अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाए जा सके हैं |
इस भयावह महामारी को समझने एवं इससे मुक्ति दिलाने में अभी तक किए जाते रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों का क्या योगदान रहा है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि कोरोना की उत्पत्ति कहाँ हुई कैसे हुई कब हुई इसका स्वभाव कितना हिंसक एवं परिवर्तन शील है | इसका प्रभाव किस प्रकार के लोगों पर कैसा पड़ता है | इसका विस्तार कहाँ तक है | इसका प्रसार माध्यम क्या है | इसमें अंतर्गम्यता कितनी है|इस पर तापमान एवं वायु प्रदूषण बढ़ने और घटने का प्रभाव पड़ता है या नहीं !इसके अतिरिक्त संक्रमण बढ़ने घटने पर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं आदि बातों का पता होना इसकी चिकित्सा के लिए विशेष आवश्यक है ,किंतु वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा इसकी सच्चाई समझना अभी तक संभव नहींहो पाया है यह महामारी के विषय में अब तक सबसे बड़ा रहस्य है |
किसी रोग महारोग आदि का निदान जितना अच्छा होता है उस रोग को समझना उतना ही आसान होता है उस रोग से मुक्ति दिलाने के लिए पीड़ितों की चिकित्सा करना भी उतना ही आसान होता है|रोग को ठीक ठीक समझे बिना रोग से मुक्ति दिलाना कैसे संभव है | किसी रोग से बचाव के लिए प्रतिरोधक क्षमता तैयार करने हेतु भी रोग की पहचान आवश्यक मानी जाती है |
महामारी के विषय में अभी तक किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों के योगदान को यदि जनता की दृष्टि से देखा जाए तो एक मात्र वैक्सीन को ही ऐसी वैज्ञानिक उपलब्धि माना जा सकता है | वैक्सीन को लेकर भी ये भ्रम बना ही रहेगा कि महामारी से बचाव करने में या इससे मुक्ति दिलाने में वास्तविकता में इसका कितना योगदान रहा है | इसका निराकरण तभी संभव है जब जिस
किसी को वैक्सीन लगाई जाए उसे कोई एक ऐसा मजबूत आश्वासन दिया जाए जो
वैक्सीन न लगवाने वालों से अलग हो | यदि वैक्सीन न लगवाने वाले संक्रमित
हो सकते हैं तो वैक्सीन की दो दो डोज लगवाने वाले भी संक्रमित होते देखे
जाते हैं |दोनों प्रकार के लोगों में अंतर क्या रहा|ये तर्क देना कि
जिन्हें वैक्सीन लगा होगा उन्हें खतरा कम होगा जबकि उन्हें खतरा अधिक होगा
जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई है | इसका उत्तर यह है कि वैक्सीन न लगवाने
वालों में भी तो सभी गंभीर रूप से संक्रमित होते या उनमें से बहुतों की
मृत्यु होते जैसा कुछ नहीं देखा गया है |कुलमिलाकर अभी तक महामारी के
प्रकोप पर वैक्सीन के प्रभाव को अलग से चिन्हित नहीं किया जा सका है | कारण
जो भी रहे हों |
भूमिका
महामारी ने स्वरूप परिवर्तन कर लिया हो या मौसम में जलवायु
परिवर्तन हो गया इसके लिए जनता कहाँ जिम्मेदार है|जनता अपने हिस्से की
सहभागिता निभाते हुए अनुसंधान कार्यों में सरकार का साथ हमेंशा हर परिस्थिति में देती है|इसलिए
सरकारों के प्रत्येक प्रयत्न की सार्थकता बातों तर्कों आँकड़ों में नहीं अपितु जनता के हित में सिद्ध होनी
चाहिए जिससे जनता को लगना चाहिए कि वास्तव में ऐसे अनुसंधानों आवश्यकता है यदि ये न हुए होते तो इन इन क्षेत्रों में इतना इतना नुक्सान और अधिक था | कुल मिलाकर अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज की संतुष्टि होनी आवश्यक है |जिसके जीवन की कठिनाइयाँ कम करने एवं कार्यों को सरल बनाने के उद्देश्य से ये किए और करवाए जाते हैं |
कोरोना महामारी के समय वैक्सीन खोजने बनाने लगाने लगवाने वाले सभी लोगों के प्रयास प्रणम्य हैं कुछ नहीं होने से अच्छा है कुछ तो हुआ | उसके प्रभाव से बचाव कितना हो पाएगा या नहीं इस विषय में जो भी अंदाजे अनुमान आदि लगाए जा रहे हैं हो सकता है वे सही भी घटित हों और वैसा हो भी|यदि ऐसा होता भी है तो ये उसीप्रकार की वैकल्पिक व्यवस्था होगी जैसे वर्षा से बचाव के लिए छतरी का उपयोग किया जाए या बाढ़ से बचाव के लिए नौका का उपयोग कर लिया जाए इससे बचाव की आशा तो की जा सकती है किंतु बचाव कितना होगा इस विषय में विश्वास पूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता |वस्तुतः छतरी और नौका दोनों वर्षा की सामान्य परिस्थितियों में ही मदद कर सकती हैं विशेष परिस्थिति बनते ही इस विकल्प के ब्यर्थ सिद्ध होने में समय नहीं लगेगा |वर्षा के साथ साथ आँधी तूफ़ान भी चलने लगे तो नौका पलट जाएगी और छतरी उड़ जाएगी |ऐसी परिस्थिति में वर्षा और बाढ़ का विकल्प छतरी और नौका को बताने वाले लोग तो कह देंगे कि ये इस लिए बिकल्प बेकार हुए क्योंकि मौसम ने स्वरूप बदल लिया है महामारी की भाषा में वेरियंट बदल गया है किंतु मौसम में इस प्रकार के बदलाव तो स्वाभाविक हैं ऐसा तो कभी भी हो सकता है | इसलिए मौसम को समझने मौसम के विषय में पूर्वानुमान लगाने और मौसम संबंधी संभावित सभी प्रकार के बदलावों को ध्यान में रखते हुए बचाव के विकल्पों का चयन करना चाहिए |
मौसम की तरह ही महामारी भी है यह भी तो प्राकृतिक घटना ही है प्रकृति के प्रत्येक कण में प्रतिपल बदलाव होते ही रहते हैं ऐसी परिस्थिति में महामारी का वेरियंट बदलना कोई बड़ी या असंभव घटना नहीं है ऐसा हो सकता है ये स्वाभाविक ही है इसलिए वेरियंट का बदलना आश्चर्य नहीं है आश्चर्य इस बात का है जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में आवश्यक जानकारियाँ जुटाने के लिए वैज्ञानिक लोग निरंतर अनुसंधान करते रहते हैं इसपर जनता के द्वारा परिश्रम पूर्वक कमाया हुआ धन खर्च होता है |उसके बदले में जनता को जब कुछ देने का समय आवे उस समय उन वैज्ञानिकों का कर्तव्य बनता है कि वे इस बात का परिचय दें कि अनुसंधानों के नाम पर अभी तक ऐसी कौन सी तैयारी की गई है जो कोरोना जैसी महामारी या प्राकृतिक आपदा से जनता का बचाव करने में सक्षम हो | आपदा से जूझ रही जनता उस समय यह कतई नहीं सुनना चाहती है कि महामारी ने वेरियंट बदल लिया है या जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाएँ घटित हो रही हैं| ऐसा जो कुछ भी होता है उसकी आगे से आगे तैयारी करके रखना उन लोगों की जिम्मेदारी बनती है जिन पर इसप्रकार के अनुसंधानों का दायित्व पहले से सौंपा गया था |
चिकित्सा के क्षेत्र में रोगों महारोगों के परिवर्तित स्वरूपों का अध्ययन भी स्वास्थ्यसंबंधी अनुसंधानों का ही अंग है|इसके बिना चिकित्सा से संबंधित अनुसंधानों को पूर्ण कैसे कहा जा सकता है|ये उसीप्रकार की व्यवस्था है जैसे मौसम के क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन !जिसप्रकार से मौसम संबंधी अनुसंधान जलवायु परिवर्तन संबंधी सही सटीक अनुमानों पूर्वानुमानों के बिना अधूरे हैं उसी प्रकार से चिकित्सासंबंधी अनुसंधान रोगों महारोगों से संबंधित अनुमानों पूर्वानुमानों के बिना अधूरे हैं |
महामारी के विषय में संभावित प्रत्येक परिवर्तन के अनुमान पूर्वानुमान
आदि लगाने का काम उन्हें ही करना होगा जो इनसे
संबंधित जिम्मेदारियाँ सँभालने के कारण ही सरकारों के द्वारा विशिष्ट पदों पर प्रतिष्ठित किए जाते हैं |उनकी विशिष्टता भी इसी में है कि वे संबंधित प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अपनी विशिष्ट उपयोगिता सिद्ध करें |उन परिस्थितियों को समझें जिन्हें समझने में सामान्य लोग सक्षम नहीं होते हैं |ऐसे विषयों से संबंधित विशिष्ट परिस्थितियों में उन्हीं से अपेक्षा होना स्वाभाविक है |
भारत में प्रचलित एक पुरानी कहावत है-"खानपान नु बामनी ते शूली चढन दे शेर "अर्थात जब अच्छा अच्छा खाने पीने की बारी आवे तब ब्राह्मणी को भोजन करवाया जाए और जब शूली पर चढ़ाना या किसी साहस का परिचय देना हो तो ब्राह्मणी पीछे हट जाए और शेर को आगे कर दिया जाए |ऐसा व्यवहारिक नहीं है|
इसलिए किसी देश के सैनिकों को जो सम्मान , पद प्रतिष्ठा सैलरी आदि सुख सुविधाएँ मिलती हैं वे उस देश की रक्षा के लिए समर्पित होते हैं|अपने देश की सीमाओं की सुरक्षा में तैनात वही सैनिक उस समय भी शत्रु सैनिकों से जूझते देखे जाते हैं जब कोई दुश्मन देश उनके देश पर अचानक हमला कर देता है|उस समय वे यह कहते नहीं सुने जाते हैं - "यह तो हमला था" अथवा "दुश्मनदेश युद्ध में नए नए षड्यंत्र रच रहा था इसलिए उसपर विजय प्राप्त करना अत्यंत कठिन हो गया था |शत्रु की विशेषता बताना कायरता की श्रेणी में गिना जाता है | वीरों की शोभा इसी में है कि वह शत्रु की प्रत्येक चाल को विफल करे यही उसका युद्धकौशल गिना जाएगा |
भोजन बनाने के लिए रखे गए रसोइए की ये जिम्मेदारी होती है कि वो अच्छा से अच्छा भोजन बनावे | यदि ऐसे किन्हीं आकस्मिक कारणों से भोजन बिगड़ जाता है जिसमें रसोइए की कोई गलती या लापरवाही नहीं होती है | उन परिस्थितियों में भी वह रसोइया उस भोजन को जितना अधिक से अधिक सँवारकर उसे स्वादिष्ट बना लेता है | यही उस रसोइए की पाक संबंधी विशिष्ट कुशलता है जो अन्य रसोइयों की अपेक्षा उसे विशिष्ट बनाता है|भोजन बिगड़ा कैसे यह बताना आवश्यक नहीं अपितु यह समझ कर उसे सुधारना ही उस रसोइए की विशिष्टता है|
इसी प्रकार से मौसम में होने वाले जलवायु परिवर्तन या महामारी से संबंधित स्वरूप परिवर्तन जिनके कारण समाज पीड़ित होता है ये मौसम एवं महामारी की अपनी वे विशेषताएँ हैं जिनसे मानव समाज पीड़ित होता है |इसमें मौसम एवं महामारी विशेषज्ञों की अपनी भूमिका इनके बिषय में जनता को बताना उतना आवश्यक नहीं है जितना कि ऐसी प्राकृतिक परिस्थितियों को अच्छी प्रकार से समझकर इनके दुष्प्रभावों से समाज को पीड़ित होने से अधिक से अधिक जनता का बचाव करना है |
प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों के विषय में जनता का धन लगाकर जो अनुसंधान सरकारों के द्वारा करवाए जाते हैं उनके बदले सरकारों के द्वारा प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के समय इतनी मदद तो मिलनी चाहिए कि जनता को भी लगे कि ये अनुसंधान उसके लिए आवश्यक थे यदि ये न हुए होते तो प्राकृतिक आपदाएँ एवं महामारियाँ इस इस प्रकार से मेरा नुक्सान और अधिक कर सकती थीं|यदि अनुसंधान होने और न होने पर परिणाम एक जैसे ही रहने हैं तो ऐसे अनुसंधानों के करने न करने से लाभ या हानि क्या है |
महामारी से जूझती जनता को वैज्ञानिक अनुसंधानों से कितनी मदद मिली !
सामान्य रूप से अन्य सभी प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही कोरोना महामारी भी आई है तो जाएगी भी हमेंशा तो रहेगी नहीं ,अभी नहीं जाएगी तो साल दो साल और रुक कर चली जाएगी,किंतु ये बात तो महामारी के आधीन है कि वो अभी चली जाए या दो चार साल बाद जाए तब तक कितने भी लोगों को संक्रमित करे उनमें से कितनों को मृत्यु की नींद सुला दे |मनुष्यों का संक्रमित होना या न होना अभी तक तो सबकुछ महामारी के ही आधीन है |चिंता की बात यह है कि मनुष्य को इससे बचाव के लिए जो जो कुछ चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा कहा गया है उन कोरोना नियमों का बचाव की दृष्टि से कितना प्रभाव पड़ सकता है | यह गंभीरता पूर्वक सोचे जाने की आवश्यकता है |
वैज्ञानिक योगदान की बात की जाए तो जिन विकसित देशों में चिकित्सा की उन्नत व्यवस्था है और जहाँ वैक्सीन आदि बनाने या लगाने के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं वहाँ से महामारी जाएगी तो वहाँ से भी जहाँ इस प्रकार की चिकित्सकीय व्यवस्था नहीं है या वैक्सीन आदि न लगाई गई और न ही लगाने की कोई योजना ही है |जिस समय महामारी समाप्त होगी उस समय जो देश वैक्सीन लगा वे महामारी के समाप्त होने का श्रेय वैक्सीन आदि लगाने के अपने प्रयासों को देंगे |जिन देशों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है वे मान लेंगे कि महामारी प्राकृतिक रूप से समाप्त हुई है |
इसमें विशेष बात यह है कि महामारी आज के सैकड़ों वर्ष पहले भी आती ही रही है तब चिकित्सकीय तकनीक इतनी उन्नत नहीं थी तब रोग परीक्षण के इतने विकसित संसाधन नहीं थे | उस समय रोग लक्षणों एवं अन्य अनुसंधान संबंधी आवश्यक जानकारी आदान प्रदान करने के लिए दूर संचार संबंधी इतने उन्नत साधन नहीं होते थे | चिकित्सा के लिए आवश्यक उपकरण औषधियाँ आदि लाने ले जाने के लिए यातायात के ऐसे द्रुतगतिगामी साधन नहीं थे |
ऐसी परिस्थिति में उस समय महामारियाँ भी आती और जाती थीं उस समय भी कुछ लोग संक्रमित होते एवं उनमें से कुछ लोगों की दुर्भाग्य पूर्ण मौत भी हो जाती थी सभी लोग न तब संक्रमित होते थे और न ही सभी संक्रमितों की मृत्यु ही होती थी |यही सब कुछ अभी भी हुआ है जिन्हें संक्रमित होना था वे संक्रमण से बचाए नहीं जा सके | महामारी संक्रमितों में जिनकी मृत्यु होनी थी वे सघन चिकित्सा कक्ष में चिकित्सकों की आँखों के सामने वेंटिलेटर पर पड़े पड़े मृत्यु को प्राप्त होते देखे गए |
कुलमिलाकर वर्तमान समय के इतने उन्नत चिकित्सकीय अनुसंधानों के द्वारा कोरोना महामारी से पीड़ितों को ऐसी क्या विशेष मदद पहुँचाई जा सकी जो प्राचीन काल में संभव न थी | यदि वह न पहुँचाई जा सकी होती तो वर्तमान समय में इस इस प्रकार से इतना इतना नुक्सान और अधिक हो सकता था |जिनसे वर्तमान अनुसंधानों के बलपर बचाव हो गया है |
वैज्ञानिक अनुसंधानों का परीक्षण
महामारी भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित हो जाने के पहले ही इनसे संबंधित अनुसंधानों की भूमिका होती है| ऐसे अनुसंधानों की सार्थकता तभी है जब ऐसी घटनाओं के घटित होने से पहले इनके विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाया जा सकें | उसके अनुशार बचाव के लिए आगे से आगे प्रबंध करके रखे जा सकें जो अवसर आने पर जन धन की सुरक्षा करने में सहयोगी सिद्ध हो सकें |घटनाओं के घटित हो जाने के बाद इनकी क्या भूमिका बचती है फिर तो आपदा प्रबंधन की सेवाओं को ही उपयोगी समझा जाता है |
ऐसे सार्थक अनुसंधानों का अभाव प्राकृतिक आपदाओं के समय अत्यंत कष्टप्रद होता है | इनके अभाव में ही कोरोना जैसी हिंसक महामारी आने के पहले इसके विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका और न ही महामारी आने का कारण पता लगाया जा सका है| महाकिंतु मारी(लहरों) से संक्रमितों की संख्या अपने आप से अचानक बढ़ने या घटने का कारण एवं पूर्वानुमान भी खोजे जाने की आवश्यकता थी किंतु ऐसा नहीं किया जा सका | महामारी से भयभीत समाज अभी भी जानना चाहता है कि कोरोना महामारी की कितनी लहरें अभी और आएँगी कब कब आएँगी और यह महामारी संपूर्ण रूप से समाप्त कब होगी |जिसके आधार पर बचाव के लिए कुछ अग्रिम उपाय किए जा सकें |वर्तमान समय में चल रही कोरोना महामारी के संकट काल में सबसे अधिक आवश्यकता ऐसे अनुसंधानों की रही है |
किसी भी रोग के जन्म स्वभाव प्रभाव विस्तार प्रसारमाध्यम अंतर्गम्यता आदि को ठीक ठीक से जाने बिना उस रोग से राहत दिलाने वाली प्रभावी तैयारियाँ करना संभव कैसे संभव हो सकता है | जनता को अपने ही बलपर महामारी से जूझना पड़ा है| यदि ऐसा ही होना है तो ऐसे विषयों के लिए किए जाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों की उपयोगिता क्या बचती है और उनकी सार्थकता कैसे सिद्ध होती है |
कोरोना महामारी के समय दो बड़ी घटनाएँ घटित हुई हैं पहली तो महामारी आने के विषय में किसी भी प्रकार का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका एवं महमारी को समझने में आंशिक सफलता भी नहीं हासिल की जा सकी | महामारी एवं इसकी लहरों के आने और जाने का क्या कारण है | ये नहीं पता लगाया जा सका कि महामारी संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने में तापमान एवं वायु प्रदूषण के बढ़ने और घटने की कोई भूमिका है भी या नहीं ?
पहली लहर के समय जब कोई औषधि वैक्सीन आदि थी ही नहीं रोग को समझा ही नहीं जा सका था तो चिकित्सा कैसे संभव थी |सरकारी गणना के अनुशार 18 सितंबर 2020 से संक्रमितों की संख्या अचानक कम होने लगी थी जो बिना किसी चिकित्सकीय साधन के भी दिसंबर 2020 तक महामारी की पहली लहर प्रायः समाप्त होती जा रही थी |इसके समाप्त होने का कारण क्या था ?इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों के द्वारा अनुमान पूर्वानुमान लगाने के नाम पर जो भी अंदाजे लगाए गए या आशंकाएँ व्यक्त की गईं वे सब के सब गलत सिद्ध होते रहे | कुल मिलाकर महामारी की चिकित्सा होनी तो बड़ी बात थी अंत तक महामारी को समझना ही संभव नहीं हो पाया |
दूसरी बात जिन परिस्थितियों में रहते खाते पीते सोते जागते कुछ लोग संक्रमित होते देखे गए बिल्कुल उन्हीं परिस्थितियों में रहते हुए कुछ दूसरे लोग उन्हीं जगहों पर पूरी तरह स्वस्थ बने रहे | ऐसे ही कुछ लोगों ने कोविड नियमों का पालन बिल्कुल नहीं किया इसके बाद भी उन्हें जुकाम तक नहीं हुआ वे पूरी तरह स्वस्थ बने रहे और सभी जगह घूमते फिरते एवं सभी का छुआ खाते पीते रहे फिर भी संक्रमित नहीं हुए |
इसके बिपरीत कुछ दूसरे लोग जो पूरी तरह कोरोना नियमों का पालन करते रहे घर से कहीं निकले ही नहीं फिर भी उनमें से काफी लोग संक्रमित हुए किंतु ऐसा होने के पीछे के वास्तविक कारण क्या थे ये अंत तक नहीं खोजा जा सका | कुछ घटनाएँ ऐसी भी सुनी गईं जिनमें गर्भिणी स्त्री या उसके परिवार के सदस्य कोरोना महामारी से कभी संक्रमित ही नहीं हुए किंतु तुरंत पैदा हुआ बच्चा संक्रमित पाया गया |
कुछ संक्रमित लोग घरों में ही सावधानी बरतते हुए स्वस्थ हो गए जबकि कुछ साधन संपन्न लोग संक्रमित होते ही अस्पतालों में एडमिट हुए उन्हें वहाँ सभी प्रकार की चिकित्सकीय सुविधाएँ उपलब्ध करवाई गईं | इसके बाद भी कुछ लोग सुयोग्य चिकित्सकों की सघन सेवा के समय ही उनकी आँखों के सामने वेंटीलेटर पर पड़े पड़े प्राण त्यागते देखे गए | इसका कारण क्या था ये अंत तक नहीं पता लगाया जा सका |
कुल मिलाकर महामारी पर वैज्ञानिक प्रयासों का कितना कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ा कितना नहीं पड़ा इस विषय में विश्वास पूर्वक कुछ कहा जाना संभव नहीं है | ऐसी परिस्थिति में कुछ समय बाद महामारी समाप्त होगी ही जिसका कारण वैक्सीन के प्रभाव को मानकर इन आधे अधूरे अनुसंधानों को यदि सफल मान लिया जाता है तो यह वैज्ञानिक अनुसंधानों की दृष्टि से जनहित में उचित नहीं होगा |
महामारी से मुक्ति दिलाने योग्य औषधि वैक्सीन आदि के निर्माण की बहुत बड़ी आवश्यकता है | इसकी आपूर्ति के लिए महामारी को ठीक ठीक प्रकार से समझा जाना बहुत आवश्यक है किंतु अभी तक किए कराए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों से इस प्रकार का सहयोग नहीं मिल सका है |इस दृष्टि से देखा जाए तो अनुसंधानों के द्वारा कोरोना के विषय में समय समय पर महामारी की विभिन्न अवस्थाओं स्वरूपों लक्षणों अनुमानों पूर्वानुमानों आदि के विषय में अभी तक जो जो कुछ बताया गया उसमें से ऐसा कुछ भी सही नहीं निकला है जो अनुसंधानों की विश्वसनीयता बढ़ाने में सक्षम हो | जिससे उन अनुसंधानों को महामारी में उपयोगी माना जा सके |
कोरोना महामारी को लेकर किए जाने वाले अनुसंधानों की प्रक्रिया में वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर जो भी अनुमान लगाए गए या आशंकाएँ व्यक्त की गईं या जो भी पूर्वानुमान आदि लगाए जाते रहे | उनमें से सच जितने प्रतिशत निकले वही महत्वपूर्ण हैं | उतने प्रतिशत ही ऐसे अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध हुई है ऐसा माना जाना चाहिए |
गणितविज्ञान से संबंधित प्राचीनवैज्ञानिक अनुसंधानों की उपयोगिता !
ऐसी परिस्थिति में वेद वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा प्रकृति से लेकर जीवन तक को समझना संभव हो सकता है वहाँ ऐसे विषयों को समझने के लिए विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई है| जिसके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं ,आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के स्वभाव को समझते हुए उसके विषय मेंअनुमान या पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अनुसंधान का उद्देश्य ऐसी
घटनाओं के स्वभाव प्रभाव का अनुमान और पूर्वानुमान लगाना रहा है |
भारत के प्राचीन वैज्ञानिक अनुसंधानों में इस बात का ध्यान रखा जाता था कि
ऐसी बड़ी दुर्घटनाओं में जो नुक्सान होना होता है वो प्रायः पहले झटके के
साथ हो जाता है उसके बाद ऐसे अनुसंधानों की उपयोगिता ही क्या रह जाती है फिर तो आपदा प्रबंधन का काम शुरू हो जाता है |
इसलिए सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों का अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना ही ऐसी घटनाओं से बचाव के लिए एक मात्र उपाय है यह जानते हुए भी महामारियों के विषय में अभी तक कोई प्रभावी विधा खोजी नहीं जा सकी है इसी लिए महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में अभी तक कोई सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका जिसे संपूर्ण विश्व ने देखा है |
दूसरी तरफ भारत का प्राचीन गणित विज्ञान जिसके द्वारा सुदूर आकाश में घटित होने वाले सूर्य चंद्र ग्रहणों का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जो एक एक मिनट सही घटित होता है | इसमें सूर्य चंद्र और पृथ्वी के संचार को गणित के द्वारा समझकर ही हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | इससे सूर्य के संचार को भारत के प्राचीन गणित विज्ञान के द्वारा समझने की क्षमता प्रमाणित होती है |
यह सर्व विदित है कि सूर्य के संचार से मौसमसंबंधी सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं तथा रोगों महारोगों (महामारियों)आदि का निर्माण होता है | इनका कारण सूर्य ही है | यही कारण है कि जब जिस प्रकार के रोगों महारोगों के पैदा होने का समय आता है उस समय उसी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ भी घटित होने लगती हैं | ऐसी घटनाओं को देखकर महामारी के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है जबकि गणितविज्ञान के द्वारा महामारी जैसी घटनाओं का वर्षों पहले वानुमान भी लगाया जा सकता है |
गणितविज्ञान के द्वारा सूर्य के संचार को समझा जा सकता है और सूर्यसंचार के आधार प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं एवं महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | इससे ऐसे महारोगों को समझने में बड़ी मदद मिल सकती है |इसी उद्देश्य से महामारी और मौसम जैसे विषयों में गणितविज्ञान के आधार पर मैं विगत तीस वर्षों से अनुसंधान करता चला आ रहा हूँ |
इसी उद्देश्य से मैंने व्यक्तिगत स्तर पर अभी तक जिन जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया है वो सही निकलता रहा है यहाँ तक कि उसी गणित विज्ञान के आधार पर मेरे द्वारा जो भी पूर्वानुमान लगाए महामारी जैसे अत्यंत कठिन विषय में भी लगाए गए अनुमान न केवल सही निकलते रहे हैं अपितु महामारी की जितनी भी लहरें आयी हैं उनके प्रारंभ और समाप्त होने के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान भी सच होते रहे हैं | प्रमाण स्वरूप हमारे पास इसी विषय से संबंधित पीएमओ को भेजी गई मेलों के निम्नलिखित कुछ अंश हैं |
महामारी आगमन की आहट पहले ही लग गई थी !
मैं पिछले लगभग तैंतीस वर्षों से ऐसे प्राकृतिक बिषयों पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ जिसमें भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ वायु प्रदूषण एवं तापमान का घटता बढ़ता स्तर प्राकृतिक स्वास्थ्य समस्याएँ मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं एवं महामारियों के बिषय में अनुसंधान करता आ रहा हूँ | प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण पैदा होने वाली सामाजिक राजनैतिक वैश्विक आदि समस्याओं के पैदा होने एवं उनका समाधान निकलने के बिषय में भी पूर्वानुमान लगाता आ रहा हूँ | उसी क्रम में सन 2010 के बाद सुदूर आकाश से समुद्र समेत समस्तप्रकृति में कुछ इस प्रकार के परिवर्तन दिखाई देने लगे थे जो निकट भविष्य में किसी बड़ी महामारी या अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदा या युद्ध आदि के द्वारा बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की ओर संकेत देने लगे थे | सन 2013 के बाद प्राकृतिक वातावरण पूरी तरह बदला बदला दिखाई देने लगा था आकाशीय परिस्थितियाँ सूर्य चंद्रादि ग्रहों के विंबीय आकार प्रकार वर्ण आदि परिस्थितियाँ क्रमशः बदलती जा रही थीं वायुसंचार में बदलाव वृक्ष बनस्पतियों में परिवर्तन होने लगे थे | समय जैसे जैसे बीतते जा रहा था वैसे वैसे जल वायु अन्न आदि समस्त खाद्य वस्तुएँ अपने अपने गुण स्वाद आदि से विहीन होती जा रहीं थीं | औषधीय बनस्पतियाँ जिन गुणों के लिए जानी जाती थीं उनमें उसप्रकार के गुणों का ह्रास होता चला जा रहा था |
वायुतत्व दिनोंदिन अधिक चंचल एवं प्रदूषित होता जा रहा था| वायुमंडल में प्रदूषण ,बज्रपात की हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जा रही थीं | इसीलिए 2018 के अप्रैल मई में आँधी तूफानों की घटनाएँ बारबार घटित होने लगी थीं | चक्रवात जैसी हिंसक घटनाएँ घटित होते अक्सर देखी जाने लगी थीं |
पृथ्वीतत्व के स्थिरता संबंधी स्वाभाविक गुण विकृत होने लगे थे | धरती बार बार काँपने लगी थी भूकंपों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी |सुनामीजैसी घटनाओं के डरावने दृश्य दिखाई पड़ने लगे थे | महामारी काल में केवल भारत में ही एक हजार बार से अधिक भूकंप घटित हुए थे |
प्रकुपित अग्नितत्व हिंसक स्वरूप धारण करता जा रहा था | कहीं भी कभी भी आग लगने की घटनाएँ घटित होती देखी जा रही थीं इसीलिए तो 2016 अप्रैल में बिहार सरकार ने दिन में हवन करने एवं चूल्हा जलाने आदि पर रोक लगा दी गई थी |
जलतत्व में दिनोंदिन विकृति आती देखी जा रही थी कहीं भीषण बाढ़ तो कहीं सूखा था | जमीन के अंदर का जलस्तर दिनों दिन कम होता जा रहा था |जल की गुणवत्ता में कमी होती जा रही थी !बादलों के फटने की घटनाएँ देखी जाने लगी थीं |
आकाश अक्सर धूम्रवर्ण या लाल पीला होता दिख रहा था !नीला एवं स्वच्छ आकाश तो वर्ष के कुछ महीनों में ही दिखाई देने लगा था | इसके अतिरिक्त आकाश में और भी प्रतिसूर्य गंधर्वनगर जैसी घटनाएँ दिखने लगीं थीं |
इस प्रकार से पंचतत्वों में बढ़ते विकार बनस्पतियों एवं खाद्यपदार्थों के स्वाद एवं गुणवत्ता में आती कमी मनुष्य समेत सभी जीव जंतुओं के स्वभाव में बढ़ते अस्वाभाविक बदलाव किसी बड़ी विपदा की ओर संकेत करने लगे थे | ऐसी घटनाओं का जब गणितीय पद्धति से परीक्षण किया गया तो महामारी जैसी किसी बड़ी हिंसक प्राकृतिक घटना का आभास होने लगा था |
इसलिए इसीप्राचीन अनुसंधान के आधार पर सन 2017 से ही वर्तमान महामारी के बिषय में मुझे संभावना दिखने लगी थी इस बिषय में मैंने संबंधित मंत्रालयों सरकारी विभागों निजीसंस्थाओं एवं विविध मीडिया माध्यमों से अपनी बात सरकार तक पहुँचाने का प्रयत्न करता रहा हूँ | इसी संदर्भ में सामाजिक स्वयं सेवी संगठनों एवं निजी संगठनों के बड़े बड़े नेताओं से संपर्क करके भारत सरकार तक अपनी बात पहुँचाने का प्रयास करता रहा कई पत्र रजिस्टर्ड डॉक से भी भेजे हैं | पीएमओ की मेल पर भेजकर प्रधानमंत्री जी से मैंने मिलने के लिए समय माँगा किंतु मुझे अपनी बात भारत के प्रधानमंत्री जी तक पहुँचाने का अवसर नहीं मिल सका ऐसे प्रयासों में भटकते भटकते काफी लंबा महत्त्वपूर्ण समय यूँ ही बीतता जा रहा था और प्राकृतिक परिस्थितियाँ दिनोंदिन बिगड़ती जा रही थीं |
कोई भी महामारी प्रारंभ होने से वर्षों पहले बिपरीत समयजनित परिस्थितियाँ संपूर्ण प्रकृति वातावरण प्रदूषित कर लेती है ताकि मनुष्य जो कुछ खाए पिए !जो औषधि ले ,जो बनौषधि ले, जहाँ साँस ले वह हवा ,जो कुछ सूँघे वह पदार्थ एवं जिस जिस वस्तु का स्पर्श करे वह सबकुछ बिषैले समयजनित परिस्थितियों से प्रदूषित हो जाता है | ये सब होने लगा था | अनेकों प्रकार के प्राकृतिक संकेतों के आधार पर प्रकृति महामारी की दिशा में चल पड़ी थी | यहीं से महामारी को नियंत्रित करने लायक परिस्थितियाँ दिनोंदिन जा रही थीं | अब तो अपने बचाव के लिए ही जो पथ्य परहेज बताया जाता वही करने का समय बचा था जितना बचाव हो जाता उतना ही बहुत था किंतु मेरे लिए अपनी बात संपूर्ण समाज में पहुँचा पाना संभव भी न था दूसरी बात समाज में मेरी विश्वसनीयता इस प्रकार की नहीं थी कि लोग मेरी बातों पर विश्वास कर लेते |
14 अग॰ 2018 को मैंने स्वास्थ्य मंत्री जी को सूचित किया-"सौर मंडलीय दृष्टि से घटित हो रही खगोलीय घटनाओं के कारण सुदूर अंतरिक्षीय वायु मंडल में रोगकारक वातावरण निर्मित हो रहा है उस वातज प्रदूषण संबंधी विकृतियों के लक्षण वृक्षों बनस्पतियों में होने वाले सूक्ष्म बदलावों के आधार पर अभी से अनुभव किए जा सकते हैं! ऐसे बदलावों का पूर्वानुमान सौर मंडलीय गणितीय प्रक्रिया के द्वारा एवं बनस्पतियों में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर लगाया जाता है ! वायुमंडल में व्याप्त यह खगोलीय प्रदूषण रोगकारक है इसका दुष्प्रभाव 16 अगस्त 2018 से लेकर 1 सितम्बर 2018 तक विशेष अधिक होगा जिससे वर्षा संबंधी गंभीर रोगों से विशेष पीड़ाप्रद होगा ! इसीकारण से इसी समय में डेंगू चिकनगुनियाँ जैसे रोग विशेष भयावह रूप धारण करेंगे !ऐसे समय में आकाशज रोगों के फैलने पर एक से एक अच्छी औषधियाँ भी भी निष्प्रभावी सिद्ध होते चली जाएँगी और रोग दिनों दिन बढ़ते चले जाएँगे ! 1 सितम्बर 2018के बाद इस प्रदूषण की मात्रा क्रमशःकम होते चली जाएगी और लोग स्वस्थ होते चले जाएँगे !इस सामायिक स्वच्छता अभियान में 25 दिन और लगेंगे अर्थात 26 सितंबर तक इन आकाशज रोगों से सभी रोगियों को मुक्ति मिल जाएगी !"
10 सितंबर 2018 को मैंने अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया-"इस समय भूकंपीय क्षेत्र (दिल्ली ,मेरठऔर हरियाणा का झज्जर ) के मध्य के वातावरण में सीमा से अधिक गरमी बढ़नी
स्वाभाविक है !यहाँ सूखीखाँसी तथा साँस लेने की समस्या एवँ आँखों में जलन आदि जानलेवा
होती जाएगी !गर्मी की अधिकता से होने वाले और रोग भी अधिक बढ़ेंगे !" इसके तुरंत बाद से दिल्ली और मेरठ के बीच के क्षेत्र के बच्चों में गला घोंटू रोग बढ़ गया था | 10सितंबर से 23 सितंबर 2018 तक काफी बच्चे मारे गए थे |ये घटना महामारी की ही अंग थी |
इस प्रकार से समाज क्रमशःकिसी महारोग की ओर बढ़ता चला जा रहा था |यह देखकर मैंने प्रधानमंत्री जी से मिलकर बताने की आशा छोड़कर 20 अक्टूबर 2018 को प्रधानमंत्री जी को एक मेल भेजी थी उस पत्र का स्वास्थ्य विषयक जो अंश है वही यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ-
"10 अक्टूबर 2018 से लेकर 30 नवंबर 2018 तक लगभग 50 दिन का समय सारे विश्व के लिए ही अच्छा नहीं है !इसमें स्वाँस,सूखी खाँसी की समस्याएँ काफी अधिक बढ़ जाएँगी !घबड़ाहट बेचैनी कमजोरी चक्कर आने जैसे रोगों से भय फैलेगा !यद्यपि ऐसी घटनाएँ इस समय में सारे विश्व में घटित होंगी !"
उस मेल का मुझे कोई उत्तर नहीं मिला मुझे पता नहीं कि मेरी मेल देखी गई या नहीं !इसी प्रकार से धीरे धीरे सन 2019 में ही महामारी जनित सामान्य विकार प्रारंभ हो गए थे जिन्हें मौसम बदलने की घटनाओं से जोड़ कर देखा जाता रहा | इसी क्रम में सन 2020 प्रारंभ होने के साथ साथ महामारी भी प्रारंभ हो चुकी थी | उसकी चर्चा सभी जगह सुनाई देने लगी थी महामारी को लेकर तरह तरह की आशंकाएँ व्यक्त की जा रही थीं महामारी के बिषय में लोग तरह तरह की अफवाहें फैलाए जा रहे थे | मीडिया के माध्यमों से भारतसरकार भी चिंतित दिखाई दे रही थी किंतु चाहकर भी मैं अपनी बात भारत के प्रधानमंत्री जी तक नहीं पहुँचा सका था | इसलिए अब निराश हताश होकर शांत बैठ गया था |
कोरोना महामारी प्रारंभ हुई और पहली लहर
30 जनवरी 2020 को भारत के केरल राज्य में कोविड-19 का पहला मामला दर्ज किया गया था, 3 फरवरी 2020 तक बढ़कर संख्या तीन हो गयी| इसके बाद मार्च के महीने में संक्रमित मामलों की संख्या बढ़ गयी 12 मार्च 2020 को, एक 76 वर्षीय व्यक्ति जो सऊदी अरब[9] से लौटा था जिसकी मृत्यु हुई और यह देश में कोरोना वायरस से होने वाली पहली मृत्यु थी। 15 मार्च 2020 को पुष्ट मामलों की संख्या 100 हुई इस प्रकार से महामारी संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी |
महामारी के विषय में कुछ विशेष पता न होने के कारण तरह तरह की आशंकाएँ अफवाहें आदि फैल रही थीं जिससे समाज में और अधिकभय का वातावरण बनता चला जा रहा था |महामारी के जन्म स्वभाव प्रभाव विस्तार प्रसारमाध्यम अंतर्गम्यता आदि को ठीक ठीक जाने बिना महामारी से संक्रमितों को राहत पहुँचाना संभव न था | महामारी संक्रमितों को रोगमुक्ति दिलाने वाली प्रभावी चिकित्सा करना या औषधियॉँ निर्माण करना ही संभव था | प्रकृति समझना बहुत आवश्यक था | इसलिए यह जानना बहुत आवश्यक था -"1.कोरोना प्राकृतिक है या मनुष्यकृत ,2. कोरोनाहवा में विद्यमान है या नहीं ?आदि
इन शंकाओं का निराकरण करते हुए गणितविज्ञान से प्राप्त अनुभवों के आधार पर मैंने 19 मार्च 2019 को पीएमओ की मेल पर एक मेल भेजी -
19 मार्च 2019 को पीएमओ की मेल पर भेजी गई मेल के कुछ अंश -
महामारी के विषय में लिखा था -"महामारी में होने वाले रोग को न तो पहचाना जा सकता है और न ही इसकी औषधि बनाई जा सकती है |महामारी में होने वाले रोग के वेग को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर घटाया जा सकता है|प्रकृति
के द्वारा इस समय औषधियों बनौषधियों आदि की शक्ति समाप्त कर दी गई है इसलिए महामारी में
होने वाले रोगों में प्रयोग की गई औषधियाँ निष्प्रभावी रहेंगी |" यह सब कुछ 19 मार्च 2020 को मैंने पीएमओ की मेल पर भेजा था |
1. कोरोना प्राकृतिक है -" किसी महामारी पर नियंत्रण न हो पाने का कारण यह है कि कोई भी महामारी तीन चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती है ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है | "
2. कोरोनाहवा में विद्यमान है -"पर्यावरण बिगड़ने का प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों आदि का जल प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है इसलिए शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम पड़ पाता है यहीं से महामारी फैलने लगती है |"
20 जून 2020 को कोरोना की दूसरी लहर की चेतावनी, इंसानों में काबू के बावजूद जानवर संक्रमण फैला सकते हैं|
20-4-2020 को - नदी के पानी में कोरोना के लक्षण !पेरिस की सीन नदी और अवर्क नहर के पानी में कोरोना कोरोना वायरस का संक्रमण पाया गया है !
3. महामारी में होने वाले रोग को न तो पहचाना जा सकता है और न ही इसकी औषधि बनाई जा सकती है -"इसमें चिकित्सकीय प्रयासों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है |"
4. महामारी में होने वाले रोग के वेग को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर घटाया जा सकता है -"ऐसी महामारियों को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |"
"24 मार्च 2020 के बाद इस महामारी का समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा | |उसके बाद के समय में पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से मुक्ति पा सकेगा |"
"यह महामारी 9 अगस्त 2020 से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर 2020 तक रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और 16 नवंबर 2020 के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"
इसी विषय से संबंधित एक मेल मैंने 7 सितंबर 2020 को भेजी थी!उसका मुख्य विषय यह है -
" श्रीमान जी | गणितविज्ञान की दृष्टि से कोरोना संक्रमण बढ़ने का समय केवल 24
सितंबर तक ही है इसके बिषय में मैंने 16 जून 2020 को आपकी
मेल पर एक पत्र लिखकर निवेदन किया था "9 अगस्त से कोरोना संक्रमण फिर से
बढ़ने लगेगा जो 24 सितंबर तक क्रमशः बढ़ता चला जाएगा | 25 सितंबर से कोरोना
संक्रमण कम होना प्रारंभ होगा और 13 नवंबर 2020 तक धीरे धीरे समाप्त होता
चला जाएगा |" हमारे द्वारा किए गए इस पूर्वानुमान के अनुशार ही कोरोना संक्रमण 9 अगस्त से बढ़ना प्रारंभ हुआ
है और 25 सितंबर से समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा | इसलिए 25 सितंबर से पहले यदि किसी औषधि या वैक्सीन आदि के प्रभाव का
परीक्षण प्रमाणित हो चुका होता जिसके सेवन से किसी देश प्रदेश जिला आदि को
कोरोना संक्रमण से मुक्ति दिलाने में सफलता मिल चुकी होती तब तो उसे कोरोना
की औषधि या वैक्सीन के रूप में मान्यता देना न्यायसंगत होता किंतु अभी तक
ऐसा कुछ हो नहीं पाया है | 25 सितंबर के बाद कोरोना के स्वतः समाप्त होने
का समय प्रारंभ हो चुका होगा | उस समय के प्रभाव से कोरोना संक्रमण हमेंशा
हमेंशा के लिए क्रमशः स्वतः समाप्त होता चला जाएगा |ऐसी परिस्थिति में 25 सितंबर के बाद बनी किसी भी औषधि या वैक्सीन के
प्रभाव का परीक्षण होना संभव न हो पाने के कारण उसे कोरोना की औषधि या
वैक्सीन के रूप में मान्यता दिया जाना न्यायसंगत नहीं होगा | "
ये दोनों मेलें कोरोना का पीक आने से पहले की हैं फिर भी ये दोनों ही पूर्वानुमान सही सिद्ध हुए हैं|16 जून 2020 को भेजी गई मेल के अनुशार ही 9 अगस्त2020 से संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगी थी गणितगणना के हिसाब से इसका पीक भी 24 सितंबर 2020 को ही आया होगा किंतु संक्रमितों की संख्या गिनने के लिए हमारे पास न तो कोई व्यवस्था है और न ही उसे कोई मानेगा | सरकारी संख्या प्रतिदिन होने वाली जाँच के आधार पर तय होती है किसी दिन कम जाँच हुई तो संख्या कम हो जाती है और यदि किसी दिन जाँच अधिक हुई तो संख्या अधिक हो जाती है | इस हिसाब से सरकारी संख्या में कमी एवं बढ़ोत्तरी मनुष्यकृत हो सकती है जबकि हमारी तो गणितविज्ञान के द्वारा प्राप्त संख्या है जो दूसरी लहर आने के पहले घोषित की गई थी | उस समय दूसरी लहर के विषय में दूर दूर तक किसी को पता ही नहीं था | इसलिए मेरा अनुमान है कि 24 सितंबर 2020 को ही पीक आया होगा | गणित की दृष्टि से यही तर्कसंगत लगता है | यदि 17 सितंबर 2020 को भी माना जाता है कि उस दिन सबसे अधिक संक्रमितों की संख्या आयी थी तब भी यह बहुत बड़ा अंतर नहीं है | उसके बाद संक्रमित रोगियों की संख्या क्रमशः कम होती चली जा रही थी | इसी बीच भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री डॉ.हर्ष बर्द्धन जी ने 10 अक्टूबर 2020 को एवं नीतिआयोग के डॉ.वी.के.पाल साहब ने 14अक्टूबर 2020 को अपने अपने वक्तव्यों में कहा - "सर्दी में कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा |" कुछ वैज्ञानिकों ने कहा - "सर्दी में वायुप्रदूषण बढ़ने के कारण कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा |" गणित विज्ञान की दृष्टि से ऐसा होना इसलिए संभव न था क्योंकि समय ठीक चल रहा था |
इसलिए इसीबिषय में मैंने 20 अक्टूबर 2020 को पीएमओ को पत्र भेजकर सर्दी के मौसम में तापमान कम होने से कोरोना नहीं बढ़ने के विषय में |निवेदन किया था | इस पत्र में लिखा था - "हमारे अनुसंधान के अनुशार 16 नवंबर 2020 में कोरोना महामारी बिना किसी दवा या वैक्सीन आदि के ही संपूर्ण रूप से हमेंशा हमेंशा के लिए समाप्त हो जाएगी |"
गणित विज्ञान और समय का प्रभाव
गणित विज्ञान की दृष्टि से प्राकृतिक कोरोना महामारी पहली लहर के साथ ही यहीं से संपूर्ण रूप से समाप्त हो जानी चाहिए थी और ऐसा होते भी देखा जा रहा था | उस हिसाब से तो कोरोना उसी समय से समाप्त हो चुका होता !ऐसा होते प्रत्यक्ष देखा भी जा रहा था !महामारी धीरे धीरे समाप्त होती चली जा रही थी | अक्टूबर - नवंबर 2020 तक संक्रमितों की संख्या धीरे धीरे बहुत कम हो गई थी|इसीबीच कई देशों में अचानक वैक्सीन लगाने की तैयारियाँ की जाने लगीं |वैक्सीन लगाने के लिए यह समय अच्छा नहीं था इसलिए वैक्सीनजनित परिणाम अच्छे होंगे | गणितविज्ञान की दृष्टि से ऐसी आशा नहीं की जा सकती थी |
प्राचीन गणित विज्ञान की दृष्टि में किसी औषधि के द्वारा रोग या महारोग से मुक्ति दिलाने में समय की बहुत बड़ी भूमिका मानी जाती थी | इसी दृष्टि से रोग प्रारंभ होने के समय की एवं चिकित्सा प्रारंभ होने के समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है | समय ठीक हो तो रोग या महारोग स्वतः समाप्त हो जाते हैं और समय न ठीक हो ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए की जाने वाली अच्छी से अच्छी चिकित्सा के परिणाम भी चिकित्सा के विपरीत होते देखे जाते हैं | इसीलिए 25 सितंबर 2020 से अच्छा समय प्रारंभ होते ही बिना किसी प्रभावी चिकित्सकीय व्यवस्था के भी संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही थी जबकि समय का प्रवाह बिगड़ते ही 8 दिसंबर 2020 से ब्रिटेन में वैक्सीन दी गई उसके तुरंत बाद से वहाँ संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने लगी थी जबकि उससे पहले संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही थी | संपूर्ण विश्व की यही स्थिति थी | भारत में भी ऐसा ही होते देखा गया था | यहाँ भी वैक्सीनेशन प्रारंभ होते ही संक्रमण बढ़ना प्रारंभ हो गया था | यह समय ही ऐसा था | पुराने लोगों को अक्सर कहते सुना जाता था समय ही बुरा हो तो कोई प्रयास काम नहीं आता है |
वैसे भी मैं चिकित्सा वैज्ञानिक नहीं हूँ इसलिए वैक्सीन के गुण दोषों के विषय में मुझे कोई जानकारी है नहीं किंतु अच्छे बुरे समय का अनुभव मुझे है | कोई रोग होने या उसकी चिकित्सा होने में कुछ कारण प्रत्यक्ष होते हैं कुछ अप्रत्यक्ष | कई बार प्रत्यक्ष रूप से किसी को कोई छोटा सा रोग होता है उसी समय उसकी चिकित्सा प्रारंभ कर दी जाती है | इस स्थिति में चिकित्सा सिद्धांत के अनुशार तो प्रत्यक्ष रूप से चिकित्सा मिलते ही प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ने वाले रोग से मुक्ति मिल ही जानी चाहिए थी किंतु व्यवहार में ऐसा नहीं देखा जाता है कई बार चिकित्सा मिलने के बाद भी रोग बढ़ते चला जाता है |ऐसे प्रकरणों में कई बार तो मृत्यु तक होते देखी जाती है |
ऐसे प्रकरणों में चिकित्सकीय प्रयासों के विरुद्ध परिणाम प्राप्त होने के लिए जिम्मेदार कोई प्रत्यक्ष कारण भले न दिखाई देता हो किंतु गणित विज्ञान की दृष्टि से इसका कारण 'समय' है जो मनुष्यकृत प्रयासों के विरुद्ध परिणाम प्रदान करने में सक्षम होता है | समय के प्रभाव को जो लोग नहीं भी स्वीकार करते हैं अच्छे बुरे परिणाम तो वे भी देख ही रहे होते हैं |प्रयत्नों के विरुद्ध परिणाम आने के लिए जिम्मेदार प्रायः प्रत्यक्ष कोई कारण दिखाई ही नहीं पड़ता है |
चिकित्सा विज्ञान मेरा विषय नहीं है इसलिए वैक्सीन के प्रभाव से मैं परिचित नहीं हूँ इसलिए इसपर किसी प्रकार की हमारे द्वारा की गई टिप्पणी उचित नहीं होगी |गणित विज्ञान के माध्यम से अच्छे और बुरे समय के प्रवाह को समझना मेरा विषय रहा है जिस विषय में मैं इतने लंबे समय से अनुसंधान करता आ रहा हूँ | इसलिए मैं समय के प्रभाव से परिचित हूँ | इसलिए मेरा अनुमान वैक्सीन के गुण दोषों से संबंधित न होकर अपितु वैक्सीन जिस समय लगाई जा रही थी उस समय से संबंधित है | उसी प्रभाव से संक्रमितों की संख्या बढ़ने का हमें पहले से अनुमान था जिसकी चर्चा मैंने इस मेल में की है |
हमारे द्वारा 23 दिसंबर 2020 को पीएमओ को भेजे गए मेल के अंश -
मैंने पीएमओ से वैक्सीन न लगावाने के लिए निवेदन किया था और यदि लगवाना भी हो तो बहुत सोच बिचार कर बहुत सोच बिचार कर लगाने के लिए निवेदन किया था उस मेल का इस बिषय से संबंधित अंश :-
23 दिसंबर 2020 को मेल भेजकर पीएमओ को सूचित करने का मेरा उद्देश्य यही था कि वैक्सीन लगाने का कार्यक्रम या तो रोका जाएगा और या फिर वैक्सीन लगने के बाद संभावित संक्रमण बढ़ने की आशंका को ध्यान में रखते हुए उसे नियंत्रित करने के लिए पहले आवश्यक तैयारियॉँ कर लेने के बाद वैक्सीन लगाई जाएगी किंतु मेरे पूर्वानुमान के अनुशार वैक्सीन लगने के बाद संक्रमण दिनोंदिन अनियंत्रित होता चला गया !
5. "प्रधानमंत्री जी !यदि अब भी मैं मौन बैठा रहा तो प्रकुपित ईश्वरीय शक्तियाँ विश्वका चेहरा बर्बाद कर देने पर आमादा दिख रही हैं | दैवी शक्तियों का मानवजाति पर इतना अधिक क्रोध !आश्चर्य !! महोदय ! ऐसी परिस्थिति में जनता की ब्यथा से ब्यथित होकर व्यक्तिगत रूप से मैं एक बड़ा निर्णय लेने जा रहा हूँ |अपने अत्यंत सीमित संसाधनों से कल अर्थात 20 अप्रैल 2021 से "श्रीविपरीतप्रत्यंगिरामहायज्ञ" अपने ही निवास पर गुप्त रूप से प्रारंभ करने जा रहा हूँ | यह कम से कम 11 दिन चलेगा ! इसयज्ञ रूपी 'ईश्वरीयन्यायालय' में विश्व की समस्त भयभीत मानव जाति की ओर से व्यक्तिगत रूप से पेश होकर क्षमा माँगने का मैंने निश्चय किया है |मुझे विश्वास है कि ईश्वर क्षमा करके विश्व को महामारी से मुक्ति प्रदान कर देगा | यज्ञ प्रभाव के विषय में मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |"
कोरोना महामारी की चौथी लहर 27 फरवरी 2022 से प्रारंभ होगी और 8 अप्रैल 2022 तक क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |इसके बाद 9 अप्रैल 2022 से भगवती दुर्गा जी की कृपा से महामारी की चौथी लहर समाप्त होनी प्रारंभ हो जाएगी और धीरे धीरे समाप्त होती चली जाएगी | महामारी की चौथी लहर के विषय में मैं जो पूर्वानुमान बता रहा हूँ वास्तविकता में वह महामारी न होकर ऋतु जनित बिषविकार है इससे महामारी की तरह डरने या डराने की आवश्यकता नहीं है फिर भी इस समय अचानक संक्रमितों की संख्या बढ़ने के कारण इससे महामारी की तरह ही सावधान रहने की आवश्यकता है |
विशेष बात यह है कि हमने इसे चौथी लहर लिखा है किंतु वैज्ञानिक लोग इसे चौथी लहर नहीं मानते हैं | इस समय भी समस्त प्राकृतिक वातावरण में व्याप्त विषाणुओं का प्रभाव 10 अप्रैल 2022 से कम होना प्रारंभ हो गया था जिसका प्रभाव प्रत्यक्ष दिखने में कई बार कुछ समय तो लग ही जाता है किंतु उसके बाद कहीं बढ़ने नहीं पाया | किसी चलती हुई गाड़ी को ऊर्जा मिलना अचानक बंद हो जाए तो भी कुछ दूर तो चला ही करती है वही महामारी की इस लहर के विषय में भी हुआ है |
माननीय
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