प्रथम खंड(भूमिका)

                                             वैज्ञानिक अनुसंधान और जवाबदेही

   विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग  पर आश्रित व्यवस्थित विद्या ही विज्ञान है| किसी विषय के स्वभाव या सिद्धान्तों को समझने के लिये किये जाने वाली प्रक्रिया ही उस विषय से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान है। विज्ञान तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रकृति के क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित ज्ञान को विज्ञान कहते हैं ।प्रकृति में उपस्थित वस्तुओं के क्रमबध्द अध्ययन से ज्ञान प्राप्त करने को ही विज्ञान कहते हैं या किसी भी वस्तु के बारे में विस्तृत ज्ञान को ही विज्ञान कहते हैंं।
     इस दृष्टि से अनुसंधान प्रकृति से लेकर जीवन तक प्रत्येक क्षेत्र में हमेंशा चला करते हैं इसीलिए प्रत्येक क्षेत्र में नित नूतन प्रयोग देखने को मिलते हैं |पाकक्रिया में निपुण रसोइया लोग पाक क्रिया से संबंधित वैज्ञानिक अनुसधान हमेंशा किया करते हैं उन अनुसंधानों का ही परिणाम है कि एक से एक नए नए स्वादिष्ट व्यंजन बनाया करते हैं लोग उनका आनंद लिया करते हैं | 
    ऐसे ही दर्जी लोग अनुसंधान पूर्वक नए नए वस्त्र बनाया करते हैं नाई लोग फैशन के हिसाब से नई नईडिजाइन से बाल काटा करते हैं | चिकित्सा वैज्ञानिकों ने चिकित्सा के क्षेत्र में नए नए न जाने कितने सफलतम अनुसंधान किए हैं | इससे आपरेशन की अत्यंत जटिल प्रक्रियाओं को बिल्कुल आसान बना दिया है | 
    कुलमिलाकर संसार के प्रत्येक क्षेत्र में प्रकृति एवं जीवन से संबंधित विषयों में अनुसंधान हमेंशा चला करते हैं और सभी क्षेत्रों में कुछ न कुछ चला करता है |जिन क्षेत्रों में कुछ सफलता मिल जाती है वो ठीक और जिनमें नहीं मिलती है या कुछ गलत निर्णय ले लिया जाता है उसके लिए उन अनुसंधान कर्ताओं को दोषी मानलिया जाता है कई बार तो उन्हें उसके बदले आर्थिक आदि दंड भी भुगतना पड़ता है | ऐसे लोगों के पास जलवायु परिवर्तन जैसा कोई विकल्प नहीं होता है जिसका नाम लेकर वे गलती करके भी निर्दोष माने जाते रहें | 
        कुलमिलाकर जो जिस विषय का मर्मज्ञ होता है वही उस विषय का वैज्ञानिक हो सकता है अन्यथा नहीं | इस नियम से जो जिस विधा के स्वभाव को अच्छी प्रकार से समझता नहीं है वह उस विषय का वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता है | किसी रसोइए को सब्जी में नमक मसाला डालने का अंदाजा न हो दरजी को कपड़ा काटने सिलने का अंदाजा न हो चिकित्सक को आपरेशन का अंदाजा न हो तो उन्हें तुरंत अयोग्य मानकर उस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाता है |इसके बाद अच्छे लोग लेकर उस कार्य को अच्छी प्रकार से करवाया जाता है इसलिए परिणाम भी अच्छे निकलते हैं |
       किसी यज्ञभोज या विवाहभोज आदि में भोजन बनाने वाले रसोइया से कोई ऐसी चूक हो जाए जिससे भोजन का स्वाद बिगड़ जाए तो उस रसोइया के पास किसी जलवायु परिवर्तन का बहाना नहीं होता है जिसे बोलकर वह सुरक्षित बच निकले | इसी प्रकार दरजी यदि कपड़े गलत सिल दे,नाई गलत कटिंग काट दे,चिकित्सक गलत आपरेशन कर दे तो सारा दोष उसी दरजी नाई  चिकित्सक आदि पर मढ़ दिया जाता है | कई बार तो उन्हें उसके लिए जुर्माना आदि भी भरना पड़ता है | जलवायु परिवर्तन जैसी कोई कहानी गढ़कर यदि ये भी अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहें तो नहीं बच सकते हैं |लोग इन्हें दोषी मान ही लेते हैं | 
     दायित्व निर्वाह के साथ साथ इस जुर्माना और जिम्मेदारी के भय से वे हमेंशा इतना अधिक सतर्क रहा करते हैं हैं ताकि उनसे कोई गलती न हो जाए और अपने अपने क्षेत्र में एक से एक अच्छे परिणाम दिया करते हैं | 
    इसी प्रकार भूकंप विज्ञान,महामारी विज्ञान,मौसम विज्ञान,पर्यावरण विज्ञान आदि क्षेत्रों में वैज्ञानिक भी होते हैं वैज्ञानिक अनुसंधान भी होते हैं किंतु उनसे परिणाम कुछ नहीं निकलते हैं | इनसे संबंधित घटनाओं के घटित होने के विषय में न तो सही पूर्वानुमान पता लग पाता है और न ही सही कारण !पूर्वानुमान और कारण के नाम पर जो कुछ काल्पनिक कहानियाँ गाढ़ी जाती हैं या तीर तुक्के लगाए भी जाते हैं उनमें से अधिकाँश गलत निकल जाते हैं | उस समय समाज के मन में ऐसे विषयों पर किए जा रहे अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों पर संशय होता है किंतु तब तक कह दिया जाता है कि इस पर रिसर्च होगी कि ये गलत क्यों निकले किंतु ऐसी असफल रिसर्चों से क्या निकलता है यह आज तक किसी को पता नहीं लगा |
     किसी भी समस्या ,रोग या प्राकृतिक संकट के पैदा होने का वास्तविक कारण पता लगे बिना ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए कोई रास्ता कैसे खोजा जा सकता है | कुलमिलाकर सबकुछ गलत निकल जाने के बाद भी ऐसे लोग न तो दोषी माने जाते हैं और न ही इनपर कोई जुर्माना ही होता है | सच बोलने की इनकी कोई जिम्मेदारी भी नहीं होती है |एक कारण या पूर्वानुमान गलत निकल जाने पर वे दूसरी घटना में व्यस्त हो जाते हैं उसके बाद तीसरी चौथी आदि घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान बताने लग जाते हैं वे भी गलत निकलजाते हैं तो तो उसके बाद वाली  घटना के विषय में बताने लग जाते हैं | जो तीर तुक्के सही निकल गए उन्हें तो पूर्वानुमान मान लिया जाता है और जो गलत निकल जाते हैं | उनके लिए जलवायु परिवर्तन को दोषी मान लिया  जाता है या फिर मानसून   सही   समय पर नहीं आता है या फिर मौसम चकमा दे गया आदि आदि | प्रकृति को समझने में असफल रहे लोग प्रकृति को ही दोषी ठहरने लग जाते हैं | महामारी को समझ पाने में असफल रहे लोग यह तो नहीं कहते कि महामारी के स्वभाव को समझने में हम असफल रहे अपितु कहते हैं कि कोरोना स्वरूप बदला रहा है | सूर्य का तेज प्रातः कम होता है दोपहर में अधिक लगता है शाम को फिर कम हो जाता है रात में बिल्कुल नहीं होता है ये सूर्य का स्वभाव है | इसे यह कैसे माना जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सूर्य स्वरूप बदल रहा है | ऐसा प्रकृति और जीवन से संबंधित प्रत्येक परिस्थिति में घटित होते देखा जाता है |
     जनता को  सरकार और प्रशासन तंत्र की सबसे अधिक आवश्यकता तब होती है जब वो महामारी भूकंप  बाढ़  आँधीतूफ़ान आदि आपदाओं में घिरा होता है उसी समय यदि जनता को उसके अपने हाल पर छोड़ दिया जाए तो ये सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात है |महामारी भूकंप  बाढ़  या आँधीतूफ़ान आदि प्राकृतिक आपदाओं से जनता को जब स्वयं ही जूझना होगा अर्थात सब कुछ अपने आप ही करना होगा तो फिर उनके लिए सरकारी संरचना  की उपयोगिता ही क्या रह जाएगी | 

  महामारी जैसी इतनी बड़ी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा बताए जाने वाले समस्त अनुमान पूर्वानुमान यदि झूठे निकलते जा रहे हों और जनता को पूर्वजों से प्राप्त परंपरागत ज्ञान विज्ञान जनित अनुभवों के आधार पर ही महामारी आदि आपदाओं का सामना करना पड़ता हो तो ऐसे विषयों पर सरकारों के द्वारा करवाए जाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों से जनता का क्या लेनादेना जो संकट काल में जनता के काम आने लायक ही न हों | 

   महामारी की तरह ही भूकंप वर्षा बाढ़ आँधीतूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाएँ इस क्षेत्र में जो भी अनुसंधान किए गए हैं या किए जा रहे हैं उनसे केवल महामारी में ही नहीं अन्य प्राकृतिक घटनाओं या आपदाओं के विषय में भी वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा ऐसा क्या खोजा जा सका है जिसके लिए यह कहा जा सके कि ऐसे अनुसंधान न किए गए होते तो ऐसी आपदाओं से निपटते समय किस प्रकार से कितनी और अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता |

                                                    मेरी अनुसंधान भावना के विषय में

       गाँव के एक किसान परिवार में पैदा होने के  कारण प्राकृतिक वातावरण का सामीप्य बचपन से ही मिला है उन दिनों  गाँवों में चिकित्सा व्यवस्था उतनी अच्छी नहीं होती थी इसलिए बनौषधियों  से चिकित्सा करने का प्रचलन अधिक था |मैं पाँच वर्ष का था तभी मेरे पिता जी का परलोक गमन होने के कारण मेरी परिस्थिति अधिक बिगड़ी हुई थी | कृषि के सहारे मैं मेरे भाई साहब एवं मेरी माता जी का जीवनयापन हुआ करता था |खेती करने वाला कोई न होने के कारण मेरी खेती में उतनी उपज नहीं हो  पाती थी| ऐसी परिस्थिति में हमारी माँ की संघर्ष पूर्ण जीवन शैली एवं ईश्वर की  कृपा हमदोनों भाइयों के लिए सहारा बनी हुई थी |परिस्थितियाँ बिगड़ जाने के बाद घर परिवार एवं नाते रिस्तेदारी आदि के रिस्ते मानने वाले साहसी लोग सौभाग्य से ही मिलते हैं हमारा परिवार उस प्रकार के आत्मीय व्यवहार से भी बंचित था |

        पिता जी के न रहने बाद भी ईश्वरीय शक्तियों ने  हमारे परिवार को कभी निराश  नहीं किया |उसी परमात्म विश्वास बल से मेरा जीवन मानवता के हितसाधन के प्रति समर्पित है मेरे जीवन एवं परिवार का बोझ परमात्मा ने सँभाल रखा है |मैं अपने अध्ययन अनुसंधान में निरंतर लगा रहता हूँ |ईश्वर के प्रति हम लोगों का विश्वास दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है | यही वह पवित्र विश्वास है जिसके बल पर कई बार ऐसी भी परिस्थितियाँ  बनीं जब सामाजिक एवं प्राकृतिक संकटों से बचाव के लिए हमारे द्वारा की गई प्रार्थना को ईश्वर ने स्वीकार करके महामारी जैसे इतने बड़े संकट में भी ईश्वरीय शक्तियों  ने हमें निराश न करते हुए अपितु हमारी बड़ी मदद की | कोरोना जैसी महामारी के समय भी भगवती के श्री चरणों में मेरे द्वारा की  गई प्रार्थना सफल हुई और संपूर्ण भारत वर्ष भगवती की कृपा से महामारी जनित संकट से मुक्ति पाने में सफल हुआ | ऐसा मेरा विश्वास  है | 

     निर्धारित समय से सूर्य चंद्रादि समस्त ग्रहों का उदय अस्त होना |सूर्य चंद्र ग्रहण का निर्धारित तिथि में अपने समय से लगना , निश्चित समय तक रहना और समय से मुक्त हो जाना | वृक्षों में समय से फल फूल लगना ऐसे ही समय से कमल पुष्पों का खिलना और समय से बंद हो जाना |वृक्षों में समय से फल फूल लगना उसके बाद पाक कर झाड़ जाना |खेतों में सारी वर्षा ऋतु पड़े रहने वाले बीजों का अपनी ऋतु आने पर अंकुरित होना | महिला शरीरों  में ऋतुदर्शन एवं ऋतुकाल का निर्धारित समय होना |निश्चित समय तक गर्भधारण होना उसके बाद प्रसव हो जाना | पुरुष शरीरों में समय से दाढ़ी मूँछ आदि उगना | बचपन युवा बुढ़ापा आदि अवस्थाओं का समय से घटित होना | ऋतुओं का अपनेअपने निश्चित समय से आना और निर्धारित समय तक रहना इसके बाद चला जाना | सर्दी होना, गर्मी होना वर्षात होना आदि प्रकृति में घटित होने वाली सभी घटनाएँ जब समय प्राकृतिक क्रम से नियंत्रित हैं उसी के अनुशार घटित होती हैं तब भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ आदि भी तो प्राकृतिक घटनाएँ ही हैं ये कभी भी अचानक कैसे घटित होने  लग सकती हैं इनके घटित होने का भी तो कोई क्रम और निर्धारित समय अवश्य होगा जिसे अपने अज्ञान अनुभव विहीनता आलस्य आदि के कारण हम खोज नहीं पा रहे हैं | जितना पूर्वजों ने खोजकर दे दिया उससे आगे हम स्वयं कुछ क्यों नहीं खोजना चाह रहे हैं | आखिर सूर्य चंद्र ग्रहण भी तो कभी कभी ही घटित होते थे  उसके विज्ञान को पूर्वजों ने न केवल खोज  निकाला है अपितु उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के विज्ञान को भी खोज लिया है | हम उस विज्ञान की पूँछ पकड़े घूम रहे हैं जिसके बश का भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ महामारी आदि के विषय में अनुसंधान करना है ही नहीं | यदि होता तो अब तक कर न लिया जाता आखिर किसने रोक रखा है | ऐसे अनुसंधानों की सभी प्रकार से मदद करने के लिए सरकारें हर संभव प्रयास कर रही हैं | सफलता आखिर क्यों नहीं मिल पा रही है यह स्वयं में एक अनुसंधान का विषय बनता जा रहा है |     

    ऐसी आशंकाओं से व्यक्तिगत रूप से जूझता मेरा मन प्रकृति और परमेश्वर के वात्सल्य से वशीभूत है एवं इस रहस्य को सुलझाने के लिए निरंतर प्रकृति चिंतन में समर्पित है | मैं अपने लोक परलोक का भार परंपिता परमेश्वर के श्री चरणों में सौंप कर माता प्रकृति के अनुशासित व्यवहार को समझने का प्रयास निरंतर करता आ रहा हूँ |इस प्रकार से मेरे मन में प्रकृति को समझने की इच्छा दिनोंदिन बलवती होती चली जा रही है | 

     मेरे पिता जी वेद विज्ञान के बहुत बड़े विद्वान थे उन्होंने भी चौदह वर्ष काशी में रहकर वैदिक विज्ञान के आधार पर प्रकृति एवं जीवन से संबंधित विषयों में काफी उन्नत स्तर का अध्ययन अनुसंधान आदि किया था | उनके वे  प्राचीन ग्रंथ एवं उनके द्वारा किए गए अनुसंधान से संबंधित लेखों को मैंने ग्यारह वर्ष  की अवस्था में ही पूर्ण समर्पण के साथ पढ़ना समझना प्रारंभ कर दिया था |उन्हीं के आधार पर मैंने प्रकृति एवं जीवन से संबंधित  विषय में अनुसंधान करना  प्रारंभ  कर दिया था | चौदह वर्ष की उम्र तक लगातार अनुसंधान करते करते प्रकृति और जीवन से संबंधित  विषयों में पूर्वानुमान लगा लेने लगा था जो काफी  सही एवं विश्वसनीय निकलते थे | इसी प्रसिद्धि के कारण गाँव एवं क्षेत्र के लोग वर्षा आदि  विषय में पूर्वानुमान पूछने आया करते थे | इससे मुझे  प्रोत्साहन मिलता  जाता था इस  प्रकार से मैं अनुसंधान के क्षेत्र में आगे बढ़ता चला गया | 

      इसके बाद भी इसी अनुसंधान से संबंधित संशय मेरे मन को सदैव मथते रहे जिनका समाधान खोज पाना उन परिस्थितियों में असंभव था जिसके लिए मुझे काशी जाना आवश्यक हो गया था | उन अत्यंत  विपरीत परिस्थितियों में काशी के अनेकों गुरुजनों के चरणों  बैठकर अपने अनुसंधान से  संबंधित संशयों का निवारण करने का  सौभाग्य मिला | बाबा विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा से जो वात्सल्य मिला उन अभिभावकों के भरोसे मैं आज भी जीवन जी पा रहा हूँ  | यह जीवन काशी के कण कण से प्राप्त प्रसाद से पवित्र होने के कारण आज समाज का विश्वास जीत पाने में  सफल हुआ  है |जिसके लिए यह जीवन उन सभी देवी देवताओं गुरुजनों पवित्र पूर्वजों माता पिता अग्रज एवं समस्त स्नेहीजनों को शृद्धा पूर्वक नमन करता है |     ___________________________________________________________________________________ 

                                               मेरे वैज्ञानिक अनुसंधानों के विषय में

   भारत वर्ष में प्राचीन काल में भी ऐसे प्राकृतिक अनुसंधानों का वर्णन मिलता है जिनके द्वारा ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की परंपरा रही है |उनके विषय में मैंने विस्तार पूर्वक अध्ययन अनुसंधान करके यह खोजने का प्रयत्न प्रारंभ किया कि किस प्रकार की प्राकृतिक घटना कब घटित होने वाली है और उससे बचाव के लिए किस प्रकार के उपाय किए जाने चाहिए | इसकी जानकारी के बिना बचाव कार्यों की तैयारी कैसे की जा सकती है | 

   इसके लिए प्राचीन खगोलविज्ञान, ऋतुविज्ञान, पर्यावरणविज्ञान, पादपविज्ञान, बनस्पतिविज्ञान, जीवजंतु विज्ञान, स्वास्थ्यविज्ञान, मनोविज्ञान,समाजविज्ञान आदि प्रकृति विज्ञान के सभी संबंधित अंगों का अनुसंधान करने के लिए उससे संबंधित विषयों का अनुसंधान करना पड़ा जिसके लिए संबंधित विषयों के विशेषज्ञ अनेकों विद्वानों के वैज्ञानिक अनुभवों का संग्रह करके अनुसंधान कार्य प्रारंभ कर दिया और व्यक्तिगत स्तर पर ही निरंतर चलाता रहा धीरे धीरे सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त होने लगे जिनसे लगा कि मेरे द्वारा किए जाने वाले अनुसंधान सही दिशा में जा रहे हैं इनसे अच्छे परिणाम निकलने की आशा की जानी चाहिए | इसके लिए मुझे व्यक्तिगत इच्छाओं, आवश्यकताओं ,पारिवारिक भरण पोषण की परवाह न करते हुए इस कार्य में समर्पित भाव से लगना पड़ा  जिससे प्राप्त स्थूल परिणामों से यह आशा की जानी चाहिए कि यदि विस्तृत संसाधनों के साथ और अच्छे ढंग से प्रयत्न किए तो इससे एक सीमा तक समाज की अपेक्षाओं पर खरा उतरा जा सकता है | 

      ऐसी कोई भी हिंसक प्राकृतिक घटना घटित होने के बाद कुछ लोगों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो जाती है |दूसरे  जो घायल हो जाते हैं उनकी चिकित्सा के लिए चिकित्सक होते ही हैं | तीसरे वे जो घटना में फँसे होते हैं उनसे बचाव के लिए आपदा प्रबंधन के लोग लगकर मदद करते ही हैं |  

     ऐसी परिस्थिति में हिंसक प्राकृतिक घटनाओं के समय में  चिकित्सकों के प्रयासों के परिणाम तो दिखाई पड़ते हैं | आपदाप्रबंधनकी दृष्टि से किए जाने वाले प्रयासों के भी परिणाम दिखाई पड़ते हैं किंतु प्राकृतिक आपदाओं के संबंध में किए जाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों की भूमिका क्या होती है और उन अनुसंधानों से जुड़े लोग अपनी भूमिका का निर्वाह कैसे किया करते हैं और जनता को उन अनुसंधानों से मदद क्या मिलती है | वे उससे उस प्रकार के अनुसंधान करने वाले लोग कैसे अपने अनुसंधानों को सफल मान लेते हैं सरकारें उनकी सफलता असफलता का अनुमान कैसे लगा लेती हैं| उसप्रकार के अनुसंधानों को संचालित करने पर सरकारें किस उद्देश्य से भारी भरकम धनराशि खर्च किया करती हैं |उस उद्देश्य की पूर्ति ऐसे अनुसंधानों से कितने प्रतिशत तक हो पाती है उससे ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से निपट पाने में सरकारों को क्या मदद मिल पाती है उस मदद से जनता कितनी लाभान्वित तथा  कितनी सहमत और कितनी संतुष्ट होती है| यदि उसप्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधान न किए करवाए जाएँ तो महामारी भूकंप सुनामी बाढ़ आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के समय में और क्या क्या नुक्सान झेलने पड़ सकते हैं |

     वस्तुतः प्राकृतिक आपदाओं से भयभीत  जनता से कुछ छिप नहीं पाता है | उन वैज्ञानिक अनुसंधानों से परिणाम जो भी जैसे भी निकलते हों उनका आधार जो कुछ भी हो वो सच हों न हों जनता उस ओर बहुत ध्यान नहीं देती है किंतु अपने हिस्से में आने वाले टैक्स का भुक्तान समय से सरकारों को किया करती है ताकि सरकारें अपनी संतुष्टि के लिए ही सही ऐसे कार्यक्रमों का संचालन करती रह सकें जिन्हें वे वैज्ञानिक अनुसंधान मानती हैं | वैसी प्रकृति संबंधी वैज्ञानिक अनुसंधानों  से जनता को कुछ मिले न मिले जनता को उसकी बहुत अधिक परवाह नहीं होती है 

     वैज्ञानिकों से जनता इतनी मदद अवश्य चाहती है कि जब महामारी भूकंप बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जनता जूझ रही होती है तब वैज्ञानिक लोग उन्हीं आपदाओं से संबंधित आगे से आगे कुछ ऐसी अफवाहें फैलाने लग जाते हैं जिनका उन घटनाओं से कोई लेना देना नहीं होता है | उनका कोई वैज्ञानिक आधार भी नहीं होता है इसीलिए वे सच भी नहीं होती हैं फिर भी ऐसे तीर तुक्के प्राकृतिक आपदाओं से भयभीत जनता का मनोबल जरूर तोड़ रहे होते हैं | प्राकृतिक आपदाओं  के समय ऐसा होते हमेंशा देखा जाता है | कोरोना महामारी के समय वैज्ञानिकों के झूठे पूर्वानुमानों को जनता ने बार बार सुना और माना भी है किंतु बाद में वहीँ बातें गलत निकलती रही हैं |

     विशेष बात यह है कि जो लोग प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के दो चार दिन पहले भी उनके विषय में भविष्यवाणियाँ नहीं कर पाते हैं जो करते भी हैं वे बहुत ढुलमुल होती हैं इसके बाद भी गलत निकल जाती हैं | इस प्रकार से प्रकृति विषयक वैज्ञानिक अनुसंधानों के क्षेत्र में बुरी तरह असफल होते रहने वाले वही लोग कोई नया वैज्ञानिक अनुसंधान किए बिना उन्हीं परिस्थितियों में जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद कैसी कैसी प्राकृतिक आपदाएँ  घटित होंगी इसकी भविष्य वाणी बड़े ही विश्वास से करने लग जाते हैं | नजदीक की घटनाओं के विषय में भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाने पर कुछ तो जवाबदेही बन ही जाती है | चूँकि उस प्रकार की बातें वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं के  द्वारा बोली जा रही होती हैं इसलिए जनता को उन पर विश्वास करना ही पड़ता है | ऐसे समय वैज्ञानिक यदि थोड़ी गंभीरता रखें तो उनकी तरफ से की गई यह मदद जनता  के लिए कुछ नहीं से अच्छी होगी पर्याप्त होगी ऐसा मेरा मानना है |

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                                           Book                        आवश्यक बात  

      प्राकृतिक विषयों में वैज्ञानिकों के द्वारा किए जा रहे अनुसंधानों अनुभवों से जनता को मिलने वाली मदद की सही समीक्षा किए बिना ऐसे विषयों पर वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं की बातों बिचारों का अंधानुकरण करते रहना कहाँ तक उचित है और जनता अपने अनुभवों के आधार पर यदि ऐसे लोगों के अंधानुकरण को नहीं अपनाना चाहती है तो अपने बचाव के लिए इतना अधिकार उसे भी मिलना चाहिए | सरकारों के द्वारा जनता पर  वैज्ञानिक अंधविश्वासों को जबर्दश्ती थोपने का प्रयास उस समय इसलिए उचित नहीं होता क्योंकि सरकारें जिस समस्या से मुक्ति दिलाने के लिए जो उपाय बता रही होती हैं वे उपाय सरकारों को जिनके द्वारा बताए गए होते हैं यदि उन्हीं वैज्ञानिकों के अनुभव में वे खरे न उतर पा रहे हों उनके आधार पर बताए जा रहे अनुभव बार बार गलत निकलते देखे जा रहे हों ऐसी परिस्थिति में उपायों के नाम पर जनता की दिनचर्या को बाधित करना  कितना उचित माना जा सकता है |

      इसलिए महामारी समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के विषय में सर्व प्रथम  सरकारों को अपनी क्षमताओं के विषय में आत्म मंथन करना चाहिए कि वैज्ञानिक प्रयासों के अतिरिक्त सरकारों के पास आखिर ऐसी कौन सी ताकत होती है जिसके द्वारा  सरकारें महामारियों पर विजय प्राप्त कर सकती हैं या महामारियों को पराजित कर देने की भावना से महामारियों को ललकारने लगती हैं | उन महामारी योद्धाओं के पास ऐसी क्या अतिरिक्त क्षमता होती है जिन्हें इतने बड़े संकट पर  विजय प्राप्त कर लेने के लिए महामारी से जूझने के लिए आगे बढ़ा दिया जाता है | महामारी से निपटने की तैयारियों के नाम पर कुछ भी न होने पर भी महामारी को पराजित कर देने जैसा अति आत्म  विश्वास अपने को धोखा देने जैसा होता  है | 

    महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर जो कुछ भी किया जा रहा होता है वो कितना सही या कितना गलत होता है अथवा वो कितना सफल या कितना असफल होता है यह तो उन वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं को ही पता होता है या फिर उस प्रकार के अनुसंधानों की समीक्षा करने वाले अधिकृत लोगों को पता होता है या फिर उनके सही गलत या काल्पनिक होने का परीक्षण करवाने वाली सरकारों को पता होता है |  

    ऐसी परिस्थिति में वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा यदि ऐसी कोई सफलता अर्जित की जा सकी होती है जिससे महामारी या प्राकृतिक आपदाओं से जूझती जनता को वास्तव में कुछ मदद पहुँचाना संभव है तब तो जनता की दिनचर्या के विषय में दखल देना ठीक है और तभी उस विषय में जनता को कोई सलाह देना  मानने के लिए बाध्य करना उचित है अन्यथा  किसी काल्पनिक कहानी को मानने के लिए जनता को बाध्य किया जाना कतई ठीक नहीं है जबकि ऐसा ही होते अक्सर देखा जाता है |जिसमें महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने के वास्तविक कारण और पूर्वानुमानों का का पता न लगने के बाद भी बचाव के उपायों के नाम पर जनता को तंग करना प्रारंभ कर दिया जाता है | 

     प्राकृतिक संकट आने पर उचित उपाय करना सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी होती है किंतु जिम्मेदारी निभाने का ढंग भी पारदर्शी एवं प्रमाणित होना चाहिए | यदि किसी शहर में बाढ़ आ जाए तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर उस शहर में रहने वाले लोगों को लघुशंका करना थोड़ा बंद करवा दिया जाएगा और यदि ऐसा किया जाता है तो इसमें वैज्ञानिक अनुसंधानों का योगदान क्या है |

     कहीं वायु प्रदूषण बढे तो उसका कारण खोजे बिना उस देश प्रदेश में दीपावली के पटाखे छुटाने बंद करवा दिए जाएँ पराली जलाने का दोषी मानकर किसानों का चालान कर दिया जाए उद्योगों वाहनों निर्माण कार्यों को बंद करवा दिया जाए | यदि ऐसे ही दकियानूसी उपाय किए जाने हैं तो इसमें वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता ही क्या है ?

    इसी प्रकार से ऐसी कोई महामारी यदि आ ही गई जिसके विषय में कोई वैज्ञानिक पूर्वानुमान नहीं लगा सका | महामारी के आने का कारण पता नहीं लगाया जा सका | महामारी संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने का कारण नहीं पता लगा सके | महामारी के समाप्त होने का पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका | महामारी जनित संक्रमण पर वायु प्रदूषण तापमान और मौसम के पड़ने वाले अच्छे बुरे प्रभाव के विषय में कोई सटीक जानकारी नहीं दी जा सकी सकी | महामारी की की तीसरी लहर आने जाने से पहले झूठी अफवाहें फैलाई जाती रही हों | ऐसे लोगों के द्वारा बताए जाने वाले बचाव के उपाय अनिवार्य किया जाना कितना विश्वसनीय हो सकता है | 

    ऐसी परिस्थिति में वैज्ञानिक अनुसंधानों की असफलताओं का ठीकरा जनता पर फोड़ा जाना कतई ठीक नहीं होता है कि जलवायु परिवर्तन के लिए जनता दोषी है | संक्रमितों की बढ़ रही संख्या का कारण जनता के द्वारा कोविड नियमों का पालन न किया जाना है या वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जनता के किए कार्य ही जिम्मेदार हैं |वस्तुतः ऐसी घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण क्या हैं ये अंत तक किसी को पता ही नहीं लग पाते हैं | वायु प्रदूषण दशहरा में बढ़े तो रावण दहन दोषी दीपावली में बढ़े तो पटाखा फोड़ना दोष , उसके बाद भी बढ़े तो पराली जलाना दोष | जब कोई प्रत्यक्ष कारण न मिले और फिर भी वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा हो तो बारहों महीने चलने वाले बाहनों ,निर्माण कार्यों  या उद्योगों से निकलने वाले धुएँ आदि को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण मान लिया जाता है | 

    ऐसी निराधार कोरी कल्पनाओं पर विश्वास  न करने वाली जनता को उसे मानने के लिए बाध्य करना कहाँ का न्याय है | सरकारें  यदि इतनी ही शक्त हैं तो जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों के संचालन पर पानी की तरह पैसा बहाया जाता है उनसे यह क्यों नहीं पूछती हैं कि इतनी बड़ी महामारी के विषय में पहले से कोई पूर्वानुमान बता पाने में आप असफल क्यों रहे !आप ऐसे बेकार के अनुसंधानों में समय और पैसा क्यों बर्बाद किया करते हैं जिनका प्राकृतिक घटनाओं से कोई लेना देना ही नहीं होता है | सरकारें किस  विश्वास के साथ उन काल्पनिक बातों बिचारों को जनता पर थोप दिया करती हैं और उसे न मानने वालों से जुर्माना वसूलने लगती हैं | उनका परीक्षण किए बिना यह विश्वास कैसे कर लिया जाता है कि ऐसा करने से महामारी पर या जलवायु परिवर्तन पर या वायुप्रदूषण पर अंकुश लग ही जाएगा ! ऐसी बातों के आधारभूत पहले तो प्रमाण जनता के सामने प्रस्तुत किए जाने चाहिए | 

     जनता में भी पढ़े लिखे  समझदार लोग होते हैं आदिकाल से अनुभूत उनका अपना पारंपरिक विज्ञान भी होता है जिसके बल पर वे हमेंशा से मौसम और  महामारियों का सामना करते आए हैं | कोरोना महामारी के समय भी जब वैज्ञानिकों के वक्तव्य बार बार झूठे होते जा रहे थे तो जनता ने अपने उसी पारंपरिक विज्ञान का आश्रय लिया अपना वही पुराना काढ़ा पीकर पथ्य परहेज का सेवन करते हुए रहना शुरू कर दिया |पारंपरिक विज्ञान का पालन कोई भी कर सकता है जबकि आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों का अनुपालन धनी लोग ही कर पाते हैं | जिनका काम धंधा बंद हो भोजन जुटाना मुश्किल हो वे मॉस्क और सैनिटाइजर खरीदें या रोटी का इंतिजाम करें | घनी बस्तियों में छोटे छोटे घरों में रहने वाले कई कई लोग आपस में दोगज दूरी का पालन कैसे करें | जिनके यहाँ किसी महिला को प्रसव होना हो, बूढ़े माता पिता को या बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी हो !किसी के हृदय या पेट आदि में बेचैनी बढ़ रही हो दर्द बढ़ता जा रहा हो वो सरकारों के थोपे हुए लॉकडाउन का पालन कैसे करे | हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य जनता की दिनचर्या को बाधा पहुँचाए बिना जीवन को सहज सुखी विकसित एवं संकट मुक्त बनाना है | 

    संकट काल में वैज्ञानिक अनुसंधानों की जब जब आवश्यकता पड़ती है तब तब वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर हम जनता की दिनचर्या में रोड़े अटकाने लगते हैं उसके  वैज्ञानिक अनुसंधान न होकर अपितु उन्हें यह पता होता है कि जनता के जीवन में इसकी महत्ता कितनी है जनता के ऐसे ही क्रिया कलापों को वे जिम्मेदार ठहराते हैं जिन्हें बंद कर पाना जनता के लिए संभव न हो |उन्हें  यह विश्वास  होता है कि जनता अपने इस कार्य को रोक नहीं सकती | इसलिए जबतक संकट से मुक्ति नहीं मिलेगी तब तक हम उसी को जिम्मेदार ठहराते रहेंगे और जब मुक्ति मिल जाएगी तब हमसे कौन पूछने आएगा कि डेंगू के लिए जिम्मेदार बताए जाने वाले गमलों टायरों टूटी टंकियों आदि में तो पानी अभी भी भरा हुआ है अब डेंगू कैसे समाप्त हो गया | वाहन अभी भी चल रहे हैं निर्माणकार्य उद्योगधंधे सबकुछ अभी भी चल रहे हैं वायु प्रदूषण अब कम कैसे समाप्त हो गया ?ये किससे पूछा जाए कि जलवायु परिवर्तन ग्लोबलवार्मिंग धरती का तापमान बढ़ने आदि का कारण यदि मनुष्यकृत है | आँधी तूफ़ान महामारी आदि आदि प्राकृतिक आपदाओं का कारण यदि यही है तो जब इस प्रकार के यंत्रों का आविष्कार नहीं हुआ था | उत्सर्जन की समस्या नहीं थी वायु प्रदूषण नहीं बढ़ता था | महामारियाँ भूकंप आँधी तूफानसूखा बाढ़ बज्रपात जैसी घटनाएँ तो तब भी घटित हुआ करती थीं |उनके घटित  होने के कारण क्या थे | 

    इसलिए अभी तो इन्हें इसी विषय पर रिसर्च करने के लिए लगाया जाना चाहिए कि ऐसी घटनाओं में मनुष्यकृत घटनाएँ कौन सी हैं और प्राकृत आपदाएँ कौन सी हैं उसके बाद ही ये पूर्वानुमान लगाने लायक होंगे उसके बाद ही ये ऐसी समस्याओं का समाधान निकालने लायक हो पाएँगे |    

                                                आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धति 
     आधुनिक विज्ञान जो जब जहाँ जैसा प्रत्यक्ष तौर पर देखता है उसके बाद उसी के आधार पर वैज्ञानिक अनुसंधान  किए जाते हैं | इसी प्रत्यक्ष दृश्य पद्धति से हम आकाशस्थ बादलों की दिशा और गति को देखकर ये बादल कितने दिन में कहाँ पहुँच सकते हैं का अनुमान लगाकर उसी हिसाब से वहाँ वर्षा होने  या आँधी तूफ़ान आने आदि की भविष्यवाणी कर दिया करते हैं|ऐसा ही अन्य प्राकृतिक घटनाओं के विषय में होते देखा जाता है ऐसे में जो वैज्ञानिक आधार चुना जाता है वो कितना सही होता है कितना नहीं इसके विषय में विश्वास पूर्वक कुछ कहा नहीं जा सकता है इसीलिए ऐसी घटनाओं के विषय में अनुमान लगाना अत्यंत कठिन होता है |   
    
      उदाहरण के रूप में कुछ नेत्रहीन लोगों के द्वारा एक बार हाथियों का विस्तार जानने के विषय में रिसर्च प्रारंभ की गई कि हाथियों का शरीर कैसा और कितना बड़ा होता है |रिसर्च करने की जिम्मेदारी जिन्हें सौंपी गई नेत्रहीन होने के कारण उन्हें कुछ दिखाई तो पड़ता नहीं था इसलिए वे हाथी के शरीर को हाथों से टटोल टटोल कर ही केवल अंदाजा लगाने लगे कि हाथी का शरीर कैसा है | 

     उन नेत्रहीन लोगों ने हाथी का आकार प्रकार जानने के लिए रिसर्चप्रक्रिया प्रारंभ की ?उनके पास एक हाथी लाकर खड़ा किया गया और उनसे कहा गया कि हाथी का शरीर कैसा होता है पता करो | उन्होंने हाथी को न कभी देखा था और न ही हाथी के बिषय में कभी कुछ सुना ही था | नेत्र थे नहीं अब वो हाथों से टटो टटो कर ही हाथी के आकार प्रकार की परख करने लगे |

     उन नेत्रहीन लोगों में से जिसका हाथ हाथी की पूछ पर पड़ा वो कहने लगा कि हाथी पतला लंबा बिलकुल सर्प की तरह होता है | जिसका हाथ हाथी के पैरों पर पड़ा उसे हाथी मोटे खंभे की तरह समझ में आया ! जिसका हाथ हाथी के पेट पर पड़ा वह कहने लगा कि हाथी तो पहाड़ की तरह होता है |जिसका हाथ हाथी के मुख में पड़ा उसे हाथी किसी कीचड़ युक्त दलदली कंदरा की तरह लगा | कुलमिलाकर   उनमें से जिस व्यक्ति का हाथ  हाथी के जिस अंग पर पड़ा वे हाथी का आकार प्रकार उसी हिसाब का समझने लगे |  
      इस प्रकार से हाथी के विषय में अलग अलग प्रकार के अनुभवों के साथ रिसर्च संपन्न हुई उसके विषय में 'हाथीविज्ञान' के नाम से एक पुस्तक बनाकर प्रकाशित कर दी गई बहुत बड़े आयोजन में बड़े लोगों के द्वारा किताब का लोकार्पण किया गया | ऐसे वैज्ञानिक रिसर्च से कोई निष्कर्ष भले न निकला हो किंतु इसी को हाथीविज्ञान के नाम से पाठ्यक्रम में सम्मिलित करके एक विषय के रूप में कॉलेजों में पढ़ाया जाने लगा उस पर छात्रों से रिसर्च करवाया जाने लगा पी एच डी,डीलिट आदि करवाया जाने लगा | ऐसे विद्वानों के गाँव में एक बार पागल हाथी घुस आया और उपद्रव करते हुए तहस नहस करने लगा | लोग उन हाथी वैज्ञानिकों से बचाव की उम्मींद करते हुए उनके पास पहुँचे | वे जिधर हाथी को जाते  देखें उधर के विषय में अनुमान व्यक्ति करने लगें !हाथी किसी का घर गिराने लगे तो कहने लगें कि लग  रहा है कि यह अब  घर गिरा ही डालेगा | कुलमिलाकर हाथी को जो जो कुछ करते देखें हाथी वैज्ञानिक भी उसी प्रकार की भविष्यवाणी करते चले जा रहे थे | उनके अंदाजे में और समाज के अंदाजे में कोई अंतर ही नहीं था | महामारी या मौसम संबंधी अनुसंधानों में यही तो होते देखा जा रहा है |
    इसी प्रकार से ऐसे ही कुछ बाढ़वैज्ञानिक नदी की बाढ़ पर रिसर्च करने के लिए नदी में उतरे और इसी उद्देश्य से नदी को पार करने लगे उन्हें यह पता ही नहीं था कि नदी में कहाँ कितना गहरा है | वे डंडे से टटो टटो कर आगे बढ़ते जा रहे थे जब उनका पैर किसी गहरे गड्ढे में पड़ता तब वे बाढ़पूर्वानुमान के नाम पर शोर मचाने लग जाते कि बाढ़ बहुत है इसके बाद इसी क्रम में बाढ़ की अधिकता के कारण गहराई इसी क्रम में आगे बढ़ती चली जाएगी | यह भविष्यवाणी करते समय ही उनका पर अचानक किसी ऊँची जगह पड़ गया जहाँ पानी बहुत कम रह गया वे सब ख़ुशी के मारे चिल्ला उठे कि अब आगे नदी में बाढ़ बिल्कुल नहीं है हमलोगों ने बाढ़ को पराजित कर दिया है | हमने बाढ़ को जीत लिया है !बाढ़ डर कर भाग गई आदि आदि ऐसी वीरोक्तियों से अपना मनोबल बढ़ाते हुए वे  कुछ समय के लिए वे अपने को बाढ़वैज्ञानिक या बाढ़योद्धा मानने लगे ,इसी क्रम में अगले ही क्षण नदी के अंदर कोई गहरा गड्ढा आया उसमें पैर चला गया और स्वयं बह गए | 
        कुलमिलाकर ऐसे हाथीवैज्ञानिकों या बाढ़वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाने वाले रिसर्चों से हाथियों या बाढ़ को समझना संभव ही नहीं था किंतु अज्ञानवश जिन्हें हाथी वैज्ञानिक या बाढ़ वैज्ञानिक मान लिया गया उनके वैज्ञानिक रिसर्चों का आने अपने विषयों को समझने में योगदान तो कोई रहा नहीं इसके बाद भी शासक या मीडिया उन्हें योद्धा कह कर प्रोत्साहित करने लगें तो इतनी जिम्मेदारी तो उनकी भी बनती है कि यह वे भी समझें कि हाथी या बाढ़ को समझने में में वे कितने प्रतिशत सफल हुए | 
       वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर ऐसी अवैज्ञानिक वैज्ञानिकता को स्वीकार करके मानव समाज समाज ने सबसे ज्यादा धूल अपनी आँखों में झोंकी है और सबसे अधिक धोखा अपने आपको ही दिया है यदि  ऐसा न  किया गया होता तो महामारी या मौसम संबंधी प्राकृतिक आपदाओं  से पीड़ित समाज इतना बेबश नहीं होता कि मौसम संबंधी प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों के समय उसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से कोई मदद ही न मिल पाती और प्राप्त परिस्थितियों से उसे अकेले ही जूझना पड़ता | वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर महामारी भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान या तापमान के बढ़ने घटने के विषय में जिस प्रकार की ढुलमुल नीति अपनाई जा रही होती है या जिस प्रकार की द्वयर्थी बातें बोल बोलकर लीपा पोती की जा रही होती है |वो अनुसंधान भावना के साथ ही उपहास किया जा रहा होता है |
    ऐसे प्राकृतिक वैज्ञानिक अनुसंधानों में पारदर्शिता दूर दूर तक देखने को नहीं मिल रही है | महामारी भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान या तापमान के बढ़ने घटने के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं तार्किक कसौटी पर खरा उतरने लायक उनमें सच्चाई होती ही नहीं है | वे अँधेरे में तीर चलाए जा रहे होते हैं उनमें क्या वैज्ञानिकता है कितने तीर तुक्के हैं यह पता ही नहीं लग पाता है | वे आम जनता की तरह अंदाजे लगाए जा रहे होते हैं वैज्ञानिक पूर्वानुमान बताए जा रहे होते हैं | 
 
       इसी प्रकारकार के उद्देश्य विहीन निरर्थक रिसर्च यदि मौसम और महामारी के क्षेत्र में भी ऐसे ही चलती रहे तो इन क्षेत्रों से पीड़ित लोगों को भविष्य में आज के हजारों वर्ष बाद भी वैज्ञानिक अनुसंधानों से कभी कोई मदद मिल पाएगी इसकी आशा नहीं की जानी चाहिए |
      कोरोना महामारी से जूझती जनता को कुछ ऐसे ही निरर्थक रिसर्चों को सहना पड़ा जिनमें वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर केवल अँधेरे में तीर चलाए जा रहे थे | जिन्हें महामारी के बिषय में कुछ भी पता ही नहीं था वे महामारी पर बिजय प्राप्त कर लेने की  आशा सँजोए बैठे थे उनसे यह कौन पूछे कि महामारी को परास्त करने लायक आपके पास था क्या जिसके बल पर कोरोना को पराजित करने की हिम्मत बाँधे बैठे थे |
      कोरोना महामारी से निपटने लायक तैयारियाँ अभी तो बिल्कुल न के बराबर थीं इससे शासकों को यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि इसके बाद भविष्य में जब कभी कोई महामारी आने की संभावना बनेगी उस समय महामारी प्रारंभ होने से पहले हो उसके  बिषय में न केवल पूर्वानुमान लगा लिया जाएगा अपितु चिकित्सकीय दृष्टि से भी तब तक कुछ ऐसा अनुसंधान कर लिया जाएगा जिससे महामारियों से होने वाला जनधन का नुक्सान कम से कम हो |इस लक्ष्य को लेकर ही अनुसंधानों को आगे बढ़ाना ही भविष्य के लिए कल्याणकारी हो सकता है |
अनुसंधान की आवश्यकता 

      महामारी भूकंप सुनामी बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि सभीप्रकार की हिंसक प्राकृतिक घटनाएँ  जब जब घटित होती हैं प्रायः उनसे भारी भरकम जनधन की हानि होते देखी जाती है |यह हानि अचानक होती है अप्रत्याशित होती है|इनके विषय में सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि प्राकृतिक विषयों में जहाँ एक ओर सही सटीक पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया सफल  नहीं हो पाई है वहीं दूसरी ओर जनता प्रकृति वैज्ञानिकों से यह आशा लगाए बैठी है कि ऐसी कठिनाइयों के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाकर ऐसी विपदाओं से बचाव के  लिए  वे कोई न कोई उपाय अवश्य खोज लेंगे | इसके  साथ ही ऐसी घटनाओं के घटित होने के विषय में कोई न कोई तर्कसंगत प्रमाणित एवं विश्वसनीय कारणअवश्य खोजेंगे |जिसके निवारण के लिए मिलजुलकर प्रबंध करना संभव हो |  

     प्रकृति वैज्ञानिकों ने ऐसे विषयों में संभव है कि बहुत परिश्रम किया हो किंतु उन वैज्ञानिकों  के प्रयासों से ऐसे कोई परिणाम नहीं निकल पाए हैं जो जनता की अपेक्षाओं पर तिल मात्र भी खरे उतर सके हों | पूर्वानुमान के नाम पर मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा प्रायः ऋतुओं के अनुशार ही भविष्यवाणियाँ की जाती हैं जिस प्रकार की ऋतु  आती है उसी प्रकार की भविष्यवाणी मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा कर दी जाती है | वर्षाऋतु में तीन ही परिस्थितियाँ बन सकती हैं एक तो वर्षा बहुत अधिक हो सकती है दूसरी बात वर्षा बहुत कम हो सकती है तीसरी बात कि वर्षा मध्यम हो सकती है | 

       इन्हीं तीन में से कोई एक बात पकड़कर उसी को ही मौसम भविष्यवाणी के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता है यदि वह तुक्का सही बैठ जाता है तब तो ठीक है यदि थोड़ा बहुत गलत हुआ तो उसे निराधार तर्कों से सही सिद्ध कर लिया जाता है और यदि मौसम वैज्ञानिकोंके द्वारा की गई मौसम भविष्यवाणी पूरी तरह गलत निकल गई  तो अपने उस काल्पनिक मौसम विज्ञान की इज्जत बचाने के लिए जलवायु परिवर्तन जैसी न जाने कितनी काल्पनिक कहानियाँ तैयार करके सुना दी जाती हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण हमारी भविष्यवाणी गलत निकल गई | यही खेल सर्दी गर्मी आदि से संबंधित सभी ऋतुओं के विषय में भी खेला जाता है | 

      ऐसी परिस्थिति में दो बड़े प्रश्न खड़े हो जाते हैं पहला प्रश्न यह है कि आधुनिक वैज्ञानिकों के पास मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसम विज्ञान के नाम पर ऐसा है क्या जिसके आधार पर भविष्य में घटित होने वाली संभावित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके | उस वैज्ञानिक प्रणाली ( मॉडल)  का आधार क्या है जिसे मौसम विज्ञान के नाम पर प्रस्तुत किया जा रहा है | ऐसी परिकल्पनाओं को विज्ञानमान कर उसके आधार पर परिणामशून्य योजनाओं को बनाकर उसके आधार पर समाज को अटकाकर  रखना कितना उचित होगा |  

      कुल मिलाकर जनता अपने वैज्ञानिकों  पर बहुत विश्वास करती है एवं वैज्ञानिक  अनुसंधानों से अपेक्षा बहुत अधिक रखती है ऐसी परिस्थिति में उनकी अपेक्षाओं पर वैज्ञानिक अनुसंधान कितने खरे उतर पा रहे हैं | इसका ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए | माँग और आपूर्ति में इतना बड़ा अंतर किसी भी अनुसंधान के लिए अच्छा नहीं होगा |  

    इसी बिचार से मुझे लगा कि जिस वैज्ञानिक प्रणाली के द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी प्राकृतिक खगोलीय घटनाओं के विषय में हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है प्राकृतिक अनुशासन के रहस्य को समझने वाले उसी प्रकृति विज्ञानके आधार पर आश्रय लेकर वर्षा महामारी भूकंप सुनामी बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुसंधान पूर्वक प्रयत्न किया जाना चाहिए | ग्रहण संबंधी पूर्वानुमानों की तरह ही संभव है अन्य प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमानों से संबंधित अनुसंधानों में भी सफलता मिल ही जाए|  इसी उद्देश्य से मैंने व्यक्तिगत स्तर पर ऐसे अनुसंधानों के लिए प्रयत्न करने का निश्चय किया | 

                                                                           मध्यम खंड




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