कोरोना महामारी और विज्ञान ( प्रथम खंड )महामारी से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों के बिषय में -

 

इन अवस्थाओं के आपस में एक दूसरे के विरोधी स्वभाव भी हैं रात्रि में अंधकार होता है और सर्दी होती है जबकि दिन में प्रकाश होता है और गर्मी होती है | इसी प्रकार से हेमंत और शिशिर ऋतु में सर्दी अधिक होती है जबकि बसंत और ग्रीष्म ऋतु में गर्मी अधिक होती है |इन सभी घटनाओं का समय निश्चित होता है और सभी घटनाएँ अपने समय से घटित होती जाती हैं | ऐसी समय संबंधी घटनाओं के घटित होने का समय और क्रम आदि यदि पहले से पता न हो कि ये समय के अनुशार घटित होने वाली घटनाएँ हैं तो अँधेला -उजाला एवं  सर्दी-गर्मी आदि परस्पर विरोधी स्वभाव से संबंधित घटनाओं के क्रम स्वभाव लक्षण आदि के बिषय में यदि पहले से पता न हो तो अज्ञान के कारण इन समय के स्वरूप बदलने जैसी घटनाओं को कोरोना महामारी से संबंधित अनुसंधानों की भाषा में 'सामयिकम्यूटेशन' कहा जा सकता है |    

      काल्पनिक रूप से यदि ऐसा संभव हो कि किसी व्यक्ति को एक वर्ष में होने वाले सर्दी-गर्मी-वर्षा आदि ऋतु संबंधी बदलावों का अनुभव जीवन में पहली बार हो रहा हो | ऐसे ही एक अहोरात्र में प्रातः -सायं, दिन - रात्रि आदि के रूप में होने वाले परवर्तनों का जीवन में बिल्कुल पहली बार अनुभव करने का अवसर मिला हो तो ऐसे सभी परिवर्तनों को कोरोना महामारी से संबंधित अनुसंधानों की भाषा में नया वेरियंट बताया जा सकता हैऔर उसके बिषय में तरह तरह की डरावनी अफवाहें फैलाई जा सकती हैं जैसा कि जलवायु परिवर्तन के नाम पर कुछ लोगों के द्वारा किया भी रहा है | सर्दी के समय में कहा जा सकता है कि आगे इससे भी अधिक भयानक सर्दी होगी !ऐसा ही गर्मी और वर्षा के बिषय में भी एक से दूसरे को ज्यादा खतरनाक बताकर कुछ डरावनी काल्पनिक कहानियाँ गढ़ी जा सकती हैं किंतु समय जनित भिन्न भिन्न प्रकार की अवस्थाओं के बिषय में ऐसा करना इसलिए संभव नहीं हो पाता है क्योंकि प्रकृति की ऐसी समय जनित अवस्थाओं के भविष्य में बदलने वाले संभावित स्वरूपों लक्षणों आदि से लोग सुपरिचित होते हैं |इसलिए उसमें ऐसे बदलावों के लिए म्यूटेशन या नयावेरियंट जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है और न ही ऐसे बदलावों को देखकर किसी को कोई आश्चर्य ही होता है | वस्तुतः ऐसे बदलावों से सुपरिचित होने के कारण इसमें किसी को कोई आश्चर्य ही नहीं होता है सको पहले से ही पता होता है कि सर्दी के बाद गर्मी और गर्मी के बाद वर्षा ऋतु आएगी !ऐसे ही सुबह के बाद दोपहर और दोपहर के बाद शाम उसके बाद रात्रि होनी ही है उसके बाद फिर सबेरा होगा | प्रकृति का यह क्रम सभी को पता होता है इसीलिए इसमें नया वेरियंट या 'सामयिकम्यूटेशन' जैसा भ्रम किसी को नहीं होता है |

      इसी प्रकार से कोरोना महामारी जैसी समय जनित प्राकृतिक घटनाओं को समझने के विज्ञान का भी यदि आज तक कोई विज्ञान विकसित किया जा सका होता तो कोरोना महामारी के बिषय में भी इसके शुरू और समाप्त होने संबंधी निश्चित समय के बिषय में यह पूर्वानुमान सभी को पहले से ही पता होता !महामारी से संबंधित संक्रमण कब कितना बढ़ेगा कब कम होगा !इसका स्वभाव क्या होगा स्वरूप क्या होगा लक्षण कैसे होंगे इसका प्रसार माध्यम क्या होगा इसका विस्तार कितना होगा इसकी अंतरगम्यता कितनी होगी मौसम का इस पर क्या प्रभाव पड़ेगा वायु प्रदूषण और तापमान का इस पर कैसा प्रभाव पड़ेगा !इसके स्वरूप में कब कब कैसे कैसे बदलाव आएँगे आदि महामारी से संबंधित सभी बातो का अनुमान आगे से आगे पता ही होगा तो उसमें न किसी को कोई आश्चर्य होगा न आशंका होगी न म्यूटेशन और न ही कोई नया वेरियंट ही होगा | महामारी का कोई विज्ञान न होने के कारण ही तो ऐसी सभी प्रकार की समस्याएँ पैदा हो रही हैं चारों ओर भय का वातावरण  बना हुआ है | 

    जलवायु परिवर्तन जनितपरिणामों के बिषय में वैज्ञानिकों के द्वारा कहा भी जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद सूखा पड़ेगा असंतुलित वर्षा होगी भूकंप आएँगे महामारियाँ घटित होंगी हिंसक आँधी तूफानों की आवृत्तियाँ बार बार होंगी तापमान बढ़ता चला जाएगा आदि आदि ! यहाँ ध्यान देने वाली विशेष बात यह है कि आज के सौ दो सौ वर्ष बाद में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में इतनी स्पष्ट भविष्यवाणी करने वाले ये वही वैज्ञानिक लोग होते हैं जो वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान दोचार दिन पहले नहीं लगा पाते हैं इतनी बड़ी कोरोना जैसी महामारी के बिषय में दो दिन पहले भी पूर्वानुमान नहीं लगा पाए !जिनके द्वारा दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान तेरह वर्षों का लगाया गया उसमें से आठ वर्षों का गलत निकल गया हो !मानसून आने जाने की तारीखों के बिषय में लगाया गया पूर्वानुमान हरवर्ष गलत निकल जाता रहा हो !उन्हीं वैज्ञानिकों  के द्वारा आज के सौ दो सौ वर्ष पहले की उन प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में इतनी स्पष्ट भविष्यवाणी केवल इसीबल पर की जा रही है क्योंकि तब तक उन्हें तो रहना नहीं है जबकि दोचार दिन पहले की भविष्यवाणियाँ गलत हो जाने पर कुछ तो जवाबदेही रहती ही है | 

      

      जिस प्रकार से

दोचार दिन पहले

 

वाले किसी व्यक्ति के लिए  एक वर्ष  में सर्दी-गर्मी-वर्षा आदि एवं एक अहोरात्र में सुबह शाम दिन रात्रि आदि परस्पर विरोधी स्वभाव से संबंधित कई प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं को घटित होता देखकर के आधार पर नाएँ  

को देखकर भी ऐसा देखकर ऐसी घटनाएँ भी कोरोना महामारी के बार बार बदलते स्वरूप की तरह ही लगने लगेंगी !म्यूटेशन

 

नाएँ हैं

 

प्राकृतिक स्वरूप परिवर्तनों का समय क्रम और स्वभाव आदि सुनिश्चित  होता है प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों का भी अपना समय होता है ये अपने उसी पूर्व निर्धारित समय पर हमेंशा से ही घटित होती रही हैं 

 

इनसे जनधन का नुक्सान भी हमेंशा से ही होता रहा है ऐसी घटनाएँ हमेंशा ही घटती रही हैं | ऐसी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं को रोक पाना किसी के बश की बात नहीं है इसलिए जनता अपनी सरकारों एवं अपने वैज्ञानिकों से ऐसी अपेक्षा भी नहीं करती है जनता तो अपनी सरकारों से केवल इतनी मदद चाहती है कि सरकारें ऐसी घटनाओं के घटित होने के बिषय में समय से संभावित पूर्वानुमान उपलब्ध करवा सकें और उससे बचाव के लिए जनता को क्या करना चाहिए इस बिषय में कुछ सही जानकारी उपलब्ध करवा सकें !सरकारें इसके लिए  ऐसे बिषयों पर अनुसंधान करते रहने वाले वैज्ञानिकों के आधीन होती हैं बचाव के लिए वे जो जैसा बताते हैं सरकारें उसे ही मानने को विवश होती हैं वही जानकारी वे जनता को उपलब्ध करवाती हैं  वैज्ञानिक ही यदि समय से सही जानकारी सरकारों को उपलब्ध नहीं कर पाएँगे तो अत्यंत सतर्क सरकारें भी ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए किस आधार पर प्रयास कर सकती हैं बचाव के लिए जनता को जागरूक कैसे कर सकती हैं | 

      ऐसी परिस्थिति में सारी बात वैज्ञानिक अनुसंधानों के आस पास ही ठहरती है वैज्ञानिक अनुसंधान यदि सही होंगे तभी उनसे संबंधित बिषय में कुछ सही जानकारी मिल पाएगी और वह जानकारी जितनी सक्षम सही सटीक एवं घटनाओं  के साथ मेल खा रही होती है प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारी आदि प्राकृतिक घटनाओं से बचाव करना भी उतना ही आसान होता जाता है | कोरोना महामारी की तरह ही यदि वैज्ञानिक वर्ग ऐसे बिषयों में कोई जानकारी नहीं रखता है तो इसके बिना बचाव के लिए न सरकारें कुछ कर  सकती हैं और न ही जनता !कोरोना महामारी की तरह ही अंत तक ऊहापोह की स्थिति बनी रहेगी और वैज्ञानिक अनुसंधानों के नामपर केवल अफवाहें ही फैलाई जाती रहेंगी |

      कुलमिलाकर जनता चाहे तो तो ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से अपने बचाव के लिए प्रयास कर सकती है बशर्ते जनता को पहले से पता हो कि इतने समय बाद प्राकृतिक आपदा अथवा महामारी घटित होने वाली है | जनता को इस प्रकार के पूर्वानुमान सरकारों के द्वारा समय से उपलब्ध कराए जाने चाहिए ताकि बचाव के उपाय करने के लिए जनता को समय मिल सके !ऐसे पूर्वानुमानों के लिए सरकारें उन वैज्ञानिकों के आधीन होती हैं जो ऐसे बिषयों पर हमेंशा अनुसंधान किया करते हैं वही लोग सरकारों को समय से पूर्वानुमान उपलब्ध करवावें तभी तो सरकारें प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के प्रारंभ होने से पहले इनके बिषय में जनता को आगे से आगे सावधान कर सकती हैं | सरकार द्वारा इसप्रकार की जानकारी जनता को समय से  उपलब्ध करवाने पर जनता अपने बचाव के लिए समय से प्रयास तो कर ही सकती है कितना होगा या नहीं होगा यह तो बाद की बात है |

     ऐसी परिस्थिति में सबकुछ वैज्ञानिकों एवं वैज्ञानिक अनुसंधानों पर ही टिका होता है कोरोना महामारी की तरह ही विज्ञान और वैज्ञानिक जगत ही यदि धोखा दे जाए तो कोई सतर्क सरकार चाह कर भी जनता की मदद कैसे कर सकती है | ऐसे में ताली और थाली बजाने के अतिरिक्त सरकार के पास और विकल्प ही क्या बचता है !

     ऐसी परिस्थितियाँ तब और अधिक चिंता पैदा करने लगती हैं जब यह पता लगे कि जिस वैज्ञानिक अनुसंधान प्रणाली के आधार पर जिस महामारी या प्राकृतिक आपदा के बिषय में अनुसंधान करने की प्रक्रिया का संचालन किया जाता रहा है उसका उन घटनाओं से दूर दूर तक कोई संबंध ही नहीं है और उस वैज्ञानिक अनुसंधान प्रणाली में वैज्ञानिकता का कहीं पालन ही नहीं हो रहा है क्योंकि वर्तमान समय में जिस प्रक्रिया को विज्ञान मानकर उसके आधार पर महामारी या प्राकृतिक घटनाओं के रहस्य को समझ लेने का दावा किया जा रहा है वस्तुतः ऐसे बिषयों में वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर जो कुछ भी बताया जा रहा होता है वह उस प्रकार के अनुसंधानों से जुड़े कुछ लोगों की आधार विहीन कोरी कल्पनाएँ मात्र होती हैं | महामारी समेत भूकंप वर्षा बाढ़ आदि समस्त प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाव को समझना उस तथाकथित विज्ञान के बश की बात ही नहीं है जिसके आधार पर कुछ कल्पनाएँ की जा रही हैं वे न केवल निराधार हैं अपितु वैज्ञानिक मने जाने वाले लोगों की ऐसी मनगढ़ंत कहानियों से समाज में अफवाहें फैलती हैं तनाव बढ़ता है घबड़ाहट के कारण मृत्यु की संख्या में वृद्धि होते देखी जाती है |

      कुलमिलाकर कोरोना महामारी के बिषय में अनुसंधान के नाम पर वैज्ञानिकों के द्वारा जो ट्रिक अपनाई  है उससे  समस्याओं का समाधान संभव ही नहीं है वह तो समस्याओं को बढ़ा देने में सहायक है | 

                                                            भूमिका

         वैज्ञानिक अनुसंधान तो हमेंशा ही चला करते हैं आखिर क्या कारण है कि महामारी को प्रारंभ हुए एक वर्ष से अधिक का समय बीत गया है अभीतक कोरोना जैसी महामारी को समझ पाने में विज्ञान पूरी तरह असफल क्यों रहा है यही कारण है कि महामारियों के बिषय में वैज्ञानिकअनुसंधान करने वाले वैज्ञानिक लोग कोरोना महामारी को जितना भी समझ पाए हैं उसी समझ के आधार पर आज तक उन वैज्ञानिकों ने कोरोना महामारी के बिषय में आज तक जो जो अनुमान लगाए वे सारे के सारे गलत निकलते चले गए !कोरोना संक्रमितों के जो जो लक्षण बताए वे गलत निकलते चले गए! कोरोनासंक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने के बिषय में जो जो पूर्वानुमान बताए वे सब गलत निकलते चले गए !लॉकडाउन मॉस्कधारण पृथकबास आदि जो जो उपाय बताए वे सारे गलत निकलते चले गए सामाजिक अनुभवों एवं वैज्ञानिक तर्कों की कसौटी पर वे कभी खरे नहीं उतरे !इससे एक बात निश्चित हो गई कि महामारी के बिषय में वैज्ञानिकों ने जो जानकारी अनुभव आदि अर्जित किए हैं वे गलत हैं क्योंकि यदि वे सही होते तो उन्होंने महामारी के बिषय में जो जो कुछ बताया वह सही निकलना चाहिए था |  

       ऐसी गलतियों के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा कहा गया कि कोरोना स्वरूप बदल रहा है | वस्तुतः बदलाव तो हर पल हर वस्तु में हो रहा है संपूर्ण संसार की प्रत्येक वस्तु में हो रहा है प्रकृति में हो रहा है मौसम में भी तो बदलाव होते देखा जाता है इसके बाद भी इन बदलावों के बिषय में सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है क्योंकि इनके स्वभाव के बिषय में जानकारी पहले से होती है कि कब किस प्रकार के परिवर्तन हो सकते हैं उसी के अनुसार संभावित बदलावों का अनुमान लगा लिया जाता है सर्दी के बाद गर्मी और गर्मी के बाद वर्षा ऋतु आती है ये मौसम का स्वभाव पता होने के कारण ही तो बदलावों के बिषय में भी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है इसी आधार पर तो भीषण सर्दी के दिनों में ही जून में पड़ने वाली भीषण गर्मी एवं जुलाई अगस्त में होने वाली भीषण वर्षा बाढ़ आदि के बिषय में अनुमान लगा लिया जाता है किंतु कोरोना महामारी का स्वभाव पता लगाने में वैज्ञानिक अंत तक असफल रहे इसीलिए महामारी के बदलते स्वभाव को समझ पाना उनके लिए अंत तक संभव नहीं हो पाया | 

    रोग का स्वभाव समझे बिना रोग पर अंकुश लगाने की दवा बनाना सिद्धांततः संभव न था क्योंकि चिकित्सा शास्त्र का मत है कि किसी रोग की औषधि बनाने या चिकित्सा करने से पूर्व उस रोग के बिषय में संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए किंतु यहाँ तक कि भारत में जो वैक्सीन कोरोना के बढ़ते संक्रमण पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से लोगों को लगाई थी उसी वैक्सीन के लगाने के बाद कोरोना संक्रमण अचानक बढ़ने लगा !जैसे जैसे वैक्सिनेशन का दायरा बढ़ता चला गया वैसे वैसे संक्रमण बढ़ता चला गया | यहाँ तक कि भारत वर्ष के जिन जिन प्रदेशों में वैक्सीन लगाने के कार्य में जितनी अधिक सक्रियता बरती गई उन उन प्रदेशों में कोरोना संक्रमितों की संख्या उतनी अधिक बढ़ती गई | गाँवों में वैक्सीन लगाने के कार्य में उतनी अधिक सक्रियता नहीं बरती गई तो गाँवों में संक्रमण भी अधिक नहीं बढ़ा !

 

जो जो अनुमान लगाए उसके आधार पर 

 

जिसकी कीमत उस जनता को जीवन पर खेलकर चुकानी पड़ी है | जो जनता अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई में से आयकर का निर्धारित अंश दशकों से सरकारों को इसी उद्देश्य से देती चली आ रही है कि हमारा धन आप ऐसे सक्षम वैज्ञानिक अनुसंधानों को करने के लिए खर्च करें जो महामारियों या प्राकृतिक आपदाओं जैसे कठिन समय में जनता को अधिक से अधिक मदद पहुँचा सकें | 

      प्रायः सभी देशों की सरकारों ने वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए स्वतंत्र मंत्रालय बना रखे हैं उन मंत्रालयों विभागों के संचालन पर जनता की भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है | ऐसे मंत्रालयों विभागों से संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों को सैलरी आदि समस्त सुख सुविधाएँ प्रदान करने के लिए सरकारें जो धन खर्च करती वो उसी जनता से आयकर के रूप में लिया गया होता है | 

     यह आयकर यदि जनता न दे तो उसे टैक्सचोर कहा जाता है | जिन सरकारों के द्वारा जनता के आयकर संबंधी कागजों फाइलों में कोई गड़बड़ी पकड़े जाने पर जनता के विरुद्ध दण्डात्मिका कार्यवाही तक करने का प्रावधान किया है उन्हीं सरकारों की क्या ये जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि निर्ममता पूर्वक जनता से वसूले गए आयकर से प्राप्त धनराशि जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों विभागों आदि पर जनता के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए खर्च की जाती है उन वैज्ञानिक अनुसंधानों विभागों आदि से यह पूछे कि महामारियों या प्राकृतिक आपदाओं के भयंकर संकटकाल से जूझती जनता को आप अपने उन अनुसंधानों के द्वारा कितनी मदद पहुँचा पाए ? यदि नहीं तो क्यों ? 

      जनता का दोष आखिर क्या हैजिसने  महामारियों और प्राकृतिक आपदाओं के कठिन समय में वैज्ञानिक अनुसंधानों विभागों आदि से मदद पाने के लिए अपने हिस्से  के आयकर का समय से भुगतान किया होता है उस जनता को भी तो महामारी जैसे आपत्काल में उन वैज्ञानिक अनुसंधानों से भी इतनी  मदद तो मिलनी ही चाहिए जिससे महामारी आदि कठिनाइयों से जूझती जनता की कठिनाइयाँ कुछ तो कम हो सकें |

   कोरोना महामारी से जूझती जनता को सरकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों कितनी मदद मिल सकी उस मदद से जनता की कठिनाइयाँ कितनी कम की जा सकीं !यह भी बताया जाए कि महामारियों के बिषय में अभी तक जो वैज्ञानिक अनुसंधान किए जाते रहे वे यदि न किए गए होते तो महामारी से जूझती जनता का इससे अधिक और क्या क्या नुक्सान हो सकता था जिसे उन वैज्ञानिक अनुसंधानों की  मदद से बचा लिया गया ?

वैज्ञानिक अनुसंधान और कोरोना महामारी को समझने में कितने सक्षम हैं ! 

    वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा कोरोना को समझने के बिषय में कोई ऐसी नई जानकारी नहीं जुटाई जा सकी जिससे जनता को यह बताया जा सका होता कि कोरोना कब कहाँ कैसे किस कारण से पैदा हुआ !इसका बिस्तार कितना है इसका प्रसार माध्यम क्या है इसकी अंतरगम्यता कितनी है इस पर किस मौसम का कैसा प्रभाव पड़ता है !तापमान से ये कैसे प्रभावित होता है वायु प्रदूषण के घटने बढ़ने से यह कोरोना संक्रमण कैसे प्रभावित होता है | कोरोना संक्रमण से बचने के लिए खानपान रहन सहन आदि में किस किस प्रकार से पालन परहेज आदि का पालन करना चाहिए जिससे कुछ लाभ होगा !ऐसी कोई स्पष्ट जानकारी वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं के द्वारा नहीं उपलब्ध करवाई जा सकी | 

      यह सर्व विदित है कि कोरोना महामारी से बचाव हो सके ऐसी कोई प्रभावी औषधि तैयार नहीं की जा सकी जिसकी  रोगमुक्ति क्षमता उसके प्रभाव से प्रमाणित की जा सकती हो | इसी प्रकार से संक्रमितों को रोगमुक्ति दिलाने वाली कोई ऐसी औषधि नहीं चिन्हित की जा सकी जिसके बिषय में यह विश्वास पूर्वक कहा जा सके कि कोरोना संक्रमितों पर इसका असर इसप्रकार का होगा ही | जिस रोगी में जिस प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं वैसी दवाएँ प्रयोग की जाने लगती हैं |  

     हमारी सरकारों को कोरोनामहामारी से लड़ते हुए आज 14 महीने बीत चुके हैं सरकार जिन कोरोना योद्धाओं के बल पर कोरोना महामारी को पराजित करने के सपने देख रही है वही कोरोना योद्धा इतने अधिक लाचार हैं कि वे चिल्ला चिल्लाकर कह रहे हैं कि कोरोना महामारी के बिषय में जानकारी के नाम पर हम वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं को आज तक कुछ भी नहीं पता है

 

 की दृष्टि से वैज्ञानिक अनुसंधानों की आज तक की यही उपलब्धि भले मान ली जाए कि 

      सरकार

    मौसम 

या फिर संक्रमित हो चुकने के बाद 

    वस्तुतः महामारी से जूझती जनता को जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों से थोड़ी भी मदद नहीं मिल पाई है महामारी समाप्त होते ही कुछ लोग यह सिद्ध करने में सफल हो जाएँगे कि महामारी की हमने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी और महामारी के बिषय में हमारे पूर्वानुमान सही सिद्ध हुए !

     वस्तुतः प्रकृति के जिस तारतम्य के बिगड़ने से महामारियाँ पैदा होती हैं उसी प्राकृतिक तारतम्य के सुधरने से ही महामारियों से मुक्ति भी मिल जाती है | पोलियो आदि रोगों से मुक्ति तो मिलनी ही थी कोई भी प्राकृतिक महामारी या रोग आजीवन तो रहता नहीं है साल दो साल चार साल के लिए आता है उसके बाद जैसे अपने आपसे आया होता है वैसे अपने आपसे ही चला भी जाता है |

     महामारी जबतक चलती है तब तक कुछ लोग महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए कुछ प्रयास करते देखे जाते हैं कई बार उन प्रयासों का महामारी से दूर दूर तक कोई संबंध ही नहीं होता है | इसके बाद भी समय प्रभाव से महामारी जैसे जैसे अपने आप से समाप्त होने लगती है वैसे वैसे उस तरह के काल्पनिक वैज्ञानिक क्रमशः अपने को महामारी का वैज्ञानिक सिद्ध करते चले जाते हैं | ऐसे ही कुछ लोग पोलियो जैसे रोगों के उन्मूलन का श्रेय समेटकर उसकी पोटली बनाए सिर पर ढोते घूम रहे हैं मानो ऐसे लोग पैदा न हुए होते तो पोलियो अभी भी होता | ऐसा सिद्ध किया जाता है जैसे वो ड्राप पिलाने से पहले सारे बच्चे पोलियोग्रस्त ही पैदा हुआ करते थे !अरे पहले भी एक से एक वीर होते रहे हैं चिकित्सकीय अनुसंधानों में यह इतिहास भी भूला नहीं जाना चाहिए कि आधुनिक विज्ञानं का जब कहीं अत पता नहीं था महामारियाँ तब भी आती और जाती रही हैं कोई भी महामारी लंबे समय तक टिकने नहीं आती है |पोलियो उन्मूलन में विज्ञानं का अधिक से अधिक उतना ही योगदान रहा होगा जितनी कोरोना महामारी से जूझती जाता वैज्ञानिक अनुसंधानों से मदद पहुंचे जा सकी  होगी | क्योंकि पोलियो के समय से भी आज का विज्ञानं अधिक विकसित है | 

 


   बताया जाता है कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली (Early Health Warning System) विकसित की जा रही है, जिससे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।गौरतलब है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) भी इस विशिष्ट प्रणाली की विकास अध्ययन और प्रक्रिया में शामिल है।

     यदि सरकार ने ऐसा कोई निर्णय लिया भी है तो माना जा सकता है कि यह सरकार के द्वारा देर से उठाया गया सही दिशा का पहला कदम है |यद्यपि यह पर्याप्त नहीं है जिसके लिए अभी बहुत कुछ करना होगा मुझे नहीं पता कि उसके लिए सरकार ने क्या कुछ सोचा है |इस दिशा में कुछ आगे किया भी जाएगा या ये बात यहीं समाप्त हो जाएगी |

    कोरोना महामारी प्रारंभ होने से वर्षों पूर्व इसप्रकार के प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए थे तो महामारी के कारण शायद इतनी दुर्दशा नहीं भी होती |महामारी  को प्रारंभ हुए 16 महीने बीत चुके हैं लगता है कि पहली बार कोरोना महामारी को समझने के विषय में वैज्ञानिक कुछ करना भी चाह रहे हैं | 

    ऐसा करने के लिए यदि कोई लक्ष्य निर्धारित करके समय बद्ध ढंग से चला जाए तो ये सही दिशा में देर से उठाया  गया सबसे अच्छा कदम हो सकता है अन्यथा इस बहाने कुछ और समय बिता लिया जाएगा उसके बाद कुछ और नया ढंग खोज लिया जाएगा | 

     सच्चाई ये है कि "विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली" बनाए जाने से दो बातें स्पष्ट हो गई हैं कि वैज्ञानिकों को भी अब ये बात समझ में आ गई है कि कोरोना महामारी के बिषय में यदि पहले से पूर्वानुमान लगाया जा सका होता तो कोरोना महामारी से जन धन का इतना अधिक नुक्सान नहीं हुआ होता !

     दूसरी बात यह भी समझ में आ  गई है कि महामारी पैदा होने में एवं महामारी जनित संक्रमण बढ़ने घटने में  मौसम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तभी तो विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली (Early Health Warning System) को विकसित करने की प्रक्रिया में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) को भी सम्मिलित किया जा रहा है | यहाँ तक तो सब कुछ ठीक ही है किंतु बिचारणीय बिषय यह है कि केवल आईएमडी को सम्मिलित कर लेने मात्र से तो महामारी से संबंधित अनुसंधान हो नहीं जाएँगे अपितु आईएमडी के द्वारा मौसम संबंधी पूर्वानुमान जितने प्रतिशत सच एवं सटीक घटित होते रहे होंगे या आगे होंगे मौसमसंबंधी घटनाओं के आधार पर लगाया गया  महामारी से संबंधित पूर्वानुमान भी उतने प्रतिशत ही सच होगा !

      ऐसी परिस्थिति में विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली महामारी से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में कितनी सफल होगी !ये मौसम संबंधी अध्ययनों की सफलता के आधार पर ही अनुपात लगाया जा सकेगा !अब देखना यह है कि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान कितने प्रतिशत सच होता है | 

                कितने प्रतिशत सच होता है मौसम पुर्वानुमान !



मौसम वैज्ञानिक :

भूकंप वैज्ञानिक :ऐसे अनुसंधानों में भूकंप वैज्ञानिकों की भी सेवाएँ ली जानी चाहिए क्योंकि 2019 और 2020 में भूकंप भी बहुत संख्या में आए हैं सामान्य तौर पर ऐसा हर वर्ष होते तो नहीं देखा जाता है | इस वर्ष इतने अधिक भूकंप आने का कोई संबंध भूकंप जैसी महामारी से तो नहीं है | आखिर प्रकृति में किस प्रकार के बदलाव आने से भूकंप बनते हैं और किस प्रकार के बदलाव आने से महामारियाँ बनती हैं क्या इन दोनों का आपस में कोई संबंध है उसका भी पता लगाया जाना चाहिए !
वायु प्रदूषण :   6 नवंबर 2020  को सरकार के सीनियर अधिकारियों ने संसद की एक समिति को जानकारी दी थी कि वायु प्रदूषण के कारण कोरोना वायरस का संक्रमण पहले के मुकाबले ज्यादा तेज गति से फैल सकता है |इसके अतिरिक्त कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने भी महामारी से संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने में वायु प्रदूषण के बढ़ते घटते स्तर को भी कारण माना है | उनके बिचार से महामारी को नियंत्रित करने के लिए वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के प्रयास करने होंगे !ऐसे प्रयास करने के लिए सबसे पहले आवश्यकता इस बात की है कि पहले वे निश्चित कारण खोजे जाएँ जो वायु प्रदूषण को बढ़ने में सहायक होते हैं |

 

बनस्पति वैज्ञानिक :

जीव वैज्ञानिक :


                                                              

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अनुमान : वैज्ञानिकों के वक्तव्य लिंक सहित ! 2(इसका उपयोग कर लिया गया !)

13-7-24

mahamari