भूमिका लेटेस्ट

      महामारियों से संबंधित वैज्ञानिकअनुसंधानों की असफलता अब किसी से छिपी नहीं है कोरोना महामारी ने सारा दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है | अनुसंधानों के नाम पर कुछ क्षेत्रों में बहुत समर्पित भावना से अत्यंत समर्पण पूर्वक कार्य किया जाता है उन क्षेत्रों से अच्छे परिणाम भी मिलते हैं जो अवसर पड़ने पर देश और समाज के काम आते हैं |जनता के द्वारा टैक्स रूप में सरकारों को दिया गया धन जब ऐसे अनुसंधानों पर खर्च होता है तो जनता को भी लगता है कि हमारे पैसों का सरकारों ने सदुपयोग किया है | ऐसे अच्छे कार्यों से देशवासियों को भी लगता है कि उन्होंने ईमानदारी पूर्वक अच्छे काम करने एवं करवाने वाली सक्षम सरकारों को चुना है इसका उन्हें संतोष होता है |ऐसे अच्छे अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों एवं परिणाम पूर्ण अच्छे अनुसंधान करवाने वाले सरकारों में सम्मिलित नेताओं पर देशवासी पीडियों तक गर्व किया करते हैं | 
    वैज्ञानिक अनुसंधानों की दृष्टि से यदि चिंतन किया जाए तो कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जिनमें दिखाने और बताने के लिए तो बहुत कुछ होता है किंतु जरूरत पड़ने पर कुछ भी काम लायक नहीं होता है !उनसे संबंधित अनुसंधानों की आवश्यकता पड़ने पर संबंधित वैज्ञानिक थोड़े दिन तो अनुसंधान के नाम पर इधर उधर के काल्पनिक किस्से कहानियाँ सुनाया करते हैं यदि समस्या ज्यादा बढ़ती दिखाई पड़ती है तब हाथ खड़े कर दिया करते हैं | उससमय ये नहीं बताते कि ऐसी समस्या के संबंध में मैंने कभी कोई अनुसंधान किया ही नहीं है इसलिए इस बिषय में हमें कुछ पता नहीं है अपितु ऐसे समय प्रकृति को ही दोष देते देखे जाते हैं |जैसे -
      यदि मानसून संबंधी भविष्यवाणी गलत हो गई तो अपनी गलती मानने के बजाए वैज्ञानिक भाषा में मानसून को ही दोषी ठहरा दिया जाता है यथा -"मानसून चकमा दे गया" "मानसून समय पर नहीं पहुँचा !"
      यदि चक्रवात से संबंधित भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं उसका मतलब ये मान लिया जाता है कि वस्तुतः गलती वैज्ञानिकों से तो हो नहीं सकती है इसलिए गलती चक्रवातों से ही हुई होगी " चक्रवात चुपके चुपके से आ आने लगे हैं !" 
     यदि कोरोना जैसी महामारी के बिषय में  कुछ भी पता करने में असफल रहे हों तो "कोरोना स्वरूप बदल रहा है"!
    सर्दी गर्मी वर्षा वर्षा आदि कभी भी नाप तौलकर या एक निश्चित समय तक नहीं होती है किसी वर्ष कुछ कम तो किसी वर्ष कुछ अधिक होती है किसी वर्ष कुछ पहले तो किसी वर्ष कुछ बाद में शुरू या समाप्त होती है ऐसा हमेंशा से ही होता रहा है यही प्रकृति का स्वभाव है !आवश्यकता होती है इसका सही सही पूर्वानुमान लगाने की कि किस वर्ष किस ऋतु का प्रभाव कैसा रहेगा इसका सही पूर्वानुमान लगाने में असफल रहने को वैज्ञानिक भाषा में जलवायु परिवर्तन कहा जाता है -"जलवायु परिवर्तन हो रहा है "
     'जलवायु परिवर्तन' वैज्ञानिक क्षेत्र में बहुत काम आने वाला शब्द है इसके अंतर्गत प्रकृति में घटित होने वाली ऐसी सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ और महामारियाँ आदि आती हैं जिनके आने या जाने के बिषय में कोई पूर्वानुमान न लगाया जा सका हो या पूर्वानुमान लगाया भी गया हो तो वो गलत निकल गया हो उसके घटित होने का कारण भी समझ में न हो रहा हो ऐसी सभी घटनाओं को जलवायुपरिवर्तन नामक ब्लैकहोल में डाल दिया जाता है | 
      जिन घटनाओं के घटित होने का कारण "जलवायुपरिवर्तन" को बता दिया जाता है उसका मतलब होता है कि ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण खोज पाना वैज्ञानिकों के बश की बात नहीं है इसके साथ ही ऐसी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगा पाना वैज्ञानिकों के लिए संभव नहीं है | 
       'जलवायुपरिवर्तन' के बिषय में एक बात और अक्सर कही सुनी जाती है कि आज के दो तीन सौ वर्ष बाद ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ और अधिक घटित होंगी !बार बार भूकंप आएँगे कहीं भीषण सूखा बढ़ेगा तो कहीं भीषण  बाढ़ आएगी !बार बार भयंकर आँधी तूफ़ान घटित होंगे !तापमान बहुत अधिक बढ़ जाएगा !महामारियाँ बार बार घटित होंगी !धरती में दरारें पड़  जाएँगी | पानी समाप्त हो जाएगा आदि आदि इतनी डरावनी अफवाहें दो तीन सौ वर्ष आगे के बिषय में वही लोग फैला रहे होते हैं जिन्हें ऐसे बिषयों पर अनुसंधान करके उनसे जनता के बचाव करने के लिए या उनके बिषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए जिम्मेदारी सरकारों ने सौंपी होती है | आज के दो तीन सौ वर्ष बादबाद के बिषय में डरावनी भविष्यवाणियाँ वही लोग कर रहे होते हैं जो आजतक मौसम के बिषय में दीर्घावधि पूर्वानुमान सही सही नहीं बता सके हैं दो चार दिन पहले के मध्य्मावधि या अल्पावधि मौसम पूर्वानुमान नहीं पता लगा सके हैं वही आज के सौ दो सौ वर्ष पहले के बिषय की भविष्यवाणियाँ केवल इस भरोसे पर फ़ेंक रहे होते हैं कि तब तक हमें कौन रहना है और न ही उन्हें रहना है जिनके सामने फ़ेंक रहे होते हैं |
      अनुसंधानों के बिषय में इस प्रकार की भयंकर गैर जिम्मेदारी के कारण आज यह परिस्थिति पैदा हुई है कि कोरोना जैसी महामारी प्रारंभ कब हुई थी कहाँ हुई थी इसके पैदा होने का कारण क्या था इसके निश्चित लक्षण क्या हैं इसका विस्तार कितना है इसका प्रसार माध्यम क्या है इसकी अंतर्गम्यता  कितनी है इसका मौसम के साथ  संबंध क्या है !इस वायु प्रदूषण का  प्रभाव क्या पड़ता है इस पर तापमान के बढ़ने और घटने का प्रभाव क्या पड़ता है | संक्रमितों को क्या खाने से लाभ और क्या खाने से नुक्सान होता है !संक्रमितों को कैसे रहना चाहिए कैसे नहीं रहना चाहिए !इससे मुक्ति दिलाने की औषधि क्या हो सकती है !कोरोना महामारी से संक्रमितों की संख्या बिना किसी प्रयोग के अचानक बढ़ने और अचानक कम होने का कारण क्या है | महामारी का प्रकोप कब तक और रहेगा और कितनी जानें  अभी और जाएँगी !
      ऐसे आवश्यक बिषयों में कोई कुछ भी बताने को तैयार नहीं है किसी को कुछ पता ही नहीं है तो कोई बतावे क्या ?इसीलिए ऐसी महामारियों के घटित होने का कारण जलवायुपरिवर्तन  को बताया जाने लगा है और जिस भी प्राकृतिक घटना के घटित होने का कारण एक बार जलवायुपरिवर्तन को बता दिया जाता है उससे तीन बातें तुरंत स्पष्ट हो जाती हैं पहली यह कि इस प्राकृतिक घटना के घटित होने का कारण पता लगा पाना संभव नहीं है ! दूसरी बात यह कि ऐसी प्राकृतिक घटना के बिषय में पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं है और तीसरी यह कि आज के दो तीन सौ वर्ष बाद ऐसी घटनाएँ बार बार घटित होंगी | 
       इस प्रकार से वैज्ञानिकों के द्वारा जब अपनी परिस्थिति स्पष्ट कर ही दी गई है कि ऐसी महामारियों से जूझती जनता की अपने अनुसंधानों के बल पर वे कोई ऐसी मदद नहीं कर सकते हैं जिससे जनता का संकट कुछ कम हो सके ऐसी परिस्थिति में यह अब सरकारों  को सोचना है कि ऐसे अनुसंधानों पर खर्च करने के लिए वह टैक्स रूप में जनता से जो धन लेती है जिस  उद्देश्य की पूर्ति के लिए लेती है उस उद्देश्य  यदि वर्तमान वैज्ञानिक अनुसंधान व्यवस्था से संभव नहीं है तो उसे दूसरा और कौन सा ऐसा वैज्ञानिक विकल्प चुनना चाहिए !जिससे महामारियों के  समय धोखा दे जाने वाली वर्तमान वैज्ञानिक अनुसंधान व्यवस्था के सहारे न रहकर अपितु भविष्य के लिए किसी  दूसरे  ऐसे  मजबूत वैज्ञानिक अनुसंधान व्यवस्था के विकल्प पर बिचार करे जो भविष्य घटित होने वाली महामारियों के बिषय में आगे से आगे न केवल पूर्वानुमान उपलब्ध करा सकने में सक्षम हो अपितु महामारी के बिषय में यथा संभव अधिकतम जानकारी महामारी के आने से पहले उपलब्ध करवाई जा सके ताकि बचाव के लिए जनता उस प्रकार के आचरण अपना सके जिससे महामारी से प्रभावित होने की संभावना कम से कम हो एवं जो संक्रमित हो भी जाएँ उनके बचाव के लिए आगे से आगे ऐसी प्रभावी तैयारियॉँ करके रखीजा सकें जो महामारी जनित रोगों से जनता को मुक्ति दिलाने में सक्षम हों | 
                   महामारियों का पूर्वानुमान लगाने के बिषय में भी अब सोचना शुरू किया जा रहा है !
     किसी संकट के बिषय में पूर्वानुमान पता लग जाने से उससे बचाव के बिषय में सोचने का समय मिल जाता है !महामारी के बिषय में भी यदि पूर्वानुमान लगाया जा सका होता तो संभव है कि महामारी से इतना अधिक नुक्सान नहीं होता |     
      बताया जाता है कि लंदन में पूर्वानुमान लगाने की एक ऐसी पद्धति विकसित की जा रही है जिसके आधार पर पूर्वानुमान लगाया जाएगा -"निकट भविष्य में कौन बेघर हो सकता है।""कौन-से विद्यार्थी पढ़ाई बीच में छोड़ सकते हैं।" मशीन-लर्निंग पूर्वानुमानों का मतलब यह होगा कि सरकारी सेवाएं जरूरत पैदा होने से पहले ही मदद के लिए पहुंच जाएंगी और वे लक्ष्य की ओर बेहतर ढंग से केंद्रित होंगी। जजों को जमानत के फैसले लेने में मदद करने वाली गणना-पद्धति विकसित करने में लगे रिसर्चरों का दावा है कि वह किसी के फिर अपराधी बनने की आशंका का इतना सटीकता से अनुमान लगाएगी कि जज आज जितने अपराधियों को जमानत देकर भी अपराध की दर 20 फीसदी कम रख पाएंगे। उनका कहना है कि पूरे अमेरिका में अपराध दर में इतनी ही कमी लानी हो तो कितने अतिरिक्त पुलिस अधिकारी नियुक्त करने होंगे।ऐसी बातों का पूर्वानुमान लगाने के बिषय में तो सोचा जा रहा है किंतु न जाने क्यों  महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की ओर किसी का ध्यान क्यों नहीं  जाता है | 
      भारत के आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के सौरभ ने कोरोना जैसी महामारियों से संबंधित विभिन्न  परिस्थितियों पर अपने हिसाब से पूर्वानुमान प्रक्रिया को प्रस्तुत किया है -" कोरोना महामारी ने तकनीकी दुनिया में अत्यधिक डेटा जेनेरेट किया है जिसको डेटा एनालिटिक्स की मदद से इनफार्मेशन में तब्दील किया गया है। इसका उपयोग भविष्य में कोरोना और उसके समान अन्य संक्रामक महामारी के पैटर्न, मूवमेंट और हॉटस्पॉट को समझने में मददगार साबित होगा | इससे वायरस के फैलाव और कंट्रोल को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।संक्रमित व्यक्ति के ट्रेवल हिस्ट्री के डेटा से नए कोविड हॉटस्पॉट्स का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है जिसके जरिए इससे बचाव की पूर्व तैयारी करने में मदद मिल सकती है। "
लंदन, वैज्ञानिकों ने लॉकडाउन में छूट दिये जाने के बाद विभिन्न देशों में कोविड-19 महामारी के फैलने की तीव्रता का अनुमान लगाने के लिये मौसम पूर्वानुमान तकनीक का उपयोग किया है। साथ ही, उन्होंने वायरस के प्रसार की रोकथाम के लिये किये गये उपायों की कारगरता का भी आकलन किया। ब्रिटेन स्थिति रीडिंग विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञानियों सहित एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने डेटा सम्मिलन तकनीक का उपयोग किया। इस तकनीक के तहत सूचना के विभिन्न स्रोतों को शामिल किया गया, ताकि आने वाले समय में उभरने वाली स्थिति का पता चल सके।

Read more at: https://yourstory.com/hindi/scientists-use-weather-forecasting-technique-coronavirus-spread
लंदन, वैज्ञानिकों ने लॉकडाउन में छूट दिये जाने के बाद विभिन्न देशों में कोविड-19 महामारी के फैलने की तीव्रता का अनुमान लगाने के लिये मौसम पूर्वानुमान तकनीक का उपयोग किया है। साथ ही, उन्होंने वायरस के प्रसार की रोकथाम के लिये किये गये उपायों की कारगरता का भी आकलन किया। ब्रिटेन स्थिति रीडिंग विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञानियों सहित एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने डेटा सम्मिलन तकनीक का उपयोग किया। इस तकनीक के तहत सूचना के विभिन्न स्रोतों को शामिल किया गया, ताकि आने वाले समय में उभरने वाली स्थिति का पता चल सके।

Read more at: https://yourstory.com/hindi/scientists-use-weather-forecasting-technique-coronavirus-spread
     ब्रिटेन स्थित ' यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग' के मौसम वैज्ञानिकों सहित एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने डेटा सम्मिलित  तकनीक का उपयोग किया है इस तकनीक के तहत सूचना के विभिन्न स्रोतों को सम्मिलित किया गया है ताकि महामारी के बिषय में भविष्य में आने वाली स्थिति का पूर्वानुमान लगाया जा सके | 'जर्नल फाउंडेशन आफ डेटा साइंसेज' को सौंपे एक अध्ययन में ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने कोरोना महामारी के फैलने कीतीव्रता का पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसम पूर्वानुमान तकनीक का उपयोग किया गया है | 

     बताया जाता है कि भारतीय पृथ्वीविज्ञान मंत्रालय के द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली (Early Health Warning System) विकसित की जा रही है, जिससे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।गौरतलब है कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) को भी इस विशिष्ट प्रणाली की विकास अध्ययन प्रक्रिया में शामिल किया गया है | 

     इसे महामारी की दिशा में देर से उठाया गया यह एक सही कदम हो सकता है क्योंकि मौसम संबंधी बदलावों का प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है!इसीप्रकार से महामारियों को जन्म देने की प्रक्रिया में मौसमसंबंधी बड़े बदलावों की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है | इसलिए भारत मौसम विज्ञान विभाग के साथ मिल कर किए जाने वाले संयुक्त अध्ययनों से महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान लगाना आसान हो सकता है किंतु महामारियों के बिषय में लगाए गए पूर्वानुमान उतने ही सही एवं सटीक घटित होंगे जितने मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने की नी कि इसके लिए आवश्यक है कि
 नाड़ी दोषस्तु 



 
 
  वैज्ञानिकों को भी अब इस बात का एहसास हो गया है कि कोरोना महामारी के बिषय में यदि समय रहते पूर्वानुमान लगाया जा सका होता तो संभव है कि महामारी के दुष्प्रभाव को कुछ कम किया जा सका होता | इससे बचाव के लिए जनता को उचित आहार बिहार ब्यवहार रहन  सहन आदि के बिषय में सही दिशा के कुछ उचित प्रभावी उपाय बताए जा सके जिससे संक्रमण बढ़ने की गति बहुत धीमी एवं संक्रमितों की संख्या बहुत कम होती | कुलमिलाकर जिस किसी भी प्रकार से महामारी के प्रकोप के बिषय में समय से पूर्व यदि पूर्वानुमान लगाया जा सका होता उससे कोरोना के बिषय में अधिक से अधिक जानकारी जुटाई जा सकी होती तो संभव है कि कोरोना महामारी का इतना भयंकर संक्रमण देखने की शायद नौबत ही नहीं आती | 
     पिछले चार सौ वर्षों में से महामारी लगभग हर सौ वर्ष में अपने समय से आ जाती है महामारी पहली बात तो आना नहीं भूलती है दूसरी बड़ी बात यह है कि अपने समय से आना नहीं भूलती है | सौ वर्ष जैसे ही पूरे होने वाले होते हैं वैसे ही आ जाती है और उपद्रव मचाने लगती हैं जिनमें भारी संख्या में लोग संक्रमित होते हैं और बड़ी संख्या में लोग मारे भी जाते हैं महामारियों के प्रकोप से सारा समाज अस्त व्यस्त हो जाता है चारों ओर त्राहि त्राहि मच जाती है | 
     इसमें ध्यान देने वाली विशेष बात यह है कि पिछले कुछ सौ वर्षों से महामारियाँ हर सदी में आती हैं अपने निश्चित समय से आती हैं ऐसा होते पिछले कुछ सौ वर्षों से देखा भी जा रहा था किंतु उनसे निपटने की कोई तैयारी नहीं की गई ये सबसे दुखद है | यदि ऐसा भी सोचा जाए कि कोरोना महामारी सन 2019 में न भी आती तो भी तैयारियाँ ब्यर्थ नहीं जातीं उनका उपयोग कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो होता ही रहता | 
    वैसे भी कोई अनुसंधान हों या न हों किंतु अनुसंधानों पर जनता का जो धन लगना होता है वो तो लगा ही करता है ऐसी परिस्थिति में अनुसंधानों पर देश वासियों के पैसे भी पूरे लगें और उन अनुसंधानों की आवश्यकता होने पर वे काम भी न आवें ऐसे वैज्ञानिकअनुसंधानों से जनता क्या आशा उम्मींद रखे !जो आवश्यकता पड़ने पर धोखा दे जाते हैं |ऐसे वैज्ञानिकअनुसंधानोंके संचालन का औचित्य ही क्या बचता है | 
     महामारी यदि 2020 में न भी आती तो भी यह कैसे सोच लिया गया कि महामारियाँ अब कभी आएँगी ही नहीं ! यदि ये नहीं सोचा गया तो महामारी का सामना करने लायक कोई ऐसी तैयारी ही नहीं की गई जो महामारी से अकेली जूझती जनता को किसी भी प्रकार से कुछ मदद तो पहुँचा पाती !ये लापरवाही वैज्ञानिक जगत से हुई है जिसका दंड सारा समाज भुगत रहा है | 
      महामारी के बिषय में सरकारों से भी बड़ी लापरवाही यह हुई है कि उनका भी इधर ध्यान ही नहीं गया !पिछले कुछ सौ वर्षों से महामारियाँ हर सदी में आते देखी जा रही हैं और अपने निश्चित समय से आ रही हैं | इस हिसाब से शायद 2019-20 में फिर कोई महामारी आ रही हो !इस आशंका से ही सही महामारी से निपटने की कुछ तैयारी तो की गई होती किंतु कुछ भी नहीं की गई ये सबसे ज्यादा दुखद है |सरकारों को टैक्स देने वाली जनता से यदि थोड़ी भी चूक हो जाए तो सरकार तुरंत न केवल नोटिश भेज देती है अपितु उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान कर देती है |जनता से टैक्स वसूलने में तो सरकारों के द्वारा ऐसी शक्ति बरती जाती है दूसरी ओर उस टैक्स से प्राप्त धन जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों पर खर्च किया जाता है उनकी भी तो जनता के ऐसी महामारियों के बिषय में कोई जवाबदेही तो होनी चाहिए जो दिखाई नहीं पड़ रही है | यह चिंता की बात है |

 महामारियों का पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया में मौसमवैज्ञानिकों को भी सम्मिलित किया जाएगा !

                






     अनुसंधानों के नाम पर जहाँ जैसा काम होता है वहाँ वैसे परिणाम दिखते हैं कुछ क्षेत्रों में बहुत कुछ समर्पित भावना से समर्पण पूर्वक कार्य किया जाता है उन क्षेत्रों उसके परिणाम भी वैसे ही दिखते हैं परिणाम देने वाले देशवासी अपनी सरकारों की
     कोरोना महामारी के बिषय में वैज्ञानिकअनुसंधानों के नाम पर शुरू में दावे तो बड़े बड़े किए गए किंतु जैसे जैसे संक्रमण काल बढ़ता गया वैसे वैसे सारे दावे ध्वस्त होते चले गए और अंत में उन्होंने ने भी हाथ खड़े कर दिए जो जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों के बल पर कहते सुने जाते रहे थे कि "कोरोना को हराना है" "कोरोना को पराजित करना है |"कोरोना पर बिजय पाना है !" "कुछ लोग कोरोना योद्धा भी बन गए या बना दिए गए !" ये सब ठीक था किंतु सबसे बड़ी बात यह थी जिन्हें कोरोना योद्धा कहा गया उनके द्वारा कोरोना का मुकाबला किया जाना संभव ही नहीं था !क्योंकि उनके पास कोरोना से लड़ने लायक कोई अस्त्र शास्त्र ही नहीं थे जिससे वे कोरोना के सम्मुख टिक कर अपनी सुरक्षा ही कर पाते !इसीलिए कई ऐसे निष्ठावान समाज के प्रति समर्पित कर्तव्य परायणलोगों को अपने बहुमूल्य जीवन  से धोना पड़ा है | क्योंकि कोरोना योद्धाओं को न तो कोरोना के बिषय में कुछ पता था और न ही कोरोना से मुक्ति दिलाने में सक्षम किसी औषधि के बारे में ही कोई जानकारी थी|इतना अवश्य था कि जो हथियारविहीन कोरोना योद्धा अपनी जान जोखिम में डालकर उस भयावह संक्रमणकाल में अस्पतालों में जिस निष्ठा के साथ कर्तव्य पालन में लगे हुए थे ये उनका और उनके परिवार के आत्मीय स्वजनों का जनहित में बहुत बड़ा बलिदान था जिसके लिए उनका समाज हमेंशा ऋणी रहेगा | 
      वैज्ञानिक अनुसंधानों की तो ऐसी स्थिति रही कि जैसे किसी सामूहिकभोज की तैयारियों में बहुत धन लगाकर बहुत बड़ा इंतिजाम किया गया हो !भोजन बनाने के लिए कई दिन पहले रसोइये लगा दिए गए हों वे भोजन बनाने में लगे दिखते भी रहें किंतु जब भोजन के लिए जनसमूह लाइनों में बैठ गया हो उस समय पता लगे कि कचौड़ियाँ गायब हैं अर्थात पूड़ी कचौड़ी बनी ही नहीं क्योंकि रसोइयों में पूड़ी कचौड़ी बनाने की योग्यता नहीं थी !वैसे तो वे बड़े बड़े रसोइए थे किंतु वास्तविकता पता तब चली जब उनकी सेवाओं की आवश्यकता पड़ी अन्यथा पता भी नहीं चलता | 
     उन रसोइयों की तरह की ही स्थिति उन अनुसंधानकर्ताओं की थी जो महामारियों के बिषय में हमेंशा अनुसंधान करते देखे सुने जाते हैं उनके तामझाम पर हमेंशा भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है जो जनता के द्वारा दिए गए टैक्स के पैसों से सरकारें ऐसे अनुसंधानों पर खर्च किया करती हैं उसके पीछे जनता का अपना भी स्वार्थ होता है कि जब जब महामारी जैसी कोई बड़ी आपदा आएगी तो यही अनुसंधान हमारे काम आएँगे किंतु दुर्भाग्य से कोरोना महामारी के समय में जनता को जब उन अनुसंधानों की सबसे अधिक आवश्यकता पड़ी तब थोड़े बहुत दिन तो इधर उधर की बातें कर के पार कर लिए गए किंतु जैसे जैसे कोरोना संक्रमण आगे खिंचता  गया वैसे वैसे महामारी से संबंधित हमेंशा चलने वाले अनुसंधानों की पोल खुलती चली गई !आम आदमी को यह आसानी से पता चलता चला गया कि महामारी के बिषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था | कोरोना महामारी आने के बिषय में न  पूर्वानुमान पता था और न ही यह पता था कि यह महामारी समाप्त कब होगी न  निश्चित लक्षण पता थे और न ही प्रसार माध्यम पता था न बचावके कोई वैज्ञानिक संक्रमण का 
 
महामारी के बिषय में से बचाव के लिए अनुसंधानों से बदले में ऐसे अनुसंधानों से जनता के उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए कोरोना महामारी को
 

 
उनसे जनता को कितना लाभ पहुँचाया जा सका !महामारी से पीड़ित जनता को वैज्ञानिकअनुसंधानों से क्या ऐसी कोई मदद मिल सकी जिससे जनता संक्रमित नहीं होने पायी और उसका बचाव हो गया !अथवा कोरोना संक्रमितों को वैज्ञानिकअनुसंधानों से क्या कोई ऐसी मदद पहुँचाई जा सकी  जिसकी  संक्रमित रोगियों को मुक्ति दिलाने में कोई तर्कसंगत स्पष्ट एवं पारदर्शी भूमिका रही हो |वैज्ञानिकों के दावों से अलग वैज्ञानिकअनुसंधानों से क्या जनता को ऐसा कोई लाभ मिल सका जो उन अनुसंधानों के बिना संभव न था !वैज्ञानिकलोग विश्वासपूर्वक क्या ऐसा कुछ कहने की स्थिति में हैं कि महामारियों के बिषय में यदि हम लोगों के द्वारा अनुसंधान न किए होते तो इससे भी अधिक लोग संक्रमित हो सकते थे या मृत्यु को प्राप्त हो सकते थे | यदि नहीं तो क्यों ?
    क्या इतनी बड़ी महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाने से लेकर उसे ठीक ठीक समझने में उससे बचाव के उपाय खोजने में या संक्रमितों को संक्रमण से  मुक्ति दिलाने में जिन वैज्ञानिकअनुसंधानों की कोई भूमिका ही न रही हो ऐसे अनुसंधानों से उस जनता को क्या मिला जो ऐसे ही कठिन समयों में मदद पाने के लिए ऐसे वैज्ञानिकअनुसंधानों पर हमेंशा धन खर्च किया करती है| 
    इसी प्रकार से जो सरकार जनता से टैक्स रूप में लिया धन ऐसे वैज्ञानिकअनुसंधानों पर इस उद्देश्य से खर्च किया करती है वह सरकार उस धन के बदले में वैज्ञानिकों से जनता को ऐसा क्या दिला पाई जिससे महामारी के इस दुखद समय में जनता को कम से कम कुछ ही मदद तो मिल सकी हो | 
   महामारी के इस कठिन समय में सरकार एक ओर तो अपने उन्हीं वैज्ञानिकों से जनता की मदद की दृष्टि से कुछ निकलवा नहीं पायी और दूसरा उन्हीं से सलाह ले लेकर लॉकडाउन मॉस्कधारण दोगज दूरी जैसी बातें मानने के लिए न केवल बाध्य करती रही अपितु  उन तथाकथित उपायों को न मानने पर अर्थदंड(जुर्माना)भी  लगाती रही | 
     कुल मिलाकर चारों ओर से जनता को ही प्रताड़ित किया जाता है !पहली बात सरकार जनता से टैक्स के नाम पर धन लेकर जिस उद्देश्य से महामारी संबंधित अनुसंधानों पर खर्च करती रही वो सारा का सारा जनता का धन इसलिए बेकार चला गया क्योंकि इतने लंबे समय तक महामारी से संबंधित चलाए जाते रहे अनुसंधानों के नाम पर जो कुछ भी किया जाता रहा हो वो तो वैज्ञानिक और सरकार जानते होंगे जनता को तो केवल इतना पता है कि उन अनुसंधानों से ऐसा कोई ज्ञानसूत्र नहीं उपलब्ध करवाया जा सका जिससे महामारी आने के बिषय में सही सही पूर्वानुमान लगाया जा सका हो या यही बताया जा सका हो कि यह महामारी समाप्त आखिर कब होगी | महामारी के  प्रारंभ होने का पूर्वानुमान तो लगाया ही नहीं जा सका और महामारी के समाप्त होने के बिषय में जितने भी पूर्वानुमान बताए जाते रहे वे सब के सब गलत निकलते चले गए | कोरोना पैदा कहाँ हुआ कब हुआ कैसे हुआ ये हवा में है कि नहीं ?इस महामारी का मौसम से कोई संबंध है या नहीं ?वायुप्रदूषण एवं तापमान बढ़ने और घटने का इस महामारी के संक्रमण पर क्या प्रभाव पड़ता है |वैज्ञानिकों के द्वारा कोरोनासंक्रमण गर्मी में घटने और सर्दी की ऋतु में बढ़ने का अनुमान लगाया गया था वो पूरी तरह गलत निकल गया |ऐसी और भी बहुत सारी बातें वैज्ञानिकों ने कोरोना महामारी के बिषय में कहीं जो गलत निकल जाती रहीं | जनता देखती रह गई उसे भी लगता कि क्या इन्हीं झूठे अनुसंधानों के बलपर सरकारें कोरोना जैसी इतनी भयंकर महामारी पर बिजय प्राप्त कर लेने की बातें करती रही है !इन अनुसंधानों में तो कुछ है ही नहीं ये तो जो जो कुछ बोल रहे हैं वही गलत निकलता जा रहा  है | 
      ऐसी परिस्थिति में जनता को सरकारों के द्वारा लगाए गए लॉकडाउन आदि कोविडनियमों पर भी संशय होने लगा कि सरकारों के द्वारा जो लॉकडाउन,मॉस्कधारण एवं दो गज दूरी जैसे जो भी उपाय बचावकृत्य के रूप में जनता पर थोपे गए वे क्या ऐसे ही गलत निकलते रहने वाले वैज्ञानिकअनुसंधान कर्ताओं के अनुभवों के आधार पर ही लगाए गए थे | 
     भारतवर्ष की जनता कोविडनियमों को अपने अनुभव की कसौटी पर कसने लगी कि 18 सितंबर 2020 से जनवरी 2021 तक कोरोना संक्रमण दिनोंदिन क्रमशः समाप्त होता चला जा रहा था !क्या इस समय सरकार के द्वारा लॉकडाउन लगा दिया गया था ? या इस बीच सभी लोगों ने अपने अपने घरों से बिना मॉस्क पहने निकलना बिल्कुल बंद ही कर दिया था |क्या इस बीच सभी लोगों ने दोगज दूरी वाले कोविड नियम का कड़ाई से पालन करना प्रारंभ कर दिया था  या सभी लोग पृथकवास का पालन करने लग गए थे अथवा वैज्ञानिकों के द्वारा कोई औषधि वैक्सीन आदि बनाकर जनता पर उसका प्रयोग किया जाने लगा था उसके प्रभाव से कोरोना संक्रमण अचानक कम होने लगा था | आखिर उस समय कोरोना संक्रमितों की संख्या दिनों दिन कम होती जा रही थी उसका वैज्ञानिक कारण क्या था ?
      यदि कोविडनियमों का पालन इतना ही आवश्यक था कि उनका पालन न करने से कोरोना संक्रमण बढ़ जाने का खतरा था तो दिल्ली मुंबई सूरत आदि से पलायन करने वाले श्रमिकों से या उनमें कोरोना संक्रमण न बढ़ने का वैज्ञानिक कारण क्या था ? वे तो चाहकर भी कोविड नियमों का पालन करने  स्थिति  थे !जहाँ जिसने जैसे हाथों से जो कुछ भी दिया वो उसी तरह बिना धुले हाथों से ले कर खा लेना उनकी मज़बूरी थी बच्चे बूढ़े बीमार एवं आसन्न प्रसवा या प्रसूताएँ एवं रास्ते में उन्हीं संक्रमण संभावित परिस्थितियों में बच्चों को जन्म देने वाली महिलाएँ जब की संक्रमित होने का खतरा उन्हें एवं उनके बच्चे को ऐसी अवस्था में बहुत होता है किंतु ऐसे सभी लोगों को संक्रमित न होने का वैज्ञानिक कारण क्या था ?
       घनी बस्तियों में अत्यंत छोटे घरों में अधिक पारिवारिक सदस्यों के साथ रहने वालों के लिए कोविड नियमों का पालन कर पाना संभव न था !राशन एवं भोजन लेने की लाइनों में लगे बच्चे बूढ़ों के द्वारा तथा शहरों में सब्जी बेचने वालों के द्वारा कोविड नियमों का पालन बिल्कुल नहीं किया जा रहा था किंतु वे प्रायः संक्रमित नहीं हुए |
      कोरोना महामारी जब से प्रारंभ हुई थी तभी से कुछ संपन्न लोगों ने अपने अपने घरों में एकांतबास करना प्रारंभ कर दिया था किसी से मिलना जुलना बिल्कुल बंद था सब्जी फल आदि गर्म पानी से धोकर खाए जाते थे इसके बाद भी उनमें से बहुत लोगों को कोरोना महामारी से संक्रमित होते देखा गया !जबकि उनके यहाँ जो अखवार सब्जी फल दूध आदि सभी सामानों को पहुँचाया करते थे कोविडनियमों का पालन न करने के बाद भी उनमें कोरोना संक्रमण होते नहीं देखा गया | इसका वैज्ञानिक कारण क्या था ?
      18 सितंबर 2020 से जनवरी 2021 तक कोरोना संक्रमण दिनोंदिन समाप्त होता चला जा रहा था लोग जैसे पहले रहते आ रहे थे वैसे ही उस समय भी रह रहे थे उसी समय वैक्सीन लगाना प्रारंभ करने के अतिरिक्त दूसरा ऐसा और क्या किया गया किया गया था जिसके कारण तुरंत बाद से ही  कोरोना संक्रमितों की संख्या अचानक तेजी से बढ़ने लग गई थी इसका वैज्ञानिक कारण क्या था !महाराष्ट्र आदि जिन जिन प्रदेशों में वैक्सीन लगाने में जितनी अधिक सतर्कता बरती गई उन प्रदेशों में उतनी अधिक तेजी से संक्रमण बढ़ते देखा गया !भारत में ही नहीं अपितु ब्रिटेन में भी 8 दिसंबर 2020 को वैक्सीन लगाना प्रारंभ किया गया 14 दिसंबर से कोरोना संक्रमण वहाँ भी बढ़ना प्रारंभ हो गया था |कुछ अन्य देशों में भी ऐसा होते सुना गया था | 
      ऐसी परिस्थिति में कोरोना जैसी महामारियों पर एवं उनके लिए बनाई जाने वाली वैक्सीनों के बिषय में लगातार अनुसंधान करने वालों की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर तर्कपूर्ण ढंग से इस शंका का समाधान करने के लिए सामने आएँ कि वैक्सीन लगने के तुरंत बाद कोरोनामहमारी का संक्रमण इतनी तेजी से बढ़ने का कारण यदि वैक्सीन नहीं तो और क्या था ?
     वैज्ञानिकों के द्वारा संक्रमण बढ़ने का कारण जहाँ तक कोविडनियमों का पालन न होना बताया जा रहा है वह तर्कसंगत इसलिए नहीं जान पड़ता है क्योंकि कोविडनियमों का पालन तो अक्टूबर 2020 से ही नहीं होते देखा जा रहा था | उसमें भी धन तेरस और दीपावली बाजारों में तो कोरोना नियमों की जमकर धज्जियाँ उड़ते देखी गईं !बहुत समय के बाद बाजारों में इतनी भयंकर भीड़ बढ़ते देखी गई थी महानगरों में तो साप्ताहिक बाजार भी खोल दिए गए थे | इसके बाद तो कोरोना नयमों  पालन कड़ाई से होते कहीं नहीं देखा गया था | गाँवों में तो पहले से ही नहीं हो रहा था | इसी बीच बिहार विधानसभा चुनाव 2020 हुए चुनावी प्रचार प्रसार में नेताओं ने जम कर रैलियाँ कीं जिनमें भारी भीड़ें उमड़ीं ! 28अक्टूबर, 3नवंबर व 7 नवंबर को क्रमशः71,94व 78 सीटों के लिए मतदान हुए और10नवंबर 2020 को चुनावी परिणाम घोषित हुए !ऐसा ही तमिलनाडु असम पश्चिम बंगाल आदि के बिधान सभा चुनावों में हुआ | विजय का जश्न  जम कर मनाया गया !दिल्लीबॉर्डर पर किसानों का आंदोलन चलता रहा !हरिद्वार में कुंभ लगा जिसमें केवल 12 अप्रैल को ही एक साथ 31 लाख लोगों ने महाकुंभ में एक साथ डुबकी लगाई थी | ऐसे सभी स्थानों या आयोजन संबंधी संपूर्णप्रक्रिया में कोविडनियमों का पालन दूर दूर तक होते नहीं देखा गया |ऐसा भी नहीं हुआ कि जिन जिन स्थानों पर ऐसी बड़ी लापरवाहियाँ हुई हैं वहाँ उन आयोजनों में सम्मिलित के शरीरों में कोरोना संक्रमण का कोई विशेष अधिक प्रभाव देखने को मिला हो |  

     ऐसी परिस्थिति में जब जब कोरोना संक्रमण घटने लगे तब तब संक्रमण घटने का कारण कोविडनियमों के कड़ाई से पालन को बता दिया जाए और जब जब कोरोना संक्रमण बढ़ने लगे तब तब कोविडनियमों के कड़ाई से पालन न करने को कारण बता दिया जाए | कुलमिलाकर घूम फिर के अब तो कोरोना महामारी से संबंधित संक्रमण बढ़ने और घटने का कारण कोविडनियमों का पालन होना और न होना मान लिया गया है !ये वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धति नहीं हो सकती है | इसके अतिरिक्त और कोई अनुसंधान करने वालों के पास बताने के लिए ऐसे मजबूत कारण नहीं हैं जो घटनाओं के साथ जोड़कर देखने में तर्क की कसौटी पर खरे उतरने लायक हों !जिनकी सच्चाई पर जनता को कुछ थोड़ा बहुत विश्वास भी हो सके |

     ऐसी परिस्थिति में कोरोना महामारी से अधिक नुक्सान कोविडनियमों का पालन करने और न करने के चक्कर में जनता भुगत चुकी है!लॉकडाउन का पालन करे तो रोजी रोजगार बंद होता है और न कर तो सरकार कड़ाई करती है और पालन करे तो व्यापार परिवार सब कुछ  कड़ाई में आ जाता है | पालन भी करे तो ऐसी कोई गारंटी तो है नहीं कि महामारी का प्रकोप कम करने की दृष्टि से इसका प्रभाव कुछ पड़ेगा ही !ये तो बैश एक उस तरह की बात है कि कोविड  नियमों का पालन करने से सरकार इसलिए खुश हो जाएगी कि वह अपनी बात मनवाने में सफल हुई वैज्ञानिक इस बात के लिए खुश हो सकते हैं उनकी हलकी फुल्की बातों पर भी जनता अभी भी इतना बड़ा विश्वास करती है | 

          कुलमिलाकर जनता यदि अपनी सरकारों से जानना चाहे कि कोविडनियम यदि प्रभावी नहीं थे विज्ञान सम्मत नहीं थे उनका पालन आवश्यक नहीं था उनके पालन से जनता को कोई लाभ नहीं था तो उनका पालन  जरूरी क्यों था उन्हें मानने के लिए जनता को बाध्य क्यों किया गया उन्हें इस प्रकार से क्यों लागू किया गया जैसे ऐसा होते ही कोरोना संक्रमण अचानक रुक जाएगा !यदि ऐसे कोविड नियमों से कोरोना संक्रमण समाप्त होने की संभावना थी तो समाप्त हुआ क्यों नहीं !यदि आज जानकारी किसी वैज्ञानिक अनुसंधान पर आधारित थी तो एक बार कड़ाई करके एक ही बार में इसे समाप्त क्यों नहीं किया गया एक वर्ष तक ख़ींचा क्यों गया |दूसरी बात जब जब ज्यादा कोविद नियमों को अपनाया गया तब तब उसका उस प्रकार का स्पष्ट प्रभाव दिखाई क्यों नहीं पड़ा !ऐसी परिस्थिति में यदि इसका कोई प्रभाव नहीं था तो कुछ करते दिखने के लिए इतनी बड़ी समस्या खड़ी करने की आवश्यकता क्या थी !

      वैज्ञानिक अनुसंधान लगातार होते रहने के बाद भी अनुसंधानों से जो जानकारी मिलनी चाहिए वो नहीं मिल पा  रही है और  किसी बिषय की निश्चित जानकारी न होने के कारण महामारी के बिषय में वैज्ञानिकों को जो समझ में आता है वो वैज्ञानिक बोल देते हैं उसमें से सरकारों को जितना कुछ समझ में आता है वो सरकारें कहने और करने लगती हैं !उसमें से जनता को जितना सच्चाई लगती है और जितना सुविधा जनक लगता है उतना जनता करने लगती है ऐसी परिस्थिति में सरकारें और वैज्ञानिक अपने अपने कर्तव्यों का ठीक ठीक निर्वहन नहीं कर पाए इसके लिए उन पर कोई जुर्माना क्यों नहीं और उनके द्वारा कही गई आधी अधूरी निराधार बातों को जनता न माने तो जनता पर जुर्माना !आखिर सरकारें अपने अनुसंधानों को इतना दृढ और विश्वसनीय क्यों नहीं बनाती हैं कि जनता से बार बार कुछ कहना ही न पड़े !उसे भी उस प्रकार के संयम के कुछ परिणाम दिखाई पड़ेंगे तो जनता स्वयं ही मान लेगी | 

  वैज्ञानिक अनुसंधानों के अभाव में  सभी प्राकृतिक समस्याओं के लिए जनता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है | ऐसा करने की सरकारों की आदत सी पड़ गई है जनता टैक्स रूप में सरकारों को धन देकर ऐसे जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों का खर्च वहन करती है महामारी जैसे इतने कठिन समय में वे अपने इतने लंबे समय तक किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों से मदद तो कोई कर नहीं पाते हैं ऊपर से जनता को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं | ऐसे अनुसंधानों से मदद मिलनी संभव ही कैसे हो सकती है | 

     महामारी में होने वाले महारोग के बिषय में कोई भी जानकारी वैज्ञानिकों के द्वारा दी नहीं जा सकी और न ही किसी प्रभावी औषधि को निर्माण किया जा सका !कोविड  नियमों के नाम पर जो मॉस्क लगाने आदि की बातें की भी जाती हैं उनका प्रभाव प्रमाणित होना अभी तक बाक़ी है फिर इतने विश्वास से ये कहना गलत है कि जनता लॉक डाउन मॉस्कधारण जैसे कोविड नियमों का पालन नहीं कर रही है इस लिए कोरोना संक्रमण बढ़ता जा रहा है | 

--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

    यहाँ तक कि महामारी से मुक्ति दिलाने वाली औषधि निर्माण तक के दावे तो  कर दिए गए किंतु औषधि निर्माण करने वालों को भी अंत तक यह पता नहीं चल पाया कि महामारी का प्रारंभ कब कहाँ कैसे हुआ था इसका प्रसार माध्यम क्या है विस्तार कितना है अंतरगम्यता कितनी है इसके स्थाई लक्षण क्या हैं ?महामारी पर मौसम का क्या असर पड़ता है तापमान का क्या असर पड़ता है वायुप्रदूषण से महामारी कितनी प्रभावित होती है |ऐसे आवश्यक बिषयों में  जिन्हें कुछ भी पता ही नहीं था वे भी कहते घूम रहे थे कि मैंने दवा बना ली | चिकित्सा शास्त्र के अनुशार आपको जिस महामारी के बिषय में कुछ भी पता ही न हो उससे मुक्ति दिलाने के लिए औषधि बनाना या चिकित्सा कर पाना कैसे संभव है | ऐसे लोगों पर जब सामाजिक दबाव ज्यादा पड़ा तो ऐसे चालाक लोग जिन पदार्थों को पहले कोरोना महामारी की औषधि कहकर बेच रहे थे बाद में उन्हीं पदार्थों को इम्यूनिटीबूस्टर कह कर बेचा जाने लगा |भयवश लोग खरीदते खाते रहे ! 

    महामारी से बचाव के लिए सावधानियाँ बरतने के नाम पर न जाने कैसी कैसी अफवाहें फैलाई जाती रहीं |उपायों के नाम पर जो जो कुछ बताया गया उनका आधार कोई वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं थे | उपायों के नाम पर कुछ तो करना ही था आखिर इतनी बड़ी महामारी से अपनी जनता को जूझती देखकर भी सरकारें हाथ पर हाथ रखे तो नहीं ही बैठी रह सकती थीं |यही मजबूरी चिकित्सकों की थी महामारी से उत्पन्न इतने बड़े संकट में उनका मौन रहना तो बनता भी नहीं था इसलिए बोलने के लिए बाध्य किए जाने पर कुछ न कुछ उन्हें भी बोलना ही पड़ता था और उनके द्वारा जो कुछ भी बोला जाता था उन सारी बातें विज्ञान सम्मत ही होंगी ऐसा समझने की भूल नहीं की जानी चाहिए | 

       सच्चाई तो यही है कि महामारियों का सामना करने लायक वैज्ञानिक तैयारियाँ वर्तमान विश्व के पास नहीं है जबकि अनुसंधान हमेंशा चला करते हैं आखिर उन अनुसंधानों में आज तक खोजा क्या गया उन्हीं को पता होगा जिन्होंने खोजा  होगा !उस खोज से इतनी बड़ी महामारी में जनता को तो कोई लाभ मिला नहीं | 
     महामारी से निपटने की कोई वैज्ञानिक तैयारियाँ न होने के कारण ही तो जब जब संक्रमण बढ़ता था तब तब टेस्टिंगबढ़ाने ,लॉकडाउन लगाने ,मॉस्क लगवाने एवं दो गजदूरी का पालन करवाने पर ऐसे जोर दिया जाने लगता था जैसे किसी वैज्ञानिक अनुसंधान से यह प्रमाणित रूप से पता लग चुका हो कि कोरोना महामारी को समाप्त करने की एक मात्र यही औषधि है |कुछ लोगों को तो अभी तक संशय बना हुआ है कि लॉकडाउन लगाना आवश्यक था भी कि नहीं !उन्हें ऐसा लगता है कि कोरोना महामारी से उतना नुक्सान नहीं हुआ है जितना लॉकडाउन लगाने से हुआ है | दूसरा संशय उन्हें इस बात पर है कि कोरोना महामारी से बचाव के लिए टेस्टिंगबढ़ाने ,लॉकडाउन लगाने ,मॉस्क लगवाने एवं दो गज दूरी का पालन करवाना यदि वास्तव में आवश्यक नहीं था तो ऐसा करके व्यापार आदि कामकाज में रुकावट क्यों डाली गई !महामारी में एक एक पैसा कमाना महामुश्किल था ऐसी कठिन जीवन शैली जी रहे लोग यदि किसी मजबूरी में नहीं लगा पाए तो मॉस्क न लगाने पर दो दो हजार रुपए के चालान क्यों काटे गए | घनी बस्तियों में छोटेघरों में या श्रमिकों के पलायन में दो गज दूरी संभव नहीं थी ऐसे में उन्हें दोष दृष्टि से देखना कितना उचित था !महामारी की टेस्टिंग कोई कोरोना संक्रमण की औषधि तो नहीं थी जो उसका पालन करने के लिए इतना बाध्य किया जाता था | टेस्टिंग की भी यह स्थिति थी जितनी जगह टेस्टिंग करवाई जाती थी उतने प्रकार की रिपोर्टें आती थीं | ऐसे सभी कल्पित कार्यों को करने के लिए जनता को बाध्य करने से ऐसा अवश्य लगता था कि ये लोग जनता की मदद के लिए प्रयासरत हैं किंतु इससे मदद पहुँच कितनी पा रही थी यह भी तो बिचार किया जाना चाहिए था |
         कुल मिलाकर वैज्ञानिक अनुसंधानों के अभाव में महामारी को लेकर अंत तक ऊहापोह की स्थिति बनी रही !वैज्ञानिकों से लेकर सरकारों तथा जनता तक ऐसी भगदड़ मची रही कि सबका आपस में एक दूसरे की बातों पर से विश्वास उठता जा रहा था | वैज्ञानिक लोग महामारीके बिषय में आज जो बोलते थे वो कुछ दिन बाद स्वयं ही गलत निकल जाता था यहाँ तक कि महामारी के बिषय में उनके द्वारा लगाए गए सभी अनुमान गलत सिद्ध होते चले गए |        महामारी का प्रारंभ कब कहाँ कैसे हुआ था इसका प्रसार माध्यम क्या है विस्तार कितना है अंतरगम्यता कितनी है इसके स्थाई लक्षण क्या हैं ?महामारी पर मौसम का क्या असर पड़ता है तापमान का क्या असर पड़ता है वायुप्रदूषण से महामारी कितनी प्रभावित होती है |महामारी का संक्रमण समाप्त कब होगा !ऐसे आवश्यक बिषयों में विज्ञान के नाम पर जिसे जो मन आ रहा था वो बोल रहा था !वो सही था या नहीं इसका बिचार किए बिना उसे ही पकड़कर सरकारें जनता की ओर भाग  खड़ी होती थीं !  
 
कोरोना महामारी के बिषय में अनुसंधान करने के दावे तो बहुत किए जा रहे हैं इसीलिए तो महामारी के रूप में मानवता पर आए इतने बड़े संकट को भी कुछ लोग धन कमाने का साधन बना लेना चाहते हैं |कुछ लोगों शुरू में कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने की औषधियाँ बनाने के दावे किए तो समस्या एक उठ खड़ी हुई कि महामारी की समझ आपको कितनी है | क्योंकि किसी रोग को समझे बिना आप उससे मुक्ति दिलाने की औषधि बनाने का दावा कैसे कर सकते हैं !महामारी के बिषय में क्या आप जानते हैं कि और महामारी के नाम पर कुछ भी बेचने में सफल हो गए !       महामारी घटित होने से पहले प्रकृति में बदलाव होने लगते हैं मौसम बिगड़ने लगता है आँधी तूफान वायु प्रदूषण एवं भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं बनस्पतियों का आकार प्रकार स्वभाव आदि में बड़े बदलाव होने लगते हैं | जीव जंतुओं के स्वभाव आहार व्यवहार आदि में बदलाव होने लगते हैं | 
 
 

भूमिका      

 अधूरे अनुसंधानों का महामारी से सामना !कोरोना महामारी से निपटने में विज्ञान से कितनी मिली मदद ! 

     पिछले कुछ सौ वर्षों से महामारियाँ लगभग हर नब्बे से सौ वर्षों के बीच घटित होते देखी जा रही हैं यदि उससे कुछ कम या कुछ अधिक वर्षों में भी आवें तो भी आने की संभावना तो बनी ही रहती है अर्थात कभी भी आ सकती है | इसलिए महामारियों के समय अपना बचाव करने के लिए कुछ उपाय तो पहले से करके रखने ही चाहिए |  ऐसा भी कहीं होता है कि जब प्यास लगे तब कुआँ खोदने की तैयारी की जाए !या जब वर्षा शुरू हो गई हो तब छप्पर छाया जाए !बिना किसी तैयारी के महामारियों को पराजित करने का अहंकार पाल लेना अपने एवं अपनों के साथ बहुत बड़ा धोखा सिद्ध हो सकता है |सच्चाई तो ये है कि अच्छी से अच्छी तैयारियॉँ भी महामारी को करने में तो सक्षम नहीं हो सकती हैं इतना अवश्य है कि पहले से अच्छी तैयारी कर के रखी गई होती हैं तो महामारियाँ रहने पर भी उन तैयारियों के बल पर एक सीमा तक अपना बचाव करने की संभावना अधिक बढ़ जाती है | 

      महामारियों से निपटने के लिए यदि कोई औषधि या वैक्सीन आदि बना पाना संभव नहीं ही हो पाता है इसलिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली ही औषधि या वैक्सीन आदि बनानी होती है और महामारी से संक्रमित रोगियों को उस औषधि या वैक्सीन आदि के उपयोग से लाभ मिलता है या मिलने की संभावना होती है तब तो उन्हें आगे से आगे तैयार करके रखना चाहिए ताकि महामारियों आदि के आने की प्रतीक्षा ही क्यों की जाए ये तो सामान्य रूप से भी दी जा सकती होगी क्योंकि अभी भी जिन्हें वैक्सीन दी जा रही है उनका संक्रमित होना आवश्यक तो नहीं होता है| जिस प्रकार से बिना संक्रमितों को भी अभी वैक्सीन दी जा रही है यह तो वैसे भी अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक है | वैसे भी बच्चों के जैसे इतने टीके लगाए जाते हैं वैसे ही ऐसी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने वाले टीके भी बचपन में ही लगा दिए जाएँ ताकि महामारी के दौर में भी बचपन में दिए गए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले टीके के प्रभाव से लोग संक्रमित न हों या कम से कम हों | 

       महामारियों का प्रकोप कम करने के लिए यदि  कोई टीके आदि वास्तव में बनाए जा सकते हैं तो पहले से बनाकर लगा लिए जाने चाहिए ताकि महामारियाँ प्रारंभ होने पर भी अधिक से अधिक लोगों का उस टीके के प्रभाव से बचाव हो सके | जिसप्रकार से वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व ही कोरोना महामारी के संक्रमण से परेशान है ऐसे समय में यदि टीके के प्रभाव से अपने देश के लोग संक्रमित नहीं होते या कम होते तब तो उस टीके का प्रभाव संपूर्ण विश्व में प्रमाणित हो चुका होता दुनियाँ देख रही होती कि वास्तव में भारत के वैज्ञानिकों ने क्या टीका  बनाया है जिसके प्रभाव से उसे महामारी से उतना नहीं जूझना पड़ा है जितना सभी दूसरे देश जूझ रहे हैं | ऐसे तो कोरोना महामारी के संक्रमण से जैसे बाक़ी सभी देश जूझ रहे हैं भारत भी तो उन्हीं की तरह कोरोनामहामारी से पीड़ित है |

       ऐसी परिस्थिति में जहाँ एक ओर लोग संक्रमित होते रहें वहीं दूसरी तरफ वैक्सीन दी जाती रहे और जो जो स्वस्थ होते जाएँ उन्हें वैक्सीन के प्रभाव से स्वस्थ हुआ मान लिया जाए | इसी प्रकार से जो लोग संक्रमित न हों उनके बिषय में ऐसा मान लिया जाए कि ये वैक्सीन के प्रभाव से संक्रमित नहीं हुए हैं | 

     इसके अतिरिक्त ऐसा कोई स्पष्ट एवं पारदर्शी विकल्प नहीं है जो बोलकर इस बात को प्रमाणित किया जा सके कि वैक्सीन लगने के प्रभाव से ही ये स्वस्थ हुए हैं या संक्रमित नहीं हुए हैं | ऐसे तो लोगों को वैक्सीन लगाना खानापूर्ति मात्र लगती है इसी लिए उन्हें वैक्सीन लगवाने के लिए बार बार बुलाना पड़ता है | क्योंकि उन्हें ऐसा भी कोई आश्वासन नहीं मिल पा रहा है कि वैक्सीन के प्रभाव से उसके बाद उन्हें कोरोना नहीं होगा |ऐसी परिस्थिति में वैक्सीन के प्रति लोगों  में वह आस्था बन ही नहीं पा रही है कि आखिर उन्हें वैक्सीन लगाना आवश्यक क्यों लगना चाहिए |वैक्सीन लगने के बाद अन्य लोगों की अपेक्षा उन्हें कुछ तो विशेष लगना चाहिए |

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

    किसी महामारी के बिषय में यदि पहले से पूर्वानुमान लगा लिया जाता है और उसकी प्रवृत्ति वेग संक्रामकता अंतरगम्यता विस्तार प्रसारमाध्यम मौसम तापमान वायु प्रदूषण आदि के महामारी पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव के बिषय में यदि पहले से जानकारी जुटा ली जाती है तो महामारी जनित समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। यदि महामारी के  बिषय में पहले से कुछ भी नहीं पता होता है तब तो केवल परिणाम भुगतना पड़ता है।महामारी के  बिषय में वास्तविक जानकारी के अभाव में ऐसे बिषयों पर अनुसंधान के लिए जिम्मेदार लोग कुछ कुछ कहानियाँ गढ़ते सुनाते रहते हैं जिसमें सच्चाई  संभावना दूर दूर तक नहीं होती है | महामारी से संबंधित किसी भी  बिषय पर जहाँ जो कुछ देख या सुन लेते हैं उसी पर एक नई कहानी गढ़ लिया करते हैं अनुसंधानों के नाम पर वही सुनाया करते हैं अनुसंधानों की लापरवाही के परिणाम जनता को भुगतने  पड़ते  हैं ।पूर्वानुमान संबंधी जानकारी के अभाव में सच्चाई की संभावना तो होती नहीं है केवल समय बिताया जाता है और महामारियाँ जब तक चला करती हैं तब तक महामारियों के बिषय में कुछ न कुछ बोलना एवं कुछ न कुछ करते दिखना होता है | सच्चाई स्वीकार करने का साहस हो तो यह मानने में संकोच बिलकुल नहीं होना चाहिए कि जनता के द्वारा सरकारों को दिए जाने वाले टैक्स के पैसों से हमेंशा चलते रहने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी कौन सी मदद मिल पायी जिससे महामारी से जूझती जनता का बचाव हो गया | ये बात ऐसे अनुसंधानों के लिए जिम्मेदार लोगों को अपने हृदय पर हाथ रखकर अपनी आत्मा से पूछनी चाहिए | कुलमिलाकर महामारियों के  बिषय में जब पहले से कुछ भी नहीं पता होता है तब अचानक होने वाली उद्देश्य विहीन रिसर्चें कुछ ऐसी होती हैं जिनसे निकलता कुछ नहीं है |

     एक बार हाथियों पर रिसर्च प्रारंभ की गई और दी गई रिसर्च करने की जिम्मेदारी जिन्हें सौंपी गई वे नेत्रहीन थे उन्हें कुछ दिखाई तो पड़ता नहीं था इसलिए वे हाथों से टटोल टटोल कर ही केवल अंदाजा लगा लिया करते थे| उसी के आधार पर रिसर्च पूरा किया जाता था |  

    अंधे लोगों को हाथी के आकार प्रकार के बिषय में पता लगाना था कि उसकी बनावट कैसी है ?कुछ नेत्रहीन लोगों के पास एक हाथी लेकर खड़ा किया गया और उनसे कहा गया कि हाथी का शरीर कैसा होता है | उन्होंने हाथी को न कभी देखा था और न ही हाथी के बिषय में कभी कुछ सुना ही था नेत्र थे नहीं अब वो हाथों से टटो टटो कर ही हाथी के आकार प्रकार की परख करने लगे |

     उन अंधे लोगों में से जिसका हाथ हाथी की पूछ पर पड़ा वो कहने लगा कि हाथी पतला लंबा बिलकुल सर्प की तरह होता है | जिसका हाथ हाथी के पैरों पर पड़ा उसे हाथी मोटे खंभे की तरह समझ में आया ! जिसका हाथ हाथी के पेट पर पड़ा वह कहने लगा कि हाथी तो पहाड़ की तरह होता है | ऐसे जिसका हाथ हाथी के जिस अंग पर पड़ा वे हाथी का आकार प्रकार उसी हिसाब का समझने लगे |  
      इस प्रकार से अलग अलग प्रकार के अनुभवों के साथ रिसर्च संपन्न हुई जिससे कोई निष्कर्ष भले न निकला हो किंतु इसी को विभिन्नवैज्ञानिकों के द्वारा किए गए रिसर्च को हाथीविज्ञान नाम दे दिया गया |
     कोरोना महामारी से जूझती जनता को कुछ ऐसे ही रिसर्चों को सहना पड़ा जिन्हें महामारी के बिषय में कुछ भी पता ही नहीं था वे महामारी पर बिजय प्राप्त कर लेने की  आशा सँजोए बैठे थे उनसे यह कौन पूछे कि महामारी को परास्त करने लायक आपके पास था क्या जिसके बल पर कोरोना को पराजित करने की हिम्मत बाँधे बैठे थे |
      कोरोना महामारी से निपटने लायक तैयारियाँ अभी तो बिल्कुल न के बराबर थीं इससे शासकों को यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि इसके बाद भविष्य में जब कभी कोई महामारी आने की संभावना बनेगी उस समय महामारी प्रारंभ होने से पहले हो उसके  बिषय में न केवल पूर्वानुमान लगा लिया जाएगा अपितु चिकित्सकीय दृष्टि से भी तब तक कुछ ऐसा अनुसंधान कर लिया जाएगा जिससे महामारियों से होने वाला जनधन का नुक्सान कम से कम हो |इस लक्ष्य को लेकर ही अनुसंधानों को आगे बढ़ाना ही भविष्य के लिए कल्याणकारी हो सकता है |

 

 

 




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

r t i

mahamari