संशयग्रस्त वैज्ञानिकों के द्वारा अच्छे अनुसंधान नहीं किए जा सकते !
वायुप्रदूषण बढ़े तो उसका कारण खोजने के लिए बिना किसी अनुसंधान के दशहरा में रावण जलने को दीवाली में पटाखे जलाने को होली में होली जलने को सर्दी में हवा रुक जाने को गर्मी में हवा तेज चलने को धन काटते समय पराली जलाने को जिम्मेदार बता दिया जाता है | ऐसे ही ईंट भट्ठे या बाहनों से निकलने वाले धुएँ को जिम्मेदार मानलिया जाता है इसी संशय के आधार पर इन सबके विरुद्ध कार्यवाही शुरू कर दी जाती है | संशय के आधार पर कार्यवाही पद्धति ठीक नहीं है क्योंकि सौ संशय एक साक्ष्य की बराबरी नहीं कर सकते यह ध्यान रखा जाना चाहिए | किसी क्षेत्र में बाढ़ आए तो उस क्षेत्र के लोगों का लघुशंका करना थोड़ा बंद करवा दिया जाएगा और यदि ऐसे ही थोथे उपाय अपनाने हैं तो अनुसंधानों के नाम पर इतने आडंबर क्यों ?आखिर उन पर किए जा रहे भारी भरकम व्यय का वहन करने के लिए जनता को बाध्य क्यों किया जाए !
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