कोरोना वैक्सीन पर संशय का कारण भी वैज्ञानिकों के अपने दिए हुए बयान ही थे |
कोई व्यक्ति एक तरफ तो कहता रहा हो कि उसे तैरना बिल्कुल ही नहीं आता है और दूसरी तरफ वही व्यक्ति उसी समय समुद्र में तैर लेने का दावा अचानक करने लगे तो संशय तो होगा ही |
कोई चलने फिरने में असमर्थ रोगी व्यक्ति अचानक पहलवानी में पुरस्कार जीतने का दावा करने लगे तो संशय होगा ही !
रसोई के कार्य को बिलकुल न जानने वाला कोई व्यक्ति अपने को बहुत अच्छा रसोइया होने का दावा अचानक करने लगे तो संशय होगा ही !
भूकंपों के बिषय में कुछ न जानने की बात बोलते रहने वाले वैज्ञानिक श्रेणी के लोग जब अचानक भूकंपों के घटित होने के लिए जिम्मेदार प्लेटों के टकराने को बताने लगते हैं तो संशा तो होगा ही !
मौसम के बिषय में बड़ी बड़ी बातें करने वाले वैज्ञानिक श्रेणी के लोग जब अपनी भविष्यवाणियाँ गलत होने पर जलवायु परिवर्तन का राग अलापने लगते हैं तो जलवायु परिवर्तनपर संशय तो होगा ही |
ऐसे और भी बहुत सारे बिषय हैं जिनके बारे में जब कुछ जानने की इच्छा से लोग अपने वैज्ञानिकों से पूछते हैं तब एक ओर तो वे कह देते हैं कि मुझे कुछ पता नहीं दूसरी ओर उसी बिषय में वे बड़ी समझदारी की बातें करने लगते हैं जिन्हें सुनकर ये लगता है कि ये सब अभी देखकर आए हैं | भूकंप वायु प्रदूषण आँधीतूफ़ान वर्षा बाढ़ आदि के बिषय में कुछ पूछो तो पता नहीं और यदि बताते भी हैं तो निकल जाने पर जलवायु सामने लाकर खड़ा कर दिया जाता है और न पूछो तो इनके बिषय में बहुत कुछ जान्ने तरह प्राकृतिक घटित होने के बिषय में न जाने किटन्नी कहानियां सुना दी जाती हैं |
इसी प्रकार से महामारियों के बिषय में एक ओर तो कुछ पता नहीं वाली बातें की जा रही थीं तो दूसरी ओर वैक्सीन बना लेने के दावे किए जाने लगे !संशय तो होगा ही !
मेरी जानकारी के अनुशार सरकारी वैज्ञानिक अपने अनुसंधानों के आधार पर कोरोना के बिषय
में आज तक ऐसा
कोई निश्चितमत उपलब्ध नहीं करवा सके जो तर्कों की कसौटी पर सही घटित हो
सका हो या बाद में गलत न हुआ हो | इन बिषयों पर सरकारी वैज्ञानिकों की राय
हमेंशा संदिग्ध रही रही है कोरोना के बिषय में कोई भी रे एक बार देकर उसपर
कायम नहीं रह सके और कई बार उस पर दृढ़ता दिखने कोशिश भी की तो उसके
विरुद्ध घटती घटनाओं ने उन अंदाजों अनुमानों को गलत सिद्ध कर दिया जबकि
वैक्सीन बनाने के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए उन अनुमानों का सही
होना आवश्यक था क्योंकि अनुमानों के सही हुए बिना ये स्पष्ट हो जाता है कि
कोरोना महामारी का जो स्वरूप वैज्ञानिकों ने समझा है वह सच नहीं है यदि वह
सच होता तो उनके द्वारा लगाए गए अनुमान भी चाहिए थे जो नहीं हुए और उनके
सही हुए बिना यह सिद्ध हो गया कि महामारी को वे समझ नहीं पाए हैं और किसी
सामान्य रोग को ठीक से समझे बिना उससे पीड़ित रोगी की चिकित्सा नहीं की जा
सकती है फिर कोरोना महामारी तो महारोग है महारोग के स्वभाव लक्षण प्रभाव
विस्तार प्रसार माध्यम आदि को ठीक ठीक समझे बिना उसके बिषय में किसी औषधि
या वैक्सीन आदि का निर्माण कर लेना कैसे संभव हो सकता है | इसलिए वैक्सीन
निर्माण के दावों पर शंका होना स्वाभाविक ही है | इसके बाद भी जो लोग कहते
हैं कि वैक्सीन मैंने तो बना ली यदि वास्तव में वे ऐसा कर पाने में सफल हुए
हैं तो प्रशंसनीय है किंतु उन्हें तर्कों की कसौटी पर कैसा जाना आवश्यक है
| क्योंकि चिकित्सा के क्षेत्र में सच्चाई सामने आना केवल कठिन ही नहीं
अपितु असंभव भी होता है क्योंकि इसमें परीक्षा देने वाले परीक्षा लेने
वाले कापियाँ जाँचने वाले परीक्षा परिणाम घोषित करने वाले एक ही वर्ग के
लोग होते हैं वे जो कहें वही प्रमाण मानना पड़ता है |
कोरोना
महामारी के वास्तविक स्वरूप को न समझ पाने के कारण ही महामारी के बिषय में
उनका कभी कोई निश्चित मत बन ही नहीं पाया इसीलिए वे कोरोना के बिषय में
अंदाजा लगाकर जो कहते रहे वो या तो गलत निकल जाता रहा या उस वक्तव्य का कोई
दूसरा वैज्ञानिक खंडन कर देता रहा | उसके बाद वैज्ञानिक समुदाय दो खेमों
में बँट जाता रहा कई बार कोई तीसरा पक्ष लेकर खड़ा हो जाता रहा ऐसी
परिस्थिति में कुछ अवसर ऐसे भी आए जब समय आने पर उन तीनों पक्षों के द्वारा
स्थापित किए गए मत गलत निकल गए | ऐसे अवसरों में भिन्न भिन्न बिषयों पर
वैज्ञानिक समुदाय को बार बार अपने बयान बदलते रहने पड़े ! कभी आश्चर्य
व्यक्त करके काम चला लिया जाता रहा तो कभी कभी अपने बयान को गलत होता देखकर
उसे रिसर्च का बिषय दिया जाता रहा |कभी कोरोना स्वरूप बदल रहा जैसी बातें
बोल दी जाती रहीं | स्वरूप बदलने बात भी तो तब आती जब उसके किसी स्वरूप को
तो पहचाना जा सका होता उसके बिषय में लगाया गया अंदाजा कभी तो सही निकला
होता !स्वरूप बदलने वाली बात पर भी तभी भरोसा हो सकता था | कुलमिलाकर ऐसी
ऊहापोह की स्थिति संपूर्ण कोरोना काल में बार बार देखी जाती रही |
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