कोरोना महामारी और मौसम !मध्यम खंड(मौसम के बिषय में)
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विज्ञान और अनुसंधान
कोरोना जैसी महामारियाँ तथा भूकंप सूखा बाढ़ आँधी तूफ़ान वायुप्रदूषण आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओंके अचानक घटित होने से बचाव के लिए समय बिल्कुल नहीं मिल पाता है जिससे जनधन की बड़ी हानि हो जाती है| इसलिए ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाना आवश्यक समझा गया !इसलिए अधिकाँश देशों की सरकारों ने ऐसे बिषयों पर अनुसंधान करने के लिए अलग अलग मंत्रालय विभाग आदि बनाए गए | जनता के द्वारा टैक्सरूप में सरकारों को दिए गए धन से ऐसे अनुसंधानों का संचालन होता है इसके बदले में ऐसे अनुसंधानों से जनता की यह अपेक्षा होती है कि भविष्य में आने वाली महामारियों और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगा कर हमें आगे से आगे बताया जाए कि भविष्य में कब किस प्रकार की महामारी या प्राकृतिक आपदा आने वाली है |
ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों पर खर्च करने के लिए जनता जिस उद्देश्य से धन देती है उस उद्देश्य की पूर्ति करना अनुसंधानकर्ताओं का कर्तव्य हैऔर ऐसा करवाना सरकार का कर्तव्य है क्योंकि टैक्स रूप में जनता से धन लेकर सरकार ही ऐसे अनुसंधानों पर खर्च करती है |इसलिए चिंता की बात यह है कि जो अनुसंधान जनता के लिए किए या करवाए जाते हैं उन अनुसंधानों से जनता को कितना लाभ मिल पाता है यह स्वयं में अनुसंधान का विषय है |
कहावत है कि जहाँ जिसका धन लगता है वहाँ उसका मन लगता है | चूँकि जनता का धन ऐसे अनुसंधानों पर खर्च किया जाता है इसलिए जनता को ऐसे अनुसंधानों से आशा भी रहती है | अनुसंधानकर्ताओं की बातों को जनता सुनती भी ध्यान से है और मानती भी है किंतु विगत कुछ विगत कुछ दशकों से देखा जा रहा है कि जितनी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं या कोरोना महामारी ही आई है इनमें से प्रायःकिसी के भी बिषय में अनुसंधानकर्ताओं के द्वारा ऐसा सही सही स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है जिसका उपयोग करके जनता अपना कुछ बचाव कर पाती |वैज्ञानिकों के ऐसे परिणाम विहीन अनुसंधानों ने जनता को बहुत निराश किया है |
अनुसंधानकर्ताओं के द्वारा जिन महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के बिषय में एक ओर अनुसंधान लगातार चला ही करते हैं वैज्ञानिकों के द्वारा उस पर लगातार दृष्टि भी रखी जा रही होती है तो दूसरी ओर महामारियों या प्राकृतिक आपदाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है | इसका कारण क्या है यह बात अनुसंधानकर्ताओं से पूछी जानी चाहिए कि अनुसंधान करने वालों की लापरवाही है या अनुसंधान करने के लिए जो वैज्ञानिक प्रक्रिया अपनायी जा रही है वह इस योग्य है ही नहीं जिसके द्वारा भविष्य में होने वाली महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो हो सकता हो | क्योंकि ऐसी घटनाओं के घटित होने पर जनता अपने इन्हीं अनुसंधानकर्ताओं की ओर बड़ी आशा की दृष्टि से देख रही होती है और अनुसंधानकर्ता लोग जवाबदेही से बचने के लिए इधर उधर की बातें कर रहे होते होते हैं या उन घटनाओं के बिषय में कुछ ऐसी कल्पित कहानियाँ सुना रहे होते हैं जो उस मुसीबत के समय में जनता के किसी काम की ही नहीं होती हैं |
इसका सबसे दुखद पहलू तो यह है कि आजकल अनुसंधान कर्ता लोग पूर्वानुमान तो लगा नहीं पा रहे हैं ऐसा न कर पाने का कारण क्या है जनता यह प्रश्न उन अनुसंधान कर्ताओं से पूछे उससे पहले ही ऐसी महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं के लिए जनता को ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है |
महामारी का पूर्वानुमान लगाने के बिषय में -
22 Dec 2020 को प्रकाशित : पृथ्वी
विज्ञान मंत्रालय (MoES) द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य
चेतावनी प्रणाली (Early Health Warning System) विकसित की जा रही है, जिससे
देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।गौरतलब है कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) भी इस विशिष्ट प्रणाली की विकास अध्ययन और प्रक्रिया में शामिल है।पृथ्वी
विज्ञान मंत्रालय (MoES) द्वारा विकसित किया जा रहा मॉडल मौसम में आने वाले
परिवर्तन और रोग की घटनाओं के बीच संबंध पर आधारित है।ज्ञात हो कि ऐसे कई रोग हैं, जिनमें मौसम की स्थिति अहम भूमिका निभाती है।विश्व
स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली एक ऐसी
निगरानी प्रणाली है, जो त्वरित सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप को संभव
बनाने के लिये ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र करती है, जो भविष्य में
महामारी का रूप ले सकते हैं।
कुलमिलाकर रोगों और महारोगों(महामारियों) का पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसमसंबंधी घटनाओं का अनुसंधान किया जाएगा | यह मॉडल मौसम में आने वाले परिवर्तन और रोग की घटनाओं के बीच संबंध पर आधारित है। चूँकि कई रोग ऐसे होते हैं जिनमें मौसम की स्थिति अहम भूमिका निभाती है।इसीलिए इस अनुसंधान प्रक्रिया में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) भी शामिल किया गया है ऐसा कहा जा रहा है |
इसप्रकार की स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली यदि वास्तव में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होती है तो यह प्रणाली व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों ही प्रकार के रोगों या महारोगों(महामारियों) का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हो सकती है क्योंकि व्यक्तिगत रोगियों के लिए भी पूर्वानुमान प्रक्रिया वरदान सिद्ध हो सकती है क्योंकि महामारी के समय में भी एक स्थान पर एक ही परिस्थिति में रहने वाले सभी लोग रोगी होते नहीं देखे जाते हैं | जो लोग रोगी होते भी हैं उनमें से कुछ रोगी स्वस्थ हो जाते हैं कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं कुछ की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु भी होते देखी जाती है |लोगों के व्यक्तिगत स्वास्थ्य पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता है यदि अभी व्यक्तिगत स्वास्थ्य पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं भी है तो यदि स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली भी सफल हो जाती है तो भी महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो सकता है यह चिकित्सा क्षेत्र के लिए बड़ा वरदान सिद्ध हो सकता है |
स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली जैसी यह पूर्वानुमान प्रक्रिया से संबंधित मॉडल मौसम में आने वाले परिवर्तन और रोग की घटनाओं के बीच संबंध पर आधारित है।इसलिए इस प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के वास्तविक स्वभाव की समझ विकसित की जाए तथा प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के पीछे के आधारभूत वास्तविक कारणों को खोजा जाए एवं सूखा वर्षाबाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में सही एवं सटीक पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया विकसित की जाए | इसके अतिरिक्त केवल अनुसंधान प्रक्रिया में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) को सम्मिलित करने मात्र से इस लक्ष्य को हासिल करना संभव नहीं होगा जब तक कि वहाँ के मौसम वैज्ञानिक सूखा वर्षाबाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में सही एवं सटीक पूर्वानुमान लगाने में सक्षम नहीं होंगे |
मौसम का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम वैज्ञानिक कहाँ और कितने हैं ?
पिछले एक दो दशकों में जितनी भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुईं उनमें से लगभग किसी के भी बिषय में मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा सही एवं सटीक पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका है ऐसी परिस्थिति में ऐसे लोगों को सम्मिलित कर लेने से भी स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली जैसी पूर्वानुमान प्रक्रिया को सफल कैसे बनाया जा सकता है फिर भी प्रयत्न किया जाना चाहिए | कहीं ऐसा न हो जैसा सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने पर जनता का ध्यान भटकाने के लिए एक नए प्रकार के रिसर्च की घोषणा करने का रिवाज सा पड़ा हुआ है |इसके तहत उस प्राकृतिक आपदा से संबंधित रिसर्च को बढ़ावा देने की घोषणा कर दी जाती है | इसके लिए कुछ फंड पास कर लिया जाता है कुछ सुपर कंप्यूटर खरीद लिए जाते हैं कुछ स्थानों पर उपग्रह रडारों आदि की अतिरिक्त व्यवस्था करने की घोषणा कर दी जाती है | भूकंप जैसी बड़ी घटनाओं के बाद कुछ स्थानों पर रिसर्च के नाम पर कुछ गड्ढे खोदे जाने लगते हैं कुछ जगहों पर जमीन के अंदर कुछ मशीने लगाईं जाने लगती हैं | जनता का ध्यान भटकाने के लिए ऐसा बहुत कुछ किया जाता है जिस प्रकार से अभी महामारी आई है तो सरकार के द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली विकसित करने की बात भी कहीं उसी प्रकार के रीति रिवाजों का निर्वाह जनता का ध्यान भटकाने मात्र के लिए ही तो नहीं किया जा रहा है | ऐसा हमें इसलिए भी सोचना पड़ रहा है क्योंकि 1864 में चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई क्षति तथा 1866 एवं 1871 के अकाल के बाद, मौसम संबंधी विश्लेषण और संग्रह कार्य एक ढ़ांचे के अंतर्गत आयोजित करने का निर्णय लिया गया। नतीजतन, 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुई थी लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं उस लक्ष्य को हासिल करने में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग आजतक आंशिक रूप से भी सफल नहीं हो पाया है |ऐसी परिस्थिति में उससे संबंधित लोगों को सम्मिलित करके जनता के लिए अत्यंत आवश्यक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली जैसी पूर्वानुमान प्रक्रिया को सफल कैसे बनाया जा सकता है ?
मौसम संबंधी इन घटनाओं के नहीं बताए जा सके पूर्वानुमान !
2005 में मुंबई में भीषण बाढ़ आई थी !16
जून 2013 को केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव आया उसमें हजारों लोग मारे गए
!16 जून, 2013 को उत्तराखंड में आई भीषण जलप्रलय की। लाखों श्रद्धालुओं की
आस्था के प्रतीक तीर्थस्थल केदारनाथ और इसके आसपास भारी बारिश, बाढ़ और
पहाड़ टूटने से सबकुछ तबाह हो गया और हजारों लोग मौत के आगोश में समा गए थे।इनमें से किसी घटना के बिषय में मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
नवंबर सन् 2015 में चैन्नई में भीषण बाढ़ आई थी !सितंबर
2014 में मूसलाधार मानसूनी वर्षा के कारण भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर ने
अर्ध शताब्दी की सबसे भयानक बाढ़ आई। यह केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित
नहीं थी अपितु पाकिस्तान नियंत्रण वाले आज़ाद कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान व
पंजाब प्रान्तों में भी इसका व्यापक असर दिखा। 8 सितंबर 2014
तक, भारत में लगभग 200 लोगों तथा पाकिस्तान में 190 लोगों की मृत्यु हो
चुकी है।450 गाँव जल समाधि ले चुके थे ।इनमें से किसी भी बाढ़ के बिषय में
पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था |
सितंबर 2019 में बिहार में आई भीषण बाढ़ के बिषय में कोई पूर्वानुमान बताने में मौसम विभाग असफल रहा था !मौसम पूर्वानुमान बताने वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा रहे थे और जो बता रहे थे वो गलत होता जा रहा था तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने पत्रकारों से बात करते हुए स्वीकार किया कि मौसम विभाग वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा रहे हैं वर्षा के बिषय में वे सुबह कुछ कहते हैं दोपहर में कुछ दूसरा कहते हैं और शाम होते होते कुछ और कहने लगते हैं | पत्रकारों ने पूछा तो इस बाढ़ के बिषय में आप जनता से क्या कहना चाहेंगे तो नीतीश जी ने कहा कि मेरा मानना है कि हथिया नक्षत्र के कारण यह अधिक बारिश हो रही है |स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे जी ने भी पत्रकारों के पूछने पर यही कहा कि हथिया नक्षत्र के कारण ही अधिक बारिश हो रही है |
28 जून 2015 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी की वाराणसी में सभा होने वाली थी किंतु भीषण वर्षा के कारण उस सभा को रद्द करना पड़ा | इसके बाद मौसम विभाग से पूर्वानुमान पूछकर 16 जुलाई 2015 को वही सभा वर्षा से निपटने की अधिक तैयारियों के साथ निश्चित की गई सरकारी मौसम भविष्य वक्ताओं से भी सलाह ली गई थी उन्होंने कहा था कि 16 जुलाई को वर्षा की संभावना नहीं है किंतु मौसम विभाग की भविष्यवाणी गलत हुई और उस दिन इतनी भयंकर बारिश हुई कि प्रधान मंत्री जी की वह सभा भी रद्द हुई !दोनों सभाओं के आयोजन पर खर्च की गई भारी भरकम धनराशि मौसम विभाग की भविष्यवाणी गलत होने के कारण निरर्थक चली गई |
अप्रैल मई जून आदि के महीनों में गर्मी तो हर वर्ष होती है किंतु 2016 के अप्रैल मई में आधे भारत में गरमी से संबंधित अचानक अलग प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगीं ! जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे | पानी की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर लातूर में एक ट्रेन भेजी गई थी |गर्मी का असर केवल जमीन के अंदर ही नहीं था अपितु वातावरण में इतनी अधिक ज्वलन शीलता विद्यमान थी कि आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक घट रही थीं यह स्थिति उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016 से ही प्रारंभ हो गई थी क्रमशः धीरे धीरे बढ़ती चली जा रही थी 10 अप्रैल 2016 के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत तेजी आ गई थी ! ऐसा होने के पीछे का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हो रही थीं इस बिषय में संबंधित वैज्ञानिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे उन्हें खुद कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था | अंत में आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान पूजा करने, हवन करने, गेहूँ का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी | इस बिषय में जब वैज्ञानिकों से पूछा गया कि इस वर्ष ऐसा क्यों हो रहा है और यदि ऐसा होना ही था तो इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका ?तो उन्होंने कहा कि इस बिषय में हमें स्वयं ही कुछ नहीं पता है कि इस वर्षा ऐसा क्यों हुआ !ये तो रिसर्च का बिषय है इसलिए ऐसे बिषयों पर अनुसंधान की आवश्यकता है |
इसी समय में 13 अप्रैल 2016 से असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में
भीषण वर्षा और बाढ़ का भयावह दृश्य था त्राहि त्राहि मची हुई थी |यह वर्षा
और बाढ़ का तांडव 60 दिनों से अधिक समय तक लगातार चलता रहा था |
सन 2016 के अप्रैल मई में घटित हुई परस्पर विरोधी इन दोनों घटनाओं के बिषय में वैज्ञानिकों से पत्रकारों ने पूछा कि इन दोनों घटनाओं के बिषय में पहले से कोई पूर्वानुमान क्यों नहीं बताया जा सका था | इस पर वैज्ञानिकों ने कहा कि असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में हो रही भीषण वर्षा और बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन है तथा बिहार उत्तर प्रदेश राजस्थान मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आदि में अधिक गर्मी एवं आग लगने की अधिक घटनाओं का कारण ग्लोबल वार्मिंग है | जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता |
इन्हीं बिषयों में काफी पहले मेरे द्वारा की हुई भविष्यवाणियाँ सही होती जा रही थीं उसके प्रमाण आज भी इंटरनेट पर विद्यमान हैं इसी बिषय में चर्चा करने के लिए मैं मौसम विज्ञान विभाग में गया था वहाँ एक मौसम वैज्ञानिक महोदय से मिलाया गया वहाँ उनके पास एक पत्रकार महोदय बैठे इन्हीं बिषयों पर चर्चा कर रहे थे उसी क्रम में पत्रकार महोदय ने उन वैज्ञानिक महोदय से निजी चर्चा में पूछा कि यह कैसे पता लगे कि मौसम संबंधी कौन सी घटना जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित हो रही है और कौन सी घटना अपने आप से घटित हो रही है जिसके बिषय में पूर्वानुमान के सही होने की आशा की जाए !इस पर हँसते हुए उन्होंने कहा कि सीधी सी बात है हमारे विभाग के द्वारा लगाया गया जो पूर्वानुमान सही निकले उसे मौसम संबंधी सामान्य घटना मान लीजिए और हमारे विभाग के द्वारा लगाया गया जो पूर्वानुमान सही न निकले उसे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटना मान लेना चाहिए | दोनों लोग हँसने लगे चर्चा समाप्त हुई और मैं भी चला आया !
2018 के अप्रैल मई में हिंसक आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं 2 मई की रात्रि में आए तूफ़ान से काफी जन धन हानि हुई थी | ऐसे तूफानों के बिषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था मौसम वैज्ञानिकों को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ऐसे बिषयों में क्या बोला जाए !इनके बिषय में कभी कोई पूर्वानुमान बताया ही नहीं जा पा रहा था वैज्ञानिक लोगों ने भविष्यवाणियाँ करने के लिए कुछ तीर तुक्के लगाए भी किंतु वे पूरी तरह से गलत निकलते चले गए !यहाँ तक कि 7 और 8 मई 2018 को उन्होंने दिल्ली और उसके आस पास भीषण तूफ़ान की भविष्यवाणी बड़े जोर शोर से कर दी यह सुन कर कुछ प्रदेशों की भयभीत सरकारों ने अपने अपने प्रदेशों में स्कूल कालेज बंद कर दिए किंतु उन दो दिनों में हवा का एक झोंका भी नहीं आया !बताया जाता है कि इस बिषय को बाद में पीएमओ ने संज्ञान भी लिया था | इसी घटना के बिषय में एक निजी टीवी चैनल के साथ परिचर्चा में मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक महोदय डॉ.के जे रमेश जी से एक पत्रकार महोदय ने प्रश्न कर दिया कि क्या कारण है कि आपका विभाग इतने भयंकर आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सका और जो लगाए भी गए वे गलत निकलते चले गए !इस पर डॉ.के जे रमेश जी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसे तूफ़ान आ रहे हैं इसीलिए इनके बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है और अचानक आ जा रहे हैं आँधी तूफ़ान पता ही नहीं लग पा रहा है | अगले दिन कई अखवारों में हेडिंग छपी थी -"चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"
केरल में जब भीषण बाढ़ आई तो उसमें भी मौसम विज्ञान विभाग की ऐसी ही ढुलमुल भूमिका रही !3 अगस्त 2018 को मौसम
विज्ञान विभाग की ओर से जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई उसमें भविष्यवाणी
की गई थी कि अगस्त और सितंबर महीने में दक्षिण भारत में सामान्य वर्षा की
संभावना है !जबकि 5 अगस्त से ही भीषण बारिश प्रारंभ हो गई थी जिससे केरल
कर्नाटक आदि दक्षिण भारत में त्राहि त्राहि माही हुई थी | जिसके बिषय में
केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने स्वीकार भी किया कि यदि मौसम विभाग की
भविष्यवाणी झूठी न निकली होती तो बाढ़ से जनता इतनी अधिक पीड़ित न हुई होती |
इसके बिषय में मौसम निदेशक डॉ.के. जे. रमेश से एक टीवी चैनल ने पूछा तो
उन्होंने कहा कि केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसलिए इसके बिषय में
पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | इसका कारण जलवायु परिवर्तन है जबकि दक्षिण भारत में 2018 के अगस्त महीने में हुई इसी भीषण वर्षा के बिषय में 2018 के अगस्त महीने का मौसम पूर्वानुमान मैंने मौसम विभाग के निदेशक डॉ.के
जे रमेश जी की मेल पर 29 जुलाई 2018 को ही भेज दिया था !उसमें लिखा है कि अगस्त की एक से ग्यारह तारीख के बीच इतनी भीषण वर्षा दक्षिण भारत में होगी कि बीते कुछ दशकों का रिकार्ड टूटेगा !वर्षा का स्वरूप इतना अधिक डरावना होगा !"यह हमारी मेल पर अभी भी पड़ा है जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया था कि मेरा वर्षा पूर्वानुमान सही निकला है |
सन 2019 \2020 की सर्दियों के बिषय में मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था
लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिये। इस पर पत्रकारों ने मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा कि सर्दी की दस्तक से पहले मौसम विभाग ने कहा था कि इस साल सर्दी सामान्य से
कम रहेगी,लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिये। पहले मानसून और अब सर्दी का पूर्वानुमान भी गलत साबित हुआ क्यों ?
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि कड़ाके की ठंड मौसम की चरम गतिविधि का नतीजा है जिसका सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |भारत जैसे ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र में मौसम के इस तरह के अनपेक्षित और अप्रत्याशित रुझान का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक दुनिया में कहीं भी नहीं है।सर्दी ही नहीं, अतिवृष्टि और भीषण गर्मी जैसी मौसम की चरम गतिविधियों का दीर्घकालिक अनुमान संभव ही नहीं है।मौसम की चरम गतिविधियों के दौरान, मौसम का मिजाज तेजी से बदलने की प्रवृत्ति प्रभावी होने के कारण अल्पकालिक अनुमान भी मुश्किल से ही सटीक साबित होता है| मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुये चरम गतिविधियों का दौर भविष्य में और अधिक तेजी से देखने को मिल सकता है। इनकी आवृत्ति में भी तेजी देखी जा सकती है। ऐसे में बारिश के अनुकूल परिस्थिति बनने पर मूसलाधार बारिश होना या गर्मी का वातावरण तैयार होने पर अचानक तापमान में उछाल या गिरावट जैसी घटनायें भविष्य में बढ़ सकती हैं। मौसम संबंधी शोध और अनुभव से स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल है। ऐसे में पूर्वानुमान के गलत साबित होने की संभावना भी रहेगी।
इसके बाद एक बार फिर गलत हुई मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी !2020-21 में लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु अबकी बार तो जनवरी से ही तापमान बढ़ने लग गया था ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था |
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं अभी तक सही एवं सटीक निकलने वाली मानसून आने और जाने की तारीखें नहीं तय की जा सकी हैं जो तय की भी गई थीं वे अधिकाँश वर्षों में हो जाती रही हैं |इसीलिए मानसून आने और जाने के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाने की वास्तविक वैज्ञानिक प्रक्रिया खोजने की बजाए अब मानसून आने और जाने की तारीखों में ही बदलाव किया जा रहा है | इस बदलाव का कोई मजबूत वैज्ञानिक आधार नहीं है इसलिए ये तारीखें भी गलत होंगी ही कुछ समय तक ये तारीखें भी गलत निकलती रहेंगी तब तारीखें ही फिर बदल दी जाएँगी | मौसम विज्ञान के क्षेत्र में यह या तो अनुसंधान की क्षमता का अभाव है या फिर विज्ञान भावना के साथ यह खुला खिलवाड़ है |
वर्षा ऋतु के चार महीनों में से किस महीने में वर्षा कैसी होगी कृषि कार्यों के लिए यह बहुत उपयोगी एवं आवश्यक होता है किंतु इसी उद्देश्य से की गई भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना को लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं किंतु बीते 145 वर्षों में सही सही दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान किसानों को उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है | ये चिंता की बात होनी चाहिए | किसान मार्च अप्रैल के महीने में एक फसल पूरी हो जाने के बाद जुलाई अगस्त में बोई जाने वाली दूसरी फसल के बिषय में योजना बनाते हैं | वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार फसलों का चयन किया जाता है उसी के हिसाब से ऊँचे नीचे आदि खेतों के हिसाब से इस वर्ष में किस प्रकार की फसल बोना हितकर होगा |इसके साथ ही वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार ही वे एक वर्ष के लिए आनाज भूसा आदि का संरक्षण करते हैं बाक़ी मार्च अप्रैल के महीने में ही फसल पूरी हो जाने पर खर्चे के लिए बेच लिया करते हैं | कृषिक्षेत्र के अतिरिक्त सैन्य आदि अन्य क्षेत्रों में भी दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |
अल्पावधि मौसम पूर्वानुमान की यह स्थिति है कि इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान भावना का कोई विशेष योगदान नहीं होता है इसमें तो रडारों एवं उपग्रहों के सहयोग सेजो घटना एक जगह घटित होते देख ली जाती है उसकी गति और दिशा के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये इतने दिन में उस देश प्रदेश या जिले आदि में पहुँच सकती है | बीच में हवाओं का रुख बदल जाने से लगाया हुआ अंदाजा गलत हो जाता है | वैसे भी जो बादल जिधर जिधर जाते हैं सभी जगह तो नहीं बरसते हैं कुछ जगहों पर बरसकर वापस लौट जाते हैं | तूफानों चक्रवातों में ऐसे कैमरों से मिली तस्बीरें कई बार काम आ जाती हैं जिनसे कुछ तीर तुक्के सही फिट भी हो जाते हैं इस कैमरा जुगाड़ से कई बार निकट भविष्य में होने वाली जनधन की हानि से बचाव हो जाता है ,क्योंकि इनमें बादलों की तरह बिना बरसे लौटने की गुंजाइस बहुत कम रहती है ये जहाँ पहुँचते हैं वहाँ नुक्सान करते ही हैं |
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह मात्र एक जुगाड़ है इसमें कोई विज्ञान नहीं है जो महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में किसी सहयोग लायक हो | जुगाड़ तो केवल जुगाड़ ही होता है | किसी गाँव के एक छोर पर एक जंगल था उस जंगल से निकलकर हाथियों का झुण्ड कई बार गाँव में घुस आता था और काफी नुक्सान कर जाया करता था इससे परेशान होकर गाँव वालों ने कैमरे लगाने का जुगाड़ सोचा गाँव के जिस ओर जंगल था उस ओर कैमरे लगा दिए फिर जब हाथियों का झुण्ड गाँव की ओर आता दिखाई पड़ता था तो गाँव वाले इकट्ठे होकर हाथियों को जंगल में ही खदेड़ आते थे जिससे गाँव वालों का हाथियों से होने वाले नुक्सान से बचाव हो जाता था यह सह है किंतु यह एक जुगाड़ मात्र है इसे हाथीविज्ञान नहीं कहा जा सकता है |
वर्षा संबंधी अल्पावधि भविष्यवाणियाँ भी गलत होती हैं ऐसा होने पर नुक्सान भी होता है |