सरकारों को अपने अनुसंधानों की कमजोरियाँ जब पता हैं तो उन्हें जनता से भी उसी पेश आना चाहिए
महामारियां प्राकृतिक आपदाएँ अनुसंधान और सरकारें !
वैज्ञानिकों के द्वारा बताए गए अपरीक्षित आधे अधूरे सच को सच मानकर उसे
मानने के लिए सरकारों के द्वारा जनता को न केवल बाध्य किया जाता रहा अपितु जनता
पर उन नियमों का पालन न करने के लिए अर्थ दंड भी लगाया जाता रहा जबकि वे
नियम वैज्ञानिक अनुसंधान आधारित नहीं थे वे भी उसी प्रकार के लगाए गए
अंदाजे थे जो कोरोना काल की विभिन्न परिस्थितियों के बिषय में लगाए गए थे
और बाद में गलत निकल गए थे ये अंदाजे कितने विश्वसनीय थे जिनके आधार पर
मॉस्क धारण लॉक डाउन जैसे उपायों को अपनाने के बाध्य किया गया |
इस प्रकार से वैज्ञानिक अनुसंधानों की दुर्बलता का दंड जनता भोगती रही जिसने समय पर टैक्स देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी थी अब यह जिम्मेदारी सरकारों की होती है कि वे जिस किसी भी प्रकार से जनता की वैज्ञानिक आवश्यकताओं की आपूर्ति सुनिश्चित करें | यदि सरकारों के अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों में ऐसी क्षमता नहीं है तो यह कर्तव्य सरकारों का है कि उनके विकल्पों पर बिचार करके उन्हें अवसर दिया जाना चाहिए | वैसे भी सरकारों का लक्ष्य किसी वर्ग विशेष के आधीन होकर काम करना न होकर जनता के हित साधन एवं संकटों के शमन का लक्ष्य लेकर काम करना चाहिए अंततःसरकारें जनता के लिए होती हैं यह नहीं भूला जाना चाहिए |
वैसे भी अपनी वैज्ञानिक अनुसंधानों की दुर्बलताओं के लिए सरकारों के द्वारा जनता को दण्डित किया जाना ठीक नहीं है | किसी भी घटना के बिषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा वास्तविक कारणों का पता लगाए बिना उन्हें मानने के लिए जनता को बाध्य किया जाना ठीक नहीं है | वास्तविक कारण का पता लगने के बाद भी उसके निवारण के लिए अनुसन्धान पूर्वक ऐसी प्रक्रिया खोजी जानी चाहिए जिससे जनता को भी परेशानी न हो उन्हें अपने चलते हुए कार्यों को अचानक न रोक देना पड़े | क्योंकि उन कार्यों से बहुत लोगों की आजीविका जुड़ी होती हैवैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य ही जनता की भलाई के लिए काम करना होता है |इसलिए किसी भी संकट के समाधान के लिए आशंका आधारित कोई भी उपाय अपनाने से पूर्व उससे जुड़े वर्ग की संभावित कठिनाइयों के बिषय में भी ध्यान रखा जाना चाहिए |
जिन देशों प्रदेशों में जिन बिषयों में अनुसंधान करने के लिए बड़े बड़े
मंत्रालय बनाए गए जिनका आर्थिक बोझ जनता टैक्स देकर ढोती है उन अनुसंधानों
की आवश्यकता पड़ने पर जिम्मेदार लोगों के द्वारा हाथ खड़े कर दिए जाने पर
संशयग्रस्त भ्रमित
सरकारें कुछ करते दिखने की चाहत में उपायों के नाम पर ऊटपटाँग जादूटोने
जैसे उपाय करने के लिए जनता को बाध्य किया करती हैं जनता न माने तो उन पर
अर्थदंड लगाया जाता है |जनता एक ओर प्राकृतिक आपदा से जूझ रही होती है तो
दूसरी ओर उसी का चलन किया जा रहा होता है |ऐसी ही अवसरों के लिए कराए जाने
वाले अनुसंधानों की जिम्मेदारी सँभाल रहे लोगों से कोई नहीं पूछता कि आज
तक आपने आखिर क्या किया है |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें