महामारी 1

                           अधूरे अनुसंधानों से नहीं किया जा सकता है महामारी से मुकाबला !     

यूरोप और अमेरिका को देखें तो हमारे देश से पहले, वहां टीकाकरण की शुरुआत हुई, खासकर ब्रिटेन में, लेकिन वहां केस में कोई कमी नहीं हुई है। हमारे देश में केस धीरे-धीरे कम हो रहे हैं |  भारत का कौन प्रदेश किस प्रदेश से कितना आगे रहाhttps://www.tv9hindi.com/knowledge/coronavirus-vaccination-drive-most-people-vaccinated-in-karnataka-and-andhra-pradesh-488173.html

                                                                  - दो शब्द -  

       महामारी बहुत बड़ी विपदा होती है जो न केवल मनुष्य शरीरों को प्रभावित करती है अपितु रहन सहन काम काज आचार आहार व्यवहार व्यापार उत्सव शिक्षा आदि सब कुछ प्रभावित करती है जिसके भरपाई करने में वर्षों लग जाते हैं तब धीरे धीरे दशकों में सब कुछ पहले की तरह व्यवस्थित हो पाता है | महामारी से डरे सहमे लोग वर्षों में इस भय को भूल पाते हैं | कुल मिलाकर महामारियाँ प्रायः सब कुछ बदल कर रख देती हैं |लोगों को भविष्य में ऐसी मुसीबतों का सामना न करना पड़े या कम से कम करना पड़े ऐसे प्रयास हमेंशा से विश्व वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाते रहे हैं |ऐसे अनुसंधानों को  प्रोत्साहित करने के लिए तत्पर सरकारें पर्याप्त धन एवं संसाधन उपलब्ध करवाती रही हैं | इसके लिए जनता अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई से टैक्स रूप में धन देकर अपनी सरकारों के हाथ मजबूत करती रही है ताकि सरकारों के द्वारा महामारी आदि से संबंधित चलाए जा रहे अनुसंधान कार्यों में धन की कमी रुकावट का कारण न बने | ये क्रम सैकड़ों वर्षों  से अनवरत रूप में चला आ रहा है | 

         ऐसे अनुसंधान करता वैज्ञानिकों से जनता चार प्रकार की अपेक्षा रखती है | पहली तो वो चाहती है कि भारत के प्राचीन चिकित्सा शास्त्र में वर्णित विधि से या जिस किसी भी विधि से महामारी कब आने वाली है इस बिषय में महामारी आने से महीनों वर्षों पहले ही पूर्वानुमान लगाकर इस बात की जानकारी जनता को आगे से आगे उपलब्ध करवाई जाए कि महामारी कब आने वाली है ?महामारी के कितने समय तक रहने की संभावना है ताकि उस समय के लिए आवश्यक संसाधन जुटाकर रखे जा सकें | इस बात का पूर्वानुमान पता लगा लिया जाए तो और अच्छा है कि उस महामारी के समय खान पान रहन सहन आदि में किस प्रकार की सावधानी का पालन किया जाए जिससे उस संभावित महामारी काल में भी उनके शरीर महामारी का सामना करने में सक्षम हो सकें जिससे उनके शरीरों पर महामारी के दुष्प्रभावों का असर कम से कम पड़ सके |

   आधुनिक चिकित्सा पद्धति से संबंधित अनुसंधानों में अद्भुत क्षमता सुनी जाती है | अनुसंधान कर्ताओं के द्वारा ऐसा दावा किया जाता है कि  उन्होंने ऐसी ऐसी वैक्सीनें बनाने में सफलता प्राप्त की है जिनके टीके बच्चों को बचपन में लगा कर उनके शरीरों को भविष्य में होने वाले रोगों से बचा लिया जाता है | यदि ऐसा संभव है तो कोरोना जैसी महामारियों के भी टीके बचपन में ही बच्चों को लगाए जाने चाहिए थे ताकि भविष्य में आने वाली महामारियों  का सामना करने लायक प्रतिरोधक क्षमता उनके शरीरों में पहले से ही तैयार की जा सके |क्योंकि प्रतिरोधक क्षमता तैयार करने वाली वैक्सीनेंबनाने के लिए महामारियों के आगमन की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए | 

     सरकारों का लक्ष्य यदि जनता की सुरक्षा ही है तो भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएँ हों या महामारी जनता के  लिए तो दोनों घातक हैं इसलिए जनता के हित साधन के लिए दोनों से ही बचाव आवश्यक है | इसलिए भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए सरकारें भूकंपरोधी भवनों का  निर्माणअनिवार्य बनाने पर बिचार कर रही हैं तो उसी जनता की सुरक्षा के लिए महामारी रोकने वाली वैक्सीनों को भी पहले से लगाया जाना चाहिए था यदि ऐसा  किया गया होता और उन वैक्सीनों में यदि यह शक्ति होती कि वे शरीरों में ऐसी प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण पहले से  पातीं तो संभव है कोरोना महामारी से समाज इतना अधिक प्रभावित  होता | इतने लोग संक्रमित न हुए होते और इतने लोगों की दुर्भाग्य पूर्ण मृत्यु  न हुई होती | 

       वैक्सीनों  की क्षमता के बिषय में संकेत करने का हमारा अभिप्राय यह है कि निष्प्रभावी वैक्सीनों के लगाने से महामारियों से बचाव भले ही न हो पाता हो किंतु इनके द्वारा जनता का मनोबल बढ़ाकर उनका भय दूर करने में मदद अवश्य मिलती है | ऐसी कृत्रिम वैक्सीनों के द्वारा लक्ष्य को हासिल करना असंभव होता है | कई बार वैक्सीनें लगने  के बाद संक्रमण बढ़ते देखा जाता है | वह भले ही वैक्सीनों के लगने का विपरीत प्रभाव न हो किंतु कुछ ऐसी घटनाएँ देखकर संशय होना तो स्वाभाविक ही है | 

        सन 2020 में आई कोरोना महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए जब जहाँ जो वैक्सीनें लगाईं गई थीं वहाँ अचानक संक्रमण बढ़ते देखा गया था ,जबकि वैक्सीन लगाने से पहले अपने आपसे ही संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही थी जबकि संक्रमितों के स्वस्थ होने की संख्या दिनोंदिन  बढ़ती जा रही थी और यही  क्रम अधिकाँश विश्व में घटित होते देखा जा रहा था | 

    इसी बीच यूरोप और अमेरिका आदि में भारत से पहले टीकाकरण की शुरुआत हुई वहाँ संक्रमितों की संख्या पहले बढ़ने लगी ब्रिटेन में 8 दिसंबर 2020 को टीकाकरण प्रारंभ किया गया तो वहाँ 12 दिसंबर से न केवल संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगी अपितु कोरोना का एक दूसरा स्वरूप भी तेजी से उभरने लगा | 

     भारत में भी 16 जनवरी 2021 तक टीकाकरण प्रारंभ होने से पहले संक्रमितों की संख्या कम होती और संक्रमितों के स्वस्थ होने की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी | इस प्रकार की प्रगति से जनता भी  उत्साहित थी सब  कुछ ठीक चल रहा था इसीबीच 16 जनवरी 2021 से भारत में भी कोरोना टीकाकरण अभियान प्रारंभ किया गया |  इसके तहत पहले दिन एक लाख 91 हजार से अधिक लोगों को टीका लगाया गया है। इस अभियान के पहले दिन 3,351 सेशन हुए, जिसमें लोगों को वैक्सीन की पहली खुराक दी गई।यही क्रम आगे भी जारी रहा किंतु कुछ दिनों के बाद ब्रिटेन आदि की तरह ही भारत  में भी संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने लगी और यह भी देखा गया कि भारत के दक्षिणी प्रदेश महाराष्ट्र आदि टीकाकरण अभियान में अधिक अग्रसर रहे उन प्रदेशों में संक्रमितों की संख्या उसी हिसाब से अन्य प्रदेशों की अपेक्षा अधिक तेजी से बढ़ती देखी जाने लगी | इसका कारण आवश्यक नहीं कि टीकाकरण अभियान रहा हो किंतु भारत से लेकर विदेशों तक में यदि एक जैसी ही परिस्थिति घटित होते देखी गई  है तो  ये बिषय भी अनुसंधान योग्य समझा जाना चाहिए | 

 विज्ञान से समाज की अपेक्षाएँ

       चिकित्सा विज्ञान अपने अनुसंधानों के द्वारा यदि कोरोना जैसी महामारी के संक्रमण से संबंधित औषधि या वैक्सीन आदि खोजने में न भी सफल हो तो केवल महामारियों के आने और जाने के बिषय में ही सही सही पूर्वानुमान लगाने में ही सफल हो जाए तो भी उनका समाज पर बहुत बड़ा उपकार होगा | कई बार एक जैसी  सतर्कता हर समय बरत पाना कठिन होता है इसलिए महामारियों के प्रारंभ होने के बाद महामारियों के जाने  बिषय में तो अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता लगा ही लिया जाना चाहिए जनता उसी  हिसाब से अपने जीवन को संचालित करने के लिए आवश्यक सामग्री जुटा सकती है | विज्ञान का यदि इतना भी सहयोग मिल जाए तो  भी जनता अपने विज्ञान जगत की ऋणी रहेगी |

     दूसरी बात यदि विज्ञान के द्वारा इस बात का सही सही पता लगाने में सफलता मिल जाती है कि मनुष्य के किस आचरण से महामारी जनित संक्रमण बढ़ता और किस आचरण से कम होता है उसके आधार पर समाज को प्रेरित करने से महामारी जनित संक्रमण के वेग को रोकना संभव हो सकता है यह मानवता पर यह दूसरा बड़ा उपकार होगा |

       तीसरी बात समाज के सौभाग्य से यदि वैज्ञानिक वर्ग कोई ऐसी औषधि या वैक्सीन आदि बनाने में सफल हो जाता है जिसके द्वारा महामारी के प्रारंभिक चरण में ही उस औषधि वैक्सीन आदि का प्रयोग करके यदि महामारी पर अंकुश लगा पाना संभव हो सके तो वैज्ञानिकों का जनता पर ये तीसरा बड़ा उपकार होगा | 

   चौथी सबसे मुख्य बात यह कि वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाकर यदि महामारी प्रारंभ होने से पूर्व ही प्रभावी रोकथाम के लिए किसी औषधि या वैक्सीन आदि का प्रिवेंटिव प्रयोग करके उस महामारी को प्रारंभ होने से पूर्व ही वातावरण में व्याप्त उसके दुष्प्रभाव को समाप्त किया जा सके जिससे अपने  समाज  को सुरक्षित बचा लेने में थोड़ी भी मदद मिल सके तो यह वैज्ञानिक अनुसंधानों की सर्वोत्तम सफलता होगी | ऐसे महँ वैज्ञानिक अपनी समाज के  मुकुट बनकर जनता के हृदयों  हमेंशा राज करते रह  सकते हैं | 

     कोरोना जैसी महामारियाँ हों या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएँ इनके बिषय में अनुसंधानों के नाम पर बहुत कुछ जाता है धन  भी बहुत खर्च होता है सरकारें ऐसे अनुसंधानों के लिए अच्छे से अच्छे संसाधन उपलब्ध करवाती हैं जनता उन अनुसंधानों से आशा भी बहुत रखती है किंतु जब महामारियों या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जूझती असहाय जनता अत्यंत कातर निगाहों से अपने वैज्ञानिकों की ओर कुछ वैज्ञानिक मदद पाने के लिए टकटकी लगाए देख रही होती है उस समय विज्ञानजगत कोई निराश करने वाला या संदिग्ध द्वयर्थी उत्तर देकर अपने को किनारे कर लेता है | उस समय समाज बिलकुल अकेला पड़ जाता है | ऐसी परिस्थिति में जनता को लगने लगता है कि हमारे द्वारा टैक्स रूप में दिए गए इतने पैसों का ऐसे  अनुसंधानों पर व्यय करके  आखिर क्या मिला !

      वस्तुतः कोरोना जैसी प्राकृतिक महामारियाँ भी भूकंपों की तरह ही होती हैं जिस प्रकार से भूकंपों के आने के समय पहला झटका लगने के साथ ही जहाँ जो नुक्सान होना होता है हो चुका होता है उसी झटके  चपेट में जनता  आ चुकी होती है |उसमें जो घर गिर जाते हैं जो लोग दब कर मर जाते हैं या जो लोग दबे दबे घायल कराह रहे होते हैं या जो लोग अस्पतालों में पड़े जीवन मृत्यु से जूझ रहे होते हैं |जहाँ एक ओर आपदा प्रबंधनतंत्र राहत कार्यों में लगा होता है वहीँ इतनी बड़ी भूकंपीयप्राकृतिक आपदा में सरकारी भूकंपवैज्ञानिक जगत भूमिकाशून्य दिखाई देता है | इतनी बड़ी आपदा के समय में वैज्ञानिक अध्ययनों  अनुसंधानों आदि से दूर दूर तक जनता को कोई मदद मिलती नहीं दिखाई दे रही होती है | 

       ऐसे समय भूकंप वैज्ञानिक वर्ग केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए भूकंप के बिषय में कुछ ऐसे  कल्पनाप्रसूत बिचार व्यक्त करने लगता है जिनमें तर्कसंगत कोई वैज्ञानिक सच्चाई होती भी है या नहीं होती है यह प्रमाणित होना अभी तक बाक़ी है| ऐसी वैज्ञानिक आधार विहीन काल्पनिक वक्तव्य पीड़ित वर्ग के दुःख दर्द मिटाने की दृष्टि से किसी काम के नहीं होते हैं | 

     भूकंप का पहला झटका लगने  के साथ ही जनता का जो नुक्सान होना होता है वो एक बार में ही हो जाता है वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा इस बिषय में पहले कभी कोई जानकारी नहीं दी गई होती है जिससे ऐसे अनुसंधानों का लाभ उठाकर जनता अपना कुछ तो बचाव कर पाती किंतु ऐसा तो किया नहीं  जा सका ऊपर से अनुसंधानों के नाम पर जले पर नमक छिड़कने की आदत ठीक नहीं है !यथा -'अभी और झटके लग सकते हैं आप लोग खुले मैदान में आ जाओ ! इस भूकंप का केंद्र वहाँ रहा है इसकी गहराई इतनी है इस क्षेत्र में ऐसा भूकंप पहले कब कब आया था ऐसा अगला भूकंप इस क्षेत्र में फिर कब आने की संभावना बन सकती है |पूर्वी दिल्ली में ऐसा भूकंप आया तो कितना नुक्सान होगा !भूकंप का कारण जलवायु परिवर्तन हो सकता है या जमीन के अंदर की गैसों का आंतरिक दबाव या भूमि के अंदर की प्लेटों का आपस में टकरा जाना जैसी न जाने कितनी निरर्थक बातें भूकंपों का अध्ययन करने वाले जिम्मेदार लोगों के द्वारा की जाने लगती हैं जबकि ऐसी बातें भूकंप पीड़ितों  के किस मतलब  की होती हैं | उनका जो नुक्सान होना होता है वो तो  भूकंपों के पहले झटके  के साथ ही हो चुका होता है फिर बाद में बिना सर पैर की ऐसी साथी बातों से जनता का क्या लेना देना ! क्योंकि ऐसी बातों या अफवाहों से से  मदद मिलने  की उम्मीद तो होती नहीं है जबकि अनुसंधानों का उद्देश्य तो समाज की मदद करना  होता है | यही स्थिति महामारियों के प्रारंभ होने बाद की जाने वाली उछल कूद की है | 

     वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा समाजहित  में यदि ऐसा कुछ भी कर पाना संभव हो सके जिससे महामारी जैसी महामुसीबत के समय वास्तव में कुछ मदद पहुँचाई जा सके तभी ऐसे अनुसंधानीय प्रयत्नों को सफल माना जा सकता है अन्यथा महामारियों से निपटने में ऐसे अनुसंधानों की भूमिका क्या रही है समाज का विश्वास जीतने के लिए इसे  भी स्पष्ट किया जाना आवश्यक है | 

    वर्तमान समय में चिकित्साविज्ञान ने बहुत विकास किया है इसमें कोई संशय नहीं है बड़े से बड़े रोगों को समझने एवं उसकी सर्जरी  आदि करके रोग मुक्ति दिलाने में बड़ी सफलता प्राप्त हुई है| इसीलिए समाज उन्हें भगवान का दूसरा स्वरूप मानता है| समाज महामारियों से निपटने में भी उनका उतना ही सक्षम स्वरूप देखना चाहता है | महामारियों का सामना करने की दृष्टि से चिकित्सा वैज्ञानिक ही समाज का मुख्यबल हैं और ऐसे समय यदि चिकित्सा वैज्ञानिक ही हाथ खड़े कर दें या वे महामारी के  बिषय में जो भी अंदाजे लगावें या आश्वासन दें वे सब के सब यदि गलत निकलते जाएँ तो समाज का चिंतित होना स्वाभाविक ही है|इसलिए अनुसंधानों को और अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में ऐसी महामारियों का सामना किया जा सके | 

   समाज में एक प्रश्न और उठता है कि महामारी का पूर्वानुमान लगाना या उसे रोकना यदि मनुष्य के बश में नहीं है तो कम से कम इतना तो किया ही जा सकता है कि मनुष्य शरीरों  बना लिया जाए जिससे महामारियों के  संक्रमित होने का भय कम से कम रहे और जो संक्रमित भी हों वे भी शीघ्र स्वस्थ हो जाएँ ! 

                कोरोना महामारी में कितने मददगार सिद्ध हुए वैज्ञानिक अनुसंधान !

       विश्व के अन्यदेशों के साथ ही साथ महामारी को लेकर कोरोना महामारी के बिषय में भयावह वातावरण  था  तरह तरह की आशंकाएँ व्यक्त की जा रही थीं लोगों के द्वारा सुनी सुनाई बातों के आधार पर अफवाहें फैलाई जा रही थीं | कहीं से भी शुभ संदेश सुनने को नहीं मिल रहे थे !महामारी के बिषय में कोई पूर्व सूचना न मिलने के कारण जनता में भय का वातावरण व्याप्त था उसके पास परिवारों के भरण पोषण तक की कोई तैयारी नहीं थी विशेषकर रोज कमाने और रोज खाने वाले गरीबवर्ग की चिंताएँ बढ़ती जा रहीं थीं | इसी बीच लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई बाजार बंद कर दिए गए आमदनी के स्रोत समाप्त हो गई मजदूरों का छोटे छोटे बच्चों के साथ रहना मुश्किल होता चला गया अंत में महानगरों में कार्यरत श्रमिकों ने अपने परिवारों के साथ उस भयावह वातावरण में अपने अपने परिवारों के साथ गाँवों के लिए पैदल ही प्रस्थान कर दिया | कोई किसी की  रहा था न मान रहा था बेबश लाचार सरकारों के पास श्रमिकों के द्वारा लिया गया यह दुखद निर्णय स्वीकार करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प भी नहीं था | 

    विभिन्न क्षेत्रों में मिली  जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों की सफलताओं पर हम गर्व किया करते थे वही अनुसंधान महामारी की इस महामुसीबत में जनता की मदद कर पाना तो दूर महामारी से बचाव के बिषय में जनता को ऐसी कोई निश्चित  जानकारी देने में भी विफल रहे जिसका अनुपालन स्वयं ही करके जनता अपने बचाव के लिए कुछ कारगर कदम उठा पाती | यहाँ तक कि महामारी से बचाव के उपायों के नाम पर सरकारों के द्वारा उठाए गए लॉकडाउन मॉस्क धारण जैसे जो कठोर कदम उठाए भी गए वे भी किसी वैज्ञानिक अनुसंधान परीक्षण आदि से प्रमाणित नहीं थे इनसे संक्रमण रोकने में कुछ मदद मिल भी सकती है या नहीं इस बिषय में अनुसंधान आधारित कोई निश्चित आश्वासन दिए बिना इन्हें मानने के लिए जनता को ने की आशा थी की उपज न होने पर भी जनता को पालन करने के लिए विवश करना सरकार की मज़बूरी थीआखिर इतनी बड़ी महामारी में सरकारें आखिर हाथ पर हाथ रखकर बैठी नहीं रह सकती थीं | इतनी बड़ी महामारी में अपना आस्तित्व बनाए  और  बचाए रखने के लिए अच्छी नियत से जनता की भलाई के लिए  कुछ करते दिखना सरकारों की अपनी  मज़बूरी थी |कुलमिलाकर जनता के हित में जो जितना कुछ  कर सका वो बहुत था | इस मुसीबत के समय में सभी के द्वारा किया गया न्यूनाधिक योगदान सराहनीय रहा है | इसीक्रम में जिस वैज्ञानिक ने जो भूमिका अदा की परिणाम उसका कुछ भी क्यों न रहा हो बाक़ी प्रयास जनितपुण्य एवं प्रशंसा के अधिकारी वे भी हैं | इन सबके साथ साथ आत्ममंथन इस बात का भी आवश्यक है कि वैज्ञानिक अनुसंधान इस मुसीबत में कितने मददगार हो सके यदि कुछ कमी रही तो भविष्य के लिए  किस प्रकार की तैयारी की जानी चाहिए |     
 

      भूमिका :विनम्र निवेदन 

      विश्व के प्रायः सभी देशों में जनता अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई से प्राप्त धन से ही कुछ अंश आवश्यक समझकर अपनी सरकारों को टैक्स रूप में देती है उस धन का कुछ अंश वैज्ञानिक अनुसंधानों पर भी खर्च किया जाता है जिन अनुसंधानों का उद्देश्य मानव जीवन को सहज सरल बनाना होता है उनकी कठिनाइयों को कम करना होता है तथा उनके सीमित संसाधनों में उन्हें अच्छी से अच्छी सुख सुविधाएँ उपलब्ध करवाना होता है उससे विकास योजनाएँ भी चलाई जाती हैं |उसी धन से चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान पूर्वक लोगों को निरोगी बनाए रखने के लिए भी सार्थक प्रयत्न करने होते हैं | उसी से रोगियों को रोगमुक्ति दिलाने के लिए प्रभावी प्रयत्न करना एवं महामारियों के आने से पूर्व उनका पूर्वानुमान लगाना उसके आधार पर वैक्सीन आदि का निर्माण करके उसके द्वारा मनुष्य शरीरों में इस प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता तैयार करना ताकि महामारियों का दुष्प्रभाव कम से कम हो | ऐसे उद्देश्यों की आपूर्ति के लिए चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा न केवल निरंतर प्रयत्न किए जाने की आवश्यकता होती है अपितु उन प्रयत्नों के परिणाम स्वरूप महामारी संबंधित संकटों से बचाव हुआ है | ऐसा  विश्वास जनता को भी होना चाहिए क्योंकि जनता से प्राप्त धन ही उस प्रकार के अनुसंधानों में खर्च किया जाता है | इसलिए अनुसंधानों के द्वारा जनता का विश्वास जीता जाना बहुत आवश्यक होता है |

    भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान हिमस्खलन बज्रपात जैसी सभी प्राकृतिक घटनाएँ अपने समय से ही आती और अपने समय से ही शांत हो जाती हैं कोई मनुष्य अपने प्रयास से न इन्हें प्रारंभ कर सकता है और न ही शांत कर सकता है | उचित उपायों का अनुपालन करके जितना भी संभव हो उतना अपना बचाव कर लिया जाता है | 

   कई बार कुछ लोग प्राकृतिक आपदाओं को शांत करने के किसी उपाय को खोज लेने का दावा करने लगते हैं | उन दावों में अतिशयोक्ति इतनी तक होती है कि भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान हिमस्खलन बज्रपात जैसी सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के आकर चले जाने के बाद ऐसे लोग यह सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि मेरे उसी उपाय से भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाएँ शांत होती जा रही हैं | 

      ऐसी परिस्थिति में उस अनुसंधानकर्ता को इस प्रश्न का भी उत्तर खोजना चाहिए कि उसने यदि वह अपना तथाकथित उपाय न खोजा होता तो क्या ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ कभी शांत ही नहीं होतीं तब क्या भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान हिमस्खलन बज्रपात जैसी सभी प्राकृतिक घटनाएँ ऐसे उपायों के बिना हमेंशा ही तो नहीं घटित होती रहती थीं | आखिर तब भी तो ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ  शांत ही हुआ करती थीं | 

    भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान हिमस्खलन बज्रपात जैसी सभी प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही तो कोरोना जैसी महामारियाँ भी होती हैं अन्य सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही समय के चक्र के अनुशार महामारियाँ भी अपने समय से ही आती और जाती रही हैं चेचक एवं पोलियो जैसी महामारियाँ भी अपने समय से ही आई और गई हैं | जिन अनुसंधानकर्ताओं को ऐसा भ्रम हो भी कि उनके अनुसंधानों के कारण चेचक एवं पोलियो जैसी महामारियों से मुक्ति दिलाई जा सकी है उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि जब उनके  द्वारा किए गए अनुसंधान नहीं थे तब भी तो सभी लोग पोलियो या चेचकग्रस्त ही नहीं पैदा होते थे या हुआ करते थे | सभी प्रकार की महामारियों से मुक्ति दिलाने की वैक्सीन बना लेने का दावा करने लगने वाले आधुनिक वैज्ञानिक वर्ग का जब कहीं अता  पता ही नहीं था महामारियों के बिषय में अनुसंधान करने की वर्तमान आधुनिकवैज्ञानिक शोधपद्धति का उदय ही नहीं हुआ था | उस समय भी महामारियाँ अपने समय से आती और जाती रही हैं और वर्ष 2020 में आई कोरोना महामारी के समय भी वही हो रहा है | वर्तमान समय अत्यंत साधन संपन्न इतने विकसित से भी कोरोना महामारी से जूझते समाज को क्या लाभ हुआ ? महामारी को आए एक वर्ष से अधिक समय बीत गया है प्रयास कितने भी किए गए हों किंतु परिणाम क्या निकले !कोरोना से बचाव के लिए सरकारों जनता पर बलपूर्वक थोपी गई लॉकडाउन और मॉस्कधारण जैसी योजनाओं से भी कोई लाभ होता है या नहीं इसका कोई तर्क संगत वैज्ञानिक उत्तर किसी के पास नहीं है | आम जनता को जहाँ एक ओर कोरोना महामारी तंग कर रही थी तो दूसरी ओर बचाव के नाम पर सरकारों के द्वारा अपनाए जाने वाले असंगत उपाय उनकी दिनचर्या को बाधित कर रहे थे | उचित तो यह था कि महामारी काल में यदि सरकारी वैज्ञानिक अनुसंधान जनता को बचाव के लिए कोई रास्ता दिखाने में सफल नहीं हो पाए थे और इतना बड़ी मुसीबत से जनता स्वयं जूझ रही थी तो आधार विहीन तीर  तुक्कों के आधार पर सरकारों को जनता की दिनचर्या को बाधित करने से बचना चाहिए था | कोरोना किसी वैक्सीन से समाप्त होगा ऐसा न तो तर्क सांगत है और  न विश्वसनीय ही है | वस्तुतः महामारी की स्थायी प्रकृति ही आज तक नहीं खोजी जा सकी है ऐसा किए बिना चिकित्सा कर पाना कैसे संभव है| कुल मिलाकर अन्य महामारियों की तरह ही पोलियो और चेचक जैसी महामारियाँ भी अपने समय से ही समाप्त होती रही हैं | इन महामारियों के होने से पूर्व सभी लोग पोलियो या चेचक ग्रस्त नहीं थे और न ही बाद में रहे | समय के साथ आती रही महामारियाँ हमेंशा से समय के साथ ही समाप्त होती रही हैं |

       वैसे भी  बच्चे पैदा होते ही उनके तरह तरह के टीके इसीलिए तो लगा करते हैं ताकि भविष्य में संभावित कई प्रकार  रोगों से  रक्षा हो सके | ऐसी परिस्थिति में जहाँ इतने टीके लगते ही हैं वहाँ एक दो टीके और सही जिससे उनके शरीरों में ऐसी प्रतिरोधक क्षमता(इम्युनिटी)तैयार हो सके जिससे महामारियों का सामना करने योग्य लोगों के शरीर हमेंशा ही बने रहें | ऐसा तो है नहीं कि प्रतिरोधक क्षमता तैयार करने के लिए भी उपाय तभी किए जा सकते हैं जब कोई महामारी पैदा होगी क्योंकि महामारी के लक्षण मिलाकर तो टीके तैयार नहीं किए जाते हैं ऐसी परिस्थिति में टीके बनाने के लिए महामारी की प्रतीक्षा क्यों ?आखिर महामारियों के लक्षणों के आधार पर तो टीके अबकी बार भी नहीं बने हैं | 

     वैसे भी किसानों मजदूरों गरीबों ग्रामीणों आदिबासियों आदि के शरीरों में जो प्रतिरोधक क्षमता टीके  लगाए बिना ही होती है वो प्रतिरोधक क्षमता सक्षम वर्ग में क्यों नहीं होती है जबकि उनके शरीरों में तो सभी टीके समय से लगाए गए होते हैं |  

     महामारियों के समय प्रजाप्रिय सरकारों  का घबड़ा जाना स्वाभाविक ही है | महामारियों से देशवासियों को बचाए रखने के लिए उपाय करना सरकारों का कर्तव्य बन जाता है | सरकारें ऐसा करती भी हैं किंतु ऐसे कार्यों में विशेष उतावलापन ठीक नहीं होता है |वैज्ञानिकों के द्वारा महामारियों के बिषय में बताए जाने वाले कारणों एवं निवारण के लिए बताए जाने वाले उपायों का धैर्यपूर्वक परीक्षण करके ही उसे लागू किया जाना चाहिए अन्यथा कई बार चिकित्सा वैज्ञानिकों को कारण खुद नहीं समझ में आ रहे होते हैं उन्होंने कुछ आशंका व्यक्त की सरकारें उसे विज्ञान सम्मत मानकर उसका पालन करने के लिए जनता पर दबाव बनाने लगती हैं न मानने पर आर्थिक दंड भी सुनिश्चित करती हैं जबकि उन उपायों का उन महामारियों से कोई लेना देना है भी या नहीं इस बिषय में उनके पास कोई मजबूत जानकारी नहीं होती है | 

                  

                                                                    - भूमिका -

      वैज्ञानिक अनुसंधानों का लक्ष्य मनुष्यजीवनकेंद्रित होना चाहिए न कि प्राकृतिकआपदाकेंद्रित!भूकंप  वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान बज्रपात या महामारी आदि से मनुष्यजीवन को नुक्सान हो सकता है इसीलिए तो ऐसी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाना या इनके बिषय में अनुसंधान करना आवश्यक समझा जाता है किंतु ऐसे अनुसंधानों से यदि भूकंप  वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान बज्रपात या महामारी आदि बड़ी प्राकृतिक आपदाओं के बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है इनके घटित होने का सही सही कारण ज्ञात नहीं किया जा सका है जो पिछले कुछ वर्षों में घटित प्राकृतिक आपदाओं के समय स्पष्ट रूप से देखा गया है | उसके आधार पर कहा जा सकता है कि ऐसे आधे अधूरे अनुसंधानों से महामारियों या प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के बिषय में सोचा भी कैसे जा सकता है | किस वर्ष कितनी वर्षा सर्दी आदि हुई कितने सेंटीमीटर हुई ऐसी घटनाओं से कब कितने वर्षों का रिकार्ड टूटा ये चीजें अनुसंधान की दृष्टि से भले उपयोगी हो सकती हों किंतु समय बिताने के अतिरिक्त ऐसी बातों से जनता को कोई लाभ नहीं मिल पाता है | 
     इसलिए विज्ञान का लक्ष्य केवल प्राकृतिक आपदाओं के बिषय में अनुसंधान करना ही नहीं है अपितु प्रमुख लक्ष्य तो मनुष्य जीवन है  चूँकि प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य जीवन प्रभावित होता है इसलिए प्राकृतिक आपदाओं के बिषय में अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान खोजना एवं उनसे संभावित संकटों से बचाव के लिए उपाय खोजना विज्ञान का वास्तविक लक्ष्य है यदि ऐसा न होता तो वर्षा आँधी तूफ़ान भूकंप बज्रपात या महामारी आदि से मनुष्य डरता ही नहीं | वस्तुतः मनुष्य को चिंता प्राकृतिक आपदाओं की नहीं अपितु अपनी होती है प्राकृतिक आपदाओं से उसे नुक्सान पहुँचने का भय होता है इसलिए मनुष्य प्राकृतिक आपदाओं से डरता है | 
      दूसरी बात मनुष्य को जितना खतरा बाह्य प्राकृतिक आपदाओं से होता है उतना ही खतरा आंतरिक प्राकृतिक आपदाओं से भी होता है | स्वास्थ्यसंकट संबंधसंकट एवं संपत्तिसंकट ये मनुष्य जीवन की बहुत बड़ी समस्याएँ हैं 
महामारियाँ भी प्रायः इन्हीं से संबंधित संकट पैदा करती हैं| 
     कई बार किसी किसी के जीवन में बिना बाह्य प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के भी प्राकृतिक रूप से या अन्य दुर्घटना आदि से अचानक ही कोई ऐसा बड़ा स्वास्थ्यसंकट पैदा हो जाता है जिससे जीवन रक्षा करना भी असंभव सा होता जाता है कई बार तो मृत्यु भी होते देखी जाती है ऐसी परिस्थिति में उस व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन के लिए तो वह भी किसी महामारी से कम नहीं होता है | 
      कई बार किसी पतिपत्नी भाई बहन माता पिता मित्र आदि किसी अत्यंत निकटम व्यक्ति के साथ जुड़ा कोई ऐसा अत्यंत आत्मीय संबंध छूटता या टूटता है जिसे सह पाना इतना अधिक कठिन हो जाता है कि उसके बिना अपना जीवन बोझ हो जाता है उसके कारण उपजे तनाव से शरीर रोगी होता है और क्रमशः मृत्यु को प्राप्त हो जाता है | कई बार तो ऐसी परिस्थिति में लोगों को काम्यमरण (आत्महत्या) जैसी दुर्घटनाएँ भी घटित होते देखी  जाती हैं |  
     कई बार किसी किसी के जीवन में पद प्रतिष्ठा या संपत्ति से संबंधित किसी बड़े नुकसान के होने से कोई ऐसा संकट पैदा होता है जिसे सह पाना उसके लिए संभव नहीं होता पाता है | ऐसी परिस्थिति में कई बार तनाव इतना अधिक बढ़ जाता है कि जीवन को बचा पाना बिलकुल असंभव सा ही हो जाता है कई बार आत्महत्या जैसी दुर्घटनाएँ भी घटित होते देखी जाती हैं | 
     ऐसी परिस्थिति में मनुष्यजीवन के बाहर प्रकृति में घटित होने वाली प्राकृतिक आपदाएँ हों या किसी किसी मनुष्य के व्यक्तिगत आंतरिक जीवन में घटित होने वाली शारीरिक मानसिक आदि दुर्घटनाएँ हों मनुष्य जीवन तो दोनों प्रकार की ही दुर्घटनाओं से पीड़ित होता है | 
     इसलिए विज्ञान का लक्ष्य तो प्राकृतिक आपदाओं एवं भिन्न भिन्न प्रकार के मनुष्यों के जीवन में घटित होने वाली आतंरिक प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य का बचाव खोजना है ऐसी दोनों प्रकार की आपदाओं के बिषय में अनुसंधान पूर्वक आगे से आगे पूर्वानुमान खोजकर लोगों को सतर्क करना एवंसंभावित संकटों से बचाव के लिए उपाय खोजना विज्ञान का वास्तविक लक्ष्य है | 
     ऐसी परिस्थिति में विज्ञान को केवल वर्षा आँधी तूफ़ान भूकंप बज्रपात या महामारी आदि तक ही सीमित करके रखना ठीक नहीं है |मनुष्यजीवन को सुखी,सरल,विघ्नरहित बनाने हेतु तथा बाह्य एवं आंतरिक विकास के लिए उपयोगी अनुसंधान करना वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं का वास्तविक लक्ष्य होना चाहिए |  
        वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए किए जाने वाले प्रयास और परिणाम में अंतर का वास्तविक कारण !
      वर्तमानवैज्ञानिक अनुसंधान प्रकृति और जीवन को समझने में आंशिक रूप से ही सफल हुए हैं किंतु संपूर्ण समग्रता में समेटने में असमर्थ हैं यही कारण है कि किसी भी कार्य को तो शतप्रतिशत मनोयोग से कर दिया जाता
 है किंतु वो कार्य होने की संभावना कितने प्रतिशत है इसका पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है | चंद्रयान-2 की सफलता में संशय रहा हो या किसी रोगी की सम्यक चिकित्सा होने  के बाद भी वह स्वस्थ होगा या नहीं या वह जीवित बचेगा या नहीं या अन्य किसी भी प्रकार के कार्य के लिए किए गए पूर्ण प्रयास के बाद भी  भी परिणाम में संशय क्यों बना रहता है | प्रयास और परिणाम में अंतर होने के वास्तविक कारण की खोज के बिना ही ऐसा मान लिया जाता है कि प्रयास में कहीं कमी रह गई होगी | 
     यदि कोई भी लक्ष्य प्राप्त करने या किसी भी कार्य  में सफलता पाने के लिए यदि केवल प्रयास करना ही  आवश्यक हो वो लक्ष्य या कार्य उसके लिए किए जाने वाले प्रयास के आधीन हुआ ऐसी परिस्थिति में जैसा प्रयास होगा वैसा कार्य साधन होगा | यदि यह सच है जिसके लिए प्रयास ठीक से नहीं हुआ है या प्रयास में कहीं कोई कमी रह गयी हो तब तो कार्य न होना समझ में आता है किंतु जिस लक्ष्य को पाने के लिए या कार्य साधन के लिए प्रयास पर्याप्त हुआ है तो तब तो प्रयास के साथ साथ इस बात का निश्चय हो जाना चाहिए कि लक्ष्य प्राप्ति हो ही जाएगी   या कार्यसाधन हो ही जाएगा  किंतु यदि किसी लक्ष्य या कार्य के लिए पर्याप्त प्रयास करने के बाद भी लक्ष्य साधन नहीं होता है या वो कार्य संपन्न नहीं होता है या जिस कार्य के लिए प्रयास किया गया होता है उस कार्य का परिणाम उद्देश्य के विपरीत निकलता है जैसी किसी को स्वस्थ करने के लिए चिकित्सा की जाती है किंतु  चिकित्सा का परिणाम रोगी की मृत्यु के रूप में सामने आता है | 
     ऐसी परिस्थिति में यह खोजा जाना अतीव आवश्यक है कि प्रयास के अतिरिक्त ऐसा और दूसरा कौन सा बल है जो परिणाम को प्रभावित करता है | केवल यह मान लेना ठीक नहीं है कि हमारे प्रयास में कहीं कोई कमी रह गई होगी | क्योंकि कभी कभी ऐसा होते देखा जाता है कि अत्यंत सुयोग्य लोग अत्यंत निष्ठा से बार बार प्रयास करते हैं उसके बाद भी सफलता मिलते नहीं देखी जाती है |                                        
      कुछ लोगों को अक्सर यह कहते सुना जाता है कि यदि सच्चे मन से प्रयास किया जाए तो एक न एक दिन सफलता अवश्य मिलती है या लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है और यदि सफलता न मिले तो प्रयत्न में कोई न कोई चूक अवश्य रह गई  है ऐसा मान लेना चाहि किंतु यदि लक्ष्य हासिल न होने का कारण अपने प्रयत्न की कमी को ही मान लिया जाए तो कई प्रकार की दूसरी परेशानियाँ पैदा हो जाती हैं
        किसी सामान्य आर्थिक क्षमता वाले व्यक्ति ने एक बहुत अच्छा मकान बनाने का लक्ष्य बना लिया उसके लिए अपनी क्षमता के अनुशार दिन रात प्रयत्न करने लगा किंतु फिर भी सफल नहीं हुआ तो किसी मोटिवेटर के पास गया उसने कहा कि आपके प्रयास में कोई कमी रह गई है उसने फिर से प्रयास किया ऐसा बार बार प्रयास करने के बाद भी मकान नहीं बन सका मोटिवेटर के पास फिर गया तो उसने फिर वही बात दोहराई कि आपके प्रयास में कोई कमी रह गई है जबकि उसकी आर्थिक क्षमता के अनुशार ऐसा हो पाना अत्यंत असंभव सा था | अंत में वह व्यक्ति मोटिवेटर से प्रेरित होकर अपराध के द्वारा धनार्जन करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करने लग जाता है | 
        ऐसे ही कोई लड़का किसी लड़की से विवाह करना चाहता है किंतु वह लड़की उस लड़के के साथ विवाह करने को तैयार नहीं विशेषकर उसके माता पिता ऐसा नहीं होने देना चाहते थे | जबकि लड़के ने उससे ही विवाह करने का निश्चय कर लिया था |अपने प्रयास में लगातार असफल होने के बाद वह फिर अपने  मोटिवेटर के पास गया और सारी बात बताई तो मोटिवेटर ने कहा कि आपके प्रयास में कोई कमी रह गई है| उसने फिर प्रयास करने प्रारंभ कर दिए फिर असफल हुआ बार बार असफल होने के बाद फिर अपने मोटिवेटर के पास गया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मैंने अपना लक्ष्य अपनी  सीमा से बहुत बड़ा बना लिया हो इस कारण सफलता न मिल पा रही हो तो मोटिवेटर ने कहा ऐसा नहीं है लक्ष्य कितना भी बड़ा क्यों न हो यदि उसे पाने के लिए कर्म किया जाए तो एक न एक दिन सफलता अवश्य मिलती है !फिर वो प्रयास में असफल हुआ फिर मोटीवेटर ने उसके प्रयत्न में कमी बताई | अंत में उस लड़के ने कर्म के स्टार को और अधिक उठाते हुए अपने विवाह में बाधक मानकर उस लड़की के माता पिता पर जान घातक हमला किया इसके बाद भी लड़की के न मानने पर उसने लड़की पर जान घातक हमला किया और धीरे धीरे अपराध के पथपर आगे बढ़ गया | 
        ऐसी परिस्थिति में इस बात की खोज किया जाना बहुत आवश्यक है कि कर्म और परिणाम प्राप्ति के बीच ऐसा कौन सा प्रमुख बल होता है जो परिणाम को प्रभावित करने में सक्षम होता है जिससे प्रभावित होने के कारण परिणाम हमेंशा उसी बल के अनुशार प्राप्त होता है | यदि परिणाम हमारे प्रयास के अनुरूप हुआ तो उसे हम अपने प्रयास का परिणाम मान लेते हैं और प्रयास के विपरीत परिणाम निकलने पर हम अपने प्रयास में कमी मान लेते हैं किंतु यदि इसका कारण प्रयास में कमी होती तो जो कार्य बनने के लिए प्रयास किया गया था बहुत होता तो वो कार्य नहीं होता किंतु उस कार्य के बिगड़ने का तो कोई कारण दूर दूर तक नहीं दिखाई पड़ता है | यदि कार्य के बनने बिगड़ने का कारण कर्म ही है तो जिस कार्य के बिगड़ने के लिए कोई प्रयुकस किया ही नहीं गया वो कार्य बिगड़ा कैसे ?
       इसलिए किसी भी कार्य के फल स्वरूप प्राप्त होने वाले परिणाम का आधार वह कार्य होता है या कुछ और जिससे वह परिणाम प्रभावित होता है यदि कार्य ही होता है तो परिणाम कार्य के अनुशार ही आना चाहिए और यदि कुछ और है तो उसकी खोज अवश्य की जानी चाहिए | 
वैज्ञानिक अनुसंधान होते तो हैं किंतु उनसे निकलता क्या है ?
    प्राकृतिक महामारियाँ एवं मौसम के क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान अधूरे हैं जबकि महामारियाँ पूरी ताकत से आती हैं ऐसी परिस्थिति में अधूरे अनुसंधानों के द्वारा शक्तिशाली महामारियों का सामना कैसे किया जा सकता है | 
     कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि महामारियाँ होने का कारण मौसम है महामारियों का प्रकोप बढ़ने और घटने का कारण मौसम है क्योंकि समय के प्रभाव से प्राकृतिक वातावरण में जितने प्रकार के परिवर्तन होते हैं समय का वह प्रभाव जीवन पर भी पड़ता है इसलिए प्रकृति की तरह ही जीवन में भी उसी प्रकार के परिवर्तन होते देखे जाते है | यदि प्रकृति में बार बार आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा भूकंप बज्रपात सर्दी की ऋतु में कम सर्दी सामान्य सर्दी एवं अत्यधिक सर्दी ऐसे ही अन्य ऋतुओं में ऋतुओं का न्यूनाधिक प्रभाव शरीरों पर पड़ता है उससे भी तरह तरह के रोग पैदा होते हैं और ऐसी घटनाओं की बहुत अधिक अति हो जाने पर या बार बार होने पर महामारियाँ जन्म लेती हैं |  
       ऐसी परिस्थिति में मौसम के स्वभाव को समझे बिना महामारियों के प्रादुर्भाव स्वभाव प्रभाव आदि को समझ पाना कैसे संभव है |
     मौसमसंबंधी विभिन्न प्रकार की घटनाओं के  घटित होने का कारण समझने के लिए कोई मजबूत विज्ञान नहीं है |यही वह कारण है कि मौसमसंबंधी घटनाओं के प्रारंभ होने से पहले उनके बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाया है | कई बार वैज्ञानिक लोग कुछ तीर तुक्के लगाके कोई भविष्यवाणियाँ  कर भी देते हैं तो बाद में अपनी भविष्यवाणियाँ गलत होने के लिए ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन अलनीनो ला-निना जैसी काल्पनिक कहानियों को जिम्मेदार ठहराकर अपना पीछा छुड़ाना पड़ता है | 
       रडारों उपग्रहों आदि की मदद से एक जगह घटित हो रही मौसमी घटनाओं को देखकर उनकी दिशा एवं गति के आधार पर उनके दूसरी जगह घटित होने के बिषय अंदाजा लगा लिया जाता है कभी कभी यह जुगाड़ काम आ भी जाता है किंतु ऐसी आधारविहीन बातों से मौसमसंबंधी घटनाओं के बिषय में तीर तुक्के लगाकर पूर्वानुमानों के नाम पर कुछ कह सुन दिया जाता है जिस पर कुछ लोग ध्यान देते हैं और कुछ लोग नहीं भी देते हैं मौसम के क्षेत्र में तो ऐसे आधारविहीन सही या गलत पूर्वानुमानों से काम चल भी जाता है किंतु उस आधी अधूरी जानकारी के  आधार पर रोगों या महारोगों (महामारियों) के बिषय में पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं है |  
      मौसम के बिषय में अक्सर देखा जाता है कि जिस क्षेत्र में जिस प्रकार की प्राकृतिक आपदा एक बार घटित हो जाती है उस क्षेत्र के वैज्ञानिक कुछ समय तक उसी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं की रट लगाए रहते हैं एक बार कोई बड़ा तूफान या बज्रपात भूकंप आदि कोई भी घटना घट गई तो बार बार उसी बात को दोहराते रहते हैं | भूकंप आया तो अभी भूकंप के झटके और भी लगेंगे | ऐसे ही तूफ़ान आया तो अभी और भी तूफान आएँगे | बज्रपात हुआ तो अभी बज्रपात की घटनाएँ और भी घटित होंगी |यहाँ तक कि फरवरी 2021 में चमोली में जो प्राकृतिक घटना घटी उसके बाद कहा जाने लगा कि ऋषि गंगा क्षेत्र में 400 मीटर लंबी झील एक और बन गई है | वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर ऐसी अफवाहें लगभग हर प्राकृतिक आपदा के बाद फैलाई जाती हैं इनके पीछे कोई वैज्ञानिक अनुसंधान न होकर अपितु एक तरह की खानापूर्ति मात्र होती है | क्योंकि ऐसा कहने के पीछे यदि कोई वैज्ञानिक आधार होता तो प्रत्येक प्राकृतिक आपदा के आने के बाद जिस प्रकार की भविष्यवाणियाँ की जा रही होती हैं वैसी पहले भी तो की जा सकती थीं | 
       कुल मिलाकर महामारी एवं मौसम समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने का अभी तक कोई प्रमाणित विज्ञान चिन्हित नहीं हो सका है | उन्हें मनुष्य केवल इसीलिए डरता है क्योंकि हमारा जीवन महामारी तथा मौसम समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होता है यदि ऐसा न होता तो मनुष्य को शायद प्राकृतिक आपदाओं की चिंता ही नहीं होती |जीवन में भी बहुत सारी घटनाएँ प्राकृतिकआपदाओं की तरह ही अचानक घटित होती हैं कई बार तो वे इतनी शक्तिशाली होती हैं कि जीने की इच्छा ही समाप्त कर देती हैं और कई बार तो जीवन ही समाप्त कर देती हैं | 
       स्वास्थ्य हो या संपत्ति हो या संबंध हों इन तीनों क्षेत्रों में अपने विपरीत घटित हुई घटनाएँ अपने को शारीरिक संकट भी पैदा करती हैं मानसिक तनाव भी देती हैं ऐसी ही विपरीत परिस्थितियों में कई बार आत्महत्या जैसी दुर्भाग्य पूर्ण घटनाएँ भी घटित होते देखी जाती हैं | ऐसी दुर्घटनाओं से भी सुरक्षा की जिम्मेदारी वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं को ही सँभालनी होगी | 
      प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों के बिषय में अनुसंधान करने की दृष्टि से सरकारें जिन पर भरोसा करती हैं वे अधूरे हैं और जो ऐसे क्षेत्रों में कुछ मदद कर सकते हैं सरकारें उन्हें इस योग्य नहीं मानती हैं |     
     कुछ  वैज्ञानिकों की संकीर्ण सोच ने अनुसंधान भावना पर ताला लगा रखा है वे सरकारों को यह समझाने में सफल हो गए हैं कि विज्ञान के क्षेत्र में वे जो जो कुछ कर पा रहे हैं वही उचित है उससे ज्यादा कुछ किया ही नहीं जा सकता है और यदि किया भी जा सकता है तो केवल वही लोग कर सकते हैं बाक़ी इस बिषय में कुछ कर पाना किसी अन्य के बश की कोई बात ही नहीं है | सरकारों के मन में पाले गए इस भ्रम के कारण सरकारें किसी अन्य प्रक्रिया से ऐसे बिषयों पर किए जाने वाले अनुसंधानों को प्रोत्साहित नहीं करती हैं और जिस प्रकार से अभी तक किया जाता रहा है उससे कुछ होना यदि संभव ही होता तो भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग 144 वर्ष बीत गए इतना समय कम तो नहीं होता है |पिछले कुछ सौ वर्षों से प्रत्येक सौ वर्ष बाद महामारियाँ घटित होते देखी जा रही हैं किंतु उनके बिषय में न अभी तक कुछ किया जा सका है और ऐसे अनुसंधानों के बल पर आगे भी कुछ किए जाने की संभावना नहीं है |यदि इसी प्रकार की लापरवाही आगे भी की जाती रही तो आगामी पीढ़ी को भी अभी की तरह ही महामारियों से स्वयं ही जूझना पड़ेगा तब भी वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर ऐसे ही हाथ खड़े कर दिए जाएँगे |
      कुल मिलाकर विज्ञान के नाम पर विज्ञानवाद इतना अधिक  प्रभावी होता जा रहा है कि जो जो कुछ प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है उसे ही विज्ञान मान लिया जाता है बादल आँधी तूफ़ान आदि एक स्थान पर दिखाई पड़े तो उसके आधार पर ही दूसरे स्थान के बिषय में अंदाजा लगा लिया जाता है किंतु यह विज्ञान तो नहीं हुआ | 
     वस्तुतः प्रतिदिन वर्षा नहीं होती प्रतिदिन आँधी तूफान भूकंप बज्रपात आदि नहीं होते कुल मिलाकर हमेंशा एक जैसा मौसम नहीं होता है | प्रतिदिन अलग अलग मौसम होने का आधार स्वरूप कोई निश्चित कारण तो होगा
 जिसमें भिन्न भिन्न प्रकार के परिवर्तन होने के कारण अलग अलग प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते दिखाई पड़ती हैं | 
      उस मुख्य कारण की खोज के बिना प्राकृतिकविज्ञान मौसमविज्ञान और भूकंपविज्ञान आदि को सफल कैसे माना जा सकता है और इनसे संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की कल्पना भी कैसे की जा सकती है | रडार उपग्रह आदि भी तो घटित हो रही घटनाओं को ही देख सकते हैं ये उन घटनाओं के घटित होने का कारण कैसे खोज सकते हैं | सुपर कंप्यूटर डेटासंग्रह एवं उसके बिषय में परिगणना करने में सहयोगी हो सकता है किंतु अलग अलग दिनों में विभिन्न प्रकार की घटनाओं के घटित होने का कारण खोज पाना उससे कैसे संभव है | ऐसी परिस्थिति में मुख्यकारण खोजने की दिशा में प्रयास किए जाने आवश्यक हैं उसके बिना प्राकृतिक वैज्ञानिक अनुसंधानों के सफल होने की कल्पना कैसे की जा सकती है |आज कल रिसर्चों अनुसंधानों की स्थिति ऐसी है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग 144 वर्ष बीत गए किंतु आजतक इस बात का पता नहीं लगाया जा सका कि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं में होने वाले परिवर्तनों का वास्तविक कारण क्या है ? 
                                  क्या हाथीविज्ञान की तरह ही है कोरोनामहामारी विज्ञान ?
     एक हाथी पर रिसर्च :किसी देश में एक हाथी पागल हो गया उसने उस देश को बहुत रौंदा सारा देश अस्तव्यस्त करके वह अपनी इच्छा से दूसरे देश में चला गया दूसरे से तीसरे एवं तीसरे से चौथे देश में होता हुआ उसने सारे विश्व को अपने चपेट में ले लिया |इस प्रकार से वह सारे विश्व को रौंदता हुआ घूमता रहा कहीं किसी की हिम्मत इतनी नहीं हुई कि उसे रोक ले |हाथीयोद्धा के रूप में प्रसिद्ध होने के लिए जो लोग जिसकिसी भी प्रकार से हाथी के सामने पहुँचे वे हाथी के बिषय में कुछ जानते तो थे नहीं जो हाथी का सामना करते इसलिए हाथी ने उन्हें भी कुचल कर फ़ेंक दिया और वे हाथीयोद्धा के रूप में प्रसिद्ध  हो गए |इस प्रकार से सारा विश्व परेशान हो गया | 
     इतनी बड़ी बिपदा के समय सभी देशों प्रदेशों में स्थापित सरकारें चिंतित हो उठीं उन्होंने बचाव के लिए अपने अपने घरों में छिप कर बैठने के लिए जनता को बाध्य कर दिया बाजार बंद कर दिए गए ताकि हाथी किसी को नुक्सान न पहुँचा सके फिर भी हाथी से लोग तंग हुआ करते थे |
      पहले भी हाथी कभी कभी पागल हुआ करते थे और जब ऐसा होता था तब जमकर उत्पात मचाया करते थे सारे देश को तहस नहस कर दिया करते थे | ऐसे पागल हाथियों को रोकने के लिए सरकारों ने जिन हाथीयोद्धाओं को जिम्मेदारी दे रखी थी वे वैसे तो अपने को बहुत बड़ा हाथीवैज्ञानिक सिद्ध किया करते थे तभी तो हाथियों के प्रकोप से जनता को बचाने के लिए हाथीयोद्धाओं को भारी भरकम सैलरी आदि सुख सुविधाएँ सरकारें देती रही थीं किंतु जब हाथियों के प्रकोप से जनता को बचाने का समय आया तब उन्होंने हाथ खड़े कर दिए और हाथियों के बिषय में तरह तरह के तीर तुक्के लगाने लगे | जिनका हाथी बिषयक सच्चाई से कोई संबंध नहीं था | 
    ऐसी परिस्थिति में पागलहाथी से बचाव के लिए प्रयत्न किए जाने की जब आवश्यकता थी उसीसमय बचाव संभव न होने के कारण आखिर कुछ करते तो दिखना ही था इसलिए हाथियों पर रिसर्च प्रारंभ कर दी गई और जिसे जो मन आता रहा उसने हाथियों के बिषय में वही बोल दिया |
      वस्तुतः हाथी के बिषय में रिसर्च करने की जिम्मेदारी जिन्हें सौंपी गई वे नेत्रहीन थे उन्हें कुछ दिखाई तो पड़ता नहीं था इसलिए वे हाथों से टटोलकर ही केवल अंदाजा लगा लिया करते थे| उसी के आधार पर रिसर्च पूरा किया जाता था | 
     अंधे लोगों को हाथी के आकार प्रकार के बिषय में पता लगाना होता था कि उसकी बनावट कैसी है ?कुछ नेत्रहीन लोगों के पास एक हाथी लेकर खड़ा किया गया और उनसे कहा गया कि हाथी का शरीर कैसा होता है | उन्होंने हाथी को न कभी देखा था और न ही हाथी के बिषय में कभी कुछ सुना ही था नेत्र थे नहीं अब वो हाथों से ही टटो टटो कर ही हाथी के आकार प्रकार की परख करने लगे |
     उन अंधे लोगों में से जिसका हाथ हाथी की पूछ पर पड़ा वो कहने लगा कि हाथी पतला लंबा बिलकुल सर्प की तरह होता है जिसका हाथ हाथी के पैरों पर पड़ा उसे हाथी मोटे खंभे की तरह समझ में आया जिसका हाथ हाथी के पेट पर पड़ा वह कहने लगा कि हाथी तो पहाड़ की तरह होता है ऐसे जिसका हाथ हाथी के जिस अंग पर पड़ा वे हाथी का आकार प्रकार उसी हिसाब का समझने लगे |  
      इस प्रकार से अलग अलग प्रकार के अनुभवों के साथ रिसर्च संपन्न हुई जिससे कोई निष्कर्ष भले न निकला हो किंतु इसी को विभिन्नवैज्ञानिकों के द्वारा किए गए रिसर्च को हाथीविज्ञान नाम दे दिया गया | 
      हाथी जब तक जिस देश में उत्पात मचाता रहा वहाँ तब तक हाथी को भगाया कैसे जाए इसके लिए तरह तरह के अनुसंधान किए जाते रहे और जैसे ही हाथी अपनी इच्छा से एक देश को छोड़कर दूसरे देश में चला जाता रहा वैसे ही हाथी को भगाने में सक्षम लट्ठ खोज लेने के दावे किए जाने लगे!हाथी दूसरे देश में चला गया है यह जानते हुए भी हाथी पर लट्ठ चलाने की आपातकालीन मंजूरी दी जाने लगी और कहा जाने लगा कि हमारे हाथी योद्धाओं ने डटकर हाथी का मुकाबला किया और हाथी को पराजित कर दिया है |
     इसी प्रकार से कोरोनामहामारी के बिषय में जब तक महामारी रही तब तक रिसर्च किया जाता रहा और जैसे जैसे महामारी स्वयं समाप्त होती चली गई वैसे वैसे वैक्सीन बना लेने के दावे किए जाते रहे | 
     ऐसे ही डेंगू आदि सभी प्रकार के सामूहिक एवं प्राकृतिक रोगों पर महामारियों के बिषय में कुछ सौ वर्षों से रिसर्च किया जाता रहा है किंतु महामारियाँ जब जब आईं तब तब महामारियों के बिषय में किया गया रिसर्च किसी काम नहीं आता रहा है और उनसे जनता को अकेले ही जूझना पड़ता रहा है और बाद में महामारी से मुक्ति दिलाने के बड़े बड़े दावे कर दिए जाते रहे | चेचक उन्मूलन पोलियो उन्मूलन जैसी महामारियाँ भी हमेंशा के लिए तो आती नहीं हैं और न ही इनके टीके बनने से पहले सभी लोग चेचक या पोलियो ग्रस्त ही हुआ करते थे |पहले भी समय प्रभाव से महामारियाँ आया करती थीं और समय प्रभाव से चली जाया करती थीं | उस समय जिनका अपना समय  जिस प्रकार का चल रहा होता है वे उसी प्रकार से कम या अधिक महामारियों से पीड़ित हुआ करते थे जिनका समय विशेष अधिक ख़राब चल रहा होता था वे उन्हीं परिस्थितियों में मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते थे जबकि बहुत लोग उन्हीं स्थानों पर उन्हीं परिस्थितियों में रहते हुए भी महामारी काल में भी बिलकुल निरोगी बने रहते थे |ऐसा हमेंशा से ही होता देखा जाता रहा है | 
     कुल मिलाकर वैज्ञानिक अनुसंधानों का लक्ष्य मनुष्य जीवन यात्रा को सहज सरल सुख सुविधा युक्त एवं निर्विघ्न बनाना होता है |  
                                                  कोरोना महामारी और वैज्ञानिकभ्रम !
             ऐसे अनुसंधानों में कहाँ है कितनी वैज्ञानिकता और इनसे कितना हुआ जनता का लाभ ? 
    कोरोनामहामारी के बिषय में हमारे वैज्ञानिकअनुसंधानों से हमें कितना लाभ हुआ है| महामारी के प्रत्येक परिवर्तन पर अनुसंधानों के नाम पर कुछ अंदाजे रहे हैं कुछ तीर तुक्के लगाए जाते रहे हैं कुछ संभावनाएँ बताई जाती रही हैं कुछ आशंकाएँ व्यक्त की जाती रही हैं कुछ अफवाहें फैलाई जाती रही हैं उन अफवाहों से अनेकों रोगियों की मृत्यु होते सुनी गई है ऐसा कुछ वैज्ञानिक भी समय समय पर स्वीकार करते रहे हैं |
      वैज्ञानिकों के वक्तव्यों और घटनाओं में बहुत अंतर देखा जाता रहा है !
      मार्च 2020 में एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और एक कार्डियोलॉजिस्ट ने मेडिकल-आर्काइव पर एक प्रीप्रिंट पोस्ट किया था कि ब्रिटेन में कोविड से केवल 5700 मौतें होंगी। जबकि ऐसा नहीं हुआ !
     कोरोना रोगियों को साँस लेने में अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक दिक्कत होती थी इसलिए हृदय रोगियों ने अपने वैज्ञानिकों से जानना चाहा कि भाई कोरोना से हमें खतरा कितना है ?
    इस प्रश्न के उत्तर में विभिन्न वैज्ञानिकों ने अपनी अपनी रिसर्च के आधार पर कोरोना काल में हृदय रोगियों के लिए अधिक खतरा होने का अनुमान लगाया था किंतु ऐसा नहीं हुआ अपितु व्यवहार में देखा गया कि कोरोना काल में हॉर्ट अटैक बहुत कम हुए !
       इस पर वैज्ञानिकों ने यह पता लगाने के लिए दोबारा रिसर्च की कि हार्ट अटैक कम क्यों हुए ?
     इस बिषय में अनुसंधान करने के बाद उन्हें अंदाजा लगा कि कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण हृदयरोगी अस्पतालों में नहीं आए होंगे ! लॉकडाउन खुल जाने के बाद भी हृदयरोगी अधिक संख्या में अस्पतालों में नहीं पहुँचे |
   लॉकडाउन खुल जाने के बाद भी अधिक संख्या में हृदयरोगियों के अस्पताल न पहुँचने का कारण पता लगाने के लिए फिर से रिसर्च की गई - 
  इस बिषय में वैज्ञानिकों ने रिसर्च पूर्वक अंदाजा लगाया कि शायद कोरोना संक्रमित होने के डर के कारण हृदयरोगी अधिक संख्या में अस्पतालों में नहीं पहुँचे !ऐसे में कई प्रश्न उठ खड़े हुए कि यदि वे अस्पताल नहीं गए तब तो हृदयरोगियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई होगी और हृदयरोगी घरों में दुबके बैठे रहे होंगे या फिर  चिकित्सा के अभाव में हृदयरोगियों की काफी अधिक संख्या में मृत्यु हुई होगी !
     इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए पुनः रिसर्च की गई उस रिसर्च के परिणाम स्वरूप एक और सच्चाई निकल कर सामने आई कि स्वदेश से लेकर विदेश तक कोरोना के चलते हार्टअटैक के केस 40 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत तक कम हुए हैं |        
    फिर प्रश्न हुआ कि यदि कोरोना काल में हार्टअटैक के केस इतने कम हुए तो लोगों की मृत्यु की संख्या क्यों बढ़ रही है ?यह पता लगाने के लिए फिर रिसर्च प्रारंभ किया गया तो पता लगा कि कोरोना की भयावहता के बिषय में अनुसंधान कर्ताओं के द्वारा कोरोना को लेकर तरह तरह की डरावनी अफवाहें फैलाने से लोगों में बढ़े मृत्युभय के कारण बहुत लोगों की मृत्यु होते देखी गई है | 
    प्रश्नउठा कि जिस कोरोना काल में हृदयरोगियों के लिए अधिक खतरा बताया गया था उसी कोरोना काल में हार्टअटैक के मामले लगभग पचास प्रतिशत कम होने का कारण क्या है ?इस बात की खोज करने के लिए पुनः रिसर्च प्रारंभ किया गया तो उस रिसर्च से पता लगा कि कोरोना काल में बाहर का खानपान, प्रदूषण जैसी चीजें कोरोना काल में नहीं के बराबर हुई हैं।लोगों को अधिकतर समय आने घरों में अपनों के बीच में बैठकर बिताने को मिला !दूसरी बात कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण हमारी जीवनशैली में आए सुधार बड़ी वजह हैं। इस लिए भागदौड़ से अलग अच्छा वातावरण मिलने की वजह से जो लोग पहले से ही हार्टअटैक के रिस्क फैक्टर में थे, उन्हें राहत मिली।इसलिए कोरोना काल में हृदयरोगियों को स्वाभाविक रूप से हृदयरोगों से अधिक परेशानी नहीं उठानी पड़ी अपितु राहत मिली !ऐसे ही रिसर्चों से एक और अंदाजा लगाया जा सका कि जन्मजात हृदय रोगियों को कोरोना का खतरा नहीं है |
     विशेषबात :कुल मिलाकर जब तक कोरोना चला तब तक वैज्ञानिकों की रिसर्च चली किंतु अंत तक हृदय रोगियों के भय को दूर करने के लिए कोई प्रमाणित और निश्चित उत्तर नहीं दिया जा सका कि कोरोना संक्रमण का प्रभाव हृदय रोगियों पर क्या होगा ?
     ऐसी परिस्थिति में यदि इस प्रश्न का कोई निश्चित उत्तर चिकित्सा वैज्ञानिकों के पास नहीं था कि कोरोनासंक्रमण काल  का प्रभाव हृदयरोगियों पर कैसा पड़ेगा तो शुरू में ही उन्हें इस प्रकार की अफवाहें फैलाने से बचा जाना चाहिए था | 
       अब यही बातें बिस्तार से -

कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा बताया गया कोरोना महामारी से हृदयरोगियों को अधिक खतरा -
इस बिषय में कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर दिए गए विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित वक्तव्य :
1. 16 अगस्त 2020 : कोविड-19 रोगी जो हृदय रोग से ग्रसित हैं या जिनमें हृदय रोग होने का जोखिम है, उनके मरने की आशंका अधिक है.यह बात बड़े पैमाने पर हुए एक अध्ययन में सामने आई है | 
 2. पीएलओएस वन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, हृदयरोग से ग्रसित कोविड-19 रोगियों का इलाज करने के दौरान चिकित्सकों को इनके जोखिम कारकों को समझना कठिन रहा !
 3. इटली के मैग्नाग्रेसेया विश्वविद्यालय के लेखकों ने कहा, “ज्यादातर लोगों के लिए कोरोनावायरस रोग (कोविड -19) हल्की बीमारी का कारण बनता है, हालांकि, यह गंभीर निमोनिया पैदा कर सकता है और कुछ लोगों में मृत्यु का कारण बन सकता है.” इस अध्ययन में शोध टीम ने एशिया, यूरोप और अमेरिका में कुल 77,317 अस्पताल में भर्ती मरीजों कोविड -19 रोगियों पर प्रकाशित 21 अवलोकन संबंधी अध्ययनों के आंकड़ों का विश्लेषण करके पता लगाया गया कि “कोविड -19 रोगियों में हृदय संबंधी जटिलताएं आम हैं और यह मृत्यु दर बढ़ाने में योगदान दे सकती हैं.”
 4.  29 Sep 2020 पीएमसीएच के मेडिसिन रोग विभाग्ध्यक्ष व कोविड सेंटर के नोडल प्रभारी डॉ यूके ओझा ने कहा -"कोरोना सबसे ज्यादा फेफड़े व हृदय को प्रभावित कर रहा है। इससे हृदय रोगियों को अधिक गंभीर जटिलताओं के चलते खतरा बढ़ जाता है। जिसके चलते दिल में इंफेक्शन के खतरे के साथ ही हार्ट फेल होने की भी संभावना बढ़ जाती है।"
5. डॉ. के.के.अग्रवाल, अध्यक्ष, हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने कहा – "यह कहीं हद तक सच है कि हार्ट पेशेंट में दूसरे लोगों के मुकाबले कोरोना वायरस का खतरा अधिक है और इसीलिए उन्हें सावधानी भी दूसरे लोगों से अधिक बरतने की ज़रुरत है ।"     
07 Dec 2020 कुछ वैज्ञानिकों का मंतव्य -"कोरोना काल में घर से बाहर न निकलने से भी फेफड़ों में संक्रमण और हार्ट अटैक का खतरा अधिक  होता है "| 
 25अगस्त  2020 प्रकाशित :दिल्ली के सबसे बड़े सुपरस्पेशलिटी अस्पतालों में से एक जी बी पंत हॉस्पिटल में दिल पर हुई स्टडी में  चौकाने वाली बातें सामने आई है. जांच में पता चला है कि यह वायरस दिल के मरीज़ों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहा है. इससे लोगों को हार्ट अटैक जैसे मामलों में भी बढ़ोत्तरी हो रही है.!जानकारी के मुताबिक स्टडी में 45 और 80 के बीच की उम्र के सात कोरोना संक्रमित रोगियों पर अध्ययन किया गया. इसमें कोरोना से दिल पर पड़ने वाले असर से जुड़ी समस्याएँ  सामने आईं !
.30-9-2020प्रकाशित :कोरोना काल में हार्ट अटैक के मामले 20 प्रतिशत तक बढ़े!  
वैज्ञानिकों के अंदाजे के विरुद्ध कोरोनाकाल में हार्टअटैक की घटनाएँ बहुत कम घटित हुईं !
  02-08-2020 को एक लेख प्रकाशित हुआ उसमें बताया गया -"कोरोना काल में 70 प्रतिशत कम हुए हार्ट अटैक !" 
02 Jul 2020 प्रो. एनएन खन्ना अपोलो ग्रुप के सलाहकार और अस्पताल में हृदयरोग विभागाध्यक्ष का प्रकाशित वक्तव्य :कोविड काल में हार्ट अटैक के मामले सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी कम आए हैं।  
02 Aug 2020 : कोरोना के चलते 70 फीसदी कम हुए हार्ट अटैक के मरीज !कोरोना के कारण बीते चार महीनों में अस्पतालों में हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में गिरावट आई है। एम्स से लेकर राम मनोहर लोहिया अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल सहित कई दूसरे अस्पतालों में हार्ट अटैक के मरीजों के मामलों में कमी देखने को मिली है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी हार्ट अटैक वाले मरीजों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई है। 
02 Aug 2020 : आरएमएल अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग में कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तरुण कुमार ने बताया कि आरएमएल अस्पताल में 60-70 फीसदी की गिरावट हार्ट अटैक के मरीजों में देखने को मिली है। सिर्फ 3-4 हार्ट अटैक के मरीज ही अस्पताल पहुंच रहे है। लॉकडाउन खुल जाने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है | 
02 Aug 2020:एम्स में भी कमी :एम्स अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय बताते है कि एम्स ही नहीं दूसरे जगहों पर भी हार्ट अटैक के मरीजों में कमी आई है। कोरोना के डर से अस्पताल न आना इसकी मुख्य वजह हो सकती है।  
12 Aug 2020 को प्रकाशित :  इस कोरोना काल में हार्ट अटैक के मामले 30 फीसदी कम हुए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना काल में न केवल भारत में हर्ट अटैक के मामले कम हुए, बल्कि विदेशों में भी यही स्थिति सामने आई है। 
  12 Aug 2020 को प्रकाशित :विशेषज्ञों के मत से लॉकडाउन हार्ट अटैक रोगियों के लिए फायदेमंद साबित हुआ। अब विस्तार से इस बात का पता लगाने की कोशिश हो रही है कि वे कौन से जोखिम कारक हैं जो कोरोना काल में कम हुए हैं और जिसका सीधा असर साइलेंट यानी बिना लक्षणों वाले हर्टअटैक पर हुआ है। 'एशिया पेसेफिक वैस्कुलर इंटरवेंशन सोसाइटी' की ओर से इसके अध्ययन के लिए टीम का गठन किया गया है।
     अमेरिका में भी हुई 48 फीसदी की गिरावट दर्ज :डॉक्टर के मुताबिक, हार्ट अटैक के मरीज कम होने का असर दिल्ली ही नहीं, बल्कि वैश्विक तौर पर भी देखने को मिला है। खासतौर पर जब से कोरोना का प्रकोप फैला है। उन्होंने एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि अमेरिका के एक शहर में इस संबंध में अध्ययन किया गया, जिसमें कोरोना से पहले और कोरोना काल की अवधि में शोध हुआ। शोध में सामने आया कि हार्ट अटैक के मामलों में 48 फीसदी तक की गिरावट दर्ज हुई है।
    कोरोनाकाल में भी हार्टअटैक कम होने का कारण कुछ यूँ बताया गया !
12 Aug 2020 को प्रकाशित : चिकित्सा क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिका के प्रो. फरीद मुराद, अपोलो ग्रुप के सलाहकार और हृदयरोग विभागाध्यक्ष प्रो. एनएन खन्ना समेत कई विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति जताई कि हार्ट अटैक के मरीज या तो बहुत कम हो गए हैं या फिर अस्पतालों में कम पहुंच रहे हैं। दरअसल, हार्ट अटैक के लिए ट्रिगर माने जाने वाले कई रिस्क फैक्टर मतलब जोखिम कारक, जैसे कि बाहर का खानपान, प्रदूषण जैसी चीजें कोरोना काल में नहीं के बराबर हुई हैं। इस वजह से जो लोग पहले से ही हर्ट अटैक के रिस्क फैक्टर में थे, उन्हें राहत मिली।कुछ लोग बहुत समय के बाद अपनों के साथ अपने घरों में काम काज के तनाव से अलग इतना समय शांत एवं एकांत बिता सके !
     कोलंबिया विश्वविद्यालय अंतर्गत इरविंग मेडिकल सेंटर में हुए अध्ययन में कहा गया है कि जो बच्चे जन्मजात हार्ट डिसीज के साथ पैदा होते हैं, उन्हें गंभीर कोरोना संक्रमण का खतरा नहीं है। शोधकर्ता अमेरिका के वैगेलोस कॉलेज ऑफ फिजिशियन और सर्जन में जन्मजात दिल के रोगियों का विश्लेषण करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं। उनका कहना है कि सिर्फ जन्मजात हृदय रोग गंभीर कोरोना लक्षणों का कारक नहीं हो सकता।
          मौतों का कारण कोरोना कम तथा कोरोना की अफवाहें एवं मरने का तनाव अधिक रहा ! 
        24दिसंबर 2020  प्रकाशित :  कोरोना से हार्ट अटैक के मामले 10 से 15 फीसदी बढ़ रहे हैं. चिकित्सकों का कहना है कि सबसे बड़ा कारण कोविड को लेकर डर है. लोग कोविड टेस्ट से बचने के लिए अस्पताल नहीं जा रहे हैं, जिससे मौतें बढ़ रही हैं. मृत घोषित होने के बाद जब अस्पताल लाया जाता है तो कोविड फोबिया सामने आता है. तमाम रोगों से ग्रस्त 90 फीसदी मरीज डॉक्टरों के संपर्क में नहीं हैं. 
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के कार्डियो-थोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. मुकेश गोयल कहते हैं, कोरोनाकाल में इमरजेंसी यूनिट में हार्ट अटैक के मामले कम आ रहे हैं। कोरोना के कारण मरीज अस्पताल आने से डर रहे हैं। इसलिए घर पर कार्डियक अरेस्ट के कारण होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है। 
  02 Aug 2020 प्रकाशित :डर मुख्य कारण :सफदरजंग अस्पताल में भी हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में गिरावट आई है। अस्पताल के एक डॉक्टर के अनुसार, पहले रोजाना दस हार्ट अटैक के मरीज इलाज के लिए आते थे। अब संख्या पांच पर सिमट गई है। इसका मुख्य कारण कोरोना के डर से अस्पताल इलाज के लिए न आना है। हल्का हार्ट अटैक होने पर मरीज उसे कोरोना के डर से दरकिनार कर रहा है। जब उसे दोबारा तकलीफ महसूस होती है तो हार्ट अटैक होने के बारे में पता चलता है। 
  29 जुलाई  2020,एम्स के डॉ. अजय मोहन के अनुसार, कोविड-19 महामारी ने देश और दुनियाभर के लोगों के जीवन में कई स्तरों पर तनाव ला दिया है. लोग न केवल अपने परिवार के बीमार होने के बारे में चिंतित हैं, बल्कि वे आर्थिक और भावनात्मक मुद्दों, सामाजिक समस्याओं और संभावित अकेलेपन से निपट रहे हैं. अब ये तनाव शरीर और दिलों पर असर डाल रहा है!  
 02 Jul 2020लॉकडाउन के दौरान पूरे प्रदेश में कोरोना संक्रमण से जितनी लोगों की मौत हुई है, उससे कई गुना ज्यादा लोगों की मौत अकेले एससीबी मेडिकल में कोरोना के खौफ के कारण हुई है। जानकारी के मुताबिक साढ़े तीन महीने के लॉकडाउन के दौरान एससीबी मेडिकल में दूसरी बीमारी से पीड़ित 3 हजार लोगों ने दम तोड़ दिया है। इन लोगों के मृत्यु के पीछे का कारण कोरोना भय को माना गया है। क्योंकि कोरोना के भय के कारण विभिन्न गम्भीर बीमारी से पीड़ित लोग अपना इलाज कराने अस्पताल नहीं गए और जब अस्पताल पहुंचे तब तक उनकी हालत इतनी बिगड़ गई थी कि उन्हें बचाना मुश्किल हो गया।   
  25दिसंबर2020 को प्रकाशित :कोरोना काल में बढ़ीं हार्ट अटैक से होने वाली मौतें! कोरोना के दौरान हार्ट अटैक के केस 10 से 20 फीसदी बढ़े हैं, जिसकी बड़ी वजह है कि हृदय रोगी कोविड टेस्ट (Covid Heart attack Cases) से बचने के लिए अस्पताल जाने से बच रहे हैं. मुंबई के तमाम अस्पतालों में करीब 90 फीसदी दिल के मरीज अपने डॉक्टरों के संपर्क में नहीं हैं. ऐसे में जब दिल के रोगियों को गंभीर हालात में लिया जाता है तो उन्हें बचाना मुश्किल होता है| 
 कोरोना से मृत्यु :   
 6 जून, 2020  को एक लेख प्रकाशित हुआ उसमें लिखा था - वैज्ञानिकों के द्वारा कोरोना महामारी से संक्रमितों की मृत्यु बड़ी संख्या में हुई बताया जा रहा है !सांस लेने में तकलीफ या कोविड जैसे कुछ अन्य लक्षणों के कारण बिना डॉक्टरी सलाह के गलत दवा लेने से भी मौतें बढ़ी हैं|    
 18 Jul 2020 को एक लेख प्रकाशित हुआ उसमें लिखा था -" कोरोना महामारी में इतनी अधिक संख्या में मौतें होने के बाद भी मृतकों की संख्या पिछले साल के मुकाबले कम रही है !"
 
    जिन्हें कोरोना चिकित्सा के होने के बाद स्वस्थ होने पर हृदयरोग हुआ इससे शंका हुई !   

          जनता ने अक्सर अपने प्रिय चिकित्सा वैज्ञानिकों से सुन रखा था कि कोरोनासंक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए अभी तक कोई उपयुक्त औषधि या वैक्सीन आदि नहीं बनी है जिससे कोरोना संक्रमितों की चिकित्सा की जा सके इसके बाद भी कहा जा रहा था कि कोरोना संक्रमित होने के बाद तुरंत चिकित्सा के लिए डॉक्टरों से संपर्क करें !लोग ऐसा कर भी रहे थे वे अस्पतालों में एडमिट भी किए जा रहे थे और उनकी चिकित्सा भी की जा रही थी जिसके मोटे मोटे बिल भी संक्रमित लोगों को चुकाने पड़ रहे थे !

        ऐसी परिस्थिति में आम जनता के मन में शंका  स्वाभाविक ही था कि यदि कोरोना संक्रमण के लिए कोई औषधि बनी ही नहीं थी तो चिकित्सालयों में संक्रमितों को एडमिट करके चिकित्सा किस रोग की किन औषधियों से और कैसे की जा रही थी और उसके लिए किस योगदान के लिए धनराशि वसूली जा रही थी ?यदि कुछ कर सकते थे तो हामी भरते और यदि नहीं कर सकते थे तो कोरोना संक्रमितों को अस्पताल जाने की सलाह देने का औचित्य क्या था ?

      कोरोना महामारी का स्वभाव नहीं पता था | रोग का संक्रमण बढ़ने और घटने का कारण नहीं पता था | वेंटिलेटर लगे होने के बाद भी लोगों की मृत्यु होते देखी जा रही थी | इसके बाद भी चिकित्सा करना संभव कैसे था क्योंकि प्रत्येक कुशल चिकित्सक किसी रोगी की चिकित्सा करने से पूर्व रोग के वास्तविक स्वरूप को समझ लेना चाहता है उसके बाद ही उसके द्वारा की गई उस रोग की चिकित्सा सफल होते देखी जाती है ऐसी परिस्थिति में जिस रोग के बिषय में कुछ भी पता ही न हो उसकी चिकित्सा कैसे संभव है !फिर भी यदि कोई चिकित्सा करता ही है तो उस रोगी पर चिकित्सा के अच्छे या बुरे दोनों ही प्रकार के परिणाम हो सकते हैं | 

       चिकित्सालयों में जाकर स्वस्थ होने वाले रोगियों के शरीरों में ही बाद में कुछ विशेष प्रकार के दूसरे रोग पनपते देखे गए जबकि कोरोना से संक्रमित तो बहुत बड़ा वर्ग हुआ बताया जाता है कुछ लोगों ने ही कोरोना संक्रमण की जाँच करवाई थी जबकि बहुत लोगों ने जाँच नहीं भी करवाई कोई दवा भी नहीं ली संक्रमण के लक्षण पहचानकर घरों में ही बने रहे और स्वस्थ भी हो गए उनके शरीरों में इस प्रकार के दुष्प्रभाव भी होते नहीं देखे गए ! इससे ये शंका होनी स्वाभाविक ही है कि रोग को समझे बिना जो चिकित्सा की जाती रही ये कहीं उसी के दुष्प्रभाव तो नहीं थे | 

    इस बिषय में किए गए अनुसंधानों से संबंधित वक्तव्य : 

      30 सितंबर 2020 को प्रकाशित :वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट कहती है, कोरोना से रिकवर हो चुके मरीजों के हार्ट पर गहरा असर पड़ा है। संक्रमण के इलाज के बाद इनमें सांस लेने में दिक्कत, सीने में दर्द जैसे लक्षण दिख रहे हैं। हार्ट के काम करने की क्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है। जो लंबे समय तक दिखेगा |  

30 सितंबर 2020 को प्रकाशित :अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक कोरोना से रिकवर होने वाले 100 में से 78 मरीजों के हार्ट डैमेज हुए और दिल में सूजन दिखी। रिसर्च कहती है, जितना ज्यादा संक्रमण बढ़ेगा भविष्य में उतने ज्यादा बुरे साइड-इफेक्ट का खतरा बढ़ेगा।

30 सितंबर 2020 को प्रकाशित:ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक कोरोना से रिकवर होने वाला हर 7 में से 1 इंसान हार्ट डैमेज से जूझ रहा है। यह सीधेतौर पर उनकी फिटनेस पर असर डाल रहा है।

 02 Aug 2020 प्रकाशित :कोरोना को हराने के बाद मरीज भले ही स्वस्थ्य हो गया हो, लेकिन बीमारी के संक्रमण ने शरीर के दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचाया है। हाल ही में प्रकाशित एक शोध में यह जानकारी आई है कि कोरोना फेफड़ों को ही नहीं दिल को भी क्षति पहुंचा रहा है। हार्ट अटैक की संभावना प्रबल हो जाती है। कोरोना को हराने वाले 100 मरीजों पर शोध किया गया था, जिनकी उम्र 45 से 53 के बीच में थी। उनकी एमआरआई कराने पर सामने आया कि 78 मरीजों के दिल के आकार में बदलाव देखने को मिला है। इस तरह के बदलाव केवल हार्ट अटैक के आने के बाद ही किसी मरीज में देखने को मिलते हैं। 

जनता ने अपने वैज्ञानिकों से पूछा कि कोरोना से सबसे अधिक खतरा किस उम्र के लोगों को है ?

 विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सबसे अधिक 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को बताया था जबकि संक्रमण का सबसे अधिक खतरा 18 से 44 वर्ष के लोगों को हुआ है | यहाँ भी वैज्ञानिकों का अनुमान सही नहीं निकला !

01 Apr 2020 जहाँ एक ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वायरस संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा उन लोगों को को बताया था जिनकी उम्र 60 साल या इससे अधिक है |

 30 Dec 2020 को एक सर्वे के आंकड़े प्रकाशित किए गए जिसमें लिखा है -"18 से 44 वर्ष के लोग कोरोना से सबसे अधिक पीड़ित हुए हैं |"                                                   

 
      मेल 19 मार्च  2020 वाली
 कोरोना का विस्तार क्षेत्र कितना है ?
 20-4-2020:नदी के पानी में कोरोना के लक्षण ! पेरिस की सीन नदी और अवर्क नहर के पानी में कोरोना कोरोना वायरस का संक्रमण पाया गया है !
 
 कोरोना प्राकृतिक है या मनुष्य कृत है ?
     19-4-2020 : चीन के वुहान में कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत कैसे हुई ?
      इसमें दुनिया भर के रिसर्चरों और पत्रकारों की महीनों से रुचि रही है | कोरोना वायरस वुहान के मीट बाजार से फैला जहां चमगादड़ बेचे जा रहे थे. लेकिन अब बताया जा रहा है कि उस बाजार में चमगादड़ थे ही नहीं और वायरस चीन की लैब से निकला है. तो सच्चाई क्या है?
   पश्चिमी मीडिया में रिपोर्ट किया जा रहा है कि पास के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से वायरस लीक हुआ | 
   जनवरी के अंत में "साइंस" नाम की विज्ञान पत्रिका ने एक लेख छापते हुए चीन के आधिकारिक बयान पर सवाल उठाया जिसके अनुसार वायरस मीट बाजार में जानवरों से इंसानों में फैला. इसके बाद "द लैंसेंट" पत्रिका ने लिखा कि कोविड-19 संक्रमण के शुरुआती 41 मामलों में से 13 कभी वुहान के मीट बाजार गए ही नहीं !       
1-5-2020 -ट्रंप ने कहा कि चीन की लैब से पैदा हुआ कोरोना बायरस ! जबकि अमेरिका के वैज्ञानिक जोर देकर कह रहे हैं कि कोरोना वायरस प्राकृतिक है |इसके  अपनी रिसर्च का हवाला भी दे रहे हैं |
23-4-2020:स्टैनफोर्ड मेडिकल स्कूल में संक्रमक रोगों के प्रोफेसर रॉबर्ट शेफर का कहना है -"प्रकृति में इस प्रकार की कई चीजें मौजूद हैं जिनसे इस प्रकार की महामारी पैदा हो सकती है |
23-4-2020: ट्यूलन स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ.रॉबर्ट गैरी का कहना है कि यह मानव निर्मित नहीं अपितु प्राकृतिक है | 
24अप्रैल2020: विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है किवर्तमान तक के सभी उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक है और इसमें किसी तरह की कोई हेराफेरी नहीं है और न ही यह मानव निर्मित वायरस है।
12 मई 2020चीन में शानदोंगे फर्स्ट मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि जहां शोधकर्ता चमगादड़ को वायरस का प्राकृतिक वाहक मान रहे हैं, वहीं वायरस की उत्पत्ति अब भी स्पष्ट नहीं है।
जनता ने अपने वैज्ञानिकों से पूछा कोरोना कब तक रहेगा आपका क्या पूर्वानुमान है ?

वैज्ञानिकों ने इस प्रकार से बताया कोरोना पूर्वानुमान!

 2-4-2020 को प्रकाशित: चीन के सबसे बड़े कोरोना वायरस एक्सपर्ट डॉ. झॉन्ग नैनशैन ने दावा किया है कि"4 हफ्तों में कम होंगे कोरोना वायरस के मामले !"इसके आधार पर मई प्रारंभ से कोरोना संक्रमण समाप्त हो जाना चाहिए था |

17 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :"गृह मंत्रालय के आंतरिक सर्वेक्षण में पता चला है कि मई के पहले सप्ताह में कोरोना के मरीजों की संख्या में काफी तेजी देखने को मिलेगी." जबकि मई इसके बाद कोरोना मरीजों की संख्या धीरे-धीरे कम होने लगेगी.!

24 अप्रैल 2020  को नीति आयोग के सदस्य और चिकित्सा प्रबंधन समिति के प्रमुख वीके पॉल ने एक अध्ययन पेश किया था , जिसमें उन्होंने भविष्यवाणी की थी -"देश में कोरोना संक्रमण के नए मामले 16 मई तक खत्म हो जाएँगे | 

  26 Apr 2020 को आईआईटी कानपुर ने कहा -"भारत जल्द ही कोरोना संकट से उबरेगा ! 

27 अप्रैल 2020 को सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन के शोधकर्ताओं का एक रिसर्च प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने कहा है -"भारत में 27 मई 2020 तक कोरोना संक्रमण समाप्त हो सकता है !

8 May 2020 को एम्स के डायरेक्टर डॉ. गुलेरिया  ने जून-जुलाई में कोरोना संक्रमण चरम पर पहुंचने की बात कही थी | 

09 May 2020केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा-" जल्द फ्लैट ही नहीं रिवर्स हो जाएगा कोरोना ग्राफ  !"

09 May 2020 बिहार के बरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ. अजय कुमार ने कहा कि जून-जुलाई में कोरोना के मरीज बढ़ेंगे नहीं अपितु  घटने शुरू होंगे ! 

09 May 2020 डॉ. अमरकांत आईएमए, बिहार के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ. अमरकांत झा ने कहा कि जून में कोरोना का संक्रमण स्थिर हो जायेगा। इसके बाद इसमें उत्तरोत्तर घटोत्तरी होगी।

Jun 6, 2020ऑनलाइन जर्नल एपीडेमीयोलॉजी इंटरनेशनल में प्रकाशित:"मध्य सितंबर के आसपास भारत में खत्म हो सकती है कोरोना महामारी ".

15 जून 2020 इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा गठित रिसर्च ग्रुप की ओर से कहा गया कि नवंबर महीने में कोरोना संक्रमण अपने पीक पर होगा!

 16- 6-2020 को भारतीय वैज्ञानिक न्यूकिलीयर एवं अर्थसाइंटिस्ट  डॉ. के  एल सूंदर कृष्णा वैज्ञानिक ने दावा किया कि 21 जून 2020 को कोरोना वायरस समाप्त हो जाएगा | 

1 अगस्त, 2020 को महामारी को लेकर स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए हुई बैठक के बाद ये बयान जारी किया गया -" कोरोना वायरस महामारी के लंबे समय तक रहने की संभावना है.|" 
19 अक्टूबर 2010 को प्रकाशित दक्षिणी भारत वाणिज्य और उद्योग मंडल द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ साइंटिस्ट सौम्या विश्वनाथन का एक बयान -"2 साल तक कोरोना से राहत नहीं!"

 और यही वक्तव्य अब विस्तार से -

 2-4-2020 को प्रकाशित:"4 हफ्तों में कम होंगे कोरोना वायरस के मामले !"चीन के सबसे बड़े कोरोना वायरस एक्सपर्ट डॉ. झॉन्ग नैनशैन ने ने दावा किया है कि अगले चार हफ्तों में पूरी दुनिया बदल जाएगी. मतलब पहले जैसी हो जाएगी. कोरोना वायरस के नए मामलों में कमी आएगी. साथ ही ये भी भविष्यवाणी की है कि चीन में अब कोरोना वायरस का दूसरा हमला नहीं होगा. ये भविष्यवाणी की हैं . डॉ. झॉन्ग कोरोना वायरस को लेकर चीन की सरकार द्वार तैनात मुख्य टीम के प्रमुख भी हैं.!  

17 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :गृह मंत्रालय की ओर से किए गए एक आंतरिक सर्वेक्षण में पता चला है कि मई के पहले सप्ताह में कोरोना के मरीजों की संख्या में काफी तेजी देखने को मिलेगी. हालांकि, इसके बाद कोरोना मरीजों की संख्या धीरे-धीरे कम होने लगेगी.!

 24 अप्रैल 2020  को नीति आयोग के सदस्य और चिकित्सा प्रबंधन समिति के प्रमुख वीके पॉल ने एक अध्ययन पेश किया था , जिसमें उन्होंने भविष्यवाणी की थी -"देश में कोरोना संक्रमण के नए मामले 16 मई तक खत्म हो जाएँगे . उनके अध्ययन के अनुसार, 3 मई से भारत में रोज आने वाले मामलों में 1500 से थोड़ा ऊपर जाएगा और 12 मई तक 1,000 मामलों तक गिर जाएगा और 16 मई तक शून्य हो जाएगा."

     यह रिसर्च भी सच्चाई की कसौटी पर खरा नहीं उतर सका | वैज्ञानिकमहोदय ने अब तक के आंकड़ों के विश्लेषण के जरिए भविष्य के लिए प्रोजेक्शन ग्राफ पेश कर बताया कि 30 अप्रैल तक देश में कोरोना का संक्रमण अपने चरम पर होगा और 30 अप्रैल के बाद देश में कोरोना संक्रमण में गिरावट का दौर शुरू हो सकता है।यही डॉक्टर वीके पॉल जी महामारी से निपटने के लिए बने टास्क फोर्स के सदस्य बताए जाते हैं  | 

     26 Apr 2020 07:12 AMआईआईटी कानपुर ने कहा -"भारत जल्द ही कोरोना संकट से उबरेगा!"किंतु ऐसा नहीं हुआ उसके बाद भी महामारी का संक्रमण लगातार बढ़ता चला गया | 
     वैज्ञानिक रिसर्च के नाम पर यह शोध आईआईटी में फिजिक्स विभाग के प्रोफेसर महेंद्र वर्मा ने किया था उन्होंने  अपने सहयोगियों सौम्यदीप चैटर्जी, असद अली, शाश्वत भट्टाचार्या और शादाब आलम की मदद से दुनिया भर के देशों के कोरोना पॉजिटिव मामलों और हुई मौतों के आधार पर गणितीय अध्ययन किया और उन्होंने आकलन के लिए वर्ल्ड मीटर वेबसाइट का सहारा भी  लिया था ।
     27 अप्रैल को सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन के शोधकर्ताओं का एक रिसर्च प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने कहा है -"भारत में 27 मई 2020 तक कोरोना संक्रमण समाप्त हो सकता है !इस अध्ययन के अनुसार 8 दिसंबर 2020 को दुनिया भर में कोरोनोवायरस 100 फीसदी तक खत्म हो जाएगा."इस रिसर्च की माने तो दुनिया में कोरोनावायरस के 97% केस 30 मई तक, 99% केस 17 जून तक और 100% केस 9 दिसंबर 2020 तक खत्म हो जाएंगे.!
       इनके द्वारा लगाया गया पूर्वानुमान पूरी तरह ध्वस्त हुआ उन्होंने भारत में 27 मई 2020 तक कोरोना संक्रमण समाप्त होने की बात कही जो पूरी तरह गलत हो गया ! 
    8 May 2020 को एम्स के डायरेक्टर डॉ. गुलेरिया ने चेतावनी जारी की थी -", जून-जुलाई में चरम पर पहुंच सकती है महामारी !"
    स्पष्टीकरण देते हुए कहा गया कि डाटा के अध्‍ययन से यह बात तो साफ है कि अब यह लग रहा है कि जिस हिसाब से यह बीमारी बढ़ रही है उससे यह कहा जा सकता है कि बीमारी अगले एक दो महीने (जून-जुलाई) में अपने चरम पर होगी।
09 May 2020डॉ. गुलेरिया के बयान पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, जल्द फ्लैट ही नहीं रिवर्स हो जाएगा कोरोना ग्राफ !मुझे नहीं पता कि क्या सोचकर डॉ. गुलेरिया ने यह बयान दिया है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मैं कह सकता हूं कि आने वाले सप्ताहों में धीरे-धीरे पूरी तरह से फ्लैट होगा और रिवर्स भी होगा।
 
AIIMS के डायरेक्टर डॉ. गुलेरिया  के इसी बयान  पर-
  09 May 2020 बिहार के सीनियर डॉक्टरों ने कहा, जून-जुलाई में कोरोना के मरीज बढ़ेंगे नहीं अपितु  घटने शुरू होंगे !वरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ. अजय कुमार ने कहा कि डॉ. रणदीप गुलेरिया के इस बयान का आधार क्या है, उन्होंने इसके लिए आंकड़े कहां से इकट्ठे किए , इसकी कोई जानकारी नही है। इसे सामान्यीकृत तरीके से सभी पर लागू नहीं किया जा सकता।
   09 May 2020 जून में कोरोना का संक्रमण स्थिर हो जायेगा :डॉ. अमरकांत आईएमए, बिहार के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ. अमरकांत झा ने कहा कि जून में कोरोना का संक्रमण स्थिर हो जायेगा। इसके बाद इसमें उत्तरोत्तर घटोत्तरी होगी। 
    विशेषबात:डॉ.गुलेरिया ने जो कुछ कहा और उनके बयान  के संदर्भ में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जी ने जो कुछ कहा इसके अतिरिक्त बिहार के वरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ. अजय कुमार जी एवं आईएमए बिहार के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ.अमरकांत झा ने जो कुछ कहा उसमें सच की कसौटी पर कसने लायक कुछ भी नहीं निकला सब कुछ गलत होता चला गया | 
Jun 6, 2020ऑनलाइन जर्नल एपीडेमीयोलॉजी इंटरनेशनल में प्रकाशित:"मध्य सितंबर के आसपास भारत में खत्म हो सकती है कोरोना महामारी ". स्वास्थ्य मंत्रालय के दो जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह दावा किया है! 
 इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा गठित रिसर्च ग्रुप का रिसर्च !
 15 जून 2020 इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा गठित रिसर्च ग्रुप की स्टडी बेहद चौंकाने वाली बात सामने आई !उसके मुताबिक नवंबर महीने में कोरोना अपने पीक पर होगा साथ ही इस दौरान देशभर में कोरोना मरीजे के लिए बेड्स और वेंटिलेटर्स की कमी हो सकती है !जबकि 18 सितम्बर के बाद कोरोना संक्रमण क्रमशः समाप्त होने लगा था संक्रमितों के स्वस्थ होने की संख्या दिनोंदिन बढ़ने लगी थी | 
    21जून 2020 तक समाप्त हो जाएगा कोरोना !
 16- 6-2020 को भारतीय वैज्ञानिक न्यूकिलीयर एवं अर्थसाइंटिस्ट  डॉ. के  एल सुंदर कृष्णा वैज्ञानिक ने दावा किया कि 21 जून 2020 को  सूर्यग्रहण के दिन कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा | 
 1 अगस्त, 2020 को महामारी को लेकर स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए हुई बैठक के बाद ये बयान जारी किया-" कोरोना वायरस महामारी के "लम्बे" वक्त रहने की संभावना है.|" 19 अक्टूबर 2010 को प्रकाशित दक्षिणी भारत वाणिज्य और उद्योग मंडल द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ साइंटिस्ट सौम्या विश्वनाथन का एक बयान -"2 साल तक कोरोना से राहत नहीं!"
 
 
 कोरोना वायरस का प्रसार हवा से होता है या नहीं ?इस पर विविध वैज्ञानिकों के भिन्न भिन्न प्रकार के वक्तव्य !
   1जुलाई2020 को प्रकाशित:भारत में 24 मार्च से लॉकडाउन चल रहा था।1जून से अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई है जिसके बाद कोरोना और तेजी से फैलता जा रहा है। देश में अब तक कुल संक्रमित मरीजों का आंकड़ा सात लाख के पार पहुंच गया है। महज एक जुलाई से पांच जुलाई के बीच एक लाख से ज्यादा मरीज आ गए। कोरोना वायरस से प्रभावित देशों की सूची में भारत तीसरे पायदान पर आ गया है। भारत से ऊपर अब केवल दो ही देश हैं ब्राजील और अमेरिका।ऐसी परिस्थिति में कुछ वैज्ञानिक कहने लगे कि कोरोना संक्रमण के प्रसार का माध्यम कहीं हवा ही तो नहीं है ?

                 वैज्ञानिकों के द्वारा दी गई जानकारी -

 हवा के द्वारा कोरोना का प्रसार होता है | 
 
6 जुलाई 2020 को प्रकाशित :32 देशों के 239 वैज्ञानिकों का दावा- हवा से फैल रहा कोरोना !वैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना वायरस हवा के जरिए भी फैलता है, लेकिन डब्ल्यूएचओ इसे लेकर गंभीर नहीं है और संगठन ने अपनी गाइडलाइंस में भी इस पर चुप्पी साधी हुई है !
 
21 Jul 2020 वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) ने लोगों को बंद जगहों पर भी मास्क पहनने की नसीहत दी गई है।
  21 Jul 2020 CSIR के चीफ शेखर सी मांडे ने विभिन्न स्टडी तथा विश्लेषणों के हवाले से लिखा कि जितने भी सबूत निकले हैं उससे पता चलता है कि SARS-CoV-2 का हवा से भी प्रसार संभव है।
 
 हवा के द्वारा कोरोना का प्रसार नहीं होता है |
6 मार्च 2020 :आईएमआरसीप्रमुख डॉ बलराम भार्गव  का कहना है कि वायरस का प्रसार हवा के माध्यम से नहीं  होता है |   
"द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 32 देशों के 239 वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है।" कोरोनावायरस हवा से भी फैल सकता है |
32 देशों के 239 वैज्ञानिकों ने बताया कि कोरोना वायरस हवा के जरिए फैलता है | आईएमआरसीप्रमुख डॉ बलराम भार्गव  का कहना है कि वायरस का प्रसार हवा के माध्यम से नहीं  होता है| विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने कहा कि हवा के जरिए इस वायरस के फैलने का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है |रिसर्च के बाद ही सामने आ पाएगा कि क्या वाकई कोरोना वायरस हवा में फैल सकता है!इसी प्रकार से कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने हवा के माध्यम से वायरस फैलने का समर्थन किया तो कुछ ने विरोध जनता को अपने प्रश्न का उत्तर कुछ नहीं मिला अंत में उसने जो उचित लगा वो निर्णय लिया !
          कोरोना वायरस का प्रसार संक्रमितों के संपर्क में आने से होता है !  
 
6 मार्च 2020 :आईएमआरसीप्रमुख डॉ बलराम भार्गव  का कहना है कि वायरस का प्रसार हवा के माध्यम से नहीं  होता है वायरस का खतरा जीव जनित होता है संक्रमितों के संपर्क में आने से वायरस का खतरा होता है | 
     ऐसे में प्रश्न उठता है कि मजदूरों के पलायन में घनी बस्तियों में रहने वालों में आंदोलनरत किसानों में महानगरों में उमड़ने वाली बाजारों या साप्ताहिक बाजारों से कोरोना संक्रमण फैला क्यों नहीं ?ऐसी परिस्थिति में लॉक डाउन या सामाजिक दूरी जैसी बातों पर संशय होना स्वाभाविक ही है | 
    डब्ल्यूएचओ का भ्रम - संक्रमण हवा से फैलता है या नहीं !
      डब्ल्यूएचओ ने पहले कहा कि इस वायरस का संक्रमण हवा से नहीं फैलता है। यह सिर्फ थूक के कणों से ही फैलता है। ये कण कफ, छींक और बोलने से शरीर से बाहर निकलते हैं। ये इतने हल्के नहीं होते कि हवा के साथ दूर तक उड़ जाएं। वे बहुत जल्द ही जमीन पर गिर जाते हैं।

 7 जुलाई 2020 को प्रकाशित :विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन में संक्रमण से बचाव और नियंत्रण संबंधी तकनीकी टीम की प्रमुख डॉक्‍टर बेनेडेट्टा अलेग्रांज़ी के अनुसार शोधार्थियों ने कोविड संक्रमण के फैलने के संबंध में विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की सिफारिशों पर पुनर्विचार की अपील की है। लेकिन विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन को हवा के जरिए इस वायरस के फैलने का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है |  
 8  जुलाई 2020 को प्रकाशित :विश्व स्वास्थ्य संगठन  वैज्ञानिकों की बात पर रिसर्च करने की बात कह रहा है। रिसर्च के बाद ही सामने आ पाएगा कि क्या वाकई कोरोना वायरस हवा में फैल सकता है !
WHO ने स्वीकारा, हवा के जरिए भी फैल सकता है कोरोना वायरस, जरूर जानें यह 2 बात ! पहले WHO इस बात को मानने से इनकार कर रहा था लेकिन कुछ विशेष मामलों और इस बात के सुबूतों की पुष्टि करने के बाद अब उसने इस बारे में नया बयान जारी किया है,इसी बीच इस बात की आशंका जताई जा रही थी कि कोरोना वायरस हवा के जरिए भी फैल रहा है। अब WHO ने इस पर अपना बयान जारी किया है।

                                कोरोनासंक्रमण पर मौसम का क्या असर होगा ?

महामारी पर वैज्ञानिक उत्तर :कोरोनासंक्रमण पर मौसम का असर नहीं है !

11 अगस्त 2020 को डब्ल्यूएचओ के आपात मामलों के प्रमुख डॉ. माइकल रेयान का एक बयान  प्रकाशित हुआ -"कोरोना वायरस (कोविड-19) में मौसमी प्रवृत्ति दिखाई नहीं पड़ रही है। इसके चलते इस खतरनाक वायरस पर अंकुश पाना कठिन होता जा रहा है।" 

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ.आशीष झा ने राहुल गाँधी से बात करते हुए कहा - कोरोना को लेकर कई तरह के सबूत हैं कि मौसम फर्क डालता है,लेकिन गर्मी से ये रुक जाएगा, ऐसा तर्क देना पूरी तरह सही नहीं है ! 
 

                                कोरोनासंक्रमण पर तापमान घटने बढ़ने का क्या असर होगा ?

 वैज्ञानिक उत्तर : तापमान बढ़ते ही समाप्त हो सकता है कोरोना वायरस !
 
 वैज्ञानिकों के तर्क :
12 Jun 2020 को प्रकाशित :भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुंबई के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है - "गर्म मौसम में कोरोना वायरस के सक्रिय रहने की गुंजाइश कम है |"

March 17, 2020अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दिए एक बयान में कोरोनावायरस का कनेक्शन  मौसम से जोड़ते हुए कहा था कि अप्रैल माह की शुरुआत में कोरोनावायरस का असर अपने आप खत्म हो जाएगा। इसके पीछे उनका तर्क था कि भीषण गर्मी में वायरस मर जाते हैं, जिससे इसका प्रभाव धीरे-धीरे खत्म होने लगेगा। 

March 17, 2020 विशेषज्ञों का मानना है कि चीन में ठंड के मौसम में अस्तित्व में आए कोरोनावायरस के आधार पर कहा जा रहा है कि तामपान में गिरावट से इसका असर बढ़ सकता है।

                     तापमान घटने और सर्दियों के बढ़ने का  कोरोनासंक्रमण पर कैसा प्रभाव पड़ेगा ?
 वैज्ञानिक उत्तर : तापमान घटते और सर्दियों के बढ़ते ही बढ़ सकता है कोरोना संक्रमण !
 वैज्ञानिकों के तर्क :
      10 Oct 2020 को नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल का बयान प्रकाशित हुआ -"दिल्ली में सर्दियों में कोरोना से हालात बिगड़ सकते हैं। रोजाना औसतन 15 हजार मरीज आ सकते हैं।" 
स्वास्थ्य मंत्री जी  का वक्तव्य :
     11 Oct 2020 देश के स्वास्थ्य मंत्री जी ने रविवार को 'संडे संवाद कार्यक्रम' में कहा -"SARS Cov 2 एक रेस्पिरेट्री वायरस है और ऐसे वायरस को ठंड के मौसम में बढ़ने के लिए जाना जाता है।इसलिए सर्दियों में भारत में ज्यादा खतरनाक हो जाएगा कोरोना "
विशेषबात:आईएमआरसीप्रमुख डॉ बलराम भार्गव का कहना है - तापमान के गिरने से कोरोना संक्रमण के बढ़ने पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है

 वैज्ञानिकों से प्रश्न :कोरोनासंक्रमण पर वर्षा होने का क्या असर होगा ?

 24 Mar 2020 को दिल्ली-एनसीआर में आंधी के साथ तेज बारिश हुई।लोगों के मन में सवाल उठा कि बारिश का कोरोना वायरस पर क्या असर होनेवाला है।वायरस इससे खत्म हो जाएगा या और बढ़ेगा? 
 वैज्ञानिकों के उत्तर :
    फोर्ब्स मैगजीन में आई एक रिपोर्ट में साल 2017 - 
    साइंस जर्नल इंटरनेशनल सोसायटी फॉर माइक्रोबियल इकॉलॉजी : बारिश का पानी बैक्टीरिया को तो फिर भी खत्म कर पाता है लेकिन वायरस के पनपने के लिए ये काफी अनुकूल मौसम है.
    साल 2012 में हुई एक स्टडी :बारिश का मौसम कोरोना संक्रमण को और बढ़ा सकता है !
मलेशिया में स्टडी हुई :इस दौरान देखा गया कि बारिश के मौसम में वायरस तेजी से फैलता है |
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु के प्रोफेसर राजेश सुंदरसन कहते हैं - जैसे ही हम सामान्य रुटीन की तरफ जाएंगे, इंफेक्शन का खतरा बढ़ता जाएगा. बारिश के साथ ये खतरा और बढ़ जाएगा ! 
31 मई 2020 वैज्ञानिकों ने आगाह  किया  है कि बारिश में और बढ़ सकता है कोरोना संक्रमण, !
यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर में एपिडेमियोलॉजी विभाग की वैज्ञानिक डॉ जेनिफर होर्ने ने एक इंटरव्यू में - 
       बारिश के पानी में सफाई करने लायक असर नहीं होता है. और न ही ये वायरस को खत्म कर पाता है, बल्कि बारिश का मौसम कई सारी मौसमी बीमारियां लेकर आता है, जिनमें वायरस और बैक्टीरियल दोनों तरह की बीमारियां हैं. चूंकि कोरोना भी वायरस है इसलिए ये भी दूसरे वायरसों की तरह ही व्यवहार करेगा अर्थात बढ़ेगा !
 
  अनिश्चय की स्थिति :साइंस जर्नल करंट ओपिनियन इन वायरोलॉजी में आई इस स्टडी : वैज्ञानिकों ने वायरस-रेनवॉटर रिलेशनशिप का अध्ययन किया. इसके मुताबिक वायरस किस तेजी से फैलता है ये सिर्फ वायरस की संक्रामकता पर नहीं, बल्कि कई चीजों पर निर्भर करता है. इसमें मौसम, ह्यूमिडिटी, तापमान और हवा का बहाव भी शामिल हैं. श्वसन तंत्र पर हमला करने वाले सारे वायरस इसी तरह से फैलते हैं| 
    भास्कर में एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. संजय राय की बात छपी है. 
      उनके अनुसार कोरोना के बारिश से संबंध पर फिलहाल खास स्टडी नहीं की गई है लेकिन ये मान सकते हैं कि बारिश के दौरान वायरस की सक्रियता में कमी नहीं होगी बल्कि तीव्रता और बढ़ेगी. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस दौरान तापमान और आर्द्रता किसी भी वायरस के फैलने और अधिक देर तक रहने में मददगार होती है
   भारत में भी ये स्टडी हुई :
       यहां पर अलग-अलग हिस्सों में बारिश में असमानता के कारण वायरस के फैलाव का प्रतिशत अलग-अलग रहा और किसी निश्चय पर नहीं पहुँचा जा सका |
 
  सेंट्रल फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की वेबसाइट पर उनकी राय नहीं मिली है -    वर्षा और कोरोनावायरस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है | 
विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर उनकी राय नहीं मिली है - और न ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट पर अलग से कोरोना और बारिश से जुड़ी कोई स्टडी देखने को मिली है | 
 
विशेषबात :जनता को उसके प्रश्न का स्पष्ट उत्तर कुछ भी तो नहीं मिला !कुछ वैज्ञानिकों ने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण पर मौसम का प्रभाव बिलकुल नहीं पड़ेगा !तो कुछ ने कहा कोरोना वायरस सर्दी में बढ़ेगा कुछ ने कहा वर्षा में बढ़ेगा और कुछ ने कहा गर्मी बढ़ने पर कोरोना वायरस समाप्त हो जाएगा किंतु वैज्ञानिकों द्वारा लगाए गए ऐसे सभी अंदाजों को झुठलाते हुए कोरो वायरस का संक्रमण गर्मी में बढ़ा वर्षात में पहले बढ़ा फिर घटा और जिस सर्दी में बहुत बढ़ जाने की की बात वैज्ञानिकों ने कही थी उसमें आकर हमेंशा हमेंशा के लिए समाप्त हो कोरोना !
      कुलमिलाकर वैज्ञानिकों के द्वारा जनता को उनके प्रश्न का कोई विश्वसनीय उत्तर नहीं दिया जा सका जिस पर विशवास करके जनता उसका पालन कर सके !
       
                   अब बात वैक्सीन की -वैज्ञानिकों के वैक्सीन बनाने पर विभिन्न मत !                       
     प्रायः जब जब महामारी या कोई भयानक रोग आया है तो उसके समाप्त होने के बाद उससे मुक्ति दिलाने वाली औषधियाँ बना लेने का दावा किया जाता रहा है इसी लिए किसी रोग विशेष की वैक्सीनें भी प्रायः रोग का वेग कम होने या समाप्त होने पर ही बनती रही हैं | ऐसी परंपरा ही हमेंशा से चली आ रही है अबकी बार कोरोना संक्रमण बढ़ने पर भी बहुत लोग ऐसे अवसरों की ताक में बैठे थे कि कोरोना जैसे ही समाप्त होने लगेगा तो दवा या वैक्सीन बना लेने का दावा कर दिया जाएगा -हुआ भी कुछ यही कोरोना संक्रमण की गति जैसे ही कुछ कम होते दिखाई दी वैज्ञानिकों ने वैक्सीन बना लेने के अपने अपने दावे करने शुरू कर दिए!
     विशेष बात :   अच्छे समय के प्रभाव से जब जब महामारियों का संक्रमण का वेग कम होने लगता है तो सब जगह ही कम होता है किंतु ऐसे समय में जो वैक्सीन आदि का ट्रायल कर रहे होते हैं उन्हें लगता है कि हमारी वैक्सीन आदि के प्रभाव से केवल उन्हीं रोगियों में संक्रमण का वेग घट रहा है जिन पर हमारा ट्रायल चल रहा है ऐसा समझ कर वे अपने वैक्सीन के ट्रायल को सफल मानने लगते हैं | मई 2020 के प्रथम सप्ताह में समय के प्रभाव से अधिकाँश विश्व में जैसे जैसे कोरोना संक्रमण का वेग कम होना प्रारंभ हुआ वैसे वैसे एक साथ बहुत सारे लोग अपनी अपने अपनी वैक्सीनों के सफल होने के दावे प्रारंभ करने शुरू कर दिए -
 05 May 2020 02:07 PM  क्या आ गई खुशखबरी? इजरायल के रक्षा मंत्री नैफ्टली बेन्‍नेट ने दावा, हमने बना ली कोरोना की वैक्सीन !
7 मई  2020 को कोरोना वैक्सीन पर अमेरिका से आई अच्छी खबर ! मरीजों पर शुरू हुआ क्लिनिकल ट्रायल !कोरोना वैक्सीन का क्लिनिकल परीक्षण शुरू हो गया है. इसके तहत अमेरिकी मरीज को पहला इंजेक्शन दिया गया!
7 मई  2020 को  इटली ने किया ये दावा इटली सरकार ने बताया कि हमारे वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना के एंटी बॉडी ढूंढ़ लिया गया है. जल्द ही इसको हम उपयोग में लायेंगे !इससे  जल्द ही दुनिया से खत्म हो जायेगा कोरोना का नामोनिशान !
18 मई 2020 को बांग्लादेश के डॉक्टरों का दावा- खोज ली कोरोना की दवा, 4 दिन में ठीक हो गए 60 मरीज  ! 
दुनिया को कोरोना वायरस वैक्‍सीन का इंतजार, रूसी अरबपतियों ने अप्रैल में ही लगवा लिया टीका कोरोना वायरस से पूरी दुनिया जूझ रही है। इस बीच एक बड़ा खुलासा हुआ है क‍ि रूस के अरबपतियों ने अप्रैल महीने में ही कोरोना वायरस का टीका लगवा ल‍िया था।  
 
21जुलाई  2020बड़ी खुशखबरी! कोरोना वैक्सीन के एक नहीं, तीन टीके लगभग तैयार;ये खुशखबरी यहीं खत्म नहीं हो रही है. दरअसल पूरी दुनिया में कोरोना वायरस (COVID19) के 3 दमदार टीके तैयार हो चुके हैं और अच्छी बात ये है कि ये तीनों ही ट्रायल के अंतिम चरण में हैं | ऑस्ट्रेलिया (Australia) स्थित युनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न,ब्रिटेन (Britain) की ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी(Oxford University),,चीनी कंपनी सिनोवैक वैक्सीन बनाने का दावा किया है !
 11 अगस्त 2020 को टीवी स्क्रीन पर आकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ये दावा करते हैं कि उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ कारगर वैक्सीन तैयार कर ली है | 
                                        
 समय के प्रभाव से प्रभावित था कोरोना 
      अच्छे समय के प्रभाव से स्वस्थ हो रहे थे लोग !वैज्ञानिक अपनी बातों को एवं सरकारें अपने द्वारा किए जा रहे लॉक डाउन ,मॉस्कधारण सैनिटाइजर दो गज दूरी  वाले उपायों को श्रेय देने में लगे हुए थे किंतु जब समझ में आई तब तब तक दिनोंदिन देर होती जा रही थी -
 1जून  2020, 2:50 PM रोम. (इटली   खुशखबरी! बिना वैक्सीन के ही खत्म होगा कोरोना, डॉक्टर्स का दावा- कमजोर होने लगा वायरस !
      वैक्सीन इसीलिए नहीं बन पाएगी क्योंकि कोरोना इतनी तेजी से समाप्त होता जा  कि  वालंटियर ही नहीं मिल पा  रहे हैं | 
   कोरोना मरीजों की कमी से वैज्ञानिकों कीचिंता बढ़ी :
4 जून  2020खत्म हो रहा कोरोना? मरीजों की कमी से वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता, वैक्सीन ट्रायल के लिए नहीं मिल रहे वॉलेंटियर - वाशिंगटन !
 
 मेल 16 जून वाली
 
 समय प्रभाव से 9 अगस्त से कोरोना संक्रमण का वेग फिर बढ़ने लगा तब वैक्सीन के निर्माण के बिषय में बहाने बनाए जाने लगे -
 
      कोरोना वायरस के वैक्सीन को लेकर दावे तो बहुत किए गए हैं लेकिन कोरोना संक्रमण दोबारा जोर पकड़ने लगा अब लोग वैक्सीन बना लेने के दावे करने वालों की ओर ताकने लगे -
     अब तक यह किसी को पता नहीं आखिरकार कब तक इसका टीका लोगों को मिल पाएगा. बताया जा रहा है कि कोरोना के वैक्सीन को विकसित करने के लिए पूरी दुनिया में करीब 200 प्रोजेक्ट चल रहे हैं. इनमें से 20 प्रोजेक्ट मानव परीक्षण स्तर तक पहुंच पाए हैं. जितने भी टीकों के परीक्षण की रिपोर्ट आई है उसमें ज्यादातर यही संकेत दे रहे हैं कि यह फेफड़ों को संक्रमण से बचाने में कारगर है लेकिन संक्रमण को पूरी तरह यह टीका नहीं रोक सकता !  कुलमिलाकर संक्रमण बढ़ने और वैक्सीन बनाने में सफलता न मिलने पर  तरह तरह के दूसरे तीसरे बहाने खोजे जाने लगे -
11 Aug 2020 को डब्ल्यूएचओ के आपात मामलों के प्रमुख डॉ. माइकल रेयान का एक बयान  प्रकाशित हुआ -"कोरोना वायरस (कोविड-19) में मौसमी प्रवृत्ति दिखाई नहीं पड़ रही है। इसके चलते इस खतरनाक वायरस पर अंकुश पाना कठिन होता जा रहा है।"

    कोरोना बार बार अपना स्वरूप बदल रहा है इसलिए नहीं बन पाएगी वैक्सीन !
  16 अप्रैल 2020ताइवान के नेशनल चेंग्गुआ यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशन के वी-लुंग वांग और ऑस्ट्रेलिया में मर्डोक विश्वविद्यालय के सहयोगियों ने किया है. शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना वायरस के रूप बदलने पर यह पहली रिपोर्ट है जिससे वैक्सीन की खोज पर खतरा मंडरा सकता है. . स्वरूप बदलने के कारण संभव है कि इस वायरस की वर्तमान में बन रही वैक्सीन बेकार हो जाए !
26 Apr 2020 10:37 AM (IST)को कहा गया "यदि बदला कोरोना वायरस का स्वरूप तो बढ़ सकती है समस्‍या, 6 माह तक रखनी होगी नजर !भविष्‍य में यदि कोरोना वायरस का स्‍वरूप बदला तो ये पूरी दुनिया के लिए बड़ी समस्‍या बन सकता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो इसकी वैक्‍सीन को बनाने में कम समय लगेगा।"    
 2 Sep 2020 को प्रकाशित हुआ -"खुद को बार-बार बदल रहा है कोरोना वायरस, ऐसे में कैसे बन पाएगी वैक्सीन, टेंशन में एक्सपर्ट!"इस अध्यनन में कई रिसर्च इंसीट्यूट ने भाग लिया था जिसमें संक्रामक रोगों और वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रम में प्रतिरक्षा, मैकगिल विश्वविद्यालय स्वास्थ्य केंद्र के अनुसंधान संस्थान और मैकगिल इंटरनेशनल टीबी सेंटर, कनाडा के विशेषज्ञ शामिल थे।
      
           वैक्सीन क्यों नहीं बनपाएगी ?
 
      वैज्ञानिकों के उत्तर :वैक्सीन  बनाने के लिए कोरोना के बिषय में जो आवश्यक जानकारी होनी चाहिए थी वो अभी तक नहीं जुटाई जा सकी है और किसी भी रोग के बिषय में संपूर्ण जानकारी किए बिना उस रोग से मुक्ति दिलाने वाली दवा या वैक्सीन नहीं बनाई जा सकती है |
       2020-07-09 को प्रकाशित :कोरोना वायरस  के बिषय में इन प्रश्नों का उत्तर खोजे बिना औषधि या वैक्सीन बनाना या चिकित्सा करना असंभव है ! 
     कोरोना वायरस को आए हुए 6 महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है एक करोड़ से ज्यादा लोग अब तक इस महामारी का शिकार बन चुके हैं. वहीं पांच लाख से ज्यादा लोग इस बीमारी की वजह से काल के गाल में समा चुके हैं लेकिन 9 जुलाई तक इसके वैक्सीन या दवा की खोज में प्रमाणिक सफलता नहीं मिली है.|अब भी कोरोना को लेकर कुछ ऐसे रहस्य हैं जिसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है. साइंस जर्नल नेचर ने दुनिया के वैज्ञानिकों के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें इस महामारी को लेकर ऐसे रहस्यों का जिक्र किया गया है जिससे अब तक पर्दा नहीं उठा है. माना जा रहा है कि जब तक इन 5 सवालों का जवाब नहीं मिलता तब तक इस वायरस का प्रभावी उपाय नहीं किया जा सकता.!-
आखिर कहां से आया यह वायरस ?
      6 महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी वैज्ञानिक अभी तक इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए हैं कि आखिर यह वायरस कब, कहां और कैसे पैदा हुआ. शुरुआती रिपोर्टों में यह दावा किया जाता रहा है कि यह चमगादड़ से इंसानों में फैला है. इसके पीछे आरएटीजी 13 को जिम्मेदार बताया जा रहा है जो चमगादड़ों में पाया जाता है. बाद में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि खरगोश-बिज्जुओं से मनुष्यों में आया है कोरोना | हालांकि कुछ वैज्ञानिक इस दावे को सही नहीं मानते हैं और उनका दावा है कि अगर ऐसा होता तो इंसान और चमगादड़ों के जीनोम में चार फीसदी का अंतर नहीं होता जो इस वायरस के लिए जिम्मेदार है.
       मानव शरीर में वायरस के खिलाफ प्रतिक्रिया अलग-अलग क्यों?
    जितने भी लोग कोरोना वायरस से प्रभावित हुए हैं उनमें देखा गया है कि समान, उम्र और समान क्षमता के बाद भी हर व्यक्ति पर इस वायरस का प्रभाव अलग-अलग पड़ता है. यह अब तक अबूझ पहेली ही है कि आखिरकार ऐसा क्यों होता है. वैज्ञानिक अब तक नहीं समझ पाए हैं कि वायरस के खिलाफ अलग-अलग शरीर की प्रतिक्रिया एक दूसरे से भिन्न क्यों है
      वायरस के खिलाफ कब तक शरीर में रहेगी प्रतिरोधक क्षमता !
        वैज्ञानिक अब तक यह नहीं समझ पाए हैं कि कोरोना से संक्रमित होने के बाद मरीज के शरीर में उस वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता कब तक बनी रहेगी. वायरस जनित दूसरी बीमारियों में यह क्षमता कुछ महीनों तक शरीर में बनी रहती है. इसलिए शोध के जरिए वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना से संक्रमित होने के बाद मरीज में उत्पन्न एंटीबॉडीज कितने समय तक इस बीमारी से शरीर को प्रतिरक्षा प्रदान कर सकती है.
       वायरस कहीं कम- कहीं ज्यादा घातक क्यों ?
दुनिया के कई देशों में इस वायरस ने अपना बेहद खतरनाक रूप दिखाया है और लाखों लोगों की जान ले ली है. वहीं कुछ देशों में इसका प्रभाव कम है. यही वजह है कि वैज्ञानिक इस वायरस के कार्यप्रणाली को समझने की कोशिश में जुटे हुए हैं. क्षेत्र के हिसाब से वायरस में बदलावों का भी वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं !
        वैज्ञानिकअनुसंधानों के नाम पर वैज्ञानिक अफवाहें फैलाकर चलाया जाता रहा काम !
     अपने वैज्ञानिकों से जनता जानना चाहती थी कि यदि वैक्सीन नहीं बन पाई तो कोरोना संक्रमण की कैसी स्थिति रहेगी ?
वैज्ञानिकों के उत्तर :
 16  Jul 2020 को वाशिंगटन. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर सितंबर तक कोरोना पर काबू न पाया गया तो यह दुनिया में स्पेनिश फ्लू जैसा सितम ढाएगा। सितंबर-अक्तूबर से दोबारा तेजी पकड़ने के साथ जनवरीफरवरी में यह दोबारा चरम पर पहुंच सकता है।
अमेरिका के मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं की  रिसर्च :
      वैक्सीन नहीं बनी तो भारत में 2021 में कोरोना के 2.87 लाख मामले सामने आ सकते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, मामले इतने बढ़े तो देश संक्रमण की चपेट में आ जाएगा। 
     कोरोनो वायरस महामारी का सबसे बुरा दौर अभी आने वाला है। भारत में भी कोरोना वैक्सीन या दवाई के बिना आने वाले महीनों में कोविड-19 के मामलों में भारी उछाल देखने को मिल सकता है। रिसर्च के अनुसार, 2021 के अंत तक हर दिन 2.87 लाख मामलों के साथ भारत दुनिया में सबसे अधिक प्रभावित देश बन सकता है।
   विशेष:शोधकर्ताओं ने दुनिया के 84 देशों में जांच के आंकड़ों के आधार पर महामारी मॉडल विकसित किया है। यह अनुमान, दुनिया के शीर्ष 10 देशों में रोजाना संक्रमण की दर के आधार पर लगाया है।
    वैज्ञानिक सलाहें - एक ओर जहाँ कोरोना संक्रमितों को स्वस्थ होने के लिए चिकित्सालयों में जाने की सलाह दी जाती रही वहीँ  चिकित्सालयों की हालात यह थी कि जिसका अपना खराब आ गया था वह अपने बुरे समय के   कारण चिकित्सालयों में पहुँचकर अच्छी से अच्छी चिकित्सा संबंधी सुविधाएँ मिलने के बाद भी उसी चिकित्सा काल में ही वह मृत्यु को प्राप्त होते देखा जा रहा था |
    23 अप्रैल 2020 को प्रकाशित एक समाचार :"दम घोंट देता है कोरोना, देखते रह जाते हैं डॉक्टर, वेंटिलेटर भी काम नहीं आता !"न्यूयॉर्क सिटी के बेलेउवे हॉस्पिटल के डॉक्टर रिचर्ड लेवितान ने कहा कि मैं दो दशकों से मेडिकल के छात्रों को वेंटिलेटर्स के बारे में सबकुछ बता रहा हूं. उसकी ताकत के बारे में पढ़ाता हूं. लेकिन कोरोना वायरस से बीमार मरीजों में एक ऐसी दिक्कत सामने आ रही है, जिसमें वेंटिलेटर्स भी मदद नहीं कर पा रहे हैं.| 
      भविष्य में होने वाली महामारियों से निपटने की तैयारियाँ :
       जिस प्रकार से मौसम पूर्वानुमान गलत निकल जाने के बाद जलवायु परिवर्तन रोकने के सुझाव दिये जाने लगते हैं और भविष्य में मौसम को अपने अनुशार चलाने के सपने दिखाए जाने लगते हैं ठीक उसी प्रकार से जब इस महामारी से बचाव के लिए कुछ नहीं किया जा सका तो दुनियाँ को अगली महामारी से तैयार रहने के सपने दिखाए जाने लगे- 
 "दुनिया को अगली महामारी के लिए रहना होगा तैयार!"-डब्ल्यूएचओ !
       ये उसी प्रकार की तैयारी है जिस प्रकार से प्राकृतिक आपदाओं के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और 
भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्तियाँ और उनके वेग आदि को कम करने के लिए जलवायु परिवर्तन रोकने की काल्पनिक बातें उनके द्वारा की जा रही हैं जो दो चार दिन पहले की मौसम संबंधी घटनाओं के बिषय में तो आज तक सही सटीक एवं विश्वसनीय पूर्वानुमान बता नहीं पाए वही वैज्ञानिक आज के सौ दो सौ वर्ष बाद आने वाले समय के बिषय में अफवाहें फैला रहे हैं कि तब आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ भूकंप महामारियों जैसी घटनाएँ बार बार घटित होंगी दुनियाँ का तापमान बढ़ जाएगा आदि आदि | ऐसी बातों का आधार क्या है यही न कि ऐसी बातें करके वर्तमान समय इसी बहाने कट जाएगा और भविष्य में सौ दो सौ वर्ष बाद तक हम रहेंगे नहीं जो रहेंगे सो देखेंगे कि तब कितने आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ भूकंप महामारियाँ आदि घटित होती हैं यदि नहीं भी हुईं और अमर अंदाजे गलत भी हो गए तो भविष्य के वैज्ञानिक अपने बचाव के लिए अपना उपाय स्वयं करेंगे तब कोई नई कहानी वे भी गढ़ लेंगे |वैसे भी जलवायु परिवर्तन का कोई समय तो निश्चित है नहीं कि किस सन तक जलवायु परिवर्तन से संबंधित दुष्प्रभाव दिखने लगेंगे |
    यही स्थिति भविष्य में कोरोना महामारी से संबंधित वैज्ञानिक वक्तव्यों की है ऐसे वक्तव्यों से वर्तमान समय तो शांतिपूर्वक बीत ही जाएगा भविष्य में जब जो महामारियाँ आएँगी उनके बिषय में तब जो समयानुकूल उचित उस समय लगेगा तब वे भी वही बोलकर वे भी अपना बचाव तो कर ही लेंगे | 
 8 Sep 2020 को प्रकाशित :डब्ल्यूएचओ के जेनेवा स्थित मुख्यालय में एक न्यूज ब्रीफिंग के दौरान डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस अधनोम ग्रेबेसियस ने कहा-" दुनिया को अगली महामारी के लिए रहना होगा तैयार " 
     
 सरकारों  के अवैज्ञानिक निर्णर्यों से जनता को दो तरफा मार झेलनी  पड़ी !
         
  पोलियो आदि की वैक्सीनें।
 वैक्सीन को आपात मंजूरी देने की आवश्यकता क्यों पड़ी ? 
       इसीलिए न कि बिना किसी दवा या वैक्सीन  आदि के ही कोरोना बिलकुल न समाप्त हो जाए क्या इसीलिए जल्दबाजी में टीके लगाने की अनुमति दी जा रही है ?
   वैक्सीन से लाभ क्या होगा ?
      ये प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएगी या कोरोना संक्रमण को समाप्त करेगी !प्रतिरोधक क्षमता तो प्राकृतिक रूप से ही बढ़ जाती है और कोरोनासंक्रमण से मुक्ति भी प्राकृतिक रूप से मिलते देखी जाती है अन्यथा  भारत में लगभग एक करोड़ लोग कोरोना संक्रमण से मुक्त हुए कैसे ?और यदि बिना वैक्सीन के ही एक करोड़ लोग संक्रमण मुक्त हो सकते हैं तो ढाई लॉक से भी कम बची संक्रमितों की संख्या के लिए किसी वैक्सीन को श्रेय क्यों दिया जाए ?  
     आजकल  मीडिया में अक्सर सुर्खियाँ देखी सुनी जाती हैं -"अब कोरोना भागेगा !" "अब कोरोना हारेगा!" "अब तो कोरोना से जंग जीतेंगे!" "अब कोरोना को पराजित कर दिया जाएगा !" आदि और भी बहुत कुछ !अत्यंत उत्साह में कुछ लोगों को कोरोना योद्धा तक सिद्ध कर दिया गया है !ये उसी प्रकार का ओवर कॉन्फिडेंस है जैसे छाता बनने के बाद बादलों को चुनौती दी जाए या नौका बनाकर बाढ़ को चुनौती दी जाए ऐसे ही अन्य प्रकृति आपदाएँ भी रही हैं | 
      इसलिए यदि बिचार किया जाए तो महामारी को पराजित करने लायक आखिर हमारे पास है क्या ?और कोरोना जैसी महामारी के सामने ठहरने लायक है ही क्या हमारे पास !आखिर किस बल पर हम लड़ सकेंगे कोरोना महामारी से !
     यदि बात वैज्ञानिक अनुसंधानों की ही की जाए तो हमेंशा की तरह ही आज कोरोना को समाप्तप्राय मानकर दवा या वैक्सीन आदि बनाने का दावा कोई भी करने के लिए स्वतंत्र है किंतु यदि तर्क के धरातल पर देखा जाए तो कोरोना की वैक्सीन बनाना तो बहुत बड़ी बात है कोरोना है क्या आज तक इसी बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सका है | कोरोना मनुष्यकृत है या प्राकृतिक है?इसका विस्तार क्षेत्र कितना है?इसका प्रसार माध्यम क्या है !इस महामारी की व्याप्ति हवा में है या नहीं?इसके संक्रमण घटने बढ़ने पर सर्दी गर्मी वर्षा आदि मौसमसंबंधी गतिविधियों का कोई असर पड़ता भी है या नहीं ?आदि बिषयों में कोई सही एवं सटीक जानकारी नहीं दी जा सकी है |ये संक्रमण प्रारंभ कब हुआ समाप्त कब होगा ?इसके बिषय में न कोई जानकारी दी जा सकी न कोई पूर्वानुमान बताया जा सका !इसके बाद भी कहा जा रहा है कि वैक्सीन बना ली गई है | 
     ऐसा कहीं होता है क्या कि किसी रोग के बिषय में आप कुछ भी न जानते हों इसके बाद भी उस रोग से पीड़ित व्यक्ति की चिकित्सा करने लग जाएँ !उस रोग से मुक्ति दिलाने की दवा या वैक्सीन आदि बनाने का दावा करने लगें !चिकित्सा की पहली शर्त है निदान अर्थात रोग और रोग के स्वभाव को समझाना उसके बाद ही उसकी चिकित्सा संभव है किंतु रोग को सही सही समझे बिना ही उसकी वैक्सीन निर्माण कर लेने का दावा करने वाले लोगों की इस अतिरिक्त प्रतिभा को  हमारे लिए समझ पाना संभव नहीं है | सर्दी जुकाम बुखार पेट दर्द शिर दर्द आदि सामान्य रोगों  पर भी पहले रोग होने का कारण खोजा  जाता है और बाद में उसी के आधार पर उसके निवारण के बिषय में प्रयास किया जाता है | 
                            कोरोनामहामारी पर चिकित्सा का प्रभाव क्यों नहीं पड़ रहा है !
      चिकित्सा से ही यदि कोरोना ठीक होना होता तो चिकित्सकीय सामर्थ्य में अमेरिका अत्यंत सक्षम होने के बाद भी सर्वाधिक कोरोना दंश झेलने को विवश हुआ !भारत में मुंबई दिल्ली जैसे साधन संपन्न शहरों में ही कोरोना का प्रकोप अधिक दिखाई देता रहा | 
01 Apr 2020  अब सवाल यह उठता है कि कोरोना वायरस के इलाज के लिए अब तक कोई दवा दुनिया के किसी देश के पास उपलब्ध नहीं है तो फिर लोग ठीक कैसे हो रहे हैं? विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अब तक इसकी कोई दवा उपबल्ध नहीं है। दवा बनाने के लिए बहुत से देश लगातार कोशिश कर रहे हैं !जहाँ एक ओर कोरोना अनियंत्रित होता जा रहा है उसके रोग लक्षण स्वभाव विस्तार प्रसार माध्यम आदि किसी को पता ही नहीं लग रहा है चिकित्सक देखते रह जा रहे हैं सघन चिकित्सा कक्ष में भी लोग मरते जा रहे हैं कोई दवा कोई वैक्सीन आदि कुछ भी बचाव के लिए नहीं है इसके बाद भी कुछ लोग स्वयं भी स्वस्थ होते जा रहे हैं !
      कोरोना होने के बाद बिना किसी दवा या वैक्सीन के इतनी बड़ी संख्या में रोगी स्वस्थ होते चले गए !जिन्होंने कोरोना संक्रमित होने के बाद चिकित्सालयों की शरण ली तो उन्हें चिकित्सा के नाम पर कुछ न कुछ खिलाया पिलाया जाता रहा शरीरों पर उनके दुष्प्रभाव भी होते रहे जिन्हें कोरोना के बदलते स्वरूप से जोड़कर देखा जाता रहा !
       बिष ही बिष को मारता है बताया जाता है कि सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति के शरीर का बिष उतारने के लिए सर्प बिष से बना टीका लगाया जाता है किंतु जिसे सर्प ने काटा न हो उसे यदि वो सर्प बिष से बना टीका लगा दिया जाए तो नुक्सान भी करता है | 
     ऐसी परिस्थिति में ये सर्व विदित ही है कि महामारियाँ भी बिषाणुओं से ही तैयार होती हैं तो उसकी औषधियाँ भी उसी प्रकार के घटक द्रव्यों के सम्मिश्रण से बनाई जाती होंगी !ऐसी परिस्थिति में उनका प्रयोग संक्रमितों या बिना संक्रमितों पर एक जैसी प्रक्रिया से कैसे किया जा सकता है !यदि वो कुछ रोगियों को लाभ कर सकती हैं तो स्वस्थ लोगों पर उसका प्रभाव हानिकारक भी तो हो सकता होगा !जो दवा प्रभाव विहीन होगी उसके सेवन से यदि किसी का भी नुक्सान नहीं हो सकता है तो उससे सभी को लाभ होने की आशा कैसे की जा सकती है | आखिर क्या कारण रहा होगा जब ब्रिटेन में 8 दिसंबर को 8 लाख वैक्सीन देने की प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है और तेरह दिसंबर से ही कोरोना का नया स्ट्रेन सामने आ जाता है | ऐसी परिस्थितियों का भी शायद ही कभी रहस्योद्घाटन हो !
      विज्ञान के क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या यह है कि जो परीक्षार्थी हैं वही परीक्षक है वही परीक्षा पत्र को जाँच कर नंबर देने वाले एवं वही पास फेल करने वाले होते  हैं ऐसी परिस्थितियों में उस क्षेत्र के लोगों से हुई गलतियों के बाहर आ पाने की संभावना बहुत कम होती है | 
   सर्दी-जुकाम जैसे साधारण से प्राकृतिक वायरल इंफेक्शन का मुकम्मल इलाज आज तक नहीं खोजा जा सका है। वहीं स्माल पॉक्स, मिजील्स, चिकन पॉक्स जैसी वायरल बीमारियों की वैक्सीन बना ली गई है ऐसा कहा जाता है।   वैक्सीन भी रोग प्रतिरोधक क्षमता के सिद्धांत पर ही काम करती है जिसमें बीमारी के कुछ कमजोर कीटाणु स्वस्थ मानव शरीर में पहुंचाए जाते हैं। इसलिए वैक्सीनेशन के बाद बुखार आना स्वाभाविक लक्षण माना जाता है और वैक्सीन द्वारा मानव शरीर में पहुंचाई गई कीटाणुओं की अल्प मात्रा के खिलाफ लड़कर शरीर उस बीमारी से लड़ने की क्षमता विकसित कर लेता है।

लेकिन कोरोना वायरस साधारण वायरस नहीं है और ना ही प्राकृतिक है, इसलिए ये साधारण दवाएं और सिद्धांत इसके इलाज में कारगर सिद्ध होंगे, इसमें संदेह है। तो जिस प्रकार लोहा ही लोहे को काटता है और जहर ही जहर को मारता है, कृत्रिम कोरोना वायरस का इलाज एक दूसरा कृत्रिम वायरस ही हो सकता है। जैसे कोरोना वायरस को लैब में तैयार किया गया है, ठीक वैसे ही एक ऐसा वायरस लैब में तैयार किया जाए जो कोरोना वायरस का तोड़ हो, जो उसे नष्ट कर दे। जीहां, यह संभव है।

मानव शरीर के हित में उपयोग में लाने के लिए काफी समय से वायरस की जेनेटिक इंजीनियरिंग की जा रही है।जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से ही कई पौधों के ऐसे बीज आज निर्मित किए जा चुके हैं जो पैदावार भी बढ़ाते हैं और जिनकी रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता इतनी अच्छी होती है कि वे संक्रमित नहीं होते। ऐसी फसल को जीएम फसल कहा जाता है। इसी तकनीक से वैक्सीन भी बनाई जा चुकी है। इस विधि का प्रयोग करके जो वैक्सीन तैयार की जाती है उसे रिकॉम्बीनेंट वैक्सीन कहते हैं। इस प्रकार जो पहली वैक्सीन तैयार की गई थी, वह हेपेटाइटिस बी के लिए थी जिसे 1986 में मंजूर किया गया था।

दरअसल वायरस और बैक्टीरिया प्रजाति को अभी तक अधिकतर बीमारी फैलने और मानव शरीर पर आक्रमण करने के लिए ही जाना जाता रहा है। पर सभी वायरस और बैक्टीरिया ऐसे नहीं होते। कुछ तो मानव के मित्र होते हैं और सैकड़ों की संख्या में मानव शरीर में मौजूद रहते हैं।और कुछ वायरस तो ऐसे होते हैं जो बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं इन्हें बैक्टेरियो फेज के नाम से जाना जाता है।

इसी प्रकार वायरस द्वारा कैंसर का इलाज खोजने की दिशा में भी वैज्ञानिकों ने उत्साहवर्धक नतीजे प्राप्त किए हैं जिसे जीन थेरेपी कहा जाता है। इसके द्वारा लाइलाज कहे जाने वाले कई आनुवांशिक रोगों का भी इलाज खोजा जा रहा है। वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के स्ट्रक्चर यानी उसके ढांचे का पता लगा लिया है।अब उन्हें ऐसा वायरस जो ह्यूमन फ्रेंडली यानी मानव के शरीर के अनुकूल हो, उसमें जेनेटिक इंजीनियरिंग की सहायता से ऐसे गुण विकसित करने होंगे जो मानव शरीर को नुकसान पहुंचाए बिना शरीर में मौजूद कोरोना वायरस के संपर्क में आते ही उसे नष्ट कर दे।

                                                  वैज्ञानिकों  पर अविश्वास ! 
22 मई 2020: डोनाल्ड ट्रंप ने इस हफ्ते दो बार कहा कि हमारे देश के वैज्ञानिकों की बात बेसिर पैर की है. उनकी बातों में कोई सबूत नहीं है | 
       वायुप्रदूषण न बढ़े तो प्राकृतिक आपदाएँ  नहीं रुक सकती हैं उसी प्रकार से ऑड इवेन लगाने से वायु प्रदूषण नहीं रुक सकता !जिसप्रकार से नहाना बंद कर देने से बाढ़ नहीं रुक सकती!गमलों का पानी खाली कर देने से डेंगू नहीं रुक सकता उसी प्रकार से लॉकडाउन लगा देने से कोरोना संक्रमण नहीं रुक सकता है |

प्रकृति में अपने आपसे से हुए बदलाव  -  

 26 Apr 2020 वैज्ञानिकों का दावा: अपने आप ठीक हुआ ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद!दुनिया इस समय कोविड-19 महामारी से लड़ रही है। वहीं एक अच्छी खबर यह है कि पृथ्वी के बाहरी वातावरण की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद स्वत: ही ठीक हो गया है। वैज्ञानिकों ने पुष्टि है कि आर्कटिक के ऊपर बना दस लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला छेद बंद हो गया है। इसके बारे में वैज्ञानिकों को अप्रैल महीने की शुरुआत में पता चला था।माना जा रहा था कि ये छेद उत्तरी ध्रुव पर कम तापमान के परिणामस्वरूप बना था |

        हैती में आंदोलन :Updated: 08 Feb 2021, 08:33:00 AM  हैती के राष्‍ट्रपति जोवेनेल मोइसे ने दावा क‍िया है क‍ि उनकी सत्‍ता को पलटने की कोश‍िश की गई है।

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