समय के अनुशार घटित होती हैं घटनाएँ

 
 
 
 
                                                                    दो शब्द

      भूकंप विज्ञान के नाम पर अभी तक जो भी अंदाजे लगाए जाते हैं उनके आधार पर बैठे जाने वाले तीर तुक्के प्रायः गलत ही होते हैं यदि एक आध सच निकल भी जाए तो उसके आधार पर उन तीर तुक्कों को विज्ञान सम्मत मान लेना तर्कसंगत नहीं होगा | 

      ऐसी आधार विहीन कल्पनाओं के आधार पर लगाए जाने वाले भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमानों को अभी तक सच होते नहीं देखा जाता है इसलिए भूकंपों के घटित होने के लिए जिम्मेदार बताए जाने वाले जितने भी कल्पित कारण बताए जाते हैं वे वैज्ञानिक तर्कों की सच्चाई पर खरे नहीं उतर पाते हैं | 

     भूकंपों के बिषय में विशेषज्ञ माने जाने वाले लोगों के द्वारा अनुसंधानों के नाम पर कई बार कह दिया जाता है कि हिमालय में या किसी अन्य स्थान पर कोई बहुत बड़ा भूकंप आने वाला है उसकी अवधि नहीं बताई जाती है !उसके बाद कई कई दशक  बीत जाते हैं वहाँ कोई बड़े भूकंप नहीं आते हैं और जब आना होता है तब कहीं भी आ जाते हैं जिनके बिषय में भी किसी ने कभी नहीं बताया होता है |इसलिए ऐसे अंदाजे तो कहीं भी किसी भी बिषय में लगाकर तीर तुक्के दौड़ा लिए जाते हैं जिनमें  वैज्ञानिक तर्कों पर कसने लायक कुछ भी नहीं होता है | 

        कुल मिलाकर भूकंपों से संबंधित अनुसंधानों के बिषय में रिसर्च के नाम पर जो कुछ भी चल रहा है वह तो उन्हीं लोगों को पता होगा जो इस काम में लगे हुए हैं किंतु उससे संबंधित जो जानकारी आम जनता तक पहुँचती है उसमें अभी तक भूकंपों के बिषय में कोई ठोस एवं तर्कसंगत जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई जा सकी है | रही बात भूकंप की तीव्रता एवं भूकंपों के केंद्र की जानकारी देने की कि इतने दिन महीने वर्ष आदि के बाद इतना बड़ा भूकंप आया है इसमें न तो विज्ञान का कहीं कोई अंश है और न ही इससे किसी का कोई लाभ ही होता है | ऐसी बातों का पता लगाना वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य भी नहीं होना चाहिए |   

       इसके अतिरिक्त भूकंपों की तीव्रता या भूकंपों का केंद्र पता लगाकर या कुछ आशंकाएँ व्यक्त करके अथवा निकट भविष्य में किसी बड़े भूकंप के आने का निराधार अंदाजा लगाकर मानवता को कैसे लाभ पहुँचाया जा सकता है ! वैसे भी किसी भूकंप के आने के बाद जहाँ भूकंप का जैसा झटका लगता है या जैसा नुक्सान होता है उसी हिसाब से उस भूकंप की तीव्रता का अनुमान लगा लिया जाता है और जहाँ सबसे अधिक झटका महसूस किया जाता है या जहाँ सबसे अधिक नुक्सान होता है वहीं   उस भूकंप का केंद्र मान लिया जाता है | 

        ऐसी परिस्थिति में भूगर्भगत गर्म लावा पर तैरने वाली प्लेटों के टकराने की कहानी हो या भूगर्भ में पड़ने वाले गैसों के दबाव से घटित होने वाले भूकंपों की कल्पित कहानी को तब तक सच मानना संभव नहीं होगा जब तक कि ऐसी कहानियों को सच मानकर इनके आधार पर भूकंपों के बिषय में लगाए जाने वाले पूर्वानुमान सच न होने लगें | विज्ञान के नाम पर कुछ भी कह दिया जाए और उसी पर विश्वास कर लेना उचित परंपरा का निर्वहन नहीं माना जा सकता है | 

                                                                  भूमिका 

                                  भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाएँ और पूर्वानुमान

      वर्तमान समय में जिस प्रकार से वैज्ञानिक लोग अलनीनो ला नीना,तापमान एवं हवाओं का अनुसंधान करके मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने का प्रयास करते देखे जाते हैं | भारत में तो आदि काल से ही इसी प्रकार से मौसम संबंधी घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाया जाता रहा है |अभी कुछ सौ वर्ष पहले हिंदी के महाकवि घाघ की सूक्तियाँ भारत की उसी प्राचीन विधा का अनुशरण है !कृषि प्रधान भारत के किसानों में वे सूक्तियाँ अपनी सचाई के कारण ही अभी भी विश्वसनीय हैं |

       हमारे कहने का अभिप्राय है कि भूकंप समेत अधिकाँश प्राकृतिक घटनाएँ आपस में एक दूसरी घटना से संबंधित होती हैं |इनमें से कोई एक घटना पहले घट चुकी होती है उसी से संबंधित एक घटना अब घटित हो रही होती है उसी से संबंधित एक घटना भविष्य में घटित होनी होती है | इसी प्रकार से इन घटनाओं की कुछ आनुसंगिक घटनाएँ भी होती हैं अपने स्वभाव वाली बड़ी घटनाओं के साथ साथ वे भी घटित हो रही होती हैं | इसीलिए अतीत में घटित हुई किसी एक घटना का अनुसंधान करके वर्तमान समय में घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और वर्तमान समय में घटित हो रही किसी एक प्राकृतिक घटना का अनुसंधान करके भविष्य में   संभावित किसी दूसरी घटना के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |

      इनमें से कुछ  घटनाएँ भविष्य में घटित होने वाले कुछ संभावित भूकंपों आदि प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में सूचनाएँ दे रही होती हैं तो कुछ भूकंप भविष्य में घटित होने वाली कुछ अन्य प्राकृतिक सामाजिक स्वास्थ्य आदि से संबंधित घटनाओं के बिषय में सूचना दे रहे होते हैं |इनमें से किसी एक घटना का अनुसंधान करके प्रकृति में घटित होने वाली दूसरी संभावित घटना के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 

      भारत के प्राचीन विज्ञान में भी वैज्ञानिक बिषयों में एक कारण को आधार मानकर दूसरी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने का प्रयास किया जाता था उसी पद्धति का अनुशरण अभी भी किया जा रहा है | विशेष बात यह है कि जो मानक वास्तव में मूल कारण होते हैं और उनमें यदि सच्चाई होती है तो उनके आधार पर उन घटनाओं के बिषय में लगाए गए पूर्वानुमान सच हो जाते हैं यदि उन्हीं अनुमानित कारणों के आधार पर घटनाओं के बिषय में लगाए गए पूर्वानुमान सच नहीं होते हैं | इससे स्पष्ट हो जाता है कि कारण स्वरूप प्रतीकों के चयन में कहीं कमी रह गई है | 

       ऐसी परिस्थिति में हमें यह सोचना चाहिए कि प्रकृति में कोई घटना निरर्थक नहीं घटती है प्रत्येक घटना की इस सृष्टि संचालन के लिए आवश्यकता समझी जाती है और सुनियोजित तरीके से अत्यंत जिम्मेदारी पूर्वक प्रकृति की प्रत्येक घटना उचित मात्रा में ही घटित होती है भले वे भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएँ ही क्यों न हों | तभी तो विभिन्न प्रकार से प्रकृति को संतुलित बनाए रखने के लिए ही प्राकृतिक आपदाएँ भी कभी कभी किसी किसी क्षेत्र में ही घटित होती हैं अन्यथा बाढ़ महामारी भूकंप भीषण आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ यदि हर जगह हमेंशा ही घटित होने लगें तो विवश मनुष्य उन्हें कैसे रोक लेगा !

      इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रकृति को संचालित करने वाली शक्ति अत्यंत आत्मीयता पूर्वक इस सृष्टि को संचालित करती  चली आ रही है और समय समय पर घटित होने वाली सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के रूप में अपना संदेश सांसारिक प्राणियों तक भेज भेज कर उन्हें शांत एवं संतुलित किया करती है | 

      इसलिए प्रकृति किस घटना के माध्यम से कौन सा संदेशा सांसारिक प्राणियों को दे रही है उन संदेशों को समझकर उस क्षेत्र के लोगों को सावधान करने के उद्देश्य से अनुसंधान किए जाने चाहिए !ऐसा लक्ष्य लेकर किए जाने वाले अनुसंधानों के द्वारा मानवता को लाभ पहुँचाने का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है |

       प्राचीनकाल में भूकंपों के घटित होने का कारण जानने के लिए अनुसंधान किए जाते थे साथ ही उन अनुसंधानों के द्वारा भूकंपों के द्वारा दिए जाने वाले संदेशों को समझ कर उस तरह की घटनाओं से समाज को आगे से आगे सावधान कर दिया जाता था | उस प्रकार के अनुसंधानों से मानवता की यथा संभव रक्षा कर ली जाती थी | 

       महाभारत में एक आख्यान मिलता है कुछ समय से बार बार भूकंप आने लगे थे उन्हें देखकर यह अनुमान लगा लिया गया होगा कि अधर्मी शिशुपाल के अत्याचारों का अंत होने का संदेश देने के लिए बार बार भूकंप आते देखे जा रहे हैं किंतु शिशु पाल के मारे जाने  के बाद भी जब भूकंपों के आने का क्रम उसी प्रकार से जारी बना रहा तो किसी अनहोनी की आशंका से चिंतित होकर युधिष्ठिर ने एक दिन व्यास जी से पूछा कि महात्मन !अब तो शिशुपाल भी मारा जा चुका है अब ये भूकंप बार बार क्यों आ रहे हैं इनके आने का कारण क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए व्यास जी ने कहा था कि युधिष्ठिर आज के बारह वर्ष बाद भयंकर युद्ध होने वाला है जो महाभारत युद्ध के नाम से जाना जाएगा उसी बारह बर्ष बाद होने वाले उस युद्ध की सूचना के लिए अभी से बार बार भूकंप आने शुरू हो गए हैं | इसके बाद महाभारत जैसा भयानक युद्ध हो भी गया था | 

        ऐसी अनेकों घटनाओं के प्रसंग प्राचीन पौराणिक साहित्य में अनेकों स्थानों पर मिलते हैं जिनके द्वारा भविष्य में घटित होने वाली अनेकों अच्छी बुरी घटनाओं का पूर्वानुमान आगे से आगे लगा लिया जाता रहा है | उससे समाज लाभान्वित भी होता रहा है जिसकी चर्चा हम इसी पुस्तक में आगे करने वाले हैं और अभी हाल में ऐसा कब कब हुआ है उससे किन किन विशेष घटनाओं के बिषय में पता लगाया जा सका है उन्हें भी यहाँ उद्धृत करेंगे |मेरा विश्वास है कि ऐसे अनुसंधानों के द्वारा मानवता की मदद करने हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है |

                               समय से प्रभावित होती है प्रकृति और घटित होती हैं प्राकृतिक घटनाएँ

    समय के दो प्रकार होते हैं एक अच्छा और दूसरा बुरा |अच्छा समय जब प्रारंभ होता है तब जीवन से लेकर प्रकृति तक सब कुछ अच्छा अच्छा होता है और जब बुरे समय का संचार प्रारंभ होता है तब चारों ओर सब कुछ बुरा बुरा ही होते दिखाई पड़ता है |
     अच्छे समय के संचार में प्रकृति स्वस्थ रहती है प्रकृति के स्वस्थ रहने से अभिप्राय प्रकृति में सबकुछ अच्छा बना रहता है मनुष्यों से लेकर समस्त जीव जंतुओं में भी प्रसन्नता का वातावरण बना रहता है सभी स्वस्थ निरोग एवं प्रसन्न रहते हैं सभी अपने अपने स्वभाव के अनुशार ही वर्ताव कर रहे होते हैं | 
      सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ अपने अपने समय से आती जाती रहती हैं उचित मात्रा में अपना अपना प्रभाव छोड़ती हैं | सर्दी में सर्दी का प्रभाव अपने समय से प्रारंभ होता और समय से ही समाप्त होता है यह प्रभाव न बहुत कम होता है और न अधिक !ऐसी परिस्थिति में सर्दी से किसी को कोई कठिनाई नहीं होती है इसी प्रकार से गर्मी  और वर्षा आदि का भी प्रभाव उचित मात्रा में होने से सभी पेड़ पौधे जीव जंतु आदि के लिए हितकर होता है | इसलिए ये सभी स्वस्थ निरोग एवं प्रसन्न रहते हैं | 
      ऐसे समय में नदियों तालाबों आदि का जल निर्मल एवं पर्याप्त बना रहता है प्रदूषण रहित स्वच्छ शीतल मंद सुगंधित सुखद वायु बहती है | सूखा बाढ़ आँधी तूफ़ान बज्रपात भूकंप आदि घटनाएँ नहीं घटित होती हैं वायु प्रदूषण नहीं बढ़ता है जल प्रदूषित नहीं होता है | बादलों का गर्जन धीमा अर्थात मधुर होता है | इसलिए सभी प्रकार के जीवजंतु पशु पक्षी आदि बेचैन होते नहीं देखे जाते हैं | समाज में किसी प्रकार की कोई महामारी आदि घटना सुनाई नहीं देती है | सभी लोग आपस में एक दूसरे के साथ मधुर व्यवहार रखते हैं | समाज में अपराध हिंसा आंदोलन पत्थरबाजी आदि से उन्माद फैलाने वाली घटनाएँ घटित होते नहीं देखी जाती हैं | सरकारें सुचारु रूप से अपने कार्यों का संचालन करते हुए अपने सेवाकार्यों से समाज का विश्वास  जीतने में सफल बनी रहती हैं | चिंतन सात्विक होने से लोगों में अहंकार की भावना कम होती है लोग एक दूसरे के साथ सम्मानपूर्ण वर्ताव करते हैं एक दूसरे को सुख देने का प्रयास करते हैं | आतंकवादी घटनाएँ घटित नहीं होती हैं  दो देशों के बीच तनाव युद्ध आदि की संभावनाएँ नहीं बनती हैं अपितु आपस में मित्रतापूर्ण वर्ताव होते दिखता है | 
     किसानों के द्वारा बोई जाने वाली फसलें रोगरहित होती हैं इसलिए पैदावार अच्छी होती है उससे किसान तो सुखी होते ही हैं उनके साथ साथ सारा समाज प्रसन्न बना रहता है  | 
      इसके विपरीत जब सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का प्रभाव उचित मात्रा में न होकर न्यूनाधिक हो जाता है   ऐसी परिस्थिति में जल और वायु प्रदूषित होने लगते हैं पेड़पौधों समेत किसानों के द्वारा खेतों में बोई जाने वाली सभी फसलें भी रोगी होने लगती हैं पैदावार मारी जाती है लोग परेशान  होते हैं सभी जीव जंतु बेचैन होने लगते हैं तरह तरह के रोग महामारी आदि फैलने लगते हैं | कहीं सूखा तो कहीं भीषण बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप जैसी की घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |बादलों का भयंकरगर्जन एवं बज्रपात आदि होते दिखाई देता है ओलावृष्टि बादल फटने जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |  इसलिए सभी प्रकार के जीवजंतु पशु पक्षी आदि बेचैन होते नहीं देखे जाते हैं | सामूहिक रोग महामारी आदि घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |कुलमिलाकर आपसी अनुपात  विषम होते ही सबकुछ उलटा होने लग जाता है | 
     मनुष्यों समेत सभी जीव जंतुओं में असंतोष व्याप्त हो जाने के कारण कलह विवाद उन्माद  लड़ाई झगड़ा   तथा समाज में अपराध हिंसा आंदोलन पत्थरबाजी आदि उन्माद फैलाने वाली घटनाएँ घटित होते नहीं देखी जाती हैं | ऐसे समय में हैरान परेशान असंतुष्ट एवं असहनशील समाज की अपेक्षाएँ अधिक बढ़ जाती हैं जिसे सरकारें उस अनुपात में पूर्ण नहीं कर पाती हैं | जिससे सरकारों शासकों के प्रति आक्रोश पनपता है ऐसे समय में सरकारों को सुचारु रूप से अपने कार्यों का संचालन करने में कठिनाई होती है सेवाकार्यों से समाज का विश्वास  जीतने में असफल हो जाती हैं | चिंतन तामसी हो जाने के कारण लोगों में अहंकार की भावना अधिक बढ़ जाती है लोग एक दूसरे को अपमानित और परेशान करने की जुगत खोजने लगते हैं | आतंकवादी घटनाएँ घटित होती हैं  दो देशों के बीच तनाव युद्ध आदि की संभावनाएँ नहीं बनते देखी जाती हैं | 
       ऐसी परिस्थिति में कहा जा सकता है कि प्राकृतिक घटनाएँ समय के अनुसार घटित होती हैं इसलिए अच्छी या बुरी कुछ प्राकृतिक घटनाओं को घटित होता देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस समय समय कैसा चल रहा है उसी के अनुशार भविष्य के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | 
     इसीप्रकार से अच्छे या बुरे समय के अनुसार मनुष्यों समेत समस्त जीव जंतुओं के स्वभाव बदलाव होते रहते हैं उनमें यदि अच्छे बदलाव होते हैं तो निकट भविष्य में अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं और यदि बुरे बदलाव दिखाई पड़ें तो उन्हें  देखकर निकट भविष्य में संभावित बुरी घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |

                        श्रीकृष्ण और श्री राम के जन्म के बिषय में पूर्वसूचना देने वाली कुछ शुभ प्राकृतिक घटनाएँ !

   सनातनधर्मियों के लिए भगवान के अवतार से अधिक शुभ कुछ भी नहीं हो सकता है और भगवान् के परमधाम से अधिक अशुभ कुछ भी नहीं हो सकता है | इसलिए सर्वप्रथम मैंने यहीं दोनों घटनाओं को अपने अनुसंधान का विषय बनाया है |            
       प्राकृतिक घटनाएँ केवल बुरी सूचनाएँ ही नहीं देती हैं अपितु अच्छी सूचनाएँ भी देती हैं इनमें अनेकों बातें सम्मिलित होती हैं जिन्हें संक्षेप में इस प्रकार से समझा जा सकता है |      अच्छी घटनाओं के घटित होने से पूर्व अत्यंत सुंदर समय का संचार होने लगता है | सुंदर समय के प्रभाव से नदियों तालाबों आदि का जल प्रदूषण मुक्त होकर स्वतः स्वच्छ होने लगता है |वायुमंडल प्रदूषण रहित हो जाता है शीतल मंद एवं सुगंधित हवाएँ बहने लगती हैं आकाश धूल रहित होकर अत्यंत उत्तम  दिखाई पड़ने लगता है |बादल समय से समान रूप से जल वर्षा करते देखे जाते हैं उनका गर्जन बहुत मंद एवं मधुर  होता है |
    भगवान् श्री कृष्ण के प्राकट्य की पूर्व सूचना प्रकृति ने ऐसे ही प्राकृतिक लक्षणों के माध्यम से दी थी |
  समय - 
        भगवान् श्रीकृष्ण के प्राकट्य से पूर्व  अत्यंत सुंदर समय आ गया था | उसी के अनुशार अच्छी अच्छी
             " अथ सर्व गुणोपेतः कालः परम शोभनः |"
  आकाश दिशाएँ - आकाश एवं दिशाएँ प्रदूषण रहित होकर अत्यंत स्वच्छ दिखाई पड़ती थीं |
                                        " दिशः प्रसेदुर्गगनं निर्मलोडुगणोदयं |"
   मेघगर्जन -
    भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म समय में बादल अत्यंत धीरे धीरे मधुर मधुर गर्जन कर रहे थे ! यथा -
                              मंदंमंदं जलधराः जगर्जुरनुसागरं !
 नदियाँ आदि -
      नदियों में स्वच्छ जल बहने  लगा था - "नद्यः प्रसन्नसलिला |"
तालाब -         
        तालाबों का जल तो स्वच्छ था ही रात्रि में कमल भी खिलने लगे थे- " ह्रदा जलरुहश्रियः |"   
वायु -
          शीतल मंद एवं सुगंधित हवाएँ बहने लगी  थीं  - "ववौ वायुः सुखस्पर्शः पुण्यगंधवहः  शुचि |"
     इसी प्रकार से कुछ शुभ पशु पक्षियों का शुभ शुभ बोलना व्यवहार करना आदि से भी समय की शुभता का अनुमान लगा लिया जाता है |
      ऐसी सभी बातों के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया गया था कि कोई अत्यंत उत्तम मंगलकारी सुंदर एवं सुखद घटना घटित होने वाली है |
     भगवान् श्री राम के जन्म के समय यही हुआ था श्री राम का प्राकट्य होने से पूर्व ही समय को शुभ जानकर  देवताओं ने उस समय की शुभता को समझ कर उसकी पूजा की और अपने अपने धाम को चले गए इसके बाद भगवान् श्री राम का अवतार हुआ था-
        दो. सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम |
             जगनिवास प्रभु प्रकटे अखिल लोक विश्राम ||
      ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर वर्तमान समय में भी शुभ और अशुभ का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है प्रकृति स्वयं ही विभिन्न घटनाओं के माध्यम से भविष्य में घटित होने वाली सामाजिक प्राकृतिक आदि घटनाओं की सूचना दिया करती है |

          ऐसी शुभ घटनाएँ जब जब प्रकृति के जिस अंग में भी दिखाई पड़ने लगें तो समझा जाना चाहिए कि प्रकृति में कुछ शुभ घटित होने वाला है जो उस क्षेत्र के निवासियों के लिए बहुत अच्छा होगा | 

        भगवान् श्रीकृष्ण के परमधाम गमन की पूर्व सूचना देने वाली कुछ अशुभ प्राकृतिक घटनाएँ
    भगवान् श्रीकृष्ण के परमधाम जाने से पूर्व उसकी सूचना देने के लिए अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो रही थीं | उनमें भूकंप भी घटित होते देखे जा रहे थे -
     बार बार भूकंप आने लगे थे यथा  - "कंपतेभूः सहाद्रिभिः" जिन्हें देखकर युधिष्ठिर अत्यंत चिंतित हो गए थे और आशंका व्यक्त करने लगे थे कि लगता है श्रीकृष्ण के धराधाम छोड़कर जाने का समय आ  चुका है |
     इसी प्रकार से असुरों के जन्म समय में अक्सर भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने का वर्णन मिलता है भगवान् श्रीराम के बन जाने से पूर्व भूकंप आदि घटनाएँ घटित होने लगी थीं जिन्हें देखकर महाराज दशरथ जी को भय होने लगा था कि अयोध्या में कुछ अमंगल होने वाला है इसीलिए तो भारत और शत्रुघ्न के घर न होने पर भी हड़बड़ाहट में श्री रामराज्याभिषेक का मुहूर्त निश्चित कर दिया गया था किंतु वह हो नहीं पाया था |
     जब जब अशुभ घटनाएँ घटित होनी होती हैं तब तब भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होती रही हैं | इसके अतिरिक्त भी केवल भूकंप ही नहीं अपितु सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ कोई न कोई संदेशा दे रही होती हैं |
    आँधी  तूफ़ान  भूकंप आदि की घटनाएँ बार बार  घटित होने लगती हैं | ऐसी और भी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाएँ या पशु पक्षियों की बोली व्यवहार आदि से संबंधित घटनाएँ घटित होती हैं जो अशुभ सूचनाएँ देने के लिए जानी जाती हैं | 
   भगवान् श्री कृष्ण के परमधाम जाने के समय की सूचना प्रकृति ने कुछ इसप्रकार से दी थी |
      समय -
          सबसे पहले समय का संचार बिगड़ा था !जिसे देखकर लोग कहने लगे थे कि यह समय न जाने क्या करेगा !यथा - कालोयं किं विधाष्यति !
उसके कारण ऋतुएँ बिगड़ गई थीं ऋतुओं का असर कहीं कम तो कहीं अधिक दिखाई पड़ने लगा था -
ऋतुध्वंस : जिसे आधुनिक भाषा में 'जलवायुपरिवर्तन' कहने का रिवाज है -
      ऋतुएँ अपने स्वभाव के विरुद्ध आचरण करने लगती हैं|जिस समय जो ऋतु  होनी चाहिए उस समय वह नहीं होने लगी थी |सर्दी में गर्मी और गर्मी में सर्दी के लक्षण दिखाई पड़ने लगे थे वर्षा ऋतु सूखी निकल जाती थी वर्षा के अतिरिक्त अन्य ऋतुओं में अच्छी जलवर्षा होते देखी जाती थी | यथा -
     कालस्य च गतिं रौद्रां विपर्यस्तर्तु धर्मिणः |
भूकंप आदि उत्पात -
        पृथ्वी में भूकंप आदि घटित हो रहे थे और शरीरों में लोगों के भारी संख्या में रोग फैलने लगे थे |
यथा -                      पश्योत्पातान्नर व्याघ्र दिव्यान्  भौमान् सदैहिकान् |
 दिशाएँ-जिसे आधुनिक भाषा में 'पॉल्यूशन' कहने का रिवाज है | 
   वायु प्रदूषित होने लगती है आकाश धूल से भर जाता है |  सूर्य और चंद्र का प्रकाश धूमिल लगने लगता है
        दिशाओं में धुँधलापन छाने लगा था ! यथा -       धूम्रःदिशः
 मेघ गर्जन -
  बादलों का गर्जन अत्यंत तीव्र होने लगा था यथा -   निर्घातश्च महांस्तात
बिजली गिरना -
 बिजली गिरने की घटनाएँ बार बार  घटित हो रही थीं यथा - साकं च स्तनयित्नुभिः
आँधी तूफ़ान -
      शरीर को छेदने वाली वायु धूलि वर्षा कर रही थी बार बार आँधी तूफ़ान घटित हो रहे थे|
 यथा -      वायुर्वाति खरस्पर्शो रजसा विंसृजंस्तमः  |
    वर्षा -        बादल रक्त वर्षा करने लगते थे -'असृग वर्षन्ति जलदा '

       ऐसे सभी अपशकुनों को देखकर युधिष्ठिर के मन में ये निश्चय हो गया था कि लग रहा है भगवान् श्रीकृष्ण जी के धराधाम से जाने का समय आ चुका है |
      इसी प्रकार से शुभ शकुन देखकर अच्छी घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लग जाता है |
   भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म के समय प्रकृति में जो जो अच्छी घटनाएँ घटित हो रही थीं प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान उस युग के प्रकृति वैज्ञानिकों ने लगा लिया था कि इस समय कोई बहुत शुभ घटना घटित होने वाली है |

        श्री राम बनवास और दशरथ जी की मृत्यु की सूचना देने वाली कुछ अशुभ प्राकृतिक घटनाएँ ! 
     दशरथ जी ने कहा - अयोध्या में  पिछले आठ दिनों से बार बार आँधी तूफ़ान भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगी हैं | बार बार भयंकर शब्द करते हुए उल्कापात हो रहा है ने लगा था !बार बार बज्रपात होते देखा जा रहा है ! सूर्य मंगल और राहु जैसे ग्रहों का संचार विपरीत हो गया था !
    जिस राज्य में ऐसे अपशकुन होने लगते हैं वहाँ के राजा को राज्य छोड़ देना पड़ता है और नया राजा बनता है | वर्तमान राजा भयंकर विपत्ति से ग्रस्त हो जाता है और अंततोगत्वा वर्तमान राजा मृत्यु को प्राप्त हो जाता है !
        प्रायेण च निमित्तानामीदृशानां समुद्भवे !
    राजा ही मृत्यु माप्नोति घोरां चापदमृच्छति !! 
   ऐसी परिस्थिति में राजा यदि तुरंत बदल दिया जाता है तो संभव है ऐसे प्राकृतिक लक्षणों का दुष्प्रभाव कुछ कम भी हो जाए !इसलिए मेरा ऐसा मत है कि श्रीराम गुणों में श्रेष्ठ हैं ही और कल पुष्य नक्षत्र भी है कल ही उनका राज्याभिषेक करके अयोध्या में आने वाले संभावित संकट से अयोध्या को बचाया जा सकता है |
    इन्हीं उत्पातों के कारण ननिहाल में बैठे भरत जी को भी अपशकुन होने लगे जिनका अनुभव करके श्री भरत जी ने कहा कि मैं श्री राम ,राजादशरथ या लक्ष्मण  इनमें से किसी एक की मृत्यु अवश्य होगी | यथा -

                                           अहं रामोथवा राजा लक्ष्मणो वा मरिष्यति !
अंत में महाराज दशरथ जी की मृत्यु भी हुई श्री राम का बनवास हुआ और अयोध्या में उदासीनता बढ़ती चली गई | 
    पूर्व में घटित हुई प्राकृतिक घटनाएँ इस प्रकार के अमंगल की सूचनाएँ दे रही थीं | जिसमें न दोषी महाराज दशरथ जी थे न कैकई और न ही मंथरा क्योंकि सभी लोग आपस में एक दूसरे के साथ स्नेह पूर्वक रह रहे थे | उनमें आपस में कोई किसी प्रकार का मतभेद नहीं था किंतु समय के प्रभाव से ये घटनाएँ घटित हुईं जिनकी सूचना प्राकृतिक घटनाओं ने पहले से दे दी थी |
        महाभारत युद्ध प्रारंभ होने के 13 वर्ष पहले से घटित होने लगी थीं कुछ अशुभ प्राकृतिक घटनाएँ !
       महाभारत युद्ध से पहले युद्ध होने से संबंधित सूचनाएँ देने वाली कुछ और घटनाएँ मैंने देखीं | यथा -
  सूर्योदय के समय आकाश में बादल न होने पर भी गंभीर गर्जना के साथ वर्षा होने लगी थी | अचानक प्रचंड आँधी और कंकड़ बरसने लगते थे जिससे सारे आसमान में धूल छा जाती थी | पूर्व दिशा की ओर भारी उल्कापात हुआ जो तेज आवाज के साथ पृथ्वी पर गिरी और पृथ्वी में विलीन हो गई !सूर्य का प्रकाश फीका पड़ चुका था पृथ्वी भयानक शब्द करती हुई बार बार काँपने और फटने लगती थी !बार बार बज्रपात होते देखे जाते थे !उस वर्ष दोनों पक्षों में त्रयोदशी को ही ग्रहण घटित हुए थे जबकि अमावस्या या पूर्णिमा में ऐसा होते हमेंशा से देखा जाता रहा है |हिमालय जैसे पर्वतों में शब्द हो रहे थे उनके शिखर बार बार टूट टूटकर गिरने लगे थे !चारों समुद्र उफनाने लगते थे !सूर्य चंद्र और तारे जलते हुए से दीख रहे थे चंद्रमा में बना हुआ मृगचिन्ह मिट सा गया था !गउओं से गधे, घोड़ी से बछड़े और कुतिया से गीदड़ पैदा होते देखे जाने लगे थे | चारों ओर बड़े जोर जोर की आँधी चलने से आकाश की धूल कभी समाप्त ही नहीं हो पा  रही थी |गंभीर वायु प्रदूषण व्याप्त हो गया था |
    ऐसी और भी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाओं ने उस समय होने वाले महाभारत जैसे युद्ध की पूर्व सूचनाएँ उपलब्ध करवाई थीं जिनके आधार पर महापुरुषों ने महाभारत जैसे भयानक युद्ध का पूर्वानुमान लगा लिया था | प्राकृतिक घटनाएँ भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सूचनाएँ उपलब्ध करवा सकती थीं तो आज ऐसा होना संभव क्यों नहीं हो सकता है |
     महाभारत में वर्णन मिलता है कि महाभारत के युद्ध से तेरह वर्ष पहले से भयंकर भूकंप एवं आँधी तूफ़ान बहुत अधिक संख्या में आने लगे थे एक दिन युधिष्ठिर ने व्यास जी से पूछा कि महाराज !अब तो शिशुपाल मारा जा चुका है अब ये भूकंप किस आपदा की सूचना देने के लिए अक्सर आते रहते हैं ?यह सुनकर व्यास जीने कहा कि आज के तेरह वर्ष बाद भयंकर युद्ध होगा जिसमें भारी संख्या में क्षत्रियों का संहार होगा उसी की सूचना देने आ रहे हैं ये भूकंप |
      महाभारत की इस घटना से जहाँ एक ओर यह बात प्रमाणित होती है कि भूकंप भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सूचना देने आते हैं वहीँ इस बात का भी निश्चय हो जाता है कि भूकंपों  के द्वारा भविष्य में काफी आगे घटित होने वाली घटनाओं का भी पूर्वानुमान  लगाया  जा सकता है |
      मुझे लगा कि यदि 13 वर्ष बाद होने वाले महाभारत जैसे युद्ध की सूचना भूकंप आदि घटनाओं के अनुसंधान के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है तो इस दृष्टि से भूकंप आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर उनसे प्राप्त संकेतों को समझने का प्रयास किया जाना चाहिए 
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                                         समय का महत्त्व और प्राकृतिक घटनाएँ -  

       कुल मिलाकर सभी प्रकार की अच्छी या बुरी घटनाएँ समय के आधार पर घटित होती हैं | जशुभ समय जब चल रहा होता है तब कुछ शुभ घटनाएँ घटित होने लगती हैं और जब अशुभ समय चल रहा होता है तब कुछ अशुभ घटनाएँ घटित होने लगती हैं किंतु शुभ समय कब आएगा और अशुभ समय कब आएगा इसका पता पहले से कैसे लगा लिया जाए ?

       समय प्रभाव से प्रकृति के विभिन्न अंगों में प्रकट होने  वाले अच्छे या बुरे लक्षणों को देखकर अच्छे और बुरे समय के संचार को समझा जा सकता है किंतु ऐसा होना तभी संभव है जब अच्छे या बुरे समय का संचार प्रारंभ हो चुका हो अन्यथा प्रकृति में उस प्रकार के लक्षणों का प्रकट होना संभव नहीं है |

      इस बिषय में यहाँ एक और विशेष बिंदु पर चर्चा करना आवश्यक है कि अच्छे लक्षणों वाली घटनाएँ केवल अच्छे फल ही नहीं देती हैं कई बार वे भी बुरे फल देने लगती हैं है इसी प्रकार से  बुरे लक्षणोंवाली घटनाएँ भी हमेंशा बुरे फल ही नहीं देती हैं कुछ विशेष परिस्थितियों में उनके द्वारा अच्छे संदेश भी दिए जाते हैं | इसके लिए आवश्यक है उस समय के बिषय में अनुसंधान करना जिस समय जो अच्छी या बुरी घटना घटित होती है | कोई भी प्राकृतिक घटना घटित होने के समय का अनुसंधान करके भूकंप आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के द्वारा दिए   जाने वाले प्रकृति संदेश के अभिप्राय को समझा जा सकता है कि इस समय प्रकृति के द्वारा इस क्षेत्र के प्राणियों के लिए क्या निर्देश दिया जा रहा है ? 

     मुख्य बात यह है कि  भविष्य में महीनों या वर्षों पहले के अच्छे और बुरे समय के बिषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए ग्रहों के संचार को समझने के अतिरिक्त और कोई दूसरा मार्ग नहीं है | भारत्त के प्राचीन वैज्ञानिक ग्रंथों में स्पष्ट लिखा गया है कि 'कालज्ञानंग्रहाधीनं' अर्थात समय का ज्ञान ग्रहों के आधीन है | ग्रहों के संचार को समझे बिना किसी भी बिषय में अंदाजा तो  लगाया जा सकता है किंतु पूर्वानुमान लगाना संभव हो ही नहीं सकता है | 

         यही कारण है कि प्रकृति से जीवन तक के सभी बिषयों में पूर्वानुमान लगाने के नाम पर आज तक घटनाओं के बिषय में केवल जासूसी करवाई जाती रही है उसी के आधार पर कुछ अंदाजे लगा लिए जाते हैं कि प्रशांत महासागर से ऊपर उठे आँधी तूफ़ान या बादलों को उपग्रहों रडारों की मदद से  देख लिया जाता है कि किस दिशा में कितनी गति से जा रहे हैं उस दिशा में पड़ने वाले देशों प्रदेशों में उस प्रकार की घटनाएँ घटित होने के बिषय में अंदाजा लगा लिया जाता है बीच में  दिशा  यदि बदल गई तो वही अंदाजा गलत निकल जाता है |इसमें न विज्ञान है और नहीं अनुसंधान है और न ही इसमें किसी प्रकार का अनुसंधान करके इसे और अधिक सटीक बनाने की  कोई प्रक्रिया संभव भी नहीं है |सुपर कंप्यूटर जैसी अत्यंत विक्सित तकनीक से समय के बिषय में कैसे लगाया जा सकता है और समय के बिषय में पूर्वानुमान लगाए बिना घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |    

        इस बिषय में यहाँ इतना ही बताना आवश्यक है कि भूकंप आदि सभी  प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ देश और समाज  में समय समय पर होने वाले संभावित परिवर्तनों के बिषय में कुछ आवश्यक सूचनाएँ दे रही होती हैं | समयप्रवाह से होने वाली ऐसी ही कुछ प्राकृतिक घटनाएँ चराचर जीवों के स्वभाव बोली व्यवहार आदि में बदलाव करने लग जाती हैं | जीवों में दिखने वाले उन्हीं बदलावों का अनुसंधान पूर्वक अध्ययन करके उनके आधार पर भविष्य में घटित होने वाली प्राकृतिक सामाजिक राजनैतिक आदि घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |

       ऐसी किसी एक घटना को देखकर भविष्य में संभावित किसी दूसरी घटना के बिषय में पूर्वानुमान लगा लेने के विज्ञान को  ही वेदविज्ञान की भाषा में शकुन अपशकुन के नाम से जाना जाता है |पौराणिक साहित्य में इसकी चर्चा अनेकों स्थानों पर मिलती है | 

      प्रकृति के इस रहस्य को न समझने के कारण हम भूकंपों को ही मुख्यघटना समझ लेते हैं वस्तुतः घटना कोई और घटनी होती है जो उत्पातों के कुछ समय बाद में घटती है किंतु हम उसे स्वतंत्र घटना मान लेते हैं और दोनों को सह जाते हैं प्रकृति में संतुलन लाने  के लिए ही उत्पात जन्म लेते हैं जो वस्तुओं तथा प्राणियों में  अनेकों प्रकार के लक्षण के स्वरूप में दिखाई पड़ते हैंउनके भिन्न -भिन्न प्रकार के परिणाम भी होते हैं | 

        शास्त्रीय मान्यता है कि 'सदसद्फलबोधार्थं' चेतावनी देने की प्रक्रिया हैं प्राकृतिक उत्पात !हम लोग जिस जगह जिस प्रकार से रह रहे होते हैं उस जगह वहाँ के लोगों से जब ऐसी गलतियाँ होने लगती हैं जिससे कि प्रकृति क्षुब्ध हो उठती है उस समय प्रकृति भूकंप जैसे उत्पातों के माध्यम से अपना सँदेशा भेजने लगती है  फिर भी यदि लोगों का आचार व्यवहार नहीं सुधरता है तब घटित होती हैं प्राकृतिक दुखद घटनाएँ !उत्पात और घटना के बीच कुछ दिनों का अंतराल प्रकृति इसीलिए रखती है ताकि  क्षेत्र के लोग यदि सुधरना चाहें तो सुधर जाएँ यदि उन्हीं अंत्यंत कम दिनों में समाज सुधार की ओर मुड़ जाए तो प्रकृति का क्रोध कम होकर और निकट भविष्य में घटित होने वाली कुछ बड़ी दुर्घनाओं के वेग को अपेक्षाकृत कम प्रभावी बनाया जा सकता है |         

                                                       भूकंप और घटनाएँ

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