दो शब्द
सर्दी गर्मी और हवा या कफ पित्त वात के संतुलित संचार पर ही संपूर्ण प्रकृति और जीवन आश्रित है जीवन प्रकृति के अधीन है इसलिए मनुष्य जीवन का भी प्राकृतिक परिस्थितियों से प्रभावित होना स्वाभाविक ही है |बाह्य और आंतरिक दोनों प्रकार से सर्दी गर्मी और हवा के संतुलित संचार से ही मनुष्य शरीर स्वस्थ रह पाते हैं | बाह्य से अभिप्राय उस प्राकृतिक वातावरण से है शरीर के बाहर का वह प्राकृतिक वातावरण जिसमें हम साँस लेते और छोड़ते हैं और आंतरिक से अभिप्राय शरीर के अंदर जहाँ तक हमारा स्वाँस बिना किसी रुकावट के आसानी से जाता और आता रहता है |
शरीर के बाहर का प्राकृतिक वातावरण बिगड़ने का प्रभाव बहुत लोगों पर एक
जैसा पड़ने से बहुत लोग एक जैसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं यदि यह
बिगाड़ बहुत बड़े पैमाने पर होता है तो एक जैसे बड़े रोगों से बहुत
बड़ी संख्या में लोग पीड़ित होते देखे जाते हैं यह महामारियों के समय ही
होता है |इसके अतिरिक्त शरीर के अंदर का आतंरिक वातावरण बिगड़ने से केवल वही
व्यक्ति रोगी होता है जिसके अपने शरीर के अंदर का वातावरण बिगड़ता है |
विशेष बात यह है कि बाह्य प्राकृतिक वातावरण बिगड़ने के प्रभाव से महामारी फैलने लग जाती है उस महामारी का सामान्य प्रभाव तो सभी लोगों पर एक समान पड़ता है उसके प्रभाव से सामान्य रोग तो उस क्षेत्र में रहने वाले प्रायः सभी लोगों को होते हैं जबकि अधिक पीड़ित केवल वही लोग होते हैं जिनका अपना व्यक्तिगत आतंरिक वातावरण बिगड़ा होता है जिनका जिस अनुपात में बिगाड़ा होता है वे उसी अनुपात में पीड़ित होते देखे जाते हैं !महामारी से पीड़ित होकर भी कुछ पीड़ित होकर आसानी से स्वस्थ हो जाते हैं कुछ के लिए बिशेष चिकित्सकीय प्रयास करने पड़ते हैं तब स्वस्थ हो पाते हैं |जिनका आतंरिक वातावरण बहुत अधिक बिगड़ा होता है उन्हें बड़े बड़े चिकित्सकीय प्रयास करके भी बचाना संभव नहीं हो पाता है और उनकी मृत्यु होते देखी जाती है |
सर्दी गर्मी और हवा या कफ पित्त वात के संतुलित संचार से ही संपूर्ण प्रकृति और जीवन स्वस्थ एवं सुरक्षित है है! सर्दी गर्मी और हवा का आपसी अनुपात बिगड़ते ही प्राकृतिक वातावरण और मनुष्यादि प्राणियों का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है | ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि सर्दी गर्मी और हवा का आपसी अनुपात बिगड़ने का कारण क्या है ?
अपने आतंरिक कारणों से हवा में विकार आना संभव नहीं होता है हवा तो संयोग पाकर अपने को बदल लिया करती है ठंड का संयोग पाकर हवा ठंडी हो जाती है और गर्म का संयोग पाकर गर्म होते देखी जाती है | प्राकृतिक वातावरण में शीतलता(ठंड)चंद्रमा के कारण संभव हो पाती है और गर्मी सूर्य से मिलती है |ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक वातावरण में शीतलता और उष्णता के अनुपात में समता और बिषमता घटने बढ़ने का कारण चंद्र और सूर्य ही हैं |
इसमें भी प्राकृतिक वातावरण को शीतलता प्रदान करने में चंद्रमा स्वतंत्र नहीं है वह सूर्य के आधीन है चंद्रमा न केवल प्रकाश सूर्य से लेता है अपितु वातावरण को शीतल बनाने के लिए शीतलता भी उसे सूर्य से ही मिलती है क्योंकि वातावरण से सूर्य जब अपना उष्णप्रभाव कम करेगा तभी प्राकृतिक वातावरण को शीतलता मिल पाएगी जिसका कारण चंद्र है |
ऐसी परिस्थिति में ठंड और गरमी दोनों का मूल कारण सूर्य हुआ !इसलिए प्राकृतिक वातावरण में कब कितनी गर्मी बढ़ेगी और कब कितनी ठंड बढ़ेगी यह सब सूर्य के द्वारा निर्धारित होती है क्योंकि सर्दी और गर्मी का आपसी अनुपात बिगड़ते ही प्राकृतिक वातावरण और मनुष्यादि प्राणियों का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है | जिस गुण की अधिकता होती है हवा तो उसी का साथ देने लगती है | हवा सूर्य से प्रभावित होकर केवल गरम ही नहीं होती है अपितु उसकी गति भी बढ़ जाती है और हवा के ठंडी होने से उसकी गति भी धीमी हो जाती है |
इस प्रकार से चंद्रमा की तरह ही हवा भी सूर्य के ही आधीन है |